18-11-2022, 11:28 PM
जब तक मैं गली के बाहर सड़क पर पहुँची तब तक एक टेक्सी भी आ गई और मैं तुरंत उसमे बैठ गई ।
वहाँ से बैंक तक का सफर कोई 30 मिनट का था । लगभग 4:35 बजे मैं बैंक के ठिक सामने ऊतर गई,
अभी भी बैंक के बन्द होने मे 25 मिनट बचे थे । बैंक मे दाखिल होने के और बाहर आने के लिए 2 अलग-2 गेट बने हुए थे , एक बार अगर 5 बजे से पहले कोई बैंक के अन्दर चला जाय तो वो किसी भी समय बाहर आ सकता था लेकिन 5 बजे के बाद बैंक मे प्रवेश नामुमकिन था । बैंक के बाहर सुरक्षा के लिए गार्ड्स खड़े रहते थे । मेरे पास अभी समय था और मैं बोहोत ही इतमेनान से बैंक के अन्दर दाखिल हुई सिल्क साड़ी पहने होने की वजह से वो बार सरक जाती थी जिसकी वजह से मेरे दूधिया बूब्स सामने आ जाते ।
जिसे संभालने मे मुझे थोड़ी परेशानी भी हो रही थी । जब मैं बैंक के अन्दर जा रही थी तो गैलरी मे घूमने वाले बैंक के कर्मचारी और दूसरे अपने काम से आए लोग अपनी नज़रों से मुझे घूरते हुए मेरे बेदाग हुस्न का दीदार करने लगे ।
मैं ये सब जानती थी के इन लोगों का ध्यान मेरे जिस्म की खूबसूरती पर है , लेकिन मैंने अपने काम पे ध्यान देते हुए इन सबको नजर-अंदाज किया और अपने अकाउंट की जानकारी लेने के लिए सीधे लेखाकार की मेज पर गई ।
लेखाकार से अपने खाते के बारे मे पुछा और उन्हे अपनी अकाउंट-बुक दिखाई तो उसने मुझे बताया कि "आप एक बार प्रबंधक से मिल ले हो सकता है कि कोई दस्तावेज़ संलग्न करना हो , वैसे तो आपके अकाउंट मे कोई समस्या नहीं है । " मैंने उनकी बात बड़े ही ध्यान से सुनी और प्रबंधक से मिलने के लिए घूमी । और तभी मेरी नज़रों ने अपने बदन के ऊपर चलती हुई किसी की नज़रों का पीछा किया तो पाया उन्हे ........... हाँ उन्हे ही ...... " गुप्ता जी "
गुप्ता जी बिल्कुल मेरे पीछे एक कुर्सी पर टेक लगाए बैठे थे और मुझे एक अलग ही अंदाज से देख रहे थे ।
मुझे समझ नहीं आया कि वो यहाँ इस समय क्यों है ? मगर उन्हे देखते ही मेरी दिल धड़कनों मे एक रुकाव सा आ गया और एक पल के लिए मेरे दिमाग मे गुप्ता जी कि वो ही पुरानी करतूतें घूम गई , आज कितने दिनों बाद मैंने गुप्ता जी को देखा था । मेरे कदम तो जहाँ थे वही रुक गए
और गुप्ता जी मुझे वहीं अपनी जगह पर बैठे हुए ऊपर से नीचे तक हवस भरी निगाहों से घूरने लगे । जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो गुप्ता जी अपनी जगह से उठे और मेरी ओर बढ़ने लगे । गुप्ता जी को अपनी ओर आता देखकर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई , हम एक दूसरे को जानते थे और ऐसे एक दूसरे को देखकर नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता था , बस इंतज़ार था तो इसका कि पहल कौन करे ? और आखिर गुप्ता जी पहल करते हुए मेरे पास आए ।
गुप्ता जी - पदमा , तुम यहाँ ....... ?
मैं - गुप्ता जी नमस्ते । हाँ वो एक जरूरी काम था ।
गुप्ता जी ने मेरी नमस्ते स्वीकार की और कहा - अच्छा , तो काम हो गया क्या ?
मैं - नहीं , बस एक बार प्रबंधक से मिलना है । वैसे आप यहाँ कैसे ?
गुप्ता जी - हाँ , मुझे भी एक बार प्रबंधक से मिलना है ।
मैं - अच्छा , तो आप अभी तक मिले क्यों नहीं ?
गुप्ता जी - मैं जाने ही वाला था , तभी मैंने तुम्हें देखा और फिर सोचा पहले तुमसे ही एक बार बात कर लूँ ।
मैं जान गई थी के गुप्ता जी को प्रबंधक से मिलना होता तो अभी तक चले गए होते यहाँ बैठकर इंतज़ार नहीं कर रहे होते उन्हे तो बस मेरे जिस्म को यहाँ बैठकर ताड़ना और मेरी गदराई जवानी का रस पीना था ।
गुप्ता जी - किस सोच मे डूब गई पदमा ?
