21-10-2022, 06:32 PM
बड़े ही अच्छे से जयमाला का कार्यक्रम भी संपन्न हो गया, जहां एक पल के लिए भी दर्श की नजर भव्या से हट ना सकीं। वहीं दर्श को लगातार अपनी ओर देखते हुए भव्या और शर्मा कर लाल हुई जा रही थी।
जयमाला खत्म होते ही दोनों को शादी के मंडप की ओर ले जाया जाने लगा। कुछ लोगों को छोड़ कर बांकी सभी घरवाले बारातियों के खाने पीने का ध्यान देखने लगे। जिसमें एक नीतिका भी थी, क्योंकि भव्या की मां ने उसे अलग से सबका खयाल रखने की हिदायत दी थी कि किसी को भी कोई परेशानी ना हो, खास कर दर्श के करीबी महिला रिश्तेदारों का। नीतिका भी पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रही थी।
आज नीतिका ने भी एक हरे रंग का प्यारा सा लहंगा चोली पहन रखा था जिसमें उसके लंबे बालों का एक खूबसूरत जा जूड़ा बना रखा था। आंखों में काजल और चेहरे पर बस हल्की सी मेकअप, फिर भी वो बहुत ही प्यारी लग रही थी। आज जहां एक ओर दर्श और भव्या की शादी की रस्में हो रही थीं वहीं दूसरी ओर आद्विक के सभी घरवाले नीतिका को चुपचाप देखने और परखने में लगे हुए थे जिसका दूर तक उसे कोई अंदाजा भी नहीं था।
नीतिका की दादी चूंकि ज्यादा चल फिर नहीं पा रही थीं तो वो हर थोड़ी देर में उनके पास जा कर कोई जरूरत तो नहीं है ये पूछ कर आती। दादी को भी नीतिका अपने पोते के लिए पहली ही नजर में भा चुकी थी।
नीतू दीदी (धीमे से)- अगर आज मां आई होती तो ये बात भी आज ही पक्की कर लेते।
दादी (दुखी मन से)- जो औरत आज तक अपने घर परिवार और रिश्तों की कद्र नहीं कर पाई वो अब आगे क्या करेगी।
सौम्या भाभी (कुछ सोच कर) - दादी, अब तक लगभग सारे फैसले आपने और दादाजी ने ही लिए हैं तो अब ये आखिरी वाला भी आप ही ले लीजिए।
दादी ( कुछ सोच कर लंबी सांस लेते हुए)- नीतू, तुमने इस बच्ची के घरवालों से कोई बात की है या नहीं अब तक ??
नीतू - नहीं दादी मां, लेकिन बस एक दो बार इन्हीं रस्मों में मिली हूं क्योंकि दोनों ही परिवार काफी करीबी हैं।
नीतू ने इशारे में ही नीतिका की मां को दिखाया जो दूसरी ओर शादी के मंडप में खड़ी भव्या की मां की मदद कर रही थीं। दादी के कहने पर ही नीतू दीदी ने जा कर उन्हे बुलाया।
नीतिका की मां शादी में कोई ऊंच -नीच ना हो गई हो ये सोच कर थोड़ा घबराती हुई आईं तो आद्विक की दादी ने उन्हें प्यार से बगल में बिठाया और नीतिका का हाथ अपने पोते आद्विक के लिए मांगा। नीतिका की मां तो इस बात पर बिल्कुल हैरान रह गई।
दादी - देखो बेटा, मुझे ये बच्ची अपने पोते के लिए एक नजर में भा चुकी है, अब आप भी आदि यानी कि लड़के को देख परख लीजिए, फिर हामी भरिए हमें कोई दिक्कत नहीं है।
नीतू दीदी - जी आंटी जी, मैं तो नीतिका को तब से देख रही हूं जब से यहां दर्श की दुल्हन को सगाई की अंगूठी पहनाने आई थी। तबसे हमें वो अपने आद्विक के लिए पसंद है, बस बात आपसे आज कर रही हूं।
सौम्या भाभी - और आंटीजी आपको भी हमारे देवरजी से अच्छा रिश्ता अपनी बेटी के लिए और कहीं नहीं मिलेगा, देखने में तो क्या कहूं आपके सामने ही हैं, खुद ही देख लीजिए। बांकी रही बात परिवार और लड़के के अपने पैरों पर खड़े होने की तो, जैसे दर्श जी हैं वैसे ही ये भी हैं। अच्छी सैलरी है, और परिवार कैसा है ये तो आप लोग पता कर ही चुके होंगे भव्या के लिए।
