18-11-2022, 11:46 PM
गुप्ता जी के आगे खड़े होने मे मुझे थोड़ी घबराहट हो रही थी और ये घबराहट तब और भी बढ़ गई जब गुप्ता जी पीछे से मेरे करीब आकर बोले - " पदमा एक बात कहूँ ? "
मैं धीरे से पीछे मुड़ी तो पाया गुप्ता जी बिल्कुल मेरे पीछे थे और मेरी गोरी पीठ पर उनका मजबूत सीना रगड़ खा रहा था । मैंने गुप्ता जी से कहा - " बोलिए गुप्ता जी , क्या कहना चाहते है ? "
गुप्ता जी मेरे कान के और भी करीब आकर बोले - " तुम आज बोहोत सुंदर लग रही हो पदमा । "
मैं -"शश्श्श् ....गुप्ता जी आप भी ना । "
![[Image: 1w.gif]](https://i.postimg.cc/0NBD3Cbf/1w.gif)
गुप्ता जी - सच मे पदमा , आज तुम तुम बिल्कुल कयामत लग रही हो ।
मैं अपने मन मे ही अपने आप को कोसने लगी , ' क्या जरूरत थी इतना सज-धज कर घर से निकलने की , अब फँस गई ना अपनी खूबसूरती की वजह से । '
मैंने गुप्ता जी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बात को पलटते हुए उन्हे कहा -
मैं - गुप्ता जी , आप मेरे करीब ना खड़े हो किसी ने हमे ऐसे देख लिया तो गलत समझेगा ।
गुप्ता जी - यहाँ कोई हमे देखने वाला नहीं है पदमा , एंट्री गेट बंद हो चुका है और यहाँ बोहोत अँधेरा भी है । वैसे भी यहाँ काफी ठंड है पदमा , अगर हम एक दूसरे के करीब रहेंगे तो हमे गरमाई मिलती रहेगी ।
इतना बोलकर गुप्ता जी ने मेरे और भी करीब आकर अपने आप को मुझसे बिल्कुल चिपका दिया और अपने हाथ मेरे कंधों पर रख दिए और अपने गाल को मेरे गाल और अपने होंठों को मेरे कंधे से लगभग बिल्कुल मिल दिया मानो उसे चूमने ही वाले हो ।
![[Image: 1q.gif]](https://i.postimg.cc/vmQ0MX8w/1q.gif)
मैं - आह .. गुप्ता जी इतना करीब होना ठीक नहीं ।
कहते हुए मैं गुप्ता जी की पकड़ से निकलते हुए थोड़ी आगे सरक गई । इससे मैं गुप्ता जी से तो दूर हट गई मगर अगले ही पल गुप्ता जी ने अपने कदम आगे बढ़ाकर मुझे फिर से अपनी पहुँच मे ले लिया और बोले -
गुप्ता जी - पदमा , तुम्हारे बालों की खुशबू से मेरा मन अन्दर तक महक गया है और तुम्हारी इस बैकलेस साड़ी मे तुम्हारी ये कोमल कमर , उफ्फ़ हद है .....
मैं - क्या बात है गुप्ता जी ? आपका ऐसी बातें बोलने का क्या मकसद है ?
गुप्ता जी - पदमा मैं एक बार तुम्हारी कमर को छु कर देखना चाहता हूँ ।
मैं - नन्न् ... क्यूँ गुप्ता जी , रहने दीजिए आप हर बार ऐसी ही बातें क्यों करते है ?
गुप्ता जी - मैं एक बार बस तुम्हारी कमर की कोमलता को महसूस करना चाहता हूँ ।
ऐसा कहकर गुप्ता जी ने अपना हाथ मेरी बैकलेस साड़ी मे बंधी कमर और पीठ पर धीरे-धीरे फिराया और मेरी धड़कनों के साथ-साथ मेरी साँसों मे भी उछाल आ गया , मेरी कमर गुप्ता जी के हाथों के स्पर्श से मचलते हुए थिरकने लगी ।
![[Image: 1.gif]](https://i.postimg.cc/0QKWHj2z/1.gif)
अपनी तेज गति से चलती साँसों पर काबू करने की कोशिश करते हुए गुप्ता जी से कहा -
मैं - गुप्ता जी ... अब .. तो .. आपका .. मन .. भर .. गया .. ना.. अब .. अपने .. हाथों को .. मेरी ... कमर ... से .... दूर ... कर लीजिए ...... ।
गुप्ता जी - क्या तुम्हें ये अच्छा नहीं लग रहा पदमा ?
