21-10-2022, 05:13 PM
नीतिका (हंसती हुई)- अच्छा, वही मैं सोचूं तू कब से यहां इन चक्करों में फंस गई।
भव्या को अब तक कुछ भी समझ नहीं आ रहा था सो वो बस झट से नीतिका के गले लग गई।
नीतिका (जान कर छेड़ते हुए)- चल भूल रही है ये तेरे दर्श जी का नहीं मेरा गला है, मेरी तो जान छोड़ दो...।
भव्या (अचानक से सिसकते हुए)- नीकू, मुझे सच में नहीं समझ आ रहा है कि ये सब क्या और क्यों है ??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे परेशान क्यों हो रही है पगली, ये बस वो फीलिंग्स हैं जो आज तक तुम अपने अंदर दबाए बैठी थी और वो आज एक झटके में तुम्हारे ना चाहते हुए भी तुम्हारे सामने आ ही गई।
भव्या (रुआंसी सी)- ले.....लेकिन वो...
नीतिका (प्यार से)- देख जहां तक मैं उन्हें जान या समझ पाई हूं, वे भी तुम्हारे लिए बिल्कुल वही फीलिंग्स रखते हैं जो तू रखती है, मुझे विश्वास है।
भव्या - ले...लेकिन.....
भव्या अपनी बात पूरी ही करती कि तब तक स्टेज से किसी की आवाज आने लगी जो किसी और की नहीं बल्कि दर्श की थी। आज सारे सीनियर्स एक एक कर अपना पिछले तीन सालों का एक्सपीरियंस बयां कर रहे थे।
दर्श - सच कहूं तो जब इस कॉलेज में आया था तो मुझे कुछ भी खास नहीं लगा। हां जो पहले सबसे सुन रखा था बिलकुल वैसा ही पाया। अपने स्वभाव की वजह से ना तो बहुत ही दोस्त बने और ना ही कोई दुश्मन। जब भी कभी ये सोचता था कि अपने कॉलेज के पलों की बात कभी याद करूंगा तो क्या करूंगा, तो कोई खास जवाब नहीं मिलता था, लेकिन आज सच कहूं तो दोस्तों शायद कम ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें आज यहां से जाने की तकलीफ मेरे जितनी होगी।
दर्श (फिर से)- जब तक इन पलों की खासियत समझ पाया हूं, इनसे दूर जाने का वक्त आ गया। नहीं जानता कैसे जियूंगा इन पलों से दूर....
उधर दर्श के हर एक शब्द की तकलीफ भव्या की आंखों से बहती हुई दीख रही थी। उस वक्त कुछ ही लोग थे जिन्हें दर्श की इन बातों का मतलब असल में समझ आ रहा था।
कुछ स्टूडेंट्स (चिल्लाते हुए)- लेकिन वो है कौन ??? आज तो हमें भी मिला दीजिए।
दर्श (हल्के से)- माफ करना दोस्तों लेकिन अपने दिल की बात तो अब तक उससे भी नहीं कह पाया हूं, तो आपसे क्या कह पाऊंगा।
सारे स्टूडेंट्स सीटियां बजाने लगे और जोर जोर से हूटिंग करने लगे। भव्या की नजरें तो शर्म के मारे जमीन से उठ ही नहीं पा रही थीं। वो बस नीतिका का हाथ पकड़े चुपचाप सिर झुकाए बैठी थी। उधर अचानक स्टेज से दर्श के गाने की आवाज आने लगी और भव्या बस उसमें ही खोती जा रही थी।
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
अक्सर खयालो में दिल सोचता
तुझसे है शायद कोई वास्ता
जबसे तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
ओस की बूंदों में अक्स तेरा
साया तेरा
रंग धूप से भी है सुनेहरा
जिस पे हैरान मन ये मेरा
ग़ुज़री है ये करके आरज़ू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
परियों से भी ज़्यादा है तू हसीं
दिल नशीं हुआ यकीन
दीवारों पे तूने मेरे दिल की
दस्तक दी दूर से ही
हर पल तेरी है जुस्तुजू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या. ......
वहां बैठा हर एक शक्श सबकुछ भूले बस दर्श की मीठी आवाज और उसकी ख्वाहिशों की नदी में गोतें लगाए जा रहा था। इन सबमें अगर किसी की हालत अगर सबसे ज्यादा बदहवास सी थी तो वो थी भव्या की, वो तो बस नीतिका का हाथ जोर से पकड़े एक टक बस नीचे देखे जा रही थी। चाह कर भी शर्म से उसे नजर उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। दर्श भी थोड़ी देर बाद स्टेज से उतर कर चुपचाप नीचे आ कर भव्या से बस कुछ दूरी पर ही बैठ गया।
थोड़ी ही देर में नीतिका वॉशरूम का बोल कर वहां से निकली तो उसके बाहर निकलते ही अचानक किसी ने जोर से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया और वो जैसे ही डर से चिल्लाने ही वाली थी कि उस अनजान आदमी ने अपना हाथ झट से बिना सोचे उसके मुंह पर रख दिया जिससे वो और झटपटाने और डर से रोने लगी।
अब आद्विक को उसकी आंखों में आसूं देख कर होश आया कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही जोर से नीतिका का हाथ पकड़ रखा था और उसने झट से उसका हाथ छोड़ दिया। नीतिका डर और दर्द से बस एक ओर खड़ी हो गई।
आद्विक (गुस्से में)- अजीब फूल कुमारी हो तुम भी, यहां हाथ पकड़ा नहीं कि नखरे चालू।
नीतिका बस गुस्से में उसे घूरने लगी।
आद्विक (चिढ़ कर)- एक तो तुम्हारी अक्ल का समझ नहीं आता, वैसे तुम्हारे पास अक्ल है भी या नहीं, मुझे नहीं पता, और हां, मुझे ये जानने का शौक भी नहीं है।
नीतिका (गुस्से और दर्द में)- तो यही बताने के लिए इस तरह मुझे यहां खींच कर लाए हैं???
आद्विक (गुस्से में)- अपने आप को इतना भी वैल्यू मत दो तुम, और हां, आद्विक सिन्हा का इतना बुरा दिन भी नहीं आया है कि तुम जैसी नमूनी को अपने साथ एक पल के लिए भी खड़ा बर्दाश्त करे।
अब नीतिका भी आद्विक की इस बदतमीजी से गुस्से से तमतमा रही थी। लेकिन वो कुछ कहती या करती कि तब तक वो फिर से बोल उठा।
आद्विक (फिर से)- अगर बात मेरे दोस्त की नहीं होती तो.......
नीतिका को इस पल उसे कुछ भी ज्यादा समझ नहीं आ रहा था।
आद्विक - तुम्हें इतनी सी अक्ल नहीं है कि अपनी दोस्त के साथ खुद से पूरा वक्त चिपके रहने के बजाय उसे उसके साथ कुछ पल बिताने दो, जो उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होने वाले हैं। सच में उसकी अच्छी दोस्त हो या ........ या फिर...... (थोड़ा रुककर)..... जल रही हो उसकी खुशियों से, क्योंकि तुम लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है ना, जिसे दोस्त मानो कल को उसे ही खुश देख उसकी खुशियां छीनने में लग जाओ।
नीतिका से अब आद्विक की बदतमीजी उसके बर्दाश्त के बाहर थी।
नीतिका - तरस आता है मुझे उन स्टूडेंट्स पर जिन्होंने अपना कीमती वोट दे कर तुम्हें इस कॉलेज का प्रेसिडेंट बनाया होगा, तुम पर भरोसा किया होगा। उन्हें कहां पता कि जो बदतमीज इंसान कभी अपनी गंदी सोच से ही नहीं निकल पाया वो कभी भी दूसरों के लिए क्या करेगा।
आद्विक नीतिका की ये बातें बर्दाश्त नहीं कर पाया और वहीं गुस्से में बिना देखे नीतिका को सामने से धक्का दे डाला। वैसे धक्का उतनी जोर का भी नहीं था लेकिन ऐसे अचानक मिलने की वजह से वो खुद को संभाल नहीं पाई और पीछे की ओर फिसल कर गिर पड़ी। वहीं पीछे एक टूटी हुई सी बेंच थी जिसका एक किनारा नीतिका को जोर से लगा और वो तड़प उठी। अब तो आद्विक भी नीतिका की हालत और उसके सिर से बहते खून को देख परेशान हो गया, कुछ समझ पाता कि उससे पहले ही और भी कुछ लोग वहां जमा हो गए।
कुछ ने मिल कर नीतिका को उठाया और जल्दी से उसे ले कर फर्स्ट एड रूम में गए। वहां बीती डॉक्टर ने उसके घाव को देख कर उसकी सफाई की और पट्टी बांध दिया। कुछ देर बाद जब वो थोड़ी सामान्य हुई तो सभी ने इस हालत की वजह पूछी तो कुछ सोच कर चुप हो गई।
अब तक भव्या भी हड़बड़ाई हुई उसके पास आ गई और उससे पूछने लगी। उसने बस चक्कर आने का बहाना बता कर वो बात वहीं खत्म कर दी और जिद कर उसे अच्छे से समझा कर रुकने का कह कर खुद घर के लिए निकल गई। उधर आद्विक भी कुछ पल के लिए बिल्कुल ही सन्न पड़ गया था और वो भी बस अपनी बाइक ले बिना किसी को कुछ बताए हुए चुपचाप वहां से निकल गया।
भव्या को अब तक कुछ भी समझ नहीं आ रहा था सो वो बस झट से नीतिका के गले लग गई।
नीतिका (जान कर छेड़ते हुए)- चल भूल रही है ये तेरे दर्श जी का नहीं मेरा गला है, मेरी तो जान छोड़ दो...।
भव्या (अचानक से सिसकते हुए)- नीकू, मुझे सच में नहीं समझ आ रहा है कि ये सब क्या और क्यों है ??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे परेशान क्यों हो रही है पगली, ये बस वो फीलिंग्स हैं जो आज तक तुम अपने अंदर दबाए बैठी थी और वो आज एक झटके में तुम्हारे ना चाहते हुए भी तुम्हारे सामने आ ही गई।
भव्या (रुआंसी सी)- ले.....लेकिन वो...
नीतिका (प्यार से)- देख जहां तक मैं उन्हें जान या समझ पाई हूं, वे भी तुम्हारे लिए बिल्कुल वही फीलिंग्स रखते हैं जो तू रखती है, मुझे विश्वास है।
भव्या - ले...लेकिन.....
भव्या अपनी बात पूरी ही करती कि तब तक स्टेज से किसी की आवाज आने लगी जो किसी और की नहीं बल्कि दर्श की थी। आज सारे सीनियर्स एक एक कर अपना पिछले तीन सालों का एक्सपीरियंस बयां कर रहे थे।
दर्श - सच कहूं तो जब इस कॉलेज में आया था तो मुझे कुछ भी खास नहीं लगा। हां जो पहले सबसे सुन रखा था बिलकुल वैसा ही पाया। अपने स्वभाव की वजह से ना तो बहुत ही दोस्त बने और ना ही कोई दुश्मन। जब भी कभी ये सोचता था कि अपने कॉलेज के पलों की बात कभी याद करूंगा तो क्या करूंगा, तो कोई खास जवाब नहीं मिलता था, लेकिन आज सच कहूं तो दोस्तों शायद कम ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें आज यहां से जाने की तकलीफ मेरे जितनी होगी।
दर्श (फिर से)- जब तक इन पलों की खासियत समझ पाया हूं, इनसे दूर जाने का वक्त आ गया। नहीं जानता कैसे जियूंगा इन पलों से दूर....
उधर दर्श के हर एक शब्द की तकलीफ भव्या की आंखों से बहती हुई दीख रही थी। उस वक्त कुछ ही लोग थे जिन्हें दर्श की इन बातों का मतलब असल में समझ आ रहा था।
कुछ स्टूडेंट्स (चिल्लाते हुए)- लेकिन वो है कौन ??? आज तो हमें भी मिला दीजिए।
दर्श (हल्के से)- माफ करना दोस्तों लेकिन अपने दिल की बात तो अब तक उससे भी नहीं कह पाया हूं, तो आपसे क्या कह पाऊंगा।
सारे स्टूडेंट्स सीटियां बजाने लगे और जोर जोर से हूटिंग करने लगे। भव्या की नजरें तो शर्म के मारे जमीन से उठ ही नहीं पा रही थीं। वो बस नीतिका का हाथ पकड़े चुपचाप सिर झुकाए बैठी थी। उधर अचानक स्टेज से दर्श के गाने की आवाज आने लगी और भव्या बस उसमें ही खोती जा रही थी।
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
अक्सर खयालो में दिल सोचता
तुझसे है शायद कोई वास्ता
जबसे तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
ओस की बूंदों में अक्स तेरा
साया तेरा
रंग धूप से भी है सुनेहरा
जिस पे हैरान मन ये मेरा
ग़ुज़री है ये करके आरज़ू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
परियों से भी ज़्यादा है तू हसीं
दिल नशीं हुआ यकीन
दीवारों पे तूने मेरे दिल की
दस्तक दी दूर से ही
हर पल तेरी है जुस्तुजू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या. ......
