23-02-2023, 08:23 PM
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-20
लिंग पूजा-2
मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा। मैंने राजकमल ने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था। धीरे-धीरे मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की वह मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था।
मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी। लेकिन वह कमीना इतने में ही नहीं रुका। अब मंत्र पढ़ते समय वह मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा। मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी।
खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया। मैंने राहत की साँस ली।
गुरुजी--माध्यम के रूप में तुम अब संजीव को साथ लेकर फ़र्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी। तुम्हारी नाभि और घुटने फ़र्श को छूने चाहिए।
मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी। गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वह जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था। मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी। फिर मैं पेट के बल फ़र्श पर लेट गयी।
गुरुजी--प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो। तुम्हारी नाभि फ़र्श को छू रही है? मैं देखता हूँ।
गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट के बीच में अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फ़र्श को छू रही है या नहीं? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा-सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें। उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा।
गुरुजी--हाँ, ठीक है।
ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया। मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए। मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे। उन मर्दों के सामने नंगी हालत में मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था। फिर मैंने देखा गुरुजी ने संजीव को मेरे पास आने के लिए इशारा किया था ।
गुरुजी- संजीव अब तुम रश्मि को पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओ।
"मैंने पुछा कैसे गुरुजी?"
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसमें मुझे करना क्या है? मैंने देखा गुरुजी ने संजीव को मेरे पास बैठने का इशारा किया था ।
गुरुजी--रश्मि, मैंने तुम्हें बताया तो था। तुम्हें अब संजीव को साथ लेकर पूजा करनी है।
गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वह थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है? साथ लेकर मतलब?
गुरुजी--संजीव तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो।
संजीव --जी गुरुजी।
हे भगवान! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था। गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे। ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों।
"गुरुजी, लेकिन ये!"
गुरुजी--रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है।
"लेकिन गुरुजी, इस तरह!"
गुरुजी--रश्मि, भूलो मत इस समय तुम संजीव को अपने पति के रूप में समझो और जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो।
गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले। एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था। अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया।
गुरुजी- संजीव तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो? समय बर्बाद मत करो। यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि ही है।
मुझे अपनी पीठ पर संजीव चढते हुए महसूस हुआ। मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर ठीक से लेटने में मदद की। कितनी शरम की बात थी वो। मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते। मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की संजीव अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है। फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए, उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था। एक जवान मोठे नितम्ब वाली शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा।
गुरुजी--जय लिंगा महाराज। संजीव अब शुरू करो। रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना।
मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली। अब संजीव ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी। कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो। मेरे ऊपर लेटने से संजीव के तो मज़े हो गये, उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वह मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था। शुक्र यही था की वो खुल कर मुझे छोड़ नहीं रहा था जिससे उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था।
मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वह धीरे से मेरी गांड पर हलके धक्के लगा रहा था जैसे कि मुझे चोद रहा हो। मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और बाको लोग हमारी तरफ़ पीठ करके अभिषेक और भोग तैयार कर रहे थे इसलिए संजीव की मौज हो गयी थी । धीरे धीरे धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी।
अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान संजीव मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था। मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और संजीव तो हाँफने लगा था। इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था। तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं।
मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी। मेरी चूचियाँ फ़र्श में दबी हुई थी। संजीव मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था। संजीव ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं। अब उसने किताब फ़र्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फ़र्श में रख दिए। अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा, इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था। लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी। कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ़ खिसकाया और मेरी चूचियों को छुआ।
शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब संजीव मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया। पहले तो वह हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी।
उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फ़र्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया। कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी। उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वज़न को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा।
उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है। घर पर राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था। राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ।
शुक्र था कि संजीव ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी। लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए। अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे ख़ुद ही नहीं मालूम था कि मैं क्या जाप कर रही हूँ।
गुरुजी--जय लिंगा महाराज।
गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और संजीव ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए। उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं। तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है।
गुरुजी-- संजीव ऐसे ही लेटे रहो और रश्मि तुम जो चाहती हो उसे एक लाइन में मेरे कान में बोलो। और वो अपना कान मेरे पास ले आये ।
मैं --गुरुजी मैं बस ये चाहती हूँ की मुझे मेरी संतान प्राप्त हो ।
गुरुजी--ठीक है। संजीव रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना। तुम्हारे बाद मैं भी तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना। आया समझ में?
