21-01-2023, 12:40 AM
और फिर यहाँ से शुरू हुआ गुप्ता जी का वासना भरा मेरे जिस्म से खिलवाड़ करने का दूसरा प्रकरण , जिसके लिए गुप्ता जी मुझे पीछे लेकर आए थे ---
मैं और गुप्ता जी बस मे सबसे पीछे खड़े थे और कुछ इस तरह से खड़े थे कि गुप्ता जी मेरे पीछे थे और मे बस का सहारा लिए हुए उनके आगे खड़ी थी । गुप्ता जी के मन का चोर तो मैं जानती थी और मेरे दिल मे भी उनके आगे खड़े होने से बैंक के वही चल-चित्र घूम रहे थे जो उन्होंने मेरे साथ उस अंधेरी गैलरी मे कीये थे , मुझे से भी डर था कि कही गुप्ता जी यहाँ भी शुरू ना हो जाए और थोड़ी ही देर मैं मेरा डर सच साबित होने लगा ,,,
बस के आगे बढ़ने के साथ -साथ गुप्ता जी मुझसे पीछे से सटने लगे और बस के झटकों का बहाना बना कर बार बार मुझसे टकराने की कोशिश करने लगे
, गुप्ता जी का बार-बार का ऐसा करना मुझे भी असहज बनाने लगा थोड़ी ही देर मैं गुप्ता जी पीछे से मुझसे बिल्कुल मिल गए और मैं उनसे दूरी बनाने की कोशिश करती हुई थोड़ा आगे होने की कोशिश करने लगी , लेकिन इससे मेरी उलझने दूर नहीं हुई क्योंकि अगले ही पल गुप्ता जी फिर बस के धक्कों का बहाना बना पीछे से मुझसे आन मिले ,
अब तो मेरे पास आगे जाने की भी जगह बची थी मे बस और गुप्ता जी के बीच मे फँस कर रह गई । बस से तो कोई खतरा नहीं ना था मगर पीछे से गुप्ता जी का तनाव बना चुका लिंग मुझे मेरे नितम्बों पर चुभ रहा था और गुप्ता जी बस के धक्कों के बहाने से मेरे नितम्बों पर अपने कड़े लिंग से पेंट के अन्दर से ही वार कर रहे थे । मैं अपने हाथों से गुप्ता जी को पीछे धकलते हुए अपने और गुप्ता जी के बीच मे कुछ गैप बनाने की कोशिश कर रही थी
क्योंकि गुप्ता जी का लिंग ना केवल मेरे नितम्बों बल्कि मेरे दिलों - दिमाग पर भी वार कर रहा था । जिस्म मे फिर से वही झुरझुराहट महसूस होने लगी थी एक तो गुप्ता जी के साथ बैंक मे बिताए वो पल और फिर बस के अन्दर गुप्ता जी के जिस्म से वो मजबूत आलिंगन ,, रह रहकर मेरा जिस्म मेरे दिमाग पर हावी होने लगा । गुप्ता जी मेरे इतने करीब आ चुके थे कि पीछे से उनके होंठों और नाक से निकलने वाली गरम साँसे अपनी दस्तक मेरे कानों और गर्दन पर दे रही थी ।
ना जाने मुझे फिर से क्या होने लगा था कि मैं चाहकर भी गुप्ता जी को रोक नहीं पा रही थी । मैंने धीरे से अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तो जाना कि सब लोग आगे देखने मे व्यस्त है किसी का ध्यान पीछे नहीं है , मैंने चैन की साँस ली , मगर उधर गुप्ता जी ना तो खुद शांत हो रहे थे ना मुझे होने दे रहे थे । गुप्ता जी बस के हर एक झटके का पूरा फायदा उठाते हुए मुझे पीछे से दीवाना कर रहे थे । मैं उन्हे कुछ कह पाने की स्थिति मे भी नहीं थी । मगर मेरा बोलना अब अनिवार्य हो गया था , मैं नहीं चाहती थी कि गुप्ता जी की हिम्मत और बढ़े और वो कुछ और आगे ना करने लगे और दूसरी तरफ मेरा खुद पर से काबू भी छूटता जा रहा था और फिर अचानक गुप्ता जी ने मेरी साड़ी के ऊपर से मेरे नितम्बों पे हाथ रख दिए और वहाँ धीरे से सहलाने लगे , बैंक के अन्दर भी गुप्ता जी ने मुझे ऐसा तड़पाया की मेरी योनि से चुतरस बस निकलने ही वाला था और अब यहाँ पर गुप्ता जी के ये असहनीय कामुक वार मुझे फिर से बहकने पर मजबूर कर रहे थे
इसलिए मैंने गुप्ता जी के हाथ अपने नितम्बों से हठाते हुए उन्हे कहा -
मैं ( अपनी कामुकता छिपाते हुए ) -गुप्ता जी ....थोड़ा पीछे रहिए ना ......ऐसे कोई देखेगा तो क्या सोचेगा .......।
गुप्ता जी ( बेझिझक )- अरे ..मैं क्या बताऊ पदमा ... बोहोत ठंड लग रही है बस मे तो सोचा कि क्यों ना तुम्हारे पास ही खड़ा हो जाऊँ । वैसे तुम्हें भी तो ठंड लग रही होगी ना ..... तो क्यों ना हम थोड़ी देर ऐसे ही रहे ।
मैं - ......हह मगर गुप्ता जी लोग देख लेंगे तो ...... ।
गुप्ता जी - कोई नहीं देख सकता पदमा ..। सब हमसे आगे खड़े है और वो लोग सामने देख रहे है तुम फिक्र मत करो ।
मैं - लेकिन गुप्ता जी .... बस के धक्कों से जब आप मेरे ऊपर गिरते हो तो मैं पूरी हिल जाती हूँ ।
गुप्ता जी - ओह अच्छा ..... ये बात है तो इसका मैं एक इलाज जानता हूँ ।
मैं ( सोचते हुए ) - क्या उपाय है गुप्ता जी ।।?
गुप्ता जी - क्यों ना मैं तुम्हारी कमर को पीछे से पकड़ लूँ पदमा फिर तो कोई परेशानी नहीं होगी है ना .......।
गुप्ता जी की ये बात सुनकर तो मैं और भी परेशान हो गई , ये मेरे लिए और भी दुविधाजनक बात हो गई थी , मैंने गुप्ता जी को मना करते हुए कहा -
मैं - नहीं ... गुप्ता जी .... मुझे वहाँ ना छूइएगा ..... प्लीज ।
गुप्ता जी - मगर क्यों पदमा क्या हो जाएगा ?
मैं - नहीं.... गुप्ता जी..... समझने की कोशिश कीजिए ..... कुछ हो जाएगा ..... ।
गुप्ता जी - ये बात है तब तो मैं जरूर छूकर देखूँगा ।
और फिर मेरे बदन मे कंपकपी छूट गई जब गुप्ता जी ने धीरे से अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए और वहाँ पर अनजान बनते हुए सहलाने लगे ।
गुप्ता जी - लो देखो कुछ भी तो नहीं हुआ ।
मैं - आह ..... ... गुप्ता जी .... आप बड़े जिद्दी है ।
गुप्ता जी( पीछे से मुस्कुराते हुए ) - पदमा तुम्हें भी ठंड लग रही है , देखो ना तुम्हारा बदन कैसे भँवरे की तरह थरथरा रहा है ।
अब मैं गुप्ता जी को क्या बताऊँ कि मेरा बदन ठंड की वजह से नहीं बल्कि उनके कामुक कारनामों से होने वाली उत्तेजना के कारण कांप रहा है , अब तो उन्हे वैसे भी मेरे बदन से खेलने का बहाना मिल गया था और वो अपने सर को मेरे कंधे से लगभग बिल्कुल लगा के अपनी गरम साँसे मेरी गर्दन पर चुभाते हुए मेरी हवस की अग्नि को हवा दे रहे थे ,और नीचे उनके हाथ मेरी नाभी और पेट पर घूम रहे थे जिसकी वजह से मेरे पेट थर-थर काँप रहा था और साँसे तेजी से चल रही थी ।
इसी बीच गुप्ता जी के हाथ मेरी नाभी के नीचे लटके मेरे कमरबंध (waistband) पर जा फसे और उसे अपने हाथों मे लेते हुए गुप्ता जी मेरे कानों मे धीरे से बोले -
गुप्ता जी - हम्म ... अब मुझे पता चल गया पदमा ।
मैं - क्या पता चल गया गुप्ता जी ।
गुप्ता जी - यही की तुम्हें ठंड क्यों लग रही है ?और क्यों तुम्हारा बदन काँप रहा है ?
गुप्ता जी की बात सुनकर मैं थोड़ी हैरान रह गई और मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा पता नहीं गुप्ता जी अब अपने मुहँ से कौन सी बात निकलेंगे । मैं गुप्ता जी की ओर पीछे धीरे से सवालिया नज़रों से देखा तो गुप्ता जी बोले - "ये सब इसकी वजह से हो रहा है ना ?"
गुप्ता जी का इशारा नीचे मेरी कमर पर बँधे कमरबन्द की ओर था, मैंने देखा गुप्ता जी उसमे उलझे उसे उससे खेलते हुए बोले - " मैं इसे उतार देता हूँ पदमा , ताकि तुम्हें ठंड ना लगे तुम बाद मे इसे जाते हुए ले लेना । "
ये कहकर गुप्ता जी ने मेरे जवाब का इंतज़ार कीये बिना अपनी ऊँगलियों को मेरे पेट पर घुमाते हुए मेरी कमर के कमरबंद को उतार दिया
और फिर से वहाँ पर अपने हाथ घुमाते हुए मेरे बदन से खेलने लगे मेरे बदन का रोम रोम गुप्ता जी के वार से जलने लगा गुप्ता जी धीरे धीरे मेरे इतने करीब आ गए की मेरे कंधों और कानों पे उन्हे गरम होंठों का स्पर्श मुझे होने लगा यहाँ तक की मेरी चूचियाँ भी बेधड़क होकर ऊपर नीचे होती हुई उत्तेजित अवस्था मे आने लगी । गुप्ता जी ने फिर से अपने अधूरे काम को पूरा करने की मंशा से एक बार फिर मेरे नितम्बों पर हाथ रखा और उन्हे मसलना शुरू किया और इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि उनके होंठ मेरे कंधों से दूर ना हो जाए क्योंकि वो जानते थे कि अगर मैं एक बार उनके हवस के फैलाए जाल से निकल गई तो फिर उन्हे सब कुछ दोबारा से शुरू करना होगा इसलिए गुप्ता जी ने अपने होंठो को मेरे कानों पर लगा कर वहाँ बार-बार चूमा ।
मैं और गुप्ता जी बस मे सबसे पीछे खड़े थे और कुछ इस तरह से खड़े थे कि गुप्ता जी मेरे पीछे थे और मे बस का सहारा लिए हुए उनके आगे खड़ी थी । गुप्ता जी के मन का चोर तो मैं जानती थी और मेरे दिल मे भी उनके आगे खड़े होने से बैंक के वही चल-चित्र घूम रहे थे जो उन्होंने मेरे साथ उस अंधेरी गैलरी मे कीये थे , मुझे से भी डर था कि कही गुप्ता जी यहाँ भी शुरू ना हो जाए और थोड़ी ही देर मैं मेरा डर सच साबित होने लगा ,,,
बस के आगे बढ़ने के साथ -साथ गुप्ता जी मुझसे पीछे से सटने लगे और बस के झटकों का बहाना बना कर बार बार मुझसे टकराने की कोशिश करने लगे
, गुप्ता जी का बार-बार का ऐसा करना मुझे भी असहज बनाने लगा थोड़ी ही देर मैं गुप्ता जी पीछे से मुझसे बिल्कुल मिल गए और मैं उनसे दूरी बनाने की कोशिश करती हुई थोड़ा आगे होने की कोशिश करने लगी , लेकिन इससे मेरी उलझने दूर नहीं हुई क्योंकि अगले ही पल गुप्ता जी फिर बस के धक्कों का बहाना बना पीछे से मुझसे आन मिले ,
अब तो मेरे पास आगे जाने की भी जगह बची थी मे बस और गुप्ता जी के बीच मे फँस कर रह गई । बस से तो कोई खतरा नहीं ना था मगर पीछे से गुप्ता जी का तनाव बना चुका लिंग मुझे मेरे नितम्बों पर चुभ रहा था और गुप्ता जी बस के धक्कों के बहाने से मेरे नितम्बों पर अपने कड़े लिंग से पेंट के अन्दर से ही वार कर रहे थे । मैं अपने हाथों से गुप्ता जी को पीछे धकलते हुए अपने और गुप्ता जी के बीच मे कुछ गैप बनाने की कोशिश कर रही थी
क्योंकि गुप्ता जी का लिंग ना केवल मेरे नितम्बों बल्कि मेरे दिलों - दिमाग पर भी वार कर रहा था । जिस्म मे फिर से वही झुरझुराहट महसूस होने लगी थी एक तो गुप्ता जी के साथ बैंक मे बिताए वो पल और फिर बस के अन्दर गुप्ता जी के जिस्म से वो मजबूत आलिंगन ,, रह रहकर मेरा जिस्म मेरे दिमाग पर हावी होने लगा । गुप्ता जी मेरे इतने करीब आ चुके थे कि पीछे से उनके होंठों और नाक से निकलने वाली गरम साँसे अपनी दस्तक मेरे कानों और गर्दन पर दे रही थी ।
ना जाने मुझे फिर से क्या होने लगा था कि मैं चाहकर भी गुप्ता जी को रोक नहीं पा रही थी । मैंने धीरे से अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तो जाना कि सब लोग आगे देखने मे व्यस्त है किसी का ध्यान पीछे नहीं है , मैंने चैन की साँस ली , मगर उधर गुप्ता जी ना तो खुद शांत हो रहे थे ना मुझे होने दे रहे थे । गुप्ता जी बस के हर एक झटके का पूरा फायदा उठाते हुए मुझे पीछे से दीवाना कर रहे थे । मैं उन्हे कुछ कह पाने की स्थिति मे भी नहीं थी । मगर मेरा बोलना अब अनिवार्य हो गया था , मैं नहीं चाहती थी कि गुप्ता जी की हिम्मत और बढ़े और वो कुछ और आगे ना करने लगे और दूसरी तरफ मेरा खुद पर से काबू भी छूटता जा रहा था और फिर अचानक गुप्ता जी ने मेरी साड़ी के ऊपर से मेरे नितम्बों पे हाथ रख दिए और वहाँ धीरे से सहलाने लगे , बैंक के अन्दर भी गुप्ता जी ने मुझे ऐसा तड़पाया की मेरी योनि से चुतरस बस निकलने ही वाला था और अब यहाँ पर गुप्ता जी के ये असहनीय कामुक वार मुझे फिर से बहकने पर मजबूर कर रहे थे
इसलिए मैंने गुप्ता जी के हाथ अपने नितम्बों से हठाते हुए उन्हे कहा -
मैं ( अपनी कामुकता छिपाते हुए ) -गुप्ता जी ....थोड़ा पीछे रहिए ना ......ऐसे कोई देखेगा तो क्या सोचेगा .......।
गुप्ता जी ( बेझिझक )- अरे ..मैं क्या बताऊ पदमा ... बोहोत ठंड लग रही है बस मे तो सोचा कि क्यों ना तुम्हारे पास ही खड़ा हो जाऊँ । वैसे तुम्हें भी तो ठंड लग रही होगी ना ..... तो क्यों ना हम थोड़ी देर ऐसे ही रहे ।
मैं - ......हह मगर गुप्ता जी लोग देख लेंगे तो ...... ।
गुप्ता जी - कोई नहीं देख सकता पदमा ..। सब हमसे आगे खड़े है और वो लोग सामने देख रहे है तुम फिक्र मत करो ।
मैं - लेकिन गुप्ता जी .... बस के धक्कों से जब आप मेरे ऊपर गिरते हो तो मैं पूरी हिल जाती हूँ ।
गुप्ता जी - ओह अच्छा ..... ये बात है तो इसका मैं एक इलाज जानता हूँ ।
मैं ( सोचते हुए ) - क्या उपाय है गुप्ता जी ।।?
गुप्ता जी - क्यों ना मैं तुम्हारी कमर को पीछे से पकड़ लूँ पदमा फिर तो कोई परेशानी नहीं होगी है ना .......।
गुप्ता जी की ये बात सुनकर तो मैं और भी परेशान हो गई , ये मेरे लिए और भी दुविधाजनक बात हो गई थी , मैंने गुप्ता जी को मना करते हुए कहा -
मैं - नहीं ... गुप्ता जी .... मुझे वहाँ ना छूइएगा ..... प्लीज ।
गुप्ता जी - मगर क्यों पदमा क्या हो जाएगा ?
