09-11-2022, 12:28 AM
कमर से ऊपर हम दोनों एक दूसरे के शरीर को रगड़ रहें थे। दोनों को कोई जल्दी नहीं थी, सच पूछो तो इत्मीनान से चुदाई के खेल का आनंद कई गुणा बढ़ जाता हैं।
मंजू के अंदर की उत्तेजना लगातार बढ़ रही थी। इसी बीच मंजू मेरे शरीर के ऊपर से उठी और मेरे जीन्स की बटन और चेन को खोलकर अपना मुँह रगड़ने लगी। मेरे अंडरवियर के ऊपर मंजू अपना मुँह फेर रही थी फिर उसने मेरे जीन्स को नीचे किया। फिर उसने मेरे अंडरवियर को नीचे किया और अब मैं पूरा नंगा था। मंजू फिर अपनी दो उंगलियों को मेरे लंड पर फेरने लगी। इससे मेरा लंड और तन गया।
आज मैंने सोच रखा था कि मंजू को जितना हो सके तड़पाना है मेरे लंड के लिए। मंजू मेरे लंड को सहलाने के बाद उसको अपने हाथों में लिया और अपने होंठो से मेरे लंड को दबा लिया। उसने मेरे लंड के आधे हिस्से को मुँह में भर लिया और उसे अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। मेरा लंड भी अपनी उत्तेजना की तीव्रता पर था और मुझे लग रहा था कि मैं उसके मुँह में ही वीर्य छोड़ दूँगा जो मैं इस वक्त नहीं चाह रहा था। शायद मंजू भी बेचैन ज्यादा हो रही थी थोड़ी देर लंड को अंदर बाहर करने के बाद उसने लंड को बाहर निकाल दिया और किसी तरह मैंने खुद को और अपने लंड को संभाला।
मंजू की बेचैनी माहौल को और कामुक बना रही थी। मंजू कमर के ऊपर नंगी थी लेकिन अभी भी कमर से उसके साड़ी बँधी थी। अब मैंने मंजू को फिर बिस्तर पर पलटा और उसके नाभि के पास किस करने लगा। नाभि और उसके नीचे चाटने से मंजू कामुकता की सीमा को पार कर रही थी। फिर मैंने अपने होंठो से उसकी साड़ी जो कमर पर बँधी थी, उसको खींचा। जितनी मंजू बेचैन थी उतनी साड़ी भी बेचैन थी खुद को मंजू से अलग होने को। मैंने हल्के से खींचा और मंजू की साड़ी ने उसका साथ छोड़ दिया। अब मंजू अपने बड़े बड़े बूब्स को दिखा रही थी लेकिन कमर पर पेटीकोट बंधी थी।
मैंने उसकी पेटीकोट की डोरी को भी खोल दिया और उसकी पीठ के नीचे अपना हाथ रखा। इससे मैंने आसानी से पेटीकोट को नीचे खींचा। मंजू अब बस अपनी पतली सी पैंटी में थी। ओ पैंटी किसी तरह उसकी चुत को ढक पा रही थी। पैंटी का पिछला हिस्सा डोरी जैसा था जो उसकी गांड की दरारों में धसा जा रहा था।
मैंने अब मंजू को अपने गोद में उठा लिया और कमरे का दरवाजा खोला। मंजू जो अपने चुत में मेरा लंड लेने को बेताब थी ओ दरवाजा खुलते ही चौंक गई।
मंजू मेरी तरफ चकित हो कर देख रही थी और मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था। मंजू को गोद में उठाएं मैं छत की ओर बढ़ा।
रात्रि के लगभग 1 बज रहें होंगे, चारों तरफ अंधेरा था। छत पर मैं मंजू को लेकर पहुँचा। छत पर स्ट्रीट लाइट्स से हल्की हल्की रोशनी आ रही थी।
छत पर एक कुर्सी लगी थी जिसपर मैं बैठा और मंजू को नीचे जमीन पर रखा। मंजू अपने दोनों हाथ मेरे घुटने पर रख कर बैठ गई। मैंने अपने लंड से मंजू के गालों को सहलाया। ऐसा करते वक्त मेरे पैर से मंजू की पैंटी छू गई और मुझे गीलेपन का एहसास हुआ, मतलब मंजू अपना पानी छोर चुकी थी।
मंजू के अंदर की उत्तेजना लगातार बढ़ रही थी। इसी बीच मंजू मेरे शरीर के ऊपर से उठी और मेरे जीन्स की बटन और चेन को खोलकर अपना मुँह रगड़ने लगी। मेरे अंडरवियर के ऊपर मंजू अपना मुँह फेर रही थी फिर उसने मेरे जीन्स को नीचे किया। फिर उसने मेरे अंडरवियर को नीचे किया और अब मैं पूरा नंगा था। मंजू फिर अपनी दो उंगलियों को मेरे लंड पर फेरने लगी। इससे मेरा लंड और तन गया।
आज मैंने सोच रखा था कि मंजू को जितना हो सके तड़पाना है मेरे लंड के लिए। मंजू मेरे लंड को सहलाने के बाद उसको अपने हाथों में लिया और अपने होंठो से मेरे लंड को दबा लिया। उसने मेरे लंड के आधे हिस्से को मुँह में भर लिया और उसे अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। मेरा लंड भी अपनी उत्तेजना की तीव्रता पर था और मुझे लग रहा था कि मैं उसके मुँह में ही वीर्य छोड़ दूँगा जो मैं इस वक्त नहीं चाह रहा था। शायद मंजू भी बेचैन ज्यादा हो रही थी थोड़ी देर लंड को अंदर बाहर करने के बाद उसने लंड को बाहर निकाल दिया और किसी तरह मैंने खुद को और अपने लंड को संभाला।
मंजू की बेचैनी माहौल को और कामुक बना रही थी। मंजू कमर के ऊपर नंगी थी लेकिन अभी भी कमर से उसके साड़ी बँधी थी। अब मैंने मंजू को फिर बिस्तर पर पलटा और उसके नाभि के पास किस करने लगा। नाभि और उसके नीचे चाटने से मंजू कामुकता की सीमा को पार कर रही थी। फिर मैंने अपने होंठो से उसकी साड़ी जो कमर पर बँधी थी, उसको खींचा। जितनी मंजू बेचैन थी उतनी साड़ी भी बेचैन थी खुद को मंजू से अलग होने को। मैंने हल्के से खींचा और मंजू की साड़ी ने उसका साथ छोड़ दिया। अब मंजू अपने बड़े बड़े बूब्स को दिखा रही थी लेकिन कमर पर पेटीकोट बंधी थी।
मैंने उसकी पेटीकोट की डोरी को भी खोल दिया और उसकी पीठ के नीचे अपना हाथ रखा। इससे मैंने आसानी से पेटीकोट को नीचे खींचा। मंजू अब बस अपनी पतली सी पैंटी में थी। ओ पैंटी किसी तरह उसकी चुत को ढक पा रही थी। पैंटी का पिछला हिस्सा डोरी जैसा था जो उसकी गांड की दरारों में धसा जा रहा था।
मैंने अब मंजू को अपने गोद में उठा लिया और कमरे का दरवाजा खोला। मंजू जो अपने चुत में मेरा लंड लेने को बेताब थी ओ दरवाजा खुलते ही चौंक गई।
मंजू मेरी तरफ चकित हो कर देख रही थी और मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था। मंजू को गोद में उठाएं मैं छत की ओर बढ़ा।
रात्रि के लगभग 1 बज रहें होंगे, चारों तरफ अंधेरा था। छत पर मैं मंजू को लेकर पहुँचा। छत पर स्ट्रीट लाइट्स से हल्की हल्की रोशनी आ रही थी।
छत पर एक कुर्सी लगी थी जिसपर मैं बैठा और मंजू को नीचे जमीन पर रखा। मंजू अपने दोनों हाथ मेरे घुटने पर रख कर बैठ गई। मैंने अपने लंड से मंजू के गालों को सहलाया। ऐसा करते वक्त मेरे पैर से मंजू की पैंटी छू गई और मुझे गीलेपन का एहसास हुआ, मतलब मंजू अपना पानी छोर चुकी थी।