नीतिका की मां ये सब सुन कर हैरान थीं लेकिन कुछ भी कहने के लिए सुबह तक का वक्त मांगा उन्होंने जिस पर आद्विक के घरवालों ने भी हामी भर दी। नीतिका की मां ने ये बात जा कर उसके पिताजी को भी बताई तो वे भी काफी हैरान हो गए और खुश भी कि नीतिका की अच्छी किस्मत की वजह से इतना अच्छा रिश्ता घर बैठे ही आ गया। उन दोनों ने आद्विक को भी देखा तो ना कहने का उन्हें ऐसा कुछ भी नही मिला। उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बात ये भी थी कि बचपन से जो सहेलियां हमेशा साथ रही थीं उन्हें आगे भी आज पास रहने को मिलेगा ये सोच कर भी वे लोग खुश थे।
एक ओर जहां हर एक रस्म के साथ भव्या और दर्श के आपस की दूरी हमेशा के लिए मिटती जा रही थी वहीं दूसरी ओर लड़कियां दर्श के जूतों के पीछे पड़े थे ताकि वक्त आने पर उसकी मुंहमांगी कीमत वसूल सकें। बड़ी ही मेहनत से नीतिका और बाकियों ने सबकी नजरें चुरा कर दर्श के जूते उठाए और उसे किसी अच्छे जगह छुपा दिया।
दूसरी ओर दर्श की बहनें और उसके कुछ और चचेरे भाई उस जूते को वापस हड़पने की होड़ में लगे थे। इसी होड़ में दर्श का एक चचेरा भाई, सागर जिसकी नजर काफी वक्त से नीतिका पर थी उसके पीछे पड़ गया। नीतिका को उसका पास दिखना ही उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन चूंकि वे लड़के वाले थे वो चुप थी।
थोड़ी देर बाद उसे किसी काम से घर जाना पड़ा तो वो उसी और जा रही थी कि अचानक सागर उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीतिका के इग्नोर करने पर भी बार बार रिश्तों का हवाला देते हुए वो उसके पीछे पड़ गया।
सागर (कुटिल मुस्कान से)- अरे, आप मुझसे इतना दूर क्यों भाग रही हैं, अब भैया की साली हमारी भी तो कुछ लगेगी ही ना.......
नीतिका ये भद्दा मजाक सुन कर अंदर ही अंदर गुस्से से लाल हुई जा रही थी लेकिन फिर भी बड़े बड़े कदमों से आगे बढ़ने लगी। लेकिन वो सागर और भी ज्यादा ढिठाई से उसके पीछे पड़ गया। जब नीतिका ने उसे फिर भी इग्नोर किया तो उसने गुस्से में नीतिका की हाथ पकड़ ली तो नीतिका ने डर से अपनी आंखें बंद कर लीं। वो कुछ और सोचती या करती कि अचानक उसे एक जोर के थप्पड़ की आवाज आई और उसने झट से आंखें खोल लीं।
सामने देखा तो सागर के गालों पर एक जोर का थप्पड़ पड़ा था और वो गुस्से में अपना गाल पकड़े खड़ा था वहीं दूसरी ओर आद्विक बेहद गुस्से में उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था।
सागर (चिढ़ कर)- ये क्या बदतमीजी है भैया??
आद्विक (गुस्से में)- ये बदतमीजी नहीं, तुम्हारी गंदी हरकतों का जवाब है।
सागर (जान बूझ कर)- अच्छा तो ये आपकी वाली थी क्या, ओह... सॉरी, पहले बताना था ना।
आद्विक (गुस्से में)- चुप...... एक दम चुप, वरना मार डालूंगा।
सागर ( गुस्से में)- क्यों, इस पटाखा ने आप पर भी कुछ ज्यादा नशा तो नहीं कर दिया जो ऐसे पागल हुए जा रहे हैं, आप तो ये भी भूल रहे हैं कि हमारा क्या रिश्ता है।
सागर (फिर से उसके थोड़े पास जा कर अपनी गंदी हंसी में)- या, अभी तक नशा लेना बांकी है??? वैसे आपको तो इन रंगीन पटाखों का मुझसे कहीं ज्यादा तजुर्बा है।
आद्विक उसकी तरफ गुस्से से लपका ही था कि इसके पहले सागर ने वहां से खिसकना ही सही समझा और दौड़ कर निकल गया। अब आद्विक को नीतिका का खयाल आया और वो उसकी तरफ मुड़ा। नीतिका वहीं एक ओर खड़ी बदहवास सी रोई जा रही थी। आद्विक कुछ कहता ही कि नीतिका चिल्ला उठी।
नीतिका (गुस्से में उसका कॉलर पकड़ कर)- क्या समझा तुमने मुझे, यही गंदी नियत थी ना तुम्हारी भी, इसीलिए आज आते ही वो माफी -माफी का ड्रामा रचा, है ना।
नीतिका (फिर से)- क्या लगा तुम्हें, मैं वैसी लड़की हूं, तुम जो चाहोगे वो करोगे, जान ले लूंगी तुम्हारी मैं......
