27-10-2022, 02:19 PM
जो पल इन आद्विक और नीतिका की जिंदगी के कुछ सबसे खास पलों में से एक हो सकता था, वे दोनों ही इस बात को महसूस करने के बजाए एक दूसरे से दुखी हो कर बैठे थे। पूरे रिसेप्शन में तरह - तरह के लोगों का आना जाना लगा रहा लेकिन इन दोनों के ही चेहरे पर कोई खास खुशी के भाव दूर तक नहीं दिखे। जिसकी वजह इन दोनों के ही घरवालों को इनकी आपस की झिझक और लगातार होने वाली थकान लग रही थी।
दर्श (धीरे से)- क्या हुआ है, पूरे टाइम ये मोगैंबो जैसा मुंह बना कर क्यों बैठा है ??
आद्विक (बात टालते हुए)- मेरी छोड़ तू ये बता कहां गायब रहता है आज कल, बीवी आई तो दोस्त भूल गया।
दर्श - नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है, एक तो काम का इतना प्रेशर, क्या बोलूं यार बहुत मुश्किल से उसके लिए (भव्या के लिए) कभी कभार थोड़ा बहुत टाइम बचा पाता हूं, जबकि ये उसका हक है, फिर भी कुछ नहीं कहती। इसीलिए सच कह ले तो खुशकिस्मत हूं कि वो मेरी स्थिति अच्छे से समझती है, वरना पता नहीं क्या हाल होता मेरा।
आद्विक (कुछ सोचते हुए)- इसीलिए तो हमेशा से कहता था ना कि कोई बेवकूफ ही होगा जो शादी अपनी पसंद से नहीं करेगा।
दर्श (हंसते हुए)- हम्मम...... अभी तो वो बेवकूफ तू ही लगता है, ??
आद्विक ने दर्श के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया बस हल्के से ऊपरी मन से हंस दिया। सच तो ये था कि शायद ना चाह कर भी अब भी उसके दिमाग में नीतिका ही चल रही थी।
दर्श (गौर से उसे देखते हुए)- क्या बात है आदि, तुझे पता है ना कि तू मुझे कुछ भी बता सकता है....
आद्विक (शांत मन से)- नहीं यार, सच में ऐसी कोई बात नहीं है, बस बहुत थक गया हूं...।
दर्श (थोड़ा गंभीर हो कर)- देख आदि, मैं जानता हूं कि तू इस वक्त मुझे कुछ भी नहीं बताएगा। लेकिन मेरी बात का भरोसा कर, तेरा ये एक फैसला देखना कैसे तेरी पूरी जिंदगी बदल देगा। बस अभी अपनी जिंदगी के इन खास पलों को जितना हो सके एक साथ बिताओ, एक दूसरे को समझो। इन्हीं छोटी छोटी चीजों से रिश्ते मजबूत होते हैं और इनमें जिंदगी भर का साथ निभाने की ताकत आती है।
"हां, जिंदगी ही तो बदल गई है मेरी, सिर्फ एक कठपुतली बन कर रह गया हूं, कसूर क्या है मेरा, यही ना कि अपनों की खुशी चाहता हूं।" बड़बड़ाते हुए आद्विक खुद से बोल रहा था।
दर्श (फिर से)- क्या हुआ, अब क्या सोच रहा है??
आद्विक - कुछ नहीं यार.....
वे दोनों आगे कुछ और बोलते कि उसके पहले ही दर्श की छोटी बहन आकर उसे बुला ले गई। दूसरी ओर नीतिका भी अब तक लौट चुकी थी जिसे उर्मिला जी अपने साथ ले कर कुछ एक दो खास लोगों से मिलवाने ले गई थीं।
आद्विक (खुद से गुस्से में बड़बड़ाते हुए)- इतना कहने के बाद भी इसके दिमाग में ये बात नहीं बैठ पाई कि बाहर वालों को कुछ भी नहीं कहना है और इसने ये बातें अपनी सहेली को बता ही दी। और इसकी सहेली को देखो तुरंत जा कर दर्श के कान में फूंक डाला। इस बार नहीं छोडूंगा तुम्हें......
