19-11-2022, 12:03 AM
मैं - ओह ... गुप्ता जी ....मैंने आपको ..... उफ्फ़ ........ मुझे चूमने से मना किया था ना , मम्म्म्म्म ना.....ह ।
गुप्ता जी - मैं क्या करूँ पदमा ,ये तुम्हारा संगमरमर जैसा तरासा हुआ जिस्म है ना जिस पर मेरे होंठ खुद ही फिसल पड़ते है । थोड़ी देर मुझे इस आनंद के सागर मे डूबे रहने दो पदमा बस ......... ।
" है ईश्वर ... गुप्ता जी को तो कोई शर्म , हया ही नहीं है । इन्हे तो कोई डर नहीं है , मगर मैं ऐसे तो बर्बाद हो जाऊँगी गुप्ता जी को कैसे रोकूँ । कहीं किसी ने देख लिया तो मेरा क्या होगा ?"
मेरे मन मे डर के भाव उमड़ रहे थे और शरीर तो यूँ समझे गुप्ता जी ने अपनी हवस का गुलाम बना लिया था । डर तो था इस बात का कि कहीं कोई पीछे मुड के ना देख ले कि क्या हो रहा है ? अगर ऐसा हो गया तो मैं तो आज जीते जी मर जाऊँगी । और गुप्ता जी इन सब से बेपरवाह बस अपने जिस्म की आग मेरे जिस्म की आग मे मिलाकर उसे ज्वाला-मुखी का रूप दे रहे थे । अब तो गुप्ता जी का लिंग भी मुझे मेरे नितम्बों पर चुभने लगा था
और गुप्ता जी पीछे से मेरी चूचियों को पकड़े हुए अपने लिंग की ठोकरे मेरे गुदा स्थल पर मारने लगे । अब मुझसे भी अपनी आहों को रोक नहीं जा रहा था और धीमे-धीमे मेरी आहे भी अब निकलने लगी ।
इस पूरे वासना के खेल के दौरान गुप्ता जी ने एक बात का पूरा ध्यान रखा हुआ था कि उनके होंठ मेरे बदन से अलग ना हो पाएं और किसी भी पल उन्होंने ऐसा होने नहीं दिया ।
गुप्ता जी के हाथो ने अब मेरी चूचियों के निप्पलस को भी मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही छेड़ना शुरू कर दिया ,मेरी हालत अब बोहोत ज्यादा खराब होने लगी योनि मे पानी भर आया और मेरी पेंटी मेरे चुतरस से भीगने लगी । मैं जान गई के अगर अब ना रुकी तो आज खुद ही गुप्ता जी को अपना जिस्म पूरी तरह से भोगने के लिए दे दूँगी और गुप्ता जी तो मुझे लूटने के लिए ना जाने कब से तड़प रहे है । लाइन भी अब लगभग समाप्त ही होने वाली थी मेरे आगे केवल 3 लोग बचे होंगे शायद ।
मैं(धीरे से ) - अब ... बस .. कीजिए । गुप्ता जी जाने दीजिए .... आह ... मेरा नंबर आने वाला है ।
गुप्ता जी को अभी भी वासना का खुमार चढ़ा हुआ था और उसे मे वो अब भी अपनी हवस की ही बातें कर रहे थे । गुप्ता जी ने मुझे पकड़े हुए ही अपने होंठों को मुझे चूमने से विराम देते हुए कहा - " एक शर्त पर .. । "
मैं इस समय तो गुप्ता जी की कोई भी शर्त मानने को तैयार थी फिर चाहे जैसे भी हो , मुझे बस उनकी पकड़ से आजाद होना था ।
मैं - क्या ... आह .. शर्त है गुप्ता जी ... जल्दी बोलिए .... ।
गुप्ता जी - तुम मुझे वो शरबत पिलाओगी ।
"शरबत ?? कौन सा शरबत ? क्या गुप्ता जी उसी शरबत की बात कर है जो मैं समझ रही हूँ ।"
मैं - क्या ? .. कौन सा शरबत ... चाहिए आपको .... गुप्ता जी ..... बोलिए ... ?
गुप्ता जी - वही तुम्हारे इन सुर्ख लाल होंठों का शरबत पदमा , मेरी प्यास सिर्फ उसी से बुझेगी ।
क्या अपने होंठों का शरबत ..? नहीं ये नहीं हो सकता ये मैं कैसे करूंगी ... ?
मैं - उफ्फ़ ... गुप्ता जी ... ये आप क्या बोल रहे हो ?
गुप्ता जी - यही चाहिए मुझे पदमा बस तुम्हारे होंठों का शरबत , जल्दी बोलो पिलाओगी ना ।
ऐसा कहकर गुप्ता जी ने अपने एक हाथ को मेरी चूचियों पर से हटाया और मेरे होंठों को अपने हाथ मे पकड़कर उन्हे भींचते हुए कहने लगे -
गुप्ता जी - यही है ... इनका ही शरबत पीना है मुझे ।
मेरे पास कोई ओर चारा नहीं था गुप्ता जी के हाथ ने अभी भी मेरी एक चुची को पकड़ा हुआ था और लाइन बिल्कुल समाप्त होने को थी ।
मैं - अच्छा .... ठीक है ..... गुप्ता जी ..... मुझे मंजूर है । अब प्लीज मुझे छोड़ दीजिए वरना किसी ने देख लिया तो बवाल हो जाएगा ।
गुप्ता जी की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई जैसे ही उन्होंने ये सुना बिना एक पल की देरी कीये मुस्कुराते हुए मुझे छोड़ दिया । गुप्ता जी से छूटते ही मैंने जल्दी से अपने कपड़ों और हुलिये को ठीक किया । मेरा नंबर आने ही वाला था घबराहट मे मेरी साँसे भी बोहोत तेज चल रही थी जिन्हे नॉर्मल करने मे भी मुझे समय लगा । जब मेरा नंबर आया तो मैं प्रबंधक के केबिन मे गई । प्रबंधक लगभग 40 वर्षीय एक मर्द था जो मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था । मुझे देखकर उसने मुझे बैठने के लिए कहा और पूछा - " कहिए मोहतरमा क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए ? "
मैं प्रबंधक के तमीजदार रवैयए से काफी प्रभावित हुई और उनकी टेबल के सामने कुर्सी पर बैठकर बोली - " सर बैंक से प्रविष्टियों के संबंध मे एक कॉल आया था उसी के बारे मे जानकारी लेने के लिए आई थी । बाहर लेखाकर ने कहा कि एक बार आप से मिल लूँ । "
ऐसा कहते हुए मैंने अपने जरूरी दस्तावेज प्रबंधक की और बढ़ा दिए प्रबंधक साहब ने उन्हे अपने हाथ मे लिया और बड़े ध्यान से देखकर कहा - " ये कोई ज्यादा गंभीर समस्या नहीं है । आप बस अपने ............. कागज और एक फ़ोटो मुझे दे दीजिए । "
मैंने प्रबंधक के कहे अनुसार जरूरी दस्तावेज़ उन्हे सौंप दिए और उन्हे धन्यवाद कहकर जाने लगी तो प्रबंधक ने मुझे पीछे से आवाज दी ।
प्रबंधक - सुनिए ..। मिस पदमा ।
मैं प्रबंधक की ओर घूमी
और उन्हे कहा - " जी सर कहिए .... ?"
प्रबंधक - आप एक बार कुछ दिनों बाद फिर से आ जाइएगा ।
मैंने थोड़ी आश्चर्य की नजर प्रबंधक पर डाली ।
मैं - क्या हुआ सर ?
