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Adultery शादी
#14
"आदि, दरवाजा खोल बेटा......।" आद्विक के दादाजी ने उसका दरवाजा खटखटाते हुए आवाज लगाई।
 
                 थोड़ी देर में बस दरवाजा खुलने की धीमी सी आवाज आई। सच्चिदानंद जी धीरे से दरवाजा खोल कर कमरे में आए। कमरे की हालत उसकी स्थिति आप ही बयान कर रही थी कि वो कितना ज्यादा परेशान था।
 
दादाजी (प्यार से)- बेटा, सोचता हूं तुम्हारे इस कमरे को अब रेनोवेट कर ही दिया जाए।
 
आद्विक (गुस्से में उन्हें घूरते हुए)- plz दादू, अभी मुझे बिल्कुल मजाक करने का मन नहीं है। Plz आप जा कर आराम कीजिए, थक गए होंगे।
 
दादाजी - हम्मम..... थक तो गया हूं लेकिन इतना भी नहीं कि मेरे बच्चे को मेरी जरूरत हो और मैं ना रहूं।
 
            आद्विक रूआंसा सा आ कर अपने दादाजी के पैरों के पास बैठ गया।
 
दादाजी (प्यार से)- अब बता मेरे बच्चे को कौन सी बात इतनी परेशान कर रही है कि वो इतना बेचैन है ???
 
           आद्विक ने संक्षिप्त में कुछ बातें उन्हें बता दीं। सारी बातें सुन कर दादाजी भी एक गहरी सोच में पड़ गए।
 
दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- बेटा, मैं तुम्हारी स्थिति अच्छे से समझ रहा हूं लेकिन एक बात कहूं तूने उसके साथ गलत किया।
 
आद्विक (गुस्से में)- और वो जो उसने मेरे साथ किया....??
 
दादाजी (समझाते हुए)- बेटा, लड़कियां मन की बहुत कोमल होती हैं। उस सागर की गलत हरकतों के बारे में सोच कर ही वो कितनी परेशान होगी, उसपर से अपने सामने उसी स्थिति में यूं तुम दोनों का बात करना, तुम्हें अंदाजा भी नहीं है, क्या गुजर रही होगी उस पर.... बेटा ये समाज आज भी जो छूट जो अधिकार लड़कों को देता है वही अधिकार उसे लड़कियों को देने में आज भी ऐतराज है। ज्यादातर लड़कियां तो खुल कर अपनी ऐसी परेशानियां आज भी अपने मां बाप तक को नहीं बता पाती हैं क्यों, क्योंकि उसे पता है कि वे मां बाप जिन्होंने उसे पैदा किया, सुरक्षा दी, वही जब बात इज्जत की आएगी तो वे साथ बेटियों का नहीं बल्कि उस दोगले समाज का देंगे।
 
           आद्विक दादाजी की बात काफी गंभीरता से सुन रहा था। 
 
दादाजी (फिर से)- अब तुम्हीं बताओ, कि उस जगह उस परिस्थिति में एक डरी हुई लड़की और क्या करती ??
 
            आद्विक बिल्कुल चुप था। अब उसे अपनी ही हरकतों पर बुरा लग रहा था। हालांकि उसे थोड़ी नाराजगी अब भी थी लेकिन उस वक्त के अपने रवैए को सोच कर वो खुद में शर्मिंदा था।
 
             थोड़ी देर और दोनों एक दूसरे से बातें करते रहे फिर दादाजी भी अपने कमरे में आराम करने चले गए।
 
 
 
दर्श का घर......
 
                        दर्श का घर भव्या के लिए बिल्कुल सपनों जैसा खूबसूरत था जहां लगभग हर एक चीज परफेक्ट थी। गृहप्रवेश और बांकी सारी रस्में पूरी करने के बाद भव्या को भी दर्श के कमरे तक छोड़ दिया गया। भव्या भी कमरे और उसकी सजावट देख बहुत खुश थी। थोड़ी ही देर बाद दर्श भी कमरे में आया तो भव्या के दिल की धड़कनें भी बढ़ने लगीं। दर्श धीरे से आ कर भव्या के बगल में बैठ गया।
 
दर्श (प्यार से)- कांग्रेट्स, आखिर हम दोनों हमेशा के लिए एक दूसरे के साथ आ ही गए।
 
भव्या (नजरें नीची किए)- आ....आप... आप 
 
दर्श (प्यार से)- यार, plz ये आप मत बोलो मुझे, अजीब लगता है जैसे मैं तुम्हें जानता ही नहीं हूं। तुम मुझे तुम पुकारती हुई ही अच्छी लगती हो।
 
भव्या की नजरें फिर से शर्म से नीचे झुक गईं।
 
             दर्श ने थोड़ी ही देर में बगल के ड्रॉअर से एक गिफ्ट निकाला और भव्या के हाथों में रख दिया। 
 
दर्श (प्यार से)- Mrs दर्श, plz खोल कर देखो ना....
 
