21-01-2023, 01:27 AM
गुप्ता जी - मैं तुम्हें बर्बाद ही तो करना चाहता हूँ पदमा........।
कहते हुए गुप्ता जी ने अपने एक हाथ को मेरे नितम्बों पर से हटाया और मेरी कमर पर एक जोर की चिकोटी काट दी ।
"आह .........गुप्ता ज ज ........। " मजे और उत्तेजना मे मेरी आँखे बंद हो गई और मेरे होंठों से ये शब्द निलक पड़े , मेरे होंठों के खुलते ही गुप्ता जी ने अपने मोटे काले प्यासे होंठ मेरे रसीले लबों मे घूसा दिए
और मेरी दुनिया अगली कुछ मिनटों के लिए एक दम से थम सी गई । गुप्ता जी ने मेरे होंठों को अपने होंठों मे भरकर उनकी वो चुसाई की कि उसका स्वाद आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है । गुप्ता जी के दौनों हाथ मेरी कमर पर थे और मेरी आँखे अभी-भी बंद थी पर मेरे होंठ गुप्ता जी के होंठों की हर क्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे और उनके होंठों से साथ खुल और बन्द हो रहे थे ।
अगली कुछ मिनटों के लिए तो मुझे मेरी हालत और हालात किसी का भी कुछ ख्याल नहीं रह गया था बस ध्यान था तो इतना कि गुप्ता जी मेरे होंठों को चूसकर वो परम सुख दे रहे है जो उन्हे आज तक नहीं मिला शायद । गुप्ता जी ने मेरी जीभ को भी अपने होंठों मे भरकर कितनी ही देर उसका रस पिया
और अपना ढेर सारा थूक भी मेरे मुहँ के अन्दर भर दिया , मैं भी मस्ती मे चूर होकर उनका सारा थूक पी गई । उसके बाद गुप्ता जी मेरे होंठों के सारे रस को पीते गए और मैं उन्हे बेझिझक अपने लबों का सारा शरबत पिलाती गई । गुप्ता जी के लिए तो ये मानो स्वर्ग की घड़ी चल रही थी उन्होंने जी भरकर मेरे होंठो का मज़ा लिया और फिर जब उन्हे छोड़ा तो उनमे नाम-मात्र का रस बचा था बाकी सारा रस तो गुप्ता जी किसी प्यासे पथिक की तरह पी गए ।
जब गुप्ता जी ने मेरे लबों से अपने लब निकाले उस समय मेरी आँखे बिल्कुल लाल हो चुकी थी और मैं गुप्ता जी की बाहों मे सहमी सी खड़ी थी । मेरे अन्दर वासना की लहरे उफान खा रही थी और मेरी योनि से चुतरस निकलकर मेरी पेंटी को पूरा भीगाने लगा , मेरी चुचियाँ मेरी तेज साँसों के साथ लगातार ऊपर नीचे हो रही थी ।
गुप्ता जी ने मेरी आँखों मे देखा और मैंने शर्म से आँखे नीची कर ली, फिर गुप्ता जी ने मुझे फिर से पकड़कर चूमना शुरू कर दिया और अपने दोनों हाथों के मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगे । उधर रोड पर बस चल रही थी और इधर मेरे बदन पर गुप्ता जी के हाथ ।
मेरा विरोध बिल्कुल समाप्त हो चुका था पर मेरे होंठों से धीरे - धीरे " ना ह ह ......नहीं ...... रुक जाइए ...... गुप्ता जी ...... । " जैसे शब्द निकल रहे थे जिनका वास्तव मे कोई मतलब नहीं था ये बात गुप्ता जी भी जान गए थे । मेरे ब्लाउज के हुक खोलने मे गुप्ता जी को कतई भी देर ना लगी वो इस काम मे पूरे माहिर थे । ब्लाउज के खुलते ही गुप्ता जी मेरी दूध से भरी चुचियों पर टूट पड़े और मेरी ब्रा को नीचे करके मेरी एक चुची को अपने मुहँ मे भरकर चूसने लगे ।
