19-01-2023, 04:11 AM
पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
VOLUME II
नयी भाभी की सुहागरात
CHAPTER 02
PART 03
असाधरण परिस्तिथियों में असाधारण कार्य
जब राजमाता मुझसे सेक्स के बारे में पूछ रही थी तो मुझे आशंका थी की अगर राजमाता ने पूछ लिया क्या तुमने कभी सम्भोग किया है तो क्या जवाब दूंगा .
तभी राजमाता ने मुझसे वही सवाल पूछ लिया पुत्र! क्या आपने पहले कभी सेक्स किया है? क्या तुम हस्तमैथुन करते हो? " राजमाता ने पूछा। सवाल सहज था और उन्हें इसका पछतावा हुआ। उनका अपना शरीर रस से भर गया था और उसकी यौन प्रवृत्ति अब पूरे प्रवाह में थी और शरीर ऐसा कहते ही उत्तेजना से भर गया था। उन्हें महसूस हुआ की उन्हें आज रात हस्तमैथुन करने की आवश्यकता होगी। लेकिन उन्हें याद था की गुरु महर्षि ने कहा है कि नई रानी के साथ यौन सम्बंध बनाने से पहले मुझे परहेज करना होगा। कोई और मौका होता तो शायद वह मुझे से अभी और यहीं चुदाई करवा लेती। अन्यथा, उस समय राजमाता कामवासना में पागल हो गयी थी जो की उनके हाव भाव से स्पष्ट था।
मैं जवाब देने के लिए संघर्ष करने लगा तो एक लंबी चुप्पी छा गई। मुझे लगा कि चुप रहने से राजमाता को उनके सवाल का जवाब मिल जाएगा। मैं सोच रहा था कि कोई ने अवसर होता तो या फिर राजमाता जो की मेरी ताई जी भी है उनके अतिरिक्त कोई और महिला होती तो मैं उन्हें बता देता मैं क्या जानता हूँ, या फिर अपन खड़ा हुआ बड़ा लंड ही दिखा देता पर आज ये वह अवसर नहीं था । मैं चुपचाप खड़ा रहा ।
राजमाता ने मुड़कर मेरी ठुड्डी पर हाथ रखा और मुझे अपने सामने कर लिया। उन्होंने मेरी आँखों में गहराई से देखा, उनके स्तन यौनवासना के तनाव से भारी हो रहे थे । उनकी छाती की हलचल मुझे स्पष्ट दिख रही थी। मेरा लंड उनके स्पर्श से जग गया था और कड़ा हो रहा था । राजमाता की सुंदरता जादुई रूप से जीवंत हो गई। "मैंने कैसे राजमाता के शानदार स्तनों, सौंदर्य और कामुकता पर ध्यान नहीं दिया" मैंने सोचा। "क्योंकि मैं उनके बेटे की तरह हूँ और वह मेरी ताई हैं" मेरे दिमाग ने जवाब दिया।
"क्या तुम हस्तमैथुन करते हो? मुझे जवाब दो, यह एक गंभीर सवाल है," राजमाता ने कहा।
मुझे लगा कि मेरा गला सूख गया है। महाराजा की माँ-राजमाता खतरनाक रूप से मेरे करीब थीं, मैं उनके इत्र और यहाँ तक कि उनके शरीर की प्राकृतिक सुगंध को भी सूंघ सकता था। मैं चुपचाप खड़ा रहा।
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"ठीक है, असाधरण परिस्तिथियों में हमे असाधारण कार्य करना होगा। पुत्र तो फिर ध्यान से सुनो आप को पहले रानी को निर्वस्त्र करना है फिर उसे स्तन चूसना, दुलारना, चुंबन, चाटना, चूमना, गले लगाना, छूना और महसूस करना शुरू कर देंगे और फिर जब आपके लिंग में उथ्थान आए जैसा इस समय आ रहा है और आपका लिंग बिलकुल कड़ा हो जाए तो तब आपको उसमें प्रवेश करना होगा और अपने आप को एक संभोग सुख की ओर उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त