30-01-2023, 02:15 AM
हमारा परिवार एक बहुत ही आदर्श परिवार है सभी बड़े उँचे विचारों वाले लोग हैं। केवल मुझे छोड़ कर, हमारी मताजी की सोच है कि लड़्की हमेंशा अपने से छोटे घर की लानी चाहिये ताकि वो घर में असानी से निभा सके और अपनी लड़्की को हमेशा अपने से बड़े घर में देनी चाहिये, ताकि वो सुखी रह सके। सो मेंरे परिवार ने अपने उच्च विचारों के अनुसार मेंरे बड़े भाई की शादी एक अत्यन्त ही गरीब घर की लड़्की से कर दी उनकी इतनी भी हैसियत नहीं थी कि वो लोग अपनी लड़्की को ढंग के दो जोड़ी कपड़े भी दे सके। लेकिन गरीब होने के बाद भी वे बड़े खुद्दार लोग थे कभी किसी को अपनी गरीबी क अह्सास नहीं होने देते थे। उन्होने अपनी लड़्की को जैसा कि आम मध्यम वर्गीय गरीब परिवारों में शिक्षा दी जाती है वो सभी शिक्षा दि थी जैसे हर परिस्थिति में रहना , सब के साथ तालमेल रखना परिवार में कभी किसी कि चुगली न करना आदि आदि। वैसे भी मेंरी भाभी के परिवार की आर्थिक स्थिती मध्यम ही रही है बचपन से उनके परिवार ने अनेंक आर्थिक विषमताएं देखी है सो परिवार के लोग वैसे ही बड़े शालीन एवं विनम्र हैं।
भाभी कालेज भी पैदल ही आना जान करती थी उनके कालेज में भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे और जो थे वो भी कुछ खास नहीं थे, गरीबॊं के वैसे भी ज्यादा दोस्त नहीं होते है।धन की की कमी इंन्सान को जीवन मे बड़ा ही संकुचित एवं आत्मविश्वास विहिन बना देते है। मेंरी भाभी के साथ भी कुछ ऎसा ही था वो बहुत ही सकुचा कर रहती थी अन्यन्त अल्प बात करती थी । किसी भी बात का "जी" "अच्छा" "ठीक है" ऎसे ही जवाब देती थी बहुत ही संभल कर बोलती थी उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकि बातों से कोई भी सदस्य नारज ना होने पाये। कभी कुछ गलत हो जाये तो भी शिकायत नहीं करती थी।शायद उसे अभी अपनी तीन जवान बहनों कि शादी कि चिंता मन ही मन सता रही थी इसलिये उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकी वजह से उसके परिवार का नाम खराब ना हो और उसकी बहनॊं कि शादी में कोई अड़्चन ना आये। गरीब मध्यम वर्गीय परिवारों के लिये तो वैसे भी ईज्जत ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मेंरी मां तो बड़ी खुश थी ऎसी शर्मिली बहू को पाकर।
मुझे अपनी भाभी कि जो बात सबसे ज्यादा पसंद थी वो था उसका शानदार जिस्म। गोरा बदन,सुंदर चेहरा,बेह्तरीन चिकनी एवं मोटी जांघे,बाहर की तरफ़निकलती हुई गोल गोल मोटी मोटी गांढ़ और मदहोश करने वाली रसीली शानदार उभारों वाली उसकी दोनों छातियां। मैं तो जब भी उसे देखता मेरा लंड़ खड़ा हो जाता और मुझे ऎसी ईच्छा होती कि मै इसे तुरंत नंगी कर ड़ालू और उसकी रसीली छातियों में भरे हुए जवानी के रस को जी भर कर पिऊ। लेकिन ये एक सच्चाई थी कि वो रसीली छातियां और मखमली चूत मेंरी नही थी। ये सोच कर मेंरा मन अपने भाई के प्रति थोड़ी देर के लिये घृणा से भर जाता।
