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Misc. Erotica आशा...
#72
रणधीर बाबू अब धीरे धीरे अपने जीभ को बाहर निकाल आशा के होंठों पर फ़िराने लगे ----


जीभ के अग्र भाग से आशा के होंठों पर हल्का दबाव डालते और फ़िर जीभ को होंठों पर ऊपर नीचे घूमाते हुए हलके दबाव डाल कर होंठों के बीच घुसा कर आशा के दांतों पर फ़िराने लगते --- रणधीर बाबू को आशा के सफ़ेद, पंक्तिबद्द, मोतियों से चमकते दांत हमेशा से ही पसंद थे --- और मौका मिलते ही अपने जीभ से उसके उन दांतों को छूते ज़रूर थे --- अजीब फेटिश थी उनकी --- खैर, सबकी अपनी अपनी फेटिश और फंतासी होती है |

और रणधीर बाबू तो हैं ही एक नंबर के रसिया ---

रणधीर बाबू के दोनों हथेलियों के दबाव को अपने गीले गाउन के ऊपर से अपने वक्षों पर साफ़ साफ़ महसूस कर रही थी आशा --- रेसिस्ट तो करना चाह रही थी पर मन चाहे जो भी कहे, शरीर ने हरकत करना छोड़ दिया था ---

समर्पण ---

केवल समर्पण ही करना चाह रहा था उसका जिस्म --- मखमल --- कोमल ---- गोरी त्वचा वाली जिस्म --- जिसने न जाने कितनी ही रातों ; और यहाँ तक की दिनों में भी रणधीर बाबू के हाथों का स्पर्श खुद पर बर्दाश्त किया --- दबी गई, दबाई गई, कुचली गई , पुचकारी गई ---- जैसा रणधीर बाबू ने चाहा --- वैसा ही उन्होंने किया --- और आशा सहती गई --- |

पर हमेशा जो आशा के साथ होता है --- वही इस बार ---  इस वक़्त हुआ ---

लाख न चाहने पर भी ---

आशा शनै: शनै: उत्तेजित होने लगी !!

मन के सभी भावों – विकारों, चिंता – दुश्चिंताओं को साइड कर,

अपने दिल – ओ – दिमाग,

और तन बदन में,

ऐसी परिस्थितियों में परम अपेक्षित, परम यौन उत्तेजनाओं को फ़ैल जाने दी --- फ़ैल जाने दी सृष्टि के सबसे पेचीदा पर साथ ही सबसे आकर्षणीय अद्भुत उन विचार और भावनाओं को --- जो इस सृष्टि चक्र को चलाने में सदा ही परम सहायक रहा है --- “काम-भावना” ---- फ़िर चाहे वो मनुष्य हो, या जानवर, या पक्षी ---- सबके मामले में सदैव एक सा |

और केवल सृष्टि चक्र को चलाने में ही नहीं,

अपितु,

ह्यूमन बीइंग्स अर्थात मनुष्यों के मामलों में विपरीत लिंग को देख कर जब तब, सदैव यौन तृष्णा को जगाने और तृप्त करने की आस जगाने में भी महत्ती भूमिका रही है --- |

अधिक देर तक बुत न बनी रह सकी वह ---

अपने हाथों को रणधीर बाबू के सिर के पीछे तक ले जा कर अपनी अँगुलियों को आपस में फंसाई और बाँहों का एक घेरा बना कर खुद को पैरों के अँगुलियों के सहारे खड़ी कर ; और भी बढ़ा दी अपने होंठों को उनके तरफ़ --- |

रणधीर बाबू उसकी मंशा को तुरंत ही समझ गए ---- स्पष्ट संकेत था कि उन्हें अब और विलम्ब नहीं करना चाहिए ---
हथौड़ा गर्म है --- चोट तुरंत करनी होगी ---

उन्होंने तुरंत ही अपने हाथों को नीचे कर आशा के कमर के दोनों ओर रखा और थोड़ी देर वहाँ रखने के बाद धीरे से हाथों को पीछे से नीचे ले जा कर उसकी गोल उभरी हुई माँसल गांड को दबाने और पुचकारने लगे |

आशा मारे जोश के गंगानाने लगी --- वाकई अपने जिस्म पर हो रही रणधीर बाबू के हरेक छेड़खानी उसके सहनशक्ति के पार जा रही थी |