वहां बैठा हर एक शक्श सबकुछ भूले बस दर्श की मीठी आवाज और उसकी ख्वाहिशों की नदी में गोतें लगाए जा रहा था। इन सबमें अगर किसी की हालत अगर सबसे ज्यादा बदहवास सी थी तो वो थी भव्या की, वो तो बस नीतिका का हाथ जोर से पकड़े एक टक बस नीचे देखे जा रही थी। चाह कर भी शर्म से उसे नजर उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। दर्श भी थोड़ी देर बाद स्टेज से उतर कर चुपचाप नीचे आ कर भव्या से बस कुछ दूरी पर ही बैठ गया।
थोड़ी ही देर में नीतिका वॉशरूम का बोल कर वहां से निकली तो उसके बाहर निकलते ही अचानक किसी ने जोर से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया और वो जैसे ही डर से चिल्लाने ही वाली थी कि उस अनजान आदमी ने अपना हाथ झट से बिना सोचे उसके मुंह पर रख दिया जिससे वो और झटपटाने और डर से रोने लगी।
अब आद्विक को उसकी आंखों में आसूं देख कर होश आया कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही जोर से नीतिका का हाथ पकड़ रखा था और उसने झट से उसका हाथ छोड़ दिया। नीतिका डर और दर्द से बस एक ओर खड़ी हो गई।
आद्विक (गुस्से में)- अजीब फूल कुमारी हो तुम भी, यहां हाथ पकड़ा नहीं कि नखरे चालू।
नीतिका बस गुस्से में उसे घूरने लगी।
आद्विक (चिढ़ कर)- एक तो तुम्हारी अक्ल का समझ नहीं आता, वैसे तुम्हारे पास अक्ल है भी या नहीं, मुझे नहीं पता, और हां, मुझे ये जानने का शौक भी नहीं है।
नीतिका (गुस्से और दर्द में)- तो यही बताने के लिए इस तरह मुझे यहां खींच कर लाए हैं???
आद्विक (गुस्से में)- अपने आप को इतना भी वैल्यू मत दो तुम, और हां, आद्विक सिन्हा का इतना बुरा दिन भी नहीं आया है कि तुम जैसी नमूनी को अपने साथ एक पल के लिए भी खड़ा बर्दाश्त करे।
अब नीतिका भी आद्विक की इस बदतमीजी से गुस्से से तमतमा रही थी। लेकिन वो कुछ कहती या करती कि तब तक वो फिर से बोल उठा।
आद्विक (फिर से)- अगर बात मेरे दोस्त की नहीं होती तो.......
नीतिका को इस पल उसे कुछ भी ज्यादा समझ नहीं आ रहा था।
आद्विक - तुम्हें इतनी सी अक्ल नहीं है कि अपनी दोस्त के साथ खुद से पूरा वक्त चिपके रहने के बजाय उसे उसके साथ कुछ पल बिताने दो, जो उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होने वाले हैं। सच में उसकी अच्छी दोस्त हो या ........ या फिर...... (थोड़ा रुककर)..... जल रही हो उसकी खुशियों से, क्योंकि तुम लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है ना, जिसे दोस्त मानो कल को उसे ही खुश देख उसकी खुशियां छीनने में लग जाओ।
नीतिका से अब आद्विक की बदतमीजी उसके बर्दाश्त के बाहर थी।
नीतिका - तरस आता है मुझे उन स्टूडेंट्स पर जिन्होंने अपना कीमती वोट दे कर तुम्हें इस कॉलेज का प्रेसिडेंट बनाया होगा, तुम पर भरोसा किया होगा। उन्हें कहां पता कि जो बदतमीज इंसान कभी अपनी गंदी सोच से ही नहीं निकल पाया वो कभी भी दूसरों के लिए क्या करेगा।
आद्विक नीतिका की ये बातें बर्दाश्त नहीं कर पाया और वहीं गुस्से में बिना देखे नीतिका को सामने से धक्का दे डाला। वैसे धक्का उतनी जोर का भी नहीं था लेकिन ऐसे अचानक मिलने की वजह से वो खुद को संभाल नहीं पाई और पीछे की ओर फिसल कर गिर पड़ी। वहीं पीछे एक टूटी हुई सी बेंच थी जिसका एक किनारा नीतिका को जोर से लगा और वो तड़प उठी। अब तो आद्विक भी नीतिका की हालत और उसके सिर से बहते खून को देख परेशान हो गया, कुछ समझ पाता कि उससे पहले ही और भी कुछ लोग वहां जमा हो गए।
कुछ ने मिल कर नीतिका को उठाया और जल्दी से उसे ले कर फर्स्ट एड रूम में गए। वहां बीती डॉक्टर ने उसके घाव को देख कर उसकी सफाई की और पट्टी बांध दिया। कुछ देर बाद जब वो थोड़ी सामान्य हुई तो सभी ने इस हालत की वजह पूछी तो कुछ सोच कर चुप हो गई।
अब तक भव्या भी हड़बड़ाई हुई उसके पास आ गई और उससे पूछने लगी। उसने बस चक्कर आने का बहाना बता कर वो बात वहीं खत्म कर दी और जिद कर उसे अच्छे से समझा कर रुकने का कह कर खुद घर के लिए निकल गई। उधर आद्विक भी कुछ पल के लिए बिल्कुल ही सन्न पड़ गया था और वो भी बस अपनी बाइक ले बिना किसी को कुछ बताए हुए चुपचाप वहां से निकल गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.