मेंरा भाई वैसे भी उस बेह्तरीन जवान पुदी का मजा नहीं ले पाता था क्योंकि उसकी नौकरी ही ऎसी थी महिने में बीस दिन तो बो बाहर ही रहता था। बचे हुए दस दिनों में सात दिन उसे शहर में अपनी टिम के साथ घूमना होता था।अब तीन दिन में नंगा नहायेगा क्या ? और निचोडे़गा क्या? सो किसी-किसी महिने तो भाभी बिन चुदी ही रह जाती थी। कभी कभी मुझे ऎसा विचार आता कि भाभी के लिये ऎसे विचार मन में लाना गलत है, लेकिन जैसे ही भाभी मेंरे साम्ने आती मेंरी कामवासना मेंरी अन्तरात्मा पर हावी हो जाती और मैं फ़िर से उत्तेजित हो जाता और उसको चोदने के खयाल में डूब जाता । मेंरे लिये तो भाभी को चोदना अब एक मिशन बन चुका था, मैं मन ही मन अपनी भाभी के उपर न्योछावर हो चुका था और उसके बेह्तरिन जिस्म का दिवाना बन गया था। अब तो रात दिन मेंरे मन में भाभी को चोदने का ही खयाल रहता था।
भाभी का शर्मिलापन मेंरे लिये काफ़ी सुखद और मेंरी योजना में काफ़ी सहायक था। मैने तय कर लिया कि ऎसे भाभी के जिस्म को चोदने का खयाल कर के मुठ्ठ मारने से कुछ हासिल नही होने वाला उसे पाने के लिये प्रयास करना पड़ेगा। वैसे भी जिस इंसान के लिये इस बेह्तरीन पुदी को घर में लाया गया था उसे तो इसे ठीक से देखने की भी फ़ुर्सत नहीं थी चोदने की बात तो बहुत दूर थी। दौलत और जवानी दोनों ही उपभोग करने पर हि सुख देते हैं अन्यथा दोनों बोझ बन कर रह जाते है। दौलत और औरत की जवानी दोनों को ही अपनी रक्षा के लिये मजबूत कंधो के सहारे की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कोई भी लूट कर ले जा सकता है। मेंरे घर में भी जवानी की दौलत खुले आम घूम रही थी और उसका रखवाला गायब था। सो मैंने उसे लूटने का फ़ैसला कर लिया था। बस प्रयास करना था और अवसर हासिल करना था ।
अब मैने भाभी के ज्यादा से ज्यादा करीब रहेने का विचार कर लिया। जब भी भाभी घर में अकेले मिलती मैं उससे काफ़ी सट कर या करीब खड़े रहने का ही प्रयास करता, और मौका मिलते ही मैं उसके गदराए बदन पर कहीं पर भी हाथ लगाने से नहीं चुकता और ऎसे जाहिर करता जैसे ये सब अन्जाने में हो गया है। भाभी के अकेले मेरे सामने से गुजरते ही मैं उसके रसीले बदन को निहरने लगता विशेषकर उसकी शानदार उभरों वाली रसीली छातीयों को । ऎसा नहीं है कि उसे ये सब पता नहीं था उसे अब मुझ पर कुछ कुछ शंका होने लगी थी, और मैं चाहता भी यही था कि तुझे कुछ समझ तो आए मेंरी जान । मै अकेले में जब भी उससे बात करता तो मेंरा ध्यान पूरी तरह से उसकी अनछुई कड़्क जवानी के रस से भरपूर छातीयों पर ही रहता । झिनी साड़ी के भीतर से दिखने वाले उसकी छाती के क्लिवेज का तो मैं दिवाना बन गया था। और मैं भी उसे बुरी तरह से घूर कर उसे पूरी तरह से समझा देता था कि मैं तेरे कौन से अंग को निहार रहा हूं। वो बुरी तरह से झेंप जाती थी,लेकिन हाय रे उसकी शरम वो चाह कर भी मेंरे सामने अपना पल्लु ठीक नहीं कर पाती थी, और मैं उसके शर्म का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए उसके जिस्म को घूरने का पूरा मजा लेने लगा।और इसी शर्म का लाभ उठाते हुए मैं उसकी जवान बुर का रस भी पीना चाह्ता था।
