22-10-2022, 11:46 PM
8. नहाने से मेरे बाल गीले हो गए थे तो उन्हे सुखाने के लिए मे बालकनी मे आकर खड़ी हो गई और वहाँ की धूप मे अपने बाल सुखाने लगी ।
नहाकर मेरे तन मन को कुछ शान्ति मिली और मैं हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई
मेरा शरीर शान्त था पर मन मे सुकून के नाम की जगह नहीं थी आज सुबह की नितिन के साथ हुई घटना ने मेरे चित्त को बैचेन कर रखा था और उसके साथ -2 वो सब बातें भी मेरे जहन मे थी जो वरुण और गुप्ता जी के साथ हुई थी , खासकर वरुण का ध्यान बार बार मेरे दिमाग मे घूम रहा था , रह-रह कर मुझे कल शाम का वो द्रश्य याद आ रहा था "जब मैंने अपनी छत से घूमते हुए गली मे नितिन को वरुण के घर जाते देखा आखिर ऐसा क्या है जो मुझसे छिपाया जा रहा है वरुण का नितिन के साथ क्या रिश्ता हो सकता है ? मुझे तो ये भी नहीं पता की कल शाम जिसे मैंने वरुण के घर जाते देखा वो नितिन ही था या नहीं , कहीं शाम के अंधेरे मे मुझसे देखने मे कोई भूल तो नही हो गई । हो सकता है जिसे मैंने देखा था वो नितिन ना होकर कोई ओर हो , वैसे भी मैं भी कहाँ उसका चेहरा स्पष्ट रूप से देख पाई थी ? शाम के अंधेरे मे मुझसे गलती भी हो सकती है । पर अगर वो नितिन नहीं था तो आज सुबह जब मैंने नितिन से पुछा कि क्या वो कल मेरी गली मे आया था तो उसने कोई जवाब दिए बगैर बात हँसी मे क्यों टाल दी ? पता नहीं क्या सच है क्या झूठ मेरी तो कुछ समझ नहीं आता ।" वरुण पर भी मेरा विश्वाश कुछ डगमगाने लगा था एक तो उसकी हरकते ही आज-कल कुछ ऐसी थी के मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही पहले वाला वरुण है और दूसरा आज वो मुझे ग्राउंड मे भी नहीं दिखा जबकि कल उसने ही मुझे वॉक पर चलने के लिए खुद इन्वाइट किया था और फिर वो खुद ही नहीं आया और नितिन वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर था उसे कैसे पता चला कि मैं आज ग्राउंड मे वॉक पर जाने वाली हूँ , कहीं वरुण ने ही तो उसे नहीं बता दिया अगर ऐसा है तो इसका सीधा मतलब यही है कि वरुण और नितिन का आपस मे कुछ ना कुछ कनेक्शन है जो मेरे लिए और मेरे पति अशोक के लिए घातक साबित हो सकता है इसलिए मुझे अब हर एक कदम पर सावधानी बरतनी होगी मैं इन लोगों के हाथ का खिलौना नहीं बन सकती कैसे भी करके मुझे सच का पता लगाना ही होगा अगर जैसा मे सोच रही हूँ सब कुछ वैसा ही है तो अब मुझे खुद इसके पीछे का मकसद जानना होगा पर कैसे ? " कितनी ही देर तक मैं इन्ही विचारों मे खोई हुई सोफ़े पर बैठी रही फिर फोन की घंटी से मेरा ध्यान टूटा , मैंने अपना मोबाईल उठाकर देखा तो वो अशोक की कॉल थी । मैंने कॉल रिसीव किया -
मैं - हैलो !
अशोक - हाँ हैलो पदमा !
मैं - आप ऑफिस पहुँच गए क्या ?
अशोक - हाँ बस अभी-अभी आया हूँ , क्या कर रही हो ?
मैं - बस कुछ नहीं अभी नहाकर आई हूँ ।
अशोक - हम्म । अच्छा सुनो मैंने टेलेफ़ोन कम्पनी मे बात की थी वो कह रहे थे कि वो आज अपने किसी सर्विस बॉय को भेज देंगे हमारी रेडलाइन को ठीक करने के लिए । वो 11-12 बजे तक आ जाएगा तुम उसे टेलेफ़ोन दिखा देना । ठीक है ।
मैं - जी ठीक है ।
अशोक - और सुनो पदमा ! उसे कोई फीस नहीं देनी है वो कम्पनी की जिम्मेदारी पर है ।
मैं - ओके जी , मैं समझ गई ।
अशोक - अरे वो मैं जानता हूँ मैंने बोहोत समझदार बीवी पाई है ।
मैं अशोक की बात सुनकर फोन पर ही थोड़ी मुस्कुरा दी और बोली - " हम्म अच्छा बस - 2 अब ज्यादा मस्का मत मारों । "
अशोक - मस्का नहीं है बीवी साहिबा , सच बोल रहा हूँ मेरे सारे दोस्त यही कहते है कि 'अशोक की बीवी का जवाब नहीं '।
मैं - हाँ , झूठ बोलने मे तो आपका कोई जवाब नहीं है ।
अशोक - अरे झूठ नहीं मेरी बीवी जान एकदम सच बोल रहा हूँ चाहे तो आज शाम को एक से पूछ भी लेना ।
मैं ( थोड़ी हैरानी से ) - आज शाम को ? किससे ?
अशोक - हाँ , आज शाम को रफीक घर आ रहा है ।
( रफीक मेरे पति अशोक के एक पुराने दोस्त थे जब मैं शादी करके शहर आई उसके लगभग 1.5 साल बाद अशोक , रफीक को हमारे घर लेके आए थे तब उन्होंने मुझे रफीक से मिलवाया था और तब से अब तक अक्सर रफीक हमारे घर आया करते थे । रफीक पैशे से एक डॉक्टर थे , जैसा अशोक ने मुझसे कहा था मगर मैं कभी उनके क्लिनिक नहीं गई , अशोक ने बताया था कि वो मनोवेज्ञानिक डॉक्टर है । जब कभी भी मैं रफीक से मिली वो हमेशा मुझे एक सुलझे हुए इंसान ही लगे बात करने मे , मिलने मे बिल्कुल एक सज्जन व्यक्ति की तरह । बस एक ही कमी लगती थी और वो थी कि जब भी वो हमारे घर आते थे अक्सर अशोक के साथ छत पर बैठकर शराब पिया करते थे उनकी ये बात मुझे बोहोत अखरती थी । आज काफी दिनों के बाद रफीक के हमारे घर आने की बात सुनकर मुझे भी थोड़ी खुशी हुई । )
मैं - ओह , अच्छा । किस टाइम आएंगे वो ?
