31-05-2019, 09:24 PM
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भाग ७: नया कदम .. (अंतिम भाग)
दो सख्त से हाथों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई वह --- शावर के ठीक नीचे खड़े होने के कारण उससे गिरते पानी सीधे उसके बंद आँखों और चेहरे पर पड़ रहे थे --- और उन कठोर हाथों का मालिक चाहे जो कोई भी हो, पीछे से अडिग रूप से खड़ा था जिस कारण आशा दिल में लाख़ चाहते हुए भी पीछे हट नहीं पा रही थी --- इन्हीं दो कारणों से आशा न आँखें खोल पाई और न ही पीछे हट कर उसके स्तनों के साथ छेड़खानी करने की गुस्ताख़ी करने वाले उन हाथों के स्वामी को देख पाने की स्थिति में रही --- |
पर इतना तो तय है,
कि आशा के सुपुष्ट स्तनों के साथ खिलवाड़ करने वाले वो हाथ किसी अनारी के नहीं हो सकते ---
क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से वे हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वह किसी खेले – खेलाए ; एक मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है -- |
कोशिश काफ़ी की आशा ने खुद को और खुद के स्तनों को उन हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाने की ---
पर छुड़ा न पाई ---
क्योंकि नाकाफ़ी साबित हुए उसके वे कोशिश ---
तर्कों ने लाख़ तर्क दिए ; पर पहले से ही उसपे हावी उसकी काम-क्षुधा ने आशा को उसे, उसके दिल के साथ रज़ामंद होने में देर न होने दी ---
और इसी का प्रतिफल यह रहा कि आशा ने ख़ुद को छुड़ाने की बस इतनी ही कोशिश की कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद को सान्तवना और दूसरों को सबूत दे सके की उसने तो कोशिश की थी ख़ुद को छुड़ाने की, पर बेचारी अबला अकेली नारी ख़ुद को एक मज़बूत हवसी से बचा न सकी --- |
दिल ने गवाही देने के साथ साथ ये माँग करनी भी शुरू कर दी थी कि उसके चूचियों और शरीर के साथ और ज़्यादा से ज़्यादा खेला जाए --- छेड़खानी की गुस्ताख़ी और बढ़े --- सीमाओं के बाँध और टूटे --- अरमानों के बाढ़ और बहे --- शावर से गिरते पानी, सावन की बारिश सी उसकी कामाग्नि को बुझाने में उसकी भरसक मदद करे ----
पर ये सब उसके होंठों से न निकल सके ---
ये बातें दिल में उठ कर दिल में ही दब कर रह गए ---
किसी अनजाने अंदेशों ने इन बातों को उसके होंठों के कैद से बाहर न निकलने दिए ---
सबकुछ जान - समझ रही आशा बस चुपचाप खड़ी रह कर कसमसाते रहने और बीच बीच में ख़ुद को छुड़ाने की एक दिखावटी कोशिश में लगी रही --- |
पर नर्म, सुकोमल, सुपुष्ट चूचियों पर सख्त हाथों के पड़ते दबाव और निरंतर हो रही उनसे छेड़खानियों ने आशा के शरीर को उसके तर्क, लाज, दुविधा और अन्य बातों से बगावत करने को मज़बूर कर ही दिया ---
धीरे धीरे उसके अंदर समर्पण का भाव जन्म लेने लगा ---
गुदगुदी सी हुई पूरे शरीर में --- साथ ही चूत में चीटियाँ सी रेंगने वाली फीलिंग आने लगी ---
कुछ कुछ होने लगा था उसके तन बदन में ----
काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित थी वह --- और अब यह पूरा उपक्रम --- ‘उफ्फ्फ़..!’...
वो दोनों हाथ कभी उसके चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते मसलते नीचे बढ़ते हुए कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर कुछ नीचे और बढ़ते --- चूत के ठीक बिल्कुल ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए --- ऊँगलियों के प्रेशर को यथावत बनाए रखते हुए एक सीध में ऊपर उठते हुए कमर तक पहुँचते और फ़िर उसी तरह नीचे चूत तक जाते ----
ठीक उसी तरह प्रेशर को बनाए रखते हुए चूत के ऊपरी हिस्से से खिलवाड़ करते और फ़िर धीरे धीरे उँगलियों से प्रेशर बनाते हुए ऊपर की ओर उठ आते ---
हर दो बार ऐसा करने के बाद तीसरी बार वे हाथ कमर पर पहुँचते ---
गाउन के ऊपर से ही नाभि को टटोलकर पूरे पेट पर घूमते ----
और फ़िर धीरे धीरे चूचियों के ठीक निचले हिस्से पर पहुँच कर गाउन के ऊपर से ब्रैस्ट अंडरलाइन को ढूँढ कर, दोनों अंगूठों से दबाते हुए दोनों चूचियों के नीचे दाएँ बाएँ घूमते ----
और फ़िर दोनों हथेली एकदम से फ़ैल कर उन विशाल मस्त चूचियों को अपने गिरफ़्त में भली प्रकार लेते हुए बड़े प्रेम से मसलने लगते ---- |
आशा तो बस अपनी सारी सुध-बुध खो चुकी थी ---
दिन रात, सर्दी गर्मी ठण्ड, बारिश ---- सब कुछ अभी गौण हो चुके हैं फ़िलहाल उसके लिए ---- |
उसके लिए तो केवल ‘काम’, ‘काम’ , ‘काम’, ‘काम’ और बस..... ‘काम’..... -----
साँसें तेज़ होने लगी उसकी,
धड़कनें तो धीरे धीरे न जाने कब की बढ़ चुकी हैं ---
होंठ काँपने लगे हैं ---
शावर के ठन्डे पानी और तन की गर्मी के मिश्रण से शरीर अजीब सा अकड़ गया है ---
वो हिलना चाहे भी तो नहीं हिल पा रही है ---
पीछे जो भी है,
लगता है बड़ी चूचियों का बहुत दीवाना है ---
तभी तो इतने देर से मसलने के बाद भी अब भी पहले वाले जोश और तरम्यता के साथ मसले जा रहा है ---
गाउन के अंदर ही खड़ी हो चुकी दोनों निप्पल को तर्जनी ऊँगलियों के सहायता से हल्के से छूते हुए ऊपर नीचे और दाएँ बाएँ करके खेलना शायद बहुत पसंद होगा इस शख्स को ---- तभी तो शुरुआत से लेकर अभी तक इस खेल में रत्ती भर का कोई अंतर या परिवर्तन नहीं आया था ---- |
अभी अपने वक्षों पर हो रहे यौन शोषण का आनंद ले ही रही थी कि अचानक से चिहुंक पड़ी आशा ---
कारण,---
कारण था अपने पिछवाड़े पर कुछ सुई सा चुभने का अहसास --- जोकि अभी अभी हुआ उसे --- आशा को ---
कुछ और होगा सोच कर दुबारा मीठे दर्द के अहसास में खोने के लिए तैयार होने जा रही आशा फ़िर से चिहुंक उठी ---
और इस बार चुभने का अहसास कुछ ऐसा था कि वह अपने पैर के अँगुलियों पर ही लगभग खड़ी हो गई --- पर ज़्यादा देर खड़ी न रही आशा ---- क्योंकि वो बलिष्ठ हाथ उसके चूचियों को अच्छे से मुट्ठी में ले अपने ओर --- पीछे की ओर खिंच लिए ---
आशा धप्प से उस शख्स के शरीर से जा टकराई --- और इसबार भी फ़िर वही अहसास हुआ --- पर इसबार के अहसास से चौंकी या चिहुंकी नहीं वह --- अपितु, मारे लाज के दोहरी हो गई --- !
क्योंकि,
जिस चीज़ से उसे चुभन का एहसास बारम्बार हो रहा था, वह कुछ और नहीं, वरन, उस शख्स का कड़क मोटा खड़ा लंड था !
जो कुछ इस तरह से पोजीशन लिए था कि आशा जितनी बार भी पीछे होती या वह शख्स ही जितनी बार आगे होता --- उतनी ही बार लंड का अग्र भाग आशा के गोल नर्म चूतड़ों से टकराता --- |
चुभन के कारण का पता चलने के बाद से ही लाज से दोहरी हुई आशा अब एक और द्वंद्व में फँस गई ---
जिस प्रकार उसे अपने नर्म गदराए नितम्बों पर लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा ; ठीक उसी प्रकार ऐसी परिस्थिति जहाँ वह खुद अपने बाथरूम के शावर के नीचे गाउन पहने खड़ी हो और पीछे से कोई अनजान उसके शरीर के एक अंग से शुरू हो धीरे धीरे पूरे शरीर पर दखल करना चाह रहा हो ---- क्या उसे, यानि आशा को, इस तरह आनंद सुख लेना चाहिए??