" आह ...... हाय मैं ...... मर गई ........ ओह ....... । " मैं धीमे स्वर मे आहें भरती हुई बड़बड़ाने लगी और साथ ही गुप्ता जी के सर को अपनी चुचियों पर जोर से दबाने लगी । उस समय तो मेरे पैर इतने भारी हो गए थे कि मन कर रहा था कि यही बस मे लेट जाऊँ मगर लेटना तो दूर मैं तो वहाँ जी भरकर आहें भी नहीं भर पाई , डर भी लग रहा था कि कही कोई पीछे ना देख ले । इसी डर और उत्तेजना ने मुझे और भी कामुक कर दिया ... गुप्ता जी मेरी चुचियों को चूसते हुए नीचे की ओर आने लगे और मेरे पेट और फिर नाभी के आस -पास चूमते हुए उन्होंने अपनी पेन्ट मे हाथ डालकर अपने शैतान जैसे लिंग को बाहर निकाल लिया ।
मेरा ध्यान गुप्ता जी के लिंग पर तब तक नहीं गया था मैं तो आँखे बन्द किये खड़े-खड़े गुप्ता जी की हरकतों का मज़ा उठा रही थी , मैं होश मे जब आई जब गुप्ता जी ने मुझे चूमना छोड़कर सीधे खड़े हुए । मैंने अपनी आँखे खोली और जैसे ही मेरी नजर नीचे गुप्ता जी के लिंग पर गई , मैं हक्की-बक्की रह गई । गुप्ता जी का लिंग पूरा तना हुआ था और बोहोत बड़ा आकार ले चुका था , इससे पहले इतना बड़ा खड़ा लिंग मैंने केवल एक बार वरुण का ही देखा था , वो भी बाथरूम के बाहर से । मगर गुप्ता जी का लिंग इतने पास से देखकर मेरी सिट्टी गुल हो गई । गुप्ता जी मेरी ओर ही देख रहे थे और मुझे इस तरह अपने लिंग पर घूरता पाकर गुप्ता जी बोले - " क्या हुआ पदमा ? तुम्हें कैसा लगा मेरा लण्ड ?"
गुप्ता जी के मुहँ से ऐसी गंदी बात सुनकर शायद मुझे अच्छा ना लगता मगर उस समय मैं बोहोत गरम हो चुकी थी और उस वक्त मुझे उनकी हर बात और भी वासना से भर दे रही थी । मुझे कुछ ना बोलता देखकर गुप्ता जी फिर बोले - " बोलो ना पदमा कैसा है मेरा लण्ड ?"
कहते हुए गुप्ता जी ने अपने एक हाथ को मेरे नितम्बों पर से हटाया और मेरी कमर पर एक जोर की चिकोटी काट दी ।
"आह .........गुप्ता ज ज ........। " मजे और उत्तेजना मे मेरी आँखे बंद हो गई और मेरे होंठों से ये शब्द निलक पड़े , मेरे होंठों के खुलते ही गुप्ता जी ने अपने मोटे काले प्यासे होंठ मेरे रसीले लबों मे घूसा दिए
और मेरी दुनिया अगली कुछ मिनटों के लिए एक दम से थम सी गई । गुप्ता जी ने मेरे होंठों को अपने होंठों मे भरकर उनकी वो चुसाई की कि उसका स्वाद आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है । गुप्ता जी के दौनों हाथ मेरी कमर पर थे और मेरी आँखे अभी-भी बंद थी पर मेरे होंठ गुप्ता जी के होंठों की हर क्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे और उनके होंठों से साथ खुल और बन्द हो रहे थे ।
अगली कुछ मिनटों के लिए तो मुझे मेरी हालत और हालात किसी का भी कुछ ख्याल नहीं रह गया था बस ध्यान था तो इतना कि गुप्ता जी मेरे होंठों को चूसकर वो परम सुख दे रहे है जो उन्हे आज तक नहीं मिला शायद । गुप्ता जी ने मेरी जीभ को भी अपने होंठों मे भरकर कितनी ही देर उसका रस पिया
और अपना ढेर सारा थूक भी मेरे मुहँ के अन्दर भर दिया , मैं भी मस्ती मे चूर होकर उनका सारा थूक पी गई । उसके बाद गुप्ता जी मेरे होंठों के सारे रस को पीते गए और मैं उन्हे बेझिझक अपने लबों का सारा शरबत पिलाती गई । गुप्ता जी के लिए तो ये मानो स्वर्ग की घड़ी चल रही थी उन्होंने जी भरकर मेरे होंठो का मज़ा लिया और फिर जब उन्हे छोड़ा तो उनमे नाम-मात्र का रस बचा था बाकी सारा रस तो गुप्ता जी किसी प्यासे पथिक की तरह पी गए ।
