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Adultery शर्मिली भाभी
026...

रश्मी की गांड़ मारने की तुषार की बहुत इच्छा थी लेकिन इससे पहले वो उसे अपने मोटे लंड़ के लिये तैयार करना चाहता था। कुछ देर तक उसकी गांड़ के छेद में अपनी उंगली रगड़्ने के बाद वो हौले से अपनी पहली उंगली को थोड़ा सा धक्का देते हुए उसकी गांड़ मे घुसा देता है और धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगता है।


गांड़ में तुषार की उंगली और चूत में उसका लंड़ अपने दोनों छेदों की इस तरह से एक साथ चुदाई से रश्मी इससे एकदम बदहवास हो जाती है और वो तुषार को जोर से भींच लेती है और उसे ताबड़ तोड़ चूमने लगती है। उसे ऐसा लगा कि अब वो झड़ जायेगी। तुशार तेजी से उसकी गांड़ में उंगली से अंदर बाहर करने लगता है।थोडी देर तक इसी तरह अपनी उंगली अन्दर बाहर करने के बाद वो अपनी उंगली को थोडा और अंदर धक्का देता है, और अपनी आधी उंगली उसकी गांड़ में घुसा देता है।और गांड़ में ही उसे हिलाने लगता है। कुछ देर तक अपनी आधी उंगली उसकी गांड़ मे रखने के बाद वो एक और धक्का देता है और अब उसकी पूरी उंगली ही उसकी गांड़ मे समा जाती है।


अब तुषार अपनी पूरी की पूरी उंगली ही उसकी गांड़ मे अंदर बाहर करने लगता है, रश्मी जैसे अपना आपा खो बैठती है और अपनी कमर को जोर जोर से हीलाने लगती है और वो तुशार को बुरी तरह से अपनी बाहों में जकड़ लेती है।आज तो तुशार जैसे जन्नत की सैर कर रहा था । रश्मी की चूत में उसका लन्ड़ उसकी छाती तुषार के मुंह में और रश्मी की गांड़ मे तुषार की उंगली उसकी तो जैसे पांचो उंगलियां घी में थी।


लग्भग दस मीनट तक रश्मी को इसी तरह से चोदने के बाद वो फ़िर से रश्मी को लिटा देता है और खुद उसके नंगे जिस्म पर लुड़क जाता है। तुषार अपने जिस्म की हवस तो रश्मी के नंगे जिस्म से मिटा रहा था लेकिन उसके दिमाग में भी वासना की हवस भरी हुई थी और इसी लिये वो अब रश्मी के साथ कामुक बातें करना चाहता था। रश्मी की चूत में लंड़ डालने से उसके शरीर को आराम मिल रहा था और उसके लंड़ की प्यास बुझ रही थी लेकिन कामुक बातें करने से उसके दिमाग को सुकुन मिल रहा था । तुषार रश्मी से कहता है बहुत खूबसूरत नंगी हो तुम रश्मी, तेरा ऐसा नंगा जवान जिस्म पाकर तो मैं धन्य हो गया । वो प्रतुत्तर में कुछ नहीं कहती के हूं कह के रह जाती है लेकिन तुषार अपनी बात कहना जारी रखता है:-


तुषार : अब रोज ड़ालुंगा तेरे अंदर डार्लिग, बोलो दोगी न रोज डालने के लिये?

रश्मी : ऊउउउउउउउउउउउउउउउउउउं

तुषार : क्या ऊउउउउं ? बोलो न कुछ अपने मुंह से

रश्मी : हां

तुषार : अरे ऐसे नही फुरा बोलो " हां मै रोज डालने दूंगी" बोलो न ऐसा प्लीज।

रश्मी : मुझे शरम आती है मैं नही बोल सकती।

तुशार : अब क्या शरमाना ? मेंरा पूरा लंड़ आधे घंटे से तेरी चूत में घुसा हुआ है , और फ़िर खाली मुझे ही तो कहना है और कौन सुनेगा तेरी बात को? अब बोल दो प्लीज। मेंरे कान तरस रहे है ये सुनने के लिये तेरे मुंह से।

रश्मी थोड़ी ना नुकुर और शरमाने के बाद) हां मै रोज डालने दूंगी।

तुषार : कभी मना तो नहीं करोगी?