और अगर नहीं तो फ़िर क्या करना चाहिए उसे??
प्रतिवाद करे?
नहीं... नहीं....
प्रतिवाद या प्रतिकार करने का सटीक समय बीत गया है ----
इस तरह की कोई भी चेष्टा उसे शुरू में ही करना चाहिए था ---
पर अभी भी,
‘अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत’ वाली परिस्थिति नहीं है ---
आरंभिक आपत्ति जता कर धीरे धीरे मामले को यहीं ख़त्म कर देना चाहिए ---- क्योंकि एक तो पीछे बगीचे में एक लड़का काम कर रहा है जो कभी भी अंदर दाख़िल हो कर किसी प्रकार का मदद माँग सकता है --- और कहीं ऐसा न हो कि वह लड़का आशा को किसी आपत्तिजनक हालत में देख ले, इससे उस लड़के के नज़रों में तो आशा के सम्मान को धक्का तो लगेगा ही--- शायद आस पास के छोटे कस्बाई इलाके; जहाँ ये लड़का रहता है --- उन लोगों के बीच भी आशा की किरकिरी हो सकती है --- फ़िर क्या पता --- भविष्य में उन्हीं में से कोई या दो-तीन जन आशा पर चांस मारने की कोशिश करे --- सफ़ल न होने पर शायद ज़ोर-ज़बरदस्ती या बलात्कार करे --- ब्लैकमेल का भी कारण बन सकता है ---और न जाने कौन कौन सी ; कैसी कैसी समस्या आ खड़ी हो --- |
और दूसरी बात यह कि आशा ने अब तक पीछे खड़े उसके जिस्म के साथ खेलने वाले शख्स को देखा नहीं था ---
न जाने वह कौन हो ---
हे भगवान! -- कहीं इस भोला का कोई संगी-साथी तो नहीं !! --- जो शायद भोला के साथ या उसके पीछे खड़ा रहा हो --- जिसे आशा देख नहीं पाई या शायद ध्यान नहीं दी हो ---?? जिसने शायद भोला को देख कर अपनी चूत खुजलाती और दूध दबाती आशा को देख लिया हो और अब मौका मिलने पर उसके घर में घुस कर सीधे बाथरूम में आ कर पीछे से आशा के नर्म गदराए जिस्म से खेलना शुरू कर दिया??!!
और अगर ऐसा कोई नहीं तो फ़िर कौन ??
मन में ऐसे ढेरों विचार आते ही आशा तुरंत संभल कर खड़ी हुई ---
उसकी बॉडी जगह जगह थोड़ी टाइट हो गई ---
पीछे खड़े शख्स को कोई ख़ास मौका न देने के उद्देश्य से कोहनियों से हल्के से मारना चाही --- कोशिश भी की ---- पर कर न सकी --- वह शख्स काफ़ी सट कर खड़ा था और बीच बीच में अपने कमर को आगे कर , लंड को कभी दाएँ तो कभी बाएँ चुत्तड़ पर मार रहा था और फ़िर लंड की पोजीशन बना कर आशा के गांड के बीच के दरार में फँसा ऊपर नीचे कर रहा था |
यकीनन आशा को बेइन्तेहाँ मज़ा आ रहा था ---
पर अब ये जानना ज़रूरी था कि आख़िर ये है कौन ----
कोहनियों से मार कर कोई लाभ न हुआ --- पर इतना पता ज़रूर लगा कि पीछे वाला शख्स जो कोई भी हो --- है वो शर्टलेस है ! --- और थोड़ा तोंदू है !
‘ह्म्म्म, यानि की ये कोई मर्द.... मेरा मतलब कोई आदमी है --- उम्रदराज--- अंह--- पर ये ज़रूरी तो नहीं --- आजकल तो कम उम्र के बच्चों के भी पेट निकल आ रहे हैं --- मम्मम... एक और कोशिश कर के देखती हूँ --- |’
ऐसा सोच कर आशा ने अपने बाएँ हाथ को पीछे ले जा कर सही अंदाज़ा लगाते हुए झट से उसके लंड को पकड़ ली ---
ओह!
‘अरे यह क्या??!! ---- ये तो सिर्फ़ अंडरवियर--- चड्डी में है !! ओह ! ओह माई गॉड !! कौन है ये शख्स?’
पूरे शरीर में डर और आशंकाओं की चीटियाँ सी दौड़ पड़ी ---
किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर कुछ पल तो बस वैसे ही खड़ी रही वह---
लंड को चड्डी के ऊपर से पकड़े ---
शावर से गिरते ठंडे पानी के नीचे ----
बस, मूर्तिवत ....