"अरे वाह, लड़का तो बिलकुल फिल्मी हीरो जैसा है विभा, उस पर से इतना पैसे वाला, भाई..... तुम्हारी तो घर बैठे - बैठे ही लॉटरी लग गई...!!" नीतिका की मामी आद्विक को देखते ही उसकी मां को बोल पड़ी जो वहीं थोड़ी दूर पर खड़ी थीं।
"हां, उसी लॉटरी की तो नुमाइश लगी है यहां, आइए आप भी देखिए......... (थोड़ा रुक कर).......और एक बात, तभी तो ऐसी लड़कियां बाहर से कुछ और और अंदर से कुछ और होती हैं....!! इनका असल चेहरा शायद भगवान ही जानते हों।" आद्विक चिढ़ी हुई आवाज में जान बूझ कर बगल में बैठी नीतिका को सुनाते हुए बोल पड़ा।
आखिरकार कुछ घंटों में रिसेप्शन में आने जाने वालों का तांता खत्म हो गया, और बस करीबी घरवाले ही रुके थे। आद्विक के घरवालों ने भी खा पी कर और आद्विक और नीतिका से मिल कर विदा ली। सबके जिद करने पर बहुत मुश्किल से एक दो निवाले नीतिका के गले से उतरे थे।
उर्मिला जी (नीतिका के सिर पर हाथ रखकर)- जल्दी वापस आ जाओ बेटा अपने घर....!!
एक ओर नीतिका ने भी सबको प्रणाम किया और वहीं आद्विक पूरी रात नीतिका के घर पर रुकने की बात से परेशान था। थोड़ी ही देर में दोनों घर पहुंचे तो विभा जी ने भी सीधे उन दोनों को कमरे तक छुड़वा दिया ताकि वे दोनों थोड़ा आराम कर सकें। कमरे का दरवाजा खुलते ही दोनों हैरान थे क्योंकि पूरा कमरा बहुत ही खूबसूरती से सजा हुआ था।
आद्विक (चिढ़ कर)- अब ये सब क्या है ??
इन सब चीजों से जितना हैरान आद्विक था उतनी ही हैरान नीतिका भी थी। वो कुछ और सोचती कि उसके पहले ही उसके फोन में एक मैसेज आने की बीप हुई। चूंकि फोन उस वक्त उसके हाथ में ही था उसने देखा।
"सारी पुरानी बातें भुला कर इन खूबसूरत लम्हों को जी ले, जिंदगी में ये वक्त फिर लौट कर नहीं आता। और ये बातें तो तू मुझसे कहीं ज्यादा जानती भी है और समझती भी है। सॉरी समय कम होने की वजह से ज्यादा कुछ नहीं कर पाई तेरे लिए.....!!!अपनी दोस्त cum बहन की तरफ से तेरी शादी का एक छोटा सा गिफ्ट।" ??
भव्या का मैसेज पढ़ते ही उसकी आंख भर आई और बगल में खड़ा आद्विक उसे अब भी बेहद गुस्से में घूर रहा था। आद्विक को ना जाने उसे किस चीज की तकलीफ थी, नीतिका की पुरानी जिंदगी में खुद की जगह किसी और की बात सोच कर या फिर शायद अपनी इन परिस्थितियों पर जिस पर उसका कोई भी जोर नहीं चल पा रहा था। आद्विक जैसे लड़कों के लिए लड़कियों की दूर तक कोई भी कमी नहीं थी फिर भी पहले भी जब कभी भी वो नीतिका से टकराया था कुछ अलग ही था सब कुछ....!!
आद्विक (गुस्से में )- हर एक चीज की तुम लड़कियों को कितनी जल्दी होती है ना...??
नीतिका आद्विक की बातों का मतलब उस वक्त बिलकुल भी नहीं समझ पाई, शायद बेहद थकान की वजह से वो अब ना ज्यादा कुछ बोलना चाहती थी और ना ही सुनना, सो वो अपने कपड़े बदलने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। आद्विक को उस वक्त नीतिका का खुद को यूं नजरंदाज करना उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने गुस्से में उसकी कलाई पकड़ कर उसे झटके से खींच कर बगल वाली दीवार पर टिका दिया और अपने दोनों ही हाथों को उसके दोनों ओर घेरा बना डाला ताकि वो वहां से चाह कर भी हिल ना सके।
नीतिका से भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ और गुस्से और दर्द में हल्के से चीख पड़ी।
नीतिका (गुस्से में)- क्या बदतमीजी है ये??? आखिर चाहते क्या हैं आप ??
आद्विक (गुस्से में)- सच में इतनी ही भोली हो, जितना होने का नाटक कर रही हो इस वक्त???
नीतिका अब भी आद्विक की पकड़ छुड़ाने के लिए कसमसा रही थी वहीं आद्विक ने अब भी गुस्से से उसे पकड़ रखा था। इन हरकतों में दोनों ही एक दूसरे के बेहद पास थे जिसकी वजह से नीतिका की धड़कन भी बहुत तेज हो रही थी आद्विक का चेहरा खुद के इतना नजदीक देख कर। वहीं आद्विक भी एक पल के लिए नीतिका को खुद के इतना करीब देख कर फिर से उसकी गहरी आंखों में डूबने लगा लेकिन अगले ही पल उसे फिर से सबकुछ याद आया और वो चिढ़ उठा।
आद्विक (गुस्से में)- कहा था ना मैंने, मेरी जिंदगी का तमाशा बनाने की सोचना भी मत, फिर भी तुमने हमारे बीच की ये बातें उसे बताई।
अब नीतिका भी ये बातें सुन हैरान थी।
नीतिका (शांति से)- कौन सी बात और किसे.....???
आद्विक (गुस्से में)- मेरे सामने ज्यादा भोली मत बनो.....
नीतिका अब भी आंखों में आंसू लिए उसे घूर रही थी और आद्विक गुस्से में अलग तमतमा रहा था।
आद्विक (गुस्से और तकलीफ में)- तुम समझती क्यों नहीं हो, नहीं पसंद है मुझे कि कोई हमारे रिश्ते के बारे में बातें करे या बातें सुने। तुमने एक बार भी नहीं सोचा उसे सब कुछ बताने के पहले, ये भी नहीं कि उसकी वजह से ये बात मेरे भाई को भी पता चल जायेगी.....???
नीतिका को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि आद्विक कह क्या रहा है।
नीतिका (हैरान और परेशान सी)- मैंने किसी को कुछ नहीं कहा, आप क्या कह रहे हैं??
आद्विक (गुस्से में)- अच्छा..... कुछ नहीं कहा अपनी दोस्त को तो वो फिर तुम्हारी इतनी तरफदारी क्यों कर रहा था। तुमने एक बार भी ये सोचा कि मुझे कैसा लग रहा होगा....!! वो मेरा दोस्त है लेकिन उसके साथ ही वो भाई और रिश्तेदार भी है, ये नहीं जानती तुम....??
आद्विक (फिर से गुस्से में)- किस बात की हड़बड़ी है तुम्हें जो इस रिश्ते को चलाने के लिए तुम्हें इतने सहारों की जरूरत पड़ रही है ?? तुम्हारे लिए ये सब बड़ा आसान होगा मेरे लिए नहीं है, आज अगर दादू की खुशी की बात नहीं होती तो मैं आज यहां खड़ा नहीं होता समझी। इतना आसान नहीं है मेरे लिए अचानक से किसी को भी यूं अपनी जिंदगी में शामिल कर लेना...!! लेकिन हां तुम क्यों समझोगी ये सब.... तुम्हें तो मिल गया ना पैसे वाला, बड़े घर का स्मार्ट और हैंडसम लड़का, या तुम लोगों की नजरों में कहें तो तुम्हारे "सपनों का राजकुमार....!!" लेकिन एक बार भी इस लड़के का नहीं सोचा कि जो इंसान अपना एक कपड़ा भी हजार जगहों में जा कर, खोज कर, उसे ट्राय कर, जब तक उसे पूरी तसल्ली नहीं होती थी वो नहीं लेता था चाहे कुछ भी हो जाए, आज उसके लिए इतना बड़ा फैसला लेने में कितनी तकलीफ हुई होगी...!!
भावना में आ कर इतना कुछ कहने के बाद जब आद्विक को होश आया तो उसे अजीब लगा कि ना जाने वो क्या क्या कह गया उसे, जिन फीलिंग्स को उसने शायद ही कभी किसी के सामने लाया हो वो आज अचानक से यहां क्यों बह गए थोड़ा असहज हो कर वो नीतिका को वहीं छोड़ उस कमरे की बालकनी की ओर तेजी से बढ़ गया और नीतिका आद्विक की बातें सुन बर्फ सी जमी रही।
"अपनी कह ली, मेरी बात सुनी तक नहीं.....!! कितना आसान था आपके लिए हर चीजों का मुझे जिम्मेदार ठहराना....?? आपके लिए अचानक से इस थोपे गए रिश्ते को निभाना मुश्किल है, और मेरा क्या..... मैं क्या करूं... मैं अपनी तकलीफ किसे बताऊं....!! मां बाप ने अपने ढेरों सपने के साथ विदा तो कर दिया लेकिन जहां पहुंची उन्होंने तो अपनाया ही नहीं.... ना पिछला ठिकाना रहा और न ही अगला ठिकाना मिला। उनसे कुछ कह सकती नहीं और आप सुनेंगे नहीं.....आपने गुस्से में ही सही पर अपनी शिकायत तो कर ली लेकिन मैं किससे कहूं ये बातें.... उस इंसान से, जिसने पहले पल से आज तक बिना जाने, बिना कुछ समझे हमेशा मुझे गलत ही ठहराया है...!!" रोती हुई नीतिका खुद से बोलती रही।
कुछ घंटे और यूं ही सन्नाटे में गुजरे, जहां आद्विक काफी देर से बालकनी में बैठा था वहीं नीतिका अब भी वहीं दीवार से सिर टिकाए बैठी थी, मगर कब रोते रोते उसकी आंखें लग गई थीं पता ही नहीं चला था। काफी देर बाद आद्विक अपना गुस्सा थोड़ा शांत होने पर अंदर आया तो देखा कि नीतिका अब भी वहीं दीवार से सिर टिकाए सोई हुई थी, उसे उस हाल में देख आद्विक से रहा नहीं गया और वो उसके पास गया। हल्के से एक दो बार हिलाने की भी कोशिश की लेकिन नीतिका नहीं उठी।
"पड़े रहने दो, मेरा क्या, इनका तो मेलोड्रामा ही खत्म नहीं होता। इतना कुछ करके भी चेहरा तो ऐसा मासूम बनाती है जैसे कि ये कुछ जानती ही नहीं है।" आद्विक यही चीज़ें खुद में सोच कर बडबडा रहा था। इतना कह कर वो जा कर बेड पर एक ओर मुंह घुमा कर लेट गया।
लेकिन सच तो ये था कि उनके बीच का ये नया थोड़ा सा जाना और थोड़ा अनजाना सा बंधन इतना भी कमजोर नहीं था, चाहे इस बात की खबर उन दोनों को इस वक्त हो या न हो। कुछ मिनटों तक वो इन चीजों को नजरंदाज कर सोने की कोशिशों में करवटें बदलता रहा लेकिन चैन तो उसे था नहीं।
"देखने में तो सूखी सी लगती है लेकिन वजन से तो लगता है कि पूरे देश का अनाज यही ठिकाने लगाती है, ?? पता नहीं आदि तू भी किन चक्करों में फंस रहा है। दो चार बार जहां इसे उठा लिया तो तेरी जिम वाली कमर तो गई।" आद्विक गोद में उठाई हुई निकिता को देख बडबडा रहा था।
एक ओर जहां आद्विक ना जाने किन गहराइयों में डूबा का रहा था वहीं नीतिका कितने वक्त बाद गहरी नींद में सोई थी जहां उसे ये भी ध्यान नहीं था कि जिन खूबसूरत पल के वो सपने देखती थी, भले ही कुछ ही मिनटों के लिए ही सही लेकिन आज वो वक्त उसकी झोली में थे।
जैसे ही आद्विक ने नीतिका को बेड पर ला कर लिटाया, उसकी शेरवानी का सामने वाला बटन नीतिका के मंगलसूत्र में फंस गया।
"उफ्फ, अब ये क्या नई मुसीबत है, अब क्या है ये ?? पता नहीं इन्हें इतनी कॉम्प्लिकेटेड चीज पहनने की जरूरत ही क्या है??" चिढ़ कर आद्विक उसे छुड़ाते हुए बोल पड़ा।
"मैं जानती हूं कि आपकी नजरों में मेरी कोई कीमत नहीं है और न ही जिंदगी भर आप मुझे प्यार करेंगे लेकिन जब भी आप मेरी बेइज्जती करते हैं, सच में मुझे बहुत तकलीफ होती है।" अचानक नीतिका की दर्द भरी आवाज सुन आद्विक हड़बड़ा गया लेकिन जब उसके चेहरे पर नजर गई तो देखा वो अब भी मासूमियत से सो रही थी।
आद्विक बड़े गौर से उसके चेहरे को देख रहा था, उसने देखा कि आंसू की एक बूंद जो नीतिका के आंखों से बह कर उसके गालों तक पहुंच गई थी वो अब भी कमरे की हल्की सी रौशनी में बिलकुल मोती की तरह चमक रही थी। आद्विक के हाथ अपने ही आप उस ओर चले गए और बड़े ही प्यार से उसने उस बूंद को अपनी उंगली पर उठाया और कुछ सोचने लगा।
"क्यों निकालती हो इतने आंसू, नहीं अच्छा लगता मुझे। मैं नहीं जानता कि क्या है इस रिश्ते का भविष्य लेकिन बेचैन कर देती हैं ये मुझे....!!" कह कर वो कुछ सोचने लगा। नीतिका को चादर ओढ़ा कर वो उठ कर वहां से चला गया और उसी कमरे की खिड़की के पास खड़ा हो गया जिसके आधे खुले परदे से हल्की हल्की दूधिया रोशनी आ रही थी। कुछ पल यूं ही खड़े रह वो मुड़ा कि उसकी नजर नीतिका के स्टडी टेबल के दराज में पड़ी जो आधी खुली थी और उससे उसकी वही डायरी आधी झांक रही थी। डायरी देखते ही वो फिर से कुछ सोचने लगा।
दर्श (धीरे से)- क्या हुआ है, पूरे टाइम ये मोगैंबो जैसा मुंह बना कर क्यों बैठा है ??
आद्विक (बात टालते हुए)- मेरी छोड़ तू ये बता कहां गायब रहता है आज कल, बीवी आई तो दोस्त भूल गया।
दर्श - नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है, एक तो काम का इतना प्रेशर, क्या बोलूं यार बहुत मुश्किल से उसके लिए (भव्या के लिए) कभी कभार थोड़ा बहुत टाइम बचा पाता हूं, जबकि ये उसका हक है, फिर भी कुछ नहीं कहती। इसीलिए सच कह ले तो खुशकिस्मत हूं कि वो मेरी स्थिति अच्छे से समझती है, वरना पता नहीं क्या हाल होता मेरा।
आद्विक (कुछ सोचते हुए)- इसीलिए तो हमेशा से कहता था ना कि कोई बेवकूफ ही होगा जो शादी अपनी पसंद से नहीं करेगा।
दर्श (हंसते हुए)- हम्मम...... अभी तो वो बेवकूफ तू ही लगता है, ??
आद्विक ने दर्श के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया बस हल्के से ऊपरी मन से हंस दिया। सच तो ये था कि शायद ना चाह कर भी अब भी उसके दिमाग में नीतिका ही चल रही थी।
दर्श (गौर से उसे देखते हुए)- क्या बात है आदि, तुझे पता है ना कि तू मुझे कुछ भी बता सकता है....
आद्विक (शांत मन से)- नहीं यार, सच में ऐसी कोई बात नहीं है, बस बहुत थक गया हूं...।
दर्श (थोड़ा गंभीर हो कर)- देख आदि, मैं जानता हूं कि तू इस वक्त मुझे कुछ भी नहीं बताएगा। लेकिन मेरी बात का भरोसा कर, तेरा ये एक फैसला देखना कैसे तेरी पूरी जिंदगी बदल देगा। बस अभी अपनी जिंदगी के इन खास पलों को जितना हो सके एक साथ बिताओ, एक दूसरे को समझो। इन्हीं छोटी छोटी चीजों से रिश्ते मजबूत होते हैं और इनमें जिंदगी भर का साथ निभाने की ताकत आती है।
"हां, जिंदगी ही तो बदल गई है मेरी, सिर्फ एक कठपुतली बन कर रह गया हूं, कसूर क्या है मेरा, यही ना कि अपनों की खुशी चाहता हूं।" बड़बड़ाते हुए आद्विक खुद से बोल रहा था।
दर्श (फिर से)- क्या हुआ, अब क्या सोच रहा है??
आद्विक - कुछ नहीं यार.....
वे दोनों आगे कुछ और बोलते कि उसके पहले ही दर्श की छोटी बहन आकर उसे बुला ले गई। दूसरी ओर नीतिका भी अब तक लौट चुकी थी जिसे उर्मिला जी अपने साथ ले कर कुछ एक दो खास लोगों से मिलवाने ले गई थीं।
आद्विक (खुद से गुस्से में बड़बड़ाते हुए)- इतना कहने के बाद भी इसके दिमाग में ये बात नहीं बैठ पाई कि बाहर वालों को कुछ भी नहीं कहना है और इसने ये बातें अपनी सहेली को बता ही दी। और इसकी सहेली को देखो तुरंत जा कर दर्श के कान में फूंक डाला। इस बार नहीं छोडूंगा तुम्हें......
"अरे वाह, लड़का तो बिलकुल फिल्मी हीरो जैसा है विभा, उस पर से इतना पैसे वाला, भाई..... तुम्हारी तो घर बैठे - बैठे ही लॉटरी लग गई...!!" नीतिका की मामी आद्विक को देखते ही उसकी मां को बोल पड़ी जो वहीं थोड़ी दूर पर खड़ी थीं।
"हां, उसी लॉटरी की तो नुमाइश लगी है यहां, आइए आप भी देखिए......... (थोड़ा रुक कर).......और एक बात, तभी तो ऐसी लड़कियां बाहर से कुछ और और अंदर से कुछ और होती हैं....!! इनका असल चेहरा शायद भगवान ही जानते हों।" आद्विक चिढ़ी हुई आवाज में जान बूझ कर बगल में बैठी नीतिका को सुनाते हुए बोल पड़ा।
आखिरकार कुछ घंटों में रिसेप्शन में आने जाने वालों का तांता खत्म हो गया, और बस करीबी घरवाले ही रुके थे। आद्विक के घरवालों ने भी खा पी कर और आद्विक और नीतिका से मिल कर विदा ली। सबके जिद करने पर बहुत मुश्किल से एक दो निवाले नीतिका के गले से उतरे थे।
उर्मिला जी (नीतिका के सिर पर हाथ रखकर)- जल्दी वापस आ जाओ बेटा अपने घर....!!
एक ओर नीतिका ने भी सबको प्रणाम किया और वहीं आद्विक पूरी रात नीतिका के घर पर रुकने की बात से परेशान था। थोड़ी ही देर में दोनों घर पहुंचे तो विभा जी ने भी सीधे उन दोनों को कमरे तक छुड़वा दिया ताकि वे दोनों थोड़ा आराम कर सकें। कमरे का दरवाजा खुलते ही दोनों हैरान थे क्योंकि पूरा कमरा बहुत ही खूबसूरती से सजा हुआ था।
आद्विक (चिढ़ कर)- अब ये सब क्या है ??
इन सब चीजों से जितना हैरान आद्विक था उतनी ही हैरान नीतिका भी थी। वो कुछ और सोचती कि उसके पहले ही उसके फोन में एक मैसेज आने की बीप हुई। चूंकि फोन उस वक्त उसके हाथ में ही था उसने देखा।
"सारी पुरानी बातें भुला कर इन खूबसूरत लम्हों को जी ले, जिंदगी में ये वक्त फिर लौट कर नहीं आता। और ये बातें तो तू मुझसे कहीं ज्यादा जानती भी है और समझती भी है। सॉरी समय कम होने की वजह से ज्यादा कुछ नहीं कर पाई तेरे लिए.....!!!अपनी दोस्त cum बहन की तरफ से तेरी शादी का एक छोटा सा गिफ्ट।" ??
भव्या का मैसेज पढ़ते ही उसकी आंख भर आई और बगल में खड़ा आद्विक उसे अब भी बेहद गुस्से में घूर रहा था। आद्विक को ना जाने उसे किस चीज की तकलीफ थी, नीतिका की पुरानी जिंदगी में खुद की जगह किसी और की बात सोच कर या फिर शायद अपनी इन परिस्थितियों पर जिस पर उसका कोई भी जोर नहीं चल पा रहा था। आद्विक जैसे लड़कों के लिए लड़कियों की दूर तक कोई भी कमी नहीं थी फिर भी पहले भी जब कभी भी वो नीतिका से टकराया था कुछ अलग ही था सब कुछ....!!
आद्विक (गुस्से में )- हर एक चीज की तुम लड़कियों को कितनी जल्दी होती है ना...??
नीतिका आद्विक की बातों का मतलब उस वक्त बिलकुल भी नहीं समझ पाई, शायद बेहद थकान की वजह से वो अब ना ज्यादा कुछ बोलना चाहती थी और ना ही सुनना, सो वो अपने कपड़े बदलने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। आद्विक को उस वक्त नीतिका का खुद को यूं नजरंदाज करना उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने गुस्से में उसकी कलाई पकड़ कर उसे झटके से खींच कर बगल वाली दीवार पर टिका दिया और अपने दोनों ही हाथों को उसके दोनों ओर घेरा बना डाला ताकि वो वहां से चाह कर भी हिल ना सके।
नीतिका से भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ और गुस्से और दर्द में हल्के से चीख पड़ी।
नीतिका (गुस्से में)- क्या बदतमीजी है ये??? आखिर चाहते क्या हैं आप ??
आद्विक (गुस्से में)- सच में इतनी ही भोली हो, जितना होने का नाटक कर रही हो इस वक्त???
नीतिका अब भी आद्विक की पकड़ छुड़ाने के लिए कसमसा रही थी वहीं आद्विक ने अब भी गुस्से से उसे पकड़ रखा था। इन हरकतों में दोनों ही एक दूसरे के बेहद पास थे जिसकी वजह से नीतिका की धड़कन भी बहुत तेज हो रही थी आद्विक का चेहरा खुद के इतना नजदीक देख कर। वहीं आद्विक भी एक पल के लिए नीतिका को खुद के इतना करीब देख कर फिर से उसकी गहरी आंखों में डूबने लगा लेकिन अगले ही पल उसे फिर से सबकुछ याद आया और वो चिढ़ उठा।
आद्विक (गुस्से में)- कहा था ना मैंने, मेरी जिंदगी का तमाशा बनाने की सोचना भी मत, फिर भी तुमने हमारे बीच की ये बातें उसे बताई।
अब नीतिका भी ये बातें सुन हैरान थी।
नीतिका (शांति से)- कौन सी बात और किसे.....???
