11-12-2022, 01:51 PM
मेरे दादाजी समुंदर में खेल खेलना आता था लेकिन भवर किस रास्ते आता है वो नही पता था चोरी तो की लेकिन बचने के लिए बांध बनाना नही सीखा जिसके वजह से हम आज इस मुसीबत में फांस गए है ।
रात होने तक मनहोर ने मुझे अपने तंबू में रखा और रात के करीब 9 बजे तक मुझे खाना खाने दिया । में भूखा था पर कुछ ज्यादा खा नही पाया फिर भी मनोहर ने मुझे जबरदस्ती खिला दिया थोड़ा बोहोत। में परेशान था बाकी सबके लिए पता नही बाकी लोगों को किस हाल में रखा है लाखा ने ।
लाखा तम्बू में आया और पूछा " सरदार आपने बुलाया "
मनोहर बोला " इसकी मां को ले आओ "
लाखा की चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान फैल गया और उसने जवाब दिया " 5 मिनिट में ले आता हूं सरदार"
और लाखा चला गया । और मनोहर बोला " अब तेरी मां के साथ जो जो होगा वो सब तू अपने आंखों से देखेगा इस अलमारी में चुप के । अगर छू भी की तो तेरी मां की गला काट दूंगा में ।"
तम्बू के अंदर एक पुराना सा टूटी फूटी लकड़ी की आलमारी थी । में दर गया और एक आखरी बार कशिश की " प्लीज मेरी मां को छोड़ दो अंकल। आप चाहे तो पूरे जयदात ले लो"
" सुहहहह। कोई आवाज नही। में नही सुनने वाला अब और तू सिर्फ देखेगा अब तक 23 मर्डर किए है तेरी मां को 24 नही करना चाहता में हाथो मे खून रंग नही लगाना चाहता में । मजबूर मत कर बच्चे "
अब तक तो मनोहर की चेहरे पर इतनी कठोरता नही देखा पर अब देख पा रहा हूं । किसी राक्षस जैसे लग रहे थे आंखे लाल चेहरे पर क्रूर भाव ।
मुझे उस आलमारी छुपा दिया और बाहर से लॉक लगा दिया पर जालीदार छेद से में आलमारी से बाहर सबकुच देख पा रहा था ।
मैने देखा लाखा ने मां को कमरे में ले कर आया और चला गया । मेरी खूबसूरत मां काफी घबराई हुई थी और इधर उधर देखते हुए मां दरी सहमी हुई बोली " मेरा बेटा कहा हे"
तो मनोहर ने बोला " उसे दूसरे तंबू में रखा है "
मां तड़पती हुई बोली " प्लीज मेरे बेटे के पास मुझे ले चलो "
मां की चेहरे पर मेरे लिए फिक्र दिखाई दे रही थी ।
मनहोहोर मेरी मां की हाथ पकड़ के बोला " इतनी भी क्या जल्दी है"
मां हाथ चुरा कर कदम पीछे लेने लगी तो मनहोर मां की तरफ बढ़ रहा था और मां की दोनो बाहें पकड़ कर बोला " रानी समझ ले आज में तेरा ससुर हूं और अपने ससुर की तरह मेरा भी आज बिस्तर गर्म कर दे"
मां शर्म और गुस्से से मनोहर को धक्का देती है । मुझे भी बोहोत शर्म मेहसूस हो रहा था मेरी ही आंखों के सामने मेरी मां का अपमान हो रहा था और में कुछ नही कर पा रहा था ।
लेकिन तभी मनोहर ने मां को गाल पर थप्पड़ मार दी । बूढ़े हाथो मे भी काफी जान था मां की गुलाबी गाल लाल हो गए
। मां दर के मारे रोने लगी । और मनोहर ने एक पिस्टल निकल के मां की माथे पे तान दी । मेरी तो जान हलक में आ गए थे की कही मां को मार ना दे और मेरी सांस अटक सा गया था ।
मां की भी वोही हाल थी । और मनोहोर ने गुस्से से पूछा " बोल तेरी ससुर के साथ बिस्तर का संबंध है की नहीं बोल "
मां ने कोई जवाब नही दिया तो मनोहर ने पिस्टल की सेफ्टी लॉक हटा के पिस्टल मां की माथे पे रगड़ के बोला " बोल नहीं तो त्रिगार दावा दूंगा "
मां थरथरा कर कांप उठी और उसके मुंह से बास इतना ही निकला " हा हे"
मां की मूंह से जवाब सुन के मनोहर आलमारी की तरफ यानी मेरी तरफ देख मुस्कुरा रहा था । और ये सुन के मेरी दुनिया ही बदल गई मानो । जिस बाप को में बाप मान रहा था आज तक वो तो मेरा बाप ही नही है। देखा जाय तो मेरा बड़ा भाई है । मेरे लिए ये सदमे से कम ना था । खैर मैंने अब बिस्वास कर लिया और मनोहर पर मेरा पूरा एकिंग हो गया था । बस अपनी ही जिंदगी पर एक अफसोस हो रहा था में भी एक नजाएस ही निकला । दुख तो हो रहा था पर कर भी क्या सकता था में । मां पर गुस्सा नही आ रहा था क्यू में मुझे विश्वास था कि मां को दादाजी ने जरूर जबरदस्ती मनाया होगा ।