इसी तरह से कुछ दिन बीत गये और मेंरे मन का ये ड़र निकल गया कि कहीं ये मेंरी हरकतों को घर में मेरी मां या बहन को न बता दे। इस बीच दो-तीन बार भाई का फ़ॊन आया लेकिन उसकी बातों से कहीं नही लगा कि मेंरी गदराई स्वप्न सुंदरी ने उसे इस बारे में कुछ भी बताया हो ।
उसने एक बार मुझ से फ़ॊन पर कहा कि अपनी भाभी से खाली काम ही करवाता है कि उसे घूमाने भी ले जाता है, देख वो बहुत चुप रहने वाली लड़्की है उसे कोई तकलीफ़ भी होगी तो वो अपने मुंह से नही बोलेगी शरम और झिझक तो जैसे वो दहेज में लाई है। मां को तो अपने पूजा पाठ और किटी पार्टी से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती होगी, और दिया (मेंरी छोटी बहन) को अपने कालेज,ट्यूशन,पढाई और दोस्तों से। तू अक्सर घर के काम से बाहर बजार वगैरे जाता है तो कभी ले जाय कर उसे साथ में , इसी बहाने उसे शहर के बारे में कुछ तो जानकारी होगी और उसका भी मन लगा रहेगा। मैं तो मन ही मन बड़ा खुश हो गया, उसने तो जैसे मेंरे मुह की बात छीन ली मुझ से। मैने भी फ़ौरन हां कर दी और भाभी के
सामने ही झूठ बोल दिया कि भैया मैं तो कहता हूं लेकिन वो ही नहीं चलती तो मैं क्या करुं, आप ही बोल दो भाभी को ऎसा कह कर मैंने भी को फ़ोन पकड़ा दिया। लेकिन वाह री भाभी उसने एक बार भी भाई से ये नहीं कहा कि मैंने तो ऎसा कभी बोला ही नहीं। वो तो बस जी, हां, अच्छा ऎसे ही बोलती
रही। फ़िर उसने फ़ोन मां को दिया, भाई ने मां को भी वही बात बोली जो उसने मुझ से कही थी, मां ने हंसते हुए कहा तुझे वहां बैठ कर भी चैन नहीं है क्या ? सारा दिन क्या रश्मी (मेंरी भाभी) के बारे में ही सोचता है, काम में मन लगता है कि नहीं ? तू चिंता न कर बेटा मैं तुषार से कह दूंगी वो कभी घर के काम से बाहर जायगा तो कभी रश्मी को ले जाया करेगा। मां ने भाभी की तरफ़ देख कर व्यंग से कहा मुझे तो शक है कि इसके मुंह मे जुबान भी है या नहीं। खैर तू छोड़ बेटा इन सब बातों को हम सब सम्भाल लेंगे मैने तेरे लिये मिर्ची का अचार बना कर रखा है, अगली बार जब तू आयेगा तो ले जाना अपने साथ। खाने का ध्यान रखता है कि नहीं ? जवाब मे उसने कहा तू चिंता न कर मां लेकिन इस बार चेवड़ा और लड्डू ज्यादा देना मेरे कमीने दोस्तों को ये कुछ ज्यादा पसंद है और ये समय से पहले ही खतम हो जाते हैं। मां ने खिलखिलाते हुए कहा ठीक है बेटा इस बार मैं ज्यादा बना दुंगी।
और सुन इस बार तुझे इन चीजों में नया स्वाद मिलेगा क्योंकि इस बार ये सब तेरी गूंगी गुड़ीया से बनवाउंगी। इसी तरह मां बेटे में घरेलु बातें होती रही।
मां जब फ़ोन पर बात कर रही थी तो उसकी पीठ हमारी तरफ़ थी। इसलिये मैं बेखौफ़ भाभी से लगभग सट कर खड़ा था और मेंरा हाथ भाभी के पंजो से टकरा रहे थे। और वो किंकर्तव्यमूढ़ अपना सर जमीन की तरफ़ कर के खड़ी थी। उसके इस निर्विरोध रवैये से मेंरा हौसला बढा और मैने और थोड़ा जोर से उसके हाथों अपना हाथ टकराने लगा। अब मैं पूरी तरह से भाभी से सट कर खड़ा हो गया और मेंरा पूरा हाथ भाभी से चिपक गया । उसके नाजुक बदन की गर्मी से मेंरा लण्ड़ खड़ा हो गया। अब