आद्विक (गुस्से में)- मेरे सामने ज्यादा भोली मत बनो.....
नीतिका अब भी आंखों में आंसू लिए उसे घूर रही थी और आद्विक गुस्से में अलग तमतमा रहा था।
आद्विक (गुस्से और तकलीफ में)- तुम समझती क्यों नहीं हो, नहीं पसंद है मुझे कि कोई हमारे रिश्ते के बारे में बातें करे या बातें सुने। तुमने एक बार भी नहीं सोचा उसे सब कुछ बताने के पहले, ये भी नहीं कि उसकी वजह से ये बात मेरे भाई को भी पता चल जायेगी.....???
नीतिका को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि आद्विक कह क्या रहा है।
नीतिका (हैरान और परेशान सी)- मैंने किसी को कुछ नहीं कहा, आप क्या कह रहे हैं??
आद्विक (गुस्से में)- अच्छा..... कुछ नहीं कहा अपनी दोस्त को तो वो फिर तुम्हारी इतनी तरफदारी क्यों कर रहा था। तुमने एक बार भी ये सोचा कि मुझे कैसा लग रहा होगा....!! वो मेरा दोस्त है लेकिन उसके साथ ही वो भाई और रिश्तेदार भी है, ये नहीं जानती तुम....??
आद्विक (फिर से गुस्से में)- किस बात की हड़बड़ी है तुम्हें जो इस रिश्ते को चलाने के लिए तुम्हें इतने सहारों की जरूरत पड़ रही है ?? तुम्हारे लिए ये सब बड़ा आसान होगा मेरे लिए नहीं है, आज अगर दादू की खुशी की बात नहीं होती तो मैं आज यहां खड़ा नहीं होता समझी। इतना आसान नहीं है मेरे लिए अचानक से किसी को भी यूं अपनी जिंदगी में शामिल कर लेना...!! लेकिन हां तुम क्यों समझोगी ये सब.... तुम्हें तो मिल गया ना पैसे वाला, बड़े घर का स्मार्ट और हैंडसम लड़का, या तुम लोगों की नजरों में कहें तो तुम्हारे "सपनों का राजकुमार....!!" लेकिन एक बार भी इस लड़के का नहीं सोचा कि जो इंसान अपना एक कपड़ा भी हजार जगहों में जा कर, खोज कर, उसे ट्राय कर, जब तक उसे पूरी तसल्ली नहीं होती थी वो नहीं लेता था चाहे कुछ भी हो जाए, आज उसके लिए इतना बड़ा फैसला लेने में कितनी तकलीफ हुई होगी...!!
भावना में आ कर इतना कुछ कहने के बाद जब आद्विक को होश आया तो उसे अजीब लगा कि ना जाने वो क्या क्या कह गया उसे, जिन फीलिंग्स को उसने शायद ही कभी किसी के सामने लाया हो वो आज अचानक से यहां क्यों बह गए थोड़ा असहज हो कर वो नीतिका को वहीं छोड़ उस कमरे की बालकनी की ओर तेजी से बढ़ गया और नीतिका आद्विक की बातें सुन बर्फ सी जमी रही।
"अपनी कह ली, मेरी बात सुनी तक नहीं.....!! कितना आसान था आपके लिए हर चीजों का मुझे जिम्मेदार ठहराना....?? आपके लिए अचानक से इस थोपे गए रिश्ते को निभाना मुश्किल है, और मेरा क्या..... मैं क्या करूं... मैं अपनी तकलीफ किसे बताऊं....!! मां बाप ने अपने ढेरों सपने के साथ विदा तो कर दिया लेकिन जहां पहुंची उन्होंने तो अपनाया ही नहीं.... ना पिछला ठिकाना रहा और न ही अगला ठिकाना मिला। उनसे कुछ कह सकती नहीं और आप सुनेंगे नहीं.....आपने गुस्से में ही सही पर अपनी शिकायत तो कर ली लेकिन मैं किससे कहूं ये बातें.... उस इंसान से, जिसने पहले पल से आज तक बिना जाने, बिना कुछ समझे हमेशा मुझे गलत ही ठहराया है...!!" रोती हुई नीतिका खुद से बोलती रही।
कुछ घंटे और यूं ही सन्नाटे में गुजरे, जहां आद्विक काफी देर से बालकनी में बैठा था वहीं नीतिका अब भी वहीं दीवार से सिर टिकाए बैठी थी, मगर कब रोते रोते उसकी आंखें लग गई थीं पता ही नहीं चला था। काफी देर बाद आद्विक अपना गुस्सा थोड़ा शांत होने पर अंदर आया तो देखा कि नीतिका अब भी वहीं दीवार से सिर टिकाए सोई हुई थी, उसे उस हाल में देख आद्विक से रहा नहीं गया और वो उसके पास गया। हल्के से एक दो बार हिलाने की भी कोशिश की लेकिन नीतिका नहीं उठी।
"पड़े रहने दो, मेरा क्या, इनका तो मेलोड्रामा ही खत्म नहीं होता। इतना कुछ करके भी चेहरा तो ऐसा मासूम बनाती है जैसे कि ये कुछ जानती ही नहीं है।" आद्विक यही चीज़ें खुद में सोच कर बडबडा रहा था। इतना कह कर वो जा कर बेड पर एक ओर मुंह घुमा कर लेट गया।
लेकिन सच तो ये था कि उनके बीच का ये नया थोड़ा सा जाना और थोड़ा अनजाना सा बंधन इतना भी कमजोर नहीं था, चाहे इस बात की खबर उन दोनों को इस वक्त हो या न हो। कुछ मिनटों तक वो इन चीजों को नजरंदाज कर सोने की कोशिशों में करवटें बदलता रहा लेकिन चैन तो उसे था नहीं।
"देखने में तो सूखी सी लगती है लेकिन वजन से तो लगता है कि पूरे देश का अनाज यही ठिकाने लगाती है, ?? पता नहीं आदि तू भी किन चक्करों में फंस रहा है। दो चार बार जहां इसे उठा लिया तो तेरी जिम वाली कमर तो गई।" आद्विक गोद में उठाई हुई निकिता को देख बडबडा रहा था।
एक ओर जहां आद्विक ना जाने किन गहराइयों में डूबा का रहा था वहीं नीतिका कितने वक्त बाद गहरी नींद में सोई थी जहां उसे ये भी ध्यान नहीं था कि जिन खूबसूरत पल के वो सपने देखती थी, भले ही कुछ ही मिनटों के लिए ही सही लेकिन आज वो वक्त उसकी झोली में थे।
जैसे ही आद्विक ने नीतिका को बेड पर ला कर लिटाया, उसकी शेरवानी का सामने वाला बटन नीतिका के मंगलसूत्र में फंस गया।
"उफ्फ, अब ये क्या नई मुसीबत है, अब क्या है ये ?? पता नहीं इन्हें इतनी कॉम्प्लिकेटेड चीज पहनने की जरूरत ही क्या है??" चिढ़ कर आद्विक उसे छुड़ाते हुए बोल पड़ा।
"मैं जानती हूं कि आपकी नजरों में मेरी कोई कीमत नहीं है और न ही जिंदगी भर आप मुझे प्यार करेंगे लेकिन जब भी आप मेरी बेइज्जती करते हैं, सच में मुझे बहुत तकलीफ होती है।" अचानक नीतिका की दर्द भरी आवाज सुन आद्विक हड़बड़ा गया लेकिन जब उसके चेहरे पर नजर गई तो देखा वो अब भी मासूमियत से सो रही थी।
आद्विक बड़े गौर से उसके चेहरे को देख रहा था, उसने देखा कि आंसू की एक बूंद जो नीतिका के आंखों से बह कर उसके गालों तक पहुंच गई थी वो अब भी कमरे की हल्की सी रौशनी में बिलकुल मोती की तरह चमक रही थी। आद्विक के हाथ अपने ही आप उस ओर चले गए और बड़े ही प्यार से उसने उस बूंद को अपनी उंगली पर उठाया और कुछ सोचने लगा।
"क्यों निकालती हो इतने आंसू, नहीं अच्छा लगता मुझे। मैं नहीं जानता कि क्या है इस रिश्ते का भविष्य लेकिन बेचैन कर देती हैं ये मुझे....!!" कह कर वो कुछ सोचने लगा। नीतिका को चादर ओढ़ा कर वो उठ कर वहां से चला गया और उसी कमरे की खिड़की के पास खड़ा हो गया जिसके आधे खुले परदे से हल्की हल्की दूधिया रोशनी आ रही थी। कुछ पल यूं ही खड़े रह वो मुड़ा कि उसकी नजर नीतिका के स्टडी टेबल के दराज में पड़ी जो आधी खुली थी और उससे उसकी वही डायरी आधी झांक रही थी। डायरी देखते ही वो फिर से कुछ सोचने लगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.