31-05-2019, 09:38 PM
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रणधीर बाबू --,
“अरे क्या हुआ?? ओफ़्फ़ो ---- यार, इतना शरमाओगी तो फ़िर कैसे चलेगा --? और आज अचानक से इतना क्यों शर्मा रही हो?? इससे पहले भी तो हम दोनों ने बहुत बार किया --- पर तब तो इतनी न शरमाई थी तुम --- चलो, आँख खोलो और मुझे देखो ---- ”
प्यार भरे इस मनुहार में उन्होंने अपना निर्देश भी दे दिया था ---
आखिर,
आशा को अपनी आँखें खोलनी ही पड़ी ---
और आँखें खोलते ही नज़रें सीधे जा टकराई बुड्ढे के नज़रों से --- हवसी नज़र--- पर आज आशा को बुड्ढे की नजरों में दिखाई देने वाला हवस, हवस नहीं ; एक प्राकृतिक गुण या अवस्था लग रहा था जो कि ऐसे मौकों पर एकदम ही कॉमन होते हैं --- |
हालाँकि अपनी स्त्री सुलभ लाज वाली प्रवृति के कारण वह खुलेआम उनकी वासना से भरी इस पूरी गतिविधि में पूरे मन से भाग नहीं ले पा रही थी, पर फ़िर भी उसकी आँखें वासना की डोरों से लाल होकर भर गई थीं ---- जैसे उसने अपनी आँखें खोलीं और रणधीर बाबू को देखा; रणधीर बाबू ने अपनी शैतानी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने रॉड से लंड को उसकी योनि से बाहर निकाला और दुबारा पूरे ताक़त से जोर से अंदर डाल दिया।
अचानक से हुए इस हमले से आशा संभल नही पाई और इस बार दिल खोल कर, ज़ोर से चिल्ला उठी ---
“आआआआsssssssssssssआआआआआआssssssssssआआआआआ----आआआआआssssssssआआआआआआ---- आआहहहsssssहहहहहहहहsssssss ---- हहहहहहsssssssssssहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हssssssssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हह्हssssssssssssह्हह्हह्ह --- माँआअssssssssssssssअआआआsssssssssssआsssss---- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सssssssssss ---- आआआआआआऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊssssssssss----”
दर्द थोड़ा कम होते ही आशा तीन चार लंबी गहरी सांस ली और धीरे से आँखें खोल कर रणधीर बाबू की ओर देखी,
रणधीर बाबू उसी की ओर टकटकी बांधे देख रहे थे---
उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में देखा और नज़रें मिलते ही रणधीर बाबू ने एक और ज़ोर का धक्का दिया जिससे आशा के होंठ एक बार फिर खुल गए और एकबार फिर से पहले के तरह ही “आआआअह्हह्हह्ह” से कराह उठी ----
इसी तरह रुक रुक कर करीब दस धक्के लगाने के बाद रणधीर ने अपने होठों को आशा को चूमने के लिए आगे बढ़ाया ; आशा ने न कोई प्रतिक्रिया दी और न ही किसी तरह के विरोध का भाव दिखाया, बल्कि उल्टे आशा ने भी अपना मुँह रणधीर बाबू की ओर कर दिया और उन दोनों ने एक दूसरे के होंठों को अपने अपने होंठों के गिरफ़्त में ले बड़े वासनायुक्त तरीके से कस कर चूमना शुरू कर दिया ---- |
रणधीर बाबू ने अपनी चुदाई के धक्कों की गति ज़ोरदार रूप से बढ़ाई और परिणामस्वरुप आशा ने भी उसी अनुपात में कराहना शुरू कर दिया, बावजूद इसके की उसके होंठ अभी भी रणधीर बाबू के होंठों के साथ एक भावुक चुंबन में बंद है ;
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहह ---
आआआआआआआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ---
ऊऊम्मम्मम्मम्मम्मम्ममममममममम्मम्म ----
आअह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्ह ------“
आशा को पीड़ा तो निःसंदेह हो रही थी पर साथ ही अंदर ही अंदर वह इस बात से बहुत बहुत ही ख़ुश थी कि रणधीर बाबू के बाहर टूर पर चले जाने के कारण कुछ रातों और दिनों से जो अकेलापन उसे साल रहा था वो सब आज एक ही दिन; ---- बल्कि यूँ कहो कि पिछले एक घंटे से परम सुकून से कट रहा था ---- शायद एक घंटा भी पूरी तरह से न बीता हो, और अभी तक में ही इतनी संतुष्टि और यौन शान्ति मिली है , जिसे वह शायद ही कभी शब्दों में बयाँ कर सके ---- और जो बात उसे सबसे अधिक पसंद आई --- वह है रणधीर बाबू द्वारा उसके सुस्वादु शरीर का ज़बरदस्त एवं अभूतपूर्व रूप से मर्दाना उपभोग करने का तरीका ---
मतलब की क्षण-प्रतिक्षण, पल प्रतिपल, ख़ुद को बखूबी नियंत्रण में रखते हुए आशा के गदराए जिस्म के साथ ऐसे खेलना कि हर बार आशा काम सुख एक शिखर तक पहुँच जाती और क्षण भर उस शिखर पर रहने के बाद अचानक से ही बड़े ही खूबसूरत, करामाती ढंग से ---- रणधीर बाबू के हाथों, होंठों और हथियार के खेल से --- आशा धीरे धीरे उस शिखर से नीचे हो आती --- कुछ देर बाद फ़िर से उसी तरह काम-आनंद के ऊँचाइयों में उड़ने लगती ---
आशा की अकड़ती जिस्म, बीच बीच में तेज़ और फ़िर धीरे हो जाने वाली श्वास प्रक्रिया --- चेहरे पर अनकही प्रसन्नता के आते जाते भाव --- ये सब साफ़ साफ़ बता रहे थे कि वह अब सिर्फ़ और सिर्फ़ --- इस खेल --- इस पूरे काम क्रिया को शीघ्र से शीघ्र समाप्त करना चाहती है --- कुछ ऐसे --- जिससे की जल्दबाज़ी भी न हो ---- और कोई शिकायत भी न हो ---