अब मैं भला गुप्ता जी के इस सवाल का क्या जवाब दूँ ? उन्हे हाँ भी तो नहीं कह सकती वरना वो यहाँ खड़े-2 ही मुझे बर्बाद कर देंगे । वैसे भी उनके होंठ अब भी मेरे कान पर अपनी गरम साँसे छोड़ रहे थे जो मेरे रोम-रोम मे जलन पैदा कर रही थी । गुप्ता जी मेरी पीठ और फिर कमर पर अपने हाथ से शरारत करते हुए नीचे की ओर झुक गए ।
मैं - नन्न् ही ... गुप्ता जी ... आपको .. जो महसूस करना था अपने कर लिया अब कृप्या अपने हाथ हटा लीजिए ।
गुप्ता जी अभी भी नीचे मेरे भारी नितम्बों के पास झुके हुए थे जिसका एहसास मुझे उनके मुहँ से आती गरम साँसों से हो रहा था जैसे ही गुप्ता जी ने ये अल्फ़ाज़ मेरे मुहँ से सुने तो गुप्ता जी कुछ इस अंदाज मे ऊपर की और आए कि अपने हाथ से साथ-2 अपने होंठों को भी मेरी कमर और पीठ से बिल्कुल चिपकाए यहाँ -वहाँ मुझे चूम लिया ।
![[Image: redditsave-com-5e07b0s4wpx91.gif]](https://i.postimg.cc/k5ghW9Vp/redditsave-com-5e07b0s4wpx91.gif)
अब गुप्ता जी को अपने हाथ मेरी कमर से तो हटा लिए लेकिन वहाँ से हटाते ही , मुझे संभलने का मौका दिए बिना अपने दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से मेरी कमर को थाम लिया और मुझसे बिल्कुल लग गए ।
"आह .."- धीरे से मेरे होंठों से निकली मैंने सिर्फ पलटकर देखा था इतने मैं ही गुप्ता जी ने अपने होंठ जो अब तक मेरे कानों पर अपनी गरम हवा छोड़ रहे थे उन्हे मेरी गर्दन से चिपका दिया और उस पर जोरों शोरों से चूमा ।
![[Image: 1l.gif]](https://i.postimg.cc/CK4Sxw3r/1l.gif)
मैं - आह ... गुप्ता जी ... आप ... फिर ... नहीं ...
बोलते हुए मैं अपनी गर्दन को जोर से झटका लेकिन गुप्ता जी की कैद से मैं अब भी आजाद नहीं हो पाई । क्योंकि गुप्ता जी ने अपने हाथ मेरी नंगी कमर से गुजारते हुए मेरे पेट के इर्द-गिर्द कस लिए
![[Image: 1h.gif]](https://i.postimg.cc/Rh6kKmYB/1h.gif)
और मुझे ओर भी अपने से चिपका लिया, जैसे चंदन के पेड़ से साँप लिपट जाता है ठीक वैसे ही गुप्ता जी मुझसे लिपटने लगे । मेरी सिल्क साड़ी का पल्लू भी बार-बार सरक जा रहा था और आखिर मेरी पकड़ से छूटकर वो नीचे ही गिर गया । मेरी साँसे तो यूँ ही परवान चढ़ी हुई थी और अब गुप्ता जी की हद से ज्यादा उत्तेजना ने फिर से मेरे अरमानों को भड़का दिया ।
मैं - गुप्ता जी ..... नहीं ... छोड़ .... दीजिए ..... कोई ..... देख लेगा ..... ।
पर गुप्ता जी कहाँ मानने वाले थे उन्होंने मेरी किसी भी बात कि परवाह कीये बिना अपने होंठों से मेरी गर्दन पर लगातार चूमना जारी रखा । इधर गुप्ता जी के होंठ मेरी गर्दन और कंधों पर थिरकते हुए मुझे चूमे जा रहे थे और उधर मेरे अंदर की कामवासना भी मेरे बदन मे एक झुरझुरी लगा रही थी ।
![[Image: 1n.gif]](https://i.postimg.cc/fL42pd26/1n.gif)
गुप्ता जी के हाथ अब सिर्फ पेट और कमर तक सीमित नहीं रहने वाले थे बल्कि अब उन्होंने भी अपना आगे बढ़ने का रास्ता खोज लिया और उनके बेकाबू हाथ मेरी चूचियों तक जा पहुंचे । मेरी चूचियाँ जो गुप्ता जी के पहले स्पर्श से ही फूलनी शुरू हो गई थी अब गुप्ता जी के हाथों के दबाव मे आकर अपने पूरे आकार मे तनने लगी थी । बैंक की उस अंधेरी गैलरी मे किस तरह से मैं अपने होंठों से उखड़ती आहों को रोक रही थी ये बस मैं ही जानती हूँ , अगर मेरे होंठ मेरे दाँतों के नीचे ना दबे होते तो उन्हे भी रोकना नामुमकिन था ।![[Image: 1c.gif]](https://i.postimg.cc/C1LBFPQD/1c.gif)
मैं धीरे से पीछे मुड़ी तो पाया गुप्ता जी बिल्कुल मेरे पीछे थे और मेरी गोरी पीठ पर उनका मजबूत सीना रगड़ खा रहा था । मैंने गुप्ता जी से कहा - " बोलिए गुप्ता जी , क्या कहना चाहते है ? "
गुप्ता जी मेरे कान के और भी करीब आकर बोले - " तुम आज बोहोत सुंदर लग रही हो पदमा । "
मैं -"शश्श्श् ....गुप्ता जी आप भी ना । "
![[Image: 1w.gif]](https://i.postimg.cc/0NBD3Cbf/1w.gif)
गुप्ता जी - सच मे पदमा , आज तुम तुम बिल्कुल कयामत लग रही हो ।
मैं अपने मन मे ही अपने आप को कोसने लगी , ' क्या जरूरत थी इतना सज-धज कर घर से निकलने की , अब फँस गई ना अपनी खूबसूरती की वजह से । '
मैंने गुप्ता जी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बात को पलटते हुए उन्हे कहा -
मैं - गुप्ता जी , आप मेरे करीब ना खड़े हो किसी ने हमे ऐसे देख लिया तो गलत समझेगा ।
गुप्ता जी - यहाँ कोई हमे देखने वाला नहीं है पदमा , एंट्री गेट बंद हो चुका है और यहाँ बोहोत अँधेरा भी है । वैसे भी यहाँ काफी ठंड है पदमा , अगर हम एक दूसरे के करीब रहेंगे तो हमे गरमाई मिलती रहेगी ।
इतना बोलकर गुप्ता जी ने मेरे और भी करीब आकर अपने आप को मुझसे बिल्कुल चिपका दिया और अपने हाथ मेरे कंधों पर रख दिए और अपने गाल को मेरे गाल और अपने होंठों को मेरे कंधे से लगभग बिल्कुल मिल दिया मानो उसे चूमने ही वाले हो ।
![[Image: 1q.gif]](https://i.postimg.cc/vmQ0MX8w/1q.gif)
मैं - आह .. गुप्ता जी इतना करीब होना ठीक नहीं ।
कहते हुए मैं गुप्ता जी की पकड़ से निकलते हुए थोड़ी आगे सरक गई । इससे मैं गुप्ता जी से तो दूर हट गई मगर अगले ही पल गुप्ता जी ने अपने कदम आगे बढ़ाकर मुझे फिर से अपनी पहुँच मे ले लिया और बोले -
गुप्ता जी - पदमा , तुम्हारे बालों की खुशबू से मेरा मन अन्दर तक महक गया है और तुम्हारी इस बैकलेस साड़ी मे तुम्हारी ये कोमल कमर , उफ्फ़ हद है .....
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मैं - क्या बात है गुप्ता जी ? आपका ऐसी बातें बोलने का क्या मकसद है ?
गुप्ता जी - पदमा मैं एक बार तुम्हारी कमर को छु कर देखना चाहता हूँ ।
मैं - नन्न् ... क्यूँ गुप्ता जी , रहने दीजिए आप हर बार ऐसी ही बातें क्यों करते है ?
गुप्ता जी - मैं एक बार बस तुम्हारी कमर की कोमलता को महसूस करना चाहता हूँ ।
ऐसा कहकर गुप्ता जी ने अपना हाथ मेरी बैकलेस साड़ी मे बंधी कमर और पीठ पर धीरे-धीरे फिराया और मेरी धड़कनों के साथ-साथ मेरी साँसों मे भी उछाल आ गया , मेरी कमर गुप्ता जी के हाथों के स्पर्श से मचलते हुए थिरकने लगी ।
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अपनी तेज गति से चलती साँसों पर काबू करने की कोशिश करते हुए गुप्ता जी से कहा -
मैं - गुप्ता जी ... अब .. तो .. आपका .. मन .. भर .. गया .. ना.. अब .. अपने .. हाथों को .. मेरी ... कमर ... से .... दूर ... कर लीजिए ...... ।
गुप्ता जी - क्या तुम्हें ये अच्छा नहीं लग रहा पदमा ?
