08-02-2023, 10:33 PM
मैंने अपने कपड़े भी नहीं बदले , मन ही नहीं किया और ऐसे ही चादर लेकर लेट गई । आँखों मे नींद की तो जगह ही नहीं थी बस ऐसे ही लेटे रही । नींद कब आई ये तो नहीं पता लेकिन रात के लगभग 1 बजे मेरी नींद खुल गई जिसकी वजह थी बाहर गेट से आती किसी के फुसफुसाने की आवाज ।
मुझे लगा कहीं कोई चोर तो घर मे नहीं घुस गया , मैं बोहोत डर गई मैंने अपने बिस्तर की दूसरी तरफ अशोक की ओर देखा तो पाया अशोक बिस्तर पर नहीं थे ..। मैंने अंदाज़ा लगा लिया कि हो ना हो ये अशोक ही है जो इतनी रात को किसी से बात कर रहे है , मगर किस्से ??? ये जानने के लिए मैं बोहोत ही धीरे से अपने बिस्तर से उठकर अपने गेट के पास गई , गेट तो खुला हुआ ही था । मैं बस चुपके से गेट के पीछे खड़ी हो गई और बाहर हॉल मे झाँका ।
हॉल मे अशोक किसी से टेलेफ़ोन पर बोहोत ही धीरे-धीरे बाते कर रहे थे , मैंने थोड़ा कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो मुझे अशोक की कुछ बातें सुनाई पड़ी ......
अशोक - "मैं पूरी कोशिश करूंगा बॉस ...।"
" बस थोड़ा टाइम ओर ...।।"
" आप मेरी बात तो समझिए , फाइल मेरे हाथ आ गई है बस वो ड्राइव बाकी है । "
"बस ये आखिरी चाल कामयाब हो जाए "
" किसी को मुझ पर कोई शक नहीं है कि कम्पनी मे क्या चल रहा है । "
" ओके ओके बॉस "
मैं इतनी ही बात सुन पाई थी ओर फिर अशोक ने टेलेफ़ोन रख दिया इससे पहले अशोक वापस बेडरूम मे आते मैं जल्दी से पीछे हटते हुए वापस बेड पर आकर पहले के जैसी लेट गई । मेरे लेटने के कुछ देर बाद ही अशोक भी बेडरूम मे लौट आए और एक बार मेरी ओर देखा, मेरी आँखे बन्द पाकर उन्होंने सोचा मैं तो सोई हुई हूँ
और फिर बेड पर आकर लेट गए । मेरी आँखों की नींद एक बार फिर उड गई , ये सब क्या हो रहा है मेरे चारों ओर , ना जाने किस्से अशोक इतनी रात मे बात कर रहे थे वो भी रेड-लाइन पर जिसपर सिर्फ गाँव से फोन आते है वो भी दिन मे कभी-कभार । किससे टाइम माँग रहा है अशोक और क्यों ? कहीं ये कोई अनहोनी तो नहीं करने लग रहा ? सवाल कई थे और मेरे पास कोई जवाब नहीं था अशोक तो मुझे कुछ बताएंगे नहीं तो मुझे किसी ओर से ही जानना पड़ेगा कि आखिर मजरा क्या है लेकिन किससे ?
दिमाग मे केवल एक ही नाम आ रहा था और वो था नितिन का मगर मैं उसे अपने घर भी नहीं बुला सकती थी वरना वो जरूर मेरे साथ कुछ ऐसी वैसी हरकत करता , मुझे उससे बाहर ही कहीं मिलना था , तभी मुझे मेरे सवालों के जवाब मिलेगें ।
सुबह के 7 बजे के लगभग मैं अपनी रसोई मे अशोक के लिए नाश्ता बना रही थी और अशोक बाथरूम मे नहाने गए थे । सुबह उठकर मैंने अपनी साड़ी बदल ली थी और एक हल्का गाउन पहन लिया था ।
आज सुबह भी अशोक का मूड कुछ ऑफ सा था मुझे लगा वो जरूर कल रात की ही बात को लेकर मुझसे नाराज है , मैंने शांति से उनके लिए नाश्ता बनाया और उसी दौरान मेरे फोन पर एक रिंग ने दस्तक दी । मैंने अपना फोन उठाया तो पाया उसमे कल वाले नंबर से ही जिससे कल नितिन ने फोन किया था उससे एक कॉल आई हुई है ..। मैंने अशोक को देखने के लिए पहले धीरे से कीचेन के बाहर देखा , अशोक अभी भी बाथरूम मे ही थे । मैंने नितिन का कॉल उठाया .....