मैंने और संजीव ने सहमति में सर हिला दिया।
गुरुजी--सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो।
ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली।
संजीव--लिंगा महाराज, रश्मि को संतान प्रदान करे ।
संजीव जो मेरे पति राजेश की जगह था उसने मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया। उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया। उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था। मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी। मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी। मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि संजीव मेरी चूचियों को पकड़ सके। मैंने लिंगा से प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।
मेरी आँखें बंद थी और तभी संजीव ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी। वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो। मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी योनि गीली होती जा रही थी। मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय संजीव के हाथ मेरी चूचियों को दबा रहे होते थे। मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी।
जल्दी ही पाँच बार प्रार्थना पूरी हो गयी । मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है?
गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!
संजीव ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा। मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की की अब मेरी चुदाई हो जाए क्योंकि उसका लंड मेरी गांड की दरार या योनि में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था।
गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!
गुरूजी : बेटी आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी भी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना है।"
"मैं समझती हूँ गुरुजी।
गुरूजी ने आंखें बंद करके मुझे भी आंखें बंद करके बैठ जाने को कहा। मैं आंखें बंद करके चटाई पर बैठ गयी । यज्ञ के लिए बहुत-सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी।
तभी गुरूजी ने मेरे ऊपर पुष्प से कुछ जल फेंका और मंत्र बोलै .
गुरूजी : अब रश्मि अब तुम इस अभिमंत्रित जल के प्रभाव से पवित्र हो गयी हो फिर तुम लिंगा महाराज का ध्यान करो और अब आँखे खोलो अब निर्मल अगले भाग में तुम्हारा पति होगा अब निर्मल तुम्हे सामग्री देता रहेगा और तुम वैसे ही कर्ति रहना जैसा मैं कहूंगा और अब आदरपूर्वक लिंगा को सफेद कपड़े के एक नए टुकड़े से ढकी हुई चौकी (एक लकड़ी का मंच) पर रखें। और तेल का दीपक जलाएं। मैंने लिंग का जो प्रतिरूप वहां रखा था उसे उस चौकी पर रख दिया .
इस बीच उस बौने निर्मल ने अपनी कोह्नो से मेरे स्तन दबाने शुरू कर दिए क्योंकि वो मेरे साथ सट कर बैठा हुआ था .
गुरूजी : रश्मि अब पद्य - भगवान लिंगा पर जल चढ़ाएं।
निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया और मैंने लिंगा पर जल चढ़ा दिया
गुरूजी : रश्मि अब अर्घ्य - भगवान को जल अर्पित करें।
निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया और मैंने लिंगा पर जल अर्पित कर दिया.
गुरूजी : रश्मि अब आचमन करो - अपनी दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डालें और इसे पिएं। फिर अपना हाथ धो लें।
निर्मल ने मेरी दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डाला और इसे पिया । फिर अपना हाथ धो लिया ।
गुरूजी : रश्मि इस सामग्री में दूध में चावल मिले हुए हैं जो लोग भगवान् लिंगा को चावल अर्पित करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। और इसके साथ ही कामनाओं की पूर्ति होने के साथ घर की सुख समृद्धि भी बनी रहेगी। ज्योतिष में चन्द्रमा का उर्वरता का देवता माना जाता है और दूध के साथ कच्चे चावल मिलाकर लिंग पर चढ़ाने से चन्द्रमा भी प्रसन्न होते हैं । साथ में दूध में काले तिल मिलाकर लिंगा महाराज को चढ़ाने से आपकी सभी परेशानियां दूर होंगी तथा आपका परिवार और आपका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाएगा। इसमें साथ ही में चीनीभी मिली हुई है दूध और चीनी के मिश्रण को चन्द्रमा का कारक माना जाता है इसलिए लिंगा पर ये मिश्रण चढ़ाने से चंद्रमा भी मजबूत होता है जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। लिंगा को दही से अभिषेक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। दही से रुद्राभिषेक करने से भवन-वाहन की भी प्राप्ति होती है। लिंगा का शहद से अभिषेक करने से धन वृद्धि होती है। इसके साथ ही शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां भी नष्ट हो जाती हैं। शादीशुदा जीवन में लिंगा का इत्र से अभिषेक करें। ऐसा करने से आपके अपने पति के साथ संबंध मधुर बनेंगे।और लिंगा पर गन्ने के रस से अभिषेक करने पर अपार लक्ष्मी मिलती है और दूध लिंगा महाराज को शीतलता प्रदान करता है