आद्विक नीतिका की बातें सुन और गुस्से में लाल हो गया और जोर से उसका हाथ पकड़ कर पीछे की ओर मोड़ दिया, फिर गुस्से में उसके करीब आ कर खुद को उसके होंठों के बिल्कुल पास आ कर अगले ही पल झटके में उसे छोड़ दिया।
आद्विक (गुस्से में)- तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम जैसी लड़की के लिए मरा जा रहा हूं?? कभी भी, कुछ भी बोलोगी तुम?? अगर मुझे तुम्हारे साथ कुछ भी गलत करना होता तो कॉलेज से ज्यादा अच्छी जगह कोई और नहीं होती। और हां तुम्हें इतना तो पता ही होगा कि ऐसी बातों को चलता फिरता करना आज के वक्त में कितना आसान होता है। कुछ नहीं बिगाड़ पाती तुम मेरा।
आद्विक (फिर से गुस्से में)- लेकिन हां, तुम छोटे सोच वाली लड़कियों की औकात ही नहीं है कि तुम इस आद्विक सिन्हा के सामने भी खड़ी हो पाओ। आज के बाद कोशिश यही करना कि मेरे सामने ना आओ वरना अब मैं भी नहीं जानता कि मैं तुम्हारा क्या हाल करूंगा।
इतना कह कर आद्विक गुस्से में वहां से निकल गया और दूसरी ओर नीतिका भी भागती हुई अंदर भव्या के कमरे के अंदर के बाथरूम में जा कर बैठ गई और फूट फूट कर रोने लगी।
कुछ घंटों के बाद ही भव्या और दर्श की शादी संपन्न हो गई और उन्होंने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। अब घड़ी थी विदाई की तो भव्या बस अपने पिता के गले लग फूट -फूट कर रोए जा रही थी। एक एक कर सबसे मिलने के बाद उसने जब सब तरफ नजरें दौड़ाई तो उसे नीतिका कहीं नहीं दिखी। उसे लगा कि वो उसे शायद जाते वक्त देख नहीं पाएगी इसीलिए वहां नहीं है। बांकी लोग भी वही सोच रहे थे इसीलिए किसी ने इस बात पर ज्यादा कोई ध्यान नहीं दिया। थोड़ी ही देर बाद भव्या की विदाई हो गई और पूरा घर सूना पड़ गया।
दूसरी ओर आद्विक की दादी ने जब लौटते समय फिर से नीतिका और आद्विक के रिश्ते की बात की तो उन्होंने खुशी से हामी भर दी। आद्विक के घरवाले भी बहुत खुश थे और जल्दी ही आगे की बात करने का कह कर निकल गए।
नीतिका का घर........
"बेटा तुम सोच भी नहीं सकती कि कितना अच्छा रिश्ता आया है तुम्हारे लिए....।" खुशी से नीतिका का माथा चूमती हुई उसकी मां बोलीं और साथ ही उसके पिताजी ने भी हामी भर दी।
नीतिका बस परेशान सी उन दोनों की ओर देखती रही।
नीतिका (रुआंसी सी) - पर पापा..... मैं अभी शादी नहीं, जॉब करना चाहती हूं, plz पापा....
नीतिका की मां (प्यार से)- बेटा, तू जिस घर में जा रही है ना, वहां तुझे नौकरी की कोई जरूरत ही नही है, हां चाहे तो तू कितनों को नौकरी पर रख सकती है।
नीतिका (कुछ सोच कर)- मां, आपको नहीं लगता कि ये सब कुछ ज्यादा ही अजीब है ?? शादी जैसी चीज ऐसे थोड़े ही होती हैं ??
नीतिका के पापा (समझाते हुए)- बेटा, क्या अजीब है, कुछ भी तो नहीं।
नीतिका के पापा (प्यार से)- अब भाई, मेरी बेटी है ही इतनी प्यारी कि कोई भी छांट ही नहीं सकता। हां, और एक महत्त्वपूर्ण बात, वो ये कि बेटा घर चाहे अमीर का हो या गरीब का, बहुवें सभी को अच्छी और संस्कारी ही चाहिए होती हैं ताकि वे उनके घर को जोड़ कर रख सकें। इसीलिए तुम्हारे लिए उनका रिश्ता आना कोई बड़ी बात नहीं है।
नीतिका भी सोच में पड़ गई।
नीतिका (थोड़ी देर में गहरी सांस लेते हुए)- पापा, आप सभी जैसा चाहें वो करें लेकिन plz पापा, मैं बस job करना चाहती हूं, और कुछ नहीं। और ये मैं पैसे के लिए नहीं बल्कि सुकून के लिए करना चाहती हूं।
नीतिका के पापा (प्यार से)- तुम परेशान मत हो बेटा मैं खुद उनसे बात करूंगा इस बारे में, वे जरूर मान जायेंगे।
नीतिका बस भावुक हो कर अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूम लिया।
आद्विक का घर........
