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Adultery शादी
#10
उस दिन के बाद जहां नीतिका थोड़ी और शांत और चुप हो गई वहीं आद्विक भी दुबारा कॉलेज में नजर नहीं आया। नीतिका ने उस घटना को पूरी तरह से भूलने की भी पूरी कोशिश की लेकिन फिर भी ना चाहते हुए भी वो जब भी उस पल को याद करती उसे और तकलीफ होती। जितना होता वो खुद को पढ़ाई में डुबाए रखती। 
 
                दूसरी ओर दर्श और भव्या भी एक दूसरे का साथ पा कर काफी खुश थे। किसी न किसी बहाने से वो अक्सर कॉलेज आ ही जाता और भव्या के साथ कुछ वक्त बिताता। भव्या भी दर्श की ढेर सारी बातें नीतिका को बताती और वो उन दोनों को खुश देख कर और खुश होती।
 
                धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और दोनों ही सहेलियों ने अच्छे नंबरों से अपना बीकॉम भी पूरा कर लिया। जहां दोनों ही सहेलियां आगे कोई अच्छी नौकरी करना चाहती थीं वहीं दोनों के ही घरों में उनकी शादी की बातें चलने लगीं जो आम तौर से हर घर में चला करती हैं। 
 
              एक ओर अब भव्या के लिए काफी मुश्किल हो चला था दर्श के बारे में घरवालों से कुछ भी और छुपाना तो आखिरकार उसने हिम्मत करके ये बात अपने भाई विवेक को बता दी। एक पल के लिए तो विवेक को उसकी बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं हुआ और ये सब सुन कर उसकी नाराज़गी भी जाहिर थी लेकिन नीतिका के काफी समझाने के बाद उसने भी दर्श की काफी जांच पड़ताल कराई फिर कहीं जा कर वो भी तैयार हुआ।
 
           चूंकि विवेक ने दर्श की बात पर भव्या को पहले ही हरी झंडी दे दी थी तो बांकी घरवालों को भी अब इस बात से कोई ज्यादा परेशानी नहीं थी। वैसे भी उसके मां पापा भी दर्श से मिल कर काफी प्रभावित थे और दर्श भी चूंकि घर से काफी संपन्न और पढ़ा लिखा था तो ज्यादा हिचकिचाहट की भी कोई गुंजाइश नहीं थी।
 
           यूं तो भव्या नौकरी करना चाहती थी लेकिन इस चीज़ को ले कर वो बहुत ज्यादा संजीदा भी नहीं थी। ऊपर से घरवालों के भी बार बार समझाने मनाने की वजह से वो भी आखिर शादी के लिए मान ही गई। दर्श भी अब तक एक अच्छे प्राइवेट फर्म में काफी अच्छे पोस्ट पर कार्यरत हो चुका था। 
    
         आखीरकार दोनों के ही घरवालों ने आपस में विचार विमर्श कर भव्या और दर्श की शादी फिक्स कर दी जो अगले महीने ही होनी थी क्योंकि इनकी कुंडली और लग्न के हिसाब से दूर दूर तक कोई अगला अच्छा लगन नहीं था। भव्या अगर कभी इतनी जल्दबाजी होते देख परेशान भी होती तो बांकी के समझाने और ये सोच कर कि चलो अपने प्यार के साथ जिंदगी भर सुकून से रहने का मौका तो हर किसी को नहीं मिलता ना, वो भी खुश हो जाती।
 
            दर्श और भव्या के इस खुशी से कोई और अगर बेहद खुश था तो वो थी उसकी दोस्त नीतिका जो पहले ही दिन से उन दोनों के प्यार का गवाह थी। दर्श भी अकसर मजाक में उसे अपनी साली ही कहता था जिस पर तीनों खिलखिला कर हंस पड़तीं। कभी कभी नीतिका भव्या के जाने के बाद अकेले हो जाने का सोच काफी उदास भी हो जाती फिर अगले पल उसकी खुशी देख खुद को भी समझा देती। वहीं भव्या भी इस बात से अकसर उदास हो जाती तो दर्श उसे यूं ही मजाक में कह देता कि कोई बात नहीं, अपने ही जान -पहचान में कोई अच्छा सा लड़का देख उसकी भी शादी करा देंगे फिर सारे साथ ही रहेंगे, और ये सुन वो भी खुश हो जाती।
 
            सगाई जैसी कोई रस्म अलग से भव्या और दर्श के लिए नहीं रखी गई क्योंकि दर्श के घर में ही किसी करीबी रिश्तेदार की एक सगाई के दिन वाले ही जलने से मौत हो गई थी। उसके बाद उन लोगों ने इस रस्म को ही मनहूस मान कर छोड़ दिया था। रस्म के नाम पर लड़के और लड़की वालों ने अलग -अलग जा कर ये रस्म पूरी कर ली थी।
 
          अब समय बीतता गया और आखिर शादी का वक्त भी आ गया। दोनों ही घरों में ढेर सारी रस्मों का होना शुरू हो गया जिसमें दोनों ही के घरवालों का एक दूसरे से मिलना जुलना भी बढ़ने लगा। नीतिका भी सगी बहन की तरह हर वक्त भव्या की एक एक जरूरत का पूरा खयाल रखती और उसके आगे पीछे ही घूमती रहती। ज्यादातर लोग तो अच्छे से नीतिका से परिचित थे लेकिन वहीं दर्श के घरवाले दोनों की इतनी गाढ़ी दोस्ती देख थोड़े हैरान भी रहते।
 
            शादी में आने जाने वालों में से काफी लोगों की नज़र अब नीतिका पर भी पड़ने लगी थी क्योंकि शादी की उम्र तो उसकी भी हो चुकी थी। उपर से देखने सुनने में सुन्दर के साथ साथ पढाई लिखाई और बात व्यव्हार में भी काफी होशियार थी तो सबकी नज़र पड़नी बिल्कुल लाजमी था।
 
 
 
दो दिन बाद........
 
 
           आज मेहंदी और संगीत दोनो ही कार्यक्रम रखे गये थे जिसमें दिन के पहले पहर में मेहंदी और दूसरे पहर में संगीत था। संगीत के कार्यक्रम में लड़के वाले और लड़की  वाले  दोनों ही परिवार वालों को भाग लेना था। आज दोनों  ही घर के सभी लोगों ने अपनी  भरपूर तैयारी कर रखी थी एक दूसरे को मात देने की। 
 
               सुबह पूरे शगुन के साथ मेहंदी का कार्यक्रम संपन्न हुआ, और एक बहुत ही खूबसूरत सा मेहंदी का डिज़ाइन भव्या के हाथों में लगाया गया जिसमें ठीक बीचों बीच दर्श का नाम बड़े प्यार से उभारा  गया। सबकी जिद में नीतिका को भी मेहंदी लगवानी पड़ी थी हालांकी उसे भी इन चीज़ों का बहुत शौक था लेकिन आज ना जाने क्यों उसे सबकी बातों से काफी शर्म और झिझक  सी आ रही थी जो कि ये कह कर चिढ़ा रहे थे कि ना जाने आज लड़के वालों की ओर से कौन कौन आयेंगे और क्या जाने उसी में कोई नीतिका को भी पसंद कर ही ले।
 
            शाम होते ही संगीत की रौनक लगने लगी। सभी एक एक कर पार्टी हॉल के पास जमा होने लगे। थोड़ी ही देर में वहां की सुगबुगाहट और बढने लगी क्योंकि लड़के वाले भी आ चुके थे। दर्श  की नजरें तो छुप छुप कर बस सिर्फ भव्या पर ही आ कर टिक रही थीं। 
 
           भव्या की मां ने नीतिका को भव्या को हॉल ले कर आने का बोलीं और खुद लड़के वालों की अगुवाई में लग गईं। वो उसे लेने जा ही रही थी कि तभी भव्या की दादी ने भी पीछे से आवाज लगा दी और अपना चश्मा ले कर आने को कहा। वो हां दादी बोल कर थोड़ा आगे मुड़ी ही थी कि उसकी सलवार उसके ही सैंडल में फंस गई और वो बुरी तरह मुंह के बल गिरने लगी।
 
            नीतिका गिरने के डर से जोर से उह मां..... कह कर चिल्ला ही रही थी कि अचानक सामने से किसी ने उसे जोर से पकड़ लिया और वो बच गई। लेकिन गिरने के डर से उसकी आंखें अब भी बंद थीं।
 
अंजान आदमी (थोड़ा गुस्से में) - ड्रामा खत्म हो गया हो तो उठो, वरना अभी छोड़ दूंगा। 
 
          आवाज सुनते ही नीतिका ने हड़बड़ा कर झट से अपनी आंखें खोल दीं। सामने खड़े इंसान को देख कर तो कुछ पल के लिए वो बिल्कुल शांत हो गई लेकिन अगले ही पल गुस्से में खुद को संभालती हुई खड़ी हो गई।
 
नीतिका (गुस्से में)- तुम यहां क्या कर रहे हो?? और मुझे छूने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?? मैंने कहा था ना, जिंदगी भर मुझसे दूर रहो।
 