संख्या में अंदर और बाहर स्लाइड करना होगा, फिर आगे पीछे कर आप फिर रानी को तब तक चोदेंगे जब तक आप वैसी सनसनी महसूस करते हैं जैसी आप हस्तमैथुन करते समय महसूस हैं।" जब संकट आप पर होगा, तो आप तेजी से स्लाइड करेंगे; और फिर जब संभोग में विस्फोट करें और अपने बीज को आगे बढ़ा का उत्सर्जन करेंगे और जब आप उत्सर्जन करेंगे तो आप अपने आप को उसके अंदर गहराई से समाहित रखेंगे। हर उछाल में उसके गर्भ में स्प्रे करें। बीच-बीच के बीच वापस खींचो, ताकि पुत्र आप बीज का अधिक से अधिक में बाहर लाओ और उसे गर्भ में डालना होगा। "वह बीज का उछाल! ही है जो हमें रानी के अंदर चाहिए.!" समझे पुत्र? " राजमाता से पूछा, लार के रूप में मैं अनजाने में अपने होंठ चाट रहा था। यह मेरी ओर से एक प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही थी, लेकिन इसके साथ-साथ राजमाता का यौन संदेश और उनकी उत्तेजना मुझे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी।
उन्होंने स्पष्ट बताया की पुत्र आपको स्तन चूसने, दुलारने, चुंबन और चुदाई सहित सब कुछ करना है ताकि रानी इस सम्भोग का पूरा आनंद उठाये और एक स्वस्थ बच्चा पैदा करे। उन्होंने दोहराया आप इस दौरान रानीयो को एक भाभी नहीं समझोगे बल्कि अपनी प्रेमिका या पत्नी समँझ कर गर्भवती करने के इरादे से सम्भोग करोगे और तब तक साथ रहोगे और सम्भोग करोगे जब तक उसके गर्भवती होने ही पुष्टि नहीं हो जाती। पुत्र आपको याद रखना है हम एक स्वस्थ वारिस चाहते हैं! मेरी आँखों में देखते हुए, महारानी ने मुझे निर्देश दिया।
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मैंने उस पर अविश्वास किया। मुझे हर शब्द समझ में आया, मैं हतप्रभ था की कैसे राजमाता मुझ से ये सब कह गयी लेकिन, राजमाता ने इसे सेक्स के प्रति मेरी अज्ञानता और अनुभवहीनता समझा।
ठीक है, मैं आपको दिखाऊंगी कि यह कैसे करना है। कोई गलती नहीं होनी चाहिए। पुत्र हम नहीं चाहते इसमें कोई गलती हो।
तभी गुप्त द्वार खुला और उसमे से भाई महाराज ने मेरे पिताजी के साथ राजमाता के कक्ष में प्रवेश किया मुझे लगा अब राजमाता के सवालों से मुझे कुछ राहत मिलेगी । अब अपनी माँ से भी बड़ी राजसी महिला के साथ सेक्स पर चर्चा करना कितना कठिन है इसका अंदाजा मुझे हुआ ।
भाई महाराज बोले चाचा जी और कुमार दादागुरु ने तुम्हे हमारा पारिवारिक भेद पूरा नहीं बताया था वह मैं तुम्हे अब बता रहा हूँ।
भाई महाराज बोले की लगभग 150. वर्षो पहले आपके परदादा के पिता (दादा के दादा) जी हमारे राजघराने के राजा के छोटे भाई थे और किसी कारण पर अनबन होने पर घर छोड़ कर कुछ धन ले कर विदेश चले गए थे और वहाँ पर उन्हों ने व्यापार कर लिया और फिर पंजाब में जाकर जमींदारी भी कर ली थी ।
आपके पूर्वज के अलग होने की इस घटना के बाद से हमारे परिवार में सभी राजाओ के यहाँ कई रानियों होने के बाद भी केवल एक ही संतान का जन्म हुआ और आप के पूर्वजो के यहाँ भी क्रम अनुसार केवल एक ही पुत्र उतपन्न हुआ हालांकि आपके परिवार में अन्य सन्तानो के रूप में लड़किया पैदा होती रही l
