08-02-2023, 09:45 PM
11." नहीं नहीं ये मुझसे क्या हो गया ....॥"
" ये मैंने क्या कर दिया ... हे भगवान ! "
" मैं कैसे अशोक का सामना करूँगी । "
"अपने कामुक बदन की आग मे अन्धी होकर मैं कितना बड़ा पाप कर बैठी..।"
अपने घर के अन्दर दरवाजे के पास खड़ी मैं अपनी की हुई करतूत पर अपने आप को धिक्कार रही थी ।
" ये मुझे क्या होता जा रहा है ....?"
" ये सब मर्द मुझे मेरी मर्यादा के मार्ग से भटकाने के लिए क्योँ मेरे पीछे पड़े है ....?"
" आज तो गुप्ता जी ने मुझे बस मे कह भी दिया था कि वो तो मुझे बर्बाद ही करना चाहते है ..., फिर भी , मैंने कैसे उनका वो .........।..।"
" नहीं ...... नहीं ....... ये काम तो मैंने कभी अशोक के साथ भी नहीं किया और गुप्ता जी तो फिर भी एक 50 वर्षीय बूढ़े मर्द है ...। "
" बूढ़े .......? ह् खाक बूढ़े है .... उनके लिंग का तवान और लम्बाई देखकर तो ऐसा लगता है जैसे किसी 25-26 साल के नौजवान का लिंग है । "
" नहीं नहीं ....... ये मैं भी क्या सोचने लगी ..... फिर से नहीं ...... । "
अभी भी मैं अपने मन को बोहोत डाँट रही थी लेकिन फिर भी रह रहकर गुप्ता जी के उस लंबे लिंग का ध्यान मेरे दिमाग से निकल नहीं रहा था । गुप्ता जी के लिंग की परछाई मे दिलों दिमाग पर ऐसी छाई थी कि मैं चाहकर भी उसे भूल नहीं पा रही थी ।
जब भी मैं उस लम्हे को याद करती जब मैंने खुद झुककर गुप्ता जी का वो लम्बा काला मोटा लिंग अपने नाजुक गुलाबी होंठों मे लिया था तो मेरा रोम रोम मे जिस्म से उखड़ जाता । अपने जिस्म मे दिन पर दिन आने वाले बदलाव से मैं खुद भी हैरान हो रही थी ...।
"ये सब कब रुकेगा ..? "
"अब तो मुझे अपने पर से भरोसा ही उठने लगा है , कही किसी दिन मैं अपने इस जिस्म की गर्मी की गुलाम होकर अपनी सारी हदे ही ना तोड़ दूँ ? अगर ऐसा हुआ ना तो मेरे पास डूबकर मरने के अलावा कोई चारा नहीं होगा । "
कितनी ही देर तक तो मैं अपनी आज गुप्ता जी के साथ की हुई हरकतों पर पछताती रही
, लेकिन अब समय तेजी से बीत रहा था । रात होने को आई थी और अशोक के घर आने का समय हो चला था , मुझे रात के खाने की तैयारी भी करनी थी । इसलिए मैं अपने मन को शांत करते हुए पहले बाथरूम मे गई और सबसे पहले अपनी पेन्टी जो मेरे चुतरस से बिल्कुल भीग चुकी थी को निकाला और फिर दूसरी साफ पेन्टी पहन ली
उसके बाद मैंने अपने चेहरे को अच्छे से धोया और गुप्ता जी के लिंग का स्वाद अपने मुहँ से निकालने के लिए कई बार कुल्ला भी किया ।
पानी से अपनी सफाई करने से मैंने गुप्ता जी के लिंग का स्वाद तो अपने मुहँ से निकाल दिया लेकिन अपने दिमाग और मन से मैं आज की घटना को कैसे दूर करूंगी और अगर करना भी चाहूँ तो गुप्ता जी मुझे ऐसा करने नहीं देंगे , वो कभी इस बात को ना खुद भूलेंगे ना ही मझे भूलने देंगे ।
7 बजे मैं कीचेन मे खाना बना रही थी , मगर मेरा मन खुद से ही बात करने मे लगा था तभी दरवाजे की घण्टी बजी और मेरे कान खड़े हो गए और घबराहट के मारे दिल की धड़कने भी बढ़ गई । मैं जान गई थी के ये अशोक ही है ..... मगर दरवाजा खोलकर अशोक के सामने आने से मैं कतरा रही थी । मैंने कितनी ही देर कीचन मे लगा दी और तब तक डॉर बेल 2 बार बज चुकी थी फिर मैंने जल्दी से अपने कदम गेट की ओर बढ़ाए और खुद को नॉर्मल करते हुए दरवाजा खोला ...।
अशोक मुझे सामने देख मुस्कुराये और अन्दर आकर मुझे हग करते हुए बोले - " कैसी हो बीवी जी .... आज सुबह तो तुम्हारा मूड बोहोत ऑफ था बोलो ठीक हुआ या नहीं । "
मैं धीरे से अशोक से अलग हुई और उसे कहा - " मैं ठीक हूँ .... आप आइये ..... । "
फिर मैं और अशोक अन्दर हॉल मे आ गए । अशोक सोफ़े पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान उतारने लगे और मैं कीचेन मे जाकर उनके लिए पानी लेकर आई । अशोक ने पानी पिया और फिर मेरे चेहरे की ओर देखकर कहा - " क्या हुआ पदमा ? तुम कुछ परेशान सी लग रही हो ?"
अशोक ने मेरे चेहरे के हाव-भाव को पढ़ लिया था । अशोक को मुझ पर कुछ शक ना हो जाए इसलिए मैंने अपने चेहरे पर थोड़ी मुस्कुराहट लाते हुए अशोक से कहा - " नहीं ... नहीं .... एसी कोई बात नहीं बस वो आज जरा बैंक गई थी ना तो वहाँ कुछ ज्यादा ही समय लग गया और थोड़ी थकान सी हो गई । "
अशोक - ओह अच्छा ..... मैं तो भूल ही गया था उस बारे मे वैसे क्या कहा है बैंक मैनेजर ने ?
मैं - कुछ नहीं बस कुछ डॉक्यूमेन्ट सबमिट करने थे अब बस कुछ दिनों बाद एक बार जाके रि-कनफ़र्म करना पड़ेगा की सब ठीक है क्या ।
अशोक - चलो तो अच्छा है ... बस तुम जल्दी से खाना बना लो फिर आराम कर लेना आज तुम बोहोत थक गई होगी ।
मैं - खाना तो तैयार है ... आप बस फ्रेश हो जाइए , मैं लगती हूँ ।
अशोक - ओके माइ डार्लिंग ।
ऐसा कहते हुए अशोक उठे और मेरे पास आकर अपने हाथों से मेरे चेहरे को पकड़कर पहले मेरे माथे पर अपने होंठों से चूमा और फिर गाल पर चूमा ।
और इसके बाद फ्रेश होने बाथरूम मे चले गए और मैं किचन मे ।
किचन मे खाना लगाते हुए मैं ये सोचने लगी कि "भला कितना प्यारा पति मिला है मुझे और मैंने आज उसे ही धोका दे दिया , वो भी एक 50 साल के आदमी के साथ । लेकिन मैं भी क्या करूँ मैं भी तो एक औरत हूँ आखिर मेरे भी तो कुछ अरमान है अगर वो अशोक पूरा नहीं कर पा रहा तो ये उसकी गलती है मेरी नहीं ,,,,,,
नहीं नहीं मैं ये सोच भी कैसे सकती हूँ अशोक ने तो मेरे लिए कितना कुछ किया , मुझे दूसरे मर्दों से उसकी तुलना नहीं करनी चाहिए , वो मेरे पति है और मेरे लिए सब कुछ है । "
थोड़ी ही देर मे अशोक फ्रेश होकर वापस हॉल मे आ गए , तब तक मैंने भी खाना लगा दिया था । उसके बाद मैंने और अशोक ने एक साथ मिलकर खाना खाया , अशोक बीच-बीच मे बात करते रहे लेकिन मेरा मन अब उनकी बातों मे नहीं था । जब हमारा खाना खत्म हो गया तो मैं डाइनिंग टेबल से बर्तन हटाने लगी और उन्हे कीचेन मे रख दिया इसी बीच अशोक ने मुझे पीछे से आवाज दी -
अशोक - पदमा !
मैं अशोक की आवाज सुनकर पीछे घूमी और पूछा - " कहिए ..... ?"
अशोक - तुम्हारा कमर-बन्द कहाँ है ?
अशोक का सवाल सुनकर मेरे होश उड़ गए ,,गुप्ता जी ने बस मे मेरे जिस्म से खिलवाड़ करते हुए मेरा कमर-बन्द उतार लिया था और फिर जल्दी-जल्दी मे बस से उतरने के चक्कर मे, मैं उनसे वो लेना भी भूल गई , लेकिन अब अशोक का सवाल सुनकर मुझे अपने कमरबंद की याद आई । अशोक के सामने सामान्य रहने का ढोंग करते हुए मैंने कहा - " वो ... वो आज गलती से काम करते हुए निकल गया था और फिर उसे पहनने का वक्त ही नहीं लगा । "
अशोक - अच्छा ...., चलो तो मैं सोने जा रहा हूँ तुम भी अपना काम खत्म करके जल्दी आ जाना ।
मैं - जी ठीक है ।
" ये मैंने क्या कर दिया ... हे भगवान ! "
" मैं कैसे अशोक का सामना करूँगी । "
"अपने कामुक बदन की आग मे अन्धी होकर मैं कितना बड़ा पाप कर बैठी..।"
अपने घर के अन्दर दरवाजे के पास खड़ी मैं अपनी की हुई करतूत पर अपने आप को धिक्कार रही थी ।
" ये मुझे क्या होता जा रहा है ....?"