आद्विक भी रात ही बस हल्के से दर्श को कोई बहुत जरूरी काम का बता कर घर लौट आया था। आते ही उसने सबसे पहले गुस्से में अपने कमरे की ढेरों जरूरी चीजें तोड़ डालीं। लेकिन चाह कर भी उसका गुस्सा कम नहीं हो रहा था। उसे अब भी रह रह कर नीतिका की बातें अंदर तक परेशान कर रही थीं।
"नहीं छोडूंगा तुम्हें मैं, क्या सोच कर तुमने ये........ नहीं हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी???? इस ऊंची आवाज में तो मेरे घरवालों ने मेरे साथ बात तक नहीं की है और तुम......... तुम्हें नहीं छोडूंगा..... नहीं...।" आद्विक खुद में बौखलाया हुआ बडबडा रहा था।
ऊपर के कमरे से बार -बार टूटने -फूटने की आवाज सुन आद्विक की मां भी ऊपर पहुंची। काफी बार नॉक करने पर जब उसने दरवाजा खोला तो कमरे की हालत देखते ही सुनीता जी हैरान हो गईं।
सुनीता जी (थोड़ा गुस्से में)- क्या है ये सब आदि??? क्या हाल किया है तुमने इस कमरे का ?? ये क्या हरकत है, अब तुम बच्चे नहीं हो कि तुम्हें कमरा सलीके से रखने की ट्रेनिंग दी जाए या तुम गुस्से में पैर पटको या फिर चीज़ें तोड़ो।
आद्विक (गुस्से में)- क्यों आई हैं आप यहां, और ये ज्ञान plz बंद कीजिए अभी, और अपने पास ही रखिए। मुझे बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। Plz जाइए यहां से......
सुनीता जी (और गुस्से में)- shut up आदि, बढ़ती उम्र के साथ तुम अपनी तमीज छोड़ते जा रहे हो, तुम्हें अंदाजा है कि तुम बात किससे कर रहे हो ??
आद्विक (गुस्से में)- हां, उस एक औरत से जो अपनी जिंदगी में ना तो एक अच्छी पत्नी बन पाई और न ही एक अच्छी मां..
सुनीता जी गुस्से में तिलमिलाते हुए वहां से वापस चली गईं और आद्विक ने फिर से जोर से पटक कर दरवाजा बंद कर दिया।
सुबह जब आद्विक के दादा -दादीजी और बांकी सभी भी घर वापस लौटे तो सबने पहले आद्विक का पूछा।
सुनीता जी (गुस्से में)- उस लड़के को इतनी भी तमीज नहीं रह गई है कि अपनी मां से कैसे बात करते हैं।
दादी (थोड़ा कड़े शब्दों में)- वो बेटा नहीं बन पा रहा है क्योंकि तुम अब तक सही मायनों में तुम उसकी मां नहीं बन पाई हो। मां बनने का मतलब सिर्फ बच्चे को पैदा करना नहीं होता। उसकी और भी सैकड़ों जिम्मेदारियां होती हैं, उसे तो तुमने निभाना तो दूर सोचना भी जरूरी नहीं समझा। कभी सोचा है कि इन बच्चों का मां बाप होते हुए भी ये क्यों उनसे मरहूम ही हैं बचपन से ले कर आज तक। तुम दोनों के आपसी मतभेद में इनकी क्या गलती थी।
सुबोध (नाराजगी में)- मैंने तो पहले ही आप लोगों को इन सब चीजों के लिए मना किया था लेकिन....
उर्मिला जी (गुस्से में)- हमने बच्चों की बात पर इसलिए जोर दिया था कि बच्चे मां बाप के बीच की वो कड़ियां होते हैं जो उन्हें जिंदगी भर साथ जोड़ते हैं।
सुबोध - लेकिन जब वही कड़ियां बंधन बन जाएं तो.....
