18-11-2022, 10:40 PM
अशोक तो झड़ने के बाद बिल्कुल बेसुध होकर सो गए , कुछ तो पहले ही शराब के नशे मे थे । मेरे बदन मे अभी भी गर्मी भरी हुई थी और मैं जानती थी के ये मुझे सारी रात सोने नहीं देगी इसलिए मैं भागकर बाथरूम मे गई और अपने कपड़े निकाले बिना ही शावर के नीचे खड़ी हो गई और उसे खोलकर अपने बदन की छुपी हुई गरमी को शांत करने की कोशिश करने लगी ।
" अब मैं क्या करूँ...... अशोक ने तो मुझे आज एक बार फिर अधूरा छोड़ दिया , मेरा रेगिस्तान सी मिट्टी जैसा तपता हुआ बदन आज फिर प्यासा रह गया । अशोक को तो मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है जहां दूसरे मर्द मेरे कामुक जिस्म को देखते ही मुझे भोगने के लिए उमड़ पड़ते है वहाँ मेरे खुद के पति मुझे सही से संतुष्ट भी नहीं कर पाते । " - पानी की गिरती ठंडी बूंदों के साथ ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी ।
ठंडे पानी की इन बूंदों ने मेरे शरीर की ऊपरी गर्मी को कुछ शांत कर दिया पर अन्दर अभी भी एक लावा सा उबल रहा था , जिसे मैं कैसे भी रोक नहीं पा रही थी ।
नहाने के बाद मैंने अपनी ब्रा-पेंटी पहन ली , नाइटी पहनने की मैंने जरूरत नहीं समझी क्योंकि नाइटी मे मेरा बदन कुछ ज्यादा ही मचलता है , ब्रा-पेंटी के कम-से-कम ये कुछ काबू मे तो रहेगा ।
बाथरूम से बाहर आकर बेड पर लेट गई । शरीर की वासना ने मेरे अंदर ऐसी बैचेनी भर दी कि कुछ देर तो मैं सोना तो दूर सही से लेट भी नहीं पाइ बस ऐसे ही करवटें बदलती रही , और आज दिन मे वरुण के साथ हुई घटना की तस्वीरे अपने आप मेरे जहन मे चलने लगी ।
" आज वरुण ने जो किया उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी ना जाने उसमे इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई , पर जो भी हो इसकी जिम्मेदार कहीं ना कही मैं भी हूँ , ना मैं उसे अपने जिस्म का सहारा लेकर उकसाती ना ही ऐसा होता । मुझे समझना चाहिए था की मैं आग से खेल रही हूँ जिसकी आँच मुझ तक भी आ सकती है । " दोनों टांगों के बीच मे अभी भी थोड़ा गीला-पन था जो मुझे परेशानी और मज़ा भी दोनों दे रहा था पर फिर ना जाने कब नींद ने मुझे अपने आगोश मे ले लिया मुझे खुद पता नहीं चला ।
रात मे देर से सोने की वजह से सुबह भी मुझे उठने मे देर ही हो गई लगभग 7 बजे मेरी नींद खुली , अशोक अभी भी मेरी बगल मे सोये पड़े थे । समय देखकर मैं जल्दी से अपने बिस्तर से उठी और अलमारी से एक गाउन निकाल कर पहन लीया
(क्योंकि रात मे मैं बस ब्रा-पेंटी मे सोई थी )और फ्रेश होने वाशरूम मे चली गई । जब मैं बाथरूम से बाहर आई तो अशोक बेड पर नहीं थे और बेडरूम का गेट खुला हुआ था, मैं समझ गई कि अशोक बाहर गए है । मैं भी बेडरूम से बाहर आ गई ओर अशोक के लिए नाश्ता बनाने कीचेन मे चली गई , मेरा मूड बोहोत खराब हो रखा था एक तो अशोक रात मे इतनी देर से सोई और ऊपर से अब जल्दी-2 सारा काम करना पड़ रहा था, मन बिल्कुल चिड़चिड़ा हो गया , तभी अशोक बाथरूम से बाहर आ गए और कीचेन के सामने आकर बोले -
अशोक -" पदमा थोड़ा जल्दी करदों , कहीं लेट ना हो जाए । "
मेरा मन पहले से ही खिन्न था , मेरे एक हाथ मे चमचा और दूसरे मे कढ़ई थी मैंने उसे ही हाथ मे पकड़े हुए कहा - " कर तो रही हूँ थोड़ा टाइम तो लगेगा ही । "
अशोक शायद मेरी बात और भाव को समझ गए और थोड़ा मुसकुराते हुए अपने कपड़े पहनने बेडरूम मे चले गए । जब तक अशोक कपड़े पहनकर आए तब तक मैंने नाश्ता भी तैयार कर दिया अशोक हॉल मे बैठे हुए थे कि तभी टेलेफ़ोन की घंटी बजी । मैं तो किचन मे ही थी तो अशोक ने ही उसे सुना और फिर फोन रख दिया । फिर अशोक नाश्ता करने बैठ गए , नाश्ता करते हुए अशोक ने मुझसे कहा -
अशोक - पदमा !