वह मस्ती भर कर दोनों हथेलियों से रणधीर बाबू के सिर पीछे से अच्छे से पकड़ कर अपने तरफ़ और खिंची और जीभों की क्रिया लीला को छोड़ सीधे होंठों पर आक्रमण कर उनके निचले होंठों को बेइंतेहाई रूप से चूसने लगी ---- |

रणधीर बाबू की ख़ुशी का तो जैसे अब कोई पार नहीं है ----

आशा को कस कर अपनी ओर खिंच कर ज़बरदस्त तरीके से बाँहों में भर कर उसके नर्म होंठों का रसीला आनंद लेने लगे ---- अपनी आज तक की ज़िंदगी में उन्होंने कभी ऐसी कड़क और जोशीली माल नहीं देखी थी --- जो शुरू में बाधा तो देती है पर तुरंत ही हथियार भी डाल देती है --- और पूरे यौन क्रिया का मज़ा दूसरे को देने के साथ ही साथ ख़ुद भी जम कर लेती है |

आशा की मुँह से सिर्फ़,

“ऊँहहह... आःह्ह .... ओह्ह्ह ... मम्मम्मम”

की आवाजें आ रही थीं ---

रणधीर बाबू ने हाथ बढ़ा कर शावर को बंद किया ----

फ़िर आशा को एक ही झटके में बड़े ख़ूबसूरत तरीके से अपने गोद में उठा लिया और होंठों पर चुम्बनों की बौछार को बदस्तूर जारी रखते हुए ही किसी तरह बाथरूम से निकले --- और ---- आशा को गोद में उसी तरह उठाए ही सीढ़ियों से ऊपर उसके कमरे की तरफ़ बढ़ चले ---- एक सेकंड को आशा का ध्यान इस तरफ़ गया और उसे इस तरह उठाए ऊपर सीढ़ियाँ चढ़ते देख कर वह मन ही मन, इस उम्र में भी रणधीर बाबू के ताक़त का कमाल देख कर बेहद हतप्रभ हुई ---- और साथ ही बहुत ख़ुश और यौनोत्तेजित भी ---- आशा तो अब और भी ज़ोरों से रणधीर बाबू के सर को अपने होंठों के पास खिंच कर उनके होंठों को खा जाने वाले तरीके से चूसने लगी ---- |

इस उम्र में करीब ५५ किलो उठा कर चलने से निःसंदेह ही रणधीर बाबू का दम फूलने लगा था ---- पर किसी भी कीमत पर आशा को यह पता चले ; यह उनको गवारा नहीं था --- |

आशा का बेडरूम का दरवाज़ा अब भी पूरा खुला था ---

रणधीर बाबू अंदर घुसने के साथ ही सीधे बिस्तर के पास पहुंचे और आशा को ‘ध्प्प्प’ से पटक कर उस पर चढ़ बैठे --- पर अब तक तो आशा के अंदर का यौनेत्तेजना नाम का जानवर भी जाग कर बहुत बुरी तरह से खूंखार हो चुका था --- आशा ख़ुद को थोड़ा ऊपर कर रणधीर बाबू को धक्का दी --- धक्का बहुत जोर का तो नहीं पर था कुछ ऐसा कि रणधीर बाबू ख़ुद को संभाल नहीं सके और वहीँ आशा के बगल में ही बिस्तर पर धराशायी हो गए ---

उनके गिरते ही अब आशा उन पर चढ़ बैठी ---- और ---- अपने नाखूनों से रणधीर बाबू के सीने पर आघात करते हुए उनके होंठों पर टूट पड़ी --- बहुत बहुत और बहुत ही बुरी तरह से रणधीर बाबू के होंठों को चूस रही थी ---- लगभग काटते हुए ---- सीने, कंधे, ऊपरी बाँहों पर अपने नाखूनों से आघात कर निशान छोड़ रही थी ---- बेशक, रणधीर बाबू को पीड़ा हो रहा थी पर एक ऐसी सुंदरी, सम्पूर्ण यौवनयुक्त, उत्कट इच्छाओं से भरी एक महिला के हाथों कुछ पलों तक चोट खाना उन्हें सहर्ष स्वीकार था ---

रणधीर बाबू भी अपने काम वेग के सामने हार मानते हुए आशा के गले के पास से गाउन को पकड़ कर दो विपरीत दिशाओं की ओर खींचा ---  और इससे नाईट गाउन कुछ फट कर --- और कुछ लूज़ हो कर बिल्कुल आजू बाजू और नीचे की ओर झूल गई --- आशा को बुरा न लगा --- लगता भी तो कैसे ---- कामाग्नि में जलते हुए आँखें बंद कर रखी है उसने --- रणधीर बाबू के हाथों दंड पाना चाहती है इस वक़्त --- पीड़ित होना चाहती है --- टॉर्चर होना चाहती है --- हर बाँध --- हर सीमओं --- को तोड़ देना चाहती है -- |


आशा के बड़े बड़े दूधिया दूध अब उन्मुक्त हो चुके थे ---- और दूध से भी अधिक जो सबसे मोह लेने वाला दृश्य था, वो था आशा के विशाल दूधों के बीच का ६ इंच लंबी दरार (क्लीवेज) --- आँखें और मुँह लोलुपता से भरने की देर भर थी कि उन्होने (रणधीर बाबू ने) उसे पास खींच लिया और उसकी दरार को चूमते-चूसते हुए, उसके नर्म मुलायम कूल्हों को दबाया ।
‘शशशssssशशशशशsssss ........

आशा कराह उठी ---

सिर को ऊपर सीलिंग की ओर उठा कर --- आँखें बंद कर ---- अपने नर्म चुत्तड़ो पर उनके सख्त हाथों के दबाव को महसूस की ---- वह उसके नरम कूल्हों को दबाते हुए महसूस कर रहे थे ---- फ़िर उन्होंने अपना हाथ आशा के कूल्हे की दरार के बीच रख दिया और उसे दरार पर बड़े आहिस्ते से --  प्रेमपूर्वक चलाते रहे ।

पहले से ही काम-पीड़ित आशा अब धीरे धीरे जंगली होती जा रही थी --- उसने अपने जाँघों को, रणधीर बाबू की टांगों व जाँघों पर रगड़ना शुरू कर दिया ---- पर रणधीर बाबू तो आशा के काम प्रतिक्रियाओं से बेख़बर रह, ---- उसकी दूधिया छह इंच लंबे क्लीवेज को चूसे जा रहे थे --- बिल्कुल मगन हो कर --- सब बातों से बेख़बर हो कर --- बस ‘लप्प लप्प’ और ‘स्ल्लर्पssss स्ल्लsssर्र्पsss’ की आवाजें करते हुए क्लीवेज चूसने के काम में मगन थे ---

जल्द ही,

उन्होंने आशा के कूल्हों को छोड़ दिया और अपने सख्त हाथों से उसके नरम स्तन को अच्छे से पकड़ कर पंप करना शुरू किया  ----

और पंप भी कुछ ऐसा करना चालू किया रणधीर बाबू ने कि देख कर लग रहा था मानो आशा के बूब्स में जो कुछ भी है इस वक़्त वह सब निकाल लेना चाहते हों --- आशा भी कुछ इस तरह से आहें भर रही थी जैसे की वह भी आज सब कुछ लुटाने को तैयार हो कर आई है ----


काफ़ी देर तक पागलों की तरह दबाने के बाद रणधीर बाबू कुछ सेकंड्स के लिए रुके  ---- फटा हुआ गाउन अब बाधा बन रहा था ---- रणधीर बाबू ने आँखों के इशारे से अपनी बात आशा को समझाई --- और --- आशा भी बात को समझते ही तुरंत गाउन को जाँघों के पास से पकड़ कर कमर से होते हुए बहुत ही सिडकटिव तरीके से अपने दोनों हाथों के ऊपर से होकर निकाल फेंकी ---

“वाऊ !!”

