06-12-2022, 10:46 AM
जब मैंने नीतू के जांघो के बीच हाथ रख कर जगह बनाया, उसकी पैंटी दिखने लगी। मेरे ऐसा करने से नीतू झेप गई और जल्दी से मेरा हाथ हटा दिया नीरज की हवसी निगाहों ने पैंटी और उसके अंदर छुपे हुए चुत को स्कैन कर लिया।
नीरज की आँखों को संतुष्टीे मिलती इससे पहले नीतू ने मेरा हाथ हटा दिया और अपने दोनों पैरों को चिपका लिया। मेरे हाथ हटाने के बाद नीतू बुरी तरह शर्मा गई और नीचे जमीन की ओर देखने लगी।
फिर मैंने नीरज को आज शाम डिनर पर आने के लिए बोला और कहा की साथ में बहुत कुछ मिलेगा। नीरज ने हसते हुए आना स्वीकार किया। एडमिशन हो चुका था इसलिए प्रीति और नीतू बहुत खुश थे।
हम तीनों कॉलेज से बाहर निकले तो सबकी नजर नीतू की गदराये बदन पर थी। नीतू की वन पीस पीछे से सिर्फ उसकी चूतड़ों तक को ही ढक पा रही थी। सभी स्टूडेंट्स का ध्यान नीतू को ताड़ने पर ही था और मै सबके फैनटसी को पूरा करना चाहता था। मै कॉलेज घुमाने के बहाने नीतू की बड़ी बड़ी चूचियों और चौड़ी गांड का दर्शन सबको कराया। कोई भी औरत यह महसूस कर लेती है कि उसे कौन कौन देख रहा हैं। नीतू सबकी इस अटेंशन से खुद को छुपाना चाह रही थी लेकिन वों मुझसे कुछ बोल नहीं पा रही थी।
फिर थोड़ी देर घूमने के बाद हम तीनों घर आ गए। मंजू ने गेट खोला।
नीतू ने मंजू को बताया कि एडमिशन हो गया है तो मंजू भी खुश हुई और प्रीति को गले लगाकर बधाई दी।
अब हम चारों घर में अंदर आ गए। अंदर मैं सोफे पर बैठा और नीतू को अपने जांघो पर बिठाया। नीतू कि वन पीस जो पहले ही काफी छोटी थी उसे मैंने बैठते वक्त ऊपर कर दिया। अब नीतू मेरी जांघो पर बैठी थी। सामने से उसकी ड्रेस उसकी पैंटी को ढक रही थी लेकिन पीछे से उसकी ड्रेस उसकी पीठ पर थी। मंजू और प्रीति भी सामने बैठी थी।
नीतू को अपने जांघो पर बिठाने के बाद मैं अपना हाथ उसकी पैंटी के अंदर डाला और कस कर चिकोटी काटते हुए बोला - अब तो खुश हो ना
नीतू दर्द से कराह उठी और बोली - हाँ, मै बहुत खुश हूँ।
मै - ये हुई ना बात।
ऐसा कहते कहते मैंने नीतू को अपनी जांघो से हल्का ऊपर उठाया और तेजी से उसकी पैंटी नीचे की ओर सरका दी।
ऐसा करते हुए मुझे मंजू और प्रीति ने भी देख लिया। प्रीति के सामने नीतू की पैंटी अभी तक नहीं उतरी थी लेकिन अभी उसकी पैंटी उसके घुटने के नीचे थी। मंजू और नीतू दोनों चौंक गए और असहज महसूस करने लगे। उन दोनों से कहीं ज्यादा असहज प्रीति हुई और वों उठकर अपने कमरे में जाने लगी।
मैंने ऊँची आवाज में प्रीति को रोका और बोला -
मै - प्रीति इधर आओ।
प्रीति चुपचाप हमारे सामने आयी। उस वक्त नीतू ने अपना चेहरा मेरी छाती की ओर कर छुपा रखा था।
फिर मैंने प्रीति से कहा - अब जल्दी से इसकी पैंटी उतार।
प्रीति हिचकीचाई और वही खड़ी रही तो मैंने चिल्लाते हुए कहा - निकाल।
