10-02-2023, 11:03 PM
नितिन(उदासी से) - ओह ....पदमा अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ वो तो एक मजाक था लेकिन अशोक जो तुम्हारे साथ कर रहा है वो तो एक धोखा है सरासर धोखा ।
मैं - कैसा धोखा ? क्या बोल रहे हो तुम ?
नितिन - सच्चाई ये है कि , अशोक ने मेरी प्रेजेंटेशन चुरा ली थी और मुझे कम्पनी के शेयर हॉल्डर्स के सामने शर्मिंदा होना पड़ा जिसकी वजह से मुझे कम्पनी की ब्रांच से निकाल दिया गया और मेरे ना होने का फायदा उठाकर अशोक खुद ग्रुप हेड बन गया ।
इतना बताते-बताते नितिन बोहोत उदास हो गया और अपनी नजरे जो उसने अब तक मेरे बदन से चिपका रखी थी , नीची कर ली । मुझे उस पर थोड़ा तरस सा आ गया और ना चाहते हुए भी उसके लिए मैं थोड़ी भावुक हो गई ।
मैं - नितिन तुम उदास मत हो ....... तुम्हें कैसे पता की प्रेजेंटेशन चुराने वाला अशोक ही था ।
नितिन - मैंने वो प्रेजेंटेशन अशोक के सामने ही अपने केबिन मे रखी थी उसका पता केवल अशोक को था और किसी को नहीं , और बाद मे अशोक ने वही सबके सामने प्रदर्शित की ।
मुझे नितिन की बात पर पूरा भरोसा भी नहीं हो रहा था लेकिन उसकी बातों से सच्चाई झलक रही थी , यूँ भी अशोक का कल वाला रूप देखकर मुझे ये तो लगने लगा था कि अशोक मुझसे कुछ ना कुछ छिपा रहे है जो शायद नितिन से ही संबंधित है ।
मैं सोच ही रही थी इतने मे ही वेटर चाय लेकर आ गया और हमारे सामने रखकर चला गया । मैंने नितिन की ओर देखा तो वो अभी भी उदास मुहँ लटकाए बैठा हुआ था ।
मैंने उससे कहा - " नितिन तुम ऐसे मत बैठे रहो ... चाय पी लो । "
नितिन ने मेरी ओर देखा और थोड़ा मुस्कुराता हुआ बोला - " हम्म ..तुम भी लो पदमा । "
फिर हम दोनों ने चाय पीने लगे ....
नितिन - पदमा तुमने फाइल के बारे मे अशोक से कुछ बात की ?
मैं - हम्म की थी ।
नितिन - क्या कहा उसने , नहीं बताया होगा ना कुछ भी ।
मैं - नहीं ।
नितिन - देखा मैंने कहा था ना वो नहीं बताएगा कुछ भी , क्योंकि वो जानता है इससे उसके सारे राज खुल जाएंगे ।
मैं(हैरत से) - कैसे राज ?
नितिन - उस फाइल मे सबूत है कि प्रेजेंटशन गायब करने मे मेरा कोई हाथ नहीं था , अगर वो फाइल मेरे हाथ लग जाए तो मैं शहर मे वापस आ जाऊँगा । प्लीज पदमा उसे मेरे लिए ला दो ।
मैं - मैं कैसे लाऊं मुझे तो पता भी नहीं वो कहाँ रखी है अशोक ने ।
नितिन ने सीधे बैठते हुए अपना हाथ मेरे हाथ पर रखकर कहा - "प्लीज पदमा कुछ करो ... मैं ये इसलिए नहीं कह रहा ताकि मैं दोबारा ग्रुप हेड बनना चाहता हूँ बल्कि इसलिए कह रहा हूँ ताकि मैं यहाँ तुम्हारे पास रह सकूँ, तुमसे दूर मन नहीं लगता अब ।
मैं( थोड़े असमंजस मे ) - नितिन .......... ।
नितिन(उसी तरह ) - प्लीज पदमा अब तुम ही कुछ कर सकती हो मेरे लिए , जानती हो जबसे मैं कम्पनी से निकाल गया हूँ मोनिका भी बात नहीं करती मुझसे .... बोहोत तन्हा हूँ मैं ।
इतना कहकर नितिन बोहोत ही ज्यादा टूट गया और उसकी पलके भीग गई । उसकी ऐसी हालत देखकर मेरा दिल पसीज गया और मैंने उसका हाथ पकड़े हुए ही कहा - " नितिन तुम दुःखी मत हो , मैं कोशिश करूंगी पर तुम ये बताओ इससे अशोक को तो कुछ नुकसान नहीं होगा ना । "
नितिन - नहीं नहीं पदमा मैं क्या पागल हूँ , मुझे तुम्हारा पूरा ख्याल है । अशोक को मैं कुछ नहीं होने दूँगा , वादा करता हूँ ।
नितिन की बातों पर मुझे पूरा नहीं पर थोड़ा सा विश्वाश सा बन गया , मेरी चाय भी खत्म हो गई थी तो मैंने नितिन से कहा -
मैं - अच्छा तो चलो अब मैं चलती हूँ , नहीं तो घर जाने मे लेट हो जाएगा ।
इतना बोलकर नितिन मैं अपनी जगह से उठ गई और जाने की लिए मुड़ी ही थी के तभी नितिन ने मुझे पीछे से आवाज दी -
नितिन - सुनो पदमा ।
मैं पीछे घूमी तो देखा नितिन मेरी पीठ और नितम्बों को निहार रहा था ,
मैंने उससे पूछा - " क्या हुआ नितिन ?"
नितिन अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और मेरे पास आते हुए बोला -"आज तुमने अपना कमर-बन्द नहीं पहना ? "
मैं समझ गई कि नितिन ने नोटिस कर लिया है , करता भी क्यूँ ना जब से मैं आई थी वो मुझे ही घूरे जा रहा था , मेरे बदन के एक-एक उतार चढ़ाव का नाप अपनी आँखों से अपने तरीके से ले रहा था ।
मैंने नितिन के प्रश्न का उत्तर देते हुआ कहा - " वो..... नितिन वो खो गया कहीं पर , बोहोत ढूंढा पर नहीं मिला । "
नितिन - ओह ... अब तुम क्या पहनोगी ?
मैं - बस अब ऐसे ही ठीक है ।
नितिन - नहीं ऐसे नहीं ,,,, मेरे साथ चलो एक बार ।
मैं( हैरत से )- तुम्हारे साथ ...... कहाँ ?
नितिन - ऊपर होटल मे मेरे रूम मे , मेरे पास है एक ।
मैं - क्या तुमने रूम लिया है यहाँ ?
नितिन - हाँ , वैसे तो मैं फार्म हाउस जाने वाला था मगर जब तुमने यहाँ आने को बोला तो मैंने रूम ही ले लिया ।
मैं - हम्म अच्छा ।
मैं - कैसा धोखा ? क्या बोल रहे हो तुम ?
नितिन - सच्चाई ये है कि , अशोक ने मेरी प्रेजेंटेशन चुरा ली थी और मुझे कम्पनी के शेयर हॉल्डर्स के सामने शर्मिंदा होना पड़ा जिसकी वजह से मुझे कम्पनी की ब्रांच से निकाल दिया गया और मेरे ना होने का फायदा उठाकर अशोक खुद ग्रुप हेड बन गया ।
इतना बताते-बताते नितिन बोहोत उदास हो गया और अपनी नजरे जो उसने अब तक मेरे बदन से चिपका रखी थी , नीची कर ली । मुझे उस पर थोड़ा तरस सा आ गया और ना चाहते हुए भी उसके लिए मैं थोड़ी भावुक हो गई ।
मैं - नितिन तुम उदास मत हो ....... तुम्हें कैसे पता की प्रेजेंटेशन चुराने वाला अशोक ही था ।
नितिन - मैंने वो प्रेजेंटेशन अशोक के सामने ही अपने केबिन मे रखी थी उसका पता केवल अशोक को था और किसी को नहीं , और बाद मे अशोक ने वही सबके सामने प्रदर्शित की ।
मुझे नितिन की बात पर पूरा भरोसा भी नहीं हो रहा था लेकिन उसकी बातों से सच्चाई झलक रही थी , यूँ भी अशोक का कल वाला रूप देखकर मुझे ये तो लगने लगा था कि अशोक मुझसे कुछ ना कुछ छिपा रहे है जो शायद नितिन से ही संबंधित है ।
मैं सोच ही रही थी इतने मे ही वेटर चाय लेकर आ गया और हमारे सामने रखकर चला गया । मैंने नितिन की ओर देखा तो वो अभी भी उदास मुहँ लटकाए बैठा हुआ था ।
मैंने उससे कहा - " नितिन तुम ऐसे मत बैठे रहो ... चाय पी लो । "
नितिन ने मेरी ओर देखा और थोड़ा मुस्कुराता हुआ बोला - " हम्म ..तुम भी लो पदमा । "
फिर हम दोनों ने चाय पीने लगे ....
नितिन - पदमा तुमने फाइल के बारे मे अशोक से कुछ बात की ?
मैं - हम्म की थी ।
नितिन - क्या कहा उसने , नहीं बताया होगा ना कुछ भी ।
मैं - नहीं ।
नितिन - देखा मैंने कहा था ना वो नहीं बताएगा कुछ भी , क्योंकि वो जानता है इससे उसके सारे राज खुल जाएंगे ।
मैं(हैरत से) - कैसे राज ?
नितिन - उस फाइल मे सबूत है कि प्रेजेंटशन गायब करने मे मेरा कोई हाथ नहीं था , अगर वो फाइल मेरे हाथ लग जाए तो मैं शहर मे वापस आ जाऊँगा । प्लीज पदमा उसे मेरे लिए ला दो ।
मैं - मैं कैसे लाऊं मुझे तो पता भी नहीं वो कहाँ रखी है अशोक ने ।
नितिन ने सीधे बैठते हुए अपना हाथ मेरे हाथ पर रखकर कहा - "प्लीज पदमा कुछ करो ... मैं ये इसलिए नहीं कह रहा ताकि मैं दोबारा ग्रुप हेड बनना चाहता हूँ बल्कि इसलिए कह रहा हूँ ताकि मैं यहाँ तुम्हारे पास रह सकूँ, तुमसे दूर मन नहीं लगता अब ।
मैं( थोड़े असमंजस मे ) - नितिन .......... ।
नितिन(उसी तरह ) - प्लीज पदमा अब तुम ही कुछ कर सकती हो मेरे लिए , जानती हो जबसे मैं कम्पनी से निकाल गया हूँ मोनिका भी बात नहीं करती मुझसे .... बोहोत तन्हा हूँ मैं ।
इतना कहकर नितिन बोहोत ही ज्यादा टूट गया और उसकी पलके भीग गई । उसकी ऐसी हालत देखकर मेरा दिल पसीज गया और मैंने उसका हाथ पकड़े हुए ही कहा - " नितिन तुम दुःखी मत हो , मैं कोशिश करूंगी पर तुम ये बताओ इससे अशोक को तो कुछ नुकसान नहीं होगा ना । "
नितिन - नहीं नहीं पदमा मैं क्या पागल हूँ , मुझे तुम्हारा पूरा ख्याल है । अशोक को मैं कुछ नहीं होने दूँगा , वादा करता हूँ ।
नितिन की बातों पर मुझे पूरा नहीं पर थोड़ा सा विश्वाश सा बन गया , मेरी चाय भी खत्म हो गई थी तो मैंने नितिन से कहा -
मैं - अच्छा तो चलो अब मैं चलती हूँ , नहीं तो घर जाने मे लेट हो जाएगा ।
इतना बोलकर नितिन मैं अपनी जगह से उठ गई और जाने की लिए मुड़ी ही थी के तभी नितिन ने मुझे पीछे से आवाज दी -
नितिन - सुनो पदमा ।
मैं पीछे घूमी तो देखा नितिन मेरी पीठ और नितम्बों को निहार रहा था ,
मैंने उससे पूछा - " क्या हुआ नितिन ?"
नितिन अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और मेरे पास आते हुए बोला -"आज तुमने अपना कमर-बन्द नहीं पहना ? "
मैं समझ गई कि नितिन ने नोटिस कर लिया है , करता भी क्यूँ ना जब से मैं आई थी वो मुझे ही घूरे जा रहा था , मेरे बदन के एक-एक उतार चढ़ाव का नाप अपनी आँखों से अपने तरीके से ले रहा था ।
मैंने नितिन के प्रश्न का उत्तर देते हुआ कहा - " वो..... नितिन वो खो गया कहीं पर , बोहोत ढूंढा पर नहीं मिला । "
नितिन - ओह ... अब तुम क्या पहनोगी ?
मैं - बस अब ऐसे ही ठीक है ।
नितिन - नहीं ऐसे नहीं ,,,, मेरे साथ चलो एक बार ।
मैं( हैरत से )- तुम्हारे साथ ...... कहाँ ?
नितिन - ऊपर होटल मे मेरे रूम मे , मेरे पास है एक ।
मैं - क्या तुमने रूम लिया है यहाँ ?
नितिन - हाँ , वैसे तो मैं फार्म हाउस जाने वाला था मगर जब तुमने यहाँ आने को बोला तो मैंने रूम ही ले लिया ।
मैं - हम्म अच्छा ।