दादाजी (गुस्से से)- तो..... तो बस वही करना चाहिए जो तुम दोनों आज तक कर रहे हो। दुख बस इस बात का है कि तुम दोनों के आपसी झगड़ों और परेशानियों ने तीन मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लिया और इसका लेश मात्र भी पछतावा तुम दोनों को ही नहीं है।
दादाजी (दुखी मन से)- उर्मिला जी, आप भी कहां अपना सिर फोड़ रही हैं, वे जो मां बाप बन कर भी आज तक उसकी कीमत नहीं समझ पाए, चलिए, कमरे में चल कर आराम कीजिए, वैसे ही काफी थक गई हैं आप.. मैं जरा आदि को देख कर आता हूं।
इतना कह कर वे दोनों वहां से चले गए। बांकी लोग तो पहले ही अपने कमरे में जा चुके थे, क्योंकि ये तो उस घर की लगभग रोज की ही कहानी थी। जहां ऊपर से तो सब कुछ अच्छा था लेकिन सच तो यही था कि इस परिवार के हर जोड़े की ही आपसी जिंदगी ढेरों शिकवे और शिकायतें थीं।
जयमाला खत्म होते ही दोनों को शादी के मंडप की ओर ले जाया जाने लगा। कुछ लोगों को छोड़ कर बांकी सभी घरवाले बारातियों के खाने पीने का ध्यान देखने लगे। जिसमें एक नीतिका भी थी, क्योंकि भव्या की मां ने उसे अलग से सबका खयाल रखने की हिदायत दी थी कि किसी को भी कोई परेशानी ना हो, खास कर दर्श के करीबी महिला रिश्तेदारों का। नीतिका भी पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रही थी।
आज नीतिका ने भी एक हरे रंग का प्यारा सा लहंगा चोली पहन रखा था जिसमें उसके लंबे बालों का एक खूबसूरत जा जूड़ा बना रखा था। आंखों में काजल और चेहरे पर बस हल्की सी मेकअप, फिर भी वो बहुत ही प्यारी लग रही थी। आज जहां एक ओर दर्श और भव्या की शादी की रस्में हो रही थीं वहीं दूसरी ओर आद्विक के सभी घरवाले नीतिका को चुपचाप देखने और परखने में लगे हुए थे जिसका दूर तक उसे कोई अंदाजा भी नहीं था।
नीतिका की दादी चूंकि ज्यादा चल फिर नहीं पा रही थीं तो वो हर थोड़ी देर में उनके पास जा कर कोई जरूरत तो नहीं है ये पूछ कर आती। दादी को भी नीतिका अपने पोते के लिए पहली ही नजर में भा चुकी थी।
नीतू दीदी (धीमे से)- अगर आज मां आई होती तो ये बात भी आज ही पक्की कर लेते।
दादी (दुखी मन से)- जो औरत आज तक अपने घर परिवार और रिश्तों की कद्र नहीं कर पाई वो अब आगे क्या करेगी।
सौम्या भाभी (कुछ सोच कर) - दादी, अब तक लगभग सारे फैसले आपने और दादाजी ने ही लिए हैं तो अब ये आखिरी वाला भी आप ही ले लीजिए।
दादी ( कुछ सोच कर लंबी सांस लेते हुए)- नीतू, तुमने इस बच्ची के घरवालों से कोई बात की है या नहीं अब तक ??
नीतू - नहीं दादी मां, लेकिन बस एक दो बार इन्हीं रस्मों में मिली हूं क्योंकि दोनों ही परिवार काफी करीबी हैं।
नीतू ने इशारे में ही नीतिका की मां को दिखाया जो दूसरी ओर शादी के मंडप में खड़ी भव्या की मां की मदद कर रही थीं। दादी के कहने पर ही नीतू दीदी ने जा कर उन्हे बुलाया।
नीतिका की मां शादी में कोई ऊंच -नीच ना हो गई हो ये सोच कर थोड़ा घबराती हुई आईं तो आद्विक की दादी ने उन्हें प्यार से बगल में बिठाया और नीतिका का हाथ अपने पोते आद्विक के लिए मांगा। नीतिका की मां तो इस बात पर बिल्कुल हैरान रह गई।
दादी - देखो बेटा, मुझे ये बच्ची अपने पोते के लिए एक नजर में भा चुकी है, अब आप भी आदि यानी कि लड़के को देख परख लीजिए, फिर हामी भरिए हमें कोई दिक्कत नहीं है।
नीतू दीदी - जी आंटी जी, मैं तो नीतिका को तब से देख रही हूं जब से यहां दर्श की दुल्हन को सगाई की अंगूठी पहनाने आई थी। तबसे हमें वो अपने आद्विक के लिए पसंद है, बस बात आपसे आज कर रही हूं।
सौम्या भाभी - और आंटीजी आपको भी हमारे देवरजी से अच्छा रिश्ता अपनी बेटी के लिए और कहीं नहीं मिलेगा, देखने में तो क्या कहूं आपके सामने ही हैं, खुद ही देख लीजिए। बांकी रही बात परिवार और लड़के के अपने पैरों पर खड़े होने की तो, जैसे दर्श जी हैं वैसे ही ये भी हैं। अच्छी सैलरी है, और परिवार कैसा है ये तो आप लोग पता कर ही चुके होंगे भव्या के लिए।