और ये बातें , कई साल के अनुभवी खिलाड़ी --- रणधीर बाबू कैसे न समझ पाते --- बीते कुछ दिनों वे आशा को भली प्रकार जान चुके थे ---- उसकी अच्छाई--- इच्छाएँ --- कमज़ोरी --- सब कुछ --- ये कहना की आज की तारिख में रणधीर बाबू से बेहतर, आशा को जानने वाला कोई न होगा ; ----- अतिश्योक्ति न होगी --- ऊपर से , पिछले कुछ मिनटों से आशा के आव-भाव ये इस बात की साफ़ गवाही दे चुके हैं कि वह अब लाज शर्म वाली कोई भी बाधा नहीं देने वाली है ---- रणधीर बाबू ने अब ख़ुद को ऊपर उठाते हुए --- आशा को बिस्तर पर लिटा दिया --- आशा की धडकनें तेज़ और आँखें बंद हैं --- मुखरे पर मासूमियत के साथ वासना के बादल भी छाए हुए हैं --- रणधीर बाबू के अधरों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई --- अब उनके हर आदेश व निर्देश के प्रति आशा के अनुपालन के बारे में आश्वस्त होकर, उसके टांगों के बीच में आकर उस आरामदायक गद्दे वाले बिस्तर पर अपने घुटने टेक दिए और उसके (आशा) के पैरों को पकड़ कर --- अँगुलियों के हल्के स्पर्शों से सहलाते हुए उन्हें फैला दिया ----
सुर्ख गुलाबी छेद एकबार फ़िर सामने है --- गीली --- दिन के उजाले में --- खिड़की से आती रोशनी में --- गीलेपन के वजह से चमकती हुई --- होंठों पर वही कमीनी, शैतानी मुस्कान लिए --- रणधीर बाबू ने अपने मुँह में एक उंगली घुसाई --- अच्छे से अपने थूक से भिगोया और बिना ज़्यादा चालाकी के उस गुलाबी छेद में डाल दिया ---- इतना ही नहीं ; ---- जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, --- ऐसा करते हुए ही वे नीचे झुके और आशा के कड़क --- खड़े निपल्स को चूसना शुरू कर दिया।
“अम्म्मम्म --- आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ---- स्सस्सस्ससस्सस्सस ---- ”
आशा यौनेत्तेजक रूप से बिस्तर पर कसमसाते हुए बड़े मादक ढंग से कराह उठी ----
उसकी इस कराह को सुनकर कोई भी अपना होश खो सकता था ---
आशा ने अपने नाजुक, खड़े निप्पल्स पर उनके मोटे जीभ को और मोटे फनफनाते अंग को महसूस किया ; ---- जोकि उनकी नर्म चूत की तरफ ही था --- ।
जैसे-जैसे ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू की अनुभवी अंगुली अंदर-बाहर होती गई --- ठीक वैसे वैसे --- उसकी चूत जवाब देने लगी और उससे रस टपकने लगा ---
चेहरे के साथ साथ चूत की भी वांछित प्रतिक्रिया देख, रणधीर बाबू की तो बांछे ही खिल गई --- अपने दूसरे मुक्त हाथ से रणधीर बाबू आशा के नरम स्तन और जाँघों को ज़्यादा से ज़्यादा सहलाने और अच्छे से छू महसूस करने के लिए उसके पूरे जिस्म पर उन्मुक्त ढंग से हाथ फ़ेरने लगे ---
आशा भली भांति उस बुड्ढे रणधीर के जननांग की गर्मी और कठोरता को महसूस कर रही थी ---
इधर अब धीरे धीरे रणधीर बाबू भी अपने जोश के आगे अपने हथियार को डालते हुए पाए ---- अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता --- वह तुरंत आशा के पेट पर झुक गए --- उसकी नाभि को चूमा और अपनी जीभ को उसमें घुसा दिया ---- कुछ देर तक नाभि में जीभ को घूमा घूमा कर अच्छे से स्वाद, जोकि पानी और पसीने के मिश्रण से नमकीन सा लग रह था; लेने के बाद रणधीर बाबू ने नीचे से जगह बना कर आशा की गांड के नीचे हाथ फेरा और उसे उठा कर उसकी चूत को और अधिक उन्मुक्त और खुला कर दिया ---- उसके बाद उसकी चूत पर झुक कर अपनी जीभ चूत के होठों में घुसेड़ दी, --- और ---- घुसेड़ कर बेतरतीब तरीके से दाएँ बाएँ घूमाने लगे क्योंकि वह उन्हें अलग-थलग कर के चूत के एक एक कोने का मज़ा लेना चाहते थे --- ऐसा होते ही , --- उसकी चूत फ़िर बहने लगी और उसके रस को रणधीर बाबू पूरी तल्लीनता और श्रद्धा से चाटने लगे--- ।
“आअह्ह्ह्ह ---- ओह्ह्ह्ह ---- र----रण----रण--धीर जी , प्लीज़ ---- य --- ये ---- क्या--- कर र---- रहे ---- हैं ---- आ-- आप ???”
हालाँकि ये कोई पहली बार नहीं था जो रणधीर बाबू उसकी चूत चुसाई कर रहे हैं ---- इससे पहले भी बहुत बार ऐसा हो चूका है --- और --- हर बार आशा को बहुत बहुत मज़ा आया है --- चूत चुसाई का अपना एक अलग ही आनंद है जिसका उपभोग आशा जम के करती है ---
पर आज, अभी , आशा को उस ठरकी रणधीर के छह इंच वाला माँस का लोथड़ा अपने भीतर लेने का बेहद दिल कर रहा था --- बेचारी कब से तड़पे ही जा रही है --- पर ठरकी बुड्ढे को है कि फोरप्ले से मन ही न भरे ---
शुरूआती हाथ पाँव तो चलाए उसने --- परन्तु शीघ्र ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी क्योंकि उसने महसूस किया कि गर्म जीभ उसकी चूत को बेपनाह मोहब्बत से सहला रही है और कभी-कभी तो उसके अंदर एक गहरी गोता लगा रही है ----
इधर रणधीर बाबू अपने हाथों से उसकी कोमल जांघों को पकड़ कर--- अपनी जीभ के झटके तेज कर दिए ----
दर्द और वासना से आशा के नथुने फूल और सिकुड़ रहे थे ---
सुंदर गुलाबी होंठ ऐसे खुले हुए थे जैसे वह अपनी सांस को हवा से चूस कर ले रही हो, ---
उसके सिर के बाल बिखरे हुए और आँखें खुली हुई थीं , ---- जैसे दया की भीख माँग रही हो बुड्ढे से कि अब तो अंदर डाल दे ---
उसका पूरा जिस्म पसीने से लथपथ था जो कि दिन में खिड़की से आती हल्के उजाले में चमक रहा था ---
उसका दिल जैसे उत्तेजित आतंक से भर गया ---
निप्पल्स और भी तने हुए ---
और उसके स्तन एक घंटे से भी अधिक समय तक दिए गए ज़रूरत से ज़्यादा प्यार और ध्यान से सूज गए ----
अब रणधीर बाबू भी सीधे हुए,
फ़िर आहिस्ते से नीचे झुक कर आशा के दोनों कंधे पकड़ लिए --- अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठाया और अपने पैरों का सहारा लेकर आशा के पैरों को और फैला दिया ---- और ऐसा करते ही खुद को आशा के जाँघों के बीचों बीच सेट कर लिया ---