" ये सब मर्द मुझे मेरी मर्यादा के मार्ग से भटकाने के लिए क्योँ मेरे पीछे पड़े है ....?"
" आज तो गुप्ता जी ने मुझे बस मे कह भी दिया था कि वो तो मुझे बर्बाद ही करना चाहते है ..., फिर भी , मैंने कैसे उनका वो .........।..।"
" नहीं ...... नहीं ....... ये काम तो मैंने कभी अशोक के साथ भी नहीं किया और गुप्ता जी तो फिर भी एक 50 वर्षीय बूढ़े मर्द है ...। "
" बूढ़े .......? ह् खाक बूढ़े है .... उनके लिंग का तवान और लम्बाई देखकर तो ऐसा लगता है जैसे किसी 25-26 साल के नौजवान का लिंग है । "
" नहीं नहीं ....... ये मैं भी क्या सोचने लगी ..... फिर से नहीं ...... । "
अभी भी मैं अपने मन को बोहोत डाँट रही थी लेकिन फिर भी रह रहकर गुप्ता जी के उस लंबे लिंग का ध्यान मेरे दिमाग से निकल नहीं रहा था । गुप्ता जी के लिंग की परछाई मे दिलों दिमाग पर ऐसी छाई थी कि मैं चाहकर भी उसे भूल नहीं पा रही थी ।
जब भी मैं उस लम्हे को याद करती जब मैंने खुद झुककर गुप्ता जी का वो लम्बा काला मोटा लिंग अपने नाजुक गुलाबी होंठों मे लिया था तो मेरा रोम रोम मे जिस्म से उखड़ जाता । अपने जिस्म मे दिन पर दिन आने वाले बदलाव से मैं खुद भी हैरान हो रही थी ...।
"ये सब कब रुकेगा ..? "
"अब तो मुझे अपने पर से भरोसा ही उठने लगा है , कही किसी दिन मैं अपने इस जिस्म की गर्मी की गुलाम होकर अपनी सारी हदे ही ना तोड़ दूँ ? अगर ऐसा हुआ ना तो मेरे पास डूबकर मरने के अलावा कोई चारा नहीं होगा । "
कितनी ही देर तक तो मैं अपनी आज गुप्ता जी के साथ की हुई हरकतों पर पछताती रही
, लेकिन अब समय तेजी से बीत रहा था । रात होने को आई थी और अशोक के घर आने का समय हो चला था , मुझे रात के खाने की तैयारी भी करनी थी । इसलिए मैं अपने मन को शांत करते हुए पहले बाथरूम मे गई और सबसे पहले अपनी पेन्टी जो मेरे चुतरस से बिल्कुल भीग चुकी थी को निकाला और फिर दूसरी साफ पेन्टी पहन ली
उसके बाद मैंने अपने चेहरे को अच्छे से धोया और गुप्ता जी के लिंग का स्वाद अपने मुहँ से निकालने के लिए कई बार कुल्ला भी किया ।
पानी से अपनी सफाई करने से मैंने गुप्ता जी के लिंग का स्वाद तो अपने मुहँ से निकाल दिया लेकिन अपने दिमाग और मन से मैं आज की घटना को कैसे दूर करूंगी और अगर करना भी चाहूँ तो गुप्ता जी मुझे ऐसा करने नहीं देंगे , वो कभी इस बात को ना खुद भूलेंगे ना ही मझे भूलने देंगे ।
7 बजे मैं कीचेन मे खाना बना रही थी , मगर मेरा मन खुद से ही बात करने मे लगा था तभी दरवाजे की घण्टी बजी और मेरे कान खड़े हो गए और घबराहट के मारे दिल की धड़कने भी बढ़ गई । मैं जान गई थी के ये अशोक ही है ..... मगर दरवाजा खोलकर अशोक के सामने आने से मैं कतरा रही थी । मैंने कितनी ही देर कीचन मे लगा दी और तब तक डॉर बेल 2 बार बज चुकी थी फिर मैंने जल्दी से अपने कदम गेट की ओर बढ़ाए और खुद को नॉर्मल करते हुए दरवाजा खोला ...।
अशोक मुझे सामने देख मुस्कुराये और अन्दर आकर मुझे हग करते हुए बोले - " कैसी हो बीवी जी .... आज सुबह तो तुम्हारा मूड बोहोत ऑफ था बोलो ठीक हुआ या नहीं । "
मैं धीरे से अशोक से अलग हुई और उसे कहा - " मैं ठीक हूँ .... आप आइये ..... । "
फिर मैं और अशोक अन्दर हॉल मे आ गए । अशोक सोफ़े पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान उतारने लगे और मैं कीचेन मे जाकर उनके लिए पानी लेकर आई । अशोक ने पानी पिया और फिर मेरे चेहरे की ओर देखकर कहा - " क्या हुआ पदमा ? तुम कुछ परेशान सी लग रही हो ?"
अशोक ने मेरे चेहरे के हाव-भाव को पढ़ लिया था । अशोक को मुझ पर कुछ शक ना हो जाए इसलिए मैंने अपने चेहरे पर थोड़ी मुस्कुराहट लाते हुए अशोक से कहा - " नहीं ... नहीं .... एसी कोई बात नहीं बस वो आज जरा बैंक गई थी ना तो वहाँ कुछ ज्यादा ही समय लग गया और थोड़ी थकान सी हो गई । "
अशोक - ओह अच्छा ..... मैं तो भूल ही गया था उस बारे मे वैसे क्या कहा है बैंक मैनेजर ने ?
मैं - कुछ नहीं बस कुछ डॉक्यूमेन्ट सबमिट करने थे अब बस कुछ दिनों बाद एक बार जाके रि-कनफ़र्म करना पड़ेगा की सब ठीक है क्या ।
अशोक - चलो तो अच्छा है ... बस तुम जल्दी से खाना बना लो फिर आराम कर लेना आज तुम बोहोत थक गई होगी ।
मैं - खाना तो तैयार है ... आप बस फ्रेश हो जाइए , मैं लगती हूँ ।
अशोक - ओके माइ डार्लिंग ।
ऐसा कहते हुए अशोक उठे और मेरे पास आकर अपने हाथों से मेरे चेहरे को पकड़कर पहले मेरे माथे पर अपने होंठों से चूमा और फिर गाल पर चूमा ।
और इसके बाद फ्रेश होने बाथरूम मे चले गए और मैं किचन मे ।
किचन मे खाना लगाते हुए मैं ये सोचने लगी कि "भला कितना प्यारा पति मिला है मुझे और मैंने आज उसे ही धोका दे दिया , वो भी एक 50 साल के आदमी के साथ । लेकिन मैं भी क्या करूँ मैं भी तो एक औरत हूँ आखिर मेरे भी तो कुछ अरमान है अगर वो अशोक पूरा नहीं कर पा रहा तो ये उसकी गलती है मेरी नहीं ,,,,,,
नहीं नहीं मैं ये सोच भी कैसे सकती हूँ अशोक ने तो मेरे लिए कितना कुछ किया , मुझे दूसरे मर्दों से उसकी तुलना नहीं करनी चाहिए , वो मेरे पति है और मेरे लिए सब कुछ है । "
थोड़ी ही देर मे अशोक फ्रेश होकर वापस हॉल मे आ गए , तब तक मैंने भी खाना लगा दिया था । उसके बाद मैंने और अशोक ने एक साथ मिलकर खाना खाया , अशोक बीच-बीच मे बात करते रहे लेकिन मेरा मन अब उनकी बातों मे नहीं था । जब हमारा खाना खत्म हो गया तो मैं डाइनिंग टेबल से बर्तन हटाने लगी और उन्हे कीचेन मे रख दिया इसी बीच अशोक ने मुझे पीछे से आवाज दी -
अशोक - पदमा !
मैं अशोक की आवाज सुनकर पीछे घूमी और पूछा - " कहिए ..... ?"
अशोक - तुम्हारा कमर-बन्द कहाँ है ?
अशोक का सवाल सुनकर मेरे होश उड़ गए ,,गुप्ता जी ने बस मे मेरे जिस्म से खिलवाड़ करते हुए मेरा कमर-बन्द उतार लिया था और फिर जल्दी-जल्दी मे बस से उतरने के चक्कर मे, मैं उनसे वो लेना भी भूल गई , लेकिन अब अशोक का सवाल सुनकर मुझे अपने कमरबंद की याद आई । अशोक के सामने सामान्य रहने का ढोंग करते हुए मैंने कहा - " वो ... वो आज गलती से काम करते हुए निकल गया था और फिर उसे पहनने का वक्त ही नहीं लगा । "
अशोक - अच्छा ...., चलो तो मैं सोने जा रहा हूँ तुम भी अपना काम खत्म करके जल्दी आ जाना ।
मैं - जी ठीक है ।