नीतिका की मां ये सब सुन कर हैरान थीं लेकिन कुछ भी कहने के लिए सुबह तक का वक्त मांगा उन्होंने जिस पर आद्विक के घरवालों ने भी हामी भर दी। नीतिका की मां ने ये बात जा कर उसके पिताजी को भी बताई तो वे भी काफी हैरान हो गए और खुश भी कि नीतिका की अच्छी किस्मत की वजह से इतना अच्छा रिश्ता घर बैठे ही आ गया। उन दोनों ने आद्विक को भी देखा तो ना कहने का उन्हें ऐसा कुछ भी नही मिला। उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बात ये भी थी कि बचपन से जो सहेलियां हमेशा साथ रही थीं उन्हें आगे भी आज पास रहने को मिलेगा ये सोच कर भी वे लोग खुश थे।
एक ओर जहां हर एक रस्म के साथ भव्या और दर्श के आपस की दूरी हमेशा के लिए मिटती जा रही थी वहीं दूसरी ओर लड़कियां दर्श के जूतों के पीछे पड़े थे ताकि वक्त आने पर उसकी मुंहमांगी कीमत वसूल सकें। बड़ी ही मेहनत से नीतिका और बाकियों ने सबकी नजरें चुरा कर दर्श के जूते उठाए और उसे किसी अच्छे जगह छुपा दिया।
दूसरी ओर दर्श की बहनें और उसके कुछ और चचेरे भाई उस जूते को वापस हड़पने की होड़ में लगे थे। इसी होड़ में दर्श का एक चचेरा भाई, सागर जिसकी नजर काफी वक्त से नीतिका पर थी उसके पीछे पड़ गया। नीतिका को उसका पास दिखना ही उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन चूंकि वे लड़के वाले थे वो चुप थी।
थोड़ी देर बाद उसे किसी काम से घर जाना पड़ा तो वो उसी और जा रही थी कि अचानक सागर उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीतिका के इग्नोर करने पर भी बार बार रिश्तों का हवाला देते हुए वो उसके पीछे पड़ गया।
सागर (कुटिल मुस्कान से)- अरे, आप मुझसे इतना दूर क्यों भाग रही हैं, अब भैया की साली हमारी भी तो कुछ लगेगी ही ना.......
नीतिका ये भद्दा मजाक सुन कर अंदर ही अंदर गुस्से से लाल हुई जा रही थी लेकिन फिर भी बड़े बड़े कदमों से आगे बढ़ने लगी। लेकिन वो सागर और भी ज्यादा ढिठाई से उसके पीछे पड़ गया। जब नीतिका ने उसे फिर भी इग्नोर किया तो उसने गुस्से में नीतिका की हाथ पकड़ ली तो नीतिका ने डर से अपनी आंखें बंद कर लीं। वो कुछ और सोचती या करती कि अचानक उसे एक जोर के थप्पड़ की आवाज आई और उसने झट से आंखें खोल लीं।
सामने देखा तो सागर के गालों पर एक जोर का थप्पड़ पड़ा था और वो गुस्से में अपना गाल पकड़े खड़ा था वहीं दूसरी ओर आद्विक बेहद गुस्से में उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था।
सागर (चिढ़ कर)- ये क्या बदतमीजी है भैया??
आद्विक (गुस्से में)- ये बदतमीजी नहीं, तुम्हारी गंदी हरकतों का जवाब है।
सागर (जान बूझ कर)- अच्छा तो ये आपकी वाली थी क्या, ओह... सॉरी, पहले बताना था ना।
आद्विक (गुस्से में)- चुप...... एक दम चुप, वरना मार डालूंगा।
सागर ( गुस्से में)- क्यों, इस पटाखा ने आप पर भी कुछ ज्यादा नशा तो नहीं कर दिया जो ऐसे पागल हुए जा रहे हैं, आप तो ये भी भूल रहे हैं कि हमारा क्या रिश्ता है।
सागर (फिर से उसके थोड़े पास जा कर अपनी गंदी हंसी में)- या, अभी तक नशा लेना बांकी है??? वैसे आपको तो इन रंगीन पटाखों का मुझसे कहीं ज्यादा तजुर्बा है।
आद्विक उसकी तरफ गुस्से से लपका ही था कि इसके पहले सागर ने वहां से खिसकना ही सही समझा और दौड़ कर निकल गया। अब आद्विक को नीतिका का खयाल आया और वो उसकी तरफ मुड़ा। नीतिका वहीं एक ओर खड़ी बदहवास सी रोई जा रही थी। आद्विक कुछ कहता ही कि नीतिका चिल्ला उठी।
नीतिका (गुस्से में उसका कॉलर पकड़ कर)- क्या समझा तुमने मुझे, यही गंदी नियत थी ना तुम्हारी भी, इसीलिए आज आते ही वो माफी -माफी का ड्रामा रचा, है ना।
नीतिका (फिर से)- क्या लगा तुम्हें, मैं वैसी लड़की हूं, तुम जो चाहोगे वो करोगे, जान ले लूंगी तुम्हारी मैं......
