10-02-2023, 11:17 PM
नितिन - चलो ना ऊपर ।
मैं - नहीं नितिन मुझे नहीं चाहिए ।
मेरी बात सुनकर नितिन मेरे ओर भी करीब आ गया और अपने हाथ की एक उँगली मेरे पेट के ऊपर से नाभी के ईद्र-गिर्द घुमाते हुए बोला - "ओहो पदमा .... आओ भी ... तुम नहीं जानती तुम पर वो कमर-बन्द कितना जचता है , उसके बिना तुम्हारा श्रंगार अधूरा है । "
नितिन की उँगली का स्पर्श अपने जिस्म के उस नाजूक हिस्से पर लगते ही मैं सिहर गई और एक रोमांच की छाया के मुझे अपने तले ले लिया । मुझे कमर-बन्द की जरूरत भी थी , पिछली बार तो मैं झूठ बोलकर अशोक के सवाल से बच गई थी मगर अब आगे के लिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं था ।
मैं - तुम नीचे ही ले आओ ना ।
नितिन - पदमा तुम जानती हो ना हम कितने दिनों के बाद मिले है , मैं चाहता हूँ कि हम जब तक यहाँ है साथ रहे , वैसे भी मैं आज शाम को चला जाऊँगा फिर ना जाने कब तुम्हारे साथ मुलाकात हो ।
मैं थोड़े से असमंजस मे फँसी हुई थी एक तरफ मैं नितिन के साथ अकेले एक कमरे मे होने की बात सोचकर ही रोमांचित थी और दूसरी ओर नितिन की बात सुनकर , मैं फिर से भावुक हो गई थी , मैंने सोचा बेचारा कितना परेशान है थोड़ी देर के लिए ही तो मेरा साथ माँग रहा है । और कहीं ना कहीं मैं खुद भी उस विशाल होटल को देखना चाहती थी इसलिए मैं नितिन की बात पर सहमति देदी ।
मैं - चलो ।
नितिन ने जैसे ही ये सुन उसका चेहरा खुशी के मारे खिल गया और वो बिना देरी कीये तुरंत बोल पड़ा - " तुम चलो , मैं बिल पे करके बस आया । "
मैं - कौन से फ्लोर पर है ?
नितिन - बस ये नीचे से पहले वाला , रूम नम्बर 321 .
नितिन की बात पर मैंने हामी मे सर हिलाया और एक बार फिर उसे अपनी गोरी चिकनी पीठ और मोटी भारी-भरकम गाँड़ की झलक दिखते हुए उसके आगे-आगे चल दी ।
मेरी दिल धड़कने बढ़ी हुई थी और मैं खुद को समझा रही थी कि "बस कमर-बन्द लेकर चल दूँगी । " इसी रोमांचक उत्तेजना मे मैंने सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की वैसे तो मैं लिफ्ट से भी जा सकती थी लेकिन मैंने आराम से घूमते हुए जाने का फैसला किया ।
मैं आखिर के फ्लोर पर जा पहुंची और उस लम्बी विशाल गैलरी मे घूमती लगी , वहाँ घूमते हुए मुझे नितिन के रूम का भी ख्याल नहीं रहा , पल-पल कदम रखते हुए उस अंधेरी गैलरी मे मेरे दिल की धड़कने अपने आप तेज होने लगी । मैं अपने ही रोमांच मे जी रही थी तभी मुझे पीछे से नितिन ने आवाज दी - " पदमा .."
मैं पीछे मुड़ी ..
पीछे नितिन एक चाभी लिए मेरी जवानी का रस अपनी आँखों से पी रहा था , मुझे देखकर वैसे ही खड़े हुए उसने कहा - " तुम वहाँ आगे कहाँ चली गई ? रूम तो ये है ?"
मैं वापस उसके रूम की तरफ आई तब तक नितिन ने दरवाजा भी खोल दिया और कहा - " लेडीज फर्स्ट "
मैं अन्दर रूम मे चली आई और मेरे पीछे-पीछे नितिन भी आ गया , अन्दर आते ही नितिन ने धीरे से दरवाजा भिड़ा दिया जिसकी मुझे कोई आवाज नहीं सुनी । मैं नितिन के रूम मे आकर खड़ी हो गई
और कहा - " नितिन कहाँ है कमर-बन्द ?, जल्दी ला दो फिर मुझे जाना है । "
नितिन - बस अभी लाया ।
कहकर नितिन अपने ड्रावर मे कुछ ढूंढने चला गया और मैं उसके रूम को देखने लगी , काफी बड़ा रूम था नितिन का । मेरे मन मे थोड़ी-थोड़ी घबराहट भी थी , लेकिन मैं अपने आप को नॉर्मल दिखाने की पूरी कोशिश कर रही थी , कुछ ही देर बाद नितिन वापस मेरे पास आ गया उसके हाथ मे वाकई एक कमर-बन्द था । मैं खुश थी कि कम-से-कम अब अशोक से झूठ तो नहीं बोलना पड़ेगा । मैंने नितिन के हाथ से कमर-बन्द लेने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए तो नितिन ने कमर-बन्द खींचते हुए कहा - " नहीं ऐसे नहीं । "
मैंने थोड़ी हैरानी से नितिन की आँखों मे देखा उसकी आँखों मे शरारत साफ नजर आ रही थी । मैंने पूछा - " फिर कैसे ?"
नितिन ( शरारती मुस्कान से )- मैं पहनाऊँगा , अपने हाथों से ।
और इतना कहकर , मेरे बोहोत ही करीब आ गया और अपने हाथों मे कमर-बन्द को पकड़कर मेरी पतली , नाजुक कमर के चारों ओर छूते हुए उसे लपेट दिया । मेरी साँसे और धड़कने तेज हो गई और अपनी शर्म बचाने के लिए मैंने आँखे बन्द करली ।
मैं - नहीं नितिन मुझे नहीं चाहिए ।
मेरी बात सुनकर नितिन मेरे ओर भी करीब आ गया और अपने हाथ की एक उँगली मेरे पेट के ऊपर से नाभी के ईद्र-गिर्द घुमाते हुए बोला - "ओहो पदमा .... आओ भी ... तुम नहीं जानती तुम पर वो कमर-बन्द कितना जचता है , उसके बिना तुम्हारा श्रंगार अधूरा है । "
नितिन की उँगली का स्पर्श अपने जिस्म के उस नाजूक हिस्से पर लगते ही मैं सिहर गई और एक रोमांच की छाया के मुझे अपने तले ले लिया । मुझे कमर-बन्द की जरूरत भी थी , पिछली बार तो मैं झूठ बोलकर अशोक के सवाल से बच गई थी मगर अब आगे के लिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं था ।
मैं - तुम नीचे ही ले आओ ना ।
नितिन - पदमा तुम जानती हो ना हम कितने दिनों के बाद मिले है , मैं चाहता हूँ कि हम जब तक यहाँ है साथ रहे , वैसे भी मैं आज शाम को चला जाऊँगा फिर ना जाने कब तुम्हारे साथ मुलाकात हो ।
मैं थोड़े से असमंजस मे फँसी हुई थी एक तरफ मैं नितिन के साथ अकेले एक कमरे मे होने की बात सोचकर ही रोमांचित थी और दूसरी ओर नितिन की बात सुनकर , मैं फिर से भावुक हो गई थी , मैंने सोचा बेचारा कितना परेशान है थोड़ी देर के लिए ही तो मेरा साथ माँग रहा है । और कहीं ना कहीं मैं खुद भी उस विशाल होटल को देखना चाहती थी इसलिए मैं नितिन की बात पर सहमति देदी ।
मैं - चलो ।
नितिन ने जैसे ही ये सुन उसका चेहरा खुशी के मारे खिल गया और वो बिना देरी कीये तुरंत बोल पड़ा - " तुम चलो , मैं बिल पे करके बस आया । "
मैं - कौन से फ्लोर पर है ?
