18-11-2022, 09:58 PM
मैं अपनी उलझनों से निकलती उतने मे ही मुझे सीढ़ियों पर अशोक और रफीक के कदमों की आहट सुनाई दी । मैं शांत होकर वहीं सोफ़े पर बैठी रही
, तभी रफीक और अशोक मुझे सीढ़ियों से हॉल मे आते हुए दिखे । मैंने अशोक की ओर देखा तो वो नशे मे धुत थे , उनके कदम नशे मे इधर उधर बहक रहे थे । रफीक पर भी नशा चढ़ा हुआ था पर फिर भी वो संतुलन मे लग रहा था उन दोनों को आते देख, मैं अपने सोफ़े से खड़ी हो गई । अशोक और रफीक आए और दोनों सोफ़े पर पसर गए ,मुझे उम्मीद तो नहीं थी पर फिर भी मैंने एक बार अशोक और रफीक से पुछा -
मैं - खाना लगा दूँ ?
अशोक ने मेरी सोच के अनुकूल ना मे जवाब दिया , पर रफीक ने आज हर बार के विपरीत अशोक की बात को काटते हुए कहा -
रफीक - अरे क्या यार अशोक तुम हर बार मुझे पदमा के हाथ के खाने से महरूम कर देते हो ? पर आज मैं नहीं रुकने वाला । पदमा ने इतने प्यार से खाना बनाया है तो मैं तो खाकर ही जाऊँगा ।
रफीक ये सब मेरी ओर देखता हुआ बोल रहा था पर आज ना उसके बोल पहले जैसे सुलझे हुए थे और ना ही उसकी नजरे साफ थी । उसकी निगाहे मेरे ब्लाउज के अंदर दबे हुए मेरे भारी चूचों पर थी ,मानों वो उन्हे ही खाने की बात कर रहा हो जैसे ही मुझे उसकी नज़रों की गुस्ताखी मालूम हुई मैंने तुरंत अपने पल्लू से अपने बूब्स को रफीक की कमीनी निगाहों से छिपाया ।
रफीक की बात पर अशोक ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा - " ठीक यार तू खा ले , मुझे तो भूख नहीं है । मैं यहीं टीवी देखता हूँ थोड़ी देर । "
रफीक - हाँ तू मत खा , रोज तो खाता ही है । आज पदमा का खाना मुझे खाने दे मैं बोहोत भूखा हूँ ।
रफीक ऐसे बोल रहा था जैसे कोई आवारा आदमी बोलता है । मुझे उसके बोलने के लहजे पर थोड़ा अजीब सा भी लगा । मैंने अशोक की ओर देखा तो वो सब बातों से बेखबर टीवी देखने मे लगे थे फिर मैंने रफीक की ओर देखा तो वो तो पहले से मुझे देख रहा था, मैंने रफीक को डाइनिंग टेबल पर बैठने को कहा और खाना लेने कीचेन मे चली गई । कीचेन मे भी मुझे इस बात पर थोड़ा ताज्जुब हो रहा था कि आज रफीक का नजरिया कुछ बदला-2 क्यूँ है और वो भी तब से जब उसने मुझे कीचेन मे ब्लाउज मे देखा था । "क्या सिर्फ एक बार मुझे ब्लाउज मे देखने से रफीक के मन मे खोट आ गया ? या फिर ये बस शराब का नशा है ? " - ये सब बाते मेरे मन मे घर कर बैठी ।
खैर मैं खाना लेकर डाइनिंग टेबल के पास आई और रफीक को खाना परोसने लगी , अब भी रफीक की नज़रों ने वही गुस्ताखी की जो थोड़ी देर पहले की थी और खाना परोसते हुए मेरी चूचियों को घूरने लगी ।
मेरे लिए ये बोहोत ही अजीब और भद्दी परिस्थिति बन गई थी ,इसलिए रफीक को खाना देकर मैं वहाँ से जाने लगी । मैं अभी पीछे मुड़ी ही थी के रफीक ने मुझे पीछे से टोक दिया ।
रफीक - पदमा !
रफीक की आवाज सुनकर मैं उसकी ओर घूमी और बिना कुछ कहे उसकी आँखों मे देखा ।
रफीक - तुम भी बैठो ना मैं अकेले बैठकर नहीं खा सकता ।
मैं - पर ... रफीक मैं तो खाना खा चुकी ।
रफीक - तो कोई बात नहीं पदमा , तुम बस थोड़ी देर यहाँ बैठ जाओ । अकेले तो मैं बोर हो जाऊँगा ।
मैंने एक बार हॉल मे अशोक को देखा वो अपने टीवी मे ही बिजी थे तो मैं रफीक के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई । फिर एक - दो ऐसे ही रफीक के साथ बाते होती रही तभी रफीक ने आगे कहा - " पदमा , तुम भी थोड़ा कुछ खा लो ऐसे अच्छा सा नहीं लगता , मैं खा रहा हूँ और तुम ऐसे ही बैठी हो । "
रफीक के जिद करने पर मैंने भी थोड़ा खाना लिया और खाने लगी सब कुछ ठीक था पर ' रफीक की नजरें नहीं ' ।
मुझे उसके सामने ऐसे बैठने मे बोहोत असहजता हो रही थी । मैं बस चाह रही थी के रफीक का खाना जल्द से जल्द खत्म हो और मैं इस असमंजस से निकलूँ ।
खैर रफीक ने अपना खाना समाप्त किया और जाने के लिए तैयार हो गया । जाने से पहले वो अशोक के पास आया और उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया , मैं भी अशोक के सोफ़े के ऊपर अशोक के पास बैठ गई
और फिर हम तीनों बाते करने लगे फिर बातों ही बातों मे रफीक ने अशोक से कहा - " अरे अशोक तुम तो काफी मोटे से लग रहे हो । "
( जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया था की पिछले कुछ महीनों मे अशोक का वजन काफी बढ़ गया था और उनका पेट भी निकल गया था । )
मैंने अशोक के पेट की ओर इशारा करते हुए कहा - " वहीं तो मैंने इन्हे कितनी बार कहा है की हम दोनों को मॉर्निंग वॉक पर चलना चाहिए , पर ये है कि मेरी बात सुनते ही नहीं । "
अशोक - अरे कहाँ यार ...... , इतना टाइम ही कहाँ मिलता है ? सुबह ऑफिस शाम को घर ।
रफीक - फिर भी स्वास्थ्य के साथ समझोता नहीं करना चाहिए ।
मैं - बिल्कुल , इसलिए आप को कल से मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर चलना ही होगा ।
अशोक(हँसते हुए ) - बीवी जी ये तो मुश्किल है , पर तुम जा सकती हो तुम्हें थोड़े ही रोका है मैंने ।
मैं - देख रहे हो रफीक ।
रफीक - हम्म , वैसे पदमा मॉर्निंग वॉक से ज्यादा योगा फायदेमंद होता है ।
मैं - हाँ ..... पर मुझे वो करना नहीं आता ।
रफीक ( थोड़ी मुस्कुराहट से )- इसमे कोई बड़ी बात नहीं, मैं तुम्हें सीखा सकता हूँ ।
मैंने थोड़ी हैरानी से एक बार रफीक की ओर फिर अशोक की ओर देखा , अशोक को कुछ ना बोलता पाकर मैंने ही रफीक से उल्टा सवाल किया - " तुम ...? पर तुम तो मनोवैज्ञानिक डॉक्टर हो ना , फिर योगा कैसे जानते हो । "
रफीक ने तेजी से मेरे सवाल का जवाब दिया , जैसे पहले से ही उसके लिए तैयार हो -
रफीक - हाँ हाँ .. । मेरे पास भी कई मरीज ऐसे आते है जिन्हे अपना मानसिक तनाव दूर करने के लिए योगा की सलाह दी जाती है इसलिए मनोवैज्ञानिक डॉक्टर होने के साथ-साथ मैं एक योगाचार्य भी हूँ ।
रफीक इतना कहकर चुप हो गया और मेरे पास आगे कुछ कहने को रह नहीं गया , मुझे तो लगा जैसे मैंने रफीक के सामने अशोक की सेहत की बात करके ही कोई गलती कर दी । मैं तो कुछ नहीं बोली मैं चाह रही थी के ये बात यहीं खत्म हो जाए , पर अशोक ने बीच मे बोलकर मुझे फिर से इसमे फँसा दिया -
अशोक - हाँ पदमा रफीक ठीक ही तो कह रहा है , अगर तुमने योगा सीख लिया तो फिर तुम मुझे भी सीखा सकती हो और फिर हम दोनों साथ मे योगा कर लिया करेंगे ।
मुझे अब भी कोई जवाब नहीं सूझ रहा था , मैंने रफीक की ओर देखा तो वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था और उसकी आँखों मे एक अजीब सी कशिश थी । मेरे मन मे ना जाने क्यूँ उथल-पुथल मची हुई थी ओर एक भाव मन मे था -' हाँ मत कर देना पदमा , कहीं ये तेरा कोई गलत कदम ना साबित हो । '
मैंने अशोक की बात पर केवल इतना उत्तर दिया - " बात तो आपकी ठीक है, पर ..... । "
मेरे इतना ही बोलने पर अशोक ने बोल दिया - " बस ठीक है फिर तुम पदमा को योगा सीखा सकते हो रफीक बोलो कब शुरू करोगे । "
अशोक के इस जल्दबाजी भरे जवाब से मैं हैरान थी , पर मुझे कुछ कहने का मौका ही कहा मिला । मैं तो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई और अशोक ने इतने मे ही रफीक को इजाजत भी दे दी ।
रफीक - जब पदमा कहें , क्यूँ पदमा क्या ख्याल है ?
मुझे अब भी कोई जवाब देना सही नहीं लगा , मैं बस रफीक को घर आने से रोकने का कोई बहाना तलाश रही थी ।
मैं - .......वो अभी थोड़ी सर्दी होती है ना सुबह इसलिए कुछ दिनों बाद शुरू करते है रफीक , मैं तुम्हें बता दूँगी ।
अशोक - ओके । thats great .
मेरी बात सुनकर रफीक के चेहरे पर खुशी की जो लकीरे छाई हुई थी वो तो मिट सी गई और वो बिल्कुल गंभीर भाव मे बैठ गया थोड़ी देर बाद रफीक के जाने का समय हो गया और इसके बाद रफीक जाने के लिए उठा । मैं और अशोक उसे दरवाजे तक छोड़ने गए । दरवाजे पर रफीक ने हमे शुभ-रात्री कहा , जवाब मे मैंने भी उसे गुड नाइट कहकर विदा कर दिया ।
जाते हुए भी रफीक के चेहरे पर एक अजीब सी कुटिल मुस्कान थी , मानों उसने कुछ जीत लिया हो । वैसे तो मुझे रफीक से कोई परेशानी नहीं थी पर आज की उसकी हरकतों और निगाहों की बदसलूखी ने काफी कुछ बदल दिया । अशोक का रफीक से मुझे योगा सीखाने का फैसला कितना सही साबित होने वाला था ये तो आने वाला वक्त ही जानता है । पर मैंने इसके लिए योजना बना ली थी अब मुझे रफीक को योगा के लिए बुलाना ही नहीं था ।
, तभी रफीक और अशोक मुझे सीढ़ियों से हॉल मे आते हुए दिखे । मैंने अशोक की ओर देखा तो वो नशे मे धुत थे , उनके कदम नशे मे इधर उधर बहक रहे थे । रफीक पर भी नशा चढ़ा हुआ था पर फिर भी वो संतुलन मे लग रहा था उन दोनों को आते देख, मैं अपने सोफ़े से खड़ी हो गई । अशोक और रफीक आए और दोनों सोफ़े पर पसर गए ,मुझे उम्मीद तो नहीं थी पर फिर भी मैंने एक बार अशोक और रफीक से पुछा -
मैं - खाना लगा दूँ ?
अशोक ने मेरी सोच के अनुकूल ना मे जवाब दिया , पर रफीक ने आज हर बार के विपरीत अशोक की बात को काटते हुए कहा -
रफीक - अरे क्या यार अशोक तुम हर बार मुझे पदमा के हाथ के खाने से महरूम कर देते हो ? पर आज मैं नहीं रुकने वाला । पदमा ने इतने प्यार से खाना बनाया है तो मैं तो खाकर ही जाऊँगा ।
रफीक ये सब मेरी ओर देखता हुआ बोल रहा था पर आज ना उसके बोल पहले जैसे सुलझे हुए थे और ना ही उसकी नजरे साफ थी । उसकी निगाहे मेरे ब्लाउज के अंदर दबे हुए मेरे भारी चूचों पर थी ,मानों वो उन्हे ही खाने की बात कर रहा हो जैसे ही मुझे उसकी नज़रों की गुस्ताखी मालूम हुई मैंने तुरंत अपने पल्लू से अपने बूब्स को रफीक की कमीनी निगाहों से छिपाया ।
रफीक की बात पर अशोक ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा - " ठीक यार तू खा ले , मुझे तो भूख नहीं है । मैं यहीं टीवी देखता हूँ थोड़ी देर । "
रफीक - हाँ तू मत खा , रोज तो खाता ही है । आज पदमा का खाना मुझे खाने दे मैं बोहोत भूखा हूँ ।
रफीक ऐसे बोल रहा था जैसे कोई आवारा आदमी बोलता है । मुझे उसके बोलने के लहजे पर थोड़ा अजीब सा भी लगा । मैंने अशोक की ओर देखा तो वो सब बातों से बेखबर टीवी देखने मे लगे थे फिर मैंने रफीक की ओर देखा तो वो तो पहले से मुझे देख रहा था, मैंने रफीक को डाइनिंग टेबल पर बैठने को कहा और खाना लेने कीचेन मे चली गई । कीचेन मे भी मुझे इस बात पर थोड़ा ताज्जुब हो रहा था कि आज रफीक का नजरिया कुछ बदला-2 क्यूँ है और वो भी तब से जब उसने मुझे कीचेन मे ब्लाउज मे देखा था । "क्या सिर्फ एक बार मुझे ब्लाउज मे देखने से रफीक के मन मे खोट आ गया ? या फिर ये बस शराब का नशा है ? " - ये सब बाते मेरे मन मे घर कर बैठी ।
खैर मैं खाना लेकर डाइनिंग टेबल के पास आई और रफीक को खाना परोसने लगी , अब भी रफीक की नज़रों ने वही गुस्ताखी की जो थोड़ी देर पहले की थी और खाना परोसते हुए मेरी चूचियों को घूरने लगी ।
मेरे लिए ये बोहोत ही अजीब और भद्दी परिस्थिति बन गई थी ,इसलिए रफीक को खाना देकर मैं वहाँ से जाने लगी । मैं अभी पीछे मुड़ी ही थी के रफीक ने मुझे पीछे से टोक दिया ।
रफीक - पदमा !
रफीक की आवाज सुनकर मैं उसकी ओर घूमी और बिना कुछ कहे उसकी आँखों मे देखा ।
रफीक - तुम भी बैठो ना मैं अकेले बैठकर नहीं खा सकता ।
मैं - पर ... रफीक मैं तो खाना खा चुकी ।
रफीक - तो कोई बात नहीं पदमा , तुम बस थोड़ी देर यहाँ बैठ जाओ । अकेले तो मैं बोर हो जाऊँगा ।
मैंने एक बार हॉल मे अशोक को देखा वो अपने टीवी मे ही बिजी थे तो मैं रफीक के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई । फिर एक - दो ऐसे ही रफीक के साथ बाते होती रही तभी रफीक ने आगे कहा - " पदमा , तुम भी थोड़ा कुछ खा लो ऐसे अच्छा सा नहीं लगता , मैं खा रहा हूँ और तुम ऐसे ही बैठी हो । "
रफीक के जिद करने पर मैंने भी थोड़ा खाना लिया और खाने लगी सब कुछ ठीक था पर ' रफीक की नजरें नहीं ' ।
मुझे उसके सामने ऐसे बैठने मे बोहोत असहजता हो रही थी । मैं बस चाह रही थी के रफीक का खाना जल्द से जल्द खत्म हो और मैं इस असमंजस से निकलूँ ।
खैर रफीक ने अपना खाना समाप्त किया और जाने के लिए तैयार हो गया । जाने से पहले वो अशोक के पास आया और उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया , मैं भी अशोक के सोफ़े के ऊपर अशोक के पास बैठ गई
और फिर हम तीनों बाते करने लगे फिर बातों ही बातों मे रफीक ने अशोक से कहा - " अरे अशोक तुम तो काफी मोटे से लग रहे हो । "
( जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया था की पिछले कुछ महीनों मे अशोक का वजन काफी बढ़ गया था और उनका पेट भी निकल गया था । )
मैंने अशोक के पेट की ओर इशारा करते हुए कहा - " वहीं तो मैंने इन्हे कितनी बार कहा है की हम दोनों को मॉर्निंग वॉक पर चलना चाहिए , पर ये है कि मेरी बात सुनते ही नहीं । "
अशोक - अरे कहाँ यार ...... , इतना टाइम ही कहाँ मिलता है ? सुबह ऑफिस शाम को घर ।
रफीक - फिर भी स्वास्थ्य के साथ समझोता नहीं करना चाहिए ।
मैं - बिल्कुल , इसलिए आप को कल से मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर चलना ही होगा ।
अशोक(हँसते हुए ) - बीवी जी ये तो मुश्किल है , पर तुम जा सकती हो तुम्हें थोड़े ही रोका है मैंने ।
मैं - देख रहे हो रफीक ।
रफीक - हम्म , वैसे पदमा मॉर्निंग वॉक से ज्यादा योगा फायदेमंद होता है ।
मैं - हाँ ..... पर मुझे वो करना नहीं आता ।
रफीक ( थोड़ी मुस्कुराहट से )- इसमे कोई बड़ी बात नहीं, मैं तुम्हें सीखा सकता हूँ ।
मैंने थोड़ी हैरानी से एक बार रफीक की ओर फिर अशोक की ओर देखा , अशोक को कुछ ना बोलता पाकर मैंने ही रफीक से उल्टा सवाल किया - " तुम ...? पर तुम तो मनोवैज्ञानिक डॉक्टर हो ना , फिर योगा कैसे जानते हो । "
रफीक ने तेजी से मेरे सवाल का जवाब दिया , जैसे पहले से ही उसके लिए तैयार हो -
रफीक - हाँ हाँ .. । मेरे पास भी कई मरीज ऐसे आते है जिन्हे अपना मानसिक तनाव दूर करने के लिए योगा की सलाह दी जाती है इसलिए मनोवैज्ञानिक डॉक्टर होने के साथ-साथ मैं एक योगाचार्य भी हूँ ।
रफीक इतना कहकर चुप हो गया और मेरे पास आगे कुछ कहने को रह नहीं गया , मुझे तो लगा जैसे मैंने रफीक के सामने अशोक की सेहत की बात करके ही कोई गलती कर दी । मैं तो कुछ नहीं बोली मैं चाह रही थी के ये बात यहीं खत्म हो जाए , पर अशोक ने बीच मे बोलकर मुझे फिर से इसमे फँसा दिया -
अशोक - हाँ पदमा रफीक ठीक ही तो कह रहा है , अगर तुमने योगा सीख लिया तो फिर तुम मुझे भी सीखा सकती हो और फिर हम दोनों साथ मे योगा कर लिया करेंगे ।
मुझे अब भी कोई जवाब नहीं सूझ रहा था , मैंने रफीक की ओर देखा तो वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था और उसकी आँखों मे एक अजीब सी कशिश थी । मेरे मन मे ना जाने क्यूँ उथल-पुथल मची हुई थी ओर एक भाव मन मे था -' हाँ मत कर देना पदमा , कहीं ये तेरा कोई गलत कदम ना साबित हो । '
मैंने अशोक की बात पर केवल इतना उत्तर दिया - " बात तो आपकी ठीक है, पर ..... । "
मेरे इतना ही बोलने पर अशोक ने बोल दिया - " बस ठीक है फिर तुम पदमा को योगा सीखा सकते हो रफीक बोलो कब शुरू करोगे । "
अशोक के इस जल्दबाजी भरे जवाब से मैं हैरान थी , पर मुझे कुछ कहने का मौका ही कहा मिला । मैं तो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई और अशोक ने इतने मे ही रफीक को इजाजत भी दे दी ।
रफीक - जब पदमा कहें , क्यूँ पदमा क्या ख्याल है ?
मुझे अब भी कोई जवाब देना सही नहीं लगा , मैं बस रफीक को घर आने से रोकने का कोई बहाना तलाश रही थी ।
मैं - .......वो अभी थोड़ी सर्दी होती है ना सुबह इसलिए कुछ दिनों बाद शुरू करते है रफीक , मैं तुम्हें बता दूँगी ।
अशोक - ओके । thats great .
मेरी बात सुनकर रफीक के चेहरे पर खुशी की जो लकीरे छाई हुई थी वो तो मिट सी गई और वो बिल्कुल गंभीर भाव मे बैठ गया थोड़ी देर बाद रफीक के जाने का समय हो गया और इसके बाद रफीक जाने के लिए उठा । मैं और अशोक उसे दरवाजे तक छोड़ने गए । दरवाजे पर रफीक ने हमे शुभ-रात्री कहा , जवाब मे मैंने भी उसे गुड नाइट कहकर विदा कर दिया ।
जाते हुए भी रफीक के चेहरे पर एक अजीब सी कुटिल मुस्कान थी , मानों उसने कुछ जीत लिया हो । वैसे तो मुझे रफीक से कोई परेशानी नहीं थी पर आज की उसकी हरकतों और निगाहों की बदसलूखी ने काफी कुछ बदल दिया । अशोक का रफीक से मुझे योगा सीखाने का फैसला कितना सही साबित होने वाला था ये तो आने वाला वक्त ही जानता है । पर मैंने इसके लिए योजना बना ली थी अब मुझे रफीक को योगा के लिए बुलाना ही नहीं था ।