मैंने कहा ये बात तो मुझे जूही ने भी बताई थी भाई महाराज ।
असल में अनबन की वजह एक शाप था जो हमारे परिवार को दिया गया था । दरसल मेरे परदादा के पिता (दादा के दादा) हरविजेंदर जी जो आपके परदादा के पिता (दादा के दादा) हरसतेंदर जी के बड़े भाई थे और युवराज थे । वह दोनों एक बहुत ही सुंदर तपस्वी कन्या प्रभा देवी से प्रेम करते थे जबकि वह तपस्वी कन्या प्रभा देवी हमारे पूर्वज हरसतेंदर जी से प्रेम करती थी और इसी कारण से जब युवराज हरविजेंदर जी ने उस कन्या को अपना प्रेम प्रस्ताव भिजवाया तो उसे उन्होंने ठुकरा दिया । आपके पूर्वज हरसतेंदर जी को ये पूरा घटना क्रम मालूम नहीं था । युवराज हरविजेंदर जी ने इसे अपना अपमान मान कर बदला लेने की ठानी और गुप्तचरों से पता लगवा लिया की वह कन्या उनके छोटे भाई हरसतेंदर से प्रेम करती हैं इसीलिए उसने युवराज हरविजेंदर का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया है ।
जैसा की आप को ज्ञात है परिवार के सब पुरुषो के चेहरे और मोहरे आपस में बहुत मिलते हैं तो युवराज हरविजेंदर ने अपने छोटे भाई हरसतेंदर के हमशक्ल होने का लाभ उठाया और उस कन्या प्रभा से अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसे एक निर्जनस्थान पर बुला कर उससे शारीरक सम्बन्ध स्थापित कर लिया । जब वह गर्भवती हो गयी तो उसने हरसतेंदर जी के पास जा कर उनसे आग्रह किया की वह उनसे विवाह कर ले क्योंकि वह अब उनसे किये गए संसर्ग के कारण गर्भवति है।
परन्तु हरसतेंदर जी ने तो उससे सम्बन्ध बनाया नहीं था इसीलिए उन्होंने उससे विवाह करने से मना कर दिया । इसके बाद महाराज की मृत्यु हो गयी और राज्याभिषेक में प्रभा देवी ने दोनों भाइयो को एक साथ देख लिया तो उन्हें मालूम हुआ की ये दुष्कर्म उनके साथ महाराज हरविजेंदर ने किया है तो वह भरे दरबार में न्याय मांगने गयी तो युवराज हरविजेंदर जो अब महाराज बन गए थे उन्होंने उसका अपमान कर उसे वहाँ से निकाल दिया ।
फिर प्रभा देवी हरसतेंदर जी के पास गयी और उनके साथ विवाह करने का आग्रह किया तो हरसतेंदर जी ने अपने बड़े भाई के दुष्कर्म के लिए क्षमा मांगी और अपनी असमर्थता जताई की अब प्रभा जी का उनके भाई से संसर्ग हो गया है इस कारण वह उनकी भाभी हो गयी है और भाभी तो माँ तुल्य होती है और वह माँ के साथ विवाह करने की सोच भी नहीं सकते ।
इस पर नाराज हो कर प्रभा देवी ने श्राप दिया की अब महाराज हरविजयेंद्र को कोई अन्य पुत्र नहीं होगा और आगे चल कर महाराज का वंशज नपुंसक होगा ।
तब हरसतेंद्र जी ने कहा भाभी माँ फिर तो आपका पुत्र भी श्राप ग्रसित हो गया है वह भी नपुंसक रहेगा । मैं ये राज्य त्याग दूंगा और आपका पुत्र ही अब आगे राजा होगा और हरसतेंदर जी ने उनसे क्षमा मांगी और श्राप वापिस लेने की प्राथना की तो उन्होंने हरसतेंदर को बोला मैं आप को क्षमा करती हूँ । परन्तु इस बंश का अंश होने के कारण मेरे पुत्र को और आपको भी पहले मेरा विश्वास न करने का दंड मिलेगा । तो फिर जब उन्होंने अनुनय किया तो प्रभा देवी बोली मैं श्राप वापिस तो नहीं ले सकती लेकिन इसे सिमित कर सकती हूँ । अब आपके वंशजो का भी एक ही पुत्र होता रहेगा । तो उन्होंने फिर से अनुनय किया तो प्रेमवश श्राप की अवधि को भी सिमित कर दिया और बोली आपके वंशजो का एक ही पुत्र होता रहेगा और अन्य पुत्रिया होंगी और आगे चल कर महाराज का एक वंशज नपुंसक पैदा होगा और आज आप जिस कारण से मेरे साथ विवाह करने से मना कर रहे है वही सम्बन्ध आपके वंशज को करना होगा और तब हरसतेंद्र आपके वंशजो को परिवार में माँ समान स्त्रियों से सम्बन्ध बनाना होगा, तब ये शाप समाप्त हो जाएगा और फिर कई संताने होंगी । उसके कुछ दिन बाद प्रभा ने एक पुत्र को जन्म देकर प्राण त्याग दिए । महाराज हरविजेंद्र और प्रभा देवी के पुत्र का नाम हरराजेन्द्र था जो की मेरे परदादा थे उन्हें अपना लिया ।
फिर महाराज ने मुझे उस डायरी के उन पन्नो का अनुवाद सुनाया जो मुझे दादा जी की उस डायरी में मिले थे जिन्हे मैं लिपि का ज्ञान न होने के कारण पढ़ नहीं पाया था । उसमे यही राज की बात लिखी हुई थी ।
दादाजी को उनके दादाजी ने बताया था-था कि मेरे पीढ़ी के द्वारा ही इस श्राप को नष्ट होना है इसीलिए वह ये सन्देश मेरे लिए लिख कर गए थे और इसी प्रकार यही सन्देश भाई महाराज के दादाजी भी उनके लिए लिख कर गए थे ।
जारी रहेगी
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार
VOLUME II
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CHAPTER 02
PART 03
असाधरण परिस्तिथियों में असाधारण कार्य
जब राजमाता मुझसे सेक्स के बारे में पूछ रही थी तो मुझे आशंका थी की अगर राजमाता ने पूछ लिया क्या तुमने कभी सम्भोग किया है तो क्या जवाब दूंगा .
तभी राजमाता ने मुझसे वही सवाल पूछ लिया पुत्र! क्या आपने पहले कभी सेक्स किया है? क्या तुम हस्तमैथुन करते हो? " राजमाता ने पूछा। सवाल सहज था और उन्हें इसका पछतावा हुआ। उनका अपना शरीर रस से भर गया था और उसकी यौन प्रवृत्ति अब पूरे प्रवाह में थी और शरीर ऐसा कहते ही उत्तेजना से भर गया था। उन्हें महसूस हुआ की उन्हें आज रात हस्तमैथुन करने की आवश्यकता होगी। लेकिन उन्हें याद था की गुरु महर्षि ने कहा है कि नई रानी के साथ यौन सम्बंध बनाने से पहले मुझे परहेज करना होगा। कोई और मौका होता तो शायद वह मुझे से अभी और यहीं चुदाई करवा लेती। अन्यथा, उस समय राजमाता कामवासना में पागल हो गयी थी जो की उनके हाव भाव से स्पष्ट था।
मैं जवाब देने के लिए संघर्ष करने लगा तो एक लंबी चुप्पी छा गई। मुझे लगा कि चुप रहने से राजमाता को उनके सवाल का जवाब मिल जाएगा। मैं सोच रहा था कि कोई ने अवसर होता तो या फिर राजमाता जो की मेरी ताई जी भी है उनके अतिरिक्त कोई और महिला होती तो मैं उन्हें बता देता मैं क्या जानता हूँ, या फिर अपन खड़ा हुआ बड़ा लंड ही दिखा देता पर आज ये वह अवसर नहीं था । मैं चुपचाप खड़ा रहा ।
राजमाता ने मुड़कर मेरी ठुड्डी पर हाथ रखा और मुझे अपने सामने कर लिया। उन्होंने मेरी आँखों में गहराई से देखा, उनके स्तन यौनवासना के तनाव से भारी हो रहे थे । उनकी छाती की हलचल मुझे स्पष्ट दिख रही थी। मेरा लंड उनके स्पर्श से जग गया था और कड़ा हो रहा था । राजमाता की सुंदरता जादुई रूप से जीवंत हो गई। "मैंने कैसे राजमाता के शानदार स्तनों, सौंदर्य और कामुकता पर ध्यान नहीं दिया" मैंने सोचा। "क्योंकि मैं उनके बेटे की तरह हूँ और वह मेरी ताई हैं" मेरे दिमाग ने जवाब दिया।
"क्या तुम हस्तमैथुन करते हो? मुझे जवाब दो, यह एक गंभीर सवाल है," राजमाता ने कहा।
मुझे लगा कि मेरा गला सूख गया है। महाराजा की माँ-राजमाता खतरनाक रूप से मेरे करीब थीं, मैं उनके इत्र और यहाँ तक कि उनके शरीर की प्राकृतिक सुगंध को भी सूंघ सकता था। मैं चुपचाप खड़ा रहा।
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"ठीक है, असाधरण परिस्तिथियों में हमे असाधारण कार्य करना होगा। पुत्र तो फिर ध्यान से सुनो आप को पहले रानी को निर्वस्त्र करना है फिर उसे स्तन चूसना, दुलारना, चुंबन, चाटना, चूमना, गले लगाना, छूना और महसूस करना शुरू कर देंगे और फिर जब आपके लिंग में उथ्थान आए जैसा इस समय आ रहा है और आपका लिंग बिलकुल कड़ा हो जाए तो तब आपको उसमें प्रवेश करना होगा और अपने आप को एक संभोग सुख की ओर उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त संख्या में अंदर और बाहर स्लाइड करना होगा, फिर आगे पीछे कर आप फिर रानी को तब तक चोदेंगे जब तक आप वैसी सनसनी महसूस करते हैं जैसी आप हस्तमैथुन करते समय महसूस हैं।" जब संकट आप पर होगा, तो आप तेजी से स्लाइड करेंगे; और फिर जब संभोग में विस्फोट करें और अपने बीज को आगे बढ़ा का उत्सर्जन करेंगे और जब आप उत्सर्जन करेंगे तो आप अपने आप को उसके अंदर गहराई से समाहित रखेंगे। हर उछाल में उसके गर्भ में स्प्रे करें। बीच-बीच के बीच वापस खींचो, ताकि पुत्र आप बीज का अधिक से अधिक में बाहर लाओ और उसे गर्भ में डालना होगा। "वह बीज का उछाल! ही है जो हमें रानी के अंदर चाहिए.!" समझे पुत्र? " राजमाता से पूछा, लार के रूप में मैं अनजाने में अपने होंठ चाट रहा था। यह मेरी ओर से एक प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही थी, लेकिन इसके साथ-साथ राजमाता का यौन संदेश और उनकी उत्तेजना मुझे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी।
उन्होंने स्पष्ट बताया की पुत्र आपको स्तन चूसने, दुलारने, चुंबन और चुदाई सहित सब कुछ करना है ताकि रानी इस सम्भोग का पूरा आनंद उठाये और एक स्वस्थ बच्चा पैदा करे। उन्होंने दोहराया आप इस दौरान रानीयो को एक भाभी नहीं समझोगे बल्कि अपनी प्रेमिका या पत्नी समँझ कर गर्भवती करने के इरादे से सम्भोग करोगे और तब तक साथ रहोगे और सम्भोग करोगे जब तक उसके गर्भवती होने ही पुष्टि नहीं हो जाती। पुत्र आपको याद रखना है हम एक स्वस्थ वारिस चाहते हैं! मेरी आँखों में देखते हुए, महारानी ने मुझे निर्देश दिया।