सीने से लेकर कमर तक का नंगा जिस्म देख कर रणधीर बाबू के होंठ स्वतः ही गोल हो कर एक सीटी बजाते हुए ये बोल निकले |

आशा के गदराए शरीर को तो कई महीनों से भोग रहे हैं रणधीर बाबू पर आज तो रूप ही अलग है आशा का ---- और रूप ऐसा कि वासना की लहरें हिलोरें मार मार कर दिल और दिमाग को सुन्न किये दे रहा था और लंड को चुस्त और सख्त पर सख्त ---- |


अपने हथेलियों को आशा के चूचियों के बिल्कुल नीचे रख कर ऊपर से उठाते हुए उन्होंने आशा के गोरे स्तनों के गुलाबी निपल्स को देखा ---

इतनी देर में उसकी चूचियों को इतनी यातनाएँ दे चुके हैं रणधीर बाबू की दोनों ही जगह जगह से बुरी तरह लाल हो चुकी थीं और निपल्स भी एकदम कड़क हो कर खड़े थे ---

कामेच्छा की तीव्रता ने रणधीर बाबू के आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था और अपनी उन्हीं सुर्ख लाल आँखों से वे आशा के आँखों में आँखें डाल कर उन लाल हो चुकी चूचियों को हौले से दबाया --- हालाँकि आशा भी काम वासना से बुरी तरह पीड़ित हो तड़प रही थी पर रणधीर बाबू का इस तरह उसके आँखों में आँखें डाल कर उसकी नंगी चूचियों के साथ खेलने के उपक्रम ने उसे लजाने को मज़बूर कर दिया --- रणधीर बाबू ने भी अब उसके वक्षों को दबाते – पुचकारते हुए उसके निपल्स पर उत्तेजक ढंग से अँगुलियों को रगड़ा --- और इस पर वह तनिक कराह उठी ---

पहले से ही अधनंगे रणधीर बाबू ने आशा को अपनी ओर नीचे की तरफ़ खींचा ; अचानक के खिंचाव से आशा ख़ुद बचाव न कर सकी और सीधे रणधीर बाबू के सीने पर जा गिरी --- उसके स्तन उनके बालों वाली छाती में दब गए |

दब क्या गए ; यूँ समझिये की कुचल गए !! ---

अब रणधीर बाबू ने बड़े प्यार से आशा के सिर के भीगे बालों को सहलाया और करीब पांच-छह बार सहलाने के बाद बड़े लुभावने- ललचाई ढंग से उसके गर्दन और कानों को चूमने लगे ---

कानों को चूमते हुए ही अपनी जीभ से उसके कान के पत्ते को थूक से भिगोते हुए ; कान के अंदर तक जीभ डाल डाल कर प्यार जताने लगे ---

यह क्रिया ऐसे ही कुछ देर तक चलाने के बाद उन्होंने आशा के दोनों बाँहों को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सीने पर से थोड़ा उठाया और अपने मुँह को उसके एक नंगी चूची पर रख दिया ---

“ओह्हssss --- sssss----- उम्म्म्मsssss ---- sssssउम्माह्हssssss ---- स्लsssर्प्प्पsss --- ssssस्ल्र्रप्प्पssssss --- मम्मsssssssss--- sssओह्ह्हsssss ---sssss---- कितना नर्म औरsssss स्पोंजीsss है ---- आआउउऊऊमममममsssssssssssss

आशा के बायीं चूची को चूसते हुए रणधीर बाबू ने सोचा ---- |

चूची चुसाई इतना प्रेम और जबरदस्त तरीके से हो रहा था कि कुछ समय बाद रणधीर बाबू को लगा की कहीं वह चूची चूसते चूसते, अपने चड्डी में ही न झड़ जाए --- इसलिए चूची पर मुँह लगाए ही वह अपने दूसरे हाथ से अपने कमर पर से अपनी भीगी चड्डी किसी प्रकार थोड़ा थोड़ा कर के सरकाते हुए पैरों से निकाल फेंका ---- और --- फ़िर से पूरी तन्मयता से जम गये आशा की चूचियों पर --- वो बारी-बारी से उसके चूचियों को चूसता रहा ।  “आआssssहाहाssssहाहाssss --- एकदम कड़क --- और मखमल---- sssss ---- उम्म्मssssमम्मssss मक्खन ---- आह्ह्ह:ssssss --- वाह्ह्हsssssssss” ---- रणधीर बाबू उसकी चूची चूसते और मन ही मन तारीफ़ पर तारीफ़ करते जाते ---- पानी और लार से गीले सफ़ेद स्तन और भी ज्यादा लुभावना लग रहे थे --- और इस नज़ारे को देख कर रणधीर बाबू का लंड धीरे धीरे फनफना कर खड़ा होने लगा --- होने नहीं, बल्कि हो गया था --- आशा को थोड़ा और उठा कर अपने और आशा के जिस्मों के बीच से हाथ ले जा कर उन्होंने अपना लंड पकड़ कर आशा को दिखाया --- ।