अशोक - बस मेरे ऑफिस के खत्म होने के बाद दोनों साथ मे ही आएंगे ।
मैं - ओके ठीक है ।
अशोक - अच्छा चलों रखता हूँ फोन । बाय ।
मैं - बाय ।
फिर अशोक ने फोन रख दिया
उनके फोन रखने के बाद मैं अपने घर के टेलेफ़ोन ( रेडलाइन ) के पास गई जो पिछले 1 महीने से खराब था । मैंने अशोक से कई बार कहा भी कि इसे ठीक करवा दो, पर वो भी अपने काम मे इतने बिजी थे कि उनका भी समय नहीं लगा , लेकिन आज आखिरकार ये काम भी निपट जाएगा । मैंने एक बार के लिए टेलेफ़ोन के रिसीवर को उठाया वो अभी भी डेड था । मैंने फिर से उसे नीचे रख दिया और अपने घर के काम मे लग गई । सब काम खत्म करने के बाद मुझे ध्यान आया की "छत पर कुछ कपड़े है ,जो मैंने कल सूखने के लिए डाले थे अब मुझे वो ले आने चाहिए " ऐसा सोचकर मैं अपने घर की छत पर चली गई । छत का वातावरण मुझे हमेशा ही मनमोहक लगता था, वहाँ की खुली हवा और सुबह की मीठी-2 धूप मन को प्रफुल्लित कर देती । आज भी छत पर आकर मेरा मन वहीं घूमते रहने का करने लगा , मैं वहीं छत पर बैठ गई ओर उस मीठी धूप के लिए अपनी बाहें फैला दी ।
फिर थोड़ी देर बाद मैंने अपने कपड़े लिए और उन्हे लेकर नीचे आ गई ।
मैंने कपड़ों को अलमारी मे रखने के इरादे से अपने बेडरूम मे आकर अपनी अलमारी खोली और उसमे कपड़ों को सलीके से रखने लगी । कपड़े अलमारी मे रखने के बाद जैसे ही उसे बंद करने के लिए मैंने अपने हाथ चालये , अचानक मेरे मन मे उसी फ़ाइल का ध्यान आ गया जो रात अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी और जिसकी कल सुबह नितिन बात कर रहा था । मेरे मन मे उस फाइल को एक बार फिर से देखने की इच्छा होने लगी , मुझे भी लगा एक बार तो देखना ही चाहिए कि आखिर इस फाइल मे ऐसा क्या है जो नितिन और अशोक दोनों ही इसके लिए इतने फिक्रमंद है , इसलिए अपने मन की उत्सुकता को शान्त करने के लिए मैंने अलमारी का लॉकर खोलकर वो फाइल निकाली और वहीं बेडपर बैठकर उसे समझने की कोशिश करने लगी ।
फाइल को ध्यान से देखने के बाद भी मुझे उसके बारे मे कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी , सिर्फ इतना ही पता चल पाया की वो कुछ सरकारी और गैर-सरकारी दस्तावेज है किसी कम्पनी के बारे मे , जो देखने से काफी जरुरी भी लग रहे थे , पर फिर भी मैं ये नहीं जान सकी के इस फाइल का नितिन के यहाँ आने से क्या ताल्लुक है । नितिन तो बोल रहा था कि अशोक उसे फाइल नहीं देंगे क्योंकि वो नहीं चाहते कि वापस आकर उनके ग्रुप-हेड की पोस्ट छीन ले , पर सवाल ये था की क्या नितिन जो बोल रहा है उसमे कुछ सच्चाई है भी या नहीं ।" अशोक से मेरी शादी को 4 साल हो चुके थे और इन 4 सालों मे मैंने कुछ भी ऐसा तो नहीं देखा था जिससे ये लगे की अशोक कोई बुरे आदमी है जो अपने फायदे के लिए दूसरों का बुरा चाहता हो । " नितिन पर तो मुझे बिल्कुल भरोसा नहीं था उसकी तो शुरुवात ही झुठ से हुई थी , जो भी हो मुझे सच को जानना ही होगा , " मैं इसी उधेड़बुन मे बैठी थी ।
ऐकाक डॉर बेल बजी और मैं अपने ख्यालों से बाहर निकली ,मैंने घड़ी मे टाइम देखा तो 11:15 बज रहे थे । मैंने अंदाजा लगा लिया की ये जरूर टेलेफ़ोन वाला होगा और मैं अपने बेड से उठी और उस फाइल को जल्दी-2 अलमारी मे रखकर दरवाजा खोलने के लिए , गेट की ओर बढ़ी ।