मैने अपना हाथ भाभी की जांघो से धीरे धीरे टकराना शुरु कर दिया। वो पूर्ववत खड़ी रही। अब मैने थोड़ी और हिम्मत करते हुए हाथ हल्का सा पिछे करते हुए उसकी गांड़ पर अपना हाथ मारने लगा। कुछ सेकण्ड़ तक उसकी गांड़ में हाथ टकराने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी गांड़ पर ही रख दिया और धीरे से अपना हाथ घूमाते हुए अपना पंजा उसकी गांड़ पर रख दिया। पंजा उसकी गांड़ पर रख्ते ही वो थोड़ी चिंहुकी और हौले से मेंरी तरफ़ देखा। लेकिन मैं पूरी तरह अन्जान बन कर खड़ा रहा और मां बेटे के फ़ोन पर बात को सुनने का और जबरन मुस्कुराने का नाटक करता रहा। मेंरे लिये ये लिका छिपी अब बर्दाश्त के बाहर होते जा रही थी मैं जल्द ही नतीजा हासिल करना चाह्ता था लेकिन अपने जोश पर होश का कंट्रोल जरुरी था। खैर मैने थोड़ा और प्रयास करते हुए उसकी दांई गांड़ से अपना हाथ घुमाते
हुए उसकी बाई गांड़ पर घुमाते हुए उसके कमर और पीठ पर घुमाते हुए उसके कंधो पर रख दिया जैसे दोस्तों के कंधो पर रख्ते है।
मेंरे हाथ उसके कंधो पर ठीक उसकी ब्रा की पट्टी पर थे,अब मैंने अपनी ऊंगलियों को ढीला छोड़ दिया और अब वो ठीक उस जगह के उपर थी जहां से उसके स्तन काउभार शुरु हो रहा था। बेचारी, अब समझ कर भी अनजान बनने की उसकी बारी थी। घर में मेंरे रुतबे और मान को देखते हुए और अपने घर की हालत तथा एक शादी लायक बहन सहित तीन बहनॊं के घर में बैठे रहने की परिस्थिती तथा पति के लगातार घर से दूर रहने के हालात और अपनी स्वयं की शारीरिक जरुरत इन तमाम बातों ने उसके सामने ऎसे हालत पैदा कर दिये थे कि शायद अभी चुप्पी साधे रखने में ही उसकी भलाई थी। उसकी बेबसी का अब मैं भरपूर मजा ले रहा था, मुझे इस बात का पूरा यकीन हो गया था कि अकेले में शायद भले ही वो मुझे कुछ कहने का साह्स करे लेकिन सब के सामने मुझे कहने या मेंरे बारे में कुछ भी बुरा बोलने का साहस उसमें नही था।
इन बातों का अहसास होते ही और तमाम परिस्थिती अपने पक्ष में होते देख मैंने अपने मन में अपार शांति का अनुभव किया।
भाभी कालेज भी पैदल ही आना जान करती थी उनके कालेज में भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे और जो थे वो भी कुछ खास नहीं थे, गरीबॊं के वैसे भी ज्यादा दोस्त नहीं होते है।धन की की कमी इंन्सान को जीवन मे बड़ा ही संकुचित एवं आत्मविश्वास विहिन बना देते है। मेंरी भाभी के साथ भी कुछ ऎसा ही था वो बहुत ही सकुचा कर रहती थी अन्यन्त अल्प बात करती थी । किसी भी बात का "जी" "अच्छा" "ठीक है" ऎसे ही जवाब देती थी बहुत ही संभल कर बोलती थी उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकि बातों से कोई भी सदस्य नारज ना होने पाये। कभी कुछ गलत हो जाये तो भी शिकायत नहीं करती थी।शायद उसे अभी अपनी तीन जवान बहनों कि शादी कि चिंता मन ही मन सता रही थी इसलिये उसका पूरा प्रयास रहता था कि उसकी वजह से उसके परिवार का नाम खराब ना हो और उसकी बहनॊं कि शादी में कोई अड़्चन ना आये। गरीब मध्यम वर्गीय परिवारों के लिये तो वैसे भी ईज्जत ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मेंरी मां तो बड़ी खुश थी ऎसी शर्मिली बहू को पाकर।
