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शर्मिली भाभी मूल कहानी
#6
010...

अपनी मां और बहन को इस तरह से हंसते हुए देख कर तुषार की जान में जान वापस आई । उसकी मां उसके पास जा कर बोली तू तो ऎसे ड़र गया था जैसे तेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो या तू कहीं से ड़ाका ड़ाल कर या किसी का खून कर के आया हो।


चोरी तो उसने की थी अपने ईमान की और ड़ाका ड़ाला था अपनी ही माँ समान सगी भाभी की जवानी

पर और खून किया था अपनी ही अन्तरात्मा का। लेकिन ये किसी को दिखाई नहीं दे रहा था। खुद तुषार को भी नहीं।


वैसे भी आज के जमानें में चोरी उसी को कहते हैं जो पकड़ी जाय। सो तुषार साहूकारों की तरह खड़ा हो गया। वो समझ चुका था कि बात कुछ और ही है और वो नाहक ही ड़र रहा था।


कुछ क्षण पहले फ़ांसी लगा कर मरने की बात सोचने वाला तुषार न केवल फ़िर से निर्लज्ज बन गया बल्कि पहले से ज्यादा बेखौफ़ भी । उसे पूरा यकीन हो गया कि ये गदराई हसीना कभी अपना मुंह नही खोलेगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसने पूरे दो दिनों के बाद फ़िर से अपनी भाभी के गदाराए बदन को नीचे से उपर तक देखा और उसकी नज़र फ़िर से उसकी झिनी साड़ी के अंदर दिखने वाले उसके क्लिवेज पर पड़ने लगी। उसके लंड़ ने पेण्ट के अंदर से झटका मार रश्मी की रसीली जवानी को सलामी दे ड़ाली।


जिस तरह से दिया बुझने से पहले आखिरी बार जोर से जलता है उसी तरह तुषार की अन्तरात्मा भी उसे लगातार दो दिन तक अपराध बोध कराने के बाद आज सदा सदा के लिये चुप हो गई। तुषार काफ़ी आज़ाद मह्सूस कर रहा था।


पाप करने के लिये लोग नये नये बहाने बनाते हैं और उसे सही साबित करने के लिये अपने हिसाब से तर्क देते हैं। इंसान का मन एक वकील की तरह काम करता है। जिस तरह एक वकील अदालत में अपने तर्कों से अपने क्लाइंट के गलत काम को भी सही साबित कर देता है और उसे सजा से बचा लेता है। उसी प्रकार तुषार के अंदर बैठा उसका मन रुपी वकील भी उसे समझा रहा था कि उसने जो किया उसमें कुछ भी गलत नहीं है। आखिर रश्मी जवान है और पति उससे काफ़ी दूर है और अगले काफ़ी महिनों तक उसके यहां वापस आने की कोई गुंजाईश भी नही है, ऎसे में अपनी शरीर की जरुरतों के आगे यदि वो झुक गई और किसी और से उसका रिश्ता बन गया तो?


जिस प्रकार इंदौर की एक जैन साध्वी इंदुप्रभा अपने शरीर के ताप को न सह पाई और अपने ही दूध वाले राधेश्याम गुर्जर के साथ भाग गई थी तो कैसे पूरे देश में जैन समाज की नाक कटी थी। कहीं रश्मी ने ऎसा कोई कदम उठाया तो पूरे समाज मे तुम्हारे परिवार की नाक ही ही कट जायगी ।


सो अपने मन के तर्कों को मानते हुए तुषार ने अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिये अपनी सगी भाभी को चोदने का फ़ैसला किया था। उसके मन ने उसे ऎसा तर्क दिया था कि उसकी आत्मग्लानी अब गायब हो चुकी थी और रश्मी भाभी को चोदना अब उसे पाप नहीं बल्की अपना धर्म लग रहा था। उसे लगने लगा था कि परिवार की इज्जत बचाने के लिये उसे अपनी भाभी को चोदने का धर्म निभाना ही पड़ेगा।