सामने मेरी मां डरी ही घबराई हुई खड़ी थी उसे अब तक समझ आ चुकी थी की उनके साथ मनोहर क्या करने वाला है ।
रात होने तक मनहोर ने मुझे अपने तंबू में रखा और रात के करीब 9 बजे तक मुझे खाना खाने दिया । में भूखा था पर कुछ ज्यादा खा नही पाया फिर भी मनोहर ने मुझे जबरदस्ती खिला दिया थोड़ा बोहोत। में परेशान था बाकी सबके लिए पता नही बाकी लोगों को किस हाल में रखा है लाखा ने ।
लाखा तम्बू में आया और पूछा " सरदार आपने बुलाया "
मनोहर बोला " इसकी मां को ले आओ "
लाखा की चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान फैल गया और उसने जवाब दिया " 5 मिनिट में ले आता हूं सरदार"
और लाखा चला गया । और मनोहर बोला " अब तेरी मां के साथ जो जो होगा वो सब तू अपने आंखों से देखेगा इस अलमारी में चुप के । अगर छू भी की तो तेरी मां की गला काट दूंगा में ।"
तम्बू के अंदर एक पुराना सा टूटी फूटी लकड़ी की आलमारी थी । में दर गया और एक आखरी बार कशिश की " प्लीज मेरी मां को छोड़ दो अंकल। आप चाहे तो पूरे जयदात ले लो"
" सुहहहह। कोई आवाज नही। में नही सुनने वाला अब और तू सिर्फ देखेगा अब तक 23 मर्डर किए है तेरी मां को 24 नही करना चाहता में हाथो मे खून रंग नही लगाना चाहता में । मजबूर मत कर बच्चे "
अब तक तो मनोहर की चेहरे पर इतनी कठोरता नही देखा पर अब देख पा रहा हूं । किसी राक्षस जैसे लग रहे थे आंखे लाल चेहरे पर क्रूर भाव ।
मुझे उस आलमारी छुपा दिया और बाहर से लॉक लगा दिया पर जालीदार छेद से में आलमारी से बाहर सबकुच देख पा रहा था ।
मैने देखा लाखा ने मां को कमरे में ले कर आया और चला गया । मेरी खूबसूरत मां काफी घबराई हुई थी और इधर उधर देखते हुए मां दरी सहमी हुई बोली " मेरा बेटा कहा हे"
तो मनोहर ने बोला " उसे दूसरे तंबू में रखा है "
मां तड़पती हुई बोली " प्लीज मेरे बेटे के पास मुझे ले चलो "
मां की चेहरे पर मेरे लिए फिक्र दिखाई दे रही थी ।
मनहोहोर मेरी मां की हाथ पकड़ के बोला " इतनी भी क्या जल्दी है"
मां हाथ चुरा कर कदम पीछे लेने लगी तो मनहोर मां की तरफ बढ़ रहा था और मां की दोनो बाहें पकड़ कर बोला " रानी समझ ले आज में तेरा ससुर हूं और अपने ससुर की तरह मेरा भी आज बिस्तर गर्म कर दे"
मां शर्म और गुस्से से मनोहर को धक्का देती है । मुझे भी बोहोत शर्म मेहसूस हो रहा था मेरी ही आंखों के सामने मेरी मां का अपमान हो रहा था और में कुछ नही कर पा रहा था ।
लेकिन तभी मनोहर ने मां को गाल पर थप्पड़ मार दी । बूढ़े हाथो मे भी काफी जान था मां की गुलाबी गाल लाल हो गए
। मां दर के मारे रोने लगी । और मनोहर ने एक पिस्टल निकल के मां की माथे पे तान दी । मेरी तो जान हलक में आ गए थे की कही मां को मार ना दे और मेरी सांस अटक सा गया था ।
मां की भी वोही हाल थी । और मनोहोर ने गुस्से से पूछा " बोल तेरी ससुर के साथ बिस्तर का संबंध है की नहीं बोल "
मां ने कोई जवाब नही दिया तो मनोहर ने पिस्टल की सेफ्टी लॉक हटा के पिस्टल मां की माथे पे रगड़ के बोला " बोल नहीं तो त्रिगार दावा दूंगा "
मां थरथरा कर कांप उठी और उसके मुंह से बास इतना ही निकला " हा हे"
मां की मूंह से जवाब सुन के मनोहर आलमारी की तरफ यानी मेरी तरफ देख मुस्कुरा रहा था । और ये सुन के मेरी दुनिया ही बदल गई मानो । जिस बाप को में बाप मान रहा था आज तक वो तो मेरा बाप ही नही है। देखा जाय तो मेरा बड़ा भाई है । मेरे लिए ये सदमे से कम ना था । खैर मैंने अब बिस्वास कर लिया और मनोहर पर मेरा पूरा एकिंग हो गया था । बस अपनी ही जिंदगी पर एक अफसोस हो रहा था में भी एक नजाएस ही निकला । दुख तो हो रहा था पर कर भी क्या सकता था में । मां पर गुस्सा नही आ रहा था क्यू में मुझे विश्वास था कि मां को दादाजी ने जरूर जबरदस्ती मनाया होगा ।
सामने मेरी मां डरी ही घबराई हुई खड़ी थी उसे अब तक समझ आ चुकी थी की उनके साथ मनोहर क्या करने वाला है ।