30-01-2023, 02:17 AM
मैने एक बार अपनी मां की तरफ़ देखा वो अभी भी पूरी तल्लीनता से भाई से बात कर रही थी, उसकी तरफ़ से आश्*वस्त हो कर मैंने अब पूरी निर्भिकता से अपनी भाभी की तरफ़ देखा उसकी नजरें पूरी तरह से जमीन पर गड़ी हुई थी, अब मैने उसके स्तनों पर नजर ड़ाली, किसी अनहोनी की आशंका में उसकी सांसे कुछ तेज हो गई थी और वो जरा जोर से गहरी सांस ले रही थी। गहरी सांसे लेने के कारण उसके स्तन उपर नीचे हो रहे थे, जब उसके दोनों स्तन उपर की तरफ़ उठते तो मेंरी उंगलियां उसके स्तनों के उभार शुरु होने वाले स्थान से काफ़ी नीचे तक अपने आप चली जाती और उसके स्तन का काफ़ी हिस्सा उससे छुआ जाता।मैं अपनी भाभी के शरीर से उसी तरह चिपका हुआ था जैसे लोहा चुंबक से। लेकिन इस तरह स्तन के छुआने से मेंरे लिये खुद पर कबू रखना मुश्किल हो रहा था। कहीं मां के सामने कुछ गड़्बड़ न हो जाय इसलिये मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया और फ़िर से उसे रश्मी भाभी की बड़ी बड़ी नरम गांड़ के पास स्थापित कर दिया, चार पांच बार हल्के से अपने हाथ को उसकी गांड़ से टकराने के बाद मैंने अपना हाथ हिलाना बंद कर दिया और मेंरा हाथ अब उसकी गांड़ से चिपक गया।
३०-४० सेकण्ड़ तक उसी तरह से अपना हाथ का उपरी भाग उसकी गांड़ पर रखने के बाद मैंने फ़िर से अपने हाथ को घुमा लिया और अपनी हथेली को उसकी गांड़ से लगा दिया, अब उसकी गांड़ मेंरी हथेली में थी। अब तक उसे पूरी तरह से यकीन हो चुका था कि मैं उसके शरीर से खेल रहा हूं। और यही मैं चाहता भी था।
इस बीच मेंरी मां और भाई के बीच फ़ोन पर संवाद जारी था
मां - बेटा राज क्या तुम इस बार छुट्टी में थोड़े ज्यादा समय के लिये घर आ सकते हो?
राज - क्यों मां ?
मां - दरअसल मैं तुम से तुषार के विवाह के बारे में बात करना चाहती हूं?
राज - लेकिन मां अभी तो वो पढ़ रहा है न?
मां - हां, लेकिन समय जाते कहां पता चलता है? और फ़िर ये उसका अखीरी साल ही तो है न कालेज का? और फ़िर तुम्हारे पापा ने कह दिया है कि कालेज खत्म करने के बाद तुषार
उनका बीमा का काम ही संभालेगा सो नौकरी की चिंता जैसी कोई बात उसके साथ नहीं है।
राज - तो तुमने कोई लड़की देखी है उसके लिये?
मां - हां और मुझे तो बेहद पसंद भी है और तुषार को भी।
राज - अच्छा!! कौन है मां वो खुशनसीब लड़की?
मां - सुधा। अगर तुन्हें कोई आपत्ति न हो तो।
राज ने लग्भग चिखते हुए कहा - क्या!!!!! सुधा!!!!! , भला ममममुझे क्या आपत्ति हो सकती है। रश्मी से पूछो।
मां - अरे हमारी तरफ़ से बात तो बही चलाएगी न। लेकिन तू साफ़ साफ़ बता कि तुझे अपनी साली सुधा से तुषार की शादी में कोई ऎतराज तो नहीं है न?
राज - क्या मां , भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, बल्कि ये तो रश्मी के लिये भी बहुत अच्छा होगा उसे यहां अपनी बहन की कंपनी मिल जायेगी। और वो काफ़ी भले लोग है, और मैं सुधा को अच्छी तरह से जानता हूं काफ़ी सरल और शांत लड़की है वो। मां मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
इधर मां के मुंह से अपनी बहन और मेंरी शादी की बात सुन कर मेंरी गुलबदन रश्मी जान बुरी तरह चौंक गई और आश्*चर्य से कभी मां की तरफ़ तो कभी कभी मेंरी तरफ़ देख रही थी। और मैंने भी मौके का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अपनी हसीना की गांड़ को जरा जोर से दबा दिया। और उसकी गांड़ में हल्के से हाथ घुमाते हुए उसकी अंडरवियर को तलाशते हुए अपना हाथ उसकी अंडरवियर के उभार पर रख दिया। अब वो अपने प्रति मेंरी हवस को समझ चुकी थी लेकिन अब तो वो चाह कर भी न तो मेंरे घर में और ना ही अपने घर में कुछ बता सकती थी। मेंरे एक ही दांव ने उसको चारों खाने चित्*त कर दिया था और वो लाजवाब हो गई थी।
अचानक उसने मां से कहा कि उसे भाई से कुछ बात करनी है, मां ने भी तत्काल अपनी बात खतम करते हुए फ़ोन उसे दे दिया जैसे ही फ़ोन उसने लिया मेरा दिल धड़कनेलगा और मेंरी गांड़ फ़टने लगी कि ये क्या बोलेगी। उसने फ़ोन हाथ में लेकर भाई से कहा-
रश्मी भाभी- आप कब आ रहे हैं यहां?
