06-03-2023, 11:38 PM
अगली सुबह मैं देर तक सोती रही ,क्योंकि आज 1 मार्च थी और संडे भी था । अशोक के ऑफिस की छुट्टी थी और वो भी काफी देर तक सोये । 7 बजे के आसपास मैं अंडाई लेते हुए मैं बिस्तर से उठी ।
अशोक पहले ही उठ चुके थे और वो वाशरूम मे फ्रेश हो रहे थे । मैं भी उठकर हॉल वाले वशरूम मे फ्रेश होने चली गई । फ्रेश होकर मैं कीचेन मे पहुँची और अपने अशोक के लिए चाय बनाने लगी । मैं अभी कीचेन मे ही थी तब तक अशोक भी वहाँ आ गए और पीछे से मेरे करीब आकर मुझे बाहों मे भरकर बोले -
अशोक - क्या कर रही हो ?
मैं (मुस्कुरा कर) - आपके लिए चाय बना रही हूँ ?अशोक - अरे चाय मत बनाओ ?मैं - क्यूँ ..क्या हुआ ?
अशोक ( मुझे छोड़ते हुए ) - अरे अब तो मार्च शुरू हो गया , दिन भी गरम होने लगे है । मैं तो जूस पियूँगा ।
मैं (अशोक की ओर देखते हुए ) - लेकिन ... जूस तो खत्म हो गया है !
अशोक ( कुछ सोचकर) - कोई बात नहीं मैं अभी लेकर आता हूँ ।
मैं - ठीक है जल्दी जाइये .... तब तक मे नहा लेती हूँ ।
अशोक - हाय ... तुम्हें नहाने की क्या जरूरत तुम तो हमेशा ही हसीन लगती हो ?
अशोक की बात सुनकर मैं शरमाये बिना नहीं रह सकी ।
मैं - अब जल्दी जाइये फिर मैं आपके लिए कुछ बना दूँगी ।
अशोक - ठीक है ठीक है .. लेकिन नहाने जाते हुए । घर का दरवाजा बन्द मत करना पता चला तुम अन्दर नहाती रही ओर मैं बाहर वेट करता रहा ।
मैं - ओके ।
उसके बाद अशोक जूस लेने चले गए । चाय तो बन ही चुकी थी तो मैंने सोचा ये बेकार ही जाएगी इसलिए मैं उसे सोफ़े पर बैठकर पीने लगी ।
मैंने अपनी चाय खत्म की । अशोक अभी नहीं आए थे तो चाय पीकर मैं नहाने के लिए हॉल वाले बाथरूम मे चली गई और साथ मे अपने कपड़े भी ले लिए ....
अन्दर आकर मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नग्न होकर शावर खोल दिया और नहाने लगी । मैं शावर की ठंडी बूंदों मे खड़े हुए नहा रही थी और बाहर की दुनिया से बेखबर थी मुझे बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहा की घर का गेट लॉक नहीं है , और यही मुझसे एक बड़ी भूल हो गई । मैं अनजान थी एक ऐसी होने वाली घटना से जो मैंने सपने मे भी नहीं सोची थी । कोई मेरे घर के अन्दर आ गया था और वो अशोक नहीं थे । वो कौन है ? इसका मुझे भी बाद मे पता चला । उस समय तक मुझसे अनजान वो शख्स मेरे घर के अन्दर था और मुझे खोजते हुए वो बाथरूम के गेट पर आ गया । उस समय मेरी पीठ गेट की तरफ थी ।
उस अनजान ने धीरे से मेरे बाथरूम का गेट खोल दिया और चुपके से पीछे से मेरी गोरी पीठ पर से नीचे भारी नितम्बों तक सब पर अपनी नजरे जमाकर , मेरे सुंदर रूप को निहारने लगा ।
मेरे बदन पर उस वक्त एक भी कपड़ा नहीं था और ऊपर से शावर की बुँदे मेरे कोमल बदन पर फिसल रही थी जो मेरे बदन को और भी कामुक बना रही थी , जिसे देखकर वो अनजान बेकाबू हुआ जा रहा था । उस समय घर पर मेरे सिवाय और कोई नहीं था , इसका उस अनजान ने भरपूर फायदा उठाया और जितना हो सके मेरे गदराये बदन का पीछे से मजा उठाया , उसकी नजरे मेरे गोल-गोल और मोटे नितम्बों से हट नहीं पा रही थी । शायद अब उसके अन्दर की वासना ने उसके सब्र का बाँध तोड़ दिया और मेरे कामुक जिस्म को और अच्छे से देखने के लिए वो धीरे से दरवाजा खोलकर अन्दर बाथरूम मे घुस गया ।