गेट खोला तो देखा सामने ब्लू टी-शर्ट मे एक 20-22 साल का लड़का खड़ा था , सूरत देखने से तो वो लड़का काफी मासूम सा लग रहा था । उसके हाथ मे एक बॉक्स था , उसमे उसके टूल्स रहे होंगे शायद । मेरे गेट खोलने के बाद से ही वो मुझे देख रहा था पर उसका ध्यान मेरी नेवल रिंग पर था जो मैंने आज सुबह ही पहनी थी ।
फिर उसने कहा - " नमस्ते मैडम । "
नहाकर मेरे तन मन को कुछ शान्ति मिली और मैं हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई
मेरा शरीर शान्त था पर मन मे सुकून के नाम की जगह नहीं थी आज सुबह की नितिन के साथ हुई घटना ने मेरे चित्त को बैचेन कर रखा था और उसके साथ -2 वो सब बातें भी मेरे जहन मे थी जो वरुण और गुप्ता जी के साथ हुई थी , खासकर वरुण का ध्यान बार बार मेरे दिमाग मे घूम रहा था , रह-रह कर मुझे कल शाम का वो द्रश्य याद आ रहा था "जब मैंने अपनी छत से घूमते हुए गली मे नितिन को वरुण के घर जाते देखा आखिर ऐसा क्या है जो मुझसे छिपाया जा रहा है वरुण का नितिन के साथ क्या रिश्ता हो सकता है ? मुझे तो ये भी नहीं पता की कल शाम जिसे मैंने वरुण के घर जाते देखा वो नितिन ही था या नहीं , कहीं शाम के अंधेरे मे मुझसे देखने मे कोई भूल तो नही हो गई । हो सकता है जिसे मैंने देखा था वो नितिन ना होकर कोई ओर हो , वैसे भी मैं भी कहाँ उसका चेहरा स्पष्ट रूप से देख पाई थी ? शाम के अंधेरे मे मुझसे गलती भी हो सकती है । पर अगर वो नितिन नहीं था तो आज सुबह जब मैंने नितिन से पुछा कि क्या वो कल मेरी गली मे आया था तो उसने कोई जवाब दिए बगैर बात हँसी मे क्यों टाल दी ? पता नहीं क्या सच है क्या झूठ मेरी तो कुछ समझ नहीं आता ।" वरुण पर भी मेरा विश्वाश कुछ डगमगाने लगा था एक तो उसकी हरकते ही आज-कल कुछ ऐसी थी के मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही पहले वाला वरुण है और दूसरा आज वो मुझे ग्राउंड मे भी नहीं दिखा जबकि कल उसने ही मुझे वॉक पर चलने के लिए खुद इन्वाइट किया था और फिर वो खुद ही नहीं आया और नितिन वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर था उसे कैसे पता चला कि मैं आज ग्राउंड मे वॉक पर जाने वाली हूँ , कहीं वरुण ने ही तो उसे नहीं बता दिया अगर ऐसा है तो इसका सीधा मतलब यही है कि वरुण और नितिन का आपस मे कुछ ना कुछ कनेक्शन है जो मेरे लिए और मेरे पति अशोक के लिए घातक साबित हो सकता है इसलिए मुझे अब हर एक कदम पर सावधानी बरतनी होगी मैं इन लोगों के हाथ का खिलौना नहीं बन सकती कैसे भी करके मुझे सच का पता लगाना ही होगा अगर जैसा मे सोच रही हूँ सब कुछ वैसा ही है तो अब मुझे खुद इसके पीछे का मकसद जानना होगा पर कैसे ? " कितनी ही देर तक मैं इन्ही विचारों मे खोई हुई सोफ़े पर बैठी रही फिर फोन की घंटी से मेरा ध्यान टूटा , मैंने अपना मोबाईल उठाकर देखा तो वो अशोक की कॉल थी । मैंने कॉल रिसीव किया -
मैं - हैलो !
अशोक - हाँ हैलो पदमा !
मैं - आप ऑफिस पहुँच गए क्या ?
अशोक - हाँ बस अभी-अभी आया हूँ , क्या कर रही हो ?
मैं - बस कुछ नहीं अभी नहाकर आई हूँ ।
अशोक - हम्म । अच्छा सुनो मैंने टेलेफ़ोन कम्पनी मे बात की थी वो कह रहे थे कि वो आज अपने किसी सर्विस बॉय को भेज देंगे हमारी रेडलाइन को ठीक करने के लिए । वो 11-12 बजे तक आ जाएगा तुम उसे टेलेफ़ोन दिखा देना । ठीक है ।
मैं - जी ठीक है ।
अशोक - और सुनो पदमा ! उसे कोई फीस नहीं देनी है वो कम्पनी की जिम्मेदारी पर है ।
मैं - ओके जी , मैं समझ गई ।
अशोक - अरे वो मैं जानता हूँ मैंने बोहोत समझदार बीवी पाई है ।
मैं अशोक की बात सुनकर फोन पर ही थोड़ी मुस्कुरा दी और बोली - " हम्म अच्छा बस - 2 अब ज्यादा मस्का मत मारों । "
अशोक - मस्का नहीं है बीवी साहिबा , सच बोल रहा हूँ मेरे सारे दोस्त यही कहते है कि 'अशोक की बीवी का जवाब नहीं '।
मैं - हाँ , झूठ बोलने मे तो आपका कोई जवाब नहीं है ।
अशोक - अरे झूठ नहीं मेरी बीवी जान एकदम सच बोल रहा हूँ चाहे तो आज शाम को एक से पूछ भी लेना ।
मैं ( थोड़ी हैरानी से ) - आज शाम को ? किससे ?
अशोक - हाँ , आज शाम को रफीक घर आ रहा है ।
( रफीक मेरे पति अशोक के एक पुराने दोस्त थे जब मैं शादी करके शहर आई उसके लगभग 1.5 साल बाद अशोक , रफीक को हमारे घर लेके आए थे तब उन्होंने मुझे रफीक से मिलवाया था और तब से अब तक अक्सर रफीक हमारे घर आया करते थे । रफीक पैशे से एक डॉक्टर थे , जैसा अशोक ने मुझसे कहा था मगर मैं कभी उनके क्लिनिक नहीं गई , अशोक ने बताया था कि वो मनोवेज्ञानिक डॉक्टर है । जब कभी भी मैं रफीक से मिली वो हमेशा मुझे एक सुलझे हुए इंसान ही लगे बात करने मे , मिलने मे बिल्कुल एक सज्जन व्यक्ति की तरह । बस एक ही कमी लगती थी और वो थी कि जब भी वो हमारे घर आते थे अक्सर अशोक के साथ छत पर बैठकर शराब पिया करते थे उनकी ये बात मुझे बोहोत अखरती थी । आज काफी दिनों के बाद रफीक के हमारे घर आने की बात सुनकर मुझे भी थोड़ी खुशी हुई । )
मैं - ओह , अच्छा । किस टाइम आएंगे वो ?
अशोक - बस मेरे ऑफिस के खत्म होने के बाद दोनों साथ मे ही आएंगे ।
मैं - ओके ठीक है ।
अशोक - अच्छा चलों रखता हूँ फोन । बाय ।
मैं - बाय ।
फिर अशोक ने फोन रख दिया
उनके फोन रखने के बाद मैं अपने घर के टेलेफ़ोन ( रेडलाइन ) के पास गई जो पिछले 1 महीने से खराब था । मैंने अशोक से कई बार कहा भी कि इसे ठीक करवा दो, पर वो भी अपने काम मे इतने बिजी थे कि उनका भी समय नहीं लगा , लेकिन आज आखिरकार ये काम भी निपट जाएगा । मैंने एक बार के लिए टेलेफ़ोन के रिसीवर को उठाया वो अभी भी डेड था । मैंने फिर से उसे नीचे रख दिया और अपने घर के काम मे लग गई । सब काम खत्म करने के बाद मुझे ध्यान आया की "छत पर कुछ कपड़े है ,जो मैंने कल सूखने के लिए डाले थे अब मुझे वो ले आने चाहिए " ऐसा सोचकर मैं अपने घर की छत पर चली गई । छत का वातावरण मुझे हमेशा ही मनमोहक लगता था, वहाँ की खुली हवा और सुबह की मीठी-2 धूप मन को प्रफुल्लित कर देती । आज भी छत पर आकर मेरा मन वहीं घूमते रहने का करने लगा , मैं वहीं छत पर बैठ गई ओर उस मीठी धूप के लिए अपनी बाहें फैला दी ।
फिर थोड़ी देर बाद मैंने अपने कपड़े लिए और उन्हे लेकर नीचे आ गई ।
मैंने कपड़ों को अलमारी मे रखने के इरादे से अपने बेडरूम मे आकर अपनी अलमारी खोली और उसमे कपड़ों को सलीके से रखने लगी । कपड़े अलमारी मे रखने के बाद जैसे ही उसे बंद करने के लिए मैंने अपने हाथ चालये , अचानक मेरे मन मे उसी फ़ाइल का ध्यान आ गया जो रात अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी और जिसकी कल सुबह नितिन बात कर रहा था । मेरे मन मे उस फाइल को एक बार फिर से देखने की इच्छा होने लगी , मुझे भी लगा एक बार तो देखना ही चाहिए कि आखिर इस फाइल मे ऐसा क्या है जो नितिन और अशोक दोनों ही इसके लिए इतने फिक्रमंद है , इसलिए अपने मन की उत्सुकता को शान्त करने के लिए मैंने अलमारी का लॉकर खोलकर वो फाइल निकाली और वहीं बेडपर बैठकर उसे समझने की कोशिश करने लगी ।
फाइल को ध्यान से देखने के बाद भी मुझे उसके बारे मे कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी , सिर्फ इतना ही पता चल पाया की वो कुछ सरकारी और गैर-सरकारी दस्तावेज है किसी कम्पनी के बारे मे , जो देखने से काफी जरुरी भी लग रहे थे , पर फिर भी मैं ये नहीं जान सकी के इस फाइल का नितिन के यहाँ आने से क्या ताल्लुक है । नितिन तो बोल रहा था कि अशोक उसे फाइल नहीं देंगे क्योंकि वो नहीं चाहते कि वापस आकर उनके ग्रुप-हेड की पोस्ट छीन ले , पर सवाल ये था की क्या नितिन जो बोल रहा है उसमे कुछ सच्चाई है भी या नहीं ।" अशोक से मेरी शादी को 4 साल हो चुके थे और इन 4 सालों मे मैंने कुछ भी ऐसा तो नहीं देखा था जिससे ये लगे की अशोक कोई बुरे आदमी है जो अपने फायदे के लिए दूसरों का बुरा चाहता हो । " नितिन पर तो मुझे बिल्कुल भरोसा नहीं था उसकी तो शुरुवात ही झुठ से हुई थी , जो भी हो मुझे सच को जानना ही होगा , " मैं इसी उधेड़बुन मे बैठी थी ।
ऐकाक डॉर बेल बजी और मैं अपने ख्यालों से बाहर निकली ,मैंने घड़ी मे टाइम देखा तो 11:15 बज रहे थे । मैंने अंदाजा लगा लिया की ये जरूर टेलेफ़ोन वाला होगा और मैं अपने बेड से उठी और उस फाइल को जल्दी-2 अलमारी मे रखकर दरवाजा खोलने के लिए , गेट की ओर बढ़ी ।
गेट खोला तो देखा सामने ब्लू टी-शर्ट मे एक 20-22 साल का लड़का खड़ा था , सूरत देखने से तो वो लड़का काफी मासूम सा लग रहा था । उसके हाथ मे एक बॉक्स था , उसमे उसके टूल्स रहे होंगे शायद । मेरे गेट खोलने के बाद से ही वो मुझे देख रहा था पर उसका ध्यान मेरी नेवल रिंग पर था जो मैंने आज सुबह ही पहनी थी ।
फिर उसने कहा - " नमस्ते मैडम । "