मुझे अपनी भाभी कि जो बात सबसे ज्यादा पसंद थी वो था उसका शानदार जिस्म। गोरा बदन,सुंदर चेहरा,बेह्तरीन चिकनी एवं मोटी जांघे,बाहर की तरफ़निकलती हुई गोल गोल मोटी मोटी गांढ़ और मदहोश करने वाली रसीली शानदार उभारों वाली उसकी दोनों छातियां। मैं तो जब भी उसे देखता मेरा लंड़ खड़ा हो जाता और मुझे ऎसी ईच्छा होती कि मै इसे तुरंत नंगी कर ड़ालू और उसकी रसीली छातियों में भरे हुए जवानी के रस को जी भर कर पिऊ। लेकिन ये एक सच्चाई थी कि वो रसीली छातियां और मखमली चूत मेंरी नही थी। ये सोच कर मेंरा मन अपने भाई के प्रति थोड़ी देर के लिये घृणा से भर जाता।
मेंरा भाई वैसे भी उस बेह्तरीन जवान पुदी का मजा नहीं ले पाता था क्योंकि उसकी नौकरी ही ऎसी थी महिने में बीस दिन तो बो बाहर ही रहता था। बचे हुए दस दिनों में सात दिन उसे शहर में अपनी टिम के साथ घूमना होता था।अब तीन दिन में नंगा नहायेगा क्या ? और निचोडे़गा क्या? सो किसी-किसी महिने तो भाभी बिन चुदी ही रह जाती थी। कभी कभी मुझे ऎसा विचार आता कि भाभी के लिये ऎसे विचार मन में लाना गलत है, लेकिन जैसे ही भाभी मेंरे साम्ने आती मेंरी कामवासना मेंरी अन्तरात्मा पर हावी हो जाती और मैं फ़िर से उत्तेजित हो जाता और उसको चोदने के खयाल में डूब जाता । मेंरे लिये तो भाभी को चोदना अब एक मिशन बन चुका था, मैं मन ही मन अपनी भाभी के उपर न्योछावर हो चुका था और उसके बेह्तरिन जिस्म का दिवाना बन गया था। अब तो रात दिन मेंरे मन में भाभी को चोदने का ही खयाल रहता था।
भाभी का शर्मिलापन मेंरे लिये काफ़ी सुखद और मेंरी योजना में काफ़ी सहायक था। मैने तय कर लिया कि ऎसे भाभी के जिस्म को चोदने का खयाल कर के मुठ्ठ मारने से कुछ हासिल नही होने वाला उसे पाने के लिये प्रयास करना पड़ेगा। वैसे भी जिस इंसान के लिये इस बेह्तरीन पुदी को घर में लाया गया था उसे तो इसे ठीक से देखने की भी फ़ुर्सत नहीं थी चोदने की बात तो बहुत दूर थी। दौलत और जवानी दोनों ही उपभोग करने पर हि सुख देते हैं अन्यथा दोनों बोझ बन कर रह जाते है। दौलत और औरत की जवानी दोनों को ही अपनी रक्षा के लिये मजबूत कंधो के सहारे की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कोई भी लूट कर ले जा सकता है। मेंरे घर में भी जवानी की दौलत खुले आम घूम रही थी और उसका रखवाला गायब था। सो मैंने उसे लूटने का फ़ैसला कर लिया था। बस प्रयास करना था और अवसर हासिल करना था ।
अब मैने भाभी के ज्यादा से ज्यादा करीब रहेने का विचार कर लिया। जब भी भाभी घर में अकेले मिलती मैं उससे काफ़ी सट कर या करीब खड़े रहने का ही प्रयास करता, और मौका मिलते ही मैं उसके गदराए बदन पर कहीं पर भी हाथ लगाने से नहीं चुकता और ऎसे जाहिर करता जैसे ये सब अन्जाने में हो गया है। भाभी के अकेले मेरे सामने से गुजरते ही मैं उसके रसीले बदन को निहरने लगता विशेषकर उसकी शानदार उभरों वाली रसीली छातीयों को । ऎसा नहीं है कि उसे ये सब पता नहीं