धीरे धीरे अपना अपना पूरा शरीर उसके ऊपर डाल --- और ऐसा करने से उसके वजन ने मानो आशा के गदराई शरीर के कोमल मांस को कुचल दिया ---- साथ ही उसने आशा का सुंदर, मासूम गोल चेहरा अपने हाथों में लिया और अपना मुँह उस पर डाल दिया ---- गीले चुम्बन हेतु --- उसने अपनी जीभ आशा के मुँह में घुसा दी और उसकी जीभ से खेलने लगा ---- गीले, लार मिले चुम्बन ले ले कर, जीभ से खेलते हुए वह वापस खिंच लिया और उसे जोर से स्मूच की आवाज़ के साथ चूमने लगा --- इसी के साथ आशा के सिर को उठा कर उसके बिखरे बाल संभाले और उसे एक तंग गुच्छे में कर, --- अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर पीछे की ओर खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से उसके नर्म सूजे हुए स्तनों को निचोड़ने लगे ----
इधर आशा ने भी महसूस किया कि उसके जाँघों के बीच थोड़ी बहुत हरकत करती --- एक माँस का लम्बा टुकड़ा गर्म खून से परिपूर्ण --- उसके चूत के द्वार को सहला रहा है --- इंच दर इंच --- और पास आ रहा है ---
साफ़ पर अजीब सा महसूस कर रही थी, रणधीर बाबू के होंठों को अपने चुचुक पर ; उन्हें ज़ोर से चूसते हुए --- साथ ही अपनी गर्म जीभ स्तनों की गोलाईयों को चाटते हुए ---
अब,
अब कुछ और भी महसूस हुआ,
महसूस हुआ उसे,
कि रणधीर बाबू के विशालकाय लंड का सुपाडा उसकी चूत को खोलना शुरू कर दिया है और योनि की अनंत गहराई में यात्रा शुरू कर दिया है ---- ।
योनि रस से भीगे होने के कारण उस विशालकाय लंड को अंदर प्रवेश करने को लेकर कोई खास प्रतिरोध का सामना नही करना पड़ा –
जैसे जैसे बुड्ढे का लंड अंदर प्रवेश करता गया,
वैसे वैसे वह महसूस की कि, उसकी चूत की दीवारें धीरे-धीरे भर रही हैं ----
“मम्ममम्म्म ओफ्फ मैं पागल हो रही हूँ ---- आअह्ह्ह”
उसका इतना कहना था कि रणधीर बाबू ने जोश में आकर अपने लंड को उसकी दर्द करने वाली चूत के उसी हिस्से में गहराई तक धक्के मार कर घुसा दिया ----
जवाब में आशा ने बड़ी सख्ती से बिस्तर के चादर को दोनों तरफ़ से अपने मुट्ठियों से पकड़ कर भींच ली ----
धीरे धीरे ही सही , पर अब आशा यौन तनाव में जंगली होती रही थी,
“आअह्ह्ह ... प्लीज़ मत रुकिए --- म्मम्मम !!”
धीरे से रणधीर बाबू के कान में बोल पड़ी --- |
इतना सुनना था कि रणधीर बाबू अपनी स्पीड धौंकनी की तरह और बढ़ा दिए और आशा भी अपनी गांड उठा उठा कर उनके स्पीड को मैच करने की कोशिश करने लगी ---
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !!! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई!!!
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप!! धप्प! धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म!!! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प!!!! धपप्पप धप्प धपप्पप धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!!!
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !!! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धपप्पप धपप्पप !! धपप्पप धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह !! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह !! आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!!
पूरे कमरे में बस यही दो आवाजें गूँज रही थीं ;
एक ठुकाई की --- और दूसरी कराहने की ---- !!
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू , आशा की एक चूची को चूसते हुए काट बैठे ; और जैसे ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ, वह तुरंत ही उस पूरी चूची को चाटने लगे ---
"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह !!!", वह तेजी से कराहने लगी, उसकी साँसें तेज हो गईं ----
"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह आह्ह्ह्ह्ह्ह!”, आशा खुशी और दर्द ---- दोनों में झूम उठी, ---- उसके गोरे योनि रस ने उस ठरकी बुड्ढे के काले लंड को हर बार उसके शरीर को ऊपर खींचते हुए, ----- केवल उसे वापस अंदर धकेलने के लिए ही, उनके लंड पर और आगे बढ़ते हुए ---- अपने क्रीम रुपी जल को बुड्ढे की गेंदों पर जेट की तरह फ़ेंक कर उनकी भी मानो कोटिंग कर देना चाहती हो ---
रणधीर बाबू इस वक़्त एक जानवर सरीखा लग रहे थे --- और --- ये बड़ा जानवर न तो अपनी पंपिंग अर्थात, --- चुदाई की गति को कभी धीमा किया,--- उल्टे आशा को उसकी मांसल कमर के चारों ओर से कसकर पकड़ कर --- उसकी चूत पर ज़ोरदार बेरहम तरीके से चुदाई चालू रखी --- “आआओओओओह्ह्ह्हघ्घ्घ्घ” ---- एक लंबी और तेज़ चीख उसके दोनों पैर सीधे हवा में उठ कर और भी अधिक फ़ैल गए ---
वह जानवर आशा के टांगों को हवा में फैलाए ; उसकी चूत को ऐसे भर रहा था जैसे पहले कभी नहीं भरा था !
हर ज़ोरदार शॉट के बाद थोड़ा सा रुक कर, बड़े आराम से आहिस्ते से लंड को बाहर निकालता --- और जब लगभग पूरा बाहर आ जाता उसका हथियार --- तब फ़िर एक धक्के से अंदर – बहुत अंदर तक घुसा देता --- और हर धक्के में इतना दम होता कि रणधीर के दोनों गेंद (आंड) के आशा के मोटे नितम्बों से टकराने तक की आवाज़ सुनाई देती ---
“उफफ्फ्फ्फ़ ! ---- होफ्फफ्फ्फ़ !----- उफ्फ्फफ्फ्फ़ ! --- आह्ह्ह्ह!!”