राज - अभी तो नहीं, और इस बार आने में थोडा़ देर हो सकती है क्योंकि यहां काम कुछ ज्यादा है। इस बार केवल एक दिन के लिये ही आ पाउंगा क्योंकि उसके तुरंत बाद मुझे छ: महिने की ट्रेनिंग के लिये बंगलौर जाना है और उस दौरान हम अपना परिवार साथ नही रख सकते। ट्रेनिंग के खतम होने के बाद मुझे २ वर्ष के लिये किसी भी शहर मे काम करना होगा। वहां तुम साथ रह सकती हो लेकिन तुम तो देखती हो न कि मै कैसे महीने भर तक घर बाहर ही रहता हूं। सो, पराए शहर में मैं तुम्हें कई दिनों तक अकेले रखना ठीक नहीं समझता कम से कम अपने परिवार में तुम सुरक्षित तो हो। रश्मी मेंरे नौकरी में अच्छी जगह बनाने के लिये तुम्हें इतना सहयोग तो देना पडे़गा।
रश्मी भाभी - ठीक है जैसा उचित समझें किजीये। आने के पहले फ़ोन करना मत भूलना, अच्छा रखती हूं। ऎसा कह कर उसने फ़ोन रख दिया।
उसके फ़ोन रखते ही मेंरी जान में जान आई, उसके फ़ोन लेते समय मुझे ये भय सता रहा था कि कहीं वो रिश्ते के लिये मना न कर दे और मेंरे बारे में भाई को न बता दे। अब उसकी तरफ़ से मेंरा मन सदा के लिये निर्भय हो चुका था।
मां तो भाभी को फ़ोन देते ही यह कह कर चली गई कि उसे बहुत नींद आ रही है। इधर भाभी ने फ़ोन रखते ही मेंरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा और कहा सुधा इनती पसंद थी तो मुझे क्यों नहीं बताया, मैने मन में सोचा अगर तुझे बताता तो शायद बात बिगड़ भी सकती थी। लेकिन मैं मुस्कुराते रहा और कहा वो मेंरी मां है और मेंरे बात कतने से ही मेंरे इशारों को समझ गई आप शायद नहीं समझ पाती, उसने कहा कर के तो देखते एक बार। मैंने तपाक से जवाब दिया आप कहां समझती है मेंरे इशारे। वो बुरी तरह से झेंप गई और अपना सर निचे कर दिया और कहा ऎसा नहीं है इतनी मूर्ख और नादान भी नहीं हूं मैं समझने वाले सारे ईशारे समझ ही समझ जाती हूं, अब जिन्हें समझना ही नहीं है ऎसे ईशारों को समझने से क्या मतलब। मैने भी तत्काल कहा मुझे क्या पता आप कौन से इशारे समझती हैं? और कौन से नहीं इसीलिये मैने मां से कहा । उसने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल एक व्यंग भरी नजर से मुझे देखा और हौले से मुस्कुरा दिया। फ़िर उसने धीरे से कहा चलिये अब आपके साथ ड़बल रिश्ता होने जा रहा है बहुत बधाई आपको। मैने मन में कहा ड़बल नहीं मेंरी जान ट्रिपल रिश्ता कायम होने जा रहा है। लेकिन प्रत्यक्षत: केवल थैंक्स भाभी कहा। उसने कहा मुझे बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूं गुड़ नाईट, और ऎसा कह कर वो धीरे धीरे सीढीयों की तरफ़ बढने लगी, चलते वक्*त उसकी बड़ी बड़ी गांड़ हौले हौले हील रही थी और उसकी टाइट साड़ी से उसकी अंड़रवियर का उभार साफ़ दिख रहा था जिसे देख कर मेंरा लण्ड़ बुरी तरह से खड़ा हो गया। मेंरी किस्मत में अभी कुछ दिन और तड़फ़ना लिखा था, उसने उपर जाते हुए एक तिरछी नजर मुझ पर ड़ाली और हमारी नजर मिलते ही अपनी नजर निचे कर दिया लेकिन वो अपनी हल्की मुस्कान को मुझ से नहीं छिपा सकी और वो तेजी से सीढीयां चढते हुए अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
मैं भाभी को अपने कमरे में घुसते तक देखता रहा जैसे ही वो कमरे में गई मेंरे दिमाग में तुरंत ये विचार आया कि अब ये नंगी हो कर अपने कपड़े बदलेगी। ये विचार आते ही मैं तत्काल हरकत में आया और दौड़ते हुए उपर की तरफ़ भागा। कमरे के हाल की सीढीयां तीसरी मंजिल मे मेरे कमरे के पास जा कर खतम होती थी, सीढीयों के खतम होते ही सीधे हाथ की तरफ़ मुड़ने पर २-३ कदमों के बाद मेंरे कमरे का दरवाजा था, और उसके बाद थोड़ा आगे जा कर फ़िर सीधे मुड़ने पर ४-५ कदमों के फ़ासले से मेंरी गुलबदन हसीना रश्मी जान के कमरे का दरवाजा, और उसके २-३ कदमों के बाद एक छोटी सी २ टप्पे वाली सीढी थी जिसे लांघ कर छत पर जाया जा सकता था। उसी छत पर भाभी के कमरे की एक मध्यम आकार की खिड़की थी जिस पर गर्मी से बचाव के लिये कूलर लगा कर रखा था।