आशा तो पहले से ही जोश और मस्ती की मारी थी --- और अब कड़क टनटनाता लंड और उसका लाल सुपाडा देख कर तो जैसे उसपे कोई नशा सा छा गया --- रणधीर बाबू ने जल्दी से आशा की पैंटी को उतारने में आशा की मदद की और उतार कर अपने चड्डी के पास ही फ़ेंक दिया ---

रणधीर बाबू का लंड बेतहाशा हिल रहा था --- और आशा के चूत को छू रहा था --- वो दोनों बिल्कुल नंगे थे ; उस बड़े से बेडरूम के बड़े से बेड पर --- नर्म स्तनों को चूसते हुए, गर्म लोहे के रोड जैसे लंड को उसकी मुलायम दूधिया जांघ पर रगड़ना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उसके माँसल गदराई चुत्त्ड़ो को भी मसलने लगे --- मस्ती और बेकरारी ऐसी कि अपने हाथों को उस नर्म गांड की दरार पर बुरी तरह फ़ैला रहा था ---


रणधीर बाबू के इन यौन अत्याचारों से बेचारी आशा की तड़पन तिल तिल कर बढ़ रही थी --- और अब तो रणधीर बाबू के उसके गांड के दरार पर हाथ लगा देने से तो वह और भी दोहरी हो गई और ज़ोर से कराह उठी --- रणधीर बाबू उसे उठा बिस्तर पे लिटाए और अब ख़ुद उसपे चढ़ गए --- और फ़िर दोनों की चुम्बन शुरू हो गई --- कई मिनटों के चुम्बनों के बाद रणधीर बाबू धीरे धीरे नीचे आते हुए उसके बिना बालों वाली चूत के पास पहुंचे --- उनको अपनी ओर आमंत्रित करता वह गुलाबी छेद दिखा --- पानी से गीला हुआ , और पानी ही नहीं शायद प्राकृतिक तरल पदार्थ ; दोनों के मिश्रण से गीला लग रहा था वह गुलाबी छेद --- यानि की वह गुलाबी चूत --- बेसुध सा --- होश खोए हुए किसी व्यक्ति जैसा उस प्राकृतिक लुभावनी चीज़ को कुछ देर देखने के बाद स्वतः ही एक कमीना मुस्कान रणधीर बाबू के अधरों पर खेल गया --- चूत पर झुक गए रणधीर बाबू --- अपने नाक को बहुत पास ले जाकर उसकी चूत को सूंघा ---- पेशाब, पसीना और यौन रस मिश्रित एक अजीब सी गंध आ रही थी --- पर रणधीर बाबू के चेहरे पर ऐसे भाव रेखाएं खींच आईं जैसे कि मानो उन्होंने ब्राउन शुगर या कोकेन से भी ज़्यादा नशे वाली किसी चीज़ का स्वाद ले लिया हो --- एकबार फ़िर झुके उस चूत पर और इस बार अपनी जीभ को निकाल कर चूत के एक सिरे पर रखते हुए उसे, चूत की रेखा के किनारों तक दौड़ाया --- उस गंध ने रणधीर बाबू को एक जंगली या यूँ समझे की एक जंगली से भी बद्तर --- एक हैवान बना दिया है --- |


उसने अपनी जीभ को छेद के अंदर गहराई तक धकेला ----

और,

उनके ऐसा करते ही,

आशा के हाथ नीचे हो कर उनके सिर के बालों में घुस गए और उन्हें कस कर जकड़ लिया----

इधर रणधीर बाबू ने भी उसके माँसल, मोटे जांघ वाले पैरों को थोड़ा और फैला कर अपना मुँह और अधिक अंदर कर लिया और अब उसकी चूत को बेतहाशा चाट रहे थे --- उसकी चूत के हर संभव कोने पर काटते हुए आशा को यौन संसार के एक अलग दुनिया में ले जा रहे थे --- |

और,

उनके हरेक ऐसे करतूत पर आशा ज़ोरदार कराहें दे रही थी --- इस बात को भूल कर --- इस बात से बेपरवाह --- की आज उसका बेटा घर पर है और किन्हीं एक रूम में सो रहा है ---

