20-01-2023, 11:33 PM
बैंक से बाहर आकर मैंने चैन की साँस ली और फिर अपनी घड़ी मे टाइम देखा तो पाया 5:30 हो रहे थे अब इस समय तक तो अँधेरा भी होने लगा था । मैंने अपने चारों ओर देखा तो पाया की अब लोगों की भीड़ भी बोहोत कम होने लगी थी और थोड़ी-2 हवा भी चलने लगी थी । घर जाकर मुझे रात के लिए डिनर भी तैयार करना था इसलिए मैं जल्द से जल्द एक टैक्सी लेकर अपने घर जाना चाहती थी , इसलिए मैं तुरंत मैन रोड़ की साइड जाकर खड़ी हो गई और टैक्सी का इंतज़ार करने लगी ।
थोड़ी देर बाद एक टैक्सी आकर रुकी , और उसके अन्दर बैठे ड्राइवर ने मेरी ओर देखकर पहले तो वही काम किया जो बाकी के मर्द करते है , उसने मेरे स्तन और मेरी साड़ी मे से नुमाया होती हुई नाभी पर अपनी नज़रों की लहर दौड़ाई
और फिर अन्दर से ही मेरी ओर देखते हुए उस ड्राइवर ने पूछा "कहाँ जाना है मैडम ! " उसकी पहली हरकत देखकर मेरा मन तो नहीं हुआ कि मैं उसकी टैक्सी मे बैठू पर मुझे घर जाने मे देर हो रही थी ओर कोई ओर टैक्सी भी इस समय मिलनी मुश्किल थी इसलिए मैंने अपने मोहल्ले का नाम बताया तो उसने कहा "वो तो बोहोत दूर है , 200 रुपये लूँगा । "
मैं - क्या 200 रुपये ???? 50 रुपये तो मुझे वहाँ से यहाँ आने मे लगे है बस , और तुम्हें 200 रुपये चाहिए ।
ड्राइवर - हाँ तो मैडम इतनी देर मे आपको वहाँ तक लेकर जाऊँगा और फिर वहाँ कोई सवारी भी नहीं मिलेगी इतनी रात मे, तो मेरा तो नुकसान हो जाएगा ना ।
मैं - फिर भी 200 तो बोहोत ज्यादा है 100 रुपये दे सकती हूँ ।
ड्राइवर ( एक बार मुझे ऊपर से नीचे तक घूरके देखते हुए )- 150 रुपये बस । इससे कम नहीं हो सकता ।
मैं कुछ उलझन सी मे थी कि क्या कहूँ इतने मे ही , " नहीं चाहिए ..........। चल निकल ..........। " - किसी ने मेरे पीछे से जोर से कहा । मैंने हैरानी से तुरंत पीछे मुड़कर देखा
तो पाया कि वो गुप्ता जी थे , गुप्ता जी को यहाँ देखकर मुझे हैरानी और परेशानी दोनों हुई । गुप्ता जी की मेरे साथ बैंक के अन्दर की हुई हरकते अभी भी मेरे मन से निकली नहीं थी और ना ही मैं उनके वो शब्द भूली थी जो उन्होंने मुझे कहे थे कि " पदमा मुझे तुम्हारे होंठों का शरबत पीना है ।"
मुझे अपनी ओर घूमती देखकर , गुप्ता जी ने एक बार मेरी मुस्कुरा-कर देखा और फिर मेरी ओर आगे बढ़कर उस टैक्सी ड्राइवर से बात करने लगे ।
गुप्ता जी - क्यूँ बे ........ 150 रुपये चाहिए तुझे राज नगर तक के ????
ड्राइवर - अरे साहब ...... मैं तो ये बोल रहा था के बोहोत देर हो गई है तो इस टाइम कोई और सवारी भी नहीं मिलेगी ।
मैंने एक बात नोटिस की , जब मैं उस टैक्सी वाले से बात कर रही थी तो उसके बात का लहजा बड़ा ही असभ्य था मगर अब गुप्ता जी से बात करते हुए उसके तरीके मे एक अजीब सा बदलाव आ गया ।
गुप्ता जी - अबे तो क्या सारी सवारी की जिम्मेदारी हमारी है ?
गुप्ता जी तो उस ड्राइवर से ऊलझ ही गए थे मुझे लगा बात कही किसी ओर तरफ ना चली जाए इसलिए मैंने गुप्ता जी को बीच मे ही टोकते हुए कहा -
मैं - अरे गुप्ता जी आप परेशान ना हो , कोई बात नहीं ।
गुप्ता जी - अरे पदमा तुम नहीं जानती इन घटिया लोगों को मुझे अच्छी पता है ये मासूम औरतों को देखकर , उन्हे लूटने की फिराक मे रहते है ।
गुप्ता जी का "मासूम औरत और उन्हे लूटने" का सम्बोधन कुछ इस प्रकार का था कि मानों वो पैसे नहीं कुछ और ही लूटने की बात कर रहे थे । मैंने अपने मन मे सवालिया नज़रों से गुप्ता जी को देखते हुए कहा - " ये ही क्या गुप्ता जी , खुद आप भी तो मुझे लूटना ही चाहते है , इसीलिए तो इतनी हमदर्दी दिखा रहे है और आप जो लूटना चाहते है वो इन रुपयों से कहीं ज्यादा कीमती है । "
ड्राइवर - अरे साहब , अगर पैसों का इतना ही लालच है तो जाइए ना बस मे चले जाइए वहाँ किराया बोहोत सस्ता है । क्यूँ मेरी टैक्सी के पीछे लगे है ?
गुप्ता जी ने पीछे मेरी ओर पलटकर एक बार देखा , मैं कुछ कह ना सकी और मुझे कुछ ना बोलता पाकर गुप्ता जी वापस टैक्सी ड्राइवर की ओर घूमकर बोले - "हाँ-हाँ ... चले जाएंगे ... तू अपना रास्ता नाप । "
इतना सुनते ही टैक्सी ड्राइवर ने अपनी टैक्सी स्टार्ट की और वहाँ से चला गया । गुप्ता जी थोड़े गुस्सेा होते हुए मेरी ओर पलटे और बोले - " कमीना कही का ........ । पैसों की लूट समझते है । तुम घबराओ मत पदमा , बस आती ही होगी । "
मैं - वो तो ठीक है गुप्ता जी , मगर आपको ऐसे उससे उलझने की जरूरत नहीं थी ।
गुप्ता जी - जरूरत थी पदमा ...। तुमसे कोई खराब तरीके से बात करे तो मुझे अच्छा नहीं लगता ।
मैंने बिना कुछ कहे गुप्ता जी की बात पर अपना सर हामी मे हिला दिया और वही खड़ी होकर अपने आप को कोसने लगी , " ये गुप्ता जी भी पता नहीं कहाँ से आ जाते है बार-बार मुझे परेशानी मे डाल देते है हर बार । मुझे भी क्या जरूरत थी इतना मोल करने की ,अच्छी भली जा रही थी अगर पहले ही सीधी चली जाती तो गुप्ता जी के साथ जाने से बच जाती , मगर अब पूरे रास्ते इनके साथ ही जाना पड़ेगा । पर वो भी तो पैसे कुछ ज्यादा ही मांग रहा था अच्छा किया जो गुप्ता जी ने उसे भगा दिया । " एक तरफ मैं गुप्ता जी के साथ जाने की बात सोचकर बैचेन थी दूसरी ओर गुप्ता जी के लिए मन मे एक स्नेह का भाव भी पनप गया क्योंकि आज उन्होंने मेरे लिए उस बदतमीज टैक्सी ड्राइवर से झगड़ा किया ।
थोड़ी ही देर मैं बस भी आ गई । मगर मैं अपने ही ख्यालों मे गुम थी , गुप्ता जी ने ही मुझे आवाज लगाकर मेरी विचारों की दुनिया को भंग किया ।
गुप्ता जी - पदमा पदमा ..... कहाँ खो गई .... चलो बस आ गई ।
मैं जैसे ही वास्तविकता से वाकिफ़ हुई तो देखा गुप्ता जी पहले से ही बस मे चढ़े हुए थे और मुझे देखते हुए बस के अन्दर आने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाए हुए थे , जिसका मतलब साफ था कि मैं उनका हाथ थामकर बस मे चढ़ जाऊ । गुप्ता जी जानते थे कि मैं स्वयं भी बस मे चढ़ सकती हूँ लेकिन उन्हे तो मेरे मखमली गोरे हाथ को अपने हाथ मे लेकर उसके स्पर्श का आनंद उठाना था । मैंने गुप्ता जी के हाथ का सहारा लेते हुए बस के अन्दर प्रवेश किया और ऊपर चढ़ गई । बस के अन्दर आते ही गुप्ता जी ने मुझे खुद से सटा लिया , परन्तु इसका कारण बस के अगले भाग मे मौजूद भीड़ थी ।
मेरा हाथ गुप्ता जी ने अभी भी नहीं छोड़ा था और वो उसे अपने हाथ मे लेकर ही उसकी कोमलता का पूरा जायजा ले रहे थे । उस भीड़ के माहोल ने हमे एक दूसरे के बोहोत ही करीब होने पर मजबूर कर दिया और मैं और गुप्ता जी बिल्कुल एक दूसरे से चिपक से गए , इतना कि मेरी भारी गद्देदार चूचियाँ गुप्ता जी की कठोर विशाल छाती से चिपक गई और वहाँ पर घर्षण होने लगा । इस रगड़ के कारण मेरी चूचियों मे अपने आप एक अजीब सा तनाव होने लगा था , और मुझे इससे थोड़ी असहजता भी हो रही थी । गुप्ता जी मेरी परेशानी से अच्छे से वाकिफ़ थे इसलिए उन्होंने मुझे कहा - " पदमा !"
मैं - हाँ गुप्ता जी ..... । कहिए क्या हुआ ?
गुप्ता जी - यहाँ पर काफी भीड़ है, इससे तुम्हें काफी परेशानी भी हो रही होगी , चलो पीछे की ओर चलते है वहाँ ज्यादा भीड़ नहीं होगी ।
गुप्ता जी का सुझाव मुझे अच्छा लगा और साथ मे ये भी विचार आया कि गुप्ता जी को मेरी फिक्र है वरना वो अपने सिने को मेरी चूचियों से मिलने वाले मजे को यूँ ही नहीं जाने देते ।