प्रीति तुरंत नीतू की पैंटी को घुटने से नीचे किया और पांव से बाहर निकाल कर बेड पर रख दिया।
इसके बाद मै फिर बोला - शाबाश प्रीति।
नीरज की आँखों को संतुष्टीे मिलती इससे पहले नीतू ने मेरा हाथ हटा दिया और अपने दोनों पैरों को चिपका लिया। मेरे हाथ हटाने के बाद नीतू बुरी तरह शर्मा गई और नीचे जमीन की ओर देखने लगी।
फिर मैंने नीरज को आज शाम डिनर पर आने के लिए बोला और कहा की साथ में बहुत कुछ मिलेगा। नीरज ने हसते हुए आना स्वीकार किया। एडमिशन हो चुका था इसलिए प्रीति और नीतू बहुत खुश थे।
हम तीनों कॉलेज से बाहर निकले तो सबकी नजर नीतू की गदराये बदन पर थी। नीतू की वन पीस पीछे से सिर्फ उसकी चूतड़ों तक को ही ढक पा रही थी। सभी स्टूडेंट्स का ध्यान नीतू को ताड़ने पर ही था और मै सबके फैनटसी को पूरा करना चाहता था। मै कॉलेज घुमाने के बहाने नीतू की बड़ी बड़ी चूचियों और चौड़ी गांड का दर्शन सबको कराया। कोई भी औरत यह महसूस कर लेती है कि उसे कौन कौन देख रहा हैं। नीतू सबकी इस अटेंशन से खुद को छुपाना चाह रही थी लेकिन वों मुझसे कुछ बोल नहीं पा रही थी।
फिर थोड़ी देर घूमने के बाद हम तीनों घर आ गए। मंजू ने गेट खोला।
नीतू ने मंजू को बताया कि एडमिशन हो गया है तो मंजू भी खुश हुई और प्रीति को गले लगाकर बधाई दी।
अब हम चारों घर में अंदर आ गए। अंदर मैं सोफे पर बैठा और नीतू को अपने जांघो पर बिठाया। नीतू कि वन पीस जो पहले ही काफी छोटी थी उसे मैंने बैठते वक्त ऊपर कर दिया। अब नीतू मेरी जांघो पर बैठी थी। सामने से उसकी ड्रेस उसकी पैंटी को ढक रही थी लेकिन पीछे से उसकी ड्रेस उसकी पीठ पर थी। मंजू और प्रीति भी सामने बैठी थी।
नीतू को अपने जांघो पर बिठाने के बाद मैं अपना हाथ उसकी पैंटी के अंदर डाला और कस कर चिकोटी काटते हुए बोला - अब तो खुश हो ना
नीतू दर्द से कराह उठी और बोली - हाँ, मै बहुत खुश हूँ।
मै - ये हुई ना बात।
ऐसा कहते कहते मैंने नीतू को अपनी जांघो से हल्का ऊपर उठाया और तेजी से उसकी पैंटी नीचे की ओर सरका दी।
ऐसा करते हुए मुझे मंजू और प्रीति ने भी देख लिया। प्रीति के सामने नीतू की पैंटी अभी तक नहीं उतरी थी लेकिन अभी उसकी पैंटी उसके घुटने के नीचे थी। मंजू और नीतू दोनों चौंक गए और असहज महसूस करने लगे। उन दोनों से कहीं ज्यादा असहज प्रीति हुई और वों उठकर अपने कमरे में जाने लगी।
मैंने ऊँची आवाज में प्रीति को रोका और बोला -
मै - प्रीति इधर आओ।
प्रीति चुपचाप हमारे सामने आयी। उस वक्त नीतू ने अपना चेहरा मेरी छाती की ओर कर छुपा रखा था।
फिर मैंने प्रीति से कहा - अब जल्दी से इसकी पैंटी उतार।
प्रीति हिचकीचाई और वही खड़ी रही तो मैंने चिल्लाते हुए कहा - निकाल।
प्रीति तुरंत नीतू की पैंटी को घुटने से नीचे किया और पांव से बाहर निकाल कर बेड पर रख दिया।
इसके बाद मै फिर बोला - शाबाश प्रीति।