था उसे अब मुझ पर कुछ कुछ शंका होने लगी थी, और मैं चाहता भी यही था कि तुझे कुछ समझ तो आए मेंरी जान । मै अकेले में जब भी उससे बात करता तो मेंरा ध्यान पूरी तरह से उसकी अनछुई कड़्क जवानी के रस से भरपूर छातीयों पर ही रहता । झिनी साड़ी के भीतर से दिखने वाले उसकी छाती के क्लिवेज का तो मैं दिवाना बन गया था। और मैं भी उसे बुरी तरह से घूर कर उसे पूरी तरह से समझा देता था कि मैं तेरे कौन से अंग को निहार रहा हूं। वो बुरी तरह से झेंप जाती थी,लेकिन हाय रे उसकी शरम वो चाह कर भी मेंरे सामने अपना पल्लु ठीक नहीं कर पाती थी, और मैं उसके शर्म का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए उसके जिस्म को घूरने का पूरा मजा लेने लगा।और इसी शर्म का लाभ उठाते हुए मैं उसकी जवान बुर का रस भी पीना चाह्ता था।
इसी तरह से कुछ दिन बीत गये और मेंरे मन का ये ड़र निकल गया कि कहीं ये मेंरी हरकतों को घर में मेरी मां या बहन को न बता दे। इस बीच दो-तीन बार भाई का फ़ॊन आया लेकिन उसकी बातों से कहीं नही लगा कि मेंरी गदराई स्वप्न सुंदरी ने उसे इस बारे में कुछ भी बताया हो ।
उसने एक बार मुझ से फ़ॊन पर कहा कि अपनी भाभी से खाली काम ही करवाता है कि उसे घूमाने भी ले जाता है, देख वो बहुत चुप रहने वाली लड़्की है उसे कोई तकलीफ़ भी होगी तो वो अपने मुंह से नही बोलेगी शरम और झिझक तो जैसे वो दहेज में लाई है। मां को तो अपने पूजा पाठ और किटी पार्टी से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती होगी, और दिया (मेंरी छोटी बहन) को अपने कालेज,ट्यूशन,पढाई और दोस्तों से। तू अक्सर घर के काम से बाहर बजार वगैरे जाता है तो कभी ले जाय कर उसे साथ में , इसी बहाने उसे शहर के बारे में कुछ तो जानकारी होगी और उसका भी मन लगा रहेगा। मैं तो मन ही मन बड़ा खुश हो गया, उसने तो जैसे मेंरे मुह की बात छीन ली मुझ से। मैने भी फ़ौरन हां कर दी और भाभी के
सामने ही झूठ बोल दिया कि भैया मैं तो कहता हूं लेकिन वो ही नहीं चलती तो मैं क्या करुं, आप ही बोल दो भाभी को ऎसा कह कर मैंने भी को फ़ोन पकड़ा दिया। लेकिन वाह री भाभी उसने एक बार भी भाई से ये नहीं कहा कि मैंने तो ऎसा कभी बोला ही नहीं। वो तो बस जी, हां, अच्छा ऎसे ही बोलती
रही। फ़िर उसने फ़ोन मां को दिया, भाई ने मां को भी वही बात बोली जो उसने मुझ से कही थी, मां ने हंसते हुए कहा तुझे वहां बैठ कर भी चैन नहीं है क्या ? सारा दिन क्या रश्मी (मेंरी भाभी) के बारे में ही सोचता है, काम में मन लगता है कि नहीं ? तू चिंता न कर बेटा मैं तुषार से कह दूंगी वो कभी घर के काम से बाहर जायगा तो कभी रश्मी को ले जाया करेगा। मां ने भाभी की तरफ़ देख कर व्यंग से कहा मुझे तो शक है कि इसके मुंह मे जुबान भी है या नहीं। खैर तू छोड़ बेटा इन सब बातों को हम सब सम्भाल लेंगे मैने तेरे लिये मिर्ची का अचार बना कर रखा है, अगली बार जब तू आयेगा तो ले जाना अपने साथ। खाने का ध्यान रखता है कि नहीं ? जवाब मे उसने कहा तू चिंता न कर मां लेकिन इस बार चेवड़ा और लड्डू ज्यादा देना मेरे कमीने दोस्तों को ये कुछ ज्यादा पसंद है और ये समय से पहले ही खतम हो जाते हैं। मां ने खिलखिलाते हुए कहा ठीक है बेटा इस बार मैं ज्यादा बना दुंगी।