आद्विक (गुस्से में)- मैं यहां वही कर रहा हूं जो तुम कर रही हो , हां और रही बात तुम्हें छूने और तुम्हारे पास आने की तो पहले भी कहा था और आज भी कह रहा हूं कि मेरी बात अच्छे से कान खोल कर सुन लो, तुम दुनिया की अगर आखिरी लड़की भी हुई ना तो भी ये आद्विक सिन्हा, तुम्हें किसी भी कीमत पर खुद के पास इस जन्म में तो क्या अगले सात जन्मों में भी नहीं आने देगा।
 
नीतिका (गुस्से में)- कुछ भी नया नहीं है, बदतमीज तो तुम पहले भी थे और आज भी हो। सच कहूं तो सच में तरस आता है उस बिचारी पर जो तुम्हें झेलेगी।  बहुत ही बदकिस्मत होगी जो उस जगह होगी...............हां, उसके लिए ये दुआ जरूर करूंगी कि तुम्हें झेलने की ताकत उसे ऊपरवाला दे।
 
आद्विक (फिर से गुस्से में)- तुम जैसी बहनजी लड़कियों के पतियों का नसीब खराब होता होगा जिन्हें सच में पता नहीं होगा कि उनके कौन से पुराने पाप की सजा मिलती होगी। 
 
            खैर, मुझे क्या करना कि तुम किसकी जिंदगी खराब करती हो।
 
नीतिका (गुस्से में)- सच ही कहा है कुछ लोगों ने कि तमीज किसी दुकान से खरीद कर पिलाई नहीं जा सकती। अच्छे कपड़ों से इंसान की शक्ल बदल सकती है लेकिन इससे न ही उसके संस्कार बदलते हैं और न ही उसकी हरकतें।
 
          आद्विक को किसी की भी इतनी बातें सुनने की आदत नहीं थी वो फिर से गुस्से से अपने आपे से बाहर होने लगा और गुस्से में नीतिका का हाथ घुमा कर पकड़ लिया और उसके बहुत करीब आ कर बोला।
 
आद्विक -     आद्विक को किसी की भी इतनी बात सुनने की आदत नहीं है समझी, फिर तुम्हारी औकात कैसे हुई अपने हद से आगे बढ़ने की, तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूं, इसीलिए बस अपने हद में और मुझसे हमेशा के लिए दूर ही रहो.......??
 
              आद्विक की इस हरकत से नीतिका दर्द से कराहने लगी और उसके आंसू बहने लगे। अब आद्विक को भी अहसास हुआ कि उसने गुस्से में क्या कर डाला। बिना कुछ बोले झट से अपने हाथ पीछे खींच लिए। वहीं दूसरी ओर नीतिका अब भी दर्द से कराह रही थी। आंसू की वजह से उसकी आंखें भी लाल हो चली थीं जिसे देख आद्विक को कुछ भी समझ नहीं आया इसीलिए वो वहां से चुपचाप फिर से चला गया वहीं नीतिका भी दर्द से अपना हाथ पकड़े वहीं बगल की सीढ़ी पर बैठ गई और सिसकने लगी।
 
              थोड़ी ही देर में भव्या को लेकर उसकी चचेरी बहनें हॉल में पहुंच गईं और उसे दर्श के पास ही बिठा दिया। दर्श ने भी सबसे छुप कर धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया और भव्या शर्मा उठी। दोनों ही अपने इस एक एक पल को जी भर कर जी रहे थे। संगीत और नाच गाने के बीच में ही किसी बात पर दर्श की छोटी बहन बोल पड़ी।
 
छोटी बहन - भैया, ये आदि भैया कहां रह गए हैं??? अब तो उनकी परफॉर्मेंस का भी टाइम आ रहा है, फोन भी कर रही हूं तो बंद है।
 
दर्श (हैरानी से)- हां, ये आदि कहां है, मुझे तो कहा था संगीत शुरू होने के पहले ही वहां होऊंगा लेकिन अब गया कहां ??
 
                उसने भी कई बार आद्विक को फोन लगाया लेकिन कोई जवाब नही मिल रहा था।
 
आद्विक की बड़ी बहन - इस लड़का का भी कुछ समझ नहीं आता, करना क्या चाहता है और फिर आखिर करता क्या है??
 
आद्विक की भाभी (हंसती हुई)- दीदी, इसीलिए तो कहती हूं कि दर्शजी के साथ ही उनके भी फेरे पड़वा ही दीजिए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:07 PM
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RE: शादी - by Teeniv - 28-10-2022, 12:56 AM
RE: शादी - by neerathemall - 25-01-2023, 02:38 PM



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