गुरूजी : रश्मि अब लिंगा को स्नान करवाओ - लिंग देवता पर थोड़ा जल छिड़कें और इस विशेष दूध पंचामृत से अभिषेक करो और कपडे से साफ़ करो ।
निर्मल ने मुझे अभिषेक का बर्तन दिया ओर मैंने अभिषेक करने के लिए विशेष सामग्री को लिया जो कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही, घी चावल , टिल से बनी हुई थी और फिर धीरे से लिंगा के प्रतिरूप को ताजे कपड़े के टुकड़े से पोंछ लिया।
गुरूजी : रश्मि अब वस्त्र लिंग देवता को सफेद कपड़े का एक ताजा टुकड़ा या एक कलावा चढ़ाएं। निर्मल ने मुझे कलावा दिया जिसे मैंने लिंग पर कलाव चढ़ाया
गुरूजी : रश्मि अब गंधा: - चंदन का पेस्ट या प्राकृतिक इत्र चढ़ाएं
इसी तरह निर्मल मुझे सामग्री देता रहा और मैंने लिंग पर चंदन की पेस्ट लगा दी और उस पर पुष्पा - धतूरे के फूल, बेल पत्र आदि चढ़ाने के बाद धूप - अगरबत्ती चढ़ायी और तेल का दीपक अर्पित किया और लिंगा को भगवान को भोग अर्पित किया जिसमे इसमें फल और मिठाई शामिल थी उसके बाद तंबूलम भी चढ़ाया जिसमें पान, सुपारी, एक भूरा नारियल, दक्षिणा, केला और/या कुछ फल शामिल थे और फिर प्रदक्षिणा या परिक्रमा की और पुष्पांजलि कर - फूल चढ़ाए और प्रणाम किया . इस बीच वो बदमाश चुपके से मेरे स्तन दबाता रहा
गुरुजी--जय लिंगा महाराज।
गुरूजी : रश्मि अब तुमने जैसे लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की है उसी तरह तुमने अब साक्षात् लिंग की पूजा करनी है और ये बोलकर गुरूजी खड़े हो गए और मैंने देखा गुरूजी ने अपनी लुंगी हटाते हुए और गुलाबी टिप के साथ उनके मूसल लिंग को पूरी तरह से सीधा देखकर हैरान रह गयी । फिर गुरूजी इसे और अधिक सीधा बनाने के लिए मुझे देखते हुए इसे कई बार स्ट्रोक किया।
कहानी जारी रहेगी
आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-20
लिंग पूजा-2
मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा। मैंने राजकमल ने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था। धीरे-धीरे मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की वह मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था।
मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी। लेकिन वह कमीना इतने में ही नहीं रुका। अब मंत्र पढ़ते समय वह मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा। मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी।
खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया। मैंने राहत की साँस ली।
गुरुजी--माध्यम के रूप में तुम अब संजीव को साथ लेकर फ़र्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी। तुम्हारी नाभि और घुटने फ़र्श को छूने चाहिए।
मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी। गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वह जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था। मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी। फिर मैं पेट के बल फ़र्श पर लेट गयी।
गुरुजी--प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो। तुम्हारी नाभि फ़र्श को छू रही है? मैं देखता हूँ।
गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट के बीच में अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फ़र्श को छू रही है या नहीं? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा-सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें। उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा।
गुरुजी--हाँ, ठीक है।
ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया। मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए। मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे। उन मर्दों के सामने नंगी हालत में मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था। फिर मैंने देखा गुरुजी ने संजीव को मेरे पास आने के लिए इशारा किया था ।
गुरुजी- संजीव अब तुम रश्मि को पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओ।
"मैंने पुछा कैसे गुरुजी?"
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसमें मुझे करना क्या है? मैंने देखा गुरुजी ने संजीव को मेरे पास बैठने का इशारा किया था ।
गुरुजी--रश्मि, मैंने तुम्हें बताया तो था। तुम्हें अब संजीव को साथ लेकर पूजा करनी है।
गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वह थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है? साथ लेकर मतलब?
गुरुजी--संजीव तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो।
संजीव --जी गुरुजी।
हे भगवान! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था। गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे। ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों।
"गुरुजी, लेकिन ये!"
गुरुजी--रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है।
"लेकिन गुरुजी, इस तरह!"