तुषार ने अपनी मां से कहा नहीं मां ऎसी कोई बात नही है दरासल मुझे बहुत भूख भी लगी और मैं बहुत थक भी गया हूं ,इसीलिये आपको ऎसा लगा। फ़िर उसने मां के हाथ पकड़ कर पूछा अब बता भी दो न मां । मां ने हंसते हुए रश्मी की तरफ़ देखा और पूछा क्यों बहू बता दूं इसे या नहीं? रश्मी ने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल मुस्कुरा दिया। मां ने रश्मी की तरफ़ बनावटी गुस्से से देखते हुए कहा " अरि रहने दे, तू तो बोलने से रही, तेरा तो कोई खून भी कर दे तो भी तू उसे कुछ नहीं कहेगी बस खड़ी खड़ी देखती रहेगी"।


अब मां ने तुषार की तरफ़ देख कर कहा " सुन बेटा बड़ी अच्छी खबर है, तेरी सुधा के साथ बात पक्की हो गई है। और परसों राज भी आ रहा है अपने बास के साथ बस उसके दो दिन के बाद तेरी सुधा के साथ सगाई कर देंगे।"

तुषार : सगाई ! इतनी जल्दी, और फ़िर राज भैया तो सिर्फ़ एक दिन के लिये ही आ रहे हैं न?

उसके पापा ने बीच में टोकते हुए कहा " एक दिन के लिये नहीं बेटा पूरे चार दिनों के लिये आ रहे है वो दोनों।

तुषार (तनिक चौंकते हुए ) : दोनों! कौन दोनों पापा ?

पापा : अरे बेटा राज और उसका बास दोनों । वो मेंरा बहुत अच्छा दोस्त भी है और फ़िर वो मेरें बेटे का बास भी तो है। मुझे अपने बेटे की तरक्की भी तो करवानी है न। तुम सब ध्यान से सुन लो राज के बास की खातिरदारी में कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिये समझे।

सब ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और सहमती में अपना सर हिला दिया। तभी पापा खड़े हुए और कहने लगे चलो भई अब आज की सभा समाप्त करो मुझे तो बहुत नींद आ रही है, ऎसा कहते हुए वो अपने कमरे की तरफ़ चले गये। उनको जाते देख तुषार की मां भी उनके पिछे चली गई और "दिया" भी सबको गुड़ नाईट कहते हुए अपने कमरे में चली गई।
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Sharma
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May 7, 2021
#12
011...

दो दिनों की लुका छिपी के बाद तुषार और रश्मी भी अब आज के महौल के बाद सामान्य हो चुके थे और दो दिनों के बाद दोनो ने एक दूसरे को देखा और मुस्कारा दिये।उसकी मुस्कुराहट में उसे सहमती और बेबसी दोनो नजर आ रही थी।


लेकिन शिकारी को उससे क्या ? वो तो अपने शिकार को बेबस देख कर और खुश होता है। तुषार का लण्ड़ फ़िर से खड़ा होने लगा था।


एक चतुर शेर जिस तरह से झुंड़ से अपने शिकार को पहले अलग करता है और फ़िर उसे थका कर उस पर झपट्टा मार कर उसका काम तमाम कर देता है उसी तरह तुषार ने रश्मी को अलग थलग तो कर दिया था और अब उस पर झपटने की तैयारी कर रहा था।


वो दोनों भी अब उपर अपने अपने कमरों की तरफ़ जाने लगे। रश्मी थोड़ा आगे थी और तुषार उसके पिछे। रश्मी जैसे ही सीढियों पर पांव रखती उसकी बड़ी बड़ी विशाल मांसल गांड़ बडे उत्तेजक तरिके से हिलता उसे देख कर उसके पिछे आ रहे तुषार बुरी तरह से उत्तेजित हो गया और उसका लंड़ पेंट फाड़ कर बाहर आने के लिये बेताब होने लगा।