नितिन - बस ये नीचे से पहले वाला , रूम नम्बर 321 .
नितिन की बात पर मैंने हामी मे सर हिलाया और एक बार फिर उसे अपनी गोरी चिकनी पीठ और मोटी भारी-भरकम गाँड़ की झलक दिखते हुए उसके आगे-आगे चल दी ।
मेरी दिल धड़कने बढ़ी हुई थी और मैं खुद को समझा रही थी कि "बस कमर-बन्द लेकर चल दूँगी । " इसी रोमांचक उत्तेजना मे मैंने सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की वैसे तो मैं लिफ्ट से भी जा सकती थी लेकिन मैंने आराम से घूमते हुए जाने का फैसला किया ।
मैं आखिर के फ्लोर पर जा पहुंची और उस लम्बी विशाल गैलरी मे घूमती लगी , वहाँ घूमते हुए मुझे नितिन के रूम का भी ख्याल नहीं रहा , पल-पल कदम रखते हुए उस अंधेरी गैलरी मे मेरे दिल की धड़कने अपने आप तेज होने लगी । मैं अपने ही रोमांच मे जी रही थी तभी मुझे पीछे से नितिन ने आवाज दी - " पदमा .."
मैं पीछे मुड़ी ..
पीछे नितिन एक चाभी लिए मेरी जवानी का रस अपनी आँखों से पी रहा था , मुझे देखकर वैसे ही खड़े हुए उसने कहा - " तुम वहाँ आगे कहाँ चली गई ? रूम तो ये है ?"
मैं वापस उसके रूम की तरफ आई तब तक नितिन ने दरवाजा भी खोल दिया और कहा - " लेडीज फर्स्ट "
मैं अन्दर रूम मे चली आई और मेरे पीछे-पीछे नितिन भी आ गया , अन्दर आते ही नितिन ने धीरे से दरवाजा भिड़ा दिया जिसकी मुझे कोई आवाज नहीं सुनी । मैं नितिन के रूम मे आकर खड़ी हो गई
और कहा - " नितिन कहाँ है कमर-बन्द ?, जल्दी ला दो फिर मुझे जाना है । "
नितिन - बस अभी लाया ।
कहकर नितिन अपने ड्रावर मे कुछ ढूंढने चला गया और मैं उसके रूम को देखने लगी , काफी बड़ा रूम था नितिन का । मेरे मन मे थोड़ी-थोड़ी घबराहट भी थी , लेकिन मैं अपने आप को नॉर्मल दिखाने की पूरी कोशिश कर रही थी , कुछ ही देर बाद नितिन वापस मेरे पास आ गया उसके हाथ मे वाकई एक कमर-बन्द था । मैं खुश थी कि कम-से-कम अब अशोक से झूठ तो नहीं बोलना पड़ेगा । मैंने नितिन के हाथ से कमर-बन्द लेने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए तो नितिन ने कमर-बन्द खींचते हुए कहा - " नहीं ऐसे नहीं । "
मैंने थोड़ी हैरानी से नितिन की आँखों मे देखा उसकी आँखों मे शरारत साफ नजर आ रही थी । मैंने पूछा - " फिर कैसे ?"
नितिन ( शरारती मुस्कान से )- मैं पहनाऊँगा , अपने हाथों से ।
और इतना कहकर , मेरे बोहोत ही करीब आ गया और अपने हाथों मे कमर-बन्द को पकड़कर मेरी पतली , नाजुक कमर के चारों ओर छूते हुए उसे लपेट दिया । मेरी साँसे और धड़कने तेज हो गई और अपनी शर्म बचाने के लिए मैंने आँखे बन्द करली ।