कुछ सेकंड्स ऐसे ही गुज़रे होंगे कि तभी वह शख्स अपने चेहरे को पीछे से आशा के कंधे के ऊपर लाते हुए कान में धीरे से फुसफुसाया,
‘क्या हुआ आशा --- इसे प्यार करो न--- रुक क्यों गई --- अच्छा नहीं लगा? या यहाँ खड़े खड़े बोर हो गई?’
‘ये -- ये आवाज़ ! ओह! ये आवाज़ तो मैं जानती हूँ --- ये --- ये तो ---’
शरीर की समस्त शक्तियों को बटोर कर एक झटके से घूम कर खड़ी हो गई आशा --- पानी अब सिर के पिछले हिस्से पर गिर रहे हैं --- इसलिए समस्या नहीं --- आँखें खोलीं --- और सामने देखते ही बेचारी बहुत बुरी तरह से चौंकी ----
‘हे भगवान!! ऐसा कैसे हो सकता है? ये --- ये तो ---- ’
‘क्या हुआ आशा --? भूल गई मुझे? या विश्वास नहीं हो रहा??’
सामने खड़ा शख्स एक कुटिल कमीनी मुस्कान लिए अब सामने से आशा के स्तनों को पकड़कर मरोड़ता हुआ बोला |
पर उसके बात या क्रिया, किसी पर भी आशा का ध्यान न गया ---
परम आश्चर्य से चौड़ी होती आँखों से उस शख्स को देखते हुए उसके दिमाग में बस एक ही नाम कौंधा ,
‘रणधीर बाबू !!’
हाँ ..!
रणधीर बाबू ही तो था वह शख्स --- जो इतनी देर से पीछे से आशा के जिस्म के हरेक अंग प्रत्यंग से खेले जा रहा था --- |
आशा के साथ इतने देर तक गुपचुप मस्ती के कारण जहाँ एक ओर रणधीर बाबू के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी , साथ ही आँखों में वासना लबरेज़ तो वहीँ दूसरी ओर आशा के नर्म हाथो के स्पर्श से लंड उस हाफ चड्डी के अंदर ही अंदर बुरी तरह से फनफना रहा था ---
आशा बेचारी इतनी शॉकड थी कि वो तो कुछ पलों के लिए ये भूल ही गई थी कि उसकी मुट्ठी के गिरफ्त में रणधीर बाबू का लंड अब भी है और बुरी तरह से अकड़ रहा है ---
रणधीर बाबू बड़े आराम और प्रेम से थोड़ा और करीब आए,
और थोड़ा झुक कर अपने होंठों को आशा के होंठों के और पास ले आए,
और थोड़ा रुक कर, आशा के होंठों पर हल्का सा साँस छोड़ते हुए बड़े धीरे से अपने होंठों को छुआ दिया और फिर कुछ ५-६ सेकंड्स बाद आशा के होंठों पर अपने होंठो को अच्छे से जमा कर किस पर किस करने लगे |
शोकिंग स्टेट से वापस आते ही रणधीर बाबू के होंठों को अपने होंठों पर पा कर दिल धक् से कर के रह गया आशा का ---
प्रत्युत्तर में कुछ करना तो चाहती थी पर करे क्या यही उसकी समझ में न आया --- अतः चुपचाप खड़ी रह के रणधीर बाबू के होंठों के द्वारा अपने होंठों का यौन शोषण सहन करने लगी ---
चंद पलों में ही अनुभवी रणधीर बाबू ने अपने गीले वहशी चुम्बनों से और अपनी करामाती उँगलियों के कमाल से; कोमल वक्ष और कड़क होते निप्पलों को छेड़ और दबा दबा कर आशा को भरपूर उत्तेजना में भर दिया था ---
एक तो सुबह से ही आशा बुरी तरह से पागल थी यौन सपने देख देख कर, फ़िर आया भोला--- जिसके उम्र से मैच नहीं करता उसका कड़क मोटा लम्बा लंड आशा के तन बदन में जबरदस्त कामाग्नि प्रज्जवलित कर दिया था --- और अब जब शावर के नीचे खड़े हो कर उस कामाग्नि को शांत करने का उपाय कर ही रही थी कि अचानक से न जाने कहाँ से और कैसे रणधीर बाबू अंदर आ गए --- जबकि सुबह से तो ये इस घर में थी भी नहीं --- |