आशा बुरी तरह से हांफने लगी और उसकी साँसें भारी हो गईं ---
रणधीर नाम के जानवर , ठरकी बुड्ढे के कूल्हे तेजी से हिलने लगे ---- बुड्ढे का गांड जिस तेज़ी से नीचे आता --- आशा की नितम्ब भी उतनी ही तेज़ी से ऊपर उठ कर उससे मिलान करने की कोशिश करती---- उसके पैर अनजाने में ही उस ठरकी के कमर के मांसपेशियों के चारों ओर लिपट गए --- जबकि उसका खुद का शरीर वासना में बुरी तरह हिल रहा था ---
रणधीर थोड़ा धीमा हो जाता जब तक की आशा अपनी साँस को वापस लय में नहीं पा लेती --- और एकबार ऐसा होते ही वो फिर से अपनी गति पकड़ लेते --- और --- इस बार तो और भी अधिक --- और भी प्रचंड तीव्रता के साथ चुदाई प्रारंभ कर दिया उन्होंने तो --- और प्रत्येक ज़ोर के ठाप के साथ उनका लौड़ा और अंदर प्रविष्ट होता जाता --- एक समय तो ऐसा भी लगा की कहीं आशा बेहोश ही न हो जाए !!
दो बातें तो साफ़ पता चल रही थी आज –
एक, आशा ने आज से पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था और
दूसरा, उस पैंसठ वर्षीय बुड्ढे रणधीर बाबू के स्टैमिना का कोई जवाब नहीं था --- |
वह तो बस चोदे ही जा रहा था और उनके प्रत्येक ठाप से आशा की कराह और चीखें ; ज़ोर से ज़ोर होती चली गई --- यहाँ तक की वह गद्देदार बिस्तर भी आवाज़ के साथ साथ उछलने लगा था --- उनके सेक्स शक्ति के प्रत्येक वार के साथ ।
बुड्ढे की आँखों में एक जंगली पागलपन नज़र आ रहा था --- पसीने से पूरा जिस्म भीगा हुआ था ---
“म्मम्मम्मम्म !!!”
इसबार के उसके कराह में एक आराम और शांति का बोध था, साथ ही आँखों के कोनों से आंसूओं की एक एक बूँद बाहर निकल कर ओझल हो गए ---
वे आँसू ख़ुशी के थे --- या दर्द के ---- या किसी और बात पे --- पर इतना तो पक्का है कि आज से पहले ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था ---
आख़िरकार,
रणधीर बाबू का भी शरीर अब अकड़ा और काँप उठा ---
और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने ---
और आशा भी अपने चूत में रणधीर बाबू के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”
चिल्ला उठी ----
आशा की नर्म – गर्म चूत में रणधीर बाबू का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ---- गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ---- और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ---
इतने बेहतरीन तरीके से झड़ने के बाद, रणधीर बाबू ने आशा को उसके कन्धों से पकड़ा और धीरे से अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका दिया ---- और जैसे ही आशा ने अपना चेहरा थोड़ा ऊपर उठाया ; ----- दोनों के होंठ मिल गए ---- हैरानी वाली बात तो ये थी की इतने देर के फोरप्ले और सेक्स से हुई इतनी थकान के बाद भी आशा के अंदर जोश बाकी थी ;--- दोनों के होंठ मिलते ही, आशा ने अपने होंठ पीछे नहीं की ---- उल्टे रणधीर बाबू के गले में बाहें डाल कर अपने और पास लाते हुए और भी अधिक कामुक और उत्साह से किसिंग शुरू कर दी --- “म्मम्मम्मम्मम्मम्म” आवाज़ करती हुई होंठ चुम्बन करती रही ---
रणधीर बाबू ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , ---- चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा ---- और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ---
रणधीर बाबू बुरी तरह थक चुके थे --- लंड को निकाल कर आशा के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ---
थक तो आशा भी गई थी --- पसीने से तर बतर --- चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई --- टाँगे अब भी फैले हुए --- बाल बिखरे हुए --- गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान --- नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक बुजुर्ग आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई --- होंठ और किनारों पर लगे रणधीर बाबू के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ----
आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त --- |
समय कुछ और बीता ---- दोनों ने अच्छे से आराम किया इतने देर तक ---
सबसे पहले रणधीर बाबू उठे ----
बगल के दीवार में टंगी दीवार घड़ी पे नज़र दौड़ाया -----
पौने एक बज रहे हैं !!
“ओह! मुझे तो और भी काम है !”
ये ख्याल आते ही रणधीर बाबू ने जल्दी जल्दी कपड़े पहने --- हुलिया सही किया --- आशा के पास आए --- वह अब भी आँखें बंद किए लेटी थी --- उस गद्देदार बिस्तर पर --- बिल्कुल निस्तेज़ --- कौन कह सकता था कि कुछ देर पहले तक यही आशा हवसी आशा थी --- जो अब बेहद मासूम आशा लग रही है --- दो अँगुलियों से आशा के बाएँ गाल को स्पर्श किया --- मुस्कुराए --- झुक कर माथे और होंठ पर नर्म किस किया --- पास ही रखी एक चादर उठाई और आशा पर उसके गले तक को कवर करते हुए ढक दिया ---- ओह!! बाई गॉड !! आशा तो अब और भी सेक्सी लगने लगी --- रणधीर बाबू के हथियार में फ़िर ऐठन होने लगा --- पर संभाला खुद को --- पलटे --- और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गए ---- |
पर,
निकलते समय, कुछ फीट की दूरी पर --- उन्हें एक शख्स नज़र आया --- जो उसी विशाल कमरे की ही दूसरी तरफ़ की खिड़की से, --- जो बाहर की ओर खुलती है --- अंदर झांक रहा था --- रणधीर बाबू ने ज़रा गौर से देखा उसकी तरफ़ --- ‘अरे, ये तो वही लड़का है --- जो बगीचे में काम कर रहा था ---!!’
आगे बढ़ कर कुछ कहना चाहा रणधीर बाबू ने,
पर रुक गए --- दिमाग में कोई बात खेलने लगा शायद उनके --- कोई कारस्तानी --- शैतानी --- बदमाशी बुद्धि ---
गौर किया, --- वह लड़का बाहर से --- खिड़की से अंदर ज़रूर देख रहा है --- जहाँ आशा अभी भी निढाल , निस्तेज़ पड़ी हुई है --- जहाँ कुछ समय पहले तक उन दोनों ने जानवरों को भी हार मनवा देने वाला सम्भोग किया था --- शायद लड़के ने सब कुछ नहीं भी तो ; बहुत कुछ देख लिया था ---- पर अभी लड़के का ध्यान रणधीर बाबू की तरफ़ बिल्कुल भी नहीं था --- वह तो अंदर आशा को देख रहा था --- अपलक --- मुँह खुला हुआ --- और एक हाथ पैंट के ऊपर से तम्बू बना रहे लंड पर ----
रणधीर बाबू ने यह सब नोटिस किया,
दो मिनट बाद ही उनके होंठों पर एक मुस्कान छाई ---- एक बहुत ही ज़ालिम, कमीनी मुस्कान --- और फ़िर उसी मुस्कान को होंठों पर लिए ही वहाँ रुखसत हो लिए |
(क्रमशः ---- अगले भाग में)
***************दी एंड*************
“अरे क्या हुआ?? ओफ़्फ़ो ---- यार, इतना शरमाओगी तो फ़िर कैसे चलेगा --? और आज अचानक से इतना क्यों शर्मा रही हो?? इससे पहले भी तो हम दोनों ने बहुत बार किया --- पर तब तो इतनी न शरमाई थी तुम --- चलो, आँख खोलो और मुझे देखो ---- ”
प्यार भरे इस मनुहार में उन्होंने अपना निर्देश भी दे दिया था ---
आखिर,
आशा को अपनी आँखें खोलनी ही पड़ी ---
और आँखें खोलते ही नज़रें सीधे जा टकराई बुड्ढे के नज़रों से --- हवसी नज़र--- पर आज आशा को बुड्ढे की नजरों में दिखाई देने वाला हवस, हवस नहीं ; एक प्राकृतिक गुण या अवस्था लग रहा था जो कि ऐसे मौकों पर एकदम ही कॉमन होते हैं --- |
हालाँकि अपनी स्त्री सुलभ लाज वाली प्रवृति के कारण वह खुलेआम उनकी वासना से भरी इस पूरी गतिविधि में पूरे मन से भाग नहीं ले पा रही थी, पर फ़िर भी उसकी आँखें वासना की डोरों से लाल होकर भर गई थीं ---- जैसे उसने अपनी आँखें खोलीं और रणधीर बाबू को देखा; रणधीर बाबू ने अपनी शैतानी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने रॉड से लंड को उसकी योनि से बाहर निकाला और दुबारा पूरे ताक़त से जोर से अंदर डाल दिया।
अचानक से हुए इस हमले से आशा संभल नही पाई और इस बार दिल खोल कर, ज़ोर से चिल्ला उठी ---
“आआआआsssssssssssssआआआआआआssssssssssआआआआआ----आआआआआssssssssआआआआआआ---- आआहहहsssssहहहहहहहहsssssss ---- हहहहहहsssssssssssहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हssssssssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हह्हssssssssssssह्हह्हह्ह --- माँआअssssssssssssssअआआआsssssssssssआsssss---- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सssssssssss ---- आआआआआआऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊssssssssss----”
दर्द थोड़ा कम होते ही आशा तीन चार लंबी गहरी सांस ली और धीरे से आँखें खोल कर रणधीर बाबू की ओर देखी,
रणधीर बाबू उसी की ओर टकटकी बांधे देख रहे थे---
उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में देखा और नज़रें मिलते ही रणधीर बाबू ने एक और ज़ोर का धक्का दिया जिससे आशा के होंठ एक बार फिर खुल गए और एकबार फिर से पहले के तरह ही “आआआअह्हह्हह्ह” से कराह उठी ----
इसी तरह रुक रुक कर करीब दस धक्के लगाने के बाद रणधीर ने अपने होठों को आशा को चूमने के लिए आगे बढ़ाया ; आशा ने न कोई प्रतिक्रिया दी और न ही किसी तरह के विरोध का भाव दिखाया, बल्कि उल्टे आशा ने भी अपना मुँह रणधीर बाबू की ओर कर दिया और उन दोनों ने एक दूसरे के होंठों को अपने अपने होंठों के गिरफ़्त में ले बड़े वासनायुक्त तरीके से कस कर चूमना शुरू कर दिया ---- |
रणधीर बाबू ने अपनी चुदाई के धक्कों की गति ज़ोरदार रूप से बढ़ाई और परिणामस्वरुप आशा ने भी उसी अनुपात में कराहना शुरू कर दिया, बावजूद इसके की उसके होंठ अभी भी रणधीर बाबू के होंठों के साथ एक भावुक चुंबन में बंद है ;
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहह ---
आआआआआआआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ---
ऊऊम्मम्मम्मम्मम्मम्ममममममममम्मम्म ----
आअह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्ह ------“
आशा को पीड़ा तो निःसंदेह हो रही थी पर साथ ही अंदर ही अंदर वह इस बात से बहुत बहुत ही ख़ुश थी कि रणधीर बाबू के बाहर टूर पर चले जाने के कारण कुछ रातों और दिनों से जो अकेलापन उसे साल रहा था वो सब आज एक ही दिन; ---- बल्कि यूँ कहो कि पिछले एक घंटे से परम सुकून से कट रहा था ---- शायद एक घंटा भी पूरी तरह से न बीता हो, और अभी तक में ही इतनी संतुष्टि और यौन शान्ति मिली है , जिसे वह शायद ही कभी शब्दों में बयाँ कर सके ---- और जो बात उसे सबसे अधिक पसंद आई --- वह है रणधीर बाबू द्वारा उसके सुस्वादु शरीर का ज़बरदस्त एवं अभूतपूर्व रूप से मर्दाना उपभोग करने का तरीका ---
मतलब की क्षण-प्रतिक्षण, पल प्रतिपल, ख़ुद को बखूबी नियंत्रण में रखते हुए आशा के गदराए जिस्म के साथ ऐसे खेलना कि हर बार आशा काम सुख एक शिखर तक पहुँच जाती और क्षण भर उस शिखर पर रहने के बाद अचानक से ही बड़े ही खूबसूरत, करामाती ढंग से ---- रणधीर बाबू के हाथों, होंठों और हथियार के खेल से --- आशा धीरे धीरे उस शिखर से नीचे हो आती --- कुछ देर बाद फ़िर से उसी तरह काम-आनंद के ऊँचाइयों में उड़ने लगती ---