what is my screen resolution
मैंने उस पर अविश्वास किया। मुझे हर शब्द समझ में आया, मैं हतप्रभ था की कैसे राजमाता मुझ से ये सब कह गयी लेकिन, राजमाता ने इसे सेक्स के प्रति मेरी अज्ञानता और अनुभवहीनता समझा।
ठीक है, मैं आपको दिखाऊंगी कि यह कैसे करना है। कोई गलती नहीं होनी चाहिए। पुत्र हम नहीं चाहते इसमें कोई गलती हो।
तभी गुप्त द्वार खुला और उसमे से भाई महाराज ने मेरे पिताजी के साथ राजमाता के कक्ष में प्रवेश किया मुझे लगा अब राजमाता के सवालों से मुझे कुछ राहत मिलेगी । अब अपनी माँ से भी बड़ी राजसी महिला के साथ सेक्स पर चर्चा करना कितना कठिन है इसका अंदाजा मुझे हुआ ।
भाई महाराज बोले चाचा जी और कुमार दादागुरु ने तुम्हे हमारा पारिवारिक भेद पूरा नहीं बताया था वह मैं तुम्हे अब बता रहा हूँ।
भाई महाराज बोले की लगभग 150. वर्षो पहले आपके परदादा के पिता (दादा के दादा) जी हमारे राजघराने के राजा के छोटे भाई थे और किसी कारण पर अनबन होने पर घर छोड़ कर कुछ धन ले कर विदेश चले गए थे और वहाँ पर उन्हों ने व्यापार कर लिया और फिर पंजाब में जाकर जमींदारी भी कर ली थी ।
आपके पूर्वज के अलग होने की इस घटना के बाद से हमारे परिवार में सभी राजाओ के यहाँ कई रानियों होने के बाद भी केवल एक ही संतान का जन्म हुआ और आप के पूर्वजो के यहाँ भी क्रम अनुसार केवल एक ही पुत्र उतपन्न हुआ हालांकि आपके परिवार में अन्य सन्तानो के रूप में लड़किया पैदा होती रही l
मैंने कहा ये बात तो मुझे जूही ने भी बताई थी भाई महाराज ।
असल में अनबन की वजह एक शाप था जो हमारे परिवार को दिया गया था । दरसल मेरे परदादा के पिता (दादा के दादा) हरविजेंदर जी जो आपके परदादा के पिता (दादा के दादा) हरसतेंदर जी के बड़े भाई थे और युवराज थे । वह दोनों एक बहुत ही सुंदर तपस्वी कन्या प्रभा देवी से प्रेम करते थे जबकि वह तपस्वी कन्या प्रभा देवी हमारे पूर्वज हरसतेंदर जी से प्रेम करती थी और इसी कारण से जब युवराज हरविजेंदर जी ने उस कन्या को अपना प्रेम प्रस्ताव भिजवाया तो उसे उन्होंने ठुकरा दिया । आपके पूर्वज हरसतेंदर जी को ये पूरा घटना क्रम मालूम नहीं था । युवराज हरविजेंदर जी ने इसे अपना अपमान मान कर बदला लेने की ठानी और गुप्तचरों से पता लगवा लिया की वह कन्या उनके छोटे भाई हरसतेंदर से प्रेम करती हैं इसीलिए उसने युवराज हरविजेंदर का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया है ।
जैसा की आप को ज्ञात है परिवार के सब पुरुषो के चेहरे और मोहरे आपस में बहुत मिलते हैं तो युवराज हरविजेंदर ने अपने छोटे भाई हरसतेंदर के हमशक्ल होने का लाभ उठाया और उस कन्या प्रभा से अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसे एक निर्जनस्थान पर बुला कर उससे शारीरक सम्बन्ध स्थापित कर लिया । जब वह गर्भवती हो गयी तो उसने हरसतेंदर जी के पास जा कर उनसे आग्रह किया की वह उनसे विवाह कर ले क्योंकि वह अब उनसे किये गए संसर्ग के कारण गर्भवति है।
परन्तु हरसतेंदर जी ने तो उससे सम्बन्ध बनाया नहीं था इसीलिए उन्होंने उससे विवाह करने से मना कर दिया । इसके बाद महाराज की मृत्यु हो गयी और राज्याभिषेक में प्रभा देवी ने दोनों भाइयो को एक साथ देख लिया तो उन्हें मालूम हुआ की ये दुष्कर्म उनके साथ महाराज हरविजेंदर ने किया है तो वह भरे दरबार में न्याय मांगने गयी तो युवराज हरविजेंदर जो अब महाराज बन गए थे उन्होंने उसका अपमान कर उसे वहाँ से निकाल दिया ।
फिर प्रभा देवी हरसतेंदर जी के पास गयी और उनके साथ विवाह करने का आग्रह किया तो हरसतेंदर जी ने अपने बड़े भाई के दुष्कर्म के लिए क्षमा मांगी और अपनी असमर्थता जताई की अब प्रभा जी का उनके भाई से संसर्ग हो गया है इस कारण वह उनकी भाभी हो गयी है और भाभी तो माँ तुल्य होती है और वह माँ के साथ विवाह करने की सोच भी नहीं सकते ।
इस पर नाराज हो कर प्रभा देवी ने श्राप दिया की अब महाराज हरविजयेंद्र को कोई अन्य पुत्र नहीं होगा और आगे चल कर महाराज का वंशज नपुंसक होगा ।
तब हरसतेंद्र जी ने कहा भाभी माँ फिर तो आपका पुत्र भी श्राप ग्रसित हो गया है वह भी नपुंसक रहेगा । मैं ये राज्य त्याग दूंगा और आपका पुत्र ही अब आगे राजा होगा और हरसतेंदर जी ने उनसे क्षमा मांगी और श्राप वापिस लेने की प्राथना की तो उन्होंने हरसतेंदर को बोला मैं आप को क्षमा करती हूँ । परन्तु इस बंश का अंश होने के कारण मेरे पुत्र को और आपको भी पहले मेरा विश्वास न करने का दंड मिलेगा । तो फिर जब उन्होंने अनुनय किया तो प्रभा देवी बोली मैं श्राप वापिस तो नहीं ले सकती लेकिन इसे सिमित कर सकती हूँ । अब आपके वंशजो का भी एक ही पुत्र होता रहेगा । तो उन्होंने फिर से अनुनय किया तो प्रेमवश श्राप की अवधि को भी सिमित कर दिया और बोली आपके वंशजो का एक ही पुत्र होता रहेगा और अन्य पुत्रिया होंगी और आगे चल कर महाराज का एक वंशज नपुंसक पैदा होगा और आज आप जिस कारण से मेरे साथ विवाह करने से मना कर रहे है वही सम्बन्ध आपके वंशज को करना होगा और तब हरसतेंद्र आपके वंशजो को परिवार में माँ समान स्त्रियों से सम्बन्ध बनाना होगा, तब ये शाप समाप्त हो जाएगा और फिर कई संताने होंगी । उसके कुछ दिन बाद प्रभा ने एक पुत्र को जन्म देकर प्राण त्याग दिए । महाराज हरविजेंद्र और प्रभा देवी के पुत्र का नाम हरराजेन्द्र था जो की मेरे परदादा थे उन्हें अपना लिया ।
फिर महाराज ने मुझे उस डायरी के उन पन्नो का अनुवाद सुनाया जो मुझे दादा जी की उस डायरी में मिले थे जिन्हे मैं लिपि का ज्ञान न होने के कारण पढ़ नहीं पाया था । उसमे यही राज की बात लिखी हुई थी ।
दादाजी को उनके दादाजी ने बताया था-था कि मेरे पीढ़ी के द्वारा ही इस श्राप को नष्ट होना है इसीलिए वह ये सन्देश मेरे लिए लिख कर गए थे और इसी प्रकार यही सन्देश भाई महाराज के दादाजी भी उनके लिए लिख कर गए थे ।
जारी रहेगी
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार