21-10-2022, 08:14 PM
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पार्ट १९: फुफेरे भाइयों का प्यार !
दरवाजे पर बेल बजी. स्वप्नील खाना लेकर आया था. घर में घुसते ही उसने अपने बनाये नियमो के अनुसार सारे कपडे निकाल दिये और पूरा नंगा हो गया. मैं बिस्तर पर लेटी थी. मेरी चुत से अभी भी बंटी का गाढ़ा वीर्य बहार निकल रहा था. मैंने बाथरूम जाकर उसको साफ़ नहीं किया. बंटी का गरम वीर्य मुझे मेरी चुत के अंदर बहुत अच्छा लग रहा था. ऐसे लग रहा था की बंटी को कोई भाग या अंश मेरे शरीर के अंदर है और वह अब मेरे शरीर का हिस्सा है.
स्वप्निल एक हट्टा कट्टा ६ फ़ीट ऊँचा मर्द था, उसने मुझे गुड़िया की तरह अपने दोनों हातों से बिस्तर पर से उठाया ओर डाइनिंग टेबल पर ले गया. तब तक बंटी ने प्लेट मैं खाना लगा दिया था. स्वप्निल ने डाइनिंग टेबल की खुर्ची पर बैठकर मुझे अपनी गोदी मैं बिठा लिया. मुझे स्वप्निल का गोरा, गुलाबी लण्ड अपनी गांड पर रगड़ता महसूस हुआ. मैं स्वप्निल की गोदी में , उसके गले में बाहें डाल कर बैठी थी और वह मुझे अपने हातों से खाना खिला रहा था. मैंने बंटी की तरफ देखा. उसने मुझे आँख मर दी. अजीब चमक और शरारत थी उसके आँखों मैं. ना कोई जलन, ना कोई शिकायत , कितना कॉन्फिडेंस और भरोसा था उसे खुदपर. स्वप्निल खाने के साथ मिठाई मैं गुलाब जामुन भी लाया था. खाना खाने के बाद, उसने गुलाब जामुन का कुछ चाशनी मेरे बूब्स पर, निप्पल्स पर डाल दी और चाटने लगा. बंटी ने कहा - मिठाई तो मैंने भी कहानी है और उसने उसकी खुर्ची मेरे पास खिंच ली और वह भी मेरे चूचियों पर से गुलाब जामुन की चाशनी चाटने लगा. स्वप्नील का लण्ड खड़ा होकर तन गया था ओर मेरी गांड की दरार मैं गांड की छेद पर टकरा रहा था. स्वप्नील ने शरारत कर के मुझे पीछे खिंच लिया तो उसका लण्ड का सूपड़ा बिलकुल मेरी गांड की द्वार को जोर से धक्का देकर टकरा गया. मुझे थोड़ा दर्द हो गया ओर मैंने कहा - नहीं स्वप्नील..यह नहीं..करके आगे खिसक गयी. बंटी हंसकर बोला - हI स्वप्नील, इसकी चुत को चोदने का उद्घाटन का मौका तो मुझे नहीं मिला , पर इसकी गांड का उद्घाटन जरूर मेरा लण्ड ही करेगा. मैंने बंटी का लण्ड पकड़कर जोर से दबा दिया - चुप कमीने .. बंटी ने - आह ! कर के आहें भर दी. हम सब हंसी मजाक कर रहे थे.
मेरी चुत अब फिर से गीली होने लगी थी . बंटी का पाणी अभी भी मेरी चुत से बहार निकल रहा था और स्वप्निल के जांघों पर गिर के चिपक रहा था. स्वप्निल की दोनों जाँघे मेरे और बंटी के पाणी से गीली होकर चिप चिपी हो गयी थी. स्वप्निल ने मेरी चुत के अंदर एक ऊँगली डाल दी और चिप चिपा पानी निकल कर सुंघा - आह इसमें तो संध्या और बंटी दोनों की महक है.. हम सब हंसने लगे. उसने वह ऊँगली मुँह मैं डाल दी और चाट ली. कहा - या तो बड़ा स्वाद दे रहा है. मुझे सब चाटना है. उसने मुझे वैसे ही गोदी मैं उठा लिया और धीरे से सोफे पर बिठा दिया. मेर दोनों पैर अपने हातों से फैला दिये और मेरी चुत को अपने जीभ से चाटने लगा. मुझे बड़ा अजीब लगा. स्वप्निल बड़ी चाव से मेरा और बंटी का मिश्रित पाणी, मेरी चुत के अंदर से चाट रहा था. जैसे कोई अमृत हो. बंटी का लण्ड अब तनाव में आकर कड़क हो गया था. उसने सोफे के साइड से आकर खड़े खड़े उसका लण्ड मेरे मुँह के पास रख दिया. मैंने अपने दोनों हातों से बंटी का लण्ड पकड़ लिया और उसको चूमने लगी और चूसने लगी. बंटी ने भी अपना लण्ड धोया नहीं था. उसका लण्ड मेरे और उसके पानी से भीगा था, मुझे हम दोनों का स्वाद ओर महक उसके लण्ड पर महसूस हो रहा था. मैंने बंटी का काला ८ इंच का लण्ड धीरे धीरे , अपना गला ऊपर कर के, पूरा मुँह के अंदर गले तक ठूस लिया. बंटी बहुत खुश हो गया. उधर स्वप्निल ने मेरी चुत चाट- चाट कर , अंदर तक अपनी मोटी लम्बी जीभ डाल दी थी और बंटी ओर मेरा पूरा पाणी चाट लिया था. अब मेरी चुत सिर्फ उसकी थूंक के कारण गीली थी.
मेरा सारा ध्यान बंटी के लण्ड पर था, जो लण्ड मुझे इतनी ख़ुशी देता है, उसे मुझे आज बहुत प्यार करना था. मैं बंटी के लण्ड को कभी ओंठो से, कभी गालों पर , कभी मेरे चूचियों पर रगड़ देती, चूमती ओर चूसती . बंटी का नाग अब मेरे मुँह मैं फन-फ़ना रहा था. मुझे पता था चुत की बजाये मर्द का लण्ड औरत के मुँह और गले में जल्दी झड़ जाता है. तब तक स्वप्निल ने मेरे पाव अपने कंधे पर उठाकर अपना गोरा गुलाबी लण्ड मेरे चुत पर रख दिया था. उसने धक्का मारा, और उसका पूरा लण्ड मेरी चुत के अंदर चला गया. स्वप्निल मुझे निचे से मेरी चुत को अपने गोरे गुलाबी ७ इंच के कटे लण्ड से अंदर बहार कर के चोद रहा था और बंटी मेरे मुँह और गले को अपने मोटे काले ८ इंच के लण्ड से चोद रहा था. मेरी चुत पहले से बंटी के ८ इंच काले लण्ड की चुदाई से खुल गयी थी, इसलिए स्वप्निल का लण्ड आसानी से मेरे चुत में गोते लगा रहा था. मैं अब कांपने लग गयी थी..मेरी चुत अब गरम हो कर कसमसा गयी थी और मेरे मुँह से सिसकारियां निकल रही थी..आह.. मेरे बंटी ..उह ..स्वप्निल.. कमीनो .. चोद चोद कर मुझे मार डालोगे...आह.. मैंने बंटी का लण्ड पूरा गले तक लिया और जोर-जोर से उसके लण्ड को पकड़ कर चूसने लगी. बंटी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और ..आह..उह..कर के अपना लण्ड बहार निकाला और मेरे जीभ पर अपने लण्ड का पाणी गिराने लगा. मैंने नीचे अपने चुत से स्वप्निल का लण्ड कस के पकड़ लिया और वह भी..उसी समय..आह मेरी रानी..संध्या ..ले ले..करके .. उसका लण्ड मेरी चुत में झटके से गरम पाणी का फंवारा उड़ाने लगा. स्वप्निल ने कही झटके दिये और मेरी चुत के अंदर अपना सारा वीर्य डाल दिया. वह मेरे ऊपर लेट गया. मैं भी बंटी के लण्ड से हर एक बून्द अपनी जीभ से चाट रही थी, बंटी के पानी का स्वाद मुझे मादक लग रहा था. किसी दूध या शहद की तरह मीठा लग रहा था. मेरे लिये यह उसका तीर्थ प्रसाद था. बंटी का लण्ड अभी भी खड़ा था ओर मैं किसी लॉलीपॉप की तरह उसे मुँह में चूस कर उसका स्वाद ले रही थी.
