18-11-2022, 10:23 PM
रफीक के जाने के बाद हम दोनों अंदर आ गए , रात काफी हो चुकी थी अशोक भी थके हुए लग रहे थे और नशे मे भी थे । मैं जान गई थी कि अशोक किसी भी समय सोने जा सकते है और ये मैं बिल्कुल नहीं होने देना चाहती थी , आज एक बार फिर मैं दिनभर की घटनाओ से बोहोत उत्तेजित हुई बैठी थी ।
मुझे अशोक का प्यार चाहिए था और इसके लिए मुझे अशोक को सोने जाने से रोकना ही था । अशोक का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए मैं अशोक के सामने ही बैठकर अपनी साड़ी का पल्लू हटाकर अपने गले के हार को ठीक करने का दिखावा करने लगी ।
मेरा मुख्य मकसद तो अशोक को अपनी ओर खींचना था , मैंने ऐसे दिखाया जैसे ये मैं जानबूझकर नहीं कर रही । अशोक फ्रिज के पास खड़े हुए पानी पी रहे थे तभी उनकी नजर मुझ पर भी पड़ गई । पानी पीकर अशोक ने बोतल फ्रिज मे वापस रख दी और एक बार मेरी ओर देखा , मैं अब भी अनजान बनी हुई थी । अशोक मेरी ओर देखकर आगे बढ़े । मुझे लगा मेरी कोशिश कामयाब हुई पर अशोक तो सीधे बेडरूम मे घुस गए , मुझे थोड़ा बुरा तो लगा पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी । मुझे अब बस प्यार की जरूरत थी और वो मुझे अशोक से ही चाहिए था । मैंने अपनी साड़ी निकाल दी ओर उसे वही हॉल के सोफ़े पर रखकर बेडरूम मे पहुँच गई और अपने बेड पर जाकर बैठ गई ।
अशोक इस समय वहाँ नहीं थे , वो वॉशरूम गए थे जैसे ही वो वॉशरूम से बाहर आए उनकी नजरे मुझ पर टिक गई । मैं जान गई के ये ही सही वक्त है अभी अशोक को अपने करीब लाने का । मैंने अपने कानों से अपनी बालियाँ निकाली और खुद उठकर अशोक के पास गई । अशोक करीब जाकर मैंने उसे खुद ही बिस्तर पर गिरा दिया और उसके जिस्म को स्पर्श करती हुई उसकी बाहों मे गिर गई ।
अशोक ने मुझे पलटा और मेरे ऊपर आकर मेरे होंठों पर चूमा मैंने भी उनका साथ देते हुए अपने होंठ खोल दिए और फिर हमारा चुम्बन शुरू हो गया ।
धीरे-2 अशोक मेरे जिस्म पर अपने हाथ फिराते रहे जिससे मेरे जिस्म मे सिहरन और उत्तेजना बढ़ने लगी । मैंने अशोक के जिस्म को अपनी बाहों मे कस लिया और मेरे ब्लाउज मे बँधे बूब्स अशोक की छाती के नीचे दब गए । अब अशोक के लिंग मे भी तनाव आने लगा था फिर अशोक ने मुझे थोड़ा सीधा किया और मेरे पीछे आकर मेरे मेरी कमर और कंधों पर चूमते हुए मेरे ब्लाउज की पट्टी खोल दी
और तुरंत ही ब्लाउज भी उतार दिया । अशोक ने मुझे एक बार फिर अपने नीचे लिटाया और मेरे ऊपर आते हुए अपना अन्डर-वियर निकाल दिया और फिर मेरे पेटीकोट मे हाथ डालकर मेरी पेंटी नीचे खेन्च दी , पेन्टी के निकलते ही अशोक का लिंग मेरी योनि के सामने लहराने लगा । मेरा जिस्म भी अब पिघलने लगा और मैंने अशोक को अपनी बाहों के घेरे मे लेकर अपनी ओर खींचा ।
अशोक भी अब इंतजार नहीं करना चाहते थे अशोक ने अपनी कमर को आगे लाते हुए अपने लिंग को मेरी गीली हो चुकी योनि के द्वार पर लगाया और मेरी दहकती हुई योनि की गरमाई ने खुद ही अशोक के लिंग को अपने अंदर समेट लिया ।
"आह ..... हाँ .. । " जैसे ही अशोक का लिंग मेरी योनि मे गया मेरी आह निकल गई ,
मैं बस चाहती थी के अशोक मेरे साथ एक लंबा संभोग करे । इधर अशोक के धक्के शुरू हुए उधर मेरी कामुक आहें -
मैं - हाँ ... अशोक .... आह .. मुझे प्यार ... करो ... आह ... ओह ... ।
मेरी आहें सुनकर अशोक और भी उत्तेजित हो गए और कराह उठे , ये मेरे लिए अच्छा संकेत नहीं था । अशोक कभी-भी झड़ सकते थे , मैं ये नहीं होने देना चाहती थी इसलिए मैं अशोक को पलटते हुए उनके ऊपर आ गई और उनके ऊपर ही लिंग को अपनी योनि मे मसलने लगी ।
आज मैंने कमान खुद अपने हाथों मे ले ली थी मुझे किसी भी हालत मे चरम-सुख चाहिए था , पर मेरी ये चाल भी कामयाब नहीं हुई अशोक के ऊपर आकर मैंने अभी उछलना शुरू ही किया था कि अशोक ने जोर से कराहते हुए मेरे हाथों को पकड़ा और उनका पानी निकल गया , उनका पहले से ही छोटा लिंग मुरझा गया ।
अभी तो मुझे मज़ा आना शुरू ही हुआ था इतने मे ही अशोक ने मुझसे वो मजा भी छिन लिया , मैंने अशोक के सीने पर हाथ मारते हुए उसे आवाज दी -
" अशोक .... अशोक ..... उठो ना अशोक ..... " पर अब अशोक को खुद ही कोई होश नहीं रहा , दुःखी मन से मैं अशोक के ऊपर से उतरी ।
मुझे अशोक का प्यार चाहिए था और इसके लिए मुझे अशोक को सोने जाने से रोकना ही था । अशोक का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए मैं अशोक के सामने ही बैठकर अपनी साड़ी का पल्लू हटाकर अपने गले के हार को ठीक करने का दिखावा करने लगी ।
मेरा मुख्य मकसद तो अशोक को अपनी ओर खींचना था , मैंने ऐसे दिखाया जैसे ये मैं जानबूझकर नहीं कर रही । अशोक फ्रिज के पास खड़े हुए पानी पी रहे थे तभी उनकी नजर मुझ पर भी पड़ गई । पानी पीकर अशोक ने बोतल फ्रिज मे वापस रख दी और एक बार मेरी ओर देखा , मैं अब भी अनजान बनी हुई थी । अशोक मेरी ओर देखकर आगे बढ़े । मुझे लगा मेरी कोशिश कामयाब हुई पर अशोक तो सीधे बेडरूम मे घुस गए , मुझे थोड़ा बुरा तो लगा पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी । मुझे अब बस प्यार की जरूरत थी और वो मुझे अशोक से ही चाहिए था । मैंने अपनी साड़ी निकाल दी ओर उसे वही हॉल के सोफ़े पर रखकर बेडरूम मे पहुँच गई और अपने बेड पर जाकर बैठ गई ।
अशोक इस समय वहाँ नहीं थे , वो वॉशरूम गए थे जैसे ही वो वॉशरूम से बाहर आए उनकी नजरे मुझ पर टिक गई । मैं जान गई के ये ही सही वक्त है अभी अशोक को अपने करीब लाने का । मैंने अपने कानों से अपनी बालियाँ निकाली और खुद उठकर अशोक के पास गई । अशोक करीब जाकर मैंने उसे खुद ही बिस्तर पर गिरा दिया और उसके जिस्म को स्पर्श करती हुई उसकी बाहों मे गिर गई ।
अशोक ने मुझे पलटा और मेरे ऊपर आकर मेरे होंठों पर चूमा मैंने भी उनका साथ देते हुए अपने होंठ खोल दिए और फिर हमारा चुम्बन शुरू हो गया ।
धीरे-2 अशोक मेरे जिस्म पर अपने हाथ फिराते रहे जिससे मेरे जिस्म मे सिहरन और उत्तेजना बढ़ने लगी । मैंने अशोक के जिस्म को अपनी बाहों मे कस लिया और मेरे ब्लाउज मे बँधे बूब्स अशोक की छाती के नीचे दब गए । अब अशोक के लिंग मे भी तनाव आने लगा था फिर अशोक ने मुझे थोड़ा सीधा किया और मेरे पीछे आकर मेरे मेरी कमर और कंधों पर चूमते हुए मेरे ब्लाउज की पट्टी खोल दी
और तुरंत ही ब्लाउज भी उतार दिया । अशोक ने मुझे एक बार फिर अपने नीचे लिटाया और मेरे ऊपर आते हुए अपना अन्डर-वियर निकाल दिया और फिर मेरे पेटीकोट मे हाथ डालकर मेरी पेंटी नीचे खेन्च दी , पेन्टी के निकलते ही अशोक का लिंग मेरी योनि के सामने लहराने लगा । मेरा जिस्म भी अब पिघलने लगा और मैंने अशोक को अपनी बाहों के घेरे मे लेकर अपनी ओर खींचा ।
अशोक भी अब इंतजार नहीं करना चाहते थे अशोक ने अपनी कमर को आगे लाते हुए अपने लिंग को मेरी गीली हो चुकी योनि के द्वार पर लगाया और मेरी दहकती हुई योनि की गरमाई ने खुद ही अशोक के लिंग को अपने अंदर समेट लिया ।
"आह ..... हाँ .. । " जैसे ही अशोक का लिंग मेरी योनि मे गया मेरी आह निकल गई ,
मैं बस चाहती थी के अशोक मेरे साथ एक लंबा संभोग करे । इधर अशोक के धक्के शुरू हुए उधर मेरी कामुक आहें -
मैं - हाँ ... अशोक .... आह .. मुझे प्यार ... करो ... आह ... ओह ... ।
मेरी आहें सुनकर अशोक और भी उत्तेजित हो गए और कराह उठे , ये मेरे लिए अच्छा संकेत नहीं था । अशोक कभी-भी झड़ सकते थे , मैं ये नहीं होने देना चाहती थी इसलिए मैं अशोक को पलटते हुए उनके ऊपर आ गई और उनके ऊपर ही लिंग को अपनी योनि मे मसलने लगी ।
आज मैंने कमान खुद अपने हाथों मे ले ली थी मुझे किसी भी हालत मे चरम-सुख चाहिए था , पर मेरी ये चाल भी कामयाब नहीं हुई अशोक के ऊपर आकर मैंने अभी उछलना शुरू ही किया था कि अशोक ने जोर से कराहते हुए मेरे हाथों को पकड़ा और उनका पानी निकल गया , उनका पहले से ही छोटा लिंग मुरझा गया ।
अभी तो मुझे मज़ा आना शुरू ही हुआ था इतने मे ही अशोक ने मुझसे वो मजा भी छिन लिया , मैंने अशोक के सीने पर हाथ मारते हुए उसे आवाज दी -
" अशोक .... अशोक ..... उठो ना अशोक ..... " पर अब अशोक को खुद ही कोई होश नहीं रहा , दुःखी मन से मैं अशोक के ऊपर से उतरी ।