मैं - कक् कुछ नहीं गुप्ता जी .. ।
गुप्ता जी - अच्छा तो चलो , प्रबंधक से मिलते है ।
उसके बाद मैं और गुप्ता जी प्रबंधक से मिलने जाने लगे , तभी मुझे दरवाजा बन्द होने की आवाज आई । मैंने अपने मोबाईल मे देखा तो 5 बजे हुए थे इसका मतलब था कि बैंक का प्रवेश द्वार बन्द कर दिया गया है और अब जो लोग बैंक के अन्दर है वो ही बाहर जा सकते है , इसके अलावा कोई अन्दर नहीं आ सकता । मैं और गुप्ता जी गुप्ता जी प्रबंधक से मिलने जा रहे थे , प्रबंधक से मिलने के लिए एक गैलरी से होकर जाना पड़ता था और उस गैलरी मे कोई लाइट का होने की वजह से काफी अंधेरा भी था , इतना कि उसमे खड़े व्यक्ति को गैलरी से बाहर वाला तो दूर खुद आगे खड़ा आदमी भी सही से नहीं देख सकता था । जब मैं और गुप्ता जी वहाँ पहुंचे तो हमारे आगे कुछ लाइन मे लोग खड़े थे केवल मैं और गुप्ता जी सबसे आखिर मे आए थे और हमारे पीछे कोई ओर था भी नहीं क्योंकि एंट्री गेट अब बन्द हो चुका था । मैं गुप्ता जी से आगे नहीं खड़ी होना चाहती थी इसलिए मैंने उनसे कहा - " गुप्ता जी , पहले आप आगे आइये आप मुझसे पहले आए थे । "
मगर गुप्ता जी ने मेरी बात नकारते हुए कहा - " नहीं पदमा पहले तुम ही जाओ , मुझे ज्यादा काम नहीं है , तुम्हारा काम जरूरी है । "
गुप्ता जी की बात का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था तो मुझे उनके आगे लगना ही पड़ा ।
अब स्थिति ये थी कि उस अंधेरी गैलरी मे , मैं खड़ी थी और मेरे बिल्कुल पीछे और हमे देखने वाला उनके पीछे कोई नहीं था , मेरे आगे जो लोग खड़े थे वो मैं उनसे थोड़ा पीछे की ओर हटकर खड़ी थी ताकि उन्हे मेरे और गुप्ता जी की बातें ना सुनाई दें ।
वहाँ से बैंक तक का सफर कोई 30 मिनट का था । लगभग 4:35 बजे मैं बैंक के ठिक सामने ऊतर गई,
अभी भी बैंक के बन्द होने मे 25 मिनट बचे थे । बैंक मे दाखिल होने के और बाहर आने के लिए 2 अलग-2 गेट बने हुए थे , एक बार अगर 5 बजे से पहले कोई बैंक के अन्दर चला जाय तो वो किसी भी समय बाहर आ सकता था लेकिन 5 बजे के बाद बैंक मे प्रवेश नामुमकिन था । बैंक के बाहर सुरक्षा के लिए गार्ड्स खड़े रहते थे । मेरे पास अभी समय था और मैं बोहोत ही इतमेनान से बैंक के अन्दर दाखिल हुई सिल्क साड़ी पहने होने की वजह से वो बार सरक जाती थी जिसकी वजह से मेरे दूधिया बूब्स सामने आ जाते ।
जिसे संभालने मे मुझे थोड़ी परेशानी भी हो रही थी । जब मैं बैंक के अन्दर जा रही थी तो गैलरी मे घूमने वाले बैंक के कर्मचारी और दूसरे अपने काम से आए लोग अपनी नज़रों से मुझे घूरते हुए मेरे बेदाग हुस्न का दीदार करने लगे ।
मैं ये सब जानती थी के इन लोगों का ध्यान मेरे जिस्म की खूबसूरती पर है , लेकिन मैंने अपने काम पे ध्यान देते हुए इन सबको नजर-अंदाज किया और अपने अकाउंट की जानकारी लेने के लिए सीधे लेखाकार की मेज पर गई ।
लेखाकार से अपने खाते के बारे मे पुछा और उन्हे अपनी अकाउंट-बुक दिखाई तो उसने मुझे बताया कि "आप एक बार प्रबंधक से मिल ले हो सकता है कि कोई दस्तावेज़ संलग्न करना हो , वैसे तो आपके अकाउंट मे कोई समस्या नहीं है । " मैंने उनकी बात बड़े ही ध्यान से सुनी और प्रबंधक से मिलने के लिए घूमी । और तभी मेरी नज़रों ने अपने बदन के ऊपर चलती हुई किसी की नज़रों का पीछा किया तो पाया उन्हे ........... हाँ उन्हे ही ...... " गुप्ता जी "
गुप्ता जी बिल्कुल मेरे पीछे एक कुर्सी पर टेक लगाए बैठे थे और मुझे एक अलग ही अंदाज से देख रहे थे ।
मुझे समझ नहीं आया कि वो यहाँ इस समय क्यों है ? मगर उन्हे देखते ही मेरी दिल धड़कनों मे एक रुकाव सा आ गया और एक पल के लिए मेरे दिमाग मे गुप्ता जी कि वो ही पुरानी करतूतें घूम गई , आज कितने दिनों बाद मैंने गुप्ता जी को देखा था । मेरे कदम तो जहाँ थे वही रुक गए
और गुप्ता जी मुझे वहीं अपनी जगह पर बैठे हुए ऊपर से नीचे तक हवस भरी निगाहों से घूरने लगे । जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो गुप्ता जी अपनी जगह से उठे और मेरी ओर बढ़ने लगे । गुप्ता जी को अपनी ओर आता देखकर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई , हम एक दूसरे को जानते थे और ऐसे एक दूसरे को देखकर नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता था , बस इंतज़ार था तो इसका कि पहल कौन करे ? और आखिर गुप्ता जी पहल करते हुए मेरे पास आए ।
गुप्ता जी - पदमा , तुम यहाँ ....... ?