और सुन इस बार तुझे इन चीजों में नया स्वाद मिलेगा क्योंकि इस बार ये सब तेरी गूंगी गुड़ीया से बनवाउंगी। इसी तरह मां बेटे में घरेलु बातें होती रही।
मां जब फ़ोन पर बात कर रही थी तो उसकी पीठ हमारी तरफ़ थी। इसलिये मैं बेखौफ़ भाभी से लगभग सट कर खड़ा था और मेंरा हाथ भाभी के पंजो से टकरा रहे थे। और वो किंकर्तव्यमूढ़ अपना सर जमीन की तरफ़ कर के खड़ी थी। उसके इस निर्विरोध रवैये से मेंरा हौसला बढा और मैने और थोड़ा जोर से उसके हाथों अपना हाथ टकराने लगा। अब मैं पूरी तरह से भाभी से सट कर खड़ा हो गया और मेंरा पूरा हाथ भाभी से चिपक गया । उसके नाजुक बदन की गर्मी से मेंरा लण्ड़ खड़ा हो गया। अब मैने अपना हाथ भाभी की जांघो से धीरे धीरे टकराना शुरु कर दिया। वो पूर्ववत खड़ी रही। अब मैने थोड़ी और हिम्मत करते हुए हाथ हल्का सा पिछे करते हुए उसकी गांड़ पर अपना हाथ मारने लगा। कुछ सेकण्ड़ तक उसकी गांड़ में हाथ टकराने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी गांड़ पर ही रख दिया और धीरे से अपना हाथ घूमाते हुए अपना पंजा उसकी गांड़ पर रख दिया। पंजा उसकी गांड़ पर रख्ते ही वो थोड़ी चिंहुकी और हौले से मेंरी तरफ़ देखा। लेकिन मैं पूरी तरह अन्जान बन कर खड़ा रहा और मां बेटे के फ़ोन पर बात को सुनने का और जबरन मुस्कुराने का नाटक करता रहा। मेंरे लिये ये लिका छिपी अब बर्दाश्त के बाहर होते जा रही थी मैं जल्द ही नतीजा हासिल करना चाह्ता था लेकिन अपने जोश पर होश का कंट्रोल जरुरी था। खैर मैने थोड़ा और प्रयास करते हुए उसकी दांई गांड़ से अपना हाथ घुमाते
हुए उसकी बाई गांड़ पर घुमाते हुए उसके कमर और पीठ पर घुमाते हुए उसके कंधो पर रख दिया जैसे दोस्तों के कंधो पर रख्ते है।
मेंरे हाथ उसके कंधो पर ठीक उसकी ब्रा की पट्टी पर थे,अब मैंने अपनी ऊंगलियों को ढीला छोड़ दिया और अब वो ठीक उस जगह के उपर थी जहां से उसके स्तन काउभार शुरु हो रहा था। बेचारी, अब समझ कर भी अनजान बनने की उसकी बारी थी। घर में मेंरे रुतबे और मान को देखते हुए और अपने घर की हालत तथा एक शादी लायक बहन सहित तीन बहनॊं के घर में बैठे रहने की परिस्थिती तथा पति के लगातार घर से दूर रहने के हालात और अपनी स्वयं की शारीरिक जरुरत इन तमाम बातों ने उसके सामने ऎसे हालत पैदा कर दिये थे कि शायद अभी चुप्पी साधे रखने में ही उसकी भलाई थी। उसकी बेबसी का अब मैं भरपूर मजा ले रहा था, मुझे इस बात का पूरा यकीन हो गया था कि अकेले में शायद भले ही वो मुझे कुछ कहने का साह्स करे लेकिन सब के सामने मुझे कहने या मेंरे बारे में कुछ भी बुरा बोलने का साहस उसमें नही था।
इन बातों का अहसास होते ही और तमाम परिस्थिती अपने पक्ष में होते देख मैंने अपने मन में अपार शांति का अनुभव किया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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