चूंकि अभी गर्मी के दिन नहीं थे इसलिये कूलर का उपयोग नहीं होता था और बंद ही रहता था। मैने अपने खाली समय में छत में जा कर उस कूलर के पिछले हिस्से से उसमें लगी खस को काफ़ी कुछ निकाल दिया था और एक जगह से छेद जैसा बना दिया था, कूलर के उसी छेद से मैं भाभी के कमरे की हर चीज को असानी से देख सकता था। मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ़ गया और फ़िर वहां से तेज चाल चलते हुए रश्मी के कमरे दरवाजे के पास जा कर खड़ा हुआ और दरवाजे पर कान लगा कर सुनने की कोशीश करने लगा कि अंदर मेंरी जानेमन क्या कर रही है? मुझे अंदर उसके चहल कदमी की अवाज आई और फ़िर कुछ ही क्षणों में मुझे उसके कपड़ों की अलमारी के खुलने की अवाज आई। मैं तत्काल वहां से हट कर छत में चला गया। वहां घुप्प अंधकार छाया हुआ था बादलों की वजह अकाश में तारे भी नहीं दिख रहे थे।
मैं सीधे कूलर के पास गया और उसके खस को हटा कर बनाए हुए छेद में आंख गड़ाकर देखने लगा। मुझे अंदर का दृष्य उसके कमरे की ट्यूब लाईट की रोशनी के कारण साफ़ दिखई दे रहा था, उसने अलमारी से अपना नाइट गाउन बाहर निकाल कर आल्मारी को बंद किया और वो पलंग की तरफ़ गई वहां उसने अपना गाउन रखा और और उसने अपने पल्लु को हटा कर नीचे गिरा दिया अब उसका ब्लाउस साफ़ दिखाइ दे रहा था अब उसने अपने लहंगे में फ़ंसी साड़ी को भी निकाल कर अलग कर दिया । वो अब केवल लहंगे और ब्लाउस में खड़ी थी । तभी अचानक वो चलते हुए कूलर की तरफ़ बढी मैने देखा चलते वक्त उसके वक्ष बेहतरीन अंदाज में हिल रहे थे। कूलर के ठीक नीचे टी.वी. था वो उसके पास आइ और टी.वी. चालू कर दिया। अब वो t.v. देखते हुए ही अपना हाथ अपने ब्लाउस की तरफ़ ले गई और उसने उसका पहला बटन खोल दिया अगर छत में कूलर न होता तो मेंरे और उसके बीच केवल एक हाथ का ही अंतर था। इतने पास से उसका बदन देखने से मेंरा मुंह सूखने लगा और लंड़ ने अंदर बगावत कर दी अब मुझे उसको संभालना मुश्किल हो रहा था। जैसे ही उसने अपने ब्लाउस का पहला बटन खोला मुझे उसकी क्लीवेज साफ़ दिखाई देने लगी अब लंड़ बुरी तरह से कड़क हो गया था और उसे संभालने में मुझे दिक्कत होने लगी मैने उसे सीधा करने के लिये जैसे ही खड़ा होने की कोशीश की उत्तेजना के कारण मै हल्का सा कूलर से टकरा गया और थोड़ी सी टकराने की अवाज हुइ मैं घबड़ा गया और कूलर के पास से हट गया और अपने लंड़ को सीधा किया। मुझे ऎसा लगा कि मैं वहां से भाग जाऊं लेकिन रश्मी का गदराया बदन देखने की चाहत में फ़िर जोखिम उठाते हुए कूलर में आंख गड़ाकर अंदर देखने लगा।
t.v. चलने की वजह से उसने उस अवाज को नहीं सुना था , मैने देखा वो उसी जगह खडी थी टी.वी. देखते हुए अब तक उसने अपने ब्लाउस के सभी बटन खोल लिये थे और उसकी ब्लाउस के अंदर से मुझे उसकी गुलाबी ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी। उसकी छातीयां पूरी गोलाईयां लिये थी और वो पूरी तरह से कड़क थी लग्भग ३८ की साईज और पूरी तरह से कड़क स्तन मेंरा लंड़ अपने आप हरकत करने लगा और झटके देने लगा। अब उसने अपना ब्लाउस भी नीचे गीरा दिया और वो केवल लहंगे और ब्रा में मेरे ठीक सामने खड़ी थी। मेंरा ऎसा मन हुआ की अभी उसके कमरे में जा कर उसको चोद डालूं। ब्लाउस नीचे गीरा देने के बाद उसने t.v. देखते हुए अपना हाथ अपने लहंगे के नाडे पर रखा और धीरे से नाड़ा खोल कर उसे छोड़ दिया उसका लहंगा अपने आप नीचे गीर गया । अब एक अनिद्द सुंदरी मेरे सामने केवल पेन्टी और ब्रा में खड़ी थी और मैं उसे देखने के अलावा कुछ भी कर पाने की स्थीति में नही था। मैंने अपने लंड़ को जोर से दबा लिया । केले के पत्तों की तरह चिकनी जांघ और कमर में फ़ंसी गुलाबी पेन्टी उसकी खुबसूरती को और बढा रहे थे।चूंकी वो खिड़की के काफ़ी करीब खड़ी इसलिये मुझे
सब साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था। उसकी गुलाबी पेन्टी से उसकी चूत का उभार साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था।
अब क्लाईमेक्स शुरु होने वाला था, उसने अपने हाथों से अपनी ब्रा की पट्टी को कंधो से नीचे गीरा दिया और इधर मेंरे दिल की धड़्कन तेज होने लगी। अब उसने अपनी ब्रा को हाथों से घुमाते हुए उसके पिछले हिस्से आगे कर लिया याने ब्रा के हुक सामने आ गये इस्के कारण अब वो लगभग नंगी हो चुकी थी उसके विशाल तने हुए स्तन मेंरी नजरों के सामने झूल रहे थे और मेंरी जवानी को ललकार रहे थे। अब उसने अपने ब्रा के हुक को खोला और अपनी छातीयों ब्रा के बंधन से अजाद कर दिया। अब वो मेंरे सामने जवानी के रस से भरपूर अपनी गदराइ हुई छातीयों को खोले हुए नंगी खड़ी थी।मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था,
मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से रश्मी के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।
Posted : 12/06/2011 8:51 am
Anonymous
(@Anonymous)
कमरे के अंदर का दृष्य अब और भी उत्तेजक हो चुका था,मैने देखा कि रश्मी अब वापस पलंग की तरफ़ जा रही है अपने नाईट गाउन को पहनने के लिये और वो पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,इतनी देर में उसने अपनी पेन्टी भी उतार फ़ेंकी थी। उसकी पूरी तरह से अनावृत निर्वस्त्र बड़ी बड़ी भरपूर गोलाईयों वाली मांसल गांड़ चलते समय बड़े मोहक अंदाज मे हील रही थी। मै कुछ क्षण के लिये उसकी उत्तेजक गांड़ की अंतहीन दरार में खो गया।अब मेंरा हाथ धीरे धीरे अपने लंड़ पर आगे पीछे सरकने लगा और मैं रश्मी के नंगे जिस्म को देखते हुए मुठ्ठ मारने लगा। तभी अचानक उसके कमरे में फ़ोन बज उठा, फ़ोन की घंटी सुन कर उसके बढते कदम रुक गए और वो वहीं ठिठक कर खड़ी हो गई। शायद वो ये अंदाज लगाने की कोशीश कर रही थी इस वक्त किस्का फ़ोन हो सकता है। कहीं गाउन पहनने के चक्कर में फ़ोन बंद न हो जाय ये सोच कर तुरंत पलटी और उसके पलटते ही मेरे पूरे शरीर में हजारों वाट का करंट दौड़ गया, कितनी खूबसूरत नंगी थी मेंरी रश्मी भाभी। वो उसी तरह नंगी ही दौड़ते हुए t.v. की तरफ़ दौड़ी,फ़ोन वहीं रखा था उसके उपर। भाभी जब नंगी दौड़ कर फ़ोन की तरफ़ आ रही थी तो उसके दोनो वक्ष बुरी तरह से उछल रहे थे और एक दूसरे से टकरा रहे थे,ऎसा दृष्य को देख कर मेंरे मन में हाहाकार मच गया और मैं उत्तेजना के अत्यधिक आवेश में कूलर को ही अपने आगोश में लेकर उसे चुमने लगा।अंदर नंगी भाभी और बाहर उसका नंगा देवर दिवाना। दोनों ही अपने अपने कारणॊ से अधूरे और प्यासे थे। देवर तो पहले से ही पागल हो चुका था और रश्मी की बुर चोदने के लिये तड़फ़ रहा था, और रश्मी उसे अभी और थोड़ी चिंगारी और वज्रपात की जरुरत थी अपने ही देवर के साथ अवैध
संबंध बनाने के लिये।