प्रबंधक - वैसे कुछ खास नहीं बस एक बार चेक कर लेना की सब ठिक से हो गया है या नहीं मेरा मतलब अकाउंट वेरीफाई हो गया या नहीं ।
मैंने मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी और वहाँ से बाहर चली आई । बाहर आते हुए मैंने सोचा कि अब तो गुप्ता जी अंदर जाएंगे और जब तक गुप्ता जी प्रबंधक से मिलकर आएंगे तबतक मैं गुप्ता जी से बचकर यहाँ से निकल जाऊँगी इसलिए मैं जल्दी से बाहर वाले गेट से बैंक से बाहर आ गई ।
गुप्ता जी - मैं क्या करूँ पदमा ,ये तुम्हारा संगमरमर जैसा तरासा हुआ जिस्म है ना जिस पर मेरे होंठ खुद ही फिसल पड़ते है । थोड़ी देर मुझे इस आनंद के सागर मे डूबे रहने दो पदमा बस ......... ।
" है ईश्वर ... गुप्ता जी को तो कोई शर्म , हया ही नहीं है । इन्हे तो कोई डर नहीं है , मगर मैं ऐसे तो बर्बाद हो जाऊँगी गुप्ता जी को कैसे रोकूँ । कहीं किसी ने देख लिया तो मेरा क्या होगा ?"
मेरे मन मे डर के भाव उमड़ रहे थे और शरीर तो यूँ समझे गुप्ता जी ने अपनी हवस का गुलाम बना लिया था । डर तो था इस बात का कि कहीं कोई पीछे मुड के ना देख ले कि क्या हो रहा है ? अगर ऐसा हो गया तो मैं तो आज जीते जी मर जाऊँगी । और गुप्ता जी इन सब से बेपरवाह बस अपने जिस्म की आग मेरे जिस्म की आग मे मिलाकर उसे ज्वाला-मुखी का रूप दे रहे थे । अब तो गुप्ता जी का लिंग भी मुझे मेरे नितम्बों पर चुभने लगा था
और गुप्ता जी पीछे से मेरी चूचियों को पकड़े हुए अपने लिंग की ठोकरे मेरे गुदा स्थल पर मारने लगे । अब मुझसे भी अपनी आहों को रोक नहीं जा रहा था और धीमे-धीमे मेरी आहे भी अब निकलने लगी ।
इस पूरे वासना के खेल के दौरान गुप्ता जी ने एक बात का पूरा ध्यान रखा हुआ था कि उनके होंठ मेरे बदन से अलग ना हो पाएं और किसी भी पल उन्होंने ऐसा होने नहीं दिया ।
गुप्ता जी के हाथो ने अब मेरी चूचियों के निप्पलस को भी मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही छेड़ना शुरू कर दिया ,मेरी हालत अब बोहोत ज्यादा खराब होने लगी योनि मे पानी भर आया और मेरी पेंटी मेरे चुतरस से भीगने लगी । मैं जान गई के अगर अब ना रुकी तो आज खुद ही गुप्ता जी को अपना जिस्म पूरी तरह से भोगने के लिए दे दूँगी और गुप्ता जी तो मुझे लूटने के लिए ना जाने कब से तड़प रहे है । लाइन भी अब लगभग समाप्त ही होने वाली थी मेरे आगे केवल 3 लोग बचे होंगे शायद ।
मैं(धीरे से ) - अब ... बस .. कीजिए । गुप्ता जी जाने दीजिए .... आह ... मेरा नंबर आने वाला है ।
गुप्ता जी को अभी भी वासना का खुमार चढ़ा हुआ था और उसे मे वो अब भी अपनी हवस की ही बातें कर रहे थे । गुप्ता जी ने मुझे पकड़े हुए ही अपने होंठों को मुझे चूमने से विराम देते हुए कहा - " एक शर्त पर .. । "
मैं इस समय तो गुप्ता जी की कोई भी शर्त मानने को तैयार थी फिर चाहे जैसे भी हो , मुझे बस उनकी पकड़ से आजाद होना था ।
मैं - क्या ... आह .. शर्त है गुप्ता जी ... जल्दी बोलिए .... ।
गुप्ता जी - तुम मुझे वो शरबत पिलाओगी ।
"शरबत ?? कौन सा शरबत ? क्या गुप्ता जी उसी शरबत की बात कर है जो मैं समझ रही हूँ ।"
मैं - क्या ? .. कौन सा शरबत ... चाहिए आपको .... गुप्ता जी ..... बोलिए ... ?