रश्मी : कभी मना नहीं करुंगी , तुम्हारी जब मरजी हो ड़ाल लेना?

तुषार : जब मर्जी हो तभी? याने ?

रश्मी : जब मर्जी याने " जब मर्जी" जब तुम कहोगे तुमको ड़ालने दूंगी कभी मना नहीं करुंगी।

तुषार : क्या ड़ालने दोगी?

रश्मी : जो तुम्हारी इच्छा हो।

तुषार : जैसे?

रश्मी : जो अभी ड़ाल के रखा हुआ है।

तुषार : क्या ड़ाल के रखा हुआ है?

रश्मी : (उसकी पीठ पर चपत लगाती हुई तनिक जोर से कहती है) ऊउउउउउउउउउउउउउउउउउउउं

तुषार : फ़िर वो ही बात , बोलो न क्या ड़ाल के रखा हुआ है?

रश्मी : मुझे नहीं पता

त्षार : देखो,, मजाक मत करो बोलो न क्या ड़ाल के रखा हुआ है?

रश्मी : सच मुझे नहीं पता इसका नाम।

तुषार : अच्छा!!! लो मैं बताता हूं इसका नाम । इसे "लंड़" कहते है रश्मी जो अभी तेरे अंदर मैंने

डाल रखा हुआ है। अब बोलो।

रश्मी : नहीं नहीं मैं नही बोल सकती।

तुषार : (रश्मी की गांड़ में हल्की चपत लगाते हुए) बोओओओओल प्लीज।

रश्मी: (थोड़ा हुचकते और शरमाते हुए) मैं तुमको रोज ल्ल्ल्ल्लंड़ ड़ालने दूंगी कभी मना नहीं करुंगी।

तुषार : कहां ड़ालने दोगी लंड़ को?

रश्मी : (तनिक गुस्से से) तुम भी न, मैं और नहीं बोलूंगी

तुषार : (प्यार से) बोल न प्लीज, अब ये मत बोलना तुझे ये भी नहीं पता की मैंने कहां ड़ाल के रखा हुअ है? ले मैं उसका भी नाम बता देता हुं उसेको "चूत" कहते हैं रश्मी जहां मेंरा लंड़ घुसा हुआ है अभी।

रश्मी फ़िर थोड़ा हुचकते और शरमाते हुए) मैं रोज तुमको ल्ल्ल्लंड़ च्च्च्च्च्चूत में ड़ालने दूंगी कभी मना नही करुंगी।

तुषार : और पिछे?

रश्मी : अब मैं और कुछ नहीं बोलुंगी जो बोलना था सो बोल दिया?


तुषार उस्स्को और परेशान नहीं करता और उसको चूमने लगता है। दरासल वो ये चाहता था कि तन के साथ रश्मी उसके साथ मन से भी खुल जाय तो उसे चोदने में और भी मजा आयेगा।


वो फ़िर से अपने धक्के तेज कर देता है और रश्मी की बुर में अपना लंड़ पेलने लगता है। कुछ देर तक अपना लंड़ रश्मी की बुर में पेलने के बाद अचानक रश्मी जोर से तुषार को पकड़ लेती है फ़िर एकदम से निढाल पड़ जाती है और अपने दोनों हाथों को सर के उपर ले जा कर ढीला छोड़ देती है और अपना सर एक तरफ़ लुड़का देती है। उसकी आंखो में आंसू की बुंदे टपक जाती है। कई महिनों के बाद दमित इच्छा पूरी होने से खुशी के मारे उसकी आंखों से आंसू निकल जाते हैं।
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तुषार भी उसे देख कर समझ जातान है की अब ये झड़ चुकी है। कुछ ही क्षणों मे वो तुषार से कहने लगती है प्लीज अब बस करो छोड़ दो मुझे । तुषार भी काफ़ी थक चुका था वो रश्मी को जोर से भींच कर अपने धक्के तेज कर देता है और उसे तेजी से चोदने लगता है। कुछ ही क्षणों में उसका वीर्य भी बाहर आने लगता है, जैसे ही वो स्खलित होता है वो अपना लंड़ तुरंत रश्मी की चूत से बाहर निकालता है और रश्मी का हाथ पकड़ कर अपना लंड़ रश्मी के हाथ में रख देता है और उसे हिलाने लगता है। कुछ ही क्षणों में उसके लंड़ से वीर्य की एक पिचकारी निकलती है जिसे वो रश्मी के में उंड़ेल देता है और हांफ़ता हुआ पलंग में रश्मी के बगल में लेट जाता है और रश्मी के नंगे बदन से लिपट जाता है।