आद्विक नीतिका की बातें सुन और गुस्से में लाल हो गया और जोर से उसका हाथ पकड़ कर पीछे की ओर मोड़ दिया, फिर गुस्से में उसके करीब आ कर खुद को उसके होंठों के बिल्कुल पास आ कर अगले ही पल झटके में उसे छोड़ दिया।
आद्विक (गुस्से में)- तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम जैसी लड़की के लिए मरा जा रहा हूं?? कभी भी, कुछ भी बोलोगी तुम?? अगर मुझे तुम्हारे साथ कुछ भी गलत करना होता तो कॉलेज से ज्यादा अच्छी जगह कोई और नहीं होती। और हां तुम्हें इतना तो पता ही होगा कि ऐसी बातों को चलता फिरता करना आज के वक्त में कितना आसान होता है। कुछ नहीं बिगाड़ पाती तुम मेरा।
आद्विक (फिर से गुस्से में)- लेकिन हां, तुम छोटे सोच वाली लड़कियों की औकात ही नहीं है कि तुम इस आद्विक सिन्हा के सामने भी खड़ी हो पाओ। आज के बाद कोशिश यही करना कि मेरे सामने ना आओ वरना अब मैं भी नहीं जानता कि मैं तुम्हारा क्या हाल करूंगा।
इतना कह कर आद्विक गुस्से में वहां से निकल गया और दूसरी ओर नीतिका भी भागती हुई अंदर भव्या के कमरे के अंदर के बाथरूम में जा कर बैठ गई और फूट फूट कर रोने लगी।
कुछ घंटों के बाद ही भव्या और दर्श की शादी संपन्न हो गई और उन्होंने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। अब घड़ी थी विदाई की तो भव्या बस अपने पिता के गले लग फूट -फूट कर रोए जा रही थी। एक एक कर सबसे मिलने के बाद उसने जब सब तरफ नजरें दौड़ाई तो उसे नीतिका कहीं नहीं दिखी। उसे लगा कि वो उसे शायद जाते वक्त देख नहीं पाएगी इसीलिए वहां नहीं है। बांकी लोग भी वही सोच रहे थे इसीलिए किसी ने इस बात पर ज्यादा कोई ध्यान नहीं दिया। थोड़ी ही देर बाद भव्या की विदाई हो गई और पूरा घर सूना पड़ गया।
दूसरी ओर आद्विक की दादी ने जब लौटते समय फिर से नीतिका और आद्विक के रिश्ते की बात की तो उन्होंने खुशी से हामी भर दी। आद्विक के घरवाले भी बहुत खुश थे और जल्दी ही आगे की बात करने का कह कर निकल गए।
नीतिका का घर........
"बेटा तुम सोच भी नहीं सकती कि कितना अच्छा रिश्ता आया है तुम्हारे लिए....।" खुशी से नीतिका का माथा चूमती हुई उसकी मां बोलीं और साथ ही उसके पिताजी ने भी हामी भर दी।
नीतिका बस परेशान सी उन दोनों की ओर देखती रही।
नीतिका (रुआंसी सी) - पर पापा..... मैं अभी शादी नहीं, जॉब करना चाहती हूं, plz पापा....
नीतिका की मां (प्यार से)- बेटा, तू जिस घर में जा रही है ना, वहां तुझे नौकरी की कोई जरूरत ही नही है, हां चाहे तो तू कितनों को नौकरी पर रख सकती है।
नीतिका (कुछ सोच कर)- मां, आपको नहीं लगता कि ये सब कुछ ज्यादा ही अजीब है ?? शादी जैसी चीज ऐसे थोड़े ही होती हैं ??
नीतिका के पापा (समझाते हुए)- बेटा, क्या अजीब है, कुछ भी तो नहीं।
नीतिका के पापा (प्यार से)- अब भाई, मेरी बेटी है ही इतनी प्यारी कि कोई भी छांट ही नहीं सकता। हां, और एक महत्त्वपूर्ण बात, वो ये कि बेटा घर चाहे अमीर का हो या गरीब का, बहुवें सभी को अच्छी और संस्कारी ही चाहिए होती हैं ताकि वे उनके घर को जोड़ कर रख सकें। इसीलिए तुम्हारे लिए उनका रिश्ता आना कोई बड़ी बात नहीं है।
नीतिका भी सोच में पड़ गई।
नीतिका (थोड़ी देर में गहरी सांस लेते हुए)- पापा, आप सभी जैसा चाहें वो करें लेकिन plz पापा, मैं बस job करना चाहती हूं, और कुछ नहीं। और ये मैं पैसे के लिए नहीं बल्कि सुकून के लिए करना चाहती हूं।
नीतिका के पापा (प्यार से)- तुम परेशान मत हो बेटा मैं खुद उनसे बात करूंगा इस बारे में, वे जरूर मान जायेंगे।
नीतिका बस भावुक हो कर अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूम लिया।
आद्विक का घर........
