06-03-2023, 11:08 PM
" ये कौन रख गया यहाँ पर ... मैंने तो कुछ मँगाया भी नहीं । "
![[Image: 20170106-170526.jpg]](https://i.postimg.cc/brFbL56X/20170106-170526.jpg)
![[Image: 20170106-170557.jpg]](https://i.postimg.cc/bv8G08zD/20170106-170557.jpg)
मैंने उसे उठाया और थोड़ी देर ऐसे ही बाहर आँगन मे खड़ी होकर उसे देखती रही , बॉक्स चारों ओर से बन्द था उसपर कुछ लिखा तो नहीं था मगर उसके अन्दर कुछ रखा हुआ जरूर था । मैंने
सोचा यहाँ खड़े होकर इस घूरते रहने से अच्छा है , घर के अन्दर जाकर इसे खोलकर देखा जाए ।
उस बॉक्स को हाथ मे उठाए दरवाजा खोलकर मैं घर के अन्दर पहुँची । अन्दर आकर मैंने दरवाजा बन्द किया और उसे लेकर सीधे हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई ।
![[Image: 28154819c53a5a87a971935995ca3610748800fa.jpg]](https://i.postimg.cc/2yf8Y7Vq/28154819c53a5a87a971935995ca3610748800fa.jpg)
मैं सोच रही थी "आजकल मोहल्ले वालों की बाते बोहोत ज्यादा गंदी होती जा रही है और अब तो वो खुलकर सबके सामने कुछ भी बोल देते है , काश हम ये गंदा मोहल्ला ही बदल डाले । "
घर के अन्दर आकर भी मेरा चित्त शान्त नहीं हुआ था , सुकून मेरे दिमाग से कोसों दूर था । यही बात मुझे झक-झोर दे रही थी कि , " पदमा तूने अपने पति धर्म से दगा की है ..तू अपने पति को धोखा दे रही है .... क्या कसूर है अशोक का ? तू क्यूँ बार-बार नितिन की बातों मे आ जाती है .... कहीं ऐसा तो नहीं तू जान-बूझकर नितिन के पास जाती है , ताकि वो तेरे साथ फिर से वही खेल, खेल सके ...... कहीं तुझे भी तो नितिन के साथ मजा तो नहीं आ रहा .........।"
![[Image: 27531301dd7e298d0532030fd7e3bd696e910bc7.gif]](https://i.postimg.cc/MG8sycM7/27531301dd7e298d0532030fd7e3bd696e910bc7.gif)
" नहीं... नहीं ... ऐसा नहीं है .... मैं तो बस इंसानियत की खातिर उसके पास गई थी । "
" झूठ बोलती है तू ... सच तो ये है तुझे भी नितिन के साथ जवानी के मजे लूटने है इसलिए तू उसके पास गई थी । "
" चुप रहो ... मैं बस अशोक की हूँ .. वो ही मेरे सब कुछ है । "
" अच्छा ... ये सब तब क्यों नहीं सोचा जब मजे से नितिन का वो विशाल लिंग अपने मुहँ मे लेके चूस रही थी .. तब तो बोहोत मजा आ रहा था ना ... ।
" वो ..... वो ... तो मैं बस बहक गई थी । "
" अच्छा ... क्या हर बार ही बहक जाती है तू ... तो तूने आज तक अशोक का क्यों नहीं चूसा .... क्या उसका तुझे पसंद नहीं ....बोल ना अब ? "
" बन्द करो अपनी ये बकवास ... मैं अब कभी नहीं मिलूँगी नितिन से .... "
" हहहह ...... फिर से झूठ ... । "
![[Image: 1673255693344.jpg]](https://i.postimg.cc/6qtmV882/1673255693344.jpg)
हॉल मे बैठे हुए मेरे मन मे ये जद्दो-जहद चल रही थी , खुद मेरा मन दो विचारों मे बँट कर रह गया था । एक मेरा साथ दे रहा था और दूसरा मुझे कमजोर बना रहा था । मैं उसी गुमसुम हालत मे सोफ़े पर बैठी रही । मैं उस बॉक्स के बारे मे बिल्कुल भूल ही गई थी जो मुझे अभी बाहर मिला था ,,मैं फिर से उन्ही विचारों की दुनियाँ मे खो गई ........ और फिर कुछ सोचते हुए अपने सोफ़े से उठी और उस बॉक्स को लेकर सीधा बेडरूम मे जाकर उसे अलमारी मे रख दिया । मेरा अभी उसे खोलने का मन नहीं था , मैं बोहोत थकान महसूस कर रही थी इसलिए मैंने सोचा इसे बाद मे देखूँगी पहले थोड़ी देर आराम कर लूँ । बॉक्स को अलमारी मे रखते हुए मेरा ध्यान अशोक के ऑफिस वाली अलमारी मे रखी उस फाइल पर गया जिसके लिए नितिन पागल हुआ जा रहा था । मैंने अशोक की ऑफिस की अलमारी से वो फाइल निकाली जिसके कारण से सारा बखेड़ा खड़ा हुआ था । मैं उसे लेकर वही कुर्सी पर बैठ गई
![[Image: hf.jpg]](https://i.postimg.cc/hGypN2Zr/hf.jpg)
और उसके पन्ने पलटते हुए सोचने लगी कि "ना जाने ऐसा क्या है इस फाइल मे जिसकी वजह से अशोक कल रात इतना नाराज हो गए और नितिन इसे पाने के लिए इतना क्यूँ व्याकुल (उतावला ) है ? क्या करूँ कल रात भी ना जाने अशोक किस से छुप-छुपकर बात कर रहे थे ? वैसे तो मेरा उनके काम से कुछ लेना देना नहीं है पर बस मैं चाहती हूँ कि वो किसी गलत काम मे भागीदार ना बने । तो क्या करूँ ये फाइल नितिन को दे दूँ क्या ? नहीं कहीं इससे अशोक को कुछ नुकसान ना हो जाए ..! मगर नितिन ने वादा भी किया था कि वो अशोक का कुछ बुरा नहीं होने देगा , क्या मुझे उसपे भरोसा करना चाहिए ? पता नहीं क्या होगा ... एक काम करती हूँ अभी के लिए इसे यहीं सेफ रख देती हूँ जो भी होगा वक्त के साथ पता चल ही जाएगा "
![[Image: 20220921-005049.jpg]](https://i.postimg.cc/VLvL8vNW/20220921-005049.jpg)
ऐसा सोचकर मैंने वो फाइल वापस अलमारी मे रख दी मैंने अलमारी बन्द की ही थी की तभी मेरे मोबाईल पर एक रिंग बजी मैं उसे जाँचा तो वो नितिन की कॉल थी । नितिन की कॉल इस समय देखकर मे समझ गई कि इसे अब होश आया होगा .. मैंने कॉल नहीं उठाई .. सच कहूँ तो मेरा इस समय उसका कॉल उठाने का कोई इरादा भी नहीं था । मैंने उसकी कॉल कट कर दी और कहीं नितिन वापस से फोन करके मुझे परेशान ना करे उसका नम्बर भी ब्लॉक कर दिया , और थोड़ी देर के लिए बेड पर लेट गई ।
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मैंने उसे उठाया और थोड़ी देर ऐसे ही बाहर आँगन मे खड़ी होकर उसे देखती रही , बॉक्स चारों ओर से बन्द था उसपर कुछ लिखा तो नहीं था मगर उसके अन्दर कुछ रखा हुआ जरूर था । मैंने
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सोचा यहाँ खड़े होकर इस घूरते रहने से अच्छा है , घर के अन्दर जाकर इसे खोलकर देखा जाए ।
उस बॉक्स को हाथ मे उठाए दरवाजा खोलकर मैं घर के अन्दर पहुँची । अन्दर आकर मैंने दरवाजा बन्द किया और उसे लेकर सीधे हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई ।
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मैं सोच रही थी "आजकल मोहल्ले वालों की बाते बोहोत ज्यादा गंदी होती जा रही है और अब तो वो खुलकर सबके सामने कुछ भी बोल देते है , काश हम ये गंदा मोहल्ला ही बदल डाले । "
घर के अन्दर आकर भी मेरा चित्त शान्त नहीं हुआ था , सुकून मेरे दिमाग से कोसों दूर था । यही बात मुझे झक-झोर दे रही थी कि , " पदमा तूने अपने पति धर्म से दगा की है ..तू अपने पति को धोखा दे रही है .... क्या कसूर है अशोक का ? तू क्यूँ बार-बार नितिन की बातों मे आ जाती है .... कहीं ऐसा तो नहीं तू जान-बूझकर नितिन के पास जाती है , ताकि वो तेरे साथ फिर से वही खेल, खेल सके ...... कहीं तुझे भी तो नितिन के साथ मजा तो नहीं आ रहा .........।"
![[Image: 27531301dd7e298d0532030fd7e3bd696e910bc7.gif]](https://i.postimg.cc/MG8sycM7/27531301dd7e298d0532030fd7e3bd696e910bc7.gif)
" नहीं... नहीं ... ऐसा नहीं है .... मैं तो बस इंसानियत की खातिर उसके पास गई थी । "
" झूठ बोलती है तू ... सच तो ये है तुझे भी नितिन के साथ जवानी के मजे लूटने है इसलिए तू उसके पास गई थी । "
" चुप रहो ... मैं बस अशोक की हूँ .. वो ही मेरे सब कुछ है । "
" अच्छा ... ये सब तब क्यों नहीं सोचा जब मजे से नितिन का वो विशाल लिंग अपने मुहँ मे लेके चूस रही थी .. तब तो बोहोत मजा आ रहा था ना ... ।
" वो ..... वो ... तो मैं बस बहक गई थी । "
" अच्छा ... क्या हर बार ही बहक जाती है तू ... तो तूने आज तक अशोक का क्यों नहीं चूसा .... क्या उसका तुझे पसंद नहीं ....बोल ना अब ? "
" बन्द करो अपनी ये बकवास ... मैं अब कभी नहीं मिलूँगी नितिन से .... "
" हहहह ...... फिर से झूठ ... । "
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हॉल मे बैठे हुए मेरे मन मे ये जद्दो-जहद चल रही थी , खुद मेरा मन दो विचारों मे बँट कर रह गया था । एक मेरा साथ दे रहा था और दूसरा मुझे कमजोर बना रहा था । मैं उसी गुमसुम हालत मे सोफ़े पर बैठी रही । मैं उस बॉक्स के बारे मे बिल्कुल भूल ही गई थी जो मुझे अभी बाहर मिला था ,,मैं फिर से उन्ही विचारों की दुनियाँ मे खो गई ........ और फिर कुछ सोचते हुए अपने सोफ़े से उठी और उस बॉक्स को लेकर सीधा बेडरूम मे जाकर उसे अलमारी मे रख दिया । मेरा अभी उसे खोलने का मन नहीं था , मैं बोहोत थकान महसूस कर रही थी इसलिए मैंने सोचा इसे बाद मे देखूँगी पहले थोड़ी देर आराम कर लूँ । बॉक्स को अलमारी मे रखते हुए मेरा ध्यान अशोक के ऑफिस वाली अलमारी मे रखी उस फाइल पर गया जिसके लिए नितिन पागल हुआ जा रहा था । मैंने अशोक की ऑफिस की अलमारी से वो फाइल निकाली जिसके कारण से सारा बखेड़ा खड़ा हुआ था । मैं उसे लेकर वही कुर्सी पर बैठ गई
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और उसके पन्ने पलटते हुए सोचने लगी कि "ना जाने ऐसा क्या है इस फाइल मे जिसकी वजह से अशोक कल रात इतना नाराज हो गए और नितिन इसे पाने के लिए इतना क्यूँ व्याकुल (उतावला ) है ? क्या करूँ कल रात भी ना जाने अशोक किस से छुप-छुपकर बात कर रहे थे ? वैसे तो मेरा उनके काम से कुछ लेना देना नहीं है पर बस मैं चाहती हूँ कि वो किसी गलत काम मे भागीदार ना बने । तो क्या करूँ ये फाइल नितिन को दे दूँ क्या ? नहीं कहीं इससे अशोक को कुछ नुकसान ना हो जाए ..! मगर नितिन ने वादा भी किया था कि वो अशोक का कुछ बुरा नहीं होने देगा , क्या मुझे उसपे भरोसा करना चाहिए ? पता नहीं क्या होगा ... एक काम करती हूँ अभी के लिए इसे यहीं सेफ रख देती हूँ जो भी होगा वक्त के साथ पता चल ही जाएगा "
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ऐसा सोचकर मैंने वो फाइल वापस अलमारी मे रख दी मैंने अलमारी बन्द की ही थी की तभी मेरे मोबाईल पर एक रिंग बजी मैं उसे जाँचा तो वो नितिन की कॉल थी । नितिन की कॉल इस समय देखकर मे समझ गई कि इसे अब होश आया होगा .. मैंने कॉल नहीं उठाई .. सच कहूँ तो मेरा इस समय उसका कॉल उठाने का कोई इरादा भी नहीं था । मैंने उसकी कॉल कट कर दी और कहीं नितिन वापस से फोन करके मुझे परेशान ना करे उसका नम्बर भी ब्लॉक कर दिया , और थोड़ी देर के लिए बेड पर लेट गई ।
![[Image: Shriya-saran-in-Pavitra-photos-54.jpg]](https://i.postimg.cc/3x31RsP1/Shriya-saran-in-Pavitra-photos-54.jpg)