मैँ - जी ।
अशोक - तुम आज एक बार सिटी बैंक चली जाना ।
मैं - हम्म ????
अशोक - हाँ वो तुम्हारे अकाउंट मे पिछले 6 महीने से कोई ट्रांजेनक्शन नहीं हुई है ना तो वो बोल रहे थे कि एक बार अपना अकाउंट वेरीफाई करवा लो नहीं तो उसे बंद कर देंगे ।
मैं - ठीक है , मैं आज ही चली जाऊँगी ।
मैं अशोक से कल रात नितिन वाली बात को लेकर भी कुछ पूछना चाहती थी । मेरे मन मे उसकी भी एक अलग ही डोर खिंच रही थी , पता नहीं क्या पक रहा था अशोक और रफीक के बीच । पर मुझे अशोक से बात करने का कोई मौका ही नहीं मिला और मैंने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया आखिर मेरा नितिन के साथ तो कोई भविष्य नहीं , ऑफिस मे क्या चल रहा है ये अशोक और नितिन के बीच की बात है , मुझे बस अपने पति और परिवार से मतलब ।
अशोक ठिक 8 बजे नाश्ता करके घर से ऑफिस के लिए निकल गए । अशोक के जाने के बाद मुझे काम से कुछ राहत मिली और मैं आराम से अपने बचे हुए काम निपटाने लगी और लगभग 9 बजे तक मैंने अपने सभी कामों से निजात भी पा ली और नहाने बाथरूम मे चली गई ।
नहाने के बाद , मैंने अपने कपड़े पहने बाथरूम से बाहर आकर एक सिल्क साड़ी पहनी और अपनी इस सुंदरता को मैं खुद ही वहाँ शीशे के सामने खड़ी होकर देखने लगी ।
" तू कितनी सुंदर है पदमा , ये मर्द यूँ ही तुझे देखकर अपना आपा खो देते । अब इसमे वरुण जैसे नौजवान के कदम बहक गए तो इसमे उसका क्या दोष ? वैसे भी उसे उकसाने मे तो पहल तूने खुद ही की थी लेकिन अब ये बात समझ ले की ये तेरे बस की बात नहीं है । कहीं कुछ ऊँच-नीच हो गई तो तू किसी को मुहँ दिखाने लायक नहीं रहेगी । " - मैं खुद अपने आप से बात कर रही थी उसी समय बाहर गेट पर बेल बजी और मेरा ध्यान टूटा , मैं जल्दी से उठकर बाहर आई गेट खोलने गई ।
" अब मैं क्या करूँ...... अशोक ने तो मुझे आज एक बार फिर अधूरा छोड़ दिया , मेरा रेगिस्तान सी मिट्टी जैसा तपता हुआ बदन आज फिर प्यासा रह गया । अशोक को तो मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है जहां दूसरे मर्द मेरे कामुक जिस्म को देखते ही मुझे भोगने के लिए उमड़ पड़ते है वहाँ मेरे खुद के पति मुझे सही से संतुष्ट भी नहीं कर पाते । " - पानी की गिरती ठंडी बूंदों के साथ ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी ।
ठंडे पानी की इन बूंदों ने मेरे शरीर की ऊपरी गर्मी को कुछ शांत कर दिया पर अन्दर अभी भी एक लावा सा उबल रहा था , जिसे मैं कैसे भी रोक नहीं पा रही थी ।
नहाने के बाद मैंने अपनी ब्रा-पेंटी पहन ली , नाइटी पहनने की मैंने जरूरत नहीं समझी क्योंकि नाइटी मे मेरा बदन कुछ ज्यादा ही मचलता है , ब्रा-पेंटी के कम-से-कम ये कुछ काबू मे तो रहेगा ।
बाथरूम से बाहर आकर बेड पर लेट गई । शरीर की वासना ने मेरे अंदर ऐसी बैचेनी भर दी कि कुछ देर तो मैं सोना तो दूर सही से लेट भी नहीं पाइ बस ऐसे ही करवटें बदलती रही , और आज दिन मे वरुण के साथ हुई घटना की तस्वीरे अपने आप मेरे जहन मे चलने लगी ।
" आज वरुण ने जो किया उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी ना जाने उसमे इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई , पर जो भी हो इसकी जिम्मेदार कहीं ना कही मैं भी हूँ , ना मैं उसे अपने जिस्म का सहारा लेकर उकसाती ना ही ऐसा होता । मुझे समझना चाहिए था की मैं आग से खेल रही हूँ जिसकी आँच मुझ तक भी आ सकती है । " दोनों टांगों के बीच मे अभी भी थोड़ा गीला-पन था जो मुझे परेशानी और मज़ा भी दोनों दे रहा था पर फिर ना जाने कब नींद ने मुझे अपने आगोश मे ले लिया मुझे खुद पता नहीं चला ।
रात मे देर से सोने की वजह से सुबह भी मुझे उठने मे देर ही हो गई लगभग 7 बजे मेरी नींद खुली , अशोक अभी भी मेरी बगल मे सोये पड़े थे । समय देखकर मैं जल्दी से अपने बिस्तर से उठी और अलमारी से एक गाउन निकाल कर पहन लीया
(क्योंकि रात मे मैं बस ब्रा-पेंटी मे सोई थी )और फ्रेश होने वाशरूम मे चली गई । जब मैं बाथरूम से बाहर आई तो अशोक बेड पर नहीं थे और बेडरूम का गेट खुला हुआ था, मैं समझ गई कि अशोक बाहर गए है । मैं भी बेडरूम से बाहर आ गई ओर अशोक के लिए नाश्ता बनाने कीचेन मे चली गई , मेरा मूड बोहोत खराब हो रखा था एक तो अशोक रात मे इतनी देर से सोई और ऊपर से अब जल्दी-2 सारा काम करना पड़ रहा था, मन बिल्कुल चिड़चिड़ा हो गया , तभी अशोक बाथरूम से बाहर आ गए और कीचेन के सामने आकर बोले -
अशोक -" पदमा थोड़ा जल्दी करदों , कहीं लेट ना हो जाए । "
मेरा मन पहले से ही खिन्न था , मेरे एक हाथ मे चमचा और दूसरे मे कढ़ई थी मैंने उसे ही हाथ मे पकड़े हुए कहा - " कर तो रही हूँ थोड़ा टाइम तो लगेगा ही । "
अशोक शायद मेरी बात और भाव को समझ गए और थोड़ा मुसकुराते हुए अपने कपड़े पहनने बेडरूम मे चले गए । जब तक अशोक कपड़े पहनकर आए तब तक मैंने नाश्ता भी तैयार कर दिया अशोक हॉल मे बैठे हुए थे कि तभी टेलेफ़ोन की घंटी बजी । मैं तो किचन मे ही थी तो अशोक ने ही उसे सुना और फिर फोन रख दिया । फिर अशोक नाश्ता करने बैठ गए , नाश्ता करते हुए अशोक ने मुझसे कहा -
अशोक - पदमा !
मैँ - जी ।
अशोक - तुम आज एक बार सिटी बैंक चली जाना ।
मैं - हम्म ????
अशोक - हाँ वो तुम्हारे अकाउंट मे पिछले 6 महीने से कोई ट्रांजेनक्शन नहीं हुई है ना तो वो बोल रहे थे कि एक बार अपना अकाउंट वेरीफाई करवा लो नहीं तो उसे बंद कर देंगे ।
मैं - ठीक है , मैं आज ही चली जाऊँगी ।
मैं अशोक से कल रात नितिन वाली बात को लेकर भी कुछ पूछना चाहती थी । मेरे मन मे उसकी भी एक अलग ही डोर खिंच रही थी , पता नहीं क्या पक रहा था अशोक और रफीक के बीच । पर मुझे अशोक से बात करने का कोई मौका ही नहीं मिला और मैंने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया आखिर मेरा नितिन के साथ तो कोई भविष्य नहीं , ऑफिस मे क्या चल रहा है ये अशोक और नितिन के बीच की बात है , मुझे बस अपने पति और परिवार से मतलब ।
अशोक ठिक 8 बजे नाश्ता करके घर से ऑफिस के लिए निकल गए । अशोक के जाने के बाद मुझे काम से कुछ राहत मिली और मैं आराम से अपने बचे हुए काम निपटाने लगी और लगभग 9 बजे तक मैंने अपने सभी कामों से निजात भी पा ली और नहाने बाथरूम मे चली गई ।
नहाने के बाद , मैंने अपने कपड़े पहने बाथरूम से बाहर आकर एक सिल्क साड़ी पहनी और अपनी इस सुंदरता को मैं खुद ही वहाँ शीशे के सामने खड़ी होकर देखने लगी ।
" तू कितनी सुंदर है पदमा , ये मर्द यूँ ही तुझे देखकर अपना आपा खो देते । अब इसमे वरुण जैसे नौजवान के कदम बहक गए तो इसमे उसका क्या दोष ? वैसे भी उसे उकसाने मे तो पहल तूने खुद ही की थी लेकिन अब ये बात समझ ले की ये तेरे बस की बात नहीं है । कहीं कुछ ऊँच-नीच हो गई तो तू किसी को मुहँ दिखाने लायक नहीं रहेगी । " - मैं खुद अपने आप से बात कर रही थी उसी समय बाहर गेट पर बेल बजी और मेरा ध्यान टूटा , मैं जल्दी से उठकर बाहर आई गेट खोलने गई ।