गुरुजी--रश्मि, भूलो मत इस समय तुम संजीव को अपने पति के रूप में समझो और जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो।
गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले। एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था। अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया।
गुरुजी- संजीव तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो? समय बर्बाद मत करो। यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि ही है।
मुझे अपनी पीठ पर संजीव चढते हुए महसूस हुआ। मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर ठीक से लेटने में मदद की। कितनी शरम की बात थी वो। मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते। मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया की संजीव अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है। फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए, उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था। एक जवान मोठे नितम्ब वाली शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा।
गुरुजी--जय लिंगा महाराज। संजीव अब शुरू करो। रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना।
मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली। अब संजीव ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी। कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो। मेरे ऊपर लेटने से संजीव के तो मज़े हो गये, उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वह मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था। शुक्र यही था की वो खुल कर मुझे छोड़ नहीं रहा था जिससे उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था।
मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वह धीरे से मेरी गांड पर हलके धक्के लगा रहा था जैसे कि मुझे चोद रहा हो। मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और बाको लोग हमारी तरफ़ पीठ करके अभिषेक और भोग तैयार कर रहे थे इसलिए संजीव की मौज हो गयी थी । धीरे धीरे धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी।
अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान संजीव मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था। मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और संजीव तो हाँफने लगा था। इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था। तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं।
मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी। मेरी चूचियाँ फ़र्श में दबी हुई थी। संजीव मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था। संजीव ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं। अब उसने किताब फ़र्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फ़र्श में रख दिए। अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा, इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था। लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी। कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ़ खिसकाया और मेरी चूचियों को छुआ।
शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब संजीव मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया। पहले तो वह हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी।
उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फ़र्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया। कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी। उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वज़न को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा।
उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है। घर पर राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था। राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ।
शुक्र था कि संजीव ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी। लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए। अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे ख़ुद ही नहीं मालूम था कि मैं क्या जाप कर रही हूँ।
गुरुजी--जय लिंगा महाराज।
गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और संजीव ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए। उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं। तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है।
गुरुजी-- संजीव ऐसे ही लेटे रहो और रश्मि तुम जो चाहती हो उसे एक लाइन में मेरे कान में बोलो। और वो अपना कान मेरे पास ले आये ।
मैं --गुरुजी मैं बस ये चाहती हूँ की मुझे मेरी संतान प्राप्त हो ।
गुरुजी--ठीक है। संजीव रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना। तुम्हारे बाद मैं भी तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना। आया समझ में?
मैंने और संजीव ने सहमति में सर हिला दिया।
गुरुजी--सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो।
ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली।
संजीव--लिंगा महाराज, रश्मि को संतान प्रदान करे ।
संजीव जो मेरे पति राजेश की जगह था उसने मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया। उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया। उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था। मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी। मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी। मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि संजीव मेरी चूचियों को पकड़ सके। मैंने लिंगा से प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।
मेरी आँखें बंद थी और तभी संजीव ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी। वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो। मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी योनि गीली होती जा रही थी। मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय संजीव के हाथ मेरी चूचियों को दबा रहे होते थे। मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी।
जल्दी ही पाँच बार प्रार्थना पूरी हो गयी । मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है?
गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!
संजीव ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा। मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की की अब मेरी चुदाई हो जाए क्योंकि उसका लंड मेरी गांड की दरार या योनि में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था।
गुरुजी -- जय लिंगा महाराज!
गुरूजी : बेटी आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी भी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना है।"
"मैं समझती हूँ गुरुजी।
गुरूजी ने आंखें बंद करके मुझे भी आंखें बंद करके बैठ जाने को कहा। मैं आंखें बंद करके चटाई पर बैठ गयी । यज्ञ के लिए बहुत-सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी।
तभी गुरूजी ने मेरे ऊपर पुष्प से कुछ जल फेंका और मंत्र बोलै .
गुरूजी : अब रश्मि अब तुम इस अभिमंत्रित जल के प्रभाव से पवित्र हो गयी हो फिर तुम लिंगा महाराज का ध्यान करो और अब आँखे खोलो अब निर्मल अगले भाग में तुम्हारा पति होगा अब निर्मल तुम्हे सामग्री देता रहेगा और तुम वैसे ही कर्ति रहना जैसा मैं कहूंगा और अब आदरपूर्वक लिंगा को सफेद कपड़े के एक नए टुकड़े से ढकी हुई चौकी (एक लकड़ी का मंच) पर रखें। और तेल का दीपक जलाएं। मैंने लिंग का जो प्रतिरूप वहां रखा था उसे उस चौकी पर रख दिया .
इस बीच उस बौने निर्मल ने अपनी कोह्नो से मेरे स्तन दबाने शुरू कर दिए क्योंकि वो मेरे साथ सट कर बैठा हुआ था .