भव्या ने धीरे से वो डिब्बा खोला तो उसमें बहुत ही खूबसूरत सी कपल के लिए दो डायमंड रिंग थीं। वो हैरानी से दर्श की ओर देखने लगी।
 
दर्श (प्यार से)- सॉरी ये इसलिए कि इन सब रस्मों में एक रस्म तो अधूरी ही रह गई थी, हमने एक दूसरे को अंगूठी ही नहीं पहनाई। इसीलिए सोचा क्यों ना हमारे रिश्ते की शुरुआत इसी से की जाए।
 
             भव्या भी प्यार से बस दर्श की ओर देखने लगी। वहीं दर्श ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथों में ले कर उसे अंगूठी पहना दी। फिर भव्या ने भी दर्श के उंगली में अंगूठी पहना दी और दोनों प्यार से एक दूसरे के गले लग गए।
 
              इस बीच जहां भव्या एक ओर अपने प्यार में ही अपना जीवनसाथी पा कर खुश थी, वहीं साथ ही शादी के बाद के आए जिंदगी, घर और रिश्तों में बदलाव को समझने की पूरी कोशिश कर रही थी। 
 
                दूसरी ओर नीतिका अचानक से आए इस रिश्ते को समझ नहीं पा रही थी। उस पर से आद्विक की कही हुई वो बातें अब तक उसका पीछा नहीं छोड़ पा रही थीं। यही वजह भी थी कि भव्या के लाख बुलाने पर भी वो किसी ना किसी बहाने से उसे मना करती रहती थी कि भूल से भी उसका आमना सामना फिर से दर्श के इस दोस्त से न हो जाए, जिसे वो जिंदगी भर नहीं देखना चाहती थी। 
 
                नीतिका के मां बाप ने भी जब आद्विक का परिचय दर्श के फुफेरे भाई के तौर पर कराया तो उसे इस बात का दूर दूर तक कोई खयाल नहीं आया कि ये वही इंसान हो सकता है जिससे वो आज के वक्त में शायद सबसे ज्यादा नफरत करती थी। वहीं उसके मां बाप को लगा कि सबने लड़के को शादी में देखा ही है और फिर बांकी बात तो फिर से आमने सामने होगी ही, तो अलग से फोटो की कोई मांग नहीं की और ना ही नीतिका ने भी इस बात पर कोई जोर ही दिया।
 
            
 
 
कुछ समय बाद.......
 
 
            "बेटा, क्या सोचा है तुमने??? मैंने नीतू से तुम्हें फोटो भी दिखवाई थी, लेकिन तूने कोई जवाब नहीं दिया??" उर्मिला जी आद्विक के सिर में तेल लगाते हुए बोलीं।
 
आद्विक (बात बदलते हुए) - दादी, आपके हाथों की मालिश का जादू ही कुछ और है।
 
उर्मिला जी - देख बेटा, इस बुढ़िया ने ये बाल धूप में नहीं पकाए हैं बल्कि तजुर्बे से पके हैं।
 
आद्विक (हंसते हुए) - फिर भी आप अब भी उतनी ही सुंदर लगती हैं।
 
उर्मिला जी (झूठा गुस्सा करते हुए)- अब तू अपनी दादी से चुहलबाजी करेगा, मार खायेगा, मार.... समझा।
 
            तीनों फिर खिलखिला कर हंसने लगे।
 
उर्मिला जी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देख बेटा, अगर सच में तुम्हें कोई और पसंद है तो खुल कर बताओ लेकिन नहीं तो फिर हमारी बात मानो, काफी अच्छी, शांत और संस्कारी लड़की है वो, बिल्कुल सही जोड़ी रहेगी तुम दोनों की।
 
दादाजी - वैसे बेटा, एक बार मिलने और देखने में क्या बुराई है??
 
           आद्विक अब चाह कर भी ना नहीं कर सका। और दोनों ही परिवार वालों के मिलने मिलाने की बात अगले इतवार यानी कि बस तीन दिन बाद की ही तय की गई। रही बात फोटो देखने की तो उसे इस शादी में दूर तक कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, वो तो बस अपने दादा दादी के मन को दुखी नहीं करना चाहता था बस इसीलिए मिलने को तैयार हो गया। उसने तो अपने खुराफाती दिमाग से ये पहले ही सोच लिया था कि मिलते ही लड़की खुद ही मना कर देगी।
 
              उर्मिला जी ने सुबोध और सुनीता जी को भी साथ चलने के लिए कड़ाई से कह रखा था। जहां सुबोध जी को इन सब बातों से कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था वहीं सुनीता जी इस बात से थोड़ा परेशान और चिढ़ी सी थीं कि दोनों ही परिवारों के स्टैंडर्ड में जमीन आसमान का फर्क था।
 
               रविवार की सुबह उर्मिला जी पहले से ही एक एक तैयारी देख रही थीं लड़की वालों के यहां जाने की चीजों को ले कर ताकि ऐन वक्त पर कोई हड़बड़ी ना मच पाए। वो और नीतू कुछ काम ही कर रही थीं कि उधर दूसरे कमरे से फिर से एक बार सुनीता और सुबोध जी के आपस में बहस करने की आवाज़ें आने लगीं।
 
सुबोध जी (गुस्से में)- तुम कोई भी काम चुपचाप नहीं कर सकती है ना, चाहे वो काम कितना ही जरूरी या तुम्हारे बच्चों का ही क्यों ना हो।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, थैंक्यू at least किसी को तो याद है कि ये मेरे बच्चे की शादी की बात हो रही है, वरना......
 
सुबोध जी - अगर ये काम तुम पहले से कर रही होती, अपनी जिम्मेदारी समझती तो शायद आज ये स्थिति भी नहीं होती।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, तुम तो चाहोगे ही यही कि मैं बस अपनी जिंदगी जीना छोड़ बस तुम्हारे घर और घरवालों की चाकरी करूं...... लेकिन तुम्हारा ये सपना कभी पूरा नहीं होगा, याद रखना।
 
सुबोध जी (गुस्से में)- इतने साल हो गए लेकिन तुम्हारी सुई अब भी वहीं अटकी है कि मैंने तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दी। तुम्हारा चुनाव में ना खड़े होने देने का फैसला सिर्फ मेरे घरवालों का नहीं वरन तुम्हारे भी घरवालों का था, ये भूलो मत।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, तो ना मैंने अब तक अपने घरवालों को भी माफ किया है और ना ही कभी तुम्हारे घरवालों को ही माफ करूंगी और तुम..... तुम तो सबसे बड़े दोषी हो मेरी तरक्की के, जलते थे न तुम, इसीलिए साथ नहीं दिया ना...
 
सुबोध जी (गुस्से में तिलमिलाते हुए)- बस, बहुत हो गया, बहुत सुन ली बकवास तुम्हारी, सिर्फ मां बाप की वजह से अब तक बर्दाश्त कर रहा हूं तुम्हें, वरना तुम भी जानती हो कि कितने मिनट लगते तुम्हें अपनी जिंदगी से चलता फिरता करने में.......
 
सुनीता (गुस्से में)- हां तो करो ना, सिर्फ बोलते क्यों हो, और ये मां बाप का हवाला देते -देते थक नहीं गए हो?? एक वे हैं जिन्हें सब पता है फिर भी मेरी जिंदगी को कंट्रोल करने से बाज नहीं आते।
 
            दोनों ऐसे ही गुस्से में एक दूसरे से लगातार बहस किए जा रहे थे कि अचानक बाहर के हॉल से तेज हलचल की आवाज आने लगी।
 
नीतू (घबराते हुए)- आदि....... आदि, आदर्श... Plz जल्दी आओ, plz जल्दी।
 
           नीतू की ऐसी घबराई आवाज सुन कर सब बाहर हड़बड़ा कर पहुंचे तो देखा सामने सच्चिदानंद जी सोफे पर बेहोश सी अवस्था में पड़े हैं और उर्मिला जी जार जार रोए जा रही हैं।
 
          "दादू......... दादू.......हटो, जल्दी हटो सारे, भैया.... गाड़ी..... गाड़ी निकालिए..... जल्दी...। दीदी तुम दादी को संभालो.... उनको देखो...." कहते हुए आद्विक ने उन्हें झट से अपनी गोद में उठा कर गाड़ी में लिटाया और हॉस्पिटल ले गया।
 
                  हॉस्पिटल पहुंच कर और डॉक्टर की देख रेख के बाद यही पता चला कि उन्हें मेजर हार्ट अटैक आया था, अब उनकी हालत थोड़ी स्थिर थी। आद्विक चुपचाप सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया। आदर्श ने फोन करके घर पर भी सभी को सारी बात बताई और उर्मिला जी का खयाल रखने को कहा।
 
                      कुछ घंटों बाद जब सच्चिदानंद जी को होश आया तो देखा आद्विक बस उनका हाथ पकड़े वहीं बैठा था। आद्विक भी उन्हें होश में आता देख खुश हो गया लेकिन अगले ही पल सुबह की सारी बात सोच कर फिर से दुखी हो गया। आज सुबह की सारी बातें आद्विक पहले ही नीतू और सौम्या से सुन चुका था लेकिन फिर भी किसी तरह अपने आप को उसने शांत कर रखा था।
 
आद्विक (जान कर)- दादू, ये बिलकुल ठीक नहीं किया आपने, ये कौन सा तरीका है सबको डराने का....
 