मुझे अभी कुछ पता नहीं था , मेरी पीठ अभी भी उस की ओर थी और मैं उसके आगमन से बेखबर बस नहा रही थी । मेरे पीछे खड़े हुए उसने मेरे गोरे बदन की महक का पूरा मजा उठाया और चुपके से कई बार मेरे जिस्म से उठने वाली उत्तेजना से भरी महक को सूँघा , लेकिन अब वो इस पर ही नहीं रुकने वाला था । मेरे भरे जिस्म का आकर्षण उसे मेरी ओर खींचता ही गया और जैसे कोई परवाना अपने आप को शमा के पास जाने से नहीं रोक पाता ठीक वैसे ही वो भी अपने हाथों को मेरे जिस्म को स्पर्श करने से रोक नहीं पाया । उसने शांति से आगे बढ़कर अपने हाथों को मेरी कमर के बराबर मे रख दिया और प्यार से वहाँ अपनी उँगलियों से सहलाने लगा ।
" ऑफ .... " मन ही मन मैंने एक आह भरी । लेकिन पीछे मुड़कर नहीं देखा , मुझे लगा था कि अशोक आ गए है और वो ही ऐसे पीछे से मुझे छेड़ रहे है । हालाँकि अशोक ने मेरे साथ ऐसा कभी पहले नहीं किया था मगर मैं उस समय मे रोमांच मे सब भूलकर उस अनजान को अशोक समझकर उसका साथ दे रही थी । उसके हाथ मेरी पीठ पर अब हर जगह अपनी कला दिखा रहे थे और मेरे बदन पर चिपकी ठंडे पानी की बूंदों के साथ ,मेरी कमर और पीठ पर हर जगह को महसूस कर रहे थे । मैंने अब शावर बन्द कर दिया था और बस आँखे बन्द कीये मदहोशी की हालत मे उस अनजान के बदन से पीछे से चिपक गई । मेरा कोमल पीछे से बिल्कुल नंगा जिस्म उसके मजबूत शरीर से लगा हुआ था ।
अशोक पहले ही उठ चुके थे और वो वाशरूम मे फ्रेश हो रहे थे । मैं भी उठकर हॉल वाले वशरूम मे फ्रेश होने चली गई । फ्रेश होकर मैं कीचेन मे पहुँची और अपने अशोक के लिए चाय बनाने लगी । मैं अभी कीचेन मे ही थी तब तक अशोक भी वहाँ आ गए और पीछे से मेरे करीब आकर मुझे बाहों मे भरकर बोले -
अशोक - क्या कर रही हो ?
मैं (मुस्कुरा कर) - आपके लिए चाय बना रही हूँ ?अशोक - अरे चाय मत बनाओ ?मैं - क्यूँ ..क्या हुआ ?
अशोक ( मुझे छोड़ते हुए ) - अरे अब तो मार्च शुरू हो गया , दिन भी गरम होने लगे है । मैं तो जूस पियूँगा ।
मैं (अशोक की ओर देखते हुए ) - लेकिन ... जूस तो खत्म हो गया है !
अशोक ( कुछ सोचकर) - कोई बात नहीं मैं अभी लेकर आता हूँ ।
मैं - ठीक है जल्दी जाइये .... तब तक मे नहा लेती हूँ ।
अशोक - हाय ... तुम्हें नहाने की क्या जरूरत तुम तो हमेशा ही हसीन लगती हो ?
अशोक की बात सुनकर मैं शरमाये बिना नहीं रह सकी ।
मैं - अब जल्दी जाइये फिर मैं आपके लिए कुछ बना दूँगी ।
अशोक - ठीक है ठीक है .. लेकिन नहाने जाते हुए । घर का दरवाजा बन्द मत करना पता चला तुम अन्दर नहाती रही ओर मैं बाहर वेट करता रहा ।
मैं - ओके ।
उसके बाद अशोक जूस लेने चले गए । चाय तो बन ही चुकी थी तो मैंने सोचा ये बेकार ही जाएगी इसलिए मैं उसे सोफ़े पर बैठकर पीने लगी ।
मैंने अपनी चाय खत्म की । अशोक अभी नहीं आए थे तो चाय पीकर मैं नहाने के लिए हॉल वाले बाथरूम मे चली गई और साथ मे अपने कपड़े भी ले लिए ....