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दो सख्त से हाथों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई वह --- शावर के ठीक नीचे खड़े होने के कारण उससे गिरते पानी सीधे उसके बंद आँखों और चेहरे पर पड़ रहे थे --- और उन कठोर हाथों का मालिक चाहे जो कोई भी हो, पीछे से अडिग रूप से खड़ा था जिस कारण आशा दिल में लाख़ चाहते हुए भी पीछे हट नहीं पा रही थी --- इन्हीं दो कारणों से आशा न आँखें खोल पाई और न ही पीछे हट कर उसके स्तनों के साथ छेड़खानी करने की गुस्ताख़ी करने वाले उन हाथों के स्वामी को देख पाने की स्थिति में रही --- |
पर इतना तो तय है,
कि आशा के सुपुष्ट स्तनों के साथ खिलवाड़ करने वाले वो हाथ किसी अनारी के नहीं हो सकते ---
क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से वे हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वह किसी खेले – खेलाए ; एक मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है -- |
कोशिश काफ़ी की आशा ने खुद को और खुद के स्तनों को उन हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाने की ---
पर छुड़ा न पाई ---
क्योंकि नाकाफ़ी साबित हुए उसके वे कोशिश ---
तर्कों ने लाख़ तर्क दिए ; पर पहले से ही उसपे हावी उसकी काम-क्षुधा ने आशा को उसे, उसके दिल के साथ रज़ामंद होने में देर न होने दी ---
और इसी का प्रतिफल यह रहा कि आशा ने ख़ुद को छुड़ाने की बस इतनी ही कोशिश की कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद को सान्तवना और दूसरों को सबूत दे सके की उसने तो कोशिश की थी ख़ुद को छुड़ाने की, पर बेचारी अबला अकेली नारी ख़ुद को एक मज़बूत हवसी से बचा न सकी --- |
दिल ने गवाही देने के साथ साथ ये माँग करनी भी शुरू कर दी थी कि उसके चूचियों और शरीर के साथ और ज़्यादा से ज़्यादा खेला जाए --- छेड़खानी की गुस्ताख़ी और बढ़े --- सीमाओं के बाँध और टूटे --- अरमानों के बाढ़ और बहे --- शावर से गिरते पानी, सावन की बारिश सी उसकी कामाग्नि को बुझाने में उसकी भरसक मदद करे ----
पर ये सब उसके होंठों से न निकल सके ---
ये बातें दिल में उठ कर दिल में ही दब कर रह गए ---
किसी अनजाने अंदेशों ने इन बातों को उसके होंठों के कैद से बाहर न निकलने दिए ---
सबकुछ जान - समझ रही आशा बस चुपचाप खड़ी रह कर कसमसाते रहने और बीच बीच में ख़ुद को छुड़ाने की एक दिखावटी कोशिश में लगी रही --- |
पर नर्म, सुकोमल, सुपुष्ट चूचियों पर सख्त हाथों के पड़ते दबाव और निरंतर हो रही उनसे छेड़खानियों ने आशा के शरीर को उसके तर्क, लाज, दुविधा और अन्य बातों से बगावत करने को मज़बूर कर ही दिया ---
धीरे धीरे उसके अंदर समर्पण का भाव जन्म लेने लगा ---
गुदगुदी सी हुई पूरे शरीर में --- साथ ही चूत में चीटियाँ सी रेंगने वाली फीलिंग आने लगी ---
कुछ कुछ होने लगा था उसके तन बदन में ----
काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित थी वह --- और अब यह पूरा उपक्रम --- ‘उफ्फ्फ़..!’...
