18-01-2023, 08:22 AM
पूरे घर में कोई नहीं। और न ही किसी को पता कि उर्वशी आंटी यहां है।
शायद वे भी ये बात जानती हैं।
मैंने बहाने से कहा- बाहर का दरवाजा बंद कर दूं आंटी, कभी कुत्ता ना घुस आए।
उन्होंने बस सिर हिलाया।
मैं झट से बाहर धूप में निकल आया और तपते आंगन पर नंगे पैर ही दौड़ गया दरवाजा बंद करने। वापस आते आते तो मेरे औजार ने सारी बंदिशें मानने से साफ इन्कार कर दिया और बरमूडा
में से खूंटी की तरह बाहर निकल आया।
अंदर आया तो आंटी ने सोते मिंकू को गोद में ले लिया था और मेरे सामने ही फर्श पर एक करवट लेट कर शर्ट ऊपर कर उसके मुंह में दूध लगा दिया। मेरे सामने उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया था। मेरी तो कनपटियां गर्म हो गईं। उनके काले निप्पल मुझे उत्तेजित कर रहे थे और मैं लगातार उन्हें घूर रहा था; उनका मुलायम सपाट पेट और गोल गहरी नाभि मेरे सामने थी।
मैं कुछ नहीं बोल पा रहा था क्योंकि जानता था कि आवाज कांपती हुई निकलेगी। मेरा बरमूडा मेरा सारा राज खोल रहा था।
आंटी ने आंखें बंद करते हुए कहा- नए मकान में मन बिल्कुल नहीं लगता। तेरी मम्मा होती तो मिल लेती उनसे।
“पर मैं तो हूं आंटी!” उन्होंने आंखें खोल लीं और कनखियों से मेरे बरमूडा की ओर देखा।
“तू आज कुछ अलग लग रहा है। हुआ क्या है तुझे? बाथरूम में जो किया उससे मन नहीं भरा क्या?”
मैं चाहता था कि बस किसी भी तरह आंटी आज मान जाएं और मुझे जन्नत का मजा मिल जाए। मुझे लगा कि जरा सा आगे बढूं तो शायद वे मान जाएं। और अगर ना मानी तो? मम्मा को शिकायत लगा दी तो? मेरे मन ने कहा।
पर खुद पर बस कहां था; यह तो ऐसा कुंआ था जिसमें गिरना मेरी मजबूरी थी।
मैंने बेशर्मों की तरह लौड़े पर हाथ चलाया, पहले एक बार, फिर बरमूडा के ऊपर से ही कस कर पकड़ लिया। आंटी ने नजरें घुमा लीं। उन्होंने मिंकू को अलग किया और उसे पास ही सुला दिया। फिर बिना किसी जल्दी के सूट नीचे किया। मैं तब तक देखता रहा जब तक कि उनकी चूची वापस ब्रा में कैद नहीं हो गई।
मुझे लगा कि वे मुझे ललचा रही हैं।
मैंने चांस लिया कहा- आंटी आप थक गई होंगी। मैं कुछ हैल्प करूं?
उन्होंने फिर एक बार दरवाजे की तरफ देखा और पूछा- कैसे करोगे, बताओ?