जब गुप्ता जी ने मेरे लबों से अपने लब निकाले उस समय मेरी आँखे बिल्कुल लाल हो चुकी थी और मैं गुप्ता जी की बाहों मे सहमी सी खड़ी थी । मेरे अन्दर वासना की लहरे उफान खा रही थी और मेरी योनि से चुतरस निकलकर मेरी पेंटी को पूरा भीगाने लगा , मेरी चुचियाँ मेरी तेज साँसों के साथ लगातार ऊपर नीचे हो रही थी ।
गुप्ता जी ने मेरी आँखों मे देखा और मैंने शर्म से आँखे नीची कर ली, फिर गुप्ता जी ने मुझे फिर से पकड़कर चूमना शुरू कर दिया और अपने दोनों हाथों के मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगे । उधर रोड पर बस चल रही थी और इधर मेरे बदन पर गुप्ता जी के हाथ ।
मेरा विरोध बिल्कुल समाप्त हो चुका था पर मेरे होंठों से धीरे - धीरे " ना ह ह ......नहीं ...... रुक जाइए ...... गुप्ता जी ...... । " जैसे शब्द निकल रहे थे जिनका वास्तव मे कोई मतलब नहीं था ये बात गुप्ता जी भी जान गए थे । मेरे ब्लाउज के हुक खोलने मे गुप्ता जी को कतई भी देर ना लगी वो इस काम मे पूरे माहिर थे । ब्लाउज के खुलते ही गुप्ता जी मेरी दूध से भरी चुचियों पर टूट पड़े और मेरी ब्रा को नीचे करके मेरी एक चुची को अपने मुहँ मे भरकर चूसने लगे ।
" आह ...... हाय मैं ...... मर गई ........ ओह ....... । " मैं धीमे स्वर मे आहें भरती हुई बड़बड़ाने लगी और साथ ही गुप्ता जी के सर को अपनी चुचियों पर जोर से दबाने लगी । उस समय तो मेरे पैर इतने भारी हो गए थे कि मन कर रहा था कि यही बस मे लेट जाऊँ मगर लेटना तो दूर मैं तो वहाँ जी भरकर आहें भी नहीं भर पाई , डर भी लग रहा था कि कही कोई पीछे ना देख ले । इसी डर और उत्तेजना ने मुझे और भी कामुक कर दिया ... गुप्ता जी मेरी चुचियों को चूसते हुए नीचे की ओर आने लगे और मेरे पेट और फिर नाभी के आस -पास चूमते हुए उन्होंने अपनी पेन्ट मे हाथ डालकर अपने शैतान जैसे लिंग को बाहर निकाल लिया ।
मेरा ध्यान गुप्ता जी के लिंग पर तब तक नहीं गया था मैं तो आँखे बन्द किये खड़े-खड़े गुप्ता जी की हरकतों का मज़ा उठा रही थी , मैं होश मे जब आई जब गुप्ता जी ने मुझे चूमना छोड़कर सीधे खड़े हुए । मैंने अपनी आँखे खोली और जैसे ही मेरी नजर नीचे गुप्ता जी के लिंग पर गई , मैं हक्की-बक्की रह गई । गुप्ता जी का लिंग पूरा तना हुआ था और बोहोत बड़ा आकार ले चुका था , इससे पहले इतना बड़ा खड़ा लिंग मैंने केवल एक बार वरुण का ही देखा था , वो भी बाथरूम के बाहर से । मगर गुप्ता जी का लिंग इतने पास से देखकर मेरी सिट्टी गुल हो गई । गुप्ता जी मेरी ओर ही देख रहे थे और मुझे इस तरह अपने लिंग पर घूरता पाकर गुप्ता जी बोले - " क्या हुआ पदमा ? तुम्हें कैसा लगा मेरा लण्ड ?"
गुप्ता जी के मुहँ से ऐसी गंदी बात सुनकर शायद मुझे अच्छा ना लगता मगर उस समय मैं बोहोत गरम हो चुकी थी और उस वक्त मुझे उनकी हर बात और भी वासना से भर दे रही थी । मुझे कुछ ना बोलता देखकर गुप्ता जी फिर बोले - " बोलो ना पदमा कैसा है मेरा लण्ड ?"