05-01-2023, 05:41 AM
पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
VOLUME II
विवाह
CHAPTER-1
PART 57
विधाता की अलोकिक रचना
लड़का लड़की दोनों के मन में पहले मिलन की अनेक रंगीन एवं मधुर कल्पनाएँ होती हैं जैसे पहली रात अत्यंत आनंदमयी, गुलाबी, रोमांचकारी मिलन की रात होगी। फूलों से सजी सेज पर साज़ शृंगार करके अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी प्रियतमा को प्रियतम अपने बाहुपाश में बाँध कर असीम अलौकिक आनंद का अनुभव कराता है।
पेड़ो की परछाईया लम्बी हो चली थी जो बता रहा था कि सूरज जल्द हे ढलने वाला है पर फिर भी अभी सूरज छिपने में काफी समय था। दीप्ति फूलो का सोलह शृंगार किए फूलों की सेज पर लाज से सिमटी बैठी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। भीनी-भीनी मोगरे, गुलाब और चमेली की सुगंध फैली हुई थी।
उसे फूलो में सजी हुई देख मुहे अनायास कालिदास और दुष्यंत की शकुंतला याद आ गयी। मुझे लगा ये जंगल की सुंदर कन्या जो कालिदास द्वारा वर्णित शकुंतला जैसी ही सुंदर है और इस शकुंतला के निर्दोष स्वरुप का उपभोग करने वाला कोई भाग्य शाली ही होगा। इसका निष्कलंक रूप और सौन्दर्य जो अभी तक किसी के भी द्वारा न सूघा गया फूल हे, जिसके रस को नहीं चखा गया है अक्षत रत्न हे, ताजा शहद है, ऐसा लगता है वह विधाता की अलोकिक रचना है। विधाता ने सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी का चित्र बनाकर उसमे प्राणसञ्चार किया है। दीप्ति विधाता की मानसिक सृष्टि है तभी तो उसका लावण्य इतना देदीप्यमान है। हाथ से बनाने में ऐसी अनुपम सृष्टि नहीं बन सकती।
दीप्ति ने पता नहीं कब अपने थैले से छोटी-सी चुनरी निकाल कर सर पर घूंघट बना कर बैठ गयी थी। सेज पर से शिरीष के फूल लटका कर उन्हें कानो में कर्णफूल की तरह पहन लिया था। सेज की बगल में कुछ फल और फूल मालाएँ रखी हुई थे। दीप्ति की आँखें एक नए रोमांच, कौतुक और भय से बंद होती जा रही थी। पता नहीं अब मैं उसके साथ कैसे और क्या-क्या करूँगा ऐसा विचार आते ही दीप्ति थोड़ा और सिकुड़ गई।
वैसे तो जैसा उसका उन्मुक्त स्वभाव था उसका अब का रोमांच, कौतुक, उत्सुकता, भय और घबराहट वाला आचरण उसके स्वाभाव से बिलकुल उल्ट था। शायद जब भी उसने पहले मिलन के बारे में उसकी किसी सहेली, बहन या फिर भाभी इत्यादि से पुछा होगा की पहले मिलन में क्या होता है? तो जैसे अधिकतर महिलाये या लड़किया जो सम्भोग कर चुकी होती हैं उन्ही में से किसी ने उसे बताया होगा की अगर किसी आदमी से पूछा जाए कि तुम जंगल में अकेली हो और तुम्हारे सामने कोई खूंखार जानवर आ जाये तो तुम क्या करोगी? तो उसे यही जवाब मिला होगा मैं क्या करूँगी, जो करेगा वोह जानवर ही करेगा। लड़किया और औरतो आमतौर पर यही कहती है पहले मिलन या सुहागरात में भी ऐसा ही कुछ होता है। जो भी करना होता है वह पुरुष ही करता है लड़कियों को तो बस अपनी टांगें चौड़ी करनी होती हैं! '
या किसी समझदार सहेली, बहन या फिर भाभी ने ये बता दिया होगा पहला मिलन जीवन में एक बार होता है ज्यादा ना-नुकर ना करना। वह जैसा करे करने देना, थोड़ा बहुत दर्द होगा और खून खराबा भी होगा, घबराना मत कुछ देर में दर्द चला जाएगा और खून बहना रुक जाएगा और फिर आगे मजा मिलेगा।
मैंने उसकी घबराहट देख मन बना लिया कि मैं इस मिलन को मधुर और अविस्मरणीय बंनने की पूरी कोशिश करूँगा। मैं उसके पास बैठ गया और एक ताज़ा गुलाब का फूल उठा कर बोला तुम किसी भी गुलाब कमल या ने फूल से बहुत अधिक सुन्दर और प्यारी हो, मैं तुम पर मोहित हो गया हूँ और तुम्हें प्रेम करने लगा हूँ।
फिर मैंने अपनी अंगूठी निकाली और उसे बोला आपके लिए एक छोटा-सा उपहार है! '
दीप्ति ने धीरे से अपना सर ऊपर किया और उस अंगूठी को देखा और अपना हाथ मेरी और बढ़ा दिया। मैंने हाथ पकड़ा। उसके हाथ को पकड़ते ही हम दोनों की उंगलिया कांपने लगी, उसका हाथ तो मैंने बीच बाज़ार में और तालाब में तैरते हुए कई बार पकड़ा था पर अब जो रोमांच हुआ वह कुछ अलग ही था और मैंने कंपते हाथो से उसकी लरजते हुई ऊँगली में अंगूठी पहना दी।
मैंने हाथ नहीं छोड़ा और एक फूल माला को उठा कर उसके हाथ में धीरे-धीरे गज़रा बाँधने लगा और फिर उसकी दोनों बाजुओं पर गज़रे बाँध दिए।
तभी कहैं से आवाज आयी दीप्ति औ दीप्ति, दी औ दी कहाँ हो तुम माँ बुला रही है और उसके बाद दीप्ति बोली मुझे मेरी छोटी बहन पुकार रही है और बोली आ रही हूँ ... वह उठी अपना थैला उठाया और अपने वस्त्र संभाले और जल्दी से पहने तो मैंने हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की तो वह हाथ छुड़ा कर भाग गयी और मैं रुको तो बोलते हुए पीछे-पीछे भागा तोमुझे पीछे आता देख बोली आप रुको!
मैंने पुछा तो कब और कहाँ मिलोगी
वो कुछ नहीं बोली बस भाग गयी।
और मैं खड़ा हुआ उसे घने वृक्षों के झुण्ड में ओझल होता देखता रहा और मुझे लगा रोजी मुझे पुकार रही है कुमार-कुमार । तभी मेरी आँख खुली और मैंने देखा मैं अपने कक्ष में था और थकान से आँख लग गयी थी और कोई सपना देख रहा था ।
मैं यात्रा के बाद दोपहर का भोजन करने के बाद आराम करने के लिए लेटा था और वही कपडे पहने हुए थे. वो अंगूठी जो मैंने दीप्ति को पहना दी थी वो मेरे हाथ में ही थी और मेरी आँख लग गयी थी । मैं मुस्कुराया ।
रोजी मेरे पास खड़ी बोल रही थी भाई महाराज ने आपको बुलाया है त्यार हो कर जल्दी से चलिए ।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार
VOLUME II
विवाह
CHAPTER-1
PART 57
विधाता की अलोकिक रचना
लड़का लड़की दोनों के मन में पहले मिलन की अनेक रंगीन एवं मधुर कल्पनाएँ होती हैं जैसे पहली रात अत्यंत आनंदमयी, गुलाबी, रोमांचकारी मिलन की रात होगी। फूलों से सजी सेज पर साज़ शृंगार करके अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी प्रियतमा को प्रियतम अपने बाहुपाश में बाँध कर असीम अलौकिक आनंद का अनुभव कराता है।
पेड़ो की परछाईया लम्बी हो चली थी जो बता रहा था कि सूरज जल्द हे ढलने वाला है पर फिर भी अभी सूरज छिपने में काफी समय था। दीप्ति फूलो का सोलह शृंगार किए फूलों की सेज पर लाज से सिमटी बैठी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। भीनी-भीनी मोगरे, गुलाब और चमेली की सुगंध फैली हुई थी।
उसे फूलो में सजी हुई देख मुहे अनायास कालिदास और दुष्यंत की शकुंतला याद आ गयी। मुझे लगा ये जंगल की सुंदर कन्या जो कालिदास द्वारा वर्णित शकुंतला जैसी ही सुंदर है और इस शकुंतला के निर्दोष स्वरुप का उपभोग करने वाला कोई भाग्य शाली ही होगा। इसका निष्कलंक रूप और सौन्दर्य जो अभी तक किसी के भी द्वारा न सूघा गया फूल हे, जिसके रस को नहीं चखा गया है अक्षत रत्न हे, ताजा शहद है, ऐसा लगता है वह विधाता की अलोकिक रचना है। विधाता ने सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी का चित्र बनाकर उसमे प्राणसञ्चार किया है। दीप्ति विधाता की मानसिक सृष्टि है तभी तो उसका लावण्य इतना देदीप्यमान है। हाथ से बनाने में ऐसी अनुपम सृष्टि नहीं बन सकती।