अब तक रणधीर बाबू ने आशा की आँखों में देखते हुए अपने लंड को ऊपर की ओर सीधा कर के पकड़ लिया और आशा की कमर पर अपना बायाँ हाथ रख; आशा को अपने लंड पर बैठने का संकेत किया ----

आशा तो थी ही जोश में पागल, --- संकेत मिलते ही उसने खुद को थोड़ा ऊपर उठाया, रणधीर बाबू के गर्म लोहे को पकड़ लिया और खुद को उसके ऊपर, उस ठरकी बुड्ढे के सांकेतिक निर्देशानुसार व्यवस्थित की और धीरे-धीरे खुद को उस राक्षसी अंग पर बैठा दिया ---

अब,

जब आशा उस बुड्ढे के सख्त अंग पर स्वयं का मार्गदर्शन कर रही थी, तब ठरकी बुड्ढे रणधीर ने अपना दाहिना हाथ आशा के नर्म कूल्हों पर रख दिया था और अपने नज़रों को स्थिर किया आशा के पूरे जिस्म पर जो अभी अभी उस सख्त लौड़े पर बैठी थी, जो खुद को व्यवस्थित कर रही थी उस सख्त गर्म लोहे के ऊपर जो उसकी उस नम, आर्द्र चूत में अभी खुद को सेट कर रहा था ----

आशा ने रणधीर बाबू का गर्म लंड अपने नर्म, गीली, आर्द्रता से पूर्ण चूत में  भले ही डाल ली थी,  लेकिन एक ऐसी गृहिणी होने के नाते ; जिसके पति का लंबे समय तक कोई अता पता न हो, कोई खबर न हो --- जिसने अपने पति के अलावा सिर्फ़ किसी से सेक्स किया हो तो केवल रणधीर बाबू से, --- वो भी सिवाय काऊ गर्ल वाले पोजीशन को छोड़ अन्य सभी आजमाई हो --- आज पहली बार इस तरह अपने जांघे फैला कर अपने चूत में बैठे बैठे किसी का लंड नामक यौनांग ले कर , उस पर सवार होने के बारे में सोच भी नहीं पा रही थी। रणधीर बाबू ने स्थिति को भांपते हुए, उसे हाथों से पकड़ कर फ़ौरन अपने सीने के ऊपर खींच लिया ---- और धीरे-धीरे आशा की योनी में अपनी मर्दानगी को घुसा कर घूमाने लगा ----


लंड जैसे जैसे योनि में एडजस्ट होता गया , --- वैसे वैसे आशा पर विश्रांति का भाव छाने लगा --- इससे पहले भी बहुत बार इस ठरकी बुड्ढे से चुद चुकी थी आशा ---- पर ऐसा अहसास --- ये पहली बार ऐसा अहसास हो रहा था उसे ---- उसके दिल-ओ-दिमाग में एक ऐसी ख़ुमारी घर कर गई थी कि वह बिल्कुल भी होशोहवास में नही रहना चाहती थी --- बल्कि वह तो चाहती ही नहीं कि ये पल, ये समय --- कभी ख़त्म हो ---

आशा ने अपना सिर रणधीर बाबू के दाहिने कंधे पर रख दिया और फ़िर सिर को अपनी ही दाईं ओर घुमा दी ---

रणधीर बाबू ने अपना बायाँ हाथ आशा के सिर पर रख दिया और अपनी उधर्व चुदाई को जोरदार गति देते हुए, उसके बालों को सहलाने लगे ----

चुदाई की गति बढ़ते ही आशा को गीली चूत के बावजूद भी थोड़ा दर्द का अहसास होने लगा --- दर्द थोड़ा ही हो रहा था --- पर आशा को उस चुदाई ख़ुमारी में वह दर्द एक मीठा दर्द लग रहा था ---

ख़ुद पे और नियंत्रण न कर पाते हुए; आशा धीरे-धीरे कराहने लगी, “आआआआsssssssssआआआआआsssssssssआआआआआsss आआआआआssssss आआssssआआsssss आआआ आआआ आआहहहssssss आआह्ह्ह्हssssssss आआआआआआssssssआआआआह्ह्ह्ह्ह्ssssssssssह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssss आआआआsssssssssआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआह्ह्ह्ह्ह्हsssss आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् sssssss ---- ssssssssssss ----