मैं - गुप्ता जी नमस्ते । हाँ वो एक जरूरी काम था ।
गुप्ता जी ने मेरी नमस्ते स्वीकार की और कहा - अच्छा , तो काम हो गया क्या ?
मैं - नहीं , बस एक बार प्रबंधक से मिलना है । वैसे आप यहाँ कैसे ?
गुप्ता जी - हाँ , मुझे भी एक बार प्रबंधक से मिलना है ।
मैं - अच्छा , तो आप अभी तक मिले क्यों नहीं ?
गुप्ता जी - मैं जाने ही वाला था , तभी मैंने तुम्हें देखा और फिर सोचा पहले तुमसे ही एक बार बात कर लूँ ।
मैं जान गई थी के गुप्ता जी को प्रबंधक से मिलना होता तो अभी तक चले गए होते यहाँ बैठकर इंतज़ार नहीं कर रहे होते उन्हे तो बस मेरे जिस्म को यहाँ बैठकर ताड़ना और मेरी गदराई जवानी का रस पीना था ।
गुप्ता जी - किस सोच मे डूब गई पदमा ?
मैं - कक् कुछ नहीं गुप्ता जी .. ।
गुप्ता जी - अच्छा तो चलो , प्रबंधक से मिलते है ।
उसके बाद मैं और गुप्ता जी प्रबंधक से मिलने जाने लगे , तभी मुझे दरवाजा बन्द होने की आवाज आई । मैंने अपने मोबाईल मे देखा तो 5 बजे हुए थे इसका मतलब था कि बैंक का प्रवेश द्वार बन्द कर दिया गया है और अब जो लोग बैंक के अन्दर है वो ही बाहर जा सकते है , इसके अलावा कोई अन्दर नहीं आ सकता । मैं और गुप्ता जी गुप्ता जी प्रबंधक से मिलने जा रहे थे , प्रबंधक से मिलने के लिए एक गैलरी से होकर जाना पड़ता था और उस गैलरी मे कोई लाइट का होने की वजह से काफी अंधेरा भी था , इतना कि उसमे खड़े व्यक्ति को गैलरी से बाहर वाला तो दूर खुद आगे खड़ा आदमी भी सही से नहीं देख सकता था । जब मैं और गुप्ता जी वहाँ पहुंचे तो हमारे आगे कुछ लाइन मे लोग खड़े थे केवल मैं और गुप्ता जी सबसे आखिर मे आए थे और हमारे पीछे कोई ओर था भी नहीं क्योंकि एंट्री गेट अब बन्द हो चुका था । मैं गुप्ता जी से आगे नहीं खड़ी होना चाहती थी इसलिए मैंने उनसे कहा - " गुप्ता जी , पहले आप आगे आइये आप मुझसे पहले आए थे । "
मगर गुप्ता जी ने मेरी बात नकारते हुए कहा - " नहीं पदमा पहले तुम ही जाओ , मुझे ज्यादा काम नहीं है , तुम्हारा काम जरूरी है । "
गुप्ता जी की बात का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था तो मुझे उनके आगे लगना ही पड़ा ।
अब स्थिति ये थी कि उस अंधेरी गैलरी मे , मैं खड़ी थी और मेरे बिल्कुल पीछे और हमे देखने वाला उनके पीछे कोई नहीं था , मेरे आगे जो लोग खड़े थे वो मैं उनसे थोड़ा पीछे की ओर हटकर खड़ी थी ताकि उन्हे मेरे और गुप्ता जी की बातें ना सुनाई दें ।