गुरूजी : रश्मि अब पद्य - भगवान लिंगा पर जल चढ़ाएं।
निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया और मैंने लिंगा पर जल चढ़ा दिया
गुरूजी : रश्मि अब अर्घ्य - भगवान को जल अर्पित करें।
निर्मल ने जल का लौटा मेरा हाथ में दे दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया और मैंने लिंगा पर जल अर्पित कर दिया.
गुरूजी : रश्मि अब आचमन करो - अपनी दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डालें और इसे पिएं। फिर अपना हाथ धो लें।
निर्मल ने मेरी दाहिनी हथेली पर उदरनी के साथ थोड़ा पानी डाला और इसे पिया । फिर अपना हाथ धो लिया ।
गुरूजी : रश्मि इस सामग्री में दूध में चावल मिले हुए हैं जो लोग भगवान् लिंगा को चावल अर्पित करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। और इसके साथ ही कामनाओं की पूर्ति होने के साथ घर की सुख समृद्धि भी बनी रहेगी। ज्योतिष में चन्द्रमा का उर्वरता का देवता माना जाता है और दूध के साथ कच्चे चावल मिलाकर लिंग पर चढ़ाने से चन्द्रमा भी प्रसन्न होते हैं । साथ में दूध में काले तिल मिलाकर लिंगा महाराज को चढ़ाने से आपकी सभी परेशानियां दूर होंगी तथा आपका परिवार और आपका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाएगा। इसमें साथ ही में चीनीभी मिली हुई है दूध और चीनी के मिश्रण को चन्द्रमा का कारक माना जाता है इसलिए लिंगा पर ये मिश्रण चढ़ाने से चंद्रमा भी मजबूत होता है जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। लिंगा को दही से अभिषेक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। दही से रुद्राभिषेक करने से भवन-वाहन की भी प्राप्ति होती है। लिंगा का शहद से अभिषेक करने से धन वृद्धि होती है। इसके साथ ही शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां भी नष्ट हो जाती हैं। शादीशुदा जीवन में लिंगा का इत्र से अभिषेक करें। ऐसा करने से आपके अपने पति के साथ संबंध मधुर बनेंगे।और लिंगा पर गन्ने के रस से अभिषेक करने पर अपार लक्ष्मी मिलती है और दूध लिंगा महाराज को शीतलता प्रदान करता है
गुरूजी : रश्मि अब लिंगा को स्नान करवाओ - लिंग देवता पर थोड़ा जल छिड़कें और इस विशेष दूध पंचामृत से अभिषेक करो और कपडे से साफ़ करो ।
निर्मल ने मुझे अभिषेक का बर्तन दिया ओर मैंने अभिषेक करने के लिए विशेष सामग्री को लिया जो कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही, घी चावल , टिल से बनी हुई थी और फिर धीरे से लिंगा के प्रतिरूप को ताजे कपड़े के टुकड़े से पोंछ लिया।
गुरूजी : रश्मि अब वस्त्र लिंग देवता को सफेद कपड़े का एक ताजा टुकड़ा या एक कलावा चढ़ाएं। निर्मल ने मुझे कलावा दिया जिसे मैंने लिंग पर कलाव चढ़ाया
गुरूजी : रश्मि अब गंधा: - चंदन का पेस्ट या प्राकृतिक इत्र चढ़ाएं
इसी तरह निर्मल मुझे सामग्री देता रहा और मैंने लिंग पर चंदन की पेस्ट लगा दी और उस पर पुष्पा - धतूरे के फूल, बेल पत्र आदि चढ़ाने के बाद धूप - अगरबत्ती चढ़ायी और तेल का दीपक अर्पित किया और लिंगा को भगवान को भोग अर्पित किया जिसमे इसमें फल और मिठाई शामिल थी उसके बाद तंबूलम भी चढ़ाया जिसमें पान, सुपारी, एक भूरा नारियल, दक्षिणा, केला और/या कुछ फल शामिल थे और फिर प्रदक्षिणा या परिक्रमा की और पुष्पांजलि कर - फूल चढ़ाए और प्रणाम किया . इस बीच वो बदमाश चुपके से मेरे स्तन दबाता रहा
गुरुजी--जय लिंगा महाराज।
गुरूजी : रश्मि अब तुमने जैसे लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की है उसी तरह तुमने अब साक्षात् लिंग की पूजा करनी है और ये बोलकर गुरूजी खड़े हो गए और मैंने देखा गुरूजी ने अपनी लुंगी हटाते हुए और गुलाबी टिप के साथ उनके मूसल लिंग को पूरी तरह से सीधा देखकर हैरान रह गयी । फिर गुरूजी इसे और अधिक सीधा बनाने के लिए मुझे देखते हुए इसे कई बार स्ट्रोक किया।
कहानी जारी रहेगी
आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार