11-02-2023, 12:34 AM
मौका देखकर नितिन ने मेरे हाथ और पैरों पर बंधी पट्टी खोल दी , जब वो समझ गया की अब मैं आपने जिस्म के हाथों मजबूर हो चुकी हूँ और अब कहीं नहीं जा सकती । नितिन ने मेरे ब्लाउज को पीछे से पकड़कर ऊपर की ओर उठा दिया और मस्ती मे चूर मेरे हाथ अपने आप ऊपर होते चले गए ,मैं नितिन के सामने सिर्फ ब्रा मे रह गई ।
मैंने शर्मा कर अपने बदन को अपने हाथों से ढक लिया तो नितिन ने अपने हाथ पीछे ले जाकर मेरी ब्रा भी खोल दी और मेरे कंधों पर चूमते हुए उसे भी निकाल दिया ।
मैं एक बार फिर नितिन के सामने नग्न हो गई और अपनी लुटती हुई इज्जत बचाने के लिए अपने हाथों से आपनी चुचियाँ छिपा ली लेकिन ये भी नितिन को ना-ग्वार था उसने मुझे मेरे कंधों से पकड़कर वापस बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए और उन्हे पीने लगा ,
उसने मेरे हाथ मेरे बूब्स से हटाकर बिस्तर के दोनों तरफ दबा दिए और मेरे होंठों को छोड़कर मेरी चुचियों का दूध निचोड़ने लगा , मेरे बड़े-बड़े बूब्स नितिन के मुहँ मे पूरे आ भी नहीं रहे थे फिर भी नितिन उन्हे जितना हो सके अपने मुहँ मे भरकर चूस रहा था , उसने ना सिर्फ मेरे चुचियों को चूसा बल्कि उनपर काटा भी और अपने प्यार की निशानी दी ।
मैं - आह.... आह.... उफ्फ़ ... नहीं .... मत .. काटो .. ओह ..।
नीचे नितिन के लण्ड ने मेरी योनि मे ऐसी आग लगा दी थी कि अपने आप ही उसमे से पानी की धारा निकलने लगी , मेरी योनि और नितिन ने लिंग मे बस मेरी साड़ी का एक महीन परदा था जो हमारे बीच फँसा हुआ था जिसका होना ना होने के बराबर ही था क्योंकि उसके रहते भी नितिन का लण्ड मेरी चुत पर बराबर चोट कर रहा था ।
अब नितिन का मन आगे बढ़ने का था उसने मेरे हाथों और चुचियों को छोड़ा , और मेरी कमर मे फँसी साड़ी को एक झटके मे पकड़कर निकाल दिया अब मेरे जिस्म पर नाम-मात्र भी कपड़े का नहीं था । मेरे जिस्म का एक एक अंग नितिन की आँखों के सामने था ,
पर नितिन की नजरें जहाँ उलझी हुई थी वो थी मेरी योनि और उससे टपकता मेरा चुतरस । नितिन ने एक बार अपनी जीब अपने होंठों पर फिराई तो मैं समझ गई कि नितिन क्या करने वाला है ? नितिन यहाँ इस कमरे मे मेरी चुत का रस पिएगा ये सोच-सोचकर ही मेरी साँसे बावली हो रही थी । पहले भी नितिन ने जब मॉर्निंग वॉक पर मेरी योनि को चाटा था तो मेरी हालत खराब हो गई थी ,आज फिर वही होने वाला था । आखिर नितिन ने मेरे दोनों पैरों को पकड़कर अलग किया और मेरी योनि को अपने हाथों से छूते हुए बोला - " आह .. क्या चीज हो तुम पदमा ..। तुम्हारी चुत को तो दिन रात चोदा जाना चाहिए । "
ऐसा बोलकर नितिन मेरी योनि पर झुक गया और उसके बेहद करीब जाकर उसे सूंघा । फिर मेरी ओर देखकर बोला - " इतनी सेक्सी चुत ... क्या बात है ? पदमा क्या मैं तुम्हारी चुत का ये रस पी लूँ ? "
मैंने शर्म से अपनी आँखे बन्द करली और कोई जवाब नहीं दिया इसके बाद नितिन ने मेरे जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और अपने होंठ खोलकर मेरी गुलाबी रसीली चुत पर लगाकर चूसने लगा ।
मैं - आह .. आह ... ऑफ ... नितिन .... करते हुए बिस्तर पर उछल पड़ी और मेरे हाथ खुद-ब-खुद नितिन के सर के बालों मे उलझ गए और मैंने उसके सर को अपनी योनि पर दबा दिया ।
नितिन की जीभ मेरी चुत की हर गहराई को नाप रही थी मेरा जिस्म बुरी तरह से मचलने लगा , मेरी योनि चुतरस के रूप मे अंगारे बरसाने लगी , जिन्हे नितिन मुहँ लगाए पीता चला गया । उसने अपना एक हाथ ऊपर करके मेरी चुची को पकड़ लिया और मेरी चुत को चाटते हुए मेरी चुची को दबाने लगा । मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैं शब्दों मे बयां नहीं कर सकती । पूरे बदन मे अंगारों की झुरझुरी लगी हुई थी । इस तरह से तो मेरी चुत को कभी अशोक या गुप्ता जी ने भी नहीं चाटा था । मैं मस्ती के सागर मे झूमते हुए लगातार आहें भर रही थी ....
" आह ... आह .. आह ..... ऑफ .... मम्म्म् ..... यस .... यस ... "
मेरी कामुक आहों को सुनकर नितिन ने अपना सर एक बार ऊपर उठाया ओर मैं बैचेन हो गई , मैं अब नहीं चाहती थी कि नितिन किसी भी हालत मे रुके , मैंने सवालिया नज़रों से नितिन की आँखों मे देखा , जैसे पूछ रही हूँ " क्योँ रुक गए ?"
मैंने शर्मा कर अपने बदन को अपने हाथों से ढक लिया तो नितिन ने अपने हाथ पीछे ले जाकर मेरी ब्रा भी खोल दी और मेरे कंधों पर चूमते हुए उसे भी निकाल दिया ।
मैं एक बार फिर नितिन के सामने नग्न हो गई और अपनी लुटती हुई इज्जत बचाने के लिए अपने हाथों से आपनी चुचियाँ छिपा ली लेकिन ये भी नितिन को ना-ग्वार था उसने मुझे मेरे कंधों से पकड़कर वापस बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए और उन्हे पीने लगा ,
उसने मेरे हाथ मेरे बूब्स से हटाकर बिस्तर के दोनों तरफ दबा दिए और मेरे होंठों को छोड़कर मेरी चुचियों का दूध निचोड़ने लगा , मेरे बड़े-बड़े बूब्स नितिन के मुहँ मे पूरे आ भी नहीं रहे थे फिर भी नितिन उन्हे जितना हो सके अपने मुहँ मे भरकर चूस रहा था , उसने ना सिर्फ मेरे चुचियों को चूसा बल्कि उनपर काटा भी और अपने प्यार की निशानी दी ।
मैं - आह.... आह.... उफ्फ़ ... नहीं .... मत .. काटो .. ओह ..।
नीचे नितिन के लण्ड ने मेरी योनि मे ऐसी आग लगा दी थी कि अपने आप ही उसमे से पानी की धारा निकलने लगी , मेरी योनि और नितिन ने लिंग मे बस मेरी साड़ी का एक महीन परदा था जो हमारे बीच फँसा हुआ था जिसका होना ना होने के बराबर ही था क्योंकि उसके रहते भी नितिन का लण्ड मेरी चुत पर बराबर चोट कर रहा था ।
अब नितिन का मन आगे बढ़ने का था उसने मेरे हाथों और चुचियों को छोड़ा , और मेरी कमर मे फँसी साड़ी को एक झटके मे पकड़कर निकाल दिया अब मेरे जिस्म पर नाम-मात्र भी कपड़े का नहीं था । मेरे जिस्म का एक एक अंग नितिन की आँखों के सामने था ,
पर नितिन की नजरें जहाँ उलझी हुई थी वो थी मेरी योनि और उससे टपकता मेरा चुतरस । नितिन ने एक बार अपनी जीब अपने होंठों पर फिराई तो मैं समझ गई कि नितिन क्या करने वाला है ? नितिन यहाँ इस कमरे मे मेरी चुत का रस पिएगा ये सोच-सोचकर ही मेरी साँसे बावली हो रही थी । पहले भी नितिन ने जब मॉर्निंग वॉक पर मेरी योनि को चाटा था तो मेरी हालत खराब हो गई थी ,आज फिर वही होने वाला था । आखिर नितिन ने मेरे दोनों पैरों को पकड़कर अलग किया और मेरी योनि को अपने हाथों से छूते हुए बोला - " आह .. क्या चीज हो तुम पदमा ..। तुम्हारी चुत को तो दिन रात चोदा जाना चाहिए । "
ऐसा बोलकर नितिन मेरी योनि पर झुक गया और उसके बेहद करीब जाकर उसे सूंघा । फिर मेरी ओर देखकर बोला - " इतनी सेक्सी चुत ... क्या बात है ? पदमा क्या मैं तुम्हारी चुत का ये रस पी लूँ ? "
मैंने शर्म से अपनी आँखे बन्द करली और कोई जवाब नहीं दिया इसके बाद नितिन ने मेरे जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और अपने होंठ खोलकर मेरी गुलाबी रसीली चुत पर लगाकर चूसने लगा ।
मैं - आह .. आह ... ऑफ ... नितिन .... करते हुए बिस्तर पर उछल पड़ी और मेरे हाथ खुद-ब-खुद नितिन के सर के बालों मे उलझ गए और मैंने उसके सर को अपनी योनि पर दबा दिया ।
नितिन की जीभ मेरी चुत की हर गहराई को नाप रही थी मेरा जिस्म बुरी तरह से मचलने लगा , मेरी योनि चुतरस के रूप मे अंगारे बरसाने लगी , जिन्हे नितिन मुहँ लगाए पीता चला गया । उसने अपना एक हाथ ऊपर करके मेरी चुची को पकड़ लिया और मेरी चुत को चाटते हुए मेरी चुची को दबाने लगा । मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैं शब्दों मे बयां नहीं कर सकती । पूरे बदन मे अंगारों की झुरझुरी लगी हुई थी । इस तरह से तो मेरी चुत को कभी अशोक या गुप्ता जी ने भी नहीं चाटा था । मैं मस्ती के सागर मे झूमते हुए लगातार आहें भर रही थी ....
" आह ... आह .. आह ..... ऑफ .... मम्म्म् ..... यस .... यस ... "
मेरी कामुक आहों को सुनकर नितिन ने अपना सर एक बार ऊपर उठाया ओर मैं बैचेन हो गई , मैं अब नहीं चाहती थी कि नितिन किसी भी हालत मे रुके , मैंने सवालिया नज़रों से नितिन की आँखों मे देखा , जैसे पूछ रही हूँ " क्योँ रुक गए ?"