लग्भग १५ मीनट तक दोनों इसी तरह से पलंग पर पड़े रहते है दोनो ही इस लंबी चुदाई के बाद बूरी तरह से थक चुके थे। रश्मी की ऐसी धमाकेदार चुदाई पहली बार हुई थी इससे पहले उसके साथ राज ने जो भी किया था वो तो चुदाई के नाम पर उसके अंगो से खिलवाड़ भर था, और वो बेचारी इसे ही संभॊग समझती रही। किसी मर्द के कड़क लंड़ की ताकत का उसे पहली बार अहसास हुआ था और शायद आज की इस चुदाई के बाद उसे "मर्द"शब्द का अर्थ भी समझ में आ चुका था।


हांलाकि रश्मी को इस बात का थोड़ा दु:ख और क्रोध जरूर था कि जो कुछ भी तुशार ने उसके साथ किया उसमें उसकी मर्जी नहीं थी , लेकिन तुषार ने इस बुरी तरह से अपने लंड़ से उसकी चूत में प्रहार किये कि कई महिनों से वासना की आग में भीतर ही भीतर जलते रहने के कारण स्खलन का जो पानी उसकी चूत से बाहर आने के लिये उबाल मार रहा था वो तुषार के लंड़ के प्रहार से ही बाहर आया था और । एक स्त्री तभी स्खलित होती है जब वो संतुष्ठ होती है। स्खलन के इस पानी ने रश्मी के न केवल दुख को समाप्त किया बल्कि उसने रश्मी के हल्के से ही लेकिन क्रोध पर भी पानी फ़ेर दिया और वो परम संतुष्त के भाव से तुषार की तरफ़ देखने लगी।


पति चाहे लाख कामाये या अपनी पत्नी को उपर से नीचे तक गहनों से लाद कर रखे लेकिन यदि वो बिस्तर पर अपनी पत्नी को संतुष्त नहीं कर सकता तो ऐसी धन दौलत और गहनों को पा कर भी वो कभी संतुष्त नहीं रह सकती और मर्द की यही कमजोरी या लापरवाही एक दिन उसकी पत्नी को पतिता बनने के लिये मजबूर कर देती है।ऐसा पति और उसका दौलतखाना किसी पत्नी के लिये "सोने" की जेल से कम नहीं होता।


राज ने रश्मी को सब कुछ दिया लेकिन वो उसकी शारीरिक जरुरतों के प्रति जागरुक नहीं रहा और अपनी पत्नी के शरीर में लगी अगन को समझ नहीं पाया और उसके प्रति उपेक्षित रवैया अपनाते रहा। वो सोचता रहा कि रश्मी तो एक भारतीय स्त्री है जब पति के साथ रहेगी तभी वो ये सब काम करेगी। और वैसे भी रश्मी का शर्मिला स्वभाव और कम बोलने की उसकी आदत के कारण राज तो क्या कोई भी ये सोच भी नहीं सकता था कि उसके जैसी स्त्री भी अपनी सारी मर्यादायें ताक में रख कर किसी पुरुष से

संभोग करने जैसा काम कर सकती है। लेकिन दुनिया का इतिहास गवाह है कि रावण की लंका भी उसके अपने सगे भाई ने ही ढहाई थी और भी दुनिया में जितनी भी बड़ी सत्ताओं का पतन हुआ है उन सबमें आस्तिन के सापों का पूरा योगदान रहा है , दुनिया का इतिहास जयचंदो से भरा पड़ा है।


तुषार ने भी यदि अपने बड़े भाई के घर में सेंध मारी थी और उसके साथ विश्वासघात किया था तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी । इसमें सबसे बड़ा दोष तो स्वयं "राज" और उससे भी ज्यादा उसेके परिवार का था जिन्होंने एक जवान शरीर की जरुरतों को नजरांदाज किया और केवल शादी करवा कर अपने कर्तव्य की समाप्ति समझ ली।