मैं - हैलो ।
नितिन - हैलो पदमा , मैं हूँ नितिन ।
मैं - हम्म , जल्दी बोलो जो भी बोलना है अशोक घर पर ही है ।
नितिन - कल तुमने अशोक से कुछ बात की ?
मैं - हाँ ।
नितिन - क्या पता चला ...... ?
मैं - कुछ नहीं ।
नितिन - पदमा , मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ एक बार , तुम कहो तो मैं तुम्हारे घर आ जाऊँ ।
मैं - नहीं नितिन यहाँ मत आना ।
नितिन - तो तुम ही बताओ कैसे मिलूँ , तुमसे मिलने का बोहोत मन हो रहा है ।
मैं - तुम शहर आ गए क्या ..... ?
नितिन - नहीं अभी 1 घंटे मे पहुँच जाऊँगा ।
मैं - ठीक है , आज दोपहर मे मिल सकती हूँ ।
नितिन - तो ठीक है तुम मेरे फार्म हाउस पर आ जाना , पता मे भेज देता हूँ ।
मैं नितिन से मिलना जरूर चाहती थी पर अपने लिए नहीं बल्कि ये जानने के लिए कि अशोक के साथ क्या हो रहा है ? मगर जब नितिन ने अपने फार्म हाउस पर मिलने की बात की तो मैं समझ गई कि नितिन मुझे अपने भोग-विलास के लिए वहाँ बुलाना चाहता है इसलिए मैंने नितिन की बात पलटते हुए कहा -
मैं - नहीं ..........., मैंने तुम्हें बताती हूँ कहाँ मिलना है ।
नितिन - कहाँ ?
मैं - होटल ग्रीन-सी ।
नितिन - वो तो बोहोत दूर पड़ेगा मुझे ।
मैं - जब तुम मेरे घर तक आने की जहमत उठा सकते हो तो वहाँ आने मे क्या प्रॉबलम है ।
नितिन - मगर किस टाइम ?
मैं - 11 बजे मिल सकते है ।
नितिन(उदासी से ) - अच्छा चलो ठीक है , तुम्हारे लिए ये भी सही ।
मैं - ज्यादा डायलॉग मत मारों ।
नितिन की महरूम सी आवाज से साफ जाहिर था कि उसे दुख है कि वो मुझसे अकेले नहीं मिल पाएगा । मेरी और नितिन की बात पूरी हो ही चुकी थी , के तभी मुझे बाथरूम के खुलने की आवाज आई जिसे सुनते ही मैंने झट से फोन रख दिया और अपने काम पर लौट आई ।
अशोक बाथरूम से बाहर आए और फिर चुपचाप अपने कमरे मे कपड़े पहनने चले गए । मैंने अशोक का नाश्ता उनकी टेबल पर परोस दिया , अशोक आए और टेबल पर बैठकर खाने लगे ..। मैं शांति से उन्हे देखती रही
मैं देखना चाहती थी कि क्या अशोक अपने आप भी किसी बात का जिक्र करते है या नहीं । अशोक ने पूरा नाश्ता खत्म किया लेकिन उनके मुहँ से ना कल रात ना ही उस टेलेफ़ोन के बारे मे एक भी शब्द निकला । नाश्ता करते ही अशोक ने अपना ऑफिस वाला बैग उठाया और जाने लगे , मैंने ही अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उन्हे पीछे से टोका -
मैं - " आराम से जाना और शाम को जल्दी घर लौटना !"