औरत दो ही कारणों से अपनी लक्षमण रेखा को लांघती है पहला यदी पति इस लायक है तो वो उसे बचाने के लिये अपने घर की दहलीज लांघ कर यम के दरबार से भी अपने पति के प्राण वापस ले आती है और दूसरा यदि वो नालायक है और उसके मनोभावों को नहीं समझता तब वो इस दिवार को लांघ कर लाती है अपना यार और फ़िर शुरु होता है पति-पत्नी और "वो" का अंतहीन सिलसिला । रश्मी के लिये राज अभी तक दूसरे दर्जे वाला ही पति ही साबित हुआ था । उसकी शादी जरुर हुई थी और उसे एक बड़े घर की बहू होने का पूरा सम्मान भी मिला था अपने ससुराल से और समाज से लेकिन पति के जिस प्यार के लिये स्त्री यम से भी लड़ने का साहस जुटा लेती है उसका एक अंश भी राज उसे नहीं दे पाया था और न ही उसके पास इसके लिये समय था और न उसकी इतनी समझ थी। पति की इस बेरुखी से उपजे खालीपन ने रश्मी को शर्मिली से गूंगी भी बना दिया था। तुषार ने रश्मी के इस खालीपन को पकड़ लिया था और इसीलिये इस गदराइ हसीना की बुर चोदने के लिये पागल था।
३०-४० सेकण्ड़ तक उसी तरह से अपना हाथ का उपरी भाग उसकी गांड़ पर रखने के बाद मैंने फ़िर से अपने हाथ को घुमा लिया और अपनी हथेली को उसकी गांड़ से लगा दिया, अब उसकी गांड़ मेंरी हथेली में थी। अब तक उसे पूरी तरह से यकीन हो चुका था कि मैं उसके शरीर से खेल रहा हूं। और यही मैं चाहता भी था।
इस बीच मेंरी मां और भाई के बीच फ़ोन पर संवाद जारी था
मां - बेटा राज क्या तुम इस बार छुट्टी में थोड़े ज्यादा समय के लिये घर आ सकते हो?
राज - क्यों मां ?
मां - दरअसल मैं तुम से तुषार के विवाह के बारे में बात करना चाहती हूं?
राज - लेकिन मां अभी तो वो पढ़ रहा है न?
मां - हां, लेकिन समय जाते कहां पता चलता है? और फ़िर ये उसका अखीरी साल ही तो है न कालेज का? और फ़िर तुम्हारे पापा ने कह दिया है कि कालेज खत्म करने के बाद तुषार
उनका बीमा का काम ही संभालेगा सो नौकरी की चिंता जैसी कोई बात उसके साथ नहीं है।
राज - तो तुमने कोई लड़की देखी है उसके लिये?
मां - हां और मुझे तो बेहद पसंद भी है और तुषार को भी।
राज - अच्छा!! कौन है मां वो खुशनसीब लड़की?
मां - सुधा। अगर तुन्हें कोई आपत्ति न हो तो।
राज ने लग्भग चिखते हुए कहा - क्या!!!!! सुधा!!!!! , भला ममममुझे क्या आपत्ति हो सकती है। रश्मी से पूछो।
मां - अरे हमारी तरफ़ से बात तो बही चलाएगी न। लेकिन तू साफ़ साफ़ बता कि तुझे अपनी साली सुधा से तुषार की शादी में कोई ऎतराज तो नहीं है न?
राज - क्या मां , भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, बल्कि ये तो रश्मी के लिये भी बहुत अच्छा होगा उसे यहां अपनी बहन की कंपनी मिल जायेगी। और वो काफ़ी भले लोग है, और मैं सुधा को अच्छी तरह से जानता हूं काफ़ी सरल और शांत लड़की है वो। मां मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
इधर मां के मुंह से अपनी बहन और मेंरी शादी की बात सुन कर मेंरी गुलबदन रश्मी जान बुरी तरह चौंक गई और आश्*चर्य से कभी मां की तरफ़ तो कभी कभी मेंरी तरफ़ देख रही थी। और मैंने भी मौके का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अपनी हसीना की गांड़ को जरा जोर से दबा दिया। और उसकी गांड़ में हल्के से हाथ घुमाते हुए उसकी अंडरवियर को तलाशते हुए अपना हाथ उसकी अंडरवियर के उभार पर रख दिया। अब वो अपने प्रति मेंरी हवस को समझ चुकी थी लेकिन अब तो वो चाह कर भी न तो मेंरे घर में और ना ही अपने घर में कुछ बता सकती थी। मेंरे एक ही दांव ने उसको चारों खाने चित्*त कर दिया था और वो लाजवाब हो गई थी।
अचानक उसने मां से कहा कि उसे भाई से कुछ बात करनी है, मां ने भी तत्काल अपनी बात खतम करते हुए फ़ोन उसे दे दिया जैसे ही फ़ोन उसने लिया मेरा दिल धड़कनेलगा और मेंरी गांड़ फ़टने लगी कि ये क्या बोलेगी। उसने फ़ोन हाथ में लेकर भाई से कहा-
रश्मी भाभी- आप कब आ रहे हैं यहां?