अन्दर आकर मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नग्न होकर शावर खोल दिया और नहाने लगी । मैं शावर की ठंडी बूंदों मे खड़े हुए नहा रही थी और बाहर की दुनिया से बेखबर थी मुझे बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहा की घर का गेट लॉक नहीं है , और यही मुझसे एक बड़ी भूल हो गई । मैं अनजान थी एक ऐसी होने वाली घटना से जो मैंने सपने मे भी नहीं सोची थी । कोई मेरे घर के अन्दर आ गया था और वो अशोक नहीं थे । वो कौन है ? इसका मुझे भी बाद मे पता चला । उस समय तक मुझसे अनजान वो शख्स मेरे घर के अन्दर था और मुझे खोजते हुए वो बाथरूम के गेट पर आ गया । उस समय मेरी पीठ गेट की तरफ थी ।
उस अनजान ने धीरे से मेरे बाथरूम का गेट खोल दिया और चुपके से पीछे से मेरी गोरी पीठ पर से नीचे भारी नितम्बों तक सब पर अपनी नजरे जमाकर , मेरे सुंदर रूप को निहारने लगा ।
मेरे बदन पर उस वक्त एक भी कपड़ा नहीं था और ऊपर से शावर की बुँदे मेरे कोमल बदन पर फिसल रही थी जो मेरे बदन को और भी कामुक बना रही थी , जिसे देखकर वो अनजान बेकाबू हुआ जा रहा था । उस समय घर पर मेरे सिवाय और कोई नहीं था , इसका उस अनजान ने भरपूर फायदा उठाया और जितना हो सके मेरे गदराये बदन का पीछे से मजा उठाया , उसकी नजरे मेरे गोल-गोल और मोटे नितम्बों से हट नहीं पा रही थी । शायद अब उसके अन्दर की वासना ने उसके सब्र का बाँध तोड़ दिया और मेरे कामुक जिस्म को और अच्छे से देखने के लिए वो धीरे से दरवाजा खोलकर अन्दर बाथरूम मे घुस गया ।
मुझे अभी कुछ पता नहीं था , मेरी पीठ अभी भी उस की ओर थी और मैं उसके आगमन से बेखबर बस नहा रही थी । मेरे पीछे खड़े हुए उसने मेरे गोरे बदन की महक का पूरा मजा उठाया और चुपके से कई बार मेरे जिस्म से उठने वाली उत्तेजना से भरी महक को सूँघा , लेकिन अब वो इस पर ही नहीं रुकने वाला था । मेरे भरे जिस्म का आकर्षण उसे मेरी ओर खींचता ही गया और जैसे कोई परवाना अपने आप को शमा के पास जाने से नहीं रोक पाता ठीक वैसे ही वो भी अपने हाथों को मेरे जिस्म को स्पर्श करने से रोक नहीं पाया । उसने शांति से आगे बढ़कर अपने हाथों को मेरी कमर के बराबर मे रख दिया और प्यार से वहाँ अपनी उँगलियों से सहलाने लगा ।
" ऑफ .... " मन ही मन मैंने एक आह भरी । लेकिन पीछे मुड़कर नहीं देखा , मुझे लगा था कि अशोक आ गए है और वो ही ऐसे पीछे से मुझे छेड़ रहे है । हालाँकि अशोक ने मेरे साथ ऐसा कभी पहले नहीं किया था मगर मैं उस समय मे रोमांच मे सब भूलकर उस अनजान को अशोक समझकर उसका साथ दे रही थी । उसके हाथ मेरी पीठ पर अब हर जगह अपनी कला दिखा रहे थे और मेरे बदन पर चिपकी ठंडे पानी की बूंदों के साथ ,मेरी कमर और पीठ पर हर जगह को महसूस कर रहे थे । मैंने अब शावर बन्द कर दिया था और बस आँखे बन्द कीये मदहोशी की हालत मे उस अनजान के बदन से पीछे से चिपक गई । मेरा कोमल पीछे से बिल्कुल नंगा जिस्म उसके मजबूत शरीर से लगा हुआ था ।