घर की तीसरी मंजिल पर २३ साल की खूबसूरत जवान बहू का कमरा और ठीक उसके बगल में उसके २४ साल के जवान देवर का कमरा यानी आग और पेट्रोल साथ साथ। दुनिया के ९९.९% लोग अपने घर के लोगों को सच्चरित्र और शरीफ़ ही समझते हैं और वे तमाम बुराई अपने घर के बाहर ही देखते हैं।


राज की माँ यदि चाहती तो रश्मी को अपने साथ अपने कमरे में सुला सकती थी लेकिन ६० साल की उम्र में भी वो अपने पति के साथ ही रहना चाहती थी। लेकिन उसे इस बात का तनिक भी विचार नहीं आया कि यदि वो ६० साल की उम्र में भी अपने पति से अलग नहीं हो सकती और उसके बिना नहीं रहना चाहती तो फ़िर २३ साल की जवान लड़्की अपने पति के बिना कैसे रह पायेगी?उसके मन पर क्या बीत रही होगी? परिवार के बुजिर्गों की इसी घनघोर लापरवाही और मूर्खता के कारण ना जाने ऐसे कितने ही चारित्रिक अपराध हुए होंगे और आगे भी होते रहेंगे जिनके बारे में ना तो कोई जानता है और ना ही कभी कोई जान पायेगा।


मर्द तो स्वभाव से ही पहलगामी होते हैं, उन्हें पृक्रति ने ही ऐसा बनाया है चंचल और उतावला,किसी जवान लड़की की तरफ़ आकर्षित होना और उससे सहवास का प्रयास करना या उसके सपने देखना ही उसका स्वभाव होता है। अगर औरतों के शर्मिलें स्वभाव की तरह ही यदि मर्द भी शर्मिले होते तो शायद ये संसार का चक्र कभी का रुक गया होता। क्योंकि ना तो तब औरतें अपनी शर्म के कारण कुछ कह पाती और ना ही मर्द पहल करते तब तो हो चुकी होती संसार की रचना। लेकिन ऐसा है नहीं,पृक्रति ने पुरुष को बनाया ही उतावला अधीर और बेशर्म और ये बात एक पुरुष होने के नाते राज के पिता को समझनी चाहिये थी कि दो जवान जिस्मों को पास पास रखने के घातक परिणाम आ सकते हैं। लेकिन शायद खुद के बूढे हो जाने के कारण उनकी शारीरिक जरुरत समाप्त हो चुकी थी और वे यह भूल गये की दो जवान स्त्री पुरुष का एक दूसरे प्रति एक आकर्षण होता है और एक दूसरे की जरुरत भी और उनकी इसी भूल ने तुषार और रश्मी के ना(जायज) रिश्ते को जन्म दे दिया।


१५-२० मीनट के बाद रश्मी के शरीर में थोड़ी हरकत होती है शायद चुदाई की उसकी थकान अब कम होने लगी थी,वो थोड़ा खड़ी होने का प्रयास करती है लेकिन तुषार का दांयां पैर उसकी जांघो पर पड़ा हुआ था और उसका एक हाथ उसके स्तन पर । शायद उसे झपकि लग चुकी थी ।उसने पहले तुषार के हाथ को अपने स्तन से हटाया और फ़िर उठ कर बैठ गई,फ़िर उसने उसकी जांघों को अपने उपर से हटाया और पलंग से उठ खड़ी हुई।


रश्मी पूरी तरह से नंगी थी और बला की खूबसूरत लग रही थी । बाहर की तरफ़ निकली हुई उसकी गोल गोल भारों वाली उसकी गांड़ो और बड़े बड़े विशाल स्तन उसे बेहद कामुक बना रहे थे। वो वैसे ही नंगी चलती हुई बाथरुम की तरफ़ जाने लगी लेकिन कमरे भीतर रखे ड़्रेसिंग टेबल के सामने से गुजरते हुए उसमें अपनी छाया देख कर वो रुक जाती है।
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: शर्मिली भाभी - by neerathemall - 30-01-2023, 02:48 PM



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