गुप्ता जी - वही तुम्हारे इन सुर्ख लाल होंठों का शरबत पदमा , मेरी प्यास सिर्फ उसी से बुझेगी ।
क्या अपने होंठों का शरबत ..? नहीं ये नहीं हो सकता ये मैं कैसे करूंगी ... ?
मैं - उफ्फ़ ... गुप्ता जी ... ये आप क्या बोल रहे हो ?
गुप्ता जी - यही चाहिए मुझे पदमा बस तुम्हारे होंठों का शरबत , जल्दी बोलो पिलाओगी ना ।
ऐसा कहकर गुप्ता जी ने अपने एक हाथ को मेरी चूचियों पर से हटाया और मेरे होंठों को अपने हाथ मे पकड़कर उन्हे भींचते हुए कहने लगे -
गुप्ता जी - यही है ... इनका ही शरबत पीना है मुझे ।
मेरे पास कोई ओर चारा नहीं था गुप्ता जी के हाथ ने अभी भी मेरी एक चुची को पकड़ा हुआ था और लाइन बिल्कुल समाप्त होने को थी ।
मैं - अच्छा .... ठीक है ..... गुप्ता जी ..... मुझे मंजूर है । अब प्लीज मुझे छोड़ दीजिए वरना किसी ने देख लिया तो बवाल हो जाएगा ।
गुप्ता जी की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई जैसे ही उन्होंने ये सुना बिना एक पल की देरी कीये मुस्कुराते हुए मुझे छोड़ दिया । गुप्ता जी से छूटते ही मैंने जल्दी से अपने कपड़ों और हुलिये को ठीक किया । मेरा नंबर आने ही वाला था घबराहट मे मेरी साँसे भी बोहोत तेज चल रही थी जिन्हे नॉर्मल करने मे भी मुझे समय लगा । जब मेरा नंबर आया तो मैं प्रबंधक के केबिन मे गई । प्रबंधक लगभग 40 वर्षीय एक मर्द था जो मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था । मुझे देखकर उसने मुझे बैठने के लिए कहा और पूछा - " कहिए मोहतरमा क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए ? "
मैं प्रबंधक के तमीजदार रवैयए से काफी प्रभावित हुई और उनकी टेबल के सामने कुर्सी पर बैठकर बोली - " सर बैंक से प्रविष्टियों के संबंध मे एक कॉल आया था उसी के बारे मे जानकारी लेने के लिए आई थी । बाहर लेखाकर ने कहा कि एक बार आप से मिल लूँ । "
ऐसा कहते हुए मैंने अपने जरूरी दस्तावेज प्रबंधक की और बढ़ा दिए प्रबंधक साहब ने उन्हे अपने हाथ मे लिया और बड़े ध्यान से देखकर कहा - " ये कोई ज्यादा गंभीर समस्या नहीं है । आप बस अपने ............. कागज और एक फ़ोटो मुझे दे दीजिए । "
मैंने प्रबंधक के कहे अनुसार जरूरी दस्तावेज़ उन्हे सौंप दिए और उन्हे धन्यवाद कहकर जाने लगी तो प्रबंधक ने मुझे पीछे से आवाज दी ।
प्रबंधक - सुनिए ..। मिस पदमा ।
मैं प्रबंधक की ओर घूमी
और उन्हे कहा - " जी सर कहिए .... ?"
प्रबंधक - आप एक बार कुछ दिनों बाद फिर से आ जाइएगा ।
मैंने थोड़ी आश्चर्य की नजर प्रबंधक पर डाली ।
मैं - क्या हुआ सर ?
प्रबंधक - वैसे कुछ खास नहीं बस एक बार चेक कर लेना की सब ठिक से हो गया है या नहीं मेरा मतलब अकाउंट वेरीफाई हो गया या नहीं ।
मैंने मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी और वहाँ से बाहर चली आई । बाहर आते हुए मैंने सोचा कि अब तो गुप्ता जी अंदर जाएंगे और जब तक गुप्ता जी प्रबंधक से मिलकर आएंगे तबतक मैं गुप्ता जी से बचकर यहाँ से निकल जाऊँगी इसलिए मैं जल्दी से बाहर वाले गेट से बैंक से बाहर आ गई ।