दीप्ति ने पता नहीं कब अपने थैले से छोटी-सी चुनरी निकाल कर सर पर घूंघट बना कर बैठ गयी थी। सेज पर से शिरीष के फूल लटका कर उन्हें कानो में कर्णफूल की तरह पहन लिया था। सेज की बगल में कुछ फल और फूल मालाएँ रखी हुई थे। दीप्ति की आँखें एक नए रोमांच, कौतुक और भय से बंद होती जा रही थी। पता नहीं अब मैं उसके साथ कैसे और क्या-क्या करूँगा ऐसा विचार आते ही दीप्ति थोड़ा और सिकुड़ गई।
वैसे तो जैसा उसका उन्मुक्त स्वभाव था उसका अब का रोमांच, कौतुक, उत्सुकता, भय और घबराहट वाला आचरण उसके स्वाभाव से बिलकुल उल्ट था। शायद जब भी उसने पहले मिलन के बारे में उसकी किसी सहेली, बहन या फिर भाभी इत्यादि से पुछा होगा की पहले मिलन में क्या होता है? तो जैसे अधिकतर महिलाये या लड़किया जो सम्भोग कर चुकी होती हैं उन्ही में से किसी ने उसे बताया होगा की अगर किसी आदमी से पूछा जाए कि तुम जंगल में अकेली हो और तुम्हारे सामने कोई खूंखार जानवर आ जाये तो तुम क्या करोगी? तो उसे यही जवाब मिला होगा मैं क्या करूँगी, जो करेगा वोह जानवर ही करेगा। लड़किया और औरतो आमतौर पर यही कहती है पहले मिलन या सुहागरात में भी ऐसा ही कुछ होता है। जो भी करना होता है वह पुरुष ही करता है लड़कियों को तो बस अपनी टांगें चौड़ी करनी होती हैं! '
या किसी समझदार सहेली, बहन या फिर भाभी ने ये बता दिया होगा पहला मिलन जीवन में एक बार होता है ज्यादा ना-नुकर ना करना। वह जैसा करे करने देना, थोड़ा बहुत दर्द होगा और खून खराबा भी होगा, घबराना मत कुछ देर में दर्द चला जाएगा और खून बहना रुक जाएगा और फिर आगे मजा मिलेगा।
मैंने उसकी घबराहट देख मन बना लिया कि मैं इस मिलन को मधुर और अविस्मरणीय बंनने की पूरी कोशिश करूँगा। मैं उसके पास बैठ गया और एक ताज़ा गुलाब का फूल उठा कर बोला तुम किसी भी गुलाब कमल या ने फूल से बहुत अधिक सुन्दर और प्यारी हो, मैं तुम पर मोहित हो गया हूँ और तुम्हें प्रेम करने लगा हूँ।
फिर मैंने अपनी अंगूठी निकाली और उसे बोला आपके लिए एक छोटा-सा उपहार है! '
दीप्ति ने धीरे से अपना सर ऊपर किया और उस अंगूठी को देखा और अपना हाथ मेरी और बढ़ा दिया। मैंने हाथ पकड़ा। उसके हाथ को पकड़ते ही हम दोनों की उंगलिया कांपने लगी, उसका हाथ तो मैंने बीच बाज़ार में और तालाब में तैरते हुए कई बार पकड़ा था पर अब जो रोमांच हुआ वह कुछ अलग ही था और मैंने कंपते हाथो से उसकी लरजते हुई ऊँगली में अंगूठी पहना दी।
मैंने हाथ नहीं छोड़ा और एक फूल माला को उठा कर उसके हाथ में धीरे-धीरे गज़रा बाँधने लगा और फिर उसकी दोनों बाजुओं पर गज़रे बाँध दिए।
तभी कहैं से आवाज आयी दीप्ति औ दीप्ति, दी औ दी कहाँ हो तुम माँ बुला रही है और उसके बाद दीप्ति बोली मुझे मेरी छोटी बहन पुकार रही है और बोली आ रही हूँ ... वह उठी अपना थैला उठाया और अपने वस्त्र संभाले और जल्दी से पहने तो मैंने हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की तो वह हाथ छुड़ा कर भाग गयी और मैं रुको तो बोलते हुए पीछे-पीछे भागा तोमुझे पीछे आता देख बोली आप रुको!
मैंने पुछा तो कब और कहाँ मिलोगी
वो कुछ नहीं बोली बस भाग गयी।
और मैं खड़ा हुआ उसे घने वृक्षों के झुण्ड में ओझल होता देखता रहा और मुझे लगा रोजी मुझे पुकार रही है कुमार-कुमार । तभी मेरी आँख खुली और मैंने देखा मैं अपने कक्ष में था और थकान से आँख लग गयी थी और कोई सपना देख रहा था ।
मैं यात्रा के बाद दोपहर का भोजन करने के बाद आराम करने के लिए लेटा था और वही कपडे पहने हुए थे. वो अंगूठी जो मैंने दीप्ति को पहना दी थी वो मेरे हाथ में ही थी और मेरी आँख लग गयी थी । मैं मुस्कुराया ।
रोजी मेरे पास खड़ी बोल रही थी भाई महाराज ने आपको बुलाया है त्यार हो कर जल्दी से चलिए ।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार