21-10-2022, 06:32 PM
"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे, मैं कब से अंजान लोगों की वजह से खुद को दुखी करने लगी हूं। यूं तो मुझे कभी ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा किसी की भी बात का लेकिन इसकी बातों को मैं चाह कर भी नज़रंदाज़ नहीं कर पाती। ना ही उस दिन, और न ही आज..... " खुद में सोचती हुई परेशान सी नीतिका बिस्तर पर लेटे लेटे करवटें बदलती रही और सोचती रही।
आद्विक का घर.....
"कितनी बार कहा है, मत आओ मेरे सामने, फिर भी ना जाने क्यों टकरा जाती हो मुझसे?? चिढ़ है मुझे तुम जैसी जान बूझ कर सीधी -साधी बनने वाली लड़कियों से। तुम्हारा ये चेहरा उसे बेवकूफ बना सकता है जिन्हें लड़कियों को पहचानना नहीं आता, मैं नहीं। अच्छे से जानता हूं तुम जैसी सीधी और भोली दिखने वाली लड़कियों को, वो भी उनका किसी ना किसी बहाने से अमीर लड़कियों से टकराना। फिर उनकी भावनाओं से खेलना। लेकिन बस अब और नहीं...... पता नहीं पूरी दुनिया छोड़ कर इस दर्श को भी इसी की दोस्त मिली थी....।" आद्विक अपने कमरे में बैठा बैठा खुद में ही गुस्से से बडबडा रहा था।
"क्या हुआ भाई, मेरे बच्चे को?? किसने इस cool dude की नींद उड़ा दी है ??" आद्विक के दादा -दादीजी अचानक से उसके कमरे में आते हुए हंस कर बोले।
आद्विक (मुंह बना कर)- कुछ नहीं दादी -दादू, बस यूं ही...
आद्विक की बात सुन कर उसके दादा दादी बस मुस्कुरा रहे थे।
आद्विक (कुछ सोच कर फिर से)- आप लोग यहां, इस वक्त?? मेरा मतलब है कि कल तो दर्श की शादी भी है, पूरे दिन थकान होती रहेगी तो कम से कम आज तो अच्छे से आराम कर लीजिए।
दादी (प्यार से)- हां बेटा, वहीं जा रहे थे हम लेकिन सोचा कि एक बार अपने पोते को भी देखते चले जाएं।
आद्विक भी उनकी प्यार भरी बात सुन कर मुस्कुराने लगा।
आद्विक (अपने दादाजी की ओर देखते हुए)- दादू, ये तो हो गई आज की मक्खनबाजी, अब सच -सच बताइए कि क्या काम है आप दोनों को मुझसे जो ये हीर रांझा की जोड़ी एक साथ मेरे पास आई है??
सच्चिदानंद जी (आद्विक के दादाजी) आद्विक की बात सुनते ही खांसने लगे तो उनकी पत्नी उर्मिला जी यानी कि आद्विक की दादी उन्हें आंखें दिखाने लगीं।
दादी (प्यार से)- बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है, हम बस यूं ही सोच रहे थे कि न जाने हम बूढ़े -बूढ़ी कब अपने सभी बच्चों को सेटल होते देख पाएंगे?? देखो, नीतू और आदर्श ने भी अपनी घर गृहस्थी अच्छे से बसा ली है तो अब हमें उनकी चिंता भी नहीं रहती। अब बस एक......
इतना कहते हुए दादी भी चुप हो गईं। आद्विक अब अपनी दादी का मतलब काफी हद तक समझ चुका था फिर भी जान कर नासमझ बन रहा था।
आद्विक (टालते हुए)- दादी, क्या मैं आपको खुश अच्छा नहीं लगता हूं??
दादी - नहीं बेटा, ऐसे क्यों सोच रहे हो?? शादी ब्याह भी जिंदगी को एक अच्छे और खूबसूरत मोड़ पर ले जाने का एक जरिया है बेटा, जिसमें एक नया साथी का साथ पा कर इंसान जिंदगी की हर अच्छी बुरी सौगातों को अपनी झोली में समेट पाता है। इस सफर में एक साथी थक भी जाए तो दूसरा उसे साथ खड़े हो कर चलने का हौसला देता है।
आद्विक (थोड़ा शांत हो कर)- हर साथी इतना अच्छा नहीं होता दादी....
दादी (बात बीच में काटती हुई)- बेटा, हर साथी उतना बुरा भी नहीं होता.... एक मौका तो दो तुम हमें।
आद्विक (उदास मन से)- यही कह कर ना आप लोगों ने दीदी और आदर्श भैया की भी शादी करवाई थी ना, लेकिन क्या हुआ आज??
तीनों ही एक पल के लिए बिल्कुल शांत हो गए।
आद्विक के दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- पुरानी बातों पर दुखी हो कर इंसान जीना नहीं छोड़ता बेटा। हर किसी के जिंदगी में एक सी परीक्षाओं का सामना नहीं होता।
दादाजी (फिर से)- मैं जानता हूं कि नीतू या आदर्श की शादी में थोड़ी बहुत दिक्कतें आ रही हैं लेकिन देखना समय से सब ठीक हो जायेगा।
आद्विक (दुखी होकर)- दादू, मां -पापा का रिश्ता जब आज तक आदर्श नहीं बन पाया इतने सालों में भी तो सच कहता हूं, इस शादी नाम के शब्द से मेरा भरोसा जा चुका है।
दादी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डालना चाहती और ये भी जानती हूं कि तुम इस बात को भी अच्छे से समझते हो कि अगर आज सुबोध और सुनीता (आद्विक के मां -पापा) को घर गृहस्थी की इतनी चिंता होती तो ये बुढ़िया भी आराम से घर के किसी कोने में आराम से भजन कर रही होती।
आद्विक (दुखी हो कर)- दादी, ये घर और हमारी जिंदगी ऊपर से और सभी बाहर वालों के लिए कितनी अलग और खुशनुमा लगती है, लेकिन असल सच्चाई कितनी अलग है ना?? हमारा परिवार जो इस पूरे शहर में कितनों के लिए एक आदर्श परिवार है लेकिन अंदर की सच्चाई इतनी खोखली है कि दम घुटता है मेरा।
आद्विक (फिर से)- एक ओर पापा, जिनके लिए इस शहर में जरूरत पर हर किसी के लिए समय है सिवाय अपने बच्चों के, दूसरी ओर मां, जो बचपन से आज तक अपनी बड़ी फैमिली से निकल कर आने का सदमा अब तक नहीं भूल पाईं हैं। उनके उस वक्त इलेक्शन में खड़े ना होने देने का बदला वो आज तक हम सब से ही ले रही हैं।
नीतू दीदी की शादी इतना सोच समझ कर करने के बाद भी अब तक सिर्फ एक बच्चा ना हो पाने की वजह से उनके पति और परिवार वालों को इनके ऊपर उंगली उठाने का लाइसेंस मिल गया। दूसरी ओर आदर्श भैया जिन्होंने सिर्फ मां पापा के डर से अपनी पसंद की शादी न करके किसी और से की जिसकी सजा और नाराजगी अब भी सौम्या भाभी अपने मन में ले कर बैठी हैं।
आद्विक (रूआंसा सा)- किस शादी को देख कर आदर्श कहूं दादी, किस शादी को देख कर मुझे एक बार भी ऐसा महसूस होना चाहिए कि शादी सच में जिंदगी में सुकून ले कर आएगी कोई तकलीफ नहीं।
आद्विक के अंदर का दर्द उसके दादा दादी, दोनों ही अच्छे से समझ रहे थे, क्योंकि सच तो यही था कि उसने जो कुछ भी कहा था वही असल सच्चाई थी उनके परिवार की।
"वाह बेटा, वाह, सबकी बात कर ली लेकिन अपने दादू -दादी को क्यों छोड़ दिया?? आद्विक के दादाजी ने प्यार से पूछा।
आद्विक (प्यार से उन दोनों का हाथ पकड़ कर)- आप दोनों तो always और always परफेक्ट हैं।
दादाजी (प्यार से)- तो बस, हमें ही देख कर बढ़ जा आगे....... और बांकी सब बस ऊपरवाले पर छोड़ दो।
आद्विक उनकी बात सुन कर बिल्कुल चुप हो गया।
दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो आदि, अगर तुम्हें पहले से कोई और भी पसंद है तो तुम खुल कर बता सकते हो, हमारी ओर से जो गलती आदर्श के वक्त हुई थी वो हम अब दुबारा किसी हाल में नहीं होने देंगे।
आद्विक (शांति से)- नहीं दादू, ऐसी कोई बात नहीं है, वरना आपको पता होती, आप जानते हैं कि मैं आपसे कुछ भी नही छुपाता।
आद्विक (फिर से)- लेकिन.......
दादी -दादाजी (दोनों एक साथ)- लेकिन क्या???
आद्विक (धीरे से)- मुझे अरेंज्ड मैरिज पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।
दादाजी (थोड़ा हंसते हुए)- वाह, अरेंज्ड मैरिज में भरोसा नहीं है तुझे और लव तू किसी से करता नहीं है, क्या खूब है....
आद्विक चिढ़ कर दादाजी की ओर घूरने लगा।
दादी (गंभीर हो कर)- देखो बेटा, वैसे इस बात पर तो सबकी अपनी अपनी राय होगी, लेकिन सच कहूं तो मैं यही जानती भी हूं और मानती भी कि कोई भी शादी लव या अरेंज होने की वजह से नहीं चलती बल्कि एक दूसरे पर भरोसा और इस रिश्ते में विश्वास होने से चलती है। शादी एक अनजाने सफर का नाम है, जिस पर दो इंसानों को साथ साथ चलना होता है, उसमें अगर कभी भी किसी एक की रफ्तार धीमी होती है तो वही दूसरा शक्श अपनी रफ्तार स्वयं धीमी कर उसका हौसला बढ़ाता है। जो भी इंसान अपनी इन जिम्मेदारियों को बाखूबी समझ जाएगा उसे सामने वाले से कभी भी कोई शिकायत नहीं रहेगी।
आद्विक (धीरे से)- दादी, लेकिन.....
दादी (बात काटती हुई)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई जोर नहीं डाल रही हमारे फैसले को मानने की, मैं तो बस एक रिश्ते की बात करने आई थी कि एक बार देख लो, अगर सही लगी तो ठीक है नहीं तो फिर जाने दो।
आद्विक (कुछ सोच कर)- ठीक है, आप दोनों को जो सही लगे।
थोड़ी देर और रुक कर आद्विक के दादा दादी, दोनों अपने कमरे की ओर वापस चले गए और आद्विक अपने बेड पर पड़ा - पड़ा कुछ सोचने लगा और कब नींद आ गई पता भी नही चला।
शादी का दिन........
आज तो दोनों ही घर की रौनक ही अलग थी। सभी एक से एक कपड़ों और मेकअप के साथ घूम रहे थे। नीतिका भी आज सुबह से ही पूरा वक्त भव्या के ही पास थी ताकि उसे किसी भी चीज की कोई कमी नहीं हो।
भव्या (थोड़ा भावुक होकर)- नीकू, अभी से ही मैं इस घर के लिए कितनी अनजानी हो गई ना, अभी से ही मेरे ही घरवाले मेरा खयाल एक बेटी की तरह नहीं बल्कि एक मेहमान की तरह कर रहे हैं।
भव्या की बातों ने नीतिका को भी भावुक कर दिया, उसने किसी तरह खुद को सामान्य किया।
नीतिका - पागल है तू, ऐसे क्यों सोच रही है?? इस बात को तुम ऐसे क्यों नहीं देख रही हो भावी कि आज तो तुम्हारा सबसे स्पेशल दिन है, इसीलिए सभी तुम्हारा इतना खयाल रख रहे हैं, जैसे तू हमेशा चाहती थी।
भव्या (दुखी सी)- नीकू, ये वो स्पेशल दिन है, जिसके बाद सब कुछ बदल जायेगा, है ना??
भव्या (फिर से)- लेकिन सच कहूं, इस स्पेशल ट्रीटमेंट से कहीं ज्यादा मीठी मां की डांट, पापा का गुस्सा, भैया से लड़ाई है.... और उससे भी बड़ी बात उन चीजों में मुझे मेरा हक दिखता था जो आज इस इतना ज्यादा खयाल रखने पर भी नहीं दिखता।
दोनों ही दोस्तें ढेरों पुरानी बातें सोचती हुई एक दूसरे के गले मिल कर रोने लगीं। उन दोनों की बातों में कोई एक तीसरा भी था जो बहुत ही भावुक था उस पल को देख कर और अकेले में अपना आंसू पोंछ रहा था, वो था विवेक, भव्या के भैया। खुद को नॉर्मल कर वो भी दोनो के पास आ कर खड़े हो गए।
विवेक (जान कर चिढ़ाते हुए)- ये सही है तुम दोनों का, मन की ना हो तो भी रोना, और अगर मन की हो तो भी रोना... क्या चीज़ हैं भाई ये लड़कियां..
दोनों ही दोस्तें अब भी चुप थीं।
विवेक (फिर से मजाक करते हुए)- वैसे एक बात बताओ, बिना ग्लिसरीन के भी हर एक मोमेंट के लिए इतना सारा टोकरी भर भर कर ये आंसू आखिर लाती कहां से हो ?? बड़ा सही है यार, किसी को भी पता तक नहीं चलने वाला कि ये असली हैं या फिर नकली।
"Plz भैया, आज नहीं.... आज हमारा बिल्कुल भी मूड नहीं है आपसे लड़ने का, सही कह रही हूं।" दोनों एक साथ चिल्लाने लगीं और विवेक दोनों को देख हंसने लगा।
विवेक (हंसते हुए)- हां, लड़ने का तो सोचना भी नहीं, वरना बिचारे मेरे पापा के इतने पैसे जो तुमने इतनी सारी रोशनाई -चिकनाई में खर्च किए हैं, बर्बाद ही होंगे उसपर तुम्हारी शक्ल बिगड़ेगी सो अलग, बाद का रोना धोना कौन झेलेगा रे बाबा....
भव्या (चिढ़ कर)- भैया, मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं, देख लेना...
भव्या ने गुस्से में बगल में रखा तकिया विवेक की तरफ फेंक कर मारा तो विवेक ने उसे अपने एक हाथ से पकड़ लिया और हंसने लगा।
विवेक (हंस कर)- अब बिचारे दर्श बाबू को तो भगवान ही बचाए .... हमारा बुरा वक्त खत्म और किसी बिचारे का चालू..... वैसे ये बात तो पक्का है भावी, बिचारे दर्श बाबू अभी तक जिसे सूरजमुखी समझ रहे हैं वो तो असल में क्या खतरनाक ज्वालामुखी है वो भी नहीं जानते होंगे।
इस बात पर तीनों एक बार खिलखिला कर हंसने लगे लेकिन अगले ही पल विदाई की बात सोच तीनों भावुक हो कर एक दूसरे के गले लग गए।
शादी की शाम.....
शादी की शाम होते ही भव्या के घर से लेकर थोड़ी दूर बने हॉल तक का पूरा रास्ता ढेर सारी सजावटों से जगमगा उठा। शादी की पूरी तैयारी बहुत ही अच्छे से की गई थी ताकि किसी को भी कोई दिक्कत ना हो और साथ ही बहुत खूबसूरत भी हो।
भव्या, आज दुल्हन के रूप में बिल्कुल अलग और बहुत प्यारी लग रही थी जिसकी नजर बार बार उसकी मां खुद ही भावुक हो कर उतार रही थीं। दादी ने भी पास आ कर प्यार से उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और ढेरों बलाइयां लीं। भव्या के पिताजी दूर से ही अपनी बेटी को निहारते और ढेरों आशीर्वाद देते। उनके लिए अपने जिगर के टुकड़े को यूं विदा करना बिलकुल भी आसान नहीं था। शायद इसीलिए दूर ही रह कर खुद को संभालते रहते कि उनकी स्थिति का कोई अंदाजा ना लगा सके। लेकिन बेटियां तो बेटियां हैं उनसे ज्यादा अपने पिता के दिल का हाल कोई समझ ही नहीं सकता। वो भी बस मन ही मन अपने पिता की तकलीफ सोच और दुखी होती।
शादी के लिए अब सभी बस बारात के आने की प्रतीक्षा में थे जो बस पहुंचने ही वाली थी। दूर से ही, ढोल और शनाइयों की आवाज गूंज रही थी जो धीरे धीरे पास आने की वजह से और बढ़ती जा रही थी। किसी की पहले से कितनी ही तैयारी क्यों ना हो लेकिन बारात आगमन के नाम से ही लड़की वालों में एक अलग ही भागम भाग मच ही जाती है, जो बिल्कुल सामान्य है, वही हाल आज यहां का भी था।
आखिर बारात अपने निश्चित जगह तक पहुंच ही गई और सारे लड़की वाले उसकी अगुवाई के लिए खड़े हो गए। वहीं लड़कियों में दूल्हे और उसके साथ आए लड़कों को देखने के लिए अलग ही होड़ मची थी। अपने साथ ही सभी जिद में नीतिका को भी खींच कर ले गईं।
सामने खड़ी ओपन कार में बैठा दर्श आज किसी सपने के राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। हल्के मरून रंग की शेरवानी पर शादी का सेहरा अलग ही लुभावना लग रहा था जिसकी तारीफ घर आए सभी नाते -रिश्तेदार कर रहे थे और वो सब सुन कर भव्या की मां और दादी फूली नहीं समा रही थीं। नीतिका भी दर्श को देख कर बहुत खुश थी। मन ही मन दोनों की जोड़ी जिंदगी भर बनी रहे की प्रार्थना कर रही थी।
वो कुछ सोच ही रही थी कि पास खड़ी एक लड़की बोल पड़ी।
एक लड़की - यार, दूल्हे को छोड़ो, वो तो ऑलरेडी इंगेज्ड हैं और फिर आज तो उनका दिन है तो वो तो सुंदर लगेंगे ही लेकिन यार उसके बगल में बैठे इस लड़के को तो देखो क्या खूब लग रहा है, बिल्कुल रणबीर कपूर टाइप.....
एक के बोलते ही बांकि सभी भी उसी की ओर आंखें फाड़ कर देखने लगीं। नीतिका की भी नजर उस पर गई लेकिन वो बिल्कुल चुप हो गई क्योंकि वो कोई और नहीं बल्कि आद्विक था। देखने में तो वो खुद ही किसी हीरो से कम नहीं था और आज तो वो सच में ही कुछ अलग लग रहा था।
"हां, इस बेदिमाग इंसान को मैं कैसे भूल गई थी, इसे तो अपनी दोस्ती का नगाड़ा पीटने आना ही था आज। आज तो अगर इसने कोई भी ऐसी वैसी बात बोली तो आज इसे सच में जी भर कर सुनाऊंगी कि इसकी सातों पुश्त याद रखेगी........ (थोड़ा रुक कर)........ नहीं, मैं क्यों ऐसे -वैसे के मुंह लगूं, जिसे जो करना है करे, होगा नवाब अपने रजवाड़े का, उससे डरती है मेरी जूती....।" खुद में बड़बड़ाती हुई नीतिका बोल रही थी।
"बेटा एक काम करो जल्दी से जा कर जयमाला की थाली तो ले आओ और एक बार भावी को भी देख लेना कि वो ठीक से तैयार है ना, अब बस जयमाला ही होगी पहले।" भव्या की मां नीतिका के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं।
नीतिका (हड़बड़ाते हुए)- जी....जी आंटी जी, मैं बस अभी देख कर आती हूं।
हड़बड़ाती हुई नीतिका घर की ओर मुड़ गई। अपने ही खयालों में डूबी बढ़ती जा रही थी कि अचानक पीछे से कोई जानी पहचानी सी आवाज आई और वो पलटी।
"देखो, मैं तुम्हें यहां कोई ज्ञान या तुम्हें एक्स्ट्रा भाव देने नहीं आया हूं, मैं बस इतना कहने आया हूं कि आज जैसे तुम्हारे लिए बहुत ही खास दिन है वैसे ही मेरे लिए भी ये पल और मेरे दोस्त की खुशियां बहुत मायने रखती हैं। उम्मीद है कि आज हम दोनों ही इस बात का खयाल रखेंगे कि हमारे किसी भी आपसी तनाव की वजह से इनका ये पल खराब हो।" आद्विक शांति से बोल पड़ा।
जहां आज आद्विक की हरकतों से नीतिका हैरान थी उससे ज्यादा उसे भी इस बात का सुकून था कि वो भी अब अच्छे से अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी का हर एक पल इंजॉय कर सकेगी। लेकिन उसने मुंह से कुछ कहा नहीं और बस वापस मुड़ गई।
आद्विक (फिर धीरे से)- और कल के लिए रियली सॉरी ?
नीतिका को उसके मुंह से अचानक सॉरी सुन कर अजीब लगा लेकिन उस पर भी उसने कुछ नहीं बोला और आगे बढ़ गई। आद्विक वहीं खड़े उस पल उसे देखता रह गया।
"भाव तो इस हूरपरी के करोड़ों हैं, उस पर तमीज एक पैसे की भी नहीं। गलती खुद की भी थी लेकिन क्या मजाल कि माफी के बदले वो भी माफी मांग ले, ना... आन और अकड़ कैसे कम हो जायेगी?? तू ही बेवकूफ था जो बड़ा साधू बाबा बनने का जोश छाया था, बड़ा आया माफी मांगने... हुंह...।" खुद में बड़बड़ाता हुआ आद्विक भी स्टेज की तरफ वापस मुड़ गया।
"सुनो, सॉरी.... मुझे भी बिना सोचे समझे उतना कुछ नहीं कहना चाहिए था।" आद्विक अचानक ये आवाज सुन पीछे मुड़ गया, देखा तो सामने नीतिका खड़ी थी।
कोई और कुछ कह पाता कि भव्या की मां का फिर से फोन आ गया और वो हड़बड़ा कर वापस चली गई। एक पल के लिए आद्विक भी सोच में पड़ गया लेकिन अगले ही पल सिर झटक कर वापस मुड़ गया।
आद्विक का घर.....
