30-10-2022, 12:09 AM
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पार्ट २५: गांड का उद्घाटन !
मैंने घर में बहाना बनाया की ब्यूटी पारलर वाली के पास मेक उप फाइनल करने के लिये जाना हैं. ओर मैं होटल ब्लू स्टार चली गयी. मैंने कमरे की घंटी बजायी, बंटी ने दरवाजा खोला. उसके चहरे का तेज गायब हो गया था. उसकी मुस्कान खो गयी थी. वह बहुत उदास लग रहा था. उसकी आँखों में हमेशा की तरह चमक की जगह आज दर्द ही दर्द था. मैं बहुत दुखी हो गयी. उसने मुझे जोर से पकड़ लिया और जोर जोर से रोने लगा.
मैं भी उसके बाँहों में समेट कर उसके साथ रोने लगी.
बंटी: मुझे लगा तू नहीं आयेगी. तू नहीं आती तो शायद मैं मर जाता.
मैं: ऐसे मत बोलो बंटी. मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ. कैसे नहीं आती..
बंटी: चलो संध्या मेरे साथ ..हम लोग भाग कर शादी करते है..
मैं:नहीं बंटी..मैं ऐसा नहीं कर सकती. मेरे पापा का नाम ख़राब नहीं कर सकती. क्या तुम चाहते हो की तुम्हारे मामा का नाम कलंकित हो जाये.
बंटी: फिर मैं क्या करू संध्या. तेरे बिना मैं कैसे जी सकता हूँ.
मैं: अब कुछ नहीं कर सकते, बंटी बहुत देर हो गयी.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या..मैंने सिर्फ तुम्हारे ख्वाब देखे है. मेरे प्यार को ऐसे मत तोड़ो. मेरे दिल की आह लग जायेगी तुझे.
मैं: बंटी प्लीज ऐसे मत कहो..तुम मुझे ऐसे कोस नहीं सकते..प्यार करते हो तो बद-दुवा मत दो.
बंटी: कैसे बदुआ दूंगा तुझे संध्या..मैं तुझे अपने जान से ज्यादा प्यार करता हूँ.. करके बंटी मुझे चूमने लगा.
मैं: क्या करती मैं बंटी. मैं तेरे साथ गांव में भी रह लेती. खेतों में जाती. तेरे साथ गाय-भैंसों का दूध भी निकालती.. मैं तेरे साथ बहुत खुश रहती. पर अब बहुत देर हो गयी सब को.
बंटी: मैं मर जाऊंगा ..! जी नहीं पाउँगा संध्या.. !
उसने मेरे होंठ चूस लये और उसकी जीभ मेरे मुँह में डाल दी. मुझे बंटी को शांत करना था..वह तिल तिल मर रह था. अपने प्यार से मैं उसको शांत कर दूंगी..समजा दूंगी. मैं भी उसको पागलों की तरह प्यार करने लगी. यह मेरे मन की ग्लानि थी या बंटी के प्रति प्यार, मैं उसके प्यार में डूबती चली गयी. मुझे कुछ नहीं समज में आ रहा था. सब जगह बंटी ही बंटी नजर आ रहा था. मन में तूफान उठ रहा..था..मैं बंटी से हमेशा के लिए बिछड़ जाउंगी. बंटी ने कुछ सेकंड में ही हम दोनों को नंगा कर दिया था. उसके सर पर भूत सँवार था. उसने मुझे बिस्तर पर सुला दिया, मेरे पैर ऊपर कर दिए और एक झटके में उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में ड़ाल दिया. में जोर से चिल्ला उठी..आह बंटी...मर जाउंगी. .. धीरे..!
पर बंटी को कोई फरक नहीं पड़ रहा था.
बंटी: हाँ संध्या..हम दोनों तो ऐसे ही मर जायेंगे.. !
बंटी मुझे..जोर जोर से किसी मशीन की तरह चोद रहा था. एक मुर्दे की तरह !. मेरी चूत कई बार गीली हो कर झड़ गयी..पर उसके चहरे पर कोई भाव नहीं था. उसका गुस्सा बढ़ रहा था. मैं उसको अपने सीने से लिपटना चाहती थी, प्यार करना चाहती थी..पर वो वैसे ही खड़ा खड़ा मुझे चोदे जा रह था.
उसने मेरे पैर पुरे ऊपर छाती से लगा दिए और मेरी गांड एकदम ऊपर कर दी... उसने अपना लण्ड धीरे मेरी चूत से निकाला..और मेरी गांड पर रख दिया..
में: नहीं बंटी..प्लीज..ऐसे मत करो..मैंने कभी नहीं किया !...
मैं कुछ और कहती, उसके पहले ही बंटी ने मुझे जोरदार धक्का दिया और उसका लण्ड मेरी गांड में आधा चला गया. मेरे चूत के पाणी से उसका लण्ड पहले ही चिकना हो गया था.
मैं: आह ! मर गयी..प्लीज निकल दो..उफ़..बंटी रहम करो.
मैंने जोर जोर से रोने लगी. मैं तड़प कर छटपटा रही थी. पर बंटी ने मुझे कास के पकड़ रखा था. मेरी गांड में भीषण दर्द हो रह था.
बंटी: संध्या तेरी गांड का उद्घाटन मैं अपनी सुहागरात को प्यार से करनेवाला था. पर अब कोई रास्ता नहीं हैं. तेरे पर पहला हक मेरा था ना
बंटी ने कस के मेरी गांड पकड़ ली और धीरे धीरे अपन लण्ड मेरी गांड में पेलने लगा. मैं तड़प कर रो रही थी. इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुवा था. पर बंटी मेरी गांड पकड़ पकड़ कर जंगली की तरह चोदे जा रहा था.
बंटी: ले रंडी..कर ले उस अनीश से शादी..फिर कभी इसके बाद तुझे नहीं मिलूंगा.
मैं बस रोये जा रही थी, पर बंटी ने कोई रहम नहीं किया..उसने अब उसका पूरा मोटा काला 8 इंच का नाग मेरे गांड मैं ड़ाल दिया था. उसका केले जैसे आकiर का लण्ड..मेरी गांड को हर जगह छू रहा था. मेरा दर्द अब कम हो गया था..और मैं..गीली हो रही थी. बंटी धके पर धक्के मार रहा था.
मैं..आह बंटी..प्लीज..धीरे..मैं फिर से कसमसा गयी..
मैंने बंटी को अपने दोनों हातों जोर से मेरे तरफ खिंच लिया और उसके ओंठो को चूसने लगी...और गरम हो कर थरथरा कर जोर से झड़ने लगी.. मेरी चूत से पाणी की गंगा बहने लगी थी. मेरे ऐसे करने से बंटी ने भी कई झटके मेरी गांड में लगाये और मेरी गांड में उसका गरम पाणी ड़ाल दिया. वह बहुत देर तक मेरे ओंठों को चूसता रहा, अपनी जीभ मेरे मुँह में डालता रहा. मैं भी उसकी जीभ पागल जैसे चाट लेती..उसको बहुत प्यार करती, जैसे की मेरे जीवन का आखरी दिन है. बंटी का लण्ड अभी भी मेरी गांड में फंसा था..खड़ा था..बिलकुल सिकुड़ा नहीं था.
बंटी ने वैसे हे मेरे जीभ को ओर ओंठों को चूसते हुए.. अपना लण्ड मेरी गांड से धीरे से निकाला ओर एक झटके में मेरी चूत में ड़ाल दिया. वह अब मुझे प्यार करके मेरी चूत चोद रहा था.
बंटी: संध्या..अभी भी समय है.. प्लीज सोच लो..चलो मेरे सात
मैं: बंटी अब बहुत देर हो गयी. तुझे मालूम है मैं भी तेरे से प्यार करती हूँ. कभी कहा नहीं तुज़से पर फिर भी तू जानता था. मैं ही पागल समज नहीं पायी. मैंने तेरा जीवन नरक बना दिया.. मुझे माफ़ कर दे बंटी.
बंटी: नहीं संध्या..ऐसे मत कहो..तू मेरा प्यार है..खूबसूरत..बस ऐसे ही खुश रहो..मैं तुम्हे ऐसे ही खुश देखना चाहता हूँ.