मैं - नहीं.... गुप्ता जी..... समझने की कोशिश कीजिए ..... कुछ हो जाएगा ..... ।
गुप्ता जी - ये बात है तब तो मैं जरूर छूकर देखूँगा ।
और फिर मेरे बदन मे कंपकपी छूट गई जब गुप्ता जी ने धीरे से अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए और वहाँ पर अनजान बनते हुए सहलाने लगे ।
गुप्ता जी - लो देखो कुछ भी तो नहीं हुआ ।
मैं - आह ..... ... गुप्ता जी .... आप बड़े जिद्दी है ।
गुप्ता जी( पीछे से मुस्कुराते हुए ) - पदमा तुम्हें भी ठंड लग रही है , देखो ना तुम्हारा बदन कैसे भँवरे की तरह थरथरा रहा है ।
अब मैं गुप्ता जी को क्या बताऊँ कि मेरा बदन ठंड की वजह से नहीं बल्कि उनके कामुक कारनामों से होने वाली उत्तेजना के कारण कांप रहा है , अब तो उन्हे वैसे भी मेरे बदन से खेलने का बहाना मिल गया था और वो अपने सर को मेरे कंधे से लगभग बिल्कुल लगा के अपनी गरम साँसे मेरी गर्दन पर चुभाते हुए मेरी हवस की अग्नि को हवा दे रहे थे ,और नीचे उनके हाथ मेरी नाभी और पेट पर घूम रहे थे जिसकी वजह से मेरे पेट थर-थर काँप रहा था और साँसे तेजी से चल रही थी ।
इसी बीच गुप्ता जी के हाथ मेरी नाभी के नीचे लटके मेरे कमरबंध (waistband) पर जा फसे और उसे अपने हाथों मे लेते हुए गुप्ता जी मेरे कानों मे धीरे से बोले -
गुप्ता जी - हम्म ... अब मुझे पता चल गया पदमा ।
मैं - क्या पता चल गया गुप्ता जी ।
गुप्ता जी - यही की तुम्हें ठंड क्यों लग रही है ?और क्यों तुम्हारा बदन काँप रहा है ?
गुप्ता जी की बात सुनकर मैं थोड़ी हैरान रह गई और मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा पता नहीं गुप्ता जी अब अपने मुहँ से कौन सी बात निकलेंगे । मैं गुप्ता जी की ओर पीछे धीरे से सवालिया नज़रों से देखा तो गुप्ता जी बोले - "ये सब इसकी वजह से हो रहा है ना ?"
गुप्ता जी का इशारा नीचे मेरी कमर पर बँधे कमरबन्द की ओर था, मैंने देखा गुप्ता जी उसमे उलझे उसे उससे खेलते हुए बोले - " मैं इसे उतार देता हूँ पदमा , ताकि तुम्हें ठंड ना लगे तुम बाद मे इसे जाते हुए ले लेना । "
ये कहकर गुप्ता जी ने मेरे जवाब का इंतज़ार कीये बिना अपनी ऊँगलियों को मेरे पेट पर घुमाते हुए मेरी कमर के कमरबंद को उतार दिया
और फिर से वहाँ पर अपने हाथ घुमाते हुए मेरे बदन से खेलने लगे मेरे बदन का रोम रोम गुप्ता जी के वार से जलने लगा गुप्ता जी धीरे धीरे मेरे इतने करीब आ गए की मेरे कंधों और कानों पे उन्हे गरम होंठों का स्पर्श मुझे होने लगा यहाँ तक की मेरी चूचियाँ भी बेधड़क होकर ऊपर नीचे होती हुई उत्तेजित अवस्था मे आने लगी । गुप्ता जी ने फिर से अपने अधूरे काम को पूरा करने की मंशा से एक बार फिर मेरे नितम्बों पर हाथ रखा और उन्हे मसलना शुरू किया और इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि उनके होंठ मेरे कंधों से दूर ना हो जाए क्योंकि वो जानते थे कि अगर मैं एक बार उनके हवस के फैलाए जाल से निकल गई तो फिर उन्हे सब कुछ दोबारा से शुरू करना होगा इसलिए गुप्ता जी ने अपने होंठो को मेरे कानों पर लगा कर वहाँ बार-बार चूमा ।