"कितनी बार कहा है, मत आओ मेरे सामने, फिर भी ना जाने क्यों टकरा जाती हो मुझसे?? चिढ़ है मुझे तुम जैसी जान बूझ कर सीधी -साधी बनने वाली लड़कियों से। तुम्हारा ये चेहरा उसे बेवकूफ बना सकता है जिन्हें लड़कियों को पहचानना नहीं आता, मैं नहीं। अच्छे से जानता हूं तुम जैसी सीधी और भोली दिखने वाली लड़कियों को, वो भी उनका किसी ना किसी बहाने से अमीर लड़कियों से टकराना। फिर उनकी भावनाओं से खेलना। लेकिन बस अब और नहीं...... पता नहीं पूरी दुनिया छोड़ कर इस दर्श को भी इसी की दोस्त मिली थी....।" आद्विक अपने कमरे में बैठा बैठा खुद में ही गुस्से से बडबडा रहा था।
"क्या हुआ भाई, मेरे बच्चे को?? किसने इस cool dude की नींद उड़ा दी है ??" आद्विक के दादा -दादीजी अचानक से उसके कमरे में आते हुए हंस कर बोले।
आद्विक (मुंह बना कर)- कुछ नहीं दादी -दादू, बस यूं ही...
आद्विक की बात सुन कर उसके दादा दादी बस मुस्कुरा रहे थे।
आद्विक (कुछ सोच कर फिर से)- आप लोग यहां, इस वक्त?? मेरा मतलब है कि कल तो दर्श की शादी भी है, पूरे दिन थकान होती रहेगी तो कम से कम आज तो अच्छे से आराम कर लीजिए।
दादी (प्यार से)- हां बेटा, वहीं जा रहे थे हम लेकिन सोचा कि एक बार अपने पोते को भी देखते चले जाएं।
आद्विक भी उनकी प्यार भरी बात सुन कर मुस्कुराने लगा।
आद्विक (अपने दादाजी की ओर देखते हुए)- दादू, ये तो हो गई आज की मक्खनबाजी, अब सच -सच बताइए कि क्या काम है आप दोनों को मुझसे जो ये हीर रांझा की जोड़ी एक साथ मेरे पास आई है??
सच्चिदानंद जी (आद्विक के दादाजी) आद्विक की बात सुनते ही खांसने लगे तो उनकी पत्नी उर्मिला जी यानी कि आद्विक की दादी उन्हें आंखें दिखाने लगीं।
दादी (प्यार से)- बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है, हम बस यूं ही सोच रहे थे कि न जाने हम बूढ़े -बूढ़ी कब अपने सभी बच्चों को सेटल होते देख पाएंगे?? देखो, नीतू और आदर्श ने भी अपनी घर गृहस्थी अच्छे से बसा ली है तो अब हमें उनकी चिंता भी नहीं रहती। अब बस एक......
इतना कहते हुए दादी भी चुप हो गईं। आद्विक अब अपनी दादी का मतलब काफी हद तक समझ चुका था फिर भी जान कर नासमझ बन रहा था।
आद्विक (टालते हुए)- दादी, क्या मैं आपको खुश अच्छा नहीं लगता हूं??
दादी - नहीं बेटा, ऐसे क्यों सोच रहे हो?? शादी ब्याह भी जिंदगी को एक अच्छे और खूबसूरत मोड़ पर ले जाने का एक जरिया है बेटा, जिसमें एक नया साथी का साथ पा कर इंसान जिंदगी की हर अच्छी बुरी सौगातों को अपनी झोली में समेट पाता है। इस सफर में एक साथी थक भी जाए तो दूसरा उसे साथ खड़े हो कर चलने का हौसला देता है।
आद्विक (थोड़ा शांत हो कर)- हर साथी इतना अच्छा नहीं होता दादी....
दादी (बात बीच में काटती हुई)- बेटा, हर साथी उतना बुरा भी नहीं होता.... एक मौका तो दो तुम हमें।
आद्विक (उदास मन से)- यही कह कर ना आप लोगों ने दीदी और आदर्श भैया की भी शादी करवाई थी ना, लेकिन क्या हुआ आज??
तीनों ही एक पल के लिए बिल्कुल शांत हो गए।
आद्विक के दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- पुरानी बातों पर दुखी हो कर इंसान जीना नहीं छोड़ता बेटा। हर किसी के जिंदगी में एक सी परीक्षाओं का सामना नहीं होता।
दादाजी (फिर से)- मैं जानता हूं कि नीतू या आदर्श की शादी में थोड़ी बहुत दिक्कतें आ रही हैं लेकिन देखना समय से सब ठीक हो जायेगा।
आद्विक (दुखी होकर)- दादू, मां -पापा का रिश्ता जब आज तक आदर्श नहीं बन पाया इतने सालों में भी तो सच कहता हूं, इस शादी नाम के शब्द से मेरा भरोसा जा चुका है।
दादी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डालना चाहती और ये भी जानती हूं कि तुम इस बात को भी अच्छे से समझते हो कि अगर आज सुबोध और सुनीता (आद्विक के मां -पापा) को घर गृहस्थी की इतनी चिंता होती तो ये बुढ़िया भी आराम से घर के किसी कोने में आराम से भजन कर रही होती।
आद्विक (दुखी हो कर)- दादी, ये घर और हमारी जिंदगी ऊपर से और सभी बाहर वालों के लिए कितनी अलग और खुशनुमा लगती है, लेकिन असल सच्चाई कितनी अलग है ना?? हमारा परिवार जो इस पूरे शहर में कितनों के लिए एक आदर्श परिवार है लेकिन अंदर की सच्चाई इतनी खोखली है कि दम घुटता है मेरा।
आद्विक (फिर से)- एक ओर पापा, जिनके लिए इस शहर में जरूरत पर हर किसी के लिए समय है सिवाय अपने बच्चों के, दूसरी ओर मां, जो बचपन से आज तक अपनी बड़ी फैमिली से निकल कर आने का सदमा अब तक नहीं भूल पाईं हैं। उनके उस वक्त इलेक्शन में खड़े ना होने देने का बदला वो आज तक हम सब से ही ले रही हैं।
नीतू दीदी की शादी इतना सोच समझ कर करने के बाद भी अब तक सिर्फ एक बच्चा ना हो पाने की वजह से उनके पति और परिवार वालों को इनके ऊपर उंगली उठाने का लाइसेंस मिल गया। दूसरी ओर आदर्श भैया जिन्होंने सिर्फ मां पापा के डर से अपनी पसंद की शादी न करके किसी और से की जिसकी सजा और नाराजगी अब भी सौम्या भाभी अपने मन में ले कर बैठी हैं।
आद्विक (रूआंसा सा)- किस शादी को देख कर आदर्श कहूं दादी, किस शादी को देख कर मुझे एक बार भी ऐसा महसूस होना चाहिए कि शादी सच में जिंदगी में सुकून ले कर आएगी कोई तकलीफ नहीं।
आद्विक के अंदर का दर्द उसके दादा दादी, दोनों ही अच्छे से समझ रहे थे, क्योंकि सच तो यही था कि उसने जो कुछ भी कहा था वही असल सच्चाई थी उनके परिवार की।
"वाह बेटा, वाह, सबकी बात कर ली लेकिन अपने दादू -दादी को क्यों छोड़ दिया?? आद्विक के दादाजी ने प्यार से पूछा।
आद्विक (प्यार से उन दोनों का हाथ पकड़ कर)- आप दोनों तो always और always परफेक्ट हैं।
दादाजी (प्यार से)- तो बस, हमें ही देख कर बढ़ जा आगे....... और बांकी सब बस ऊपरवाले पर छोड़ दो।
आद्विक उनकी बात सुन कर बिल्कुल चुप हो गया।
दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो आदि, अगर तुम्हें पहले से कोई और भी पसंद है तो तुम खुल कर बता सकते हो, हमारी ओर से जो गलती आदर्श के वक्त हुई थी वो हम अब दुबारा किसी हाल में नहीं होने देंगे।
आद्विक (शांति से)- नहीं दादू, ऐसी कोई बात नहीं है, वरना आपको पता होती, आप जानते हैं कि मैं आपसे कुछ भी नही छुपाता।
आद्विक (फिर से)- लेकिन.......
दादी -दादाजी (दोनों एक साथ)- लेकिन क्या???
आद्विक (धीरे से)- मुझे अरेंज्ड मैरिज पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।
दादाजी (थोड़ा हंसते हुए)- वाह, अरेंज्ड मैरिज में भरोसा नहीं है तुझे और लव तू किसी से करता नहीं है, क्या खूब है....
आद्विक चिढ़ कर दादाजी की ओर घूरने लगा।
दादी (गंभीर हो कर)- देखो बेटा, वैसे इस बात पर तो सबकी अपनी अपनी राय होगी, लेकिन सच कहूं तो मैं यही जानती भी हूं और मानती भी कि कोई भी शादी लव या अरेंज होने की वजह से नहीं चलती बल्कि एक दूसरे पर भरोसा और इस रिश्ते में विश्वास होने से चलती है। शादी एक अनजाने सफर का नाम है, जिस पर दो इंसानों को साथ साथ चलना होता है, उसमें अगर कभी भी किसी एक की रफ्तार धीमी होती है तो वही दूसरा शक्श अपनी रफ्तार स्वयं धीमी कर उसका हौसला बढ़ाता है। जो भी इंसान अपनी इन जिम्मेदारियों को बाखूबी समझ जाएगा उसे सामने वाले से कभी भी कोई शिकायत नहीं रहेगी।
आद्विक (धीरे से)- दादी, लेकिन.....
दादी (बात काटती हुई)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई जोर नहीं डाल रही हमारे फैसले को मानने की, मैं तो बस एक रिश्ते की बात करने आई थी कि एक बार देख लो, अगर सही लगी तो ठीक है नहीं तो फिर जाने दो।
आद्विक (कुछ सोच कर)- ठीक है, आप दोनों को जो सही लगे।
थोड़ी देर और रुक कर आद्विक के दादा दादी, दोनों अपने कमरे की ओर वापस चले गए और आद्विक अपने बेड पर पड़ा - पड़ा कुछ सोचने लगा और कब नींद आ गई पता भी नही चला।
शादी का दिन........
आज तो दोनों ही घर की रौनक ही अलग थी। सभी एक से एक कपड़ों और मेकअप के साथ घूम रहे थे। नीतिका भी आज सुबह से ही पूरा वक्त भव्या के ही पास थी ताकि उसे किसी भी चीज की कोई कमी नहीं हो।
भव्या (थोड़ा भावुक होकर)- नीकू, अभी से ही मैं इस घर के लिए कितनी अनजानी हो गई ना, अभी से ही मेरे ही घरवाले मेरा खयाल एक बेटी की तरह नहीं बल्कि एक मेहमान की तरह कर रहे हैं।
भव्या की बातों ने नीतिका को भी भावुक कर दिया, उसने किसी तरह खुद को सामान्य किया।
नीतिका - पागल है तू, ऐसे क्यों सोच रही है?? इस बात को तुम ऐसे क्यों नहीं देख रही हो भावी कि आज तो तुम्हारा सबसे स्पेशल दिन है, इसीलिए सभी तुम्हारा इतना खयाल रख रहे हैं, जैसे तू हमेशा चाहती थी।
भव्या (दुखी सी)- नीकू, ये वो स्पेशल दिन है, जिसके बाद सब कुछ बदल जायेगा, है ना??
भव्या (फिर से)- लेकिन सच कहूं, इस स्पेशल ट्रीटमेंट से कहीं ज्यादा मीठी मां की डांट, पापा का गुस्सा, भैया से लड़ाई है.... और उससे भी बड़ी बात उन चीजों में मुझे मेरा हक दिखता था जो आज इस इतना ज्यादा खयाल रखने पर भी नहीं दिखता।
दोनों ही दोस्तें ढेरों पुरानी बातें सोचती हुई एक दूसरे के गले मिल कर रोने लगीं। उन दोनों की बातों में कोई एक तीसरा भी था जो बहुत ही भावुक था उस पल को देख कर और अकेले में अपना आंसू पोंछ रहा था, वो था विवेक, भव्या के भैया। खुद को नॉर्मल कर वो भी दोनो के पास आ कर खड़े हो गए।
विवेक (जान कर चिढ़ाते हुए)- ये सही है तुम दोनों का, मन की ना हो तो भी रोना, और अगर मन की हो तो भी रोना... क्या चीज़ हैं भाई ये लड़कियां..
दोनों ही दोस्तें अब भी चुप थीं।
विवेक (फिर से मजाक करते हुए)- वैसे एक बात बताओ, बिना ग्लिसरीन के भी हर एक मोमेंट के लिए इतना सारा टोकरी भर भर कर ये आंसू आखिर लाती कहां से हो ?? बड़ा सही है यार, किसी को भी पता तक नहीं चलने वाला कि ये असली हैं या फिर नकली।
"Plz भैया, आज नहीं.... आज हमारा बिल्कुल भी मूड नहीं है आपसे लड़ने का, सही कह रही हूं।" दोनों एक साथ चिल्लाने लगीं और विवेक दोनों को देख हंसने लगा।
विवेक (हंसते हुए)- हां, लड़ने का तो सोचना भी नहीं, वरना बिचारे मेरे पापा के इतने पैसे जो तुमने इतनी सारी रोशनाई -चिकनाई में खर्च किए हैं, बर्बाद ही होंगे उसपर तुम्हारी शक्ल बिगड़ेगी सो अलग, बाद का रोना धोना कौन झेलेगा रे बाबा....
भव्या (चिढ़ कर)- भैया, मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं, देख लेना...
भव्या ने गुस्से में बगल में रखा तकिया विवेक की तरफ फेंक कर मारा तो विवेक ने उसे अपने एक हाथ से पकड़ लिया और हंसने लगा।
विवेक (हंस कर)- अब बिचारे दर्श बाबू को तो भगवान ही बचाए .... हमारा बुरा वक्त खत्म और किसी बिचारे का चालू..... वैसे ये बात तो पक्का है भावी, बिचारे दर्श बाबू अभी तक जिसे सूरजमुखी समझ रहे हैं वो तो असल में क्या खतरनाक ज्वालामुखी है वो भी नहीं जानते होंगे।
इस बात पर तीनों एक बार खिलखिला कर हंसने लगे लेकिन अगले ही पल विदाई की बात सोच तीनों भावुक हो कर एक दूसरे के गले लग गए।
शादी की शाम.....
शादी की शाम होते ही भव्या के घर से लेकर थोड़ी दूर बने हॉल तक का पूरा रास्ता ढेर सारी सजावटों से जगमगा उठा। शादी की पूरी तैयारी बहुत ही अच्छे से की गई थी ताकि किसी को भी कोई दिक्कत ना हो और साथ ही बहुत खूबसूरत भी हो।
भव्या, आज दुल्हन के रूप में बिल्कुल अलग और बहुत प्यारी लग रही थी जिसकी नजर बार बार उसकी मां खुद ही भावुक हो कर उतार रही थीं। दादी ने भी पास आ कर प्यार से उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और ढेरों बलाइयां लीं। भव्या के पिताजी दूर से ही अपनी बेटी को निहारते और ढेरों आशीर्वाद देते। उनके लिए अपने जिगर के टुकड़े को यूं विदा करना बिलकुल भी आसान नहीं था। शायद इसीलिए दूर ही रह कर खुद को संभालते रहते कि उनकी स्थिति का कोई अंदाजा ना लगा सके। लेकिन बेटियां तो बेटियां हैं उनसे ज्यादा अपने पिता के दिल का हाल कोई समझ ही नहीं सकता। वो भी बस मन ही मन अपने पिता की तकलीफ सोच और दुखी होती।
शादी के लिए अब सभी बस बारात के आने की प्रतीक्षा में थे जो बस पहुंचने ही वाली थी। दूर से ही, ढोल और शनाइयों की आवाज गूंज रही थी जो धीरे धीरे पास आने की वजह से और बढ़ती जा रही थी। किसी की पहले से कितनी ही तैयारी क्यों ना हो लेकिन बारात आगमन के नाम से ही लड़की वालों में एक अलग ही भागम भाग मच ही जाती है, जो बिल्कुल सामान्य है, वही हाल आज यहां का भी था।
आखिर बारात अपने निश्चित जगह तक पहुंच ही गई और सारे लड़की वाले उसकी अगुवाई के लिए खड़े हो गए। वहीं लड़कियों में दूल्हे और उसके साथ आए लड़कों को देखने के लिए अलग ही होड़ मची थी। अपने साथ ही सभी जिद में नीतिका को भी खींच कर ले गईं।
सामने खड़ी ओपन कार में बैठा दर्श आज किसी सपने के राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। हल्के मरून रंग की शेरवानी पर शादी का सेहरा अलग ही लुभावना लग रहा था जिसकी तारीफ घर आए सभी नाते -रिश्तेदार कर रहे थे और वो सब सुन कर भव्या की मां और दादी फूली नहीं समा रही थीं। नीतिका भी दर्श को देख कर बहुत खुश थी। मन ही मन दोनों की जोड़ी जिंदगी भर बनी रहे की प्रार्थना कर रही थी।
वो कुछ सोच ही रही थी कि पास खड़ी एक लड़की बोल पड़ी।
एक लड़की - यार, दूल्हे को छोड़ो, वो तो ऑलरेडी इंगेज्ड हैं और फिर आज तो उनका दिन है तो वो तो सुंदर लगेंगे ही लेकिन यार उसके बगल में बैठे इस लड़के को तो देखो क्या खूब लग रहा है, बिल्कुल रणबीर कपूर टाइप.....