इसी तरह अपनी भाभी की हिलती गांड़ को देखते हुए वो उपर तक पहुंच गया। जैसे ही रश्मी उसके दरवाजे के सामने से गुजरी उसने पिछे से अवाज लगाई, भाभी।


रश्मी रुक गई उसने पिछे मुड़ कर तुषार की तरफ़ देखा। तब तक वो रश्मी के पास पहुंच गया।

रश्मी के पास पहुंच कर उसने उससे बोला मैं आपको थैंक्स कहना तो भूल ही गया था। वो मुस्काराई लेकिन प्रत्यक्षत: बोली किस बात का थैंक्स?

तुषार : जी वो सगाई की बात पक्की कराने के लिये।

रश्मी: अच्छा! लेकिन इसमें थैक्स जैसी क्या बात है जब उमर होती है तो शादी तो करनी ही पड़ती है न, वरना बच्चे बिगड़ जाते हैं। ऎसा बोल कर वो नजर निची कर व्यंग से मुस्कुराने लगी।

तुषार : हां ठीक कहा आपने सब काम ठीक समय पर होना चाहिये वरना कुछ लोग बिगड़ जाते है और कुछ कुंठित हो जाते है। अब हंसने की बारी तुषार की थी। उसने रश्मी का हाथ पकड़ा और कहा आओ न भाभी अंदर बैठ कर कुछ बाते करते हैं।

रश्मी : अभी ! अरे नहीं कल बात करेंगे मुझे नींद आ रही है।

लेकिन उसकी बात को अन्सुना करते हुए उसे लगभग खिंचते हुए अपने कमरे में ले आया और बोला मुझे सुधा के बारे में बताओ।

रश्मी : क्या बताऊं मै उसके बारे में ? वो तो एक सीधी सादी घरेलु लड़्की है और क्या ?

तुषार : वो तो होगी ही आखिर आपकी बहन जो है। लेकिन मुझे और बताईये उसके बारे में जैसे उसकी पसंद नापसंद उसके शौक बगैरह । इस बात करते हुए तुषार ने रश्मी को अपने पलंग पर बैठा दिया और खुद उससे लग्भग सट कर बैठ गया। इस दौरान उसने रश्मी का हाथ थामे रखा और सदा की भांती रश्मी लाचार की तरह बैठी रही उसमें अपना छुड़ाने का साहस नहीं था।


वो उसे सुधा के बारे में बताने लगी। लेकिन तुषार का ध्यान उसकी बातों में नहीं बल्की उसके जिस्म पर था। वो तो किसी तरह रश्मी को अपने पास बैठाये रखना चाहता था। इसी तरह बाते करते हुए लग्भग २०-२५ मीनट हो गये तो अचानक वो झटके से खड़ी हो गई और उसने कहा अब चलना चाहिये काफ़ी देर हो गई है सुबह जल्दी उठना है। तुषार भी खड़ा हो गया और बोला ठीक है भाभी लेकिन एक बात मैं बार बार आपसे कहना चाहता हूं ।

रश्मी : वो क्या?

तुषार : यही की आप बहुत अच्छी हो और ऎसा कहते हुए उसने रश्मी के गाल पर एक हल्का सा चुंबन लगा दिया।

इस अप्रत्याशित बात से रश्मी थोड़ी हड़बड़ा जाती है और केवल इतना ही कह पाती है " अरे" , और फ़िर वो अपने रुम की तरफ़ तेज कदमों से चलते हुए जाने लगती है। तुषार मुस्कुरा देता है और हौले से कहता है गुड़ नाईट भाभी।

वो भी प्रत्युत्तर में गुड़ नाईट कहती है और अपने रुम में चली जाती है।


तुषार उसको अपने रुम के अंदर तक जाते देखता है । दरसल वो उसकी गांड़ो को घूर रहा था। रश्मी की गांड़ तुषार की सबसे बड़ी कमजोरी थी।