राज - अभी तो नहीं, और इस बार आने में थोडा़ देर हो सकती है क्योंकि यहां काम कुछ ज्यादा है। इस बार केवल एक दिन के लिये ही आ पाउंगा क्योंकि उसके तुरंत बाद मुझे छ: महिने की ट्रेनिंग के लिये बंगलौर जाना है और उस दौरान हम अपना परिवार साथ नही रख सकते। ट्रेनिंग के खतम होने के बाद मुझे २ वर्ष के लिये किसी भी शहर मे काम करना होगा। वहां तुम साथ रह सकती हो लेकिन तुम तो देखती हो न कि मै कैसे महीने भर तक घर बाहर ही रहता हूं। सो, पराए शहर में मैं तुम्हें कई दिनों तक अकेले रखना ठीक नहीं समझता कम से कम अपने परिवार में तुम सुरक्षित तो हो। रश्मी मेंरे नौकरी में अच्छी जगह बनाने के लिये तुम्हें इतना सहयोग तो देना पडे़गा।
रश्मी भाभी - ठीक है जैसा उचित समझें किजीये। आने के पहले फ़ोन करना मत भूलना, अच्छा रखती हूं। ऎसा कह कर उसने फ़ोन रख दिया।
उसके फ़ोन रखते ही मेंरी जान में जान आई, उसके फ़ोन लेते समय मुझे ये भय सता रहा था कि कहीं वो रिश्ते के लिये मना न कर दे और मेंरे बारे में भाई को न बता दे। अब उसकी तरफ़ से मेंरा मन सदा के लिये निर्भय हो चुका था।
मां तो भाभी को फ़ोन देते ही यह कह कर चली गई कि उसे बहुत नींद आ रही है। इधर भाभी ने फ़ोन रखते ही मेंरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा और कहा सुधा इनती पसंद थी तो मुझे क्यों नहीं बताया, मैने मन में सोचा अगर तुझे बताता तो शायद बात बिगड़ भी सकती थी। लेकिन मैं मुस्कुराते रहा और कहा वो मेंरी मां है और मेंरे बात कतने से ही मेंरे इशारों को समझ गई आप शायद नहीं समझ पाती, उसने कहा कर के तो देखते एक बार। मैंने तपाक से जवाब दिया आप कहां समझती है मेंरे इशारे। वो बुरी तरह से झेंप गई और अपना सर निचे कर दिया और कहा ऎसा नहीं है इतनी मूर्ख और नादान भी नहीं हूं मैं समझने वाले सारे ईशारे समझ ही समझ जाती हूं, अब जिन्हें समझना ही नहीं है ऎसे ईशारों को समझने से क्या मतलब। मैने भी तत्काल कहा मुझे क्या पता आप कौन से इशारे समझती हैं? और कौन से नहीं इसीलिये मैने मां से कहा । उसने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल एक व्यंग भरी नजर से मुझे देखा और हौले से मुस्कुरा दिया। फ़िर उसने धीरे से कहा चलिये अब आपके साथ ड़बल रिश्ता होने जा रहा है बहुत बधाई आपको। मैने मन में कहा ड़बल नहीं मेंरी जान ट्रिपल रिश्ता कायम होने जा रहा है। लेकिन प्रत्यक्षत: केवल थैंक्स भाभी कहा। उसने कहा मुझे बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूं गुड़ नाईट, और ऎसा कह कर वो धीरे धीरे सीढीयों की तरफ़ बढने लगी, चलते वक्*त उसकी बड़ी बड़ी गांड़ हौले हौले हील रही थी और उसकी टाइट साड़ी से उसकी अंड़रवियर का उभार साफ़ दिख रहा था जिसे देख कर मेंरा लण्ड़ बुरी तरह से खड़ा हो गया। मेंरी किस्मत में अभी कुछ दिन और तड़फ़ना लिखा था, उसने उपर जाते हुए एक तिरछी नजर मुझ पर ड़ाली और हमारी नजर मिलते ही अपनी नजर निचे कर दिया लेकिन वो अपनी हल्की मुस्कान को मुझ से नहीं छिपा सकी और वो तेजी से सीढीयां चढते हुए अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
मैं भाभी को अपने कमरे में घुसते तक देखता रहा जैसे ही वो कमरे में गई मेंरे दिमाग में तुरंत ये विचार आया कि अब ये नंगी हो कर अपने कपड़े बदलेगी। ये विचार आते ही मैं तत्काल हरकत में आया और दौड़ते हुए उपर की तरफ़ भागा। कमरे के हाल की सीढीयां तीसरी मंजिल मे मेरे कमरे के पास जा कर खतम होती थी, सीढीयों के खतम होते ही सीधे हाथ की तरफ़ मुड़ने पर २-३ कदमों के बाद मेंरे कमरे का दरवाजा था, और उसके बाद थोड़ा आगे जा कर फ़िर सीधे मुड़ने पर ४-५ कदमों के फ़ासले से मेंरी गुलबदन हसीना रश्मी जान के कमरे का दरवाजा, और उसके २-३ कदमों के बाद एक छोटी सी २ टप्पे वाली सीढी थी जिसे लांघ कर छत पर जाया जा सकता था। उसी छत पर भाभी के कमरे की एक मध्यम आकार की खिड़की थी जिस पर गर्मी से बचाव के लिये कूलर लगा कर रखा था।