रणधीर बाबू ने आशा के स्वागत करती योनि में अपने लंड को और बलपूर्वक धक्के मारते हुए , चूत की गहराईयों में दबाया और फ़िर उसके बालों को सहलाते हुए अपनी बोली में शहद सा मीठास घोलते हुए कहा, "क्या हुआ जान, दर्द हो रहा है ?? --- थोड़ा सह लो --- प्लीज़, --- मेरे लिए --- और सुनो, मुँह क्यों फ़ेरी हो? ज़रा इस ओर देखो ना"

पर आशा को होश कहाँ,

वह तो बेचारी यौन तृप्ति की आनन्द सागर में योनि में रह रह कर उठने वाली मीठे दर्द को सहने की जी तोड़ कोशिशों में लगी है ---


बुड्ढे की बात पर आशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, ---- लेकिन बेचारी कराहती रही, '' आआआआआआआआआआहहहहहहह, ----- ..आआआआआआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हsssssss -----sssssssss---- ह्हह्हह्हह्हsssssss ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssssssssssss ... (जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी)


रणधीर बाबू भी आशा की ओर से किसी जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर लगातार ७-८ धक्के बड़े जोर के मारे ---
और उन धक्को के चोटों को बर्दाश्त न कर पाने की वजह से आशा चिहुंक कर, मदमस्त अंदाज़ में और भी अधिक मादक स्वर में कराहने लगी,

आआआआआआआआआआआsssssssssssss आआआआsssssssssss ---- आआआआsssssssआआआआआआआsssssssssss ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ----- ..आआआआआsssssssssआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- ऊउम्मम्मssssssssम्मम्मम--- आआअह्हssssssssss ---- आआआआआआssssssssssssआआआआआआआsssssssssssssआआ----आआआआआआsssssssआआआआआ---- sssssssss--- आआहहहहहहहहहहह---- sssssssssssहहहहहहहहहsssssssssहहहहहह----- हहहहहssssssssssssssssह्ह्ह्ह्ह्हह --- ओह्ह्ह्हहह्ह्ह्हह्ह
“ओह्ह्ह्हहह्ह्ह--- ssssssss---आह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्ह-----ऊऊऊऊहहहहहहहहहहssssssssssssssss----ओह्ह्ह्हह ---- माँआअsssssssssssअआआआआssssss ---- ssssss--- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सsssss ------”

आशा की प्रत्येक कराह रणधीर बाबू के कानों में जैसे शहद घोल दे रही थी --- और मन में यह हार्दिक इच्छा थी की वह धक्के मारते हुए अब आशा की आँखों में देख सके- --- प्रत्येक धक्के पर उसके चेहरे पर बनने बिगड़ने वाले भावों को करीब से देखना चाहते थे ----

इसलिए,

खुद के साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार और अनुनय किया उन्होंने,

“आशा ---- जान --- एक बार प्लीज़ मेरी तरफ़ देखो न ---- इधर देखो --- प्लीज़ ---- आँखों में देखो --- आशा ----”

इस बार आशा भी मना नहीं कर पाई और बेहद आहिस्ते से वह रणधीर बाबू की ओर घूम गई --- पर जैसे ही एक सेकंड के लिए उसकी आँखें रणधीर बाबू की आँखों से मिलीं, वह जैसे शर्म के सागर में डूब गई --- तुरंत ही अपने होंठों को सख्ती से भींचते हुए उसने अपने कराहने पर काबू किया और आँखें बंद कर लीं ---





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आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:37 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:43 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:53 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 03-04-2019, 02:43 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:00 PM
RE: आशा... - by thyroid - 03-04-2019, 01:10 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:00 PM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 03-04-2019, 01:37 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:02 PM
RE: आशा... - by rajeshsarhadi - 07-04-2019, 03:17 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:03 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:15 AM
RE: आशा... - by rajeshsarhadi - 09-04-2019, 08:51 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:53 AM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 09-04-2019, 11:39 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:40 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 09-04-2019, 03:02 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:42 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:52 PM
RE: आशा... - by KareenaKapoorLover - 15-04-2019, 01:03 AM
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