अब मैं भला गुप्ता जी के इस सवाल का क्या जवाब दूँ ? उन्हे हाँ भी तो नहीं कह सकती वरना वो यहाँ खड़े-2 ही मुझे बर्बाद कर देंगे । वैसे भी उनके होंठ अब भी मेरे कान पर अपनी गरम साँसे छोड़ रहे थे जो मेरे रोम-रोम मे जलन पैदा कर रही थी । गुप्ता जी मेरी पीठ और फिर कमर पर अपने हाथ से शरारत करते हुए नीचे की ओर झुक गए ।
मैं - नन्न् ही ... गुप्ता जी ... आपको .. जो महसूस करना था अपने कर लिया अब कृप्या अपने हाथ हटा लीजिए ।
गुप्ता जी अभी भी नीचे मेरे भारी नितम्बों के पास झुके हुए थे जिसका एहसास मुझे उनके मुहँ से आती गरम साँसों से हो रहा था जैसे ही गुप्ता जी ने ये अल्फ़ाज़ मेरे मुहँ से सुने तो गुप्ता जी कुछ इस अंदाज मे ऊपर की और आए कि अपने हाथ से साथ-2 अपने होंठों को भी मेरी कमर और पीठ से बिल्कुल चिपकाए यहाँ -वहाँ मुझे चूम लिया ।
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अब गुप्ता जी को अपने हाथ मेरी कमर से तो हटा लिए लेकिन वहाँ से हटाते ही , मुझे संभलने का मौका दिए बिना अपने दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से मेरी कमर को थाम लिया और मुझसे बिल्कुल लग गए ।
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"आह .."- धीरे से मेरे होंठों से निकली मैंने सिर्फ पलटकर देखा था इतने मैं ही गुप्ता जी ने अपने होंठ जो अब तक मेरे कानों पर अपनी गरम हवा छोड़ रहे थे उन्हे मेरी गर्दन से चिपका दिया और उस पर जोरों शोरों से चूमा ।
![[Image: 1l.gif]](https://i.postimg.cc/CK4Sxw3r/1l.gif)
मैं - आह ... गुप्ता जी ... आप ... फिर ... नहीं ...
बोलते हुए मैं अपनी गर्दन को जोर से झटका लेकिन गुप्ता जी की कैद से मैं अब भी आजाद नहीं हो पाई । क्योंकि गुप्ता जी ने अपने हाथ मेरी नंगी कमर से गुजारते हुए मेरे पेट के इर्द-गिर्द कस लिए
![[Image: 1h.gif]](https://i.postimg.cc/Rh6kKmYB/1h.gif)
और मुझे ओर भी अपने से चिपका लिया, जैसे चंदन के पेड़ से साँप लिपट जाता है ठीक वैसे ही गुप्ता जी मुझसे लिपटने लगे । मेरी सिल्क साड़ी का पल्लू भी बार-बार सरक जा रहा था और आखिर मेरी पकड़ से छूटकर वो नीचे ही गिर गया । मेरी साँसे तो यूँ ही परवान चढ़ी हुई थी और अब गुप्ता जी की हद से ज्यादा उत्तेजना ने फिर से मेरे अरमानों को भड़का दिया ।
मैं - गुप्ता जी ..... नहीं ... छोड़ .... दीजिए ..... कोई ..... देख लेगा ..... ।
पर गुप्ता जी कहाँ मानने वाले थे उन्होंने मेरी किसी भी बात कि परवाह कीये बिना अपने होंठों से मेरी गर्दन पर लगातार चूमना जारी रखा । इधर गुप्ता जी के होंठ मेरी गर्दन और कंधों पर थिरकते हुए मुझे चूमे जा रहे थे और उधर मेरे अंदर की कामवासना भी मेरे बदन मे एक झुरझुरी लगा रही थी ।
![[Image: 1n.gif]](https://i.postimg.cc/fL42pd26/1n.gif)
गुप्ता जी के हाथ अब सिर्फ पेट और कमर तक सीमित नहीं रहने वाले थे बल्कि अब उन्होंने भी अपना आगे बढ़ने का रास्ता खोज लिया और उनके बेकाबू हाथ मेरी चूचियों तक जा पहुंचे । मेरी चूचियाँ जो गुप्ता जी के पहले स्पर्श से ही फूलनी शुरू हो गई थी अब गुप्ता जी के हाथों के दबाव मे आकर अपने पूरे आकार मे तनने लगी थी । बैंक की उस अंधेरी गैलरी मे किस तरह से मैं अपने होंठों से उखड़ती आहों को रोक रही थी ये बस मैं ही जानती हूँ , अगर मेरे होंठ मेरे दाँतों के नीचे ना दबे होते तो उन्हे भी रोकना नामुमकिन था ।
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