आद्विक भी रात ही बस हल्के से दर्श को कोई बहुत जरूरी काम का बता कर घर लौट आया था। आते ही उसने सबसे पहले गुस्से में अपने कमरे की ढेरों जरूरी चीजें तोड़ डालीं। लेकिन चाह कर भी उसका गुस्सा कम नहीं हो रहा था। उसे अब भी रह रह कर नीतिका की बातें अंदर तक परेशान कर रही थीं।
"नहीं छोडूंगा तुम्हें मैं, क्या सोच कर तुमने ये........ नहीं हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी???? इस ऊंची आवाज में तो मेरे घरवालों ने मेरे साथ बात तक नहीं की है और तुम......... तुम्हें नहीं छोडूंगा..... नहीं...।" आद्विक खुद में बौखलाया हुआ बडबडा रहा था।
ऊपर के कमरे से बार -बार टूटने -फूटने की आवाज सुन आद्विक की मां भी ऊपर पहुंची। काफी बार नॉक करने पर जब उसने दरवाजा खोला तो कमरे की हालत देखते ही सुनीता जी हैरान हो गईं।
सुनीता जी (थोड़ा गुस्से में)- क्या है ये सब आदि??? क्या हाल किया है तुमने इस कमरे का ?? ये क्या हरकत है, अब तुम बच्चे नहीं हो कि तुम्हें कमरा सलीके से रखने की ट्रेनिंग दी जाए या तुम गुस्से में पैर पटको या फिर चीज़ें तोड़ो।
आद्विक (गुस्से में)- क्यों आई हैं आप यहां, और ये ज्ञान plz बंद कीजिए अभी, और अपने पास ही रखिए। मुझे बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। Plz जाइए यहां से......
सुनीता जी (और गुस्से में)- shut up आदि, बढ़ती उम्र के साथ तुम अपनी तमीज छोड़ते जा रहे हो, तुम्हें अंदाजा है कि तुम बात किससे कर रहे हो ??
आद्विक (गुस्से में)- हां, उस एक औरत से जो अपनी जिंदगी में ना तो एक अच्छी पत्नी बन पाई और न ही एक अच्छी मां..
सुनीता जी गुस्से में तिलमिलाते हुए वहां से वापस चली गईं और आद्विक ने फिर से जोर से पटक कर दरवाजा बंद कर दिया।
सुबह जब आद्विक के दादा -दादीजी और बांकी सभी भी घर वापस लौटे तो सबने पहले आद्विक का पूछा।
सुनीता जी (गुस्से में)- उस लड़के को इतनी भी तमीज नहीं रह गई है कि अपनी मां से कैसे बात करते हैं।
दादी (थोड़ा कड़े शब्दों में)- वो बेटा नहीं बन पा रहा है क्योंकि तुम अब तक सही मायनों में तुम उसकी मां नहीं बन पाई हो। मां बनने का मतलब सिर्फ बच्चे को पैदा करना नहीं होता। उसकी और भी सैकड़ों जिम्मेदारियां होती हैं, उसे तो तुमने निभाना तो दूर सोचना भी जरूरी नहीं समझा। कभी सोचा है कि इन बच्चों का मां बाप होते हुए भी ये क्यों उनसे मरहूम ही हैं बचपन से ले कर आज तक। तुम दोनों के आपसी मतभेद में इनकी क्या गलती थी।
सुबोध (नाराजगी में)- मैंने तो पहले ही आप लोगों को इन सब चीजों के लिए मना किया था लेकिन....
उर्मिला जी (गुस्से में)- हमने बच्चों की बात पर इसलिए जोर दिया था कि बच्चे मां बाप के बीच की वो कड़ियां होते हैं जो उन्हें जिंदगी भर साथ जोड़ते हैं।
सुबोध - लेकिन जब वही कड़ियां बंधन बन जाएं तो.....
दादाजी (गुस्से से)- तो..... तो बस वही करना चाहिए जो तुम दोनों आज तक कर रहे हो। दुख बस इस बात का है कि तुम दोनों के आपसी झगड़ों और परेशानियों ने तीन मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लिया और इसका लेश मात्र भी पछतावा तुम दोनों को ही नहीं है।
दादाजी (दुखी मन से)- उर्मिला जी, आप भी कहां अपना सिर फोड़ रही हैं, वे जो मां बाप बन कर भी आज तक उसकी कीमत नहीं समझ पाए, चलिए, कमरे में चल कर आराम कीजिए, वैसे ही काफी थक गई हैं आप.. मैं जरा आदि को देख कर आता हूं।
इतना कह कर वे दोनों वहां से चले गए। बांकी लोग तो पहले ही अपने कमरे में जा चुके थे, क्योंकि ये तो उस घर की लगभग रोज की ही कहानी थी। जहां ऊपर से तो सब कुछ अच्छा था लेकिन सच तो यही था कि इस परिवार के हर जोड़े की ही आपसी जिंदगी ढेरों शिकवे और शिकायतें थीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.