30-01-2023, 02:48 AM
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अगले दिन सुबह जब तुषार सो कर उठा तो उसे रात वाली घटना याद आने लगी और किसी फ़िल्म की तरह सारे दृष्य उसके सामने आने लगे। नींद में बेखबर अपनी भाभी के जिस्म से उसने जो हवस का खेल खेला था उससे उसका मन खिन्न हो गया, वो अपना चेहरा ही आईने मे देखने का साहस नहीं कर पा रहा था लेकिन किसी तरह वो उठा और फ़्रेश हो कर नीचे पहूंच गया। नीचे मां नहाने के बाद पूजा की तैयारी में व्यस्त थी उसे इतनी सुबह तैयार पा कर वो आश्चर्य से उससे बोली अरे बेटा इतनी सुबह तैयार हो गये कहीं जाना है क्या? जवाब में उसने कहा हां मां आज कालेज जल्दी जाना है,तुम जल्दी से चाय नाश्ता दे दो।
मां ने कहा मैं क्यों बेटा रश्मी है न किचन में वो भी आज जल्दी उठ गई है। दरअसल कल रात की घटना के कारण वो ठीक से सो नही पाई थी और सुबह जल्दी उठ गई थी।तुषार ने चौंक कर कहा भाभी इतनी जल्दी उठ गई । मां ने कुछ नहीं कहा और केवल मुस्कुरा दिया और वहीं से उसने जोर से अवाज दे कर कहा रश्मी तुषार के लिये चाय नाश्ता दे दो आज वो भी जल्दी उठ गया है उसे जल्दी कालेज जाना है। ऎसा बोल कर मां ने पेपर उसकी टेबल पर रखा और पूजा करने चली गई।
मां के जाते ही तुषार असहज मह्सूस करने लगा उसमें आज रश्मी का सामना करने का साहस नही था।वो बड़ी ग्लानी मह्सूस कर रहा था। उधर रश्मी का भी यही हाल था लेकिन क्या करे मज्बूरी थी जाना तो था ही सो उसने जल्दी से चाय नाश्ता तैयार कर मन भर के ड़ग भरते हुए उसके टेबल की तरफ़ जाने लगी। भाभी को अपनी तरफ़ आते देख वो पेपर पढने का नाटक करने लगा,उधर भाभी भी जल्दी से चाय नाश्ता उसकी टेबल पर रख कर जल्दी से किचन की तरफ़ जाने लगी,दोनों ने न एक दूसरे की तरफ़ देखा और न ही कोई बात की।
वो इतनी तेजी से किचन की तरफ़ जा रही थी कि उसकी दोनों बड़ी बड़ी गांड बुरी तरह से उछल रही थी।लेकिन जिन गांड़ो का तुषार पिछले आठ माह से दिवाना था आज उसने उसकी तरफ़ पहली बार देखा तक नहीं। उसने
अपना नाश्ता खत्म किया और कालेज चला गया।उस पूरा दिन वो घर नहीं आया रात को घर आया और थोड़ा बहुत खा कर अपने कमरे में जा कर सो गया।
दूसरे दिन भी यही हुआ वो सुबह जल्दी ही कलेज चला गया और फ़िर रात को देर से घर आया।लेकिन देर से घर आने के बावजूद उसने घर में सभी को जागते हुए पाया,घर के सारे सदस्य ड्राईंग रुम में ही बैठे थे और उसी का इंतजार कर रहे थे।
उसने देखा कि मां और पिताजी आपस में धीरे धीरे कुछ बात कर रहे है और रश्मी उनके सोफ़े के पीछे खड़ी थी। दिया भी बगल वाले सोफ़े में बैठ कर उनकी बातों को उन रही थी।सब के इस प्रकार से बैठ कर चर्चा करने का मतलब साफ़ था कि वे किसी गंभीर मसले पर बात कर रहे थे। तुषार के माथे पर बल पड़े वो सोचने लगा कि कहीं भाभी ने तो रात वाली बात नहीं बता दी है इन लोगों को। दर असल तुषार को अपनीभाभी के पिछले दो दिनों के उसके साथ व्यवहार से उस पर शक हो रहा कि कहीं उस रात वो जग तो नहीं रही थी।ज्यों ज्यों वो उस बारे में सोचता उसका शक यकीन में बदलता जा रहा था कि उस रात भाभी पक्का जाग चुकी थी
इतनी गंभीरता से उन लोगों को बात करते देख कर एक बार तो तुषार सहम गया और दरवाजे के पास ही खड़े हो कर सोचने लगा कहीं भाभी ने रात वाली बात आखीरकार इन लोगों को बता तो नहीं दी होगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये और उसकी गांड़ फटने लगी।
आखिर मरता क्या ना करता ? वो धीरे धीरे उनकी तरफ़ बढने लगा। पाप करना जितना आसान होता है और मजेदार होता है उतना ही कठिन उसका बोध होता है। और उसका परिणाम उतना ही भयावह। दरवाजे से मात्र दस कदम दूर चलने में तुषारको ऎसा लगा मानो वो दस बार मर कर जनम ले चुका है।