जैसे ही वो अपन्रे रुम में चली जाती है, वो तुरंत तेजी से चलते हुए छ्त पर चला जाता है और फ़िर कूलर के छेद से अंदर देखने लगता हैं। अंदर रश्मी हमेशा की तरह नंगी हो कर अपने कपड़े बदलती है जिसे देख तुषार बदहवास हो जाता है। रश्मी के कपड़े बदलने के बाद छत पर बैठने का कोई मतलब नही था सो तुषार अपने कमरे में जाता है और अपनी भाभी के नंगे जिस्म को याद करते हुए मुठ्ठ मार कर सो जाता है।


रात को सोने में देर हो जाने के कारण रश्मी सुबह जल्दी नहीं उठ पाती , जब सो कर उठने पर उसकी नजर घड़ी पर पड़्ती है तो वो हड़्बड़ा जाती है। सुबह के आठ बज चुके थे । वो एक झटके में पलंग से नीचे कूदती है जल्दी से अपना मुंह धोती है कपड़े बदल कर और थोड़ा बाल बना कर तुरंत नीचे की तरफ़ भागती है।


नीचे का नजारा उसकी आशा के अनुरुप ही था। मां रसोई में बड़्बडाते हुए काम कर रही थी और उसके ससुर और ननद नाश्ते के लिये हलाकान हो रहे थे। दरसल रश्मी की सास की काम करने की आदत छूट चुकी थी किचन में वो यदा कदा ही आती थी,और आती भी तो केवल रश्मी को ये बताने के लिये कि उसे आज क्या पकाना है। सो उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा सामान कहां रखा हुआ है और यही वजह थी को रश्मी पर झुंझला रही थी।
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Sharma
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May 7, 2021
#13
012...

रश्मी को देखते ही वो फ़ट पड़ी और तनिक तेज आवाज में बोली : आ गई इतनी जल्दी अरी थोड़ा और सो लेती अभी बखत ही कितना हुआ है? सीधा खा पी कर उतरती । रश्मी जानती थी मां के गुस्से की वजह दरअसल उसे किचन में सामान नहीं मिलने क्कि वजह से वो झुंझला रही थी और बाहर उसके ससुर जी उनका मजाक उड़ा रहे थे।


रश्मी ने किचन में जाते ही मोर्चा संभाल लिया । उसने मां से कहा दर असल कल रात को बातें करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसी वजह से आज उठनें में काफ़ी देर हो गई मम्मीजी । मैं तो सीधे नीचे ही आ गई पहले आप लोगों को नाश्ता वगैरे बना कर दे दूं फ़िर जा कर नहा लूंगी। उसकी बात सुन मम्मी चीखते हुए कहती है क्या कहा तुमने तुम बाद में नहा कर आओगी यानी तुम अभी बिना नहाये नीचे आ गई हो? और वो भी किचन में !


उसने रश्मी को डांटते हुए कहा : चल निकल यहां से , निकल किचन के बाहर और जा कर नहा कर आ, तुझे पता है न तेरे पापा को यदि पता चल जायेगा तो वो आसमान सर पर उठा लेंगे। उन्होंने जानबूझ कर ये बातें जोर से कही ताकी उसके ससुर भी ये बातें सुन ले। ताकी थोडी डांट उनसे भी रश्मी को पड़ जाय लेकिन उसका दांव उल्टा पड़ गया, उन्होंने वहीं से बैठे हुए कहा : वाह देखो बेचारी रश्मी को उसे हमारी कितनी चिंता है बिना नहाये ही ही आ गई। तुम रहने दो बेटा रश्मी तुम आराम से जा कर नहाकर नीचे उतरो कोई जल्दी नहीं है। आज तो तुम्हारी मम्मी के हाथ का नाश्ता ही करेंगे।


