10-02-2023, 10:46 PM
12. मैंने नितिन से वादा किया था कि मैं 11 बजे तक होटल ग्रीन-सी आ जाऊँगी मगर ट्रैफिक के चलते मैं थोड़ी लेट हो गई और मुझे होटल पहुँचने मे 11:30 बज गए ।
ग्रीन-सी होटल शहर के सबसे माने हुए होटलों मे शुमार था यहाँ केवल अपर-लेवल (elite class) के लोग आते थे इसीलिए मैंने नितिन से मिलने के लिए इस होटल को चुना । जब मैं होटल पहुंची तो वहाँ का माहौल देखकर मेरा मन खुश हो गया चारों तरफ बहुत साफ सफाई , और देख-रेख के लिए नौकर लगे हुए थे ।
मेरे खुश होने का एक कारण ये भी था कि मैं इस होटल मे रोज-रोज तो आती नहीं थी सिर्फ एक बार अशोक के साथ आई थी तभी से मुझे इसमे जाने की इच्छा थी लेकिन इतने बड़े और महंगे होटल मे जाना मैं अफोर्ड नहीं कर सकती थी मगर आज मुझे कोई चिंता नहीं थी मैं सोचकर आई थी कि मैं तो अपना एक भी पैसा खर्च नहीं करूंगी , मिलने की जिद नितिन की थी तो वोही खर्चा भी करेगा पर होटल के अन्दर जाकर मैंने देखा तो मुझे नितिन कहीं दिखाई नहीं दिया ।
मैंने हर तरफ नजर दौड़ाई मगर वो नहीं दिखा एक बार को तो मुझे लगा कही नितिन इंतज़ार करके चला तो नहीं गया , और ठीक उसी वक्त किसी ने पीछे से मुझे आवाज लगाई मैंने पलट-कर देखा तो पाया नितिन के होटल के हॉल की सबसे आखिरी टेबल पर बैठा हुआ था और मुझे अपनी ओर बुलाने का इशारा कर रहा था । मैं समझ गई थी कि नितिन इतनी देर से मुझे यहाँ से वहाँ भागता देखकर मेरी गोरी पीठ और भारी गाँड़ का दीदार करते हुए मजे ले रहा है,
नितिन को देखकर मुझे अच्छा भी लगा चलो इसने मेरा इंतज़ार तो किया मगर साथ मे ये ख्याल भी आया कि इसने इतने आखिर मे टेबल क्यूँ बुक की है । खैर मे नितिन की टेबल के पास पहुंची तो उसका चेहरा खिल गया और वो एक नजर मुझे देखता ही रह गया ,
उसकी इस हरकत पर मुझे शर्म आ गई उसने मुस्कुराते हुए कहा - " वेलकम पदमा , आओ बेठो । "
नितिन ने आगे बढ़कर मेरी कुर्सी खींची और मे भी आराम से बैठ गई ।
उसके बाद नितिन फिर से अपनी कुर्सी पर बैठा और मेरी ओर मुसकाते हुए कहने लगा - " कैसी हो पदमा , आज बोहोत दिनों बाद तुम्हें देखा । "
मैं - मैं ठीक हूँ , तुम अपनी कहो ।
नितिन ( मेरी चुचियों की दरार मे झाँकते हुए )- अब मैं भी ठीक हूँ , तुम्हें जो देख लिया ।
मैं - मुझे तो लगा कि तुम चले गए होंगे , मुझे आने मे देर हो गई ना ।
नितिन - तुम्हारे लिए तो मैं पूरा दिन इंतज़ार कर सकता हूँ फिर ये तो कुछ भी नहीं ।
नितिन की यही बात मुझे हमेशा लुभाती थी वो अपनी बात को इस ढंग से कहता था कि कोई भी लड़की उसकी दीवानी हो जाए , मुझे उसकी बातों पर हँसी ओर शर्म दोनों आ रही थी लेकिन मैं फिर भी खुद को संभाले रखा ।
मैं - तुमने इतनी आखिर मे टेबल क्यूँ बुक की है , आगे भी तो जगह है ।
नितिन - पदमा , आज हम कितने दिनों बाद मिले है मुझे तुमसे बोहोत सी बाते करनी है अगर मे आगे टेबल बुक करता तो कोई हमारी बातें सुन सकता था ।
मैंने सोचा कह तो नितिन ठीक ही रहा है , किसी को अपनी बात की खबर नहीं देनी चाहिए ।
मैं - हम्म ।
नितिन - और बताओ क्या लोगी ?