मैंने जल्दी से कहा- आप कहें तो पांव दबा दूं या…
मैं रुक गया; मैं कहना चाहता था कि या फिर पूरी बॉडी भी दबा सकता हूं, अगर इजाजत हो तो।
उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन सीधी होकर लेट गईं; उनका शर्ट पेट पर से अब भी ऊपर था; मैं उनके पैरों के पास आया और हल्के हाथों से पैर दबाने लगा; उन्होंने आंखें बंद कर लीं पर मेरा मकसद तो दूसरा था, मैं धीरे धीरे ऊपर बढ़ने लगा। घुटनों से जरा ऊपर उनकी मुलायम मगर सुडौल जांघों पर हाथ पड़ा तो मेरा लौड़ा पत्थर जैसे सख्त हो गया।
मन किया कि सलवार की सलवटों में से ही चूत सहला दूं। मैं कुछ और ऊपर हुआ तो उन्होंने एकदम मेरा हाथ पकड़ लिया।
लेकिन न तो मेरा हाथ हटाया और न कुछ बोलीं। बस हाथ पकड़े पकड़े लेटीं रहीं।
मैंने दूसरे हाथ से दूसरी जांघ सहला दी, उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैंने चूत तक सहला दिया। उन्होंने तड़प कर मेरा हाथ झटका और दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गईं।
मेरा तो दिमाग खराब हो चुका था, मैं दोनों पैर उनके दोनों तरफ कर बैठ गया और उनकी पिंडलियां, उनके कूल्हे और कमर दबाने लगा। मेरी भारी गोलियां उनके पैरों पर लग रही थी, जिनके मुलायम स्पर्श से मैं पागल हुआ जा रहा था। मेरा मोटा औजार औकात पर आ गया था। मैंने ऊपर हाथ चलाते हुए जरा सा घस्सा लगाया तो मेरे औजार की चमड़ी पीछे हो गई, मीठी सी गुदगुदी हुई।
उन्होंने फिर एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया था।
अब मैंने ढीठ होकर धीरे धीरे घस्से लगाने शुरू कर दिए। वे उठ कर बैठने लगी तो भी मैंने उन्हें दबाए रखा। उन्होंने मुझे धक्का दिया। उससे मैं हटा तो नहीं पर मेरा औजार मेरे बरमूडा के साइड से उछल कर बाहर आ गया, वे एकटक उसे देखती रही; न मेरी तरफ देखा, न कुछ कहा।
मैंने बुरी तरह कांपती आवाज में कहा- आंटी प्लीज सीधी हो जाओ; मुझसे नहीं रहा जाता।
पर उन्होंने बात नहीं मानी।
मैंने बरमूडा की इलास्टिक नीचे कर अपना मोटा नाग पूरा बाहर कर दिया और उन्हें देखते हुए एक हाथ से मसलने लगा। मैंने उनका एक हाथ पकड़ कर अपने नाग पर रखा और अपने ही हाथ से उनसे मुठ मरवाने लगा।
अब वे उठ कर बैठ गईं और इस तरह हाथ चलाती रहीं कि जैसे उनका खुद का मन न हो, मजबूरी में चला रही थीं; पर मैं तो सांड हुआ जा रहा था; मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है तो मैंने आंटी का हाथ और कस लिया आहह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह… की हल्की आवाज में सिसकारते हुए वीर्य छोड़ दिया।
मैं काफी देर तक मुंह ऊपर आंखें बंद किए झड़ता रहा। जब होश आया तो आंटी के सारे हाथ पर वीर्य लिपटा हुआ था और वे दूसरे हाथ से अपने सूट पर पड़ी बूंदें हटा रही थीं।
शायद वे भी ये बात जानती हैं।
मैंने बहाने से कहा- बाहर का दरवाजा बंद कर दूं आंटी, कभी कुत्ता ना घुस आए।
उन्होंने बस सिर हिलाया।
मैं झट से बाहर धूप में निकल आया और तपते आंगन पर नंगे पैर ही दौड़ गया दरवाजा बंद करने। वापस आते आते तो मेरे औजार ने सारी बंदिशें मानने से साफ इन्कार कर दिया और बरमूडा
में से खूंटी की तरह बाहर निकल आया।
अंदर आया तो आंटी ने सोते मिंकू को गोद में ले लिया था और मेरे सामने ही फर्श पर एक करवट लेट कर शर्ट ऊपर कर उसके मुंह में दूध लगा दिया। मेरे सामने उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया था। मेरी तो कनपटियां गर्म हो गईं। उनके काले निप्पल मुझे उत्तेजित कर रहे थे और मैं लगातार उन्हें घूर रहा था; उनका मुलायम सपाट पेट और गोल गहरी नाभि मेरे सामने थी।
मैं कुछ नहीं बोल पा रहा था क्योंकि जानता था कि आवाज कांपती हुई निकलेगी। मेरा बरमूडा मेरा सारा राज खोल रहा था।
आंटी ने आंखें बंद करते हुए कहा- नए मकान में मन बिल्कुल नहीं लगता। तेरी मम्मा होती तो मिल लेती उनसे।
“पर मैं तो हूं आंटी!” उन्होंने आंखें खोल लीं और कनखियों से मेरे बरमूडा की ओर देखा।
“तू आज कुछ अलग लग रहा है। हुआ क्या है तुझे? बाथरूम में जो किया उससे मन नहीं भरा क्या?”
मैं चाहता था कि बस किसी भी तरह आंटी आज मान जाएं और मुझे जन्नत का मजा मिल जाए। मुझे लगा कि जरा सा आगे बढूं तो शायद वे मान जाएं। और अगर ना मानी तो? मम्मा को शिकायत लगा दी तो? मेरे मन ने कहा।
पर खुद पर बस कहां था; यह तो ऐसा कुंआ था जिसमें गिरना मेरी मजबूरी थी।
मैंने बेशर्मों की तरह लौड़े पर हाथ चलाया, पहले एक बार, फिर बरमूडा के ऊपर से ही कस कर पकड़ लिया। आंटी ने नजरें घुमा लीं। उन्होंने मिंकू को अलग किया और उसे पास ही सुला दिया। फिर बिना किसी जल्दी के सूट नीचे किया। मैं तब तक देखता रहा जब तक कि उनकी चूची वापस ब्रा में कैद नहीं हो गई।
मुझे लगा कि वे मुझे ललचा रही हैं।
मैंने चांस लिया कहा- आंटी आप थक गई होंगी। मैं कुछ हैल्प करूं?
उन्होंने फिर एक बार दरवाजे की तरफ देखा और पूछा- कैसे करोगे, बताओ?
मैंने जल्दी से कहा- आप कहें तो पांव दबा दूं या…
मैं रुक गया; मैं कहना चाहता था कि या फिर पूरी बॉडी भी दबा सकता हूं, अगर इजाजत हो तो।
उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन सीधी होकर लेट गईं; उनका शर्ट पेट पर से अब भी ऊपर था; मैं उनके पैरों के पास आया और हल्के हाथों से पैर दबाने लगा; उन्होंने आंखें बंद कर लीं पर मेरा मकसद तो दूसरा था, मैं धीरे धीरे ऊपर बढ़ने लगा। घुटनों से जरा ऊपर उनकी मुलायम मगर सुडौल जांघों पर हाथ पड़ा तो मेरा लौड़ा पत्थर जैसे सख्त हो गया।
मन किया कि सलवार की सलवटों में से ही चूत सहला दूं। मैं कुछ और ऊपर हुआ तो उन्होंने एकदम मेरा हाथ पकड़ लिया।
लेकिन न तो मेरा हाथ हटाया और न कुछ बोलीं। बस हाथ पकड़े पकड़े लेटीं रहीं।
मैंने दूसरे हाथ से दूसरी जांघ सहला दी, उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैंने चूत तक सहला दिया। उन्होंने तड़प कर मेरा हाथ झटका और दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गईं।
मेरा तो दिमाग खराब हो चुका था, मैं दोनों पैर उनके दोनों तरफ कर बैठ गया और उनकी पिंडलियां, उनके कूल्हे और कमर दबाने लगा। मेरी भारी गोलियां उनके पैरों पर लग रही थी, जिनके मुलायम स्पर्श से मैं पागल हुआ जा रहा था। मेरा मोटा औजार औकात पर आ गया था। मैंने ऊपर हाथ चलाते हुए जरा सा घस्सा लगाया तो मेरे औजार की चमड़ी पीछे हो गई, मीठी सी गुदगुदी हुई।
उन्होंने फिर एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया था।
अब मैंने ढीठ होकर धीरे धीरे घस्से लगाने शुरू कर दिए। वे उठ कर बैठने लगी तो भी मैंने उन्हें दबाए रखा। उन्होंने मुझे धक्का दिया। उससे मैं हटा तो नहीं पर मेरा औजार मेरे बरमूडा के साइड से उछल कर बाहर आ गया, वे एकटक उसे देखती रही; न मेरी तरफ देखा, न कुछ कहा।
मैंने बुरी तरह कांपती आवाज में कहा- आंटी प्लीज सीधी हो जाओ; मुझसे नहीं रहा जाता।
पर उन्होंने बात नहीं मानी।
मैंने बरमूडा की इलास्टिक नीचे कर अपना मोटा नाग पूरा बाहर कर दिया और उन्हें देखते हुए एक हाथ से मसलने लगा। मैंने उनका एक हाथ पकड़ कर अपने नाग पर रखा और अपने ही हाथ से उनसे मुठ मरवाने लगा।
अब वे उठ कर बैठ गईं और इस तरह हाथ चलाती रहीं कि जैसे उनका खुद का मन न हो, मजबूरी में चला रही थीं; पर मैं तो सांड हुआ जा रहा था; मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है तो मैंने आंटी का हाथ और कस लिया आहह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह… की हल्की आवाज में सिसकारते हुए वीर्य छोड़ दिया।
मैं काफी देर तक मुंह ऊपर आंखें बंद किए झड़ता रहा। जब होश आया तो आंटी के सारे हाथ पर वीर्य लिपटा हुआ था और वे दूसरे हाथ से अपने सूट पर पड़ी बूंदें हटा रही थीं।