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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-19

लिंग पूजा-1


गुरु जी : बेटी! अब तांत्रिक लिंग और फिर तांत्रिक योनि पूजा करने पर तुम जल्द ही संतान प्राप्त कर लोगी। चलो पूजा प्रारम्भ करते है , जय लिंग महाराज ..। ॐ ….!

उसके बाद यज्ञ के लिए सब तैयारी पहले से ही थी । कमरे के बीच में अग्नि कुंड में आग जला रही थी। उसके पीछे लिंग की स्थपना की गयी थी और उसके पीछे लिंग महाराज का चित्र रखा हुआ था। यज्ञ के लिए बहुत सी सामग्री वहाँ पर बड़े करीने से रखी हुई थी। मैंने मन ही मन उस सारे अरेंजमेंट की तारीफ की।

गुरु-जी: बेटी, लिंग महाराज को स्थापित किया गया है । ये लिंग देव जिनकी स्थपना की गयी थी वो लिंग की की प्रतिकृति थी और यह एक पुरुष लिंग की तरह दिखने वाली थी और बहुत अजीब लग रही थी! यह शायद मोम से बना था और इसका रंग को त्वचा के रंग से मिलता-जुलता देखकर मैं चौंक गयी थी और वास्तव में इसकी लंबाई के चारों ओर नसें थीं और इसलिए लिंग की तरह लग रहा था! बिलकुल नकली डिलडो के तरह लग रहा था ! और इसके ऊपर भी कुछ था, जो भी चमड़ी जैसा ही था!

गुरु-जी: बेटी, पूरी योनि पूजा लिंग महाराज को ही संतुष्ट करने के लिए होती है। इसलिए अपनी सारी प्रार्थनाएं और कर्म उसके प्रति समर्पित कर दें। यदि आप उसे संतुष्ट कर सकते हैं, तो वह निश्चित रूप से आपकी बहुत आपका मन चाहा वरदान आपको उपहार में देगा। जय लिंग महाराज! जय हो!


[Image: blind01.webp]

हम सभी ने "जय लिंग महाराज!" और मैंने अपने मन में लिंग महाराज से प्रार्थना की "मैं आपको संतुष्ट करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करूंगी और मैं सिवाय एक बच्चे के कभी कुछ नहीं चाहती , । कृप्या…"


फिर गुरुजी ने यज्ञ शुरू कर दिया। उस समय रात के 9 बजे थे। यज्ञ के लिए चंदन की अगरबत्तियाँ जलाई गयी थीं। गुरुजी अग्नि कुंड के सामने बैठे थे , समीर उनके बाएं तरफ और मैं दायीं तरफ बैठी थी। गुरुजी के ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने से कमरे का माहौल बदल गया।

लेकिन मुझे लगा चारो शिष्य मुझे ही घूर रहे थे और मैं पसीना पसीना हो गयी थी और मेरा ध्यान अपने पसीने पर ज़्यादा था।

गुरुजी – रश्मि । सभी धार्मिक कार्यो को पति पत्नी को एक साथ करना चाहिए इसलिए अब इस पूजा में उदय तुम्हारा पति का पार्ट ऐडा करेगा । उदय! इस थाली को पकड़ो और रश्मि तुम इसे अग्निदेव को हवन कुंड में अर्पित करो कुमार तुम रश्मि को पीछे से पकड़ो और जो मंत्र मैं बताऊंगा , उसे रश्मि के कान में धीमे से बोलो। रश्मि तुम्हे पता है तांत्रिक पूजा में माध्यम का कितना महत्व है इसलिए तुम यहाँ पर माध्यम हो और रश्मि माध्यम के रूप में तुम्हें उस मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलना है। ठीक है ?

“जी गुरुजी.”


[Image: PUJA1.jpg]

गुरुजी – रश्मि तुम मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलोगी और मैं उसे लिंगा महाराज के समक्ष दोहराऊंगा। तुम दोनों आँखें बंद कर लो। जय लिंगा महाराज.

मैंने आँखें बंद कर ली और अपने कंधे पर उदय की गरम साँसें महसूस की। वो मेरे कान में मंत्र बोलने लगा और मैंने ज़ोर से उस मंत्र का जाप कर दिया और फिर गुरुजी ने और ज़ोर से उसे दोहरा दिया। शुरू में कुछ देर तक ऐसे चलता रहा फिर मुझे लगा की मेरे कान में मंत्र बोलते वक़्त उदय मेरे और नज़दीक़ आ रहा है। मुझे उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नग्न नितंबों को छूने लगा क्योंकि उस समय मैं वहां बिलकुल नग्न थी । मैंने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था। धीरे धीरे मैंने साफ तौर पर महसूस किया की वो मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था। काहिर उदय मुझे पसंद था और उसकी हरकत मुझे बुरी भी नहीं लगी और मुझे अच्छा लगा रहा था।

फिर उदय अपना खड़ा लंड मेरे नितंबों में चुभो रहा था लेकिन अपने लक्ष के और ध्यान राखंते हुए मैं चुप ही रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करती रही फिर उदय मंत्र पढ़ते समय मेरे कान को अपने होठों से चूमने लगा। और मैं कामोत्तेजित होने लगी और उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी। कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया। और मुझे कुमार साहब के घर जो पूजा हुई थी जिसमे गुरूजी ने उसका ध्यान आया जब कुमार जिनकी बेटी काजल के लिए की गयी पूजा के दौरान मेरे साथ छेड़ छाड़ की थी।

गुरुजी – शाबाश रश्मि। तुमने अच्छे से किया। अब ये थाली मुझे दे दो। ये कटोरा पकड़ लो और इसमें से बहुत धीरे धीरे तेल अग्नि में चढ़ाओ। उदय तुम भी इसके साथ ही कटोरा पकड़ लो। मैं गुरुजी से कटोरा लेने झुकी और डे मेरे ऊपर झुका हुआ था और वो असंतुलित हो गया ।


[Image: PUJA2.jpg]
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गुरुजी – रश्मि, उसे पकड़ो.

गुरुजी एकदम से चिल्लाए। मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैं तुरंत पीछे मुड़ने को हुई। लेकिन मैं पूरी तरह पीछे मुड़ कर उसे पकड़ पाती उससे पहले ही उदय मेरी पीठ में गिर गया। उदय मेरे जवान बदन के ऊपर झुक गया और उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास आ गिरा। गिरने से बचने के लिए उसने मुझे पीछे से आलिंगन कर लिया। और अब सहारे के लिए मेरी कमर पकड़े हुए चिपक कर खड़ा हो गया है मेरी पीठ के ऊपर उसकी जीभ और होंठ मुझे महसूस हुए और उसकी नाक मेरी गर्दन के निचले हिस्से पर छू रही थी। जब सहारे के लिए उसने दाए हाथ मेरे कमर में डाल कर मेरे स्तन को पकड़ लिया और उसके बाएं हाथ ने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरी जांघ को पकड़ लिया.और मैंने अपनी चूत पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया और उसने पीछे से मेरी नंगी पीठ को उसने अपनी जीभ से चाट लिया.

गुरूजी : उदय ठीक से खड़े हो जाओ और और रश्मि तुम याद रखो पूजा के इस भाग में उदय ही तुम्हारे पति का पार्ट कर रहा है और इसका बुरा मत मानो पति पत्नी में तो ऐसी छोटी छोटी शरारते तो चलती रहती है मुझे उदय से कोई दिक्कत नहीं थी और थोड़ी देर पहल मंत्र दान के दौरान जो कुछ मेरे साथ हुआ था उसके सामने ये कुछ भी नहीं था । लेकिन इस लगातार हो रही छेद चाँद से मैं उत्तेजित हो रही थी ।

गुरुजी – उदय तुम ठीक हो ?

उदय – जी गुरुजी..

गुरुजी – चलो कोई बात नहीं। रश्मि, मैं मंत्र पढूंगा और तुम तेल चढ़ाना। रश्मि को संतान की प्राप्ति के लिए हम पहले अग्निदेव की पूजा करेंगे और फिर लिंगा महाराज की.


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हमने हामी भर दी और उदय फिर से मेरे नज़दीक़ आ गया और मेरे पीछे से कटोरा पकड़ लिया। इस बार उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर पड़ रहा था और उसकी अंगुलियां मेरी अंगुलियों को छू रही थीं उसका लिंग मेरे नितम्बो पर था । गुरुजी ने ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने शुरू किए और मैं यज्ञ की अग्नि में घी चढ़ाने लगी। । मुझे साफ महसूस हो रहा था की अब उदय बिना किसी रुकावट और डर के के पीछे से मेरे पूरे बदन को महसूस कर रहा है। मेरे सुडौल नितंबों पर वो हल्के से धक्के भी लगा रहा था। उस की इन हरकतों से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी.

जब मैं अग्निकुण्ड में घी डालने लगी तो उसमे तेज लपटें उठने लगी इसलिए मुझे थोड़ा सा पीछे को खिसकना पड़ा। इससे उदय के और भी मज़े आ गये और वो मेरी अपना सख़्त लंड चुभाने लगा। उसने मेरे पीछे से कटोरा पकड़ा हुआ था तो उसकी कोहनियां मुझे साइड्स से दबा रही थी, एक तरह से उसने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरे स्तनों के दबाते हुए कटोरा पकड़ा हुआ था और उसका सारा वज़न मुझ पर पड़ रहा था। गुरुजी मंत्र पढ़ते रहे और मैं बहुत धीरे से अग्नि में तेल डालती रही। तेल चढ़ाने का ये काम लंबा खिंच रहा था.

मौका देखकर उदय ने कटोरे में अपनी अंगुलियों को मेरी अंगुलियों को कस लिया और उसने अपने कूल्हे हिला कर अपना लंड मेरे गनद की दरार में दबा दिया और साथ में अपने दुसरे हाथ से मेरे स्तनों और निप्पलों को मसलने लगा और अब उसके मर्दाने टच से मुझे कामानंद मिल रहा था। मैंने गुरुजी को देखा पर वो आँख बंद कर मंत्र पढ़ रहे थे और संजीव एक कोने में भोग बना रहा था और राजकमल कुछ और सामन त्यार कर रहा था और निर्मल पूजा की थाली सजा रहा था और इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था। तभी वो मेरे कान में फुसफुसाया……

उदय – रश्मि , मैं कटोरे से एक हाथ हटा रहा हूँ। मुझे खुजली लग रही है.

मैं समझ गयी उसे कहाँ पर खुजली लग रही है। उसने अपना दांया हाथ कटोरे से हटा लिया और मेरा बायां हाथ लेकर पाने लंड पर ले गया और अपने लंड को मेरे हाथ से खुज़लाने लगा। मुझे ये बात जानने के लिए पीछे मुड़ के देखने की ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी मेरा हाथ मुझे अपने नितंबों और उसके लंड के बीच महसूस हो रहा था। वो बेशरम मेरे हाथ से अपने लंड पर खुज़ला रहा था इस बीच जब मैं मजे लेकर उसका लंड खुज़लाने लगी तो वो अपना हाथ कटोरे पर वापस नहीं लाया और अपने हाथ को मेरे बड़े नितंबों पर फिराने लगा.

उसने मेरे सुडौल नितंबों को अपने हाथ में पकड़कर दबाया तो मेरे निपल तनकर कड़क हो गये। मेरी चूचियां तन गयीं। मैंने एक हाथ से तेल का कटोरा पकड़ा हुआ था , मैंने पीछे मूड कर गुस्से से उसे घूरा तो उसने तुरंत अपना हाथ मेरे नितंबों से हटा लिया और फिर से कटोरा पकड़ लिया। उसके एक दो मिनट बाद तेल चढ़ाने का वो काम खत्म हो गया। यज्ञ की अग्नि के साथ साथ उदय की मेरे बदन से छेड़छाड़ से अब मुझे बहुत पसीना आने लगा था.

गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है। अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे। जय लिंगा महाराज.

उदय और मैंने भी जय लिंगा महाराज बोला। गुरुजी मंत्र पढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की यज्ञ सामग्री को अग्निकुण्ड में चढ़ाने लगे। करीब 5 मिनट तक ऐसा चलता रहा। संजीव अभी भी भोग को तैयार करने में व्यस्त था.

गुरुजी – रश्मि, मैंअब तुम्हे लिंगा महाराज की पूजा करनी होगी। और इसमें अब तुम्हारा माध्यम होगा राजकमल

मैं : जी मुझे मालूम हैं मैंने आपके साथ कुमार के घर में माध्यम के रूप में लिंगा महाराज की पूजा की थी .

गुरुजी – रश्मि अब तुम माध्यम के रूप में तुम राजकमल को साथ लेकर फर्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी। राजकमल तुम्हे मंत्र देगा , तुम्हारी नाभि और घुटने फर्श को छूने चाहिए। फिर तुम वो मन्त्र तुम मुझे देना । फिर गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वो जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था। मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी। फिर मैं पेट के बल फर्श पर लेट गयी.

गुरुजी – प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो। तुम्हारी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैं देखता हूँ.

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट पर नाभि के पास अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें। उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा.

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गुरुजी – हाँ, ठीक है.

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया। मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए। मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे। उन मर्दों के सामने मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था। फिर मैंने राजकमल आगे आ गया था .

गुरुजी – रश्मि अब तुम पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओगी.

“कैसे गुरुजी ?”

गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया तो था। राजकमल तुम्हे माध्यम बनाएगा और फिर तुम्हे पूजा करनी है.

गुरुजी – राजकमल तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो.

रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है.

राजकमल – जी गुरुजी.

“लेकिन गुरुजी, एक अंजान आदमी को इस तरह………….”

गुरुजी – रश्मि , जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो। उसे अनजान नहीं अपने पति समझो !


[Image: LP1.jpg]

गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले। एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था। अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया.

गुरुजी –राजकमल जल्दी करो ? समय बर्बाद मत करो। अभी हमे लिंग पूजा और फिर योनी पूजा भी करनी है समय कम है राजकमल शीघ्रता करो .

मुझे अपनी पीठ पर राजकमल चढते हुए महसूस हुआ। अब एक बार फिर मैं शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते। मैंने साफ तौर पर महसूस किया की राजकमल अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है। फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए , उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था। एक जवान शादीशुदा गदरायी हुई औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज। राजकमल अब शुरू करो। रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना.

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली। अब कुमार ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी। कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसी नग्न हालत में ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी नग्न लेटा हो। मेरे ऊपर लेटने से राजकमल के मज़े हो गये , उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया। अब वो मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था। शुक्र था की उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.

मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वो धीरे से मेरी गांड पर धक्के लगा रहा था जैसे की मुझे चोद रहा हो। मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की। गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और संजीव हमारी तरफ पीठ करके भोग तैयार कर रहा था और उदय लिंग पूजा के लिए सामग्री व्यवस्थित कर रहा था और निर्मल पूजा की थाली सजा रहा था और इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था। इसलिए राजकमल पूरे मजे ले रहा था । उसका लंड मेरे नितम्बो और गांड पर महसूस हो रहा था.उसकी धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी.

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान राजकमल मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था। मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और राजकमल भी हाँफने लगा था।


आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी
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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 18-02-2023, 03:18 AM



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