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किरायेदार और मकान मालिक का परिवार
#38
रमेश दोपहर में लगभग दो बजे सहारनपुर के लिए निकला। उस वक्त घर पर मंजू, शिल्पी और मनीष थे। नीचे वाला फ्लैट जिसमे रमेश अपने परिवार सहित रहता था उसमे तीन बेडरूम थे। शिल्पी और मनीष अलग अलग बेडरूम में सोते थे और मंजू अलग बेडरूम में। उसके जाने के बाद मैं उन तीनो के साथ नीचे हाल में ही बैठा था।

हाल में सब लोग खामोश बैठे थे, मैंने उस चुप्पी को तोड़ा।

मैं - और मनीष क्या चल रहा है तुम्हारा
मनीष - कुछ नहीं भैया, सब ठीक है।

मैं मन ही मन बोला साला तेरी मां और बहन एक कर रखी है और तू भैया बोल रहा है।

मैं - अच्छा है, पढ़ाई पर ध्यान दो।
मंजू - हाँ मैं तो बोलती हूँ उससे कि मन लगाकर पढ़ाई करें।
मनीष - करता तो हूँ ही।

मैं - हाँ ठीक है। शिल्पी जरा देखना इसकी पढ़ाई कैसी चल रही है।

फिर मैंने मंजू से कहाँ कि मुझे सर दर्द हो रहा है जरा सर दबा देना।

मंजू सिर हिलाते हुए उठी और बाम ले कर मेरे पास आयी। मैं हाल में रखे बेड पर लेट गया लेकिन मुझे सर दर्द तो हो ही नहीं रहा था। मैंने बोला बाम मत लगाओ, ऐसे ही सर दबा दो।

मंजू अपने अपने सॉफ्ट सॉफ्ट हाथों से मेरा सर दबा रही थी। मुझे काफी अच्छा लग रहा था। फिर मैंने शिल्पी और मनीष से कहाँ कि तुम भी जरा मेरे पैर दबा दो। शिल्पी चुपचाप मेरे पैर दबाने आ गई लेकिन मनीष थोड़ा हिचका। मैंने मनीष को कहाँ क्या हुआ मनीष तो ओ पैर दबाने आ गया।

जाते वक्त रमेश सबके सामने मेरे हाथ जोड़कर गया था और कहाँ था सबका ख्याल रखने को। मैं बस मनीष को अपने काबू में रखना चाहता था। अब मंजू मेरा सर दबा रही थी और ओ दोनों मेरे दोनों पैर। उनके नर्म एहसास से मेरे दोनों टांगो के बीच लंड खुद को काबू में नहीं कर पा रहा था और टेंट जैसा बन कर खड़ा हो रहा था जिसे मैं बार बार एडजस्ट करने की कोशिश करता। मंजू और शिल्पी तो इसे देखकर मुस्कुरा रहें होंगे लेकिन मनीष क्या सोचेगा?

थोड़ी देर में मुझे नींद आ गई और मैं वही सो गया। लगभग 3-3:30 बज रहें होंगे। धीरे धीरे ओ तीनो भी अपने अपने कमरे में जा कर सो गए। रमेश के जाने के बाद दुकान बंद थी और मेन गेट बंद करते ही पूरा घर अंदर से पैक हो जाता। मंजू ने अंदर से मेन गेट लॉक कर दिया था।

लगभग 5 बजे रमेश ने मंजू को फोन किया कि ओ वहाँ पहुँच गया है। मंजू यह बताने मेरे पास आयी। इसके साथ मैं भी उठ गया।

थोड़ी देर में शिल्पी और मनीष भी उठ गए। शिल्पी ने चाय बनायी और हम सब ने मिलकर चाय पी। उसके बाद इधर उधर की बातें होती रही फिर डिनर के लिए शिल्पी ने कहाँ कि क्यों ना आज सभी लोग बाहर ही चले डिनर पे। मनीष ने तुरंत उसके हाँ में हाँ मिलाया और मैंने भी अपनी हामी भर दी।
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RE: किरायेदार और मकान मालिक का परिवार - by raj4bestfun - 26-10-2022, 03:16 PM



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