चूंकि अभी गर्मी के दिन नहीं थे इसलिये कूलर का उपयोग नहीं होता था और बंद ही रहता था। मैने अपने खाली समय में छत में जा कर उस कूलर के पिछले हिस्से से उसमें लगी खस को काफ़ी कुछ निकाल दिया था और एक जगह से छेद जैसा बना दिया था, कूलर के उसी छेद से मैं भाभी के कमरे की हर चीज को असानी से देख सकता था। मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ़ गया और फ़िर वहां से तेज चाल चलते हुए रश्मी के कमरे दरवाजे के पास जा कर खड़ा हुआ और दरवाजे पर कान लगा कर सुनने की कोशीश करने लगा कि अंदर मेंरी जानेमन क्या कर रही है? मुझे अंदर उसके चहल कदमी की अवाज आई और फ़िर कुछ ही क्षणों में मुझे उसके कपड़ों की अलमारी के खुलने की अवाज आई। मैं तत्काल वहां से हट कर छत में चला गया। वहां घुप्प अंधकार छाया हुआ था बादलों की वजह अकाश में तारे भी नहीं दिख रहे थे।
मैं सीधे कूलर के पास गया और उसके खस को हटा कर बनाए हुए छेद में आंख गड़ाकर देखने लगा। मुझे अंदर का दृष्य उसके कमरे की ट्यूब लाईट की रोशनी के कारण साफ़ दिखई दे रहा था, उसने अलमारी से अपना नाइट गाउन बाहर निकाल कर आल्मारी को बंद किया और वो पलंग की तरफ़ गई वहां उसने अपना गाउन रखा और और उसने अपने पल्लु को हटा कर नीचे गिरा दिया अब उसका ब्लाउस साफ़ दिखाइ दे रहा था अब उसने अपने लहंगे में फ़ंसी साड़ी को भी निकाल कर अलग कर दिया । वो अब केवल लहंगे और ब्लाउस में खड़ी थी । तभी अचानक वो चलते हुए कूलर की तरफ़ बढी मैने देखा चलते वक्त उसके वक्ष बेहतरीन अंदाज में हिल रहे थे। कूलर के ठीक नीचे टी.वी. था वो उसके पास आइ और टी.वी. चालू कर दिया। अब वो t.v. देखते हुए ही अपना हाथ अपने ब्लाउस की तरफ़ ले गई और उसने उसका पहला बटन खोल दिया अगर छत में कूलर न होता तो मेंरे और उसके बीच केवल एक हाथ का ही अंतर था। इतने पास से उसका बदन देखने से मेंरा मुंह सूखने लगा और लंड़ ने अंदर बगावत कर दी अब मुझे उसको संभालना मुश्किल हो रहा था। जैसे ही उसने अपने ब्लाउस का पहला बटन खोला मुझे उसकी क्लीवेज साफ़ दिखाई देने लगी अब लंड़ बुरी तरह से कड़क हो गया था और उसे संभालने में मुझे दिक्कत होने लगी मैने उसे सीधा करने के लिये जैसे ही खड़ा होने की कोशीश की उत्तेजना के कारण मै हल्का सा कूलर से टकरा गया और थोड़ी सी टकराने की अवाज हुइ मैं घबड़ा गया और कूलर के पास से हट गया और अपने लंड़ को सीधा किया। मुझे ऎसा लगा कि मैं वहां से भाग जाऊं लेकिन रश्मी का गदराया बदन देखने की चाहत में फ़िर जोखिम उठाते हुए कूलर में आंख गड़ाकर अंदर देखने लगा।
t.v. चलने की वजह से उसने उस अवाज को नहीं सुना था , मैने देखा वो उसी जगह खडी थी टी.वी. देखते हुए अब तक उसने अपने ब्लाउस के सभी बटन खोल लिये थे और उसकी ब्लाउस के अंदर से मुझे उसकी गुलाबी ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी। उसकी छातीयां पूरी गोलाईयां लिये थी और वो पूरी तरह से कड़क थी लग्भग ३८ की साईज और पूरी तरह से कड़क स्तन मेंरा लंड़ अपने आप हरकत करने लगा और झटके देने लगा। अब उसने अपना ब्लाउस भी नीचे गीरा दिया और वो केवल लहंगे और ब्रा में मेरे ठीक सामने खड़ी थी। मेंरा ऎसा मन हुआ की अभी उसके कमरे में जा कर उसको चोद डालूं। ब्लाउस नीचे गीरा देने के बाद उसने t.v. देखते हुए अपना हाथ अपने लहंगे के नाडे पर रखा और धीरे से नाड़ा खोल कर उसे छोड़ दिया उसका लहंगा अपने आप नीचे गीर गया । अब एक अनिद्द सुंदरी मेरे सामने केवल पेन्टी और ब्रा में खड़ी थी और मैं उसे देखने के अलावा कुछ भी कर पाने की स्थीति में नही था। मैंने अपने लंड़ को जोर से दबा लिया । केले के पत्तों की तरह चिकनी जांघ और कमर में फ़ंसी गुलाबी पेन्टी उसकी खुबसूरती को और बढा रहे थे।चूंकी वो खिड़की के काफ़ी करीब खड़ी इसलिये मुझे