मैं - कुछ नहीं ।
नितिन - अरे ऐसे कैसे , कुछ तो लेना ही पड़ेगा । वेटर ..........।
नितिन ने वेटर को आवाज दी और तुरंत के वेटर वही हमारी टेबल के पास आ गया ।
वेटर - यस सर ...
नितिन - दो चाय लाओ ।
वेटर ने ऑर्डर लिया और चला गया ।
नितिन - कब से तड़प रहा था तुमसे मिलने को पर अशोक की वजह से सब खराब हो गया ।
मैं ( हैरानी से )- अशोक की वजह से कैसे ?
नितिन - उसी की वजह से मुझे शहर के बाहर रहकर काम करना पड़ रहा है नहीं तो मैं तुम्हारे पास रहता यही ।
मैं - नितिन पहेलियाँ मत बुझाओ , उस दिन मॉर्निंग वॉक पर भी तुमने मुझे अपनी बातों से उलझा दिया था, आज मुझे सब सही से बताओ मजरा क्या है ?
नितिन - सच सुनना है तो सुनो सच ये है कि , अशोक अब कंपनी मे ग्रुप हेड बना हुआ , जो कभी मैं था ।
मैं - हाँ , मैं जानती हूँ ।
नितिन - क्या ये भी जानती हो कि कैसे बना वो ग्रुप हेड ?
मैं - हाँ जानती हूँ तुम्हारी लापरवाही की वजह से , जिस दिन तुम्हें कम्पनी की प्रेजेंटेशन देनी थी उस दिन तुम मेरे घर आए थे मुझे केक सिखाने के बहाने और तुमने अपना सारा टाइम यहाँ लगा दिया इस वजह से अशोक को वो प्रेजेंटेशन देनी पड़ी । तुम्हें तुम्हारी लापरवाही की सजा मिली है और अब इल्जाम अशोक पर डालना चाहते हो ।
नितिन ( हैरानी से )- ये सब तुम्हें अशोक ने बताया होगा ना ?
मैं - हाँ ।
नितिन ( मुस्कुराते हुए ) - और तुमने आसानी से उसकी बात मान ली ।
मैं - क्या मतलब ?
नितिन - मतलब ये कि उसने तुम्हें सब कुछ झूट ही बताया है ।
मैं(गम्भीरता से ) - अच्छा तो तुम मुझे सच और झूठ का फ़र्क बताओगे जिसने खुद अपना पहला परिचय ही मुझे झूठा दिया था ।
ग्रीन-सी होटल शहर के सबसे माने हुए होटलों मे शुमार था यहाँ केवल अपर-लेवल (elite class) के लोग आते थे इसीलिए मैंने नितिन से मिलने के लिए इस होटल को चुना । जब मैं होटल पहुंची तो वहाँ का माहौल देखकर मेरा मन खुश हो गया चारों तरफ बहुत साफ सफाई , और देख-रेख के लिए नौकर लगे हुए थे ।
मेरे खुश होने का एक कारण ये भी था कि मैं इस होटल मे रोज-रोज तो आती नहीं थी सिर्फ एक बार अशोक के साथ आई थी तभी से मुझे इसमे जाने की इच्छा थी लेकिन इतने बड़े और महंगे होटल मे जाना मैं अफोर्ड नहीं कर सकती थी मगर आज मुझे कोई चिंता नहीं थी मैं सोचकर आई थी कि मैं तो अपना एक भी पैसा खर्च नहीं करूंगी , मिलने की जिद नितिन की थी तो वोही खर्चा भी करेगा पर होटल के अन्दर जाकर मैंने देखा तो मुझे नितिन कहीं दिखाई नहीं दिया ।
मैंने हर तरफ नजर दौड़ाई मगर वो नहीं दिखा एक बार को तो मुझे लगा कही नितिन इंतज़ार करके चला तो नहीं गया , और ठीक उसी वक्त किसी ने पीछे से मुझे आवाज लगाई मैंने पलट-कर देखा तो पाया नितिन के होटल के हॉल की सबसे आखिरी टेबल पर बैठा हुआ था और मुझे अपनी ओर बुलाने का इशारा कर रहा था । मैं समझ गई थी कि नितिन इतनी देर से मुझे यहाँ से वहाँ भागता देखकर मेरी गोरी पीठ और भारी गाँड़ का दीदार करते हुए मजे ले रहा है,