अशोक ने पीछे मुड़कर मेरी देखा और बोले - " हम्म , ठीक है । ख्याल रखना । "
इसके बाद अशोक चले गए , मुझे भी मन मे थोड़ी खुशी हुई कि चलो कुछ तो बोले । इसके बाद मैं रोज की तरह नहाने चली गई और नहाकर एक अच्छी सी साड़ी पहन ली ,
मगर ज्यादा मेक-अप नहीं किया क्योंकि मुझे बाहर भी जाना था और मैं नहीं चाहती थी कि मोहल्ले के नाकारा , मवाली लोग मेरी चुचियों और भारी नितम्बों पर अपनी जहरीली नजर डाले और मुझे पर भद्दी और अश्लील टिप्पणियाँ कसे । कल ही मैं उनकी अभद्रता से बोहोत लज्जित हो गई थी और ऊपर से गुप्ता जी जो पहले से ही मेरे हुस्न के दीवाने थे वो तो मुझे उस लिबास मे देखकर इतने पागल ही हो गए थे कि बस मे ही उन्होंने ने मुझे ऊपर से बे-लिबास कर दिया था और मेरे होंठों का रस चूसा था यहाँ तक कि उन्होंने किसी की परवाह कीये बिना ही बस के अन्दर ही मेरी भारी भरकम कोमल चुचियों का दूध भी निचोड़ लिया और उसे पी गए । मैं नहीं चाहती कि नितिन भी ऐसे ही बेकाबू हो जाए और मुझे वहीं पर होटल मे गेरकर लूट ले और इस बार कोई ओर तो क्या मैं खुद भी अपने आप को बचा ना पाऊँ ।
" आह .... ये सब क्या सोचने लग गई मे भी " इतनी कामोत्तेजक बाते सोचकर ही , मैं साँसे तेज हो गई । मैंने इन सब बातों से खुद का ध्यान हटाया तो याद आया कि मेरा ब्लाउज और पेटीकोट जो गुप्ता जी को मैंने सिलने दिया था वो भी तो लाना है मगर मैं गुप्ता जी की दुकान जाऊँ तो जाऊँ कैसे ? अब तो गुप्ता जी का सामना मुझसे हो नहीं पाएगा , मगर मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा । काफी देर इस बारे मे सोचने के बाद मेरे दिमाग मे एक युक्ति आई ....। मैंने सोच क्यूँ ना गुप्ता जी के घर वरुण को भेज दूँ , उनकी दुकान वरुण के घर के पास ही है । वरुण अगर गुप्ता जी के घर जाएगा तो वो कुछ कर भी नहीं पायेंगे । यही सोचकर मैंने सीमा जी ( वरुण की मम्मी) के पास फोन मिलाया ..।
मैं - हैलो सीमा जी , नमस्ते ।
सीमा जी - हैलो पदमा नमस्ते । कैसी हो ?
मैं - मैं अच्छी हूँ , आप बताइए कैसी है ?
सीमा जी - मैं भी ठीक हूँ और बताओ कहाँ रहती हो आजकल अब तुमने हमारे घर आना ही छोड़ दिया ।
मैं - नहीं सीमा जी ऐसी कोई बात नहीं बस वक्त मिलते ही आ जाऊँगी । अच्छा सुनिए मुझे आपसे एक काम था ।
सीमा जी - हाँ कहो पदमा ।
मैं - वो मैंने कुछ कपड़े गुप्ता जी के पास सिलने के लिए दिए थे ... मुझे आज एक जरूरी काम से बाहर जाना है तो क्या आप वरुण से कहकर वो कपड़े मँगा सकती है ?
सीमा जी - हाँ ,,,,हाँ ,,,, पदमा ये तो कोई बड़ी बात नहीं , मैं वरुण को बोल दूँगी वो तुम्हारे घर दे आएगा ।
मैं - ओह थैंक यू सो मच सीमा जी ।
सीमा जी - कोई बात नहीं पदमा तुम आराम से अपना काम कर लो ।
इसके बाद मैंने फोन रख दिया और नितिन से मिलने के लिए होटल ग्रीन-सी चली गई ।
मुझे लगा कहीं कोई चोर तो घर मे नहीं घुस गया , मैं बोहोत डर गई मैंने अपने बिस्तर की दूसरी तरफ अशोक की ओर देखा तो पाया अशोक बिस्तर पर नहीं थे ..। मैंने अंदाज़ा लगा लिया कि हो ना हो ये अशोक ही है जो इतनी रात को किसी से बात कर रहे है , मगर किस्से ??? ये जानने के लिए मैं बोहोत ही धीरे से अपने बिस्तर से उठकर अपने गेट के पास गई , गेट तो खुला हुआ ही था । मैं बस चुपके से गेट के पीछे खड़ी हो गई और बाहर हॉल मे झाँका ।
हॉल मे अशोक किसी से टेलेफ़ोन पर बोहोत ही धीरे-धीरे बाते कर रहे थे , मैंने थोड़ा कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो मुझे अशोक की कुछ बातें सुनाई पड़ी ......
अशोक - "मैं पूरी कोशिश करूंगा बॉस ...।"
" बस थोड़ा टाइम ओर ...।।"
" आप मेरी बात तो समझिए , फाइल मेरे हाथ आ गई है बस वो ड्राइव बाकी है । "
"बस ये आखिरी चाल कामयाब हो जाए "
" किसी को मुझ पर कोई शक नहीं है कि कम्पनी मे क्या चल रहा है । "
" ओके ओके बॉस "
मैं इतनी ही बात सुन पाई थी ओर फिर अशोक ने टेलेफ़ोन रख दिया इससे पहले अशोक वापस बेडरूम मे आते मैं जल्दी से पीछे हटते हुए वापस बेड पर आकर पहले के जैसी लेट गई । मेरे लेटने के कुछ देर बाद ही अशोक भी बेडरूम मे लौट आए और एक बार मेरी ओर देखा, मेरी आँखे बन्द पाकर उन्होंने सोचा मैं तो सोई हुई हूँ
और फिर बेड पर आकर लेट गए । मेरी आँखों की नींद एक बार फिर उड गई , ये सब क्या हो रहा है मेरे चारों ओर , ना जाने किस्से अशोक इतनी रात मे बात कर रहे थे वो भी रेड-लाइन पर जिसपर सिर्फ गाँव से फोन आते है वो भी दिन मे कभी-कभार । किससे टाइम माँग रहा है अशोक और क्यों ? कहीं ये कोई अनहोनी तो नहीं करने लग रहा ? सवाल कई थे और मेरे पास कोई जवाब नहीं था अशोक तो मुझे कुछ बताएंगे नहीं तो मुझे किसी ओर से ही जानना पड़ेगा कि आखिर मजरा क्या है लेकिन किससे ?
दिमाग मे केवल एक ही नाम आ रहा था और वो था नितिन का मगर मैं उसे अपने घर भी नहीं बुला सकती थी वरना वो जरूर मेरे साथ कुछ ऐसी वैसी हरकत करता , मुझे उससे बाहर ही कहीं मिलना था , तभी मुझे मेरे सवालों के जवाब मिलेगें ।
सुबह के 7 बजे के लगभग मैं अपनी रसोई मे अशोक के लिए नाश्ता बना रही थी और अशोक बाथरूम मे नहाने गए थे । सुबह उठकर मैंने अपनी साड़ी बदल ली थी और एक हल्का गाउन पहन लिया था ।
आज सुबह भी अशोक का मूड कुछ ऑफ सा था मुझे लगा वो जरूर कल रात की ही बात को लेकर मुझसे नाराज है , मैंने शांति से उनके लिए नाश्ता बनाया और उसी दौरान मेरे फोन पर एक रिंग ने दस्तक दी । मैंने अपना फोन उठाया तो पाया उसमे कल वाले नंबर से ही जिससे कल नितिन ने फोन किया था उससे एक कॉल आई हुई है ..। मैंने अशोक को देखने के लिए पहले धीरे से कीचेन के बाहर देखा , अशोक अभी भी बाथरूम मे ही थे । मैंने नितिन का कॉल उठाया .....
मैं - हैलो ।
नितिन - हैलो पदमा , मैं हूँ नितिन ।
मैं - हम्म , जल्दी बोलो जो भी बोलना है अशोक घर पर ही है ।
नितिन - कल तुमने अशोक से कुछ बात की ?
मैं - हाँ ।
नितिन - क्या पता चला ...... ?
मैं - कुछ नहीं ।
नितिन - पदमा , मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ एक बार , तुम कहो तो मैं तुम्हारे घर आ जाऊँ ।
मैं - नहीं नितिन यहाँ मत आना ।
नितिन - तो तुम ही बताओ कैसे मिलूँ , तुमसे मिलने का बोहोत मन हो रहा है ।
मैं - तुम शहर आ गए क्या ..... ?
नितिन - नहीं अभी 1 घंटे मे पहुँच जाऊँगा ।
मैं - ठीक है , आज दोपहर मे मिल सकती हूँ ।
नितिन - तो ठीक है तुम मेरे फार्म हाउस पर आ जाना , पता मे भेज देता हूँ ।
मैं नितिन से मिलना जरूर चाहती थी पर अपने लिए नहीं बल्कि ये जानने के लिए कि अशोक के साथ क्या हो रहा है ? मगर जब नितिन ने अपने फार्म हाउस पर मिलने की बात की तो मैं समझ गई कि नितिन मुझे अपने भोग-विलास के लिए वहाँ बुलाना चाहता है इसलिए मैंने नितिन की बात पलटते हुए कहा -
मैं - नहीं ..........., मैंने तुम्हें बताती हूँ कहाँ मिलना है ।
नितिन - कहाँ ?
मैं - होटल ग्रीन-सी ।
नितिन - वो तो बोहोत दूर पड़ेगा मुझे ।
मैं - जब तुम मेरे घर तक आने की जहमत उठा सकते हो तो वहाँ आने मे क्या प्रॉबलम है ।
नितिन - मगर किस टाइम ?
मैं - 11 बजे मिल सकते है ।
नितिन(उदासी से ) - अच्छा चलो ठीक है , तुम्हारे लिए ये भी सही ।
मैं - ज्यादा डायलॉग मत मारों ।
नितिन की महरूम सी आवाज से साफ जाहिर था कि उसे दुख है कि वो मुझसे अकेले नहीं मिल पाएगा । मेरी और नितिन की बात पूरी हो ही चुकी थी , के तभी मुझे बाथरूम के खुलने की आवाज आई जिसे सुनते ही मैंने झट से फोन रख दिया और अपने काम पर लौट आई ।
अशोक बाथरूम से बाहर आए और फिर चुपचाप अपने कमरे मे कपड़े पहनने चले गए । मैंने अशोक का नाश्ता उनकी टेबल पर परोस दिया , अशोक आए और टेबल पर बैठकर खाने लगे ..। मैं शांति से उन्हे देखती रही
मैं देखना चाहती थी कि क्या अशोक अपने आप भी किसी बात का जिक्र करते है या नहीं । अशोक ने पूरा नाश्ता खत्म किया लेकिन उनके मुहँ से ना कल रात ना ही उस टेलेफ़ोन के बारे मे एक भी शब्द निकला । नाश्ता करते ही अशोक ने अपना ऑफिस वाला बैग उठाया और जाने लगे , मैंने ही अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उन्हे पीछे से टोका -
मैं - " आराम से जाना और शाम को जल्दी घर लौटना !"
अशोक ने पीछे मुड़कर मेरी देखा और बोले - " हम्म , ठीक है । ख्याल रखना । "
इसके बाद अशोक चले गए , मुझे भी मन मे थोड़ी खुशी हुई कि चलो कुछ तो बोले । इसके बाद मैं रोज की तरह नहाने चली गई और नहाकर एक अच्छी सी साड़ी पहन ली ,
मगर ज्यादा मेक-अप नहीं किया क्योंकि मुझे बाहर भी जाना था और मैं नहीं चाहती थी कि मोहल्ले के नाकारा , मवाली लोग मेरी चुचियों और भारी नितम्बों पर अपनी जहरीली नजर डाले और मुझे पर भद्दी और अश्लील टिप्पणियाँ कसे । कल ही मैं उनकी अभद्रता से बोहोत लज्जित हो गई थी और ऊपर से गुप्ता जी जो पहले से ही मेरे हुस्न के दीवाने थे वो तो मुझे उस लिबास मे देखकर इतने पागल ही हो गए थे कि बस मे ही उन्होंने ने मुझे ऊपर से बे-लिबास कर दिया था और मेरे होंठों का रस चूसा था यहाँ तक कि उन्होंने किसी की परवाह कीये बिना ही बस के अन्दर ही मेरी भारी भरकम कोमल चुचियों का दूध भी निचोड़ लिया और उसे पी गए । मैं नहीं चाहती कि नितिन भी ऐसे ही बेकाबू हो जाए और मुझे वहीं पर होटल मे गेरकर लूट ले और इस बार कोई ओर तो क्या मैं खुद भी अपने आप को बचा ना पाऊँ ।
" आह .... ये सब क्या सोचने लग गई मे भी " इतनी कामोत्तेजक बाते सोचकर ही , मैं साँसे तेज हो गई । मैंने इन सब बातों से खुद का ध्यान हटाया तो याद आया कि मेरा ब्लाउज और पेटीकोट जो गुप्ता जी को मैंने सिलने दिया था वो भी तो लाना है मगर मैं गुप्ता जी की दुकान जाऊँ तो जाऊँ कैसे ? अब तो गुप्ता जी का सामना मुझसे हो नहीं पाएगा , मगर मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा । काफी देर इस बारे मे सोचने के बाद मेरे दिमाग मे एक युक्ति आई ....। मैंने सोच क्यूँ ना गुप्ता जी के घर वरुण को भेज दूँ , उनकी दुकान वरुण के घर के पास ही है । वरुण अगर गुप्ता जी के घर जाएगा तो वो कुछ कर भी नहीं पायेंगे । यही सोचकर मैंने सीमा जी ( वरुण की मम्मी) के पास फोन मिलाया ..।
मैं - हैलो सीमा जी , नमस्ते ।
सीमा जी - हैलो पदमा नमस्ते । कैसी हो ?
मैं - मैं अच्छी हूँ , आप बताइए कैसी है ?
सीमा जी - मैं भी ठीक हूँ और बताओ कहाँ रहती हो आजकल अब तुमने हमारे घर आना ही छोड़ दिया ।
मैं - नहीं सीमा जी ऐसी कोई बात नहीं बस वक्त मिलते ही आ जाऊँगी । अच्छा सुनिए मुझे आपसे एक काम था ।
सीमा जी - हाँ कहो पदमा ।
मैं - वो मैंने कुछ कपड़े गुप्ता जी के पास सिलने के लिए दिए थे ... मुझे आज एक जरूरी काम से बाहर जाना है तो क्या आप वरुण से कहकर वो कपड़े मँगा सकती है ?
सीमा जी - हाँ ,,,,हाँ ,,,, पदमा ये तो कोई बड़ी बात नहीं , मैं वरुण को बोल दूँगी वो तुम्हारे घर दे आएगा ।
मैं - ओह थैंक यू सो मच सीमा जी ।
सीमा जी - कोई बात नहीं पदमा तुम आराम से अपना काम कर लो ।
इसके बाद मैंने फोन रख दिया और नितिन से मिलने के लिए होटल ग्रीन-सी चली गई ।