जैसे तैसे वो उनके पास जा कर खड़ा हो गया। तभी दिया की नज़र सबसे पहले उस पर पड़ी और वो बोल उठी लो आ गये जनाब,सभी ने एक साथ पिछे मुड़ कर देखा और सबकी नज़र तुषार पर टिक गई। एक क्षण के लिये कमरे में सन्नाटा छा गया। तुषार नज़रें झुकाये खड़ा था किसी अपराधी की तरह। उसक दिल धड़क रहा था।
माँ ने तनिक क्रोध भरी अवाज में कहा " क्यों रे बेशर्म, नालायक"
माँ के इतना कहते ही तुषार का मन किया की उसका पाँव पकड़ कर फ़ूट-फ़ूट रोने लगे और माफ़ी मांग ले। उसकाचेहरा देखने लायक था और उस पर हवाईयां उड़ रही थी। वो बदहवास हो उनकी तरफ़ देख रहा था। उसकी बदहवासी को "दिया" ने और बढा दिया उसने कहा " हां माँ लगाओ हम सब की तरफ़ से और राज भैया की तरफ़ से भी"।
"राज" का नाम सुनते ही वो पूरी तरह से ढ़ीला पड़ गया और समझ गया कि भाभी ने आखिर उसकी पोल खोल ही ड़ाली है , गूंगी गुड़िया के मुंह में ज़बान आ गई है और अब उसकी शामत आने वाली है। उसका मान सम्मान , रुतबा सब खतम हो गया। उसने सोचा अब क्या किया जा सकता है? आखिर उसने काम ही ऎसा किया था। वो मन ही मन खुद को कोसने लगा और सोचने लगा कि ऎसे जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया कि चाहे इनको जो बोलना हो सो बोल ले वो कुछ नहीं बोलेगा और आज अपने पैरों से चल कर आखिरी बार अपने कमरे में जायगा।
अपमानित हो कर जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया था उपर जा कर फ़ांसी लगा कर अपनी जान दे देगा। कमरे में फ़िर कुछ क्षण के लिये चुप्पी चा गई। आखिर उसके पिताजी ने चुप्पी तोड़्ते हुए कहा तुम दोनों माँ बेटी को कोई धंधा नही है ? बेकार में इसे धमका रही हो साफ़ साफ़ बतओ ना इसे । पिताजी घुड़की सुन कर दोनों मां बेटी खिलखिला कर हंस प
अगले दिन सुबह जब तुषार सो कर उठा तो उसे रात वाली घटना याद आने लगी और किसी फ़िल्म की तरह सारे दृष्य उसके सामने आने लगे। नींद में बेखबर अपनी भाभी के जिस्म से उसने जो हवस का खेल खेला था उससे उसका मन खिन्न हो गया, वो अपना चेहरा ही आईने मे देखने का साहस नहीं कर पा रहा था लेकिन किसी तरह वो उठा और फ़्रेश हो कर नीचे पहूंच गया। नीचे मां नहाने के बाद पूजा की तैयारी में व्यस्त थी उसे इतनी सुबह तैयार पा कर वो आश्चर्य से उससे बोली अरे बेटा इतनी सुबह तैयार हो गये कहीं जाना है क्या? जवाब में उसने कहा हां मां आज कालेज जल्दी जाना है,तुम जल्दी से चाय नाश्ता दे दो।
मां ने कहा मैं क्यों बेटा रश्मी है न किचन में वो भी आज जल्दी उठ गई है। दरअसल कल रात की घटना के कारण वो ठीक से सो नही पाई थी और सुबह जल्दी उठ गई थी।तुषार ने चौंक कर कहा भाभी इतनी जल्दी उठ गई । मां ने कुछ नहीं कहा और केवल मुस्कुरा दिया और वहीं से उसने जोर से अवाज दे कर कहा रश्मी तुषार के लिये चाय नाश्ता दे दो आज वो भी जल्दी उठ गया है उसे जल्दी कालेज जाना है। ऎसा बोल कर मां ने पेपर उसकी टेबल पर रखा और पूजा करने चली गई।
मां के जाते ही तुषार असहज मह्सूस करने लगा उसमें आज रश्मी का सामना करने का साहस नही था।वो बड़ी ग्लानी मह्सूस कर रहा था। उधर रश्मी का भी यही हाल था लेकिन क्या करे मज्बूरी थी जाना तो था ही सो उसने जल्दी से चाय नाश्ता तैयार कर मन भर के ड़ग भरते हुए उसके टेबल की तरफ़ जाने लगी। भाभी को अपनी तरफ़ आते देख वो पेपर पढने का नाटक करने लगा,उधर भाभी भी जल्दी से चाय नाश्ता उसकी टेबल पर रख कर जल्दी से किचन की तरफ़ जाने लगी,दोनों ने न एक दूसरे की तरफ़ देखा और न ही कोई बात की।