आशा की अकड़ती जिस्म, बीच बीच में तेज़ और फ़िर धीरे हो जाने वाली श्वास प्रक्रिया --- चेहरे पर अनकही प्रसन्नता के आते जाते भाव --- ये सब साफ़ साफ़ बता रहे थे कि वह अब सिर्फ़ और सिर्फ़ --- इस खेल --- इस पूरे काम क्रिया को शीघ्र से शीघ्र समाप्त करना चाहती है --- कुछ ऐसे --- जिससे की जल्दबाज़ी भी न हो ---- और कोई शिकायत भी न हो ---
और ये बातें , कई साल के अनुभवी खिलाड़ी --- रणधीर बाबू कैसे न समझ पाते --- बीते कुछ दिनों वे आशा को भली प्रकार जान चुके थे ---- उसकी अच्छाई--- इच्छाएँ --- कमज़ोरी --- सब कुछ --- ये कहना की आज की तारिख में रणधीर बाबू से बेहतर, आशा को जानने वाला कोई न होगा ; ----- अतिश्योक्ति न होगी --- ऊपर से , पिछले कुछ मिनटों से आशा के आव-भाव ये इस बात की साफ़ गवाही दे चुके हैं कि वह अब लाज शर्म वाली कोई भी बाधा नहीं देने वाली है ---- रणधीर बाबू ने अब ख़ुद को ऊपर उठाते हुए --- आशा को बिस्तर पर लिटा दिया --- आशा की धडकनें तेज़ और आँखें बंद हैं --- मुखरे पर मासूमियत के साथ वासना के बादल भी छाए हुए हैं --- रणधीर बाबू के अधरों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई --- अब उनके हर आदेश व निर्देश के प्रति आशा के अनुपालन के बारे में आश्वस्त होकर, उसके टांगों के बीच में आकर उस आरामदायक गद्दे वाले बिस्तर पर अपने घुटने टेक दिए और उसके (आशा) के पैरों को पकड़ कर --- अँगुलियों के हल्के स्पर्शों से सहलाते हुए उन्हें फैला दिया ----
सुर्ख गुलाबी छेद एकबार फ़िर सामने है --- गीली --- दिन के उजाले में --- खिड़की से आती रोशनी में --- गीलेपन के वजह से चमकती हुई --- होंठों पर वही कमीनी, शैतानी मुस्कान लिए --- रणधीर बाबू ने अपने मुँह में एक उंगली घुसाई --- अच्छे से अपने थूक से भिगोया और बिना ज़्यादा चालाकी के उस गुलाबी छेद में डाल दिया ---- इतना ही नहीं ; ---- जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, --- ऐसा करते हुए ही वे नीचे झुके और आशा के कड़क --- खड़े निपल्स को चूसना शुरू कर दिया।
“अम्म्मम्म --- आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ---- स्सस्सस्ससस्सस्सस ---- ”
आशा यौनेत्तेजक रूप से बिस्तर पर कसमसाते हुए बड़े मादक ढंग से कराह उठी ----
उसकी इस कराह को सुनकर कोई भी अपना होश खो सकता था ---
आशा ने अपने नाजुक, खड़े निप्पल्स पर उनके मोटे जीभ को और मोटे फनफनाते अंग को महसूस किया ; ---- जोकि उनकी नर्म चूत की तरफ ही था --- ।
जैसे-जैसे ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू की अनुभवी अंगुली अंदर-बाहर होती गई --- ठीक वैसे वैसे --- उसकी चूत जवाब देने लगी और उससे रस टपकने लगा ---
चेहरे के साथ साथ चूत की भी वांछित प्रतिक्रिया देख, रणधीर बाबू की तो बांछे ही खिल गई --- अपने दूसरे मुक्त हाथ से रणधीर बाबू आशा के नरम स्तन और जाँघों को ज़्यादा से ज़्यादा सहलाने और अच्छे से छू महसूस करने के लिए उसके पूरे जिस्म पर उन्मुक्त ढंग से हाथ फ़ेरने लगे ---
आशा भली भांति उस बुड्ढे रणधीर के जननांग की गर्मी और कठोरता को महसूस कर रही थी ---
इधर अब धीरे धीरे रणधीर बाबू भी अपने जोश के आगे अपने हथियार को डालते हुए पाए ---- अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता --- वह तुरंत आशा के पेट पर झुक गए --- उसकी नाभि को चूमा और अपनी जीभ को उसमें घुसा दिया ---- कुछ देर तक नाभि में जीभ को घूमा घूमा कर अच्छे से स्वाद, जोकि पानी और पसीने के मिश्रण से नमकीन सा लग रह था; लेने के बाद रणधीर बाबू ने नीचे से जगह बना कर आशा की गांड के नीचे हाथ फेरा और उसे उठा कर उसकी चूत को और अधिक उन्मुक्त और खुला कर दिया ---- उसके बाद उसकी चूत पर झुक कर अपनी जीभ चूत के होठों में घुसेड़ दी, --- और ---- घुसेड़ कर बेतरतीब तरीके से दाएँ बाएँ घूमाने लगे क्योंकि वह उन्हें अलग-थलग कर के चूत के एक एक कोने का मज़ा लेना चाहते थे --- ऐसा होते ही , --- उसकी चूत फ़िर बहने लगी और उसके रस को रणधीर बाबू पूरी तल्लीनता और श्रद्धा से चाटने लगे--- ।
“आअह्ह्ह्ह ---- ओह्ह्ह्ह ---- र----रण----रण--धीर जी , प्लीज़ ---- य --- ये ---- क्या--- कर र---- रहे ---- हैं ---- आ-- आप ???”
हालाँकि ये कोई पहली बार नहीं था जो रणधीर बाबू उसकी चूत चुसाई कर रहे हैं ---- इससे पहले भी बहुत बार ऐसा हो चूका है --- और --- हर बार आशा को बहुत बहुत मज़ा आया है --- चूत चुसाई का अपना एक अलग ही आनंद है जिसका उपभोग आशा जम के करती है ---
पर आज, अभी , आशा को उस ठरकी रणधीर के छह इंच वाला माँस का लोथड़ा अपने भीतर लेने का बेहद दिल कर रहा था --- बेचारी कब से तड़पे ही जा रही है --- पर ठरकी बुड्ढे को है कि फोरप्ले से मन ही न भरे ---
शुरूआती हाथ पाँव तो चलाए उसने --- परन्तु शीघ्र ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी क्योंकि उसने महसूस किया कि गर्म जीभ उसकी चूत को बेपनाह मोहब्बत से सहला रही है और कभी-कभी तो उसके अंदर एक गहरी गोता लगा रही है ----
इधर रणधीर बाबू अपने हाथों से उसकी कोमल जांघों को पकड़ कर--- अपनी जीभ के झटके तेज कर दिए ----
दर्द और वासना से आशा के नथुने फूल और सिकुड़ रहे थे ---
सुंदर गुलाबी होंठ ऐसे खुले हुए थे जैसे वह अपनी सांस को हवा से चूस कर ले रही हो, ---
उसके सिर के बाल बिखरे हुए और आँखें खुली हुई थीं , ---- जैसे दया की भीख माँग रही हो बुड्ढे से कि अब तो अंदर डाल दे ---
उसका पूरा जिस्म पसीने से लथपथ था जो कि दिन में खिड़की से आती हल्के उजाले में चमक रहा था ---
उसका दिल जैसे उत्तेजित आतंक से भर गया ---
निप्पल्स और भी तने हुए ---
और उसके स्तन एक घंटे से भी अधिक समय तक दिए गए ज़रूरत से ज़्यादा प्यार और ध्यान से सूज गए ----
अब रणधीर बाबू भी सीधे हुए,
फ़िर आहिस्ते से नीचे झुक कर आशा के दोनों कंधे पकड़ लिए --- अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठाया और अपने पैरों का सहारा लेकर आशा के पैरों को और फैला दिया ---- और ऐसा करते ही खुद को आशा के जाँघों के बीचों बीच सेट कर लिया ---
धीरे धीरे अपना अपना पूरा शरीर उसके ऊपर डाल --- और ऐसा करने से उसके वजन ने मानो आशा के गदराई शरीर के कोमल मांस को कुचल दिया ---- साथ ही उसने आशा का सुंदर, मासूम गोल चेहरा अपने हाथों में लिया और अपना मुँह उस पर डाल दिया ---- गीले चुम्बन हेतु --- उसने अपनी जीभ आशा के मुँह में घुसा दी और उसकी जीभ से खेलने लगा ---- गीले, लार मिले चुम्बन ले ले कर, जीभ से खेलते हुए वह वापस खिंच लिया और उसे जोर से स्मूच की आवाज़ के साथ चूमने लगा --- इसी के साथ आशा के सिर को उठा कर उसके बिखरे बाल संभाले और उसे एक तंग गुच्छे में कर, --- अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर पीछे की ओर खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से उसके नर्म सूजे हुए स्तनों को निचोड़ने लगे ----
इधर आशा ने भी महसूस किया कि उसके जाँघों के बीच थोड़ी बहुत हरकत करती --- एक माँस का लम्बा टुकड़ा गर्म खून से परिपूर्ण --- उसके चूत के द्वार को सहला रहा है --- इंच दर इंच --- और पास आ रहा है ---
साफ़ पर अजीब सा महसूस कर रही थी, रणधीर बाबू के होंठों को अपने चुचुक पर ; उन्हें ज़ोर से चूसते हुए --- साथ ही अपनी गर्म जीभ स्तनों की गोलाईयों को चाटते हुए ---
अब,
अब कुछ और भी महसूस हुआ,
महसूस हुआ उसे,
कि रणधीर बाबू के विशालकाय लंड का सुपाडा उसकी चूत को खोलना शुरू कर दिया है और योनि की अनंत गहराई में यात्रा शुरू कर दिया है ---- ।
योनि रस से भीगे होने के कारण उस विशालकाय लंड को अंदर प्रवेश करने को लेकर कोई खास प्रतिरोध का सामना नही करना पड़ा –
जैसे जैसे बुड्ढे का लंड अंदर प्रवेश करता गया,
वैसे वैसे वह महसूस की कि, उसकी चूत की दीवारें धीरे-धीरे भर रही हैं ----
“मम्ममम्म्म ओफ्फ मैं पागल हो रही हूँ ---- आअह्ह्ह”
उसका इतना कहना था कि रणधीर बाबू ने जोश में आकर अपने लंड को उसकी दर्द करने वाली चूत के उसी हिस्से में गहराई तक धक्के मार कर घुसा दिया ----
जवाब में आशा ने बड़ी सख्ती से बिस्तर के चादर को दोनों तरफ़ से अपने मुट्ठियों से पकड़ कर भींच ली ----
धीरे धीरे ही सही , पर अब आशा यौन तनाव में जंगली होती रही थी,
“आअह्ह्ह ... प्लीज़ मत रुकिए --- म्मम्मम !!”
धीरे से रणधीर बाबू के कान में बोल पड़ी --- |
इतना सुनना था कि रणधीर बाबू अपनी स्पीड धौंकनी की तरह और बढ़ा दिए और आशा भी अपनी गांड उठा उठा कर उनके स्पीड को मैच करने की कोशिश करने लगी ---
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !!! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई!!!
धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप!! धप्प! धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म!!! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!
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आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह !! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह !! आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!!
पूरे कमरे में बस यही दो आवाजें गूँज रही थीं ;
एक ठुकाई की --- और दूसरी कराहने की ---- !!
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू , आशा की एक चूची को चूसते हुए काट बैठे ; और जैसे ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ, वह तुरंत ही उस पूरी चूची को चाटने लगे ---
"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह !!!", वह तेजी से कराहने लगी, उसकी साँसें तेज हो गईं ----
"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह आह्ह्ह्ह्ह्ह!”, आशा खुशी और दर्द ---- दोनों में झूम उठी, ---- उसके गोरे योनि रस ने उस ठरकी बुड्ढे के काले लंड को हर बार उसके शरीर को ऊपर खींचते हुए, ----- केवल उसे वापस अंदर धकेलने के लिए ही, उनके लंड पर और आगे बढ़ते हुए ---- अपने क्रीम रुपी जल को बुड्ढे की गेंदों पर जेट की तरह फ़ेंक कर उनकी भी मानो कोटिंग कर देना चाहती हो ---
रणधीर बाबू इस वक़्त एक जानवर सरीखा लग रहे थे --- और --- ये बड़ा जानवर न तो अपनी पंपिंग अर्थात, --- चुदाई की गति को कभी धीमा किया,--- उल्टे आशा को उसकी मांसल कमर के चारों ओर से कसकर पकड़ कर --- उसकी चूत पर ज़ोरदार बेरहम तरीके से चुदाई चालू रखी --- “आआओओओओह्ह्ह्हघ्घ्घ्घ” ---- एक लंबी और तेज़ चीख उसके दोनों पैर सीधे हवा में उठ कर और भी अधिक फ़ैल गए ---
वह जानवर आशा के टांगों को हवा में फैलाए ; उसकी चूत को ऐसे भर रहा था जैसे पहले कभी नहीं भरा था !
हर ज़ोरदार शॉट के बाद थोड़ा सा रुक कर, बड़े आराम से आहिस्ते से लंड को बाहर निकालता --- और जब लगभग पूरा बाहर आ जाता उसका हथियार --- तब फ़िर एक धक्के से अंदर – बहुत अंदर तक घुसा देता --- और हर धक्के में इतना दम होता कि रणधीर के दोनों गेंद (आंड) के आशा के मोटे नितम्बों से टकराने तक की आवाज़ सुनाई देती ---
“उफफ्फ्फ्फ़ ! ---- होफ्फफ्फ्फ़ !----- उफ्फ्फफ्फ्फ़ ! --- आह्ह्ह्ह!!”