दादाजी (धीमे से)- मैं ठीक हूं बेटा, चिंता मत करो।
 
आद्विक (रूआंसा हो कर) -दादू, दोबारा आपने कभी भी ऐसा कुछ किया तो देखिएगा मैं आपसे बात नहीं करूंगा। 
 
            दोनों ने यूं ही थोड़ी हल्की फुल्की बात की और फिर दवाओं की वजह से उनकी आंख लग गई और आद्विक भी पीछे कुर्सी के सहारे अपना सिर टिकाते हुए आंखें बंद किए कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर में ही रूम से बाहर आ कर फोन पर उसने किसी से कुछ बात की और फिर वापस कमरे में चला गया।
 
            दो दिन बाद ही सच्चिदानंद जी भी घर आ गए। उन्हें सकुशल देख सबसे ज्यादा राहत और खुशी उर्मिला जी के आंखों में थी। इस बीच सुबोध जी ने उर्मिला जी से बात करने की कोशिश भी की थी लेकिन उनके लिए उस वक्त अपने पति से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था सो उन्होंने उसकी कोई बात नहीं सुनी। इसके विपरीत सुनीता जी ने तो ऐसी कोई कोशिश तक नहीं की थी इतना कहना छोड़ कर कि इतना परेशान मत होइए, अच्छा हॉस्पिटल है, ठीक हो जायेंगे वो, इतना घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
 
          सच्चिदानंद जी अपने कमरे में आराम कर रहे थे और उर्मिला जी भी वहीं उनके बगल में बैठी थी। आदर्श, नीतू और आद्विक भी वहीं आस पास थे। तभी कुछ बात उठी तो नीतू ने बताया कि उसने लड़की वालों को अभी आने से मना कर दिया है।
 
उर्मिला जी (कुछ सोच कर उदास मन से)- पता नही, विधाता को भी क्या मंजूर है, इतनी अच्छी, प्यारी और सुशील लड़की, सोचा था अपने आदि के साथ खूब सही जोड़ी बैठेगी लेकिन अब तो पता नहीं कब ये सब हो पाएगा।
 
सच्चिदानंद जी (कुछ सोच कर)- आप लोग जा कर आगे का काम क्यों नहीं देख लेते हैं, ऐसे लड़कीवालों को ज्यादा इंतजार कराना भी ठीक नहीं है।
 
नीतू - पर....
 
सच्चिदानंद जी - पर.... क्या, सही कह रहा हूं, मैं तो वैसे भी बच्ची को देख ही चुका हूं, मुझे तो उर्मिला जी की पसंद बिल्कुल पसंद है, अब बस आदि देख और मिल ले फिर बांकी बात भी आराम से हो जायेगी, क्यों आदि....??
 
            सभी आदि की ओर देखने लगे जो बिल्कुल शांति से काफी देर से सबकी बातें सुन रहा था।
 
             "दादू..... दादी.... मुझे कोई लड़की नहीं देखनी है.......।" आद्विक ने बस इतना ही कहा कि सभी फिर से उदास हो गए।
 
आद्विक (फिर से)- दादू... दादी, आप दोनों को पसंद है ना यह रिश्ता, तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है, मैं, शादी के लिए तैयार हूं। (थोड़ा रुक कर)........ हां बस मेरी एक शर्त है, वो यह कि मुझे इस शादी के नाम पर कोई ज्यादा ताम झाम नहीं चाहिए। ये शादी जल्दी और बिल्कुल साधारण से तरीके से किसी मंदिर में होनी चाहिए। बस ये बात आप लड़की वालों से ये बात खुल कर कह दीजिए।
 
उर्मिला जी - पर......
 
                    वो आगे कुछ कहतीं लेकिन पहले ही इशारे से सच्चिदानंद जी ने उस वक्त कुछ भी कहने से उन्हें रोक लिया।
बांकी सभी आद्विक की बात सुन कर बस उसकी और देखने लगे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:07 PM
RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:08 PM
RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:10 PM
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RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:13 PM
RE: शादी - by Jainsantosh - 21-10-2022, 05:29 PM
RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 06:29 PM
RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 06:31 PM
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RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 06:32 PM
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RE: शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 06:33 PM
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RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:15 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:17 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:18 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:18 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:19 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:19 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:22 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:23 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:24 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:25 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:26 PM
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RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:29 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:30 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:45 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:46 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:54 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:55 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:57 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:58 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 02:59 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 03:02 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 03:03 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 03:04 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 03:05 PM
RE: शादी - by neerathemall - 27-10-2022, 04:00 PM
RE: शादी - by Teeniv - 28-10-2022, 12:56 AM
RE: शादी - by neerathemall - 25-01-2023, 02:38 PM



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