नितिन को देखकर मुझे अच्छा भी लगा चलो इसने मेरा इंतज़ार तो किया मगर साथ मे ये ख्याल भी आया कि इसने इतने आखिर मे टेबल क्यूँ बुक की है । खैर मे नितिन की टेबल के पास पहुंची तो उसका चेहरा खिल गया और वो एक नजर मुझे देखता ही रह गया ,
उसकी इस हरकत पर मुझे शर्म आ गई उसने मुस्कुराते हुए कहा - " वेलकम पदमा , आओ बेठो । "
नितिन ने आगे बढ़कर मेरी कुर्सी खींची और मे भी आराम से बैठ गई ।
उसके बाद नितिन फिर से अपनी कुर्सी पर बैठा और मेरी ओर मुसकाते हुए कहने लगा - " कैसी हो पदमा , आज बोहोत दिनों बाद तुम्हें देखा । "
मैं - मैं ठीक हूँ , तुम अपनी कहो ।
नितिन ( मेरी चुचियों की दरार मे झाँकते हुए )- अब मैं भी ठीक हूँ , तुम्हें जो देख लिया ।
मैं - मुझे तो लगा कि तुम चले गए होंगे , मुझे आने मे देर हो गई ना ।
नितिन - तुम्हारे लिए तो मैं पूरा दिन इंतज़ार कर सकता हूँ फिर ये तो कुछ भी नहीं ।
नितिन की यही बात मुझे हमेशा लुभाती थी वो अपनी बात को इस ढंग से कहता था कि कोई भी लड़की उसकी दीवानी हो जाए , मुझे उसकी बातों पर हँसी ओर शर्म दोनों आ रही थी लेकिन मैं फिर भी खुद को संभाले रखा ।
मैं - तुमने इतनी आखिर मे टेबल क्यूँ बुक की है , आगे भी तो जगह है ।
नितिन - पदमा , आज हम कितने दिनों बाद मिले है मुझे तुमसे बोहोत सी बाते करनी है अगर मे आगे टेबल बुक करता तो कोई हमारी बातें सुन सकता था ।
मैंने सोचा कह तो नितिन ठीक ही रहा है , किसी को अपनी बात की खबर नहीं देनी चाहिए ।
मैं - हम्म ।
नितिन - और बताओ क्या लोगी ?
मैं - कुछ नहीं ।
नितिन - अरे ऐसे कैसे , कुछ तो लेना ही पड़ेगा । वेटर ..........।
नितिन ने वेटर को आवाज दी और तुरंत के वेटर वही हमारी टेबल के पास आ गया ।
वेटर - यस सर ...
नितिन - दो चाय लाओ ।
वेटर ने ऑर्डर लिया और चला गया ।
नितिन - कब से तड़प रहा था तुमसे मिलने को पर अशोक की वजह से सब खराब हो गया ।
मैं ( हैरानी से )- अशोक की वजह से कैसे ?
नितिन - उसी की वजह से मुझे शहर के बाहर रहकर काम करना पड़ रहा है नहीं तो मैं तुम्हारे पास रहता यही ।
मैं - नितिन पहेलियाँ मत बुझाओ , उस दिन मॉर्निंग वॉक पर भी तुमने मुझे अपनी बातों से उलझा दिया था, आज मुझे सब सही से बताओ मजरा क्या है ?
नितिन - सच सुनना है तो सुनो सच ये है कि , अशोक अब कंपनी मे ग्रुप हेड बना हुआ , जो कभी मैं था ।
मैं - हाँ , मैं जानती हूँ ।
नितिन - क्या ये भी जानती हो कि कैसे बना वो ग्रुप हेड ?
मैं - हाँ जानती हूँ तुम्हारी लापरवाही की वजह से , जिस दिन तुम्हें कम्पनी की प्रेजेंटेशन देनी थी उस दिन तुम मेरे घर आए थे मुझे केक सिखाने के बहाने और तुमने अपना सारा टाइम यहाँ लगा दिया इस वजह से अशोक को वो प्रेजेंटेशन देनी पड़ी । तुम्हें तुम्हारी लापरवाही की सजा मिली है और अब इल्जाम अशोक पर डालना चाहते हो ।
नितिन ( हैरानी से )- ये सब तुम्हें अशोक ने बताया होगा ना ?
मैं - हाँ ।
नितिन ( मुस्कुराते हुए ) - और तुमने आसानी से उसकी बात मान ली ।
मैं - क्या मतलब ?
नितिन - मतलब ये कि उसने तुम्हें सब कुछ झूट ही बताया है ।
मैं(गम्भीरता से ) - अच्छा तो तुम मुझे सच और झूठ का फ़र्क बताओगे जिसने खुद अपना पहला परिचय ही मुझे झूठा दिया था ।