एक के बोलते ही बांकि सभी भी उसी की ओर आंखें फाड़ कर देखने लगीं। नीतिका की भी नजर उस पर गई लेकिन वो बिल्कुल चुप हो गई क्योंकि वो कोई और नहीं बल्कि आद्विक था। देखने में तो वो खुद ही किसी हीरो से कम नहीं था और आज तो वो सच में ही कुछ अलग लग रहा था।
"हां, इस बेदिमाग इंसान को मैं कैसे भूल गई थी, इसे तो अपनी दोस्ती का नगाड़ा पीटने आना ही था आज। आज तो अगर इसने कोई भी ऐसी वैसी बात बोली तो आज इसे सच में जी भर कर सुनाऊंगी कि इसकी सातों पुश्त याद रखेगी........ (थोड़ा रुक कर)........ नहीं, मैं क्यों ऐसे -वैसे के मुंह लगूं, जिसे जो करना है करे, होगा नवाब अपने रजवाड़े का, उससे डरती है मेरी जूती....।" खुद में बड़बड़ाती हुई नीतिका बोल रही थी।
"बेटा एक काम करो जल्दी से जा कर जयमाला की थाली तो ले आओ और एक बार भावी को भी देख लेना कि वो ठीक से तैयार है ना, अब बस जयमाला ही होगी पहले।" भव्या की मां नीतिका के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं।
नीतिका (हड़बड़ाते हुए)- जी....जी आंटी जी, मैं बस अभी देख कर आती हूं।
हड़बड़ाती हुई नीतिका घर की ओर मुड़ गई। अपने ही खयालों में डूबी बढ़ती जा रही थी कि अचानक पीछे से कोई जानी पहचानी सी आवाज आई और वो पलटी।
"देखो, मैं तुम्हें यहां कोई ज्ञान या तुम्हें एक्स्ट्रा भाव देने नहीं आया हूं, मैं बस इतना कहने आया हूं कि आज जैसे तुम्हारे लिए बहुत ही खास दिन है वैसे ही मेरे लिए भी ये पल और मेरे दोस्त की खुशियां बहुत मायने रखती हैं। उम्मीद है कि आज हम दोनों ही इस बात का खयाल रखेंगे कि हमारे किसी भी आपसी तनाव की वजह से इनका ये पल खराब हो।" आद्विक शांति से बोल पड़ा।
जहां आज आद्विक की हरकतों से नीतिका हैरान थी उससे ज्यादा उसे भी इस बात का सुकून था कि वो भी अब अच्छे से अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी का हर एक पल इंजॉय कर सकेगी। लेकिन उसने मुंह से कुछ कहा नहीं और बस वापस मुड़ गई।
आद्विक (फिर धीरे से)- और कल के लिए रियली सॉरी ?
नीतिका को उसके मुंह से अचानक सॉरी सुन कर अजीब लगा लेकिन उस पर भी उसने कुछ नहीं बोला और आगे बढ़ गई। आद्विक वहीं खड़े उस पल उसे देखता रह गया।
"भाव तो इस हूरपरी के करोड़ों हैं, उस पर तमीज एक पैसे की भी नहीं। गलती खुद की भी थी लेकिन क्या मजाल कि माफी के बदले वो भी माफी मांग ले, ना... आन और अकड़ कैसे कम हो जायेगी?? तू ही बेवकूफ था जो बड़ा साधू बाबा बनने का जोश छाया था, बड़ा आया माफी मांगने... हुंह...।" खुद में बड़बड़ाता हुआ आद्विक भी स्टेज की तरफ वापस मुड़ गया।
"सुनो, सॉरी.... मुझे भी बिना सोचे समझे उतना कुछ नहीं कहना चाहिए था।" आद्विक अचानक ये आवाज सुन पीछे मुड़ गया, देखा तो सामने नीतिका खड़ी थी।
कोई और कुछ कह पाता कि भव्या की मां का फिर से फोन आ गया और वो हड़बड़ा कर वापस चली गई। एक पल के लिए आद्विक भी सोच में पड़ गया लेकिन अगले ही पल सिर झटक कर वापस मुड़ गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.