सब साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था। उसकी गुलाबी पेन्टी से उसकी चूत का उभार साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था।
अब क्लाईमेक्स शुरु होने वाला था, उसने अपने हाथों से अपनी ब्रा की पट्टी को कंधो से नीचे गीरा दिया और इधर मेंरे दिल की धड़्कन तेज होने लगी। अब उसने अपनी ब्रा को हाथों से घुमाते हुए उसके पिछले हिस्से आगे कर लिया याने ब्रा के हुक सामने आ गये इस्के कारण अब वो लगभग नंगी हो चुकी थी उसके विशाल तने हुए स्तन मेंरी नजरों के सामने झूल रहे थे और मेंरी जवानी को ललकार रहे थे। अब उसने अपने ब्रा के हुक को खोला और अपनी छातीयों ब्रा के बंधन से अजाद कर दिया। अब वो मेंरे सामने जवानी के रस से भरपूर अपनी गदराइ हुई छातीयों को खोले हुए नंगी खड़ी थी।मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था,
मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से रश्मी के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।
Posted : 12/06/2011 8:51 am
Anonymous
(@Anonymous)
कमरे के अंदर का दृष्य अब और भी उत्तेजक हो चुका था,मैने देखा कि रश्मी अब वापस पलंग की तरफ़ जा रही है अपने नाईट गाउन को पहनने के लिये और वो पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,इतनी देर में उसने अपनी पेन्टी भी उतार फ़ेंकी थी। उसकी पूरी तरह से अनावृत निर्वस्त्र बड़ी बड़ी भरपूर गोलाईयों वाली मांसल गांड़ चलते समय बड़े मोहक अंदाज मे हील रही थी। मै कुछ क्षण के लिये उसकी उत्तेजक गांड़ की अंतहीन दरार में खो गया।अब मेंरा हाथ धीरे धीरे अपने लंड़ पर आगे पीछे सरकने लगा और मैं रश्मी के नंगे जिस्म को देखते हुए मुठ्ठ मारने लगा। तभी अचानक उसके कमरे में फ़ोन बज उठा, फ़ोन की घंटी सुन कर उसके बढते कदम रुक गए और वो वहीं ठिठक कर खड़ी हो गई। शायद वो ये अंदाज लगाने की कोशीश कर रही थी इस वक्त किस्का फ़ोन हो सकता है। कहीं गाउन पहनने के चक्कर में फ़ोन बंद न हो जाय ये सोच कर तुरंत पलटी और उसके पलटते ही मेरे पूरे शरीर में हजारों वाट का करंट दौड़ गया, कितनी खूबसूरत नंगी थी मेंरी रश्मी भाभी। वो उसी तरह नंगी ही दौड़ते हुए t.v. की तरफ़ दौड़ी,फ़ोन वहीं रखा था उसके उपर। भाभी जब नंगी दौड़ कर फ़ोन की तरफ़ आ रही थी तो उसके दोनो वक्ष बुरी तरह से उछल रहे थे और एक दूसरे से टकरा रहे थे,ऎसा दृष्य को देख कर मेंरे मन में हाहाकार मच गया और मैं उत्तेजना के अत्यधिक आवेश में कूलर को ही अपने आगोश में लेकर उसे चुमने लगा।अंदर नंगी भाभी और बाहर उसका नंगा देवर दिवाना। दोनों ही अपने अपने कारणॊ से अधूरे और प्यासे थे। देवर तो पहले से ही पागल हो चुका था और रश्मी की बुर चोदने के लिये तड़फ़ रहा था, और रश्मी उसे अभी और थोड़ी चिंगारी और वज्रपात की जरुरत थी अपने ही देवर के साथ अवैध
संबंध बनाने के लिये।
औरत दो ही कारणों से अपनी लक्षमण रेखा को लांघती है पहला यदी पति इस लायक है तो वो उसे बचाने के लिये अपने घर की दहलीज लांघ कर यम के दरबार से भी अपने पति के प्राण वापस ले आती है और दूसरा यदि वो नालायक है और उसके मनोभावों को नहीं समझता तब वो इस दिवार को लांघ कर लाती है अपना यार और फ़िर शुरु होता है पति-पत्नी और "वो" का अंतहीन सिलसिला । रश्मी के लिये राज अभी तक दूसरे दर्जे वाला ही पति ही साबित हुआ था । उसकी शादी जरुर हुई थी और उसे एक बड़े घर की बहू होने का पूरा सम्मान भी मिला था अपने ससुराल से और समाज से लेकिन पति के जिस प्यार के लिये स्त्री यम से भी लड़ने का साहस जुटा लेती है उसका एक अंश भी राज उसे नहीं दे पाया था और न ही उसके पास इसके लिये समय था और न उसकी इतनी समझ थी। पति की इस बेरुखी से उपजे खालीपन ने रश्मी को शर्मिली से गूंगी भी बना दिया था। तुषार ने रश्मी के इस खालीपन को पकड़ लिया था और इसीलिये इस गदराइ हसीना की बुर चोदने के लिये पागल था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