मैं: उम्.. आह... बंटी...जोर से चोदो..मार डालो मुझे आज..
बंटी: नहीं संध्या..यह हमारा प्यार है..बस हमारे बिच के हसीन पल हम याद रखेंगे हमेशा.
मैं: तेरे बिना मैं कैसे खुश रहूंगी बंटी.. पापा ने मेरे जीवन भी बर्बाद कर दिया.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या.. हमारा प्यार अमर रहेगा..!
मैं: बंटी मुझे वचन दो..तुम खुश रहोगे..मेरे लिये दुखी नहीं रहोगे. तू खुश तो मैं भी खुश रहूंगी. तुझे दुःख देकर मैं कभी सुखी नहीं रह पाऊँगी.
बंटी: हाँ संध्या..मैं खुश रहूँगा ओर तुझे भी खुश रखूँगा.
आह....उह....आहे भरके बंटी मेरी चूत चोद रहा था... मेरी चूत भी अब गीली हो गयी थी.. बंटी का बड़ा मोटा केला मेरी चूत को हर जगह से घिसता था, आनंद देता था. मैंने जोर से बंटी को कसमसा के पकड़ लिया...ओर उसके लण्ड पर झड़ने लगी. बंटी ने भी उसका सारा वीर्य मेरी चूत के अंदर तक ड़ाल दिया..
मेरी चूत के गहराइयों तक उसका गरम पाणी चला गया था.
कुछ देर के बाद बंटी मेरे ऊपर से उठा ओर मेरे बाजु लेट गया. मैं उठकर बाथरूम चली गया. मैंने देखा बिस्तर पर बंटी का पाणी ओर मेरी गांड से निकले खून के धब्बे थे. मेरी गांड बहुत दर्द कर रही थी. मुझे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था. पर फिर भी एक सुखद अनुभूति हो रही थी .. प्यार का पूरापन लग रहा था, बंटी के प्यार से में खुद को संपूर्ण महसूस कर रही थी.
काफी समय हो गया था. मैं वाशरूम में जाकर साफ़ हो गयी .. खुद को सजाया - संवारा ओर बहार आ गयी. बंटी ओर मैं कुछ नहीं बोल पा रहे थी. वह अभी भी तकिये में मुँह ढक कर सो रहा था..रो रहा था.
मैंने कहा : अच्छा बंटी में चलती हूँ..
बंटी ने कोई जवाब नहीं दिया.
मैं रूम का दरवाजा खोलकर घर की तरफ जाने लगी.
ठीक दो दिन बाद मेरी शादी बड़ी धूम धाम से हो गयी. तीसरे दिन हम फ्लाइट से बंगलूर अनीश के घर आ गये. आज मेरी सुहागरात थी. अनीश के घरवालों ने हमारा कमरा बहुत अच्छी से फूलों से सजाया था. खाना खाने के बद रात को ९ बजे अनीश की माँ मुझे अनीश के कमरे में ले गयी. कहा - बहु..अनीश की दादी बहुत बीमार है. मरने से पहले पोता देखना चाहती है. तू सब संभाल लेना. ओर हंसकर चली गयी.
मैं सुहाग के सेज पर बैठकर अनीश का इंतजार करने लगी. मन में डर था. बंटी ने २ दिन पहले मेरे दोनों छेद चोद चोदकर भुर्ता बना दिया था. मुझे आज बहुत संभाल कर खेल खेलना था.
तभी दरवाजा खुला..अनीश अंदर आ गये. कुरता -पाजामा में वह बहुत आकर्षक लग रहे थे. कसी राजकुमार की तरह. गोरे - चिट्टे.. लम्बे.. मासलदार शरीर.. हाय ! कौन मना करता इनसे शादी करने को. मैं उठकर खड़ी हो गयी तो उन्होंने प्यार से मुझे अपने बाँहों में भर लिया. पता नहीं पर क्यों मुझे अजीब सकून मिला. मैंने भी अपने आप को उनको पूरा सौंप दिया. शादी के पवित्र बंधन को निभाना था.