हम तीनों अब थक गए थे. स्वपनिल ने फिर से मुझे उसके भारी भरकम शरीर के ऊपर उठा लिया और बैडरूम में लाकर मुझे बिस्तर के बीच में सुला दिया. इतनी चुदाई से मेरे पाँव कांप गये थे, मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी. स्वपनिल मेरे बाजू में लेट गया. उसने मुझे अपने दोनों हातों और पैरो के बीच बाहें फैला कर मेरे शरीर को पूरा अपने शरीर से जकड लिया. मैंने भी उसके भुजाओं पर अपना सर रख दिया और उसके ओंठों पर अपने ओंठ रखकर सोने लगी. बिस्तर के दूसरे छोर से बंटी आया और मुझे पीछे से चिपक गया. उसने उसका एक हाथ मेरे सीने पर मेरे मम्मों पर रख दिया. मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसके हात को अपने ओंठों पर रख दिया. पीछे से बंटी का लण्ड मेरी गांड की फांको मैं धस कर मेरे चुत को छू रहा था. मैंने फिर से उसके हात को चुम लिया और वैसे ही उसके हात पर अपने ओंठ लगाकर सो गयी. मेरा कनेक्शन अब पूरा हो गया था.
२ दिन तक स्वप्निल और बंटी ने मुझे बहुत प्यार किया. वह दोनों थे, मैं अकेली, उन दोनों को संतुष्ट करना आसान नहीं था. वह रात की गाड़ी से वापस चले गये क्यूंकि दूसरे दिन माँ - पापा वापस आने वाले थे..
जाने से पहले स्वपनिल ने मुझे सोने की अंगूठी गिफ्ट दी और बंटी ने मुझे २ सोने के कंगन दिये. मेरे आँखों मैं आंसू थे. मैंने कहा - इसकी क्या जरुरत थी, तुम दोनों तो अभी कमाते भी नहीं. जब कमाओगे तब देना. जो चाहे दे देना . बंटी ने कहा - ये उनके पॉकेट मनी की सेविंग्स से ली. कहा की उन्होंने दिल से मुझे यह गिफ्ट दिया है, मना मत करना. स्वपनिल ने कहा - संध्या तेरे सिवा हमारा ओर कौन है. हम हमारी ख़ुशी से दे रहे. तेरे कारण हमें कितना आनंद मिला हैं. . मैंने कहा - ठीक है अब तो ले लेतीं हूँ, पर आगे से कोई गिफ्ट नहीं लुंगी. मुझे उनके कमाई का गिफ्ट लेने मैं कोई हर्ज नहीं है. दोनों मुझे बाँहों मैं लेकर आगे पीछे लिपट गये ओर प्यार से मुझे चमन लगे. मेरे आँखों मैं पानी था. बंटी ने मेरे आँखों पर चुम लिया और मेरे आँखों का पानी चाट लिया कहा - रोना नहीं पगली, तू जब बुलायेगी हम आ जायेंगे.
मैं बहुत थक गयी थी..जल्दी से सो गयी.
उस दिन सुबह सुबह मुझे सपना आया - बंटी का तेजस्वी चेहरा, उसकी शरारती कामिनी आंखें, वह मेरे पास नंगा बैठा था, उसका कसा हुआ गठीला बदन, उसका लम्बा मोटा, काला ८ इंच का नाग, वह मुझे प्यार कर रहा था.
मैं नींद से तड़प कर उठी .. मेरा शरीर पसीने से भीगा था, मेरी चुत फड़फड़ा रही थी, शरीर कांप रहा था. चुत से पानी बह रहा था. पहली बार मैंने सपने मैं किसी मर्द को देखा था, प्यार किया था. क्या था यह ? और हरीश..? नहीं मैं तो हरीश से प्यार करती हूँ. पर हरीश के साथ यह अनुभूति क्यों नहीं हुई ?