वो इतनी तेजी से किचन की तरफ़ जा रही थी कि उसकी दोनों बड़ी बड़ी गांड बुरी तरह से उछल रही थी।लेकिन जिन गांड़ो का तुषार पिछले आठ माह से दिवाना था आज उसने उसकी तरफ़ पहली बार देखा तक नहीं। उसने
अपना नाश्ता खत्म किया और कालेज चला गया।उस पूरा दिन वो घर नहीं आया रात को घर आया और थोड़ा बहुत खा कर अपने कमरे में जा कर सो गया।
दूसरे दिन भी यही हुआ वो सुबह जल्दी ही कलेज चला गया और फ़िर रात को देर से घर आया।लेकिन देर से घर आने के बावजूद उसने घर में सभी को जागते हुए पाया,घर के सारे सदस्य ड्राईंग रुम में ही बैठे थे और उसी का इंतजार कर रहे थे।
उसने देखा कि मां और पिताजी आपस में धीरे धीरे कुछ बात कर रहे है और रश्मी उनके सोफ़े के पीछे खड़ी थी। दिया भी बगल वाले सोफ़े में बैठ कर उनकी बातों को उन रही थी।सब के इस प्रकार से बैठ कर चर्चा करने का मतलब साफ़ था कि वे किसी गंभीर मसले पर बात कर रहे थे। तुषार के माथे पर बल पड़े वो सोचने लगा कि कहीं भाभी ने तो रात वाली बात नहीं बता दी है इन लोगों को। दर असल तुषार को अपनीभाभी के पिछले दो दिनों के उसके साथ व्यवहार से उस पर शक हो रहा कि कहीं उस रात वो जग तो नहीं रही थी।ज्यों ज्यों वो उस बारे में सोचता उसका शक यकीन में बदलता जा रहा था कि उस रात भाभी पक्का जाग चुकी थी
इतनी गंभीरता से उन लोगों को बात करते देख कर एक बार तो तुषार सहम गया और दरवाजे के पास ही खड़े हो कर सोचने लगा कहीं भाभी ने रात वाली बात आखीरकार इन लोगों को बता तो नहीं दी होगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये और उसकी गांड़ फटने लगी।
आखिर मरता क्या ना करता ? वो धीरे धीरे उनकी तरफ़ बढने लगा। पाप करना जितना आसान होता है और मजेदार होता है उतना ही कठिन उसका बोध होता है। और उसका परिणाम उतना ही भयावह। दरवाजे से मात्र दस कदम दूर चलने में तुषारको ऎसा लगा मानो वो दस बार मर कर जनम ले चुका है।
जैसे तैसे वो उनके पास जा कर खड़ा हो गया। तभी दिया की नज़र सबसे पहले उस पर पड़ी और वो बोल उठी लो आ गये जनाब,सभी ने एक साथ पिछे मुड़ कर देखा और सबकी नज़र तुषार पर टिक गई। एक क्षण के लिये कमरे में सन्नाटा छा गया। तुषार नज़रें झुकाये खड़ा था किसी अपराधी की तरह। उसक दिल धड़क रहा था।
माँ ने तनिक क्रोध भरी अवाज में कहा " क्यों रे बेशर्म, नालायक"
माँ के इतना कहते ही तुषार का मन किया की उसका पाँव पकड़ कर फ़ूट-फ़ूट रोने लगे और माफ़ी मांग ले। उसकाचेहरा देखने लायक था और उस पर हवाईयां उड़ रही थी। वो बदहवास हो उनकी तरफ़ देख रहा था। उसकी बदहवासी को "दिया" ने और बढा दिया उसने कहा " हां माँ लगाओ हम सब की तरफ़ से और राज भैया की तरफ़ से भी"।
"राज" का नाम सुनते ही वो पूरी तरह से ढ़ीला पड़ गया और समझ गया कि भाभी ने आखिर उसकी पोल खोल ही ड़ाली है , गूंगी गुड़िया के मुंह में ज़बान आ गई है और अब उसकी शामत आने वाली है। उसका मान सम्मान , रुतबा सब खतम हो गया। उसने सोचा अब क्या किया जा सकता है? आखिर उसने काम ही ऎसा किया था। वो मन ही मन खुद को कोसने लगा और सोचने लगा कि ऎसे जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया कि चाहे इनको जो बोलना हो सो बोल ले वो कुछ नहीं बोलेगा और आज अपने पैरों से चल कर आखिरी बार अपने कमरे में जायगा।
अपमानित हो कर जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया था उपर जा कर फ़ांसी लगा कर अपनी जान दे देगा। कमरे में फ़िर कुछ क्षण के लिये चुप्पी चा गई। आखिर उसके पिताजी ने चुप्पी तोड़्ते हुए कहा तुम दोनों माँ बेटी को कोई धंधा नही है ? बेकार में इसे धमका रही हो साफ़ साफ़ बतओ ना इसे । पिताजी घुड़की सुन कर दोनों मां बेटी खिलखिला कर हंस प
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