वो दोनों हाथ कभी उसके चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते मसलते नीचे बढ़ते हुए कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर कुछ नीचे और बढ़ते --- चूत के ठीक बिल्कुल ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए --- ऊँगलियों के प्रेशर को यथावत बनाए रखते हुए एक सीध में ऊपर उठते हुए कमर तक पहुँचते और फ़िर उसी तरह नीचे चूत तक जाते ----
ठीक उसी तरह प्रेशर को बनाए रखते हुए चूत के ऊपरी हिस्से से खिलवाड़ करते और फ़िर धीरे धीरे उँगलियों से प्रेशर बनाते हुए ऊपर की ओर उठ आते ---
हर दो बार ऐसा करने के बाद तीसरी बार वे हाथ कमर पर पहुँचते ---
गाउन के ऊपर से ही नाभि को टटोलकर पूरे पेट पर घूमते ----
और फ़िर धीरे धीरे चूचियों के ठीक निचले हिस्से पर पहुँच कर गाउन के ऊपर से ब्रैस्ट अंडरलाइन को ढूँढ कर, दोनों अंगूठों से दबाते हुए दोनों चूचियों के नीचे दाएँ बाएँ घूमते ----
और फ़िर दोनों हथेली एकदम से फ़ैल कर उन विशाल मस्त चूचियों को अपने गिरफ़्त में भली प्रकार लेते हुए बड़े प्रेम से मसलने लगते ---- |
आशा तो बस अपनी सारी सुध-बुध खो चुकी थी ---
दिन रात, सर्दी गर्मी ठण्ड, बारिश ---- सब कुछ अभी गौण हो चुके हैं फ़िलहाल उसके लिए ---- |
उसके लिए तो केवल ‘काम’, ‘काम’ , ‘काम’, ‘काम’ और बस..... ‘काम’..... -----
साँसें तेज़ होने लगी उसकी,
धड़कनें तो धीरे धीरे न जाने कब की बढ़ चुकी हैं ---
होंठ काँपने लगे हैं ---
शावर के ठन्डे पानी और तन की गर्मी के मिश्रण से शरीर अजीब सा अकड़ गया है ---
वो हिलना चाहे भी तो नहीं हिल पा रही है ---
पीछे जो भी है,
लगता है बड़ी चूचियों का बहुत दीवाना है ---
तभी तो इतने देर से मसलने के बाद भी अब भी पहले वाले जोश और तरम्यता के साथ मसले जा रहा है ---
गाउन के अंदर ही खड़ी हो चुकी दोनों निप्पल को तर्जनी ऊँगलियों के सहायता से हल्के से छूते हुए ऊपर नीचे और दाएँ बाएँ करके खेलना शायद बहुत पसंद होगा इस शख्स को ---- तभी तो शुरुआत से लेकर अभी तक इस खेल में रत्ती भर का कोई अंतर या परिवर्तन नहीं आया था ---- |
अभी अपने वक्षों पर हो रहे यौन शोषण का आनंद ले ही रही थी कि अचानक से चिहुंक पड़ी आशा ---
कारण,---
कारण था अपने पिछवाड़े पर कुछ सुई सा चुभने का अहसास --- जोकि अभी अभी हुआ उसे --- आशा को ---
कुछ और होगा सोच कर दुबारा मीठे दर्द के अहसास में खोने के लिए तैयार होने जा रही आशा फ़िर से चिहुंक उठी ---
और इस बार चुभने का अहसास कुछ ऐसा था कि वह अपने पैर के अँगुलियों पर ही लगभग खड़ी हो गई --- पर ज़्यादा देर खड़ी न रही आशा ---- क्योंकि वो बलिष्ठ हाथ उसके चूचियों को अच्छे से मुट्ठी में ले अपने ओर --- पीछे की ओर खिंच लिए ---
आशा धप्प से उस शख्स के शरीर से जा टकराई --- और इसबार भी फ़िर वही अहसास हुआ --- पर इसबार के अहसास से चौंकी या चिहुंकी नहीं वह --- अपितु, मारे लाज के दोहरी हो गई --- !
क्योंकि,
जिस चीज़ से उसे चुभन का एहसास बारम्बार हो रहा था, वह कुछ और नहीं, वरन, उस शख्स का कड़क मोटा खड़ा लंड था !
जो कुछ इस तरह से पोजीशन लिए था कि आशा जितनी बार भी पीछे होती या वह शख्स ही जितनी बार आगे होता --- उतनी ही बार लंड का अग्र भाग आशा के गोल नर्म चूतड़ों से टकराता --- |
चुभन के कारण का पता चलने के बाद से ही लाज से दोहरी हुई आशा अब एक और द्वंद्व में फँस गई ---
जिस प्रकार उसे अपने नर्म गदराए नितम्बों पर लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा ; ठीक उसी प्रकार ऐसी परिस्थिति जहाँ वह खुद अपने बाथरूम के शावर के नीचे गाउन पहने खड़ी हो और पीछे से कोई अनजान उसके शरीर के एक अंग से शुरू हो धीरे धीरे पूरे शरीर पर दखल करना चाह रहा हो ---- क्या उसे, यानि आशा को, इस तरह आनंद सुख लेना चाहिए??
और अगर नहीं तो फ़िर क्या करना चाहिए उसे??
प्रतिवाद करे?
नहीं... नहीं....
प्रतिवाद या प्रतिकार करने का सटीक समय बीत गया है ----
इस तरह की कोई भी चेष्टा उसे शुरू में ही करना चाहिए था ---
पर अभी भी,
‘अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत’ वाली परिस्थिति नहीं है ---
आरंभिक आपत्ति जता कर धीरे धीरे मामले को यहीं ख़त्म कर देना चाहिए ---- क्योंकि एक तो पीछे बगीचे में एक लड़का काम कर रहा है जो कभी भी अंदर दाख़िल हो कर किसी प्रकार का मदद माँग सकता है --- और कहीं ऐसा न हो कि वह लड़का आशा को किसी आपत्तिजनक हालत में देख ले, इससे उस लड़के के नज़रों में तो आशा के सम्मान को धक्का तो लगेगा ही--- शायद आस पास के छोटे कस्बाई इलाके; जहाँ ये लड़का रहता है --- उन लोगों के बीच भी आशा की किरकिरी हो सकती है --- फ़िर क्या पता --- भविष्य में उन्हीं में से कोई या दो-तीन जन आशा पर चांस मारने की कोशिश करे --- सफ़ल न होने पर शायद ज़ोर-ज़बरदस्ती या बलात्कार करे --- ब्लैकमेल का भी कारण बन सकता है ---और न जाने कौन कौन सी ; कैसी कैसी समस्या आ खड़ी हो --- |
और दूसरी बात यह कि आशा ने अब तक पीछे खड़े उसके जिस्म के साथ खेलने वाले शख्स को देखा नहीं था ---
न जाने वह कौन हो ---
हे भगवान! -- कहीं इस भोला का कोई संगी-साथी तो नहीं !! --- जो शायद भोला के साथ या उसके पीछे खड़ा रहा हो --- जिसे आशा देख नहीं पाई या शायद ध्यान नहीं दी हो ---?? जिसने शायद भोला को देख कर अपनी चूत खुजलाती और दूध दबाती आशा को देख लिया हो और अब मौका मिलने पर उसके घर में घुस कर सीधे बाथरूम में आ कर पीछे से आशा के नर्म गदराए जिस्म से खेलना शुरू कर दिया??!!
और अगर ऐसा कोई नहीं तो फ़िर कौन ??
मन में ऐसे ढेरों विचार आते ही आशा तुरंत संभल कर खड़ी हुई ---
उसकी बॉडी जगह जगह थोड़ी टाइट हो गई ---
पीछे खड़े शख्स को कोई ख़ास मौका न देने के उद्देश्य से कोहनियों से हल्के से मारना चाही --- कोशिश भी की ---- पर कर न सकी --- वह शख्स काफ़ी सट कर खड़ा था और बीच बीच में अपने कमर को आगे कर , लंड को कभी दाएँ तो कभी बाएँ चुत्तड़ पर मार रहा था और फ़िर लंड की पोजीशन बना कर आशा के गांड के बीच के दरार में फँसा ऊपर नीचे कर रहा था |
यकीनन आशा को बेइन्तेहाँ मज़ा आ रहा था ---
पर अब ये जानना ज़रूरी था कि आख़िर ये है कौन ----
कोहनियों से मार कर कोई लाभ न हुआ --- पर इतना पता ज़रूर लगा कि पीछे वाला शख्स जो कोई भी हो --- है वो शर्टलेस है ! --- और थोड़ा तोंदू है !
‘ह्म्म्म, यानि की ये कोई मर्द.... मेरा मतलब कोई आदमी है --- उम्रदराज--- अंह--- पर ये ज़रूरी तो नहीं --- आजकल तो कम उम्र के बच्चों के भी पेट निकल आ रहे हैं --- मम्मम... एक और कोशिश कर के देखती हूँ --- |’
ऐसा सोच कर आशा ने अपने बाएँ हाथ को पीछे ले जा कर सही अंदाज़ा लगाते हुए झट से उसके लंड को पकड़ ली ---
ओह!
‘अरे यह क्या??!! ---- ये तो सिर्फ़ अंडरवियर--- चड्डी में है !! ओह ! ओह माई गॉड !! कौन है ये शख्स?’
पूरे शरीर में डर और आशंकाओं की चीटियाँ सी दौड़ पड़ी ---
किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर कुछ पल तो बस वैसे ही खड़ी रही वह---
लंड को चड्डी के ऊपर से पकड़े ---
शावर से गिरते ठंडे पानी के नीचे ----
बस, मूर्तिवत ....