आशा बुरी तरह से हांफने लगी और उसकी साँसें भारी हो गईं ---
रणधीर नाम के जानवर , ठरकी बुड्ढे के कूल्हे तेजी से हिलने लगे ---- बुड्ढे का गांड जिस तेज़ी से नीचे आता --- आशा की नितम्ब भी उतनी ही तेज़ी से ऊपर उठ कर उससे मिलान करने की कोशिश करती---- उसके पैर अनजाने में ही उस ठरकी के कमर के मांसपेशियों के चारों ओर लिपट गए --- जबकि उसका खुद का शरीर वासना में बुरी तरह हिल रहा था ---
रणधीर थोड़ा धीमा हो जाता जब तक की आशा अपनी साँस को वापस लय में नहीं पा लेती --- और एकबार ऐसा होते ही वो फिर से अपनी गति पकड़ लेते --- और --- इस बार तो और भी अधिक --- और भी प्रचंड तीव्रता के साथ चुदाई प्रारंभ कर दिया उन्होंने तो --- और प्रत्येक ज़ोर के ठाप के साथ उनका लौड़ा और अंदर प्रविष्ट होता जाता --- एक समय तो ऐसा भी लगा की कहीं आशा बेहोश ही न हो जाए !!
दो बातें तो साफ़ पता चल रही थी आज –
एक, आशा ने आज से पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था और
दूसरा, उस पैंसठ वर्षीय बुड्ढे रणधीर बाबू के स्टैमिना का कोई जवाब नहीं था --- |
वह तो बस चोदे ही जा रहा था और उनके प्रत्येक ठाप से आशा की कराह और चीखें ; ज़ोर से ज़ोर होती चली गई --- यहाँ तक की वह गद्देदार बिस्तर भी आवाज़ के साथ साथ उछलने लगा था --- उनके सेक्स शक्ति के प्रत्येक वार के साथ ।
बुड्ढे की आँखों में एक जंगली पागलपन नज़र आ रहा था --- पसीने से पूरा जिस्म भीगा हुआ था ---
“म्मम्मम्मम्म !!!”
इसबार के उसके कराह में एक आराम और शांति का बोध था, साथ ही आँखों के कोनों से आंसूओं की एक एक बूँद बाहर निकल कर ओझल हो गए ---
वे आँसू ख़ुशी के थे --- या दर्द के ---- या किसी और बात पे --- पर इतना तो पक्का है कि आज से पहले ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था ---
आख़िरकार,
रणधीर बाबू का भी शरीर अब अकड़ा और काँप उठा ---
और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने ---
और आशा भी अपने चूत में रणधीर बाबू के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”
चिल्ला उठी ----
आशा की नर्म – गर्म चूत में रणधीर बाबू का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ---- गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ---- और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ---
इतने बेहतरीन तरीके से झड़ने के बाद, रणधीर बाबू ने आशा को उसके कन्धों से पकड़ा और धीरे से अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका दिया ---- और जैसे ही आशा ने अपना चेहरा थोड़ा ऊपर उठाया ; ----- दोनों के होंठ मिल गए ---- हैरानी वाली बात तो ये थी की इतने देर के फोरप्ले और सेक्स से हुई इतनी थकान के बाद भी आशा के अंदर जोश बाकी थी ;--- दोनों के होंठ मिलते ही, आशा ने अपने होंठ पीछे नहीं की ---- उल्टे रणधीर बाबू के गले में बाहें डाल कर अपने और पास लाते हुए और भी अधिक कामुक और उत्साह से किसिंग शुरू कर दी --- “म्मम्मम्मम्मम्मम्म” आवाज़ करती हुई होंठ चुम्बन करती रही ---
रणधीर बाबू ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , ---- चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा ---- और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ---
रणधीर बाबू बुरी तरह थक चुके थे --- लंड को निकाल कर आशा के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ---
थक तो आशा भी गई थी --- पसीने से तर बतर --- चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई --- टाँगे अब भी फैले हुए --- बाल बिखरे हुए --- गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान --- नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक बुजुर्ग आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई --- होंठ और किनारों पर लगे रणधीर बाबू के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ----
आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त --- |
समय कुछ और बीता ---- दोनों ने अच्छे से आराम किया इतने देर तक ---
सबसे पहले रणधीर बाबू उठे ----
बगल के दीवार में टंगी दीवार घड़ी पे नज़र दौड़ाया -----
पौने एक बज रहे हैं !!
“ओह! मुझे तो और भी काम है !”
ये ख्याल आते ही रणधीर बाबू ने जल्दी जल्दी कपड़े पहने --- हुलिया सही किया --- आशा के पास आए --- वह अब भी आँखें बंद किए लेटी थी --- उस गद्देदार बिस्तर पर --- बिल्कुल निस्तेज़ --- कौन कह सकता था कि कुछ देर पहले तक यही आशा हवसी आशा थी --- जो अब बेहद मासूम आशा लग रही है --- दो अँगुलियों से आशा के बाएँ गाल को स्पर्श किया --- मुस्कुराए --- झुक कर माथे और होंठ पर नर्म किस किया --- पास ही रखी एक चादर उठाई और आशा पर उसके गले तक को कवर करते हुए ढक दिया ---- ओह!! बाई गॉड !! आशा तो अब और भी सेक्सी लगने लगी --- रणधीर बाबू के हथियार में फ़िर ऐठन होने लगा --- पर संभाला खुद को --- पलटे --- और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गए ---- |
पर,
निकलते समय, कुछ फीट की दूरी पर --- उन्हें एक शख्स नज़र आया --- जो उसी विशाल कमरे की ही दूसरी तरफ़ की खिड़की से, --- जो बाहर की ओर खुलती है --- अंदर झांक रहा था --- रणधीर बाबू ने ज़रा गौर से देखा उसकी तरफ़ --- ‘अरे, ये तो वही लड़का है --- जो बगीचे में काम कर रहा था ---!!’
आगे बढ़ कर कुछ कहना चाहा रणधीर बाबू ने,
पर रुक गए --- दिमाग में कोई बात खेलने लगा शायद उनके --- कोई कारस्तानी --- शैतानी --- बदमाशी बुद्धि ---
गौर किया, --- वह लड़का बाहर से --- खिड़की से अंदर ज़रूर देख रहा है --- जहाँ आशा अभी भी निढाल , निस्तेज़ पड़ी हुई है --- जहाँ कुछ समय पहले तक उन दोनों ने जानवरों को भी हार मनवा देने वाला सम्भोग किया था --- शायद लड़के ने सब कुछ नहीं भी तो ; बहुत कुछ देख लिया था ---- पर अभी लड़के का ध्यान रणधीर बाबू की तरफ़ बिल्कुल भी नहीं था --- वह तो अंदर आशा को देख रहा था --- अपलक --- मुँह खुला हुआ --- और एक हाथ पैंट के ऊपर से तम्बू बना रहे लंड पर ----
रणधीर बाबू ने यह सब नोटिस किया,
दो मिनट बाद ही उनके होंठों पर एक मुस्कान छाई ---- एक बहुत ही ज़ालिम, कमीनी मुस्कान --- और फ़िर उसी मुस्कान को होंठों पर लिए ही वहाँ रुखसत हो लिए |
(क्रमशः ---- अगले भाग में)
***************दी एंड*************