उनकी ये बातें सुन कर पहले से जली भुनी बैठी उसकी मां और चिढ़ गई और जोर जोर से चिल्लाने लगी , और चढाओ सर पे सबको यदि मैंने किया होता तो चिल्ला चिल्ला कर सर पर आसमान उठा लिया होता और धर्म के ठेकेदार बन कर दुनिया भर ताने मार दिये होते और इसे कहते हो कोई बात नहीं। उसके पापाजी ये बातें सुन कर जोर जोर से हंसने लगे हॊ हॊ हो


और कहने लगे अरे क्या हो गया एक दिन यदि तुम बना कर खिला दोगी तो? यदि नहीं बनाना तो साफ़ साफ़ बोल दो हम बाहर जा कर कुछ खा लेंगे छोटि सी बात का बतंगड मत बनाओ।


अपने पति के तेवर देख कर वो तुरंत चुप हो जाती है और नाश्ता बनाने में लग जाती है और धीरे से रश्मी से कहती है अब जा न यहां से और जल्दी से तैयार हो कर आ, क्या दोपहर का खाना भी बनवायेगी क्या? रश्मी ने मुस्कुराते हुए अपनी सास को जल्दी जल्दी सब सामान कहां पडे़ है बताया और किचन से बाहर निकल गई।


वो तेजी से अपने रुम की तरफ़ जा रही थी और नाश्ते की टेबल पर बैठा तुषार उसकी बड़ी बड़ी गांड़ को हुलते देख कर आंहे भर रहा था।


अभी रश्मी को उपर गये मुश्किल से पांच मिनट ही हुए थे कि उसकी मां फ़िर बड़्बड़ाने लगी और बाहर आ कर चिल्लाकर पूछने लगी कि बेसन का डब्बा कहां रखा है रश्मी? लेकिन वो शायद अपने कमरे में जा चुकी थी इसलिये शायद वो सुन नहीं पाई


सो उसकी मां को कई जवाब नही मिला। उसने दो तीन बाहर जोर से चिल्लाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो उसने झुंझलाते हुए तुषार को कहा जा तो बेटा उपर जा कर तेरी भाभी से पूछ कर बता बेसन का डिब्बा कहां रखा है उसने ? "दिया" तो थी एक नंबर की आलसी सीढी चढना तो जैसे उसके लिये सजा से कम नहीं था सो ये काम तो तुषार को ही करना था।


अब तुषार उपर जाता है और भाभी के कमरे बाहर से उन्हें पुकारता है, भाभी। लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता वो फ़िर उसी तरह फ़िर से दो तीन बार चिल्लाता है लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता तो उसे काफ़ी आश्चर्य होता है और वो दरवाजे को धक्का दे कर अंदर जाता है।


लेकिन वहां रश्मी तो थी ही नहीं वो फ़िर कहता है ,भाभी ! लेकिन वो वहां होती तो जवाब देती न। अब वो भाभी के कमरे के पिछले दरवाजे के परदे को हटा कर बाल्कनी में जाता है लेकिन भाभी वहां भी नहीं थी। वो सोच ही रहा था कि आखिर ये गई कहां?


तभी रश्मी कमरे में आती है और जल्दी से कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर देती है। वो बाहर निकलना चाहता ही था कि उसे रश्मी की चूड़ीयों की आवाज सुनाई देने लगती है खन खन खन खन , अनुभवी तुषार तुरंत समझ जाता है कि उसकी भाभी अब अपने कपड़े उतार रही है और अब बाथरुम में जा कर नहायेगी। छत में कूलर के छेद से वो कई बार अपनी भाभी को कपड़े बदलते हुए देख चुका था और इस दौरान होने वाली उसकी चूड़ियों की अवाज को अच्छी तरह से पहचानता था। तुषार के रोम रोम में रश्मी समा चुकी थी।
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: शर्मिली भाभी मूल कहानी - by neerathemall - 30-01-2023, 02:50 AM



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