कुछ सेकंड्स ऐसे ही गुज़रे होंगे कि तभी वह शख्स अपने चेहरे को पीछे से आशा के कंधे के ऊपर लाते हुए कान में धीरे से फुसफुसाया,
‘क्या हुआ आशा --- इसे प्यार करो न--- रुक क्यों गई --- अच्छा नहीं लगा? या यहाँ खड़े खड़े बोर हो गई?’
‘ये -- ये आवाज़ ! ओह! ये आवाज़ तो मैं जानती हूँ --- ये --- ये तो ---’
शरीर की समस्त शक्तियों को बटोर कर एक झटके से घूम कर खड़ी हो गई आशा --- पानी अब सिर के पिछले हिस्से पर गिर रहे हैं --- इसलिए समस्या नहीं --- आँखें खोलीं --- और सामने देखते ही बेचारी बहुत बुरी तरह से चौंकी ----
‘हे भगवान!! ऐसा कैसे हो सकता है? ये --- ये तो ---- ’
‘क्या हुआ आशा --? भूल गई मुझे? या विश्वास नहीं हो रहा??’
सामने खड़ा शख्स एक कुटिल कमीनी मुस्कान लिए अब सामने से आशा के स्तनों को पकड़कर मरोड़ता हुआ बोला |
पर उसके बात या क्रिया, किसी पर भी आशा का ध्यान न गया ---
परम आश्चर्य से चौड़ी होती आँखों से उस शख्स को देखते हुए उसके दिमाग में बस एक ही नाम कौंधा ,
‘रणधीर बाबू !!’
हाँ ..!
रणधीर बाबू ही तो था वह शख्स --- जो इतनी देर से पीछे से आशा के जिस्म के हरेक अंग प्रत्यंग से खेले जा रहा था --- |
आशा के साथ इतने देर तक गुपचुप मस्ती के कारण जहाँ एक ओर रणधीर बाबू के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी , साथ ही आँखों में वासना लबरेज़ तो वहीँ दूसरी ओर आशा के नर्म हाथो के स्पर्श से लंड उस हाफ चड्डी के अंदर ही अंदर बुरी तरह से फनफना रहा था ---
आशा बेचारी इतनी शॉकड थी कि वो तो कुछ पलों के लिए ये भूल ही गई थी कि उसकी मुट्ठी के गिरफ्त में रणधीर बाबू का लंड अब भी है और बुरी तरह से अकड़ रहा है ---
रणधीर बाबू बड़े आराम और प्रेम से थोड़ा और करीब आए,
और थोड़ा झुक कर अपने होंठों को आशा के होंठों के और पास ले आए,
और थोड़ा रुक कर, आशा के होंठों पर हल्का सा साँस छोड़ते हुए बड़े धीरे से अपने होंठों को छुआ दिया और फिर कुछ ५-६ सेकंड्स बाद आशा के होंठों पर अपने होंठो को अच्छे से जमा कर किस पर किस करने लगे |
शोकिंग स्टेट से वापस आते ही रणधीर बाबू के होंठों को अपने होंठों पर पा कर दिल धक् से कर के रह गया आशा का ---
प्रत्युत्तर में कुछ करना तो चाहती थी पर करे क्या यही उसकी समझ में न आया --- अतः चुपचाप खड़ी रह के रणधीर बाबू के होंठों के द्वारा अपने होंठों का यौन शोषण सहन करने लगी ---
चंद पलों में ही अनुभवी रणधीर बाबू ने अपने गीले वहशी चुम्बनों से और अपनी करामाती उँगलियों के कमाल से; कोमल वक्ष और कड़क होते निप्पलों को छेड़ और दबा दबा कर आशा को भरपूर उत्तेजना में भर दिया था ---
एक तो सुबह से ही आशा बुरी तरह से पागल थी यौन सपने देख देख कर, फ़िर आया भोला--- जिसके उम्र से मैच नहीं करता उसका कड़क मोटा लम्बा लंड आशा के तन बदन में जबरदस्त कामाग्नि प्रज्जवलित कर दिया था --- और अब जब शावर के नीचे खड़े हो कर उस कामाग्नि को शांत करने का उपाय कर ही रही थी कि अचानक से न जाने कहाँ से और कैसे रणधीर बाबू अंदर आ गए --- जबकि सुबह से तो ये इस घर में थी भी नहीं --- |
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