18-01-2023, 08:18 AM
मेरे पड़ोस में एक आंटी रहती थीं, उनका नाम उर्वशी था, सचमुच की उर्वशी थी। खूब भारी बाल, रंग सांवला, गालों पर लाली, गोल सुगढ़ पैर और पतली कमर!
मैं उन पर मरता था और हर वक्त उनसे बातें करने की फिराक में रहता था। वे भी खुल कर बातें करती थी लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। उनकी एक लड़की तीन साल की थी और बेटा अभी नौ महीने का हुआ था।
मैं रोज कुछ न कुछ नई तरकीब करता उन्हें पटाने की लेकिन तभी उन्होंने मकान बदल लिया। दरअसल उनके पति का आफिस यहां से काफी दूर था। यह उनका अपना मकान था, पर उन्होंने दूसरा मकान किराए पर लेकर वहीं रहने का फैसला किया और मेरे अरमानों पर पानी फिर गया।
इस बात को चार-पांच दिन हो गए थे।
पड़ोस में मेरी ज्यादा लोगों से नहीं बनती थी, लड़कियों से तो खास कर कम ही बात करता था इसलिए आंटी के जाने से कुढ़ता रहता और उनके नाम पर दिन में कई कई बार मुठ मारकर खुद को शांत करता।
एक दिन तो पड़ोस की एक और आंटी ने मुझे लगभग रंगे हाथ पकड़ ही लिया था।
हुआ यूं कि दोपहर के समय घर में कोई नहीं था, मैं पिछले कमरे की खिड़की के सामने खड़ा बरमूडा नीचे किए जोर जोर से हिला रहा था। मन में उर्वशी आंटी की नंगी जांघें और गोल मम्मे थे।
मैं ख्यालों में ही आंटी की चिकनी चूत में अपना मोटा औजार डाल कर घस्से पर धस्से लगाए जा रहा था।
मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थीं “आह आंटी… और लो… आज फाड़ कर ही छोडूंगा… आहहहहह… आह आंटी… आहहहहह” और तभी मेरा जोर से छूटने लगा। मेरी आंखें आनन्द में बंद हो गई थीं।
अभी एक पिचकारी लगी ही थी कि किसी ने दरवाजे से आवाज लगाई। वे पड़ोस की आंटी थी और मम्मी को आवाज लगाते हुए अंदर आ रही थीं। मेरे पास बाथरूम में घुसने तक का टाइम नहीं था,
इसलिए परदे के पीछे सरक गया। डर के मारे मैंने बरमूडा ऊपर कर लिया जो मेरे लिसलिसे वीर्य से पूरा खराब हो गया। पर यह देखने का टाइम किसे था।
आंटी कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे में मम्मी को खोजती रहीं और घर में किसी के न होने से परेशान होती रही। एक बार वे मेरे परदे के सामने से निकली तो मैंने सांस रोक ली। किसी तरह राम राम करते वे गई तो मुझे सांस आई, उनके जाते ही सबसे पहले मैंने बरमूडा चेंज किया।
मैं अभी सदमे में ही था और बरमूडा धोने की फिराक में था कि तभी फिर दरवाजे से आवाज आई; यह आवाज तो मैं लाखों में पहचान सकता था, उर्वशी आंटी थीं। उन्होंने गोद में अपने बेटे को उठाया हुआ था और दरवाजा खोल कर अंदर आ रही थीं।
अब मेरे कपड़े ठीक थे, इसलिए बिना डर के खुशी खुशी बाहर निकल आया और उन्हें बैठाया। उन्होंने अपनेपन से पूछा- कैसे हो तुम? पढ़ाई कैसी चल रही है?
मैंने कुछ उदास होकर कहा- आप क्यों चली गईं आंटी। वहां मकान क्या ज्यादा अच्छा है?
उन्होंने सो रहे बेटे को सोफे पर बैठाया और फर्श पर मेरे पास बैठते हुए बोलीं- तू क्यों उदास हो रहा है। वहां भी आ सकता है मेरे पास!
फिर उन्हें मम्मा का ध्यान आया तो मैंने बताया कि वे बाजार गई हैं शबनम आंटी के साथ; शाम तक आ जाएंगी।
आंटी ने बताया कि वहां का घर ज्यादा बड़ा नहीं है और अभी जान पहचान भी नहीं हुई है इसलिए यहां मिलने चली आईं। बेटी कॉलेज गई हुई है। उसके आने से पहले, वापस जाना है।
वे पंखे के नीचे फर्श पर पालथी मार कर बैठ गईं और पल्लू से हवा करने लगीं।
गर्मी थी भी काफी!
पर मेरी नजर तो गलत जगह ही पड़नी थीं। उनके मम्मे लो कट सफेद सूट में से काफी दिख रहे थे। वे बातें करती जातीं और मैं कनखियों से नजारा करता जाता।
तभी वे बोलीं- मुझे वाशरूम जाना है, जरा मिंकू का ख्याल रखना।
वे उठकर बाथरूम की तरफ चली ही थीं कि तभी मुझे बरमूडा ध्यान आया, मेरी तो फट गई, वह तो लिथड़ा पड़ा है; मेरा निकलता भी बहुत ज्यादा है; हे भगवान, वे क्या सोचेंगी।
उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया; मैं उल्लुओं की तरह बैठा देखता रहा। उन्हें बाहर निकलने में काफी समय लगा; या फिर मेरी फटी पड़ी थी कि मुझे उनका थोड़ा समय भी ज्यादा लगा।
पर आखिर वे बाहर आईं, वे आकर फिर मेरे सामने बैठ गईं। पर इस बार कुछ नहीं बोलीं, बस मुझे देखती रहीं।
मैं नजरें चुरा रहा था।
“ऐसे काम क्यों करते हो कि नजरें चुरानी पड़ें?”
मैंने शेर बनने की कोशिश की- मैंने क्या किया आंटी, और मैं क्यों नजरें चुराऊंगा?
मैं ढीट की तरह उनकी तरफ देख रहा था।
वे हंस पड़ीं- ठीक कहते हो। इस उम्र में तो सब यही करते रहते हैं। पर अगर तुम्हारी मम्मा बाथरूम में यह देख लेती तो? कम से कम धो तो देते।
अब मैं सचमुच शरमाया पर ढीट बना रहा।
वे बोलीं- अच्छा कालेज जाते हो, कोई गर्लर्फेंड नहीं बनी क्या?
मैंने मायूस होकर कहा- बात तो हाती है, पर आगे कुछ नहीं बोला जाता।
“और अब तो आप…” मैंने जीभ काट ली। मैं बोलने वाला था कि अब तो आप भी यहां से चली गईं हैं।
“मैं क्या…?”
“वो बस कुछ नहीं…” मैंने घबरा कर बेसिरपैर की बकवास की। पर इन बातों से मेरी तबियत फिर तर होने लगी थी। मैंने टांगें मोड़कर फन उठा रहे नाग को छिपाने की कोशिश की।
“बता ना? मैं क्या… नहीं बताएगा तो मैं अभी चली जाऊंगी।” उन्होंने धमकी दी।
मुझे झटका लगा, एकदम बोल पड़ा- मुझे आपके पास रहना अच्छा लगता है। आप यहीं आ जाओ वापस!
वे मुस्कुरा रही थीं, चुन्नी समेट कर सोफे पर रखी थी, उनके गुदगुदे सांवले दूध मेरी नजरों में घूम रहे थे।
मेरे होंठ सूख गए और मुझे होठों पर जरा सी जीभ फेरनी पड़ीं। मैंने गौर किया कि उनके सांवले गाल कुछ और गुलाबी हो गए थे। उन्होंने यूं ही थूक गटका और दरवाजे की तरफ देखा। अब जाकर मुझे समझ आया कि मेरे पास कितना अच्छा मौका है,
मैं उन पर मरता था और हर वक्त उनसे बातें करने की फिराक में रहता था। वे भी खुल कर बातें करती थी लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। उनकी एक लड़की तीन साल की थी और बेटा अभी नौ महीने का हुआ था।
मैं रोज कुछ न कुछ नई तरकीब करता उन्हें पटाने की लेकिन तभी उन्होंने मकान बदल लिया। दरअसल उनके पति का आफिस यहां से काफी दूर था। यह उनका अपना मकान था, पर उन्होंने दूसरा मकान किराए पर लेकर वहीं रहने का फैसला किया और मेरे अरमानों पर पानी फिर गया।
इस बात को चार-पांच दिन हो गए थे।
पड़ोस में मेरी ज्यादा लोगों से नहीं बनती थी, लड़कियों से तो खास कर कम ही बात करता था इसलिए आंटी के जाने से कुढ़ता रहता और उनके नाम पर दिन में कई कई बार मुठ मारकर खुद को शांत करता।
एक दिन तो पड़ोस की एक और आंटी ने मुझे लगभग रंगे हाथ पकड़ ही लिया था।
हुआ यूं कि दोपहर के समय घर में कोई नहीं था, मैं पिछले कमरे की खिड़की के सामने खड़ा बरमूडा नीचे किए जोर जोर से हिला रहा था। मन में उर्वशी आंटी की नंगी जांघें और गोल मम्मे थे।
मैं ख्यालों में ही आंटी की चिकनी चूत में अपना मोटा औजार डाल कर घस्से पर धस्से लगाए जा रहा था।
मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थीं “आह आंटी… और लो… आज फाड़ कर ही छोडूंगा… आहहहहह… आह आंटी… आहहहहह” और तभी मेरा जोर से छूटने लगा। मेरी आंखें आनन्द में बंद हो गई थीं।
अभी एक पिचकारी लगी ही थी कि किसी ने दरवाजे से आवाज लगाई। वे पड़ोस की आंटी थी और मम्मी को आवाज लगाते हुए अंदर आ रही थीं। मेरे पास बाथरूम में घुसने तक का टाइम नहीं था,
इसलिए परदे के पीछे सरक गया। डर के मारे मैंने बरमूडा ऊपर कर लिया जो मेरे लिसलिसे वीर्य से पूरा खराब हो गया। पर यह देखने का टाइम किसे था।
आंटी कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे में मम्मी को खोजती रहीं और घर में किसी के न होने से परेशान होती रही। एक बार वे मेरे परदे के सामने से निकली तो मैंने सांस रोक ली। किसी तरह राम राम करते वे गई तो मुझे सांस आई, उनके जाते ही सबसे पहले मैंने बरमूडा चेंज किया।
मैं अभी सदमे में ही था और बरमूडा धोने की फिराक में था कि तभी फिर दरवाजे से आवाज आई; यह आवाज तो मैं लाखों में पहचान सकता था, उर्वशी आंटी थीं। उन्होंने गोद में अपने बेटे को उठाया हुआ था और दरवाजा खोल कर अंदर आ रही थीं।
अब मेरे कपड़े ठीक थे, इसलिए बिना डर के खुशी खुशी बाहर निकल आया और उन्हें बैठाया। उन्होंने अपनेपन से पूछा- कैसे हो तुम? पढ़ाई कैसी चल रही है?
मैंने कुछ उदास होकर कहा- आप क्यों चली गईं आंटी। वहां मकान क्या ज्यादा अच्छा है?
उन्होंने सो रहे बेटे को सोफे पर बैठाया और फर्श पर मेरे पास बैठते हुए बोलीं- तू क्यों उदास हो रहा है। वहां भी आ सकता है मेरे पास!
फिर उन्हें मम्मा का ध्यान आया तो मैंने बताया कि वे बाजार गई हैं शबनम आंटी के साथ; शाम तक आ जाएंगी।
आंटी ने बताया कि वहां का घर ज्यादा बड़ा नहीं है और अभी जान पहचान भी नहीं हुई है इसलिए यहां मिलने चली आईं। बेटी कॉलेज गई हुई है। उसके आने से पहले, वापस जाना है।
वे पंखे के नीचे फर्श पर पालथी मार कर बैठ गईं और पल्लू से हवा करने लगीं।
गर्मी थी भी काफी!
पर मेरी नजर तो गलत जगह ही पड़नी थीं। उनके मम्मे लो कट सफेद सूट में से काफी दिख रहे थे। वे बातें करती जातीं और मैं कनखियों से नजारा करता जाता।
तभी वे बोलीं- मुझे वाशरूम जाना है, जरा मिंकू का ख्याल रखना।
वे उठकर बाथरूम की तरफ चली ही थीं कि तभी मुझे बरमूडा ध्यान आया, मेरी तो फट गई, वह तो लिथड़ा पड़ा है; मेरा निकलता भी बहुत ज्यादा है; हे भगवान, वे क्या सोचेंगी।
उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया; मैं उल्लुओं की तरह बैठा देखता रहा। उन्हें बाहर निकलने में काफी समय लगा; या फिर मेरी फटी पड़ी थी कि मुझे उनका थोड़ा समय भी ज्यादा लगा।
पर आखिर वे बाहर आईं, वे आकर फिर मेरे सामने बैठ गईं। पर इस बार कुछ नहीं बोलीं, बस मुझे देखती रहीं।
मैं नजरें चुरा रहा था।
“ऐसे काम क्यों करते हो कि नजरें चुरानी पड़ें?”
मैंने शेर बनने की कोशिश की- मैंने क्या किया आंटी, और मैं क्यों नजरें चुराऊंगा?
मैं ढीट की तरह उनकी तरफ देख रहा था।
वे हंस पड़ीं- ठीक कहते हो। इस उम्र में तो सब यही करते रहते हैं। पर अगर तुम्हारी मम्मा बाथरूम में यह देख लेती तो? कम से कम धो तो देते।
अब मैं सचमुच शरमाया पर ढीट बना रहा।
वे बोलीं- अच्छा कालेज जाते हो, कोई गर्लर्फेंड नहीं बनी क्या?
मैंने मायूस होकर कहा- बात तो हाती है, पर आगे कुछ नहीं बोला जाता।
“और अब तो आप…” मैंने जीभ काट ली। मैं बोलने वाला था कि अब तो आप भी यहां से चली गईं हैं।
“मैं क्या…?”
“वो बस कुछ नहीं…” मैंने घबरा कर बेसिरपैर की बकवास की। पर इन बातों से मेरी तबियत फिर तर होने लगी थी। मैंने टांगें मोड़कर फन उठा रहे नाग को छिपाने की कोशिश की।
“बता ना? मैं क्या… नहीं बताएगा तो मैं अभी चली जाऊंगी।” उन्होंने धमकी दी।
मुझे झटका लगा, एकदम बोल पड़ा- मुझे आपके पास रहना अच्छा लगता है। आप यहीं आ जाओ वापस!
वे मुस्कुरा रही थीं, चुन्नी समेट कर सोफे पर रखी थी, उनके गुदगुदे सांवले दूध मेरी नजरों में घूम रहे थे।
मेरे होंठ सूख गए और मुझे होठों पर जरा सी जीभ फेरनी पड़ीं। मैंने गौर किया कि उनके सांवले गाल कुछ और गुलाबी हो गए थे। उन्होंने यूं ही थूक गटका और दरवाजे की तरफ देखा। अब जाकर मुझे समझ आया कि मेरे पास कितना अच्छा मौका है,