08-02-2023, 10:17 PM
मैं - नितिन ...... । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कौन सही है ? कौन गलत ?
नितिन - तुम मुझ पर भरोसा करो पदमा, मैं कल तुम्हारे घर आकर तुम्हें सब समझा दूँगा ।
जैसे ही नितिन ने घर आने की बात कही मैं घबरा गई । मैं जान गई थी कि नितिन घर आकर मेरे साथ जरूर कुछ ना कुछ ऐसा करेगा जिससे मैं अपने आप को खो दूँगी ।
मैं - नहीं ..... नहीं ..... नितिन , तुम यहाँ मत आना । मुझे थोड़ा टाइम दो मैं अशोक से बात करूंगी ...... उसके बाद ही मैं किसी सही निर्णय तक पहुँच सकूँगी ।
नितिन( थोड़ा हँसते हुए) - ठीक है , ठीक है ...। तुम घबराओ मत मैं नहीं आऊँगा । तुम अशोक से बात कर लेना और सुनो तुम्हें उससे किसी भी तरह से फाइल के बारे मे बात करनी ही होगी तभी तुम उसका सही रूप देख पाओगी ।
मैं ( थोड़ी राहत से ) - हम्म ठीक है । वैसे क्या तुम अभी-भी शहर से बाहर हो ?
नितिन - हाँ कल आऊँगा थोड़े टाइम के लिए । अच्छा तो चलो मे चलता हूँ कल कल करूंगा ,,,,, बाय ।
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया और बस फोन कट कर दिया और कितनी ही देर तक नितिन की बातों को याद करती रही , सोचती रही कि क्या बात करूंगी अशोक से ।
रात के लगभग 8 बजे मैं और अशोक दौनों डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे । अशोक अपने खाने मे लगे हुए थे और मैं इस उधेड़-बुन मे थी कि अशोक से नितिन और फाइल के बारे मे बात करूँ तो कैसे ? मुझे याद है जब अशोक उस फाइल को लेकर घर आए थे तभी वो कुछ परेशान से लग रहे थे और जब उनसे मैंने नितिन के बारे मे बात की थी तो वे बोहोत ही विचलित से गए थे और फिर कल भी अशोक , रफीक से उस फाइल के बारे मे बात कर रहे थे और उनकी बातों से साफ जाहिर था कि 'दाल मे कुछ तो काला है' । काफी देर तक सोचने के बाद भी मैं हिम्मत नहीं कर पा रही थी कुछ कहने की । फिर आखिर मे मैंने एक बहाने से अशोक से बात शुरू की ......।
मैं - .... आज आप बोहोत थके-थके से लग रहे है ,, काम कुछ ज्यादा है क्या ऑफिस मे ?
अशोक - अरे हाँ वो बस .... थोड़ा ज्यादा ही हो गया है आजकल ।
मैं - हाँ ... अब तो आप ग्रुप हेड है .... पहले नितिन था उसे भी ऐसे ही करना पड़ता होगा ।
अशोक ने नितिन का नाम सुनकर खाना , खाते हुए मेरी ओर देखा और फिर रुक गए फिर बोले - " नितिन तो बेवकूफ था ..... अगर अपना काम सही से करता तो आज यहाँ ही ना होता कम्पनी मे । "
मैं - हम्म । वैसे आप कह रहे थे कि वो वापस आ जाएगा , कब आ रहा है वो ?
अशोक(माथे पर शिकन के साथ) - तुम ये नितिन की बात लेकर क्योँ बैठ गई ? आ जाएगा ..... नहीं भी आएगा तो भी क्या फ़र्क पड़ता है ?
अशोक की बातों से उसकी नितिन के प्रति कड़वाहट साफ झलक रही थी ।
मैं - नहीं ऐसी बात नहीं है ,,,, मैं तो बस एसे ही पूछ रही थी कि अगर वो कभी फिर से फाइल लेने आए तो ........ ?
अशोक ( बीच मे ही )- फाइल ? कौन सी फाइल ? ........ वो फाइल । नहीं बिल्कुल नहीं उसे कोई फाइल देने की जरूरत नहीं है .... और वो फाइल जो मैंने तुम्हें रखने को दी थी वो तो बिल्कुल नहीं ।
मैं - ठीक है ...। मैं तो इसलिए बोल रही थी क्योंकि अपने ही उसे पहली बार घर भेज था फाइल लेने के लिए ।
अशोक ( उसी गंभीरता से) - हाँ तो ... अब मैं ही मना कर रहा हूँ । नितिन को अब घर मे घुसने भी मत देना ।
अशोक के इस बदले हुए व्यवहार से मैं भी चौंक गई और समझ नहीं आया कि आखिर अशोक, नितिन से इतने नाराज क्यों है ?
मैं - अच्छा ठीक है गुस्सा क्यों कर रहे हो ? ऐसा क्या हो गया नितिन के साथ ?
अशोक ( और भी भारी आवाज मे )- देखा पदमा .... मेरा दिमाग उस नितिन के बच्चे का नाम सुनते ही खराब हो जाता है । बेहतर होगा कि तुम उसका नाम मेरे सामने फिर ना लो ।
मैंने अशोक की बात सुनी और हाँ मे सर हिलाया ।
मैं - जी ठीक है ..... वैसे क्या वो फाइल बोहोत ज्यादा जरूरी है मेरा मतलब अगर नितिन उसे लेना चाहे तो .......?
अशोक ( जोर से अपनी कुर्सी से उठते हुए ) - क्या तुम्हारा दिमाग ठिकाने पर नहीं है पदमा ? मैंने तुम्हें कहा ना कि मुझे उसका नाम नहीं सुनना और रही फाइल की बात तो वो तो नितिन को तो क्या किसी को भी मत देना मुझसे बिना पूछे ।
अशोक तो मुझ पर एकदम से चिल्ला ही पड़े , वो ऐसे तो आजतक कभी गुस्सा नहीं हुए थे पर आज नितिन की बात सुनते ही उनका ऐसा रूप देखने को मिलेगा , मैंने सोच नहीं था । अशोक के ऐसे चिल्लाने से मैं तो डर ही गई ,
मगर साथ मे मुझे ये भी शक हो गया कि नितिन की बात मे कुछ ना कुछ सच्चाई तो है तभी अशोक ऐसे भड़क गए । मैंने थोड़ा डरते हुए अशोक से पूछा - " आप इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो ?"
अशोक - गुस्सा दिलाने वाली बात करती हो और पूछती हो गुस्सा क्यूँ हो रहा हूँ ।
मैं - मैं तो बस पूरी बात जानना चाहती थी ।
अशोक - कोई जरूरत नहीं है , जितना जानती हो बोहोत है ।
इतना कहकर अशोक डाइनिंग टेबल से चले गए और सीधे बेडरूम मे चले गए । मैं डरी सहमी सी कितनी ही देर वहाँ डाइनिंग टेबल पर बैठी रही फिर मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती से अशोक को कुछ ज्यादा ही गुस्सा दिला दिया , शायद मुझे उनसे इतनी बात नहीं कहनी चाहिए थी , मुझे उन्हे मनाना चाहिए । मैंने जल्दी से अपना बाहर का काम खत्म किया और बेडरूम मे चली गई । बेडरूम के अन्दर अशोक बेड पर लेटे हुए थे ,उनकी आँखे खुली थी मगर उन्होंने एक बार भी मेरी ओर नहीं देखा मैं चुपचाप उनके बेड एक पास गई ओर लेट गई , मगर कुछ बोली नहीं । जब कुछ देर तक हम दोनों शांत बेड पर लेटे रहे तो मैं खुद ही मुस्कुराते हुए अपनी जगह से उठी ओर अपना हाथ अशोक की छाती पर रखते हुए उनके सीने पर लेट गई , लेकिन अशोक ने कुछ नहीं कहा और ना ही कुछ किया फिर मैंने ही उस कमरे मे पसरे मौन व्रत को तौड़ा ..
मैं - नाराज हो मुझसे ...... ?
मेरी बात सुनकर भी अशोक पर कोई असर नहीं हुआ उल्टा उन्होंने मेरा हाथ अपने सीने से हटा दिया और " रात बोहोत हो गई है सो जाओ" कहकर मेरी तरफ से मुहँ फेरकर अपनी पीठ मेरी ओर करके लेट गए । अशोक की इस बेरुखी से मेरी आँखों मे आँसू आ गए वो तो इतनी बेरुखी से मुहँ फेरकर लेट गए जैसे मैंने कोई बोहोत बड़ा पाप कर दिया हो । मैं अपने बिस्तर से उठकर बैठ गई ,, और समझने की कोशिश करने लगी कि , मुझसे ना जाने कहाँ गलती हो गई , मैंने क्या गलत किया या फिर गलत अशोक ही है । मैंने दोबारा अशोक की तरफ देखा तो वो आँखे बन्द कीये सो रहे थे मैं भी थोड़ी देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद अपनी भीगी पलको के साथ बिस्तर पर लेट गई ।