21-10-2022, 05:12 PM
चूंकि दोनों ही पढ़ने में अच्छी थीं और उनके बारहवीं के नंबर भी काफी अच्छे थे तो अगले ही कुछ हफ्तों में उन दोनों ही सहेलियों का एडमिशन उनकी पसंद के कॉलेज में हो गया। कल सुबह उनके कॉलेज का पहला दिन था जिसे सोच कर ही दोनों के ही मन में इतनी गुदगुदी थी कि नींद आना तो मुश्किल ही था और आंखों ही आंखों में पूरी रात कट गई।
" कितनी बार कहा है कि टाइम की कद्र करो, पता नहीं क्या करती रहती हो?? इतने साल हो गए लेकिन भागते दौड़ते पहुंचने की आदत इस लड़की की अब तक नहीं गई है।" कहते हुए भव्या के पिताजी अपनी चाय लिए वहीं बैठ गए जहां भव्या बगल में बैठी मुंह बनाए जबरदस्ती अपनी मां के गुस्से की वजह से पराठे के टुकड़े को पानी की मदद से सरका रही थी।
भव्या (चिढ़ कर)- plz पापा, अब हम कॉलेज में हैं, कॉलेज में नहीं कि बस घंटियों की आवाज पर बस दौड़ती रहें, अब तो थोड़े बहुत लेट होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
भव्या की मां (थोड़े गुस्से में) - हां, समय पर इस लड़की का कोई काम तब हो ना जब इसे किसी जिम्मेदारी का कोई अहसास हो?? यहां तो बस जो मन आया जैसे मन आया पड़े रहे।
"वाउ, क्या बात है लहसुन मिर्च वाली चटनी...... तब तो जरूर वो खस्ता वाले पराठे ही बन रहे होंगे, क्यों आंटी जी...??" कहती हुई नीतिका प्यार से आ कर बगल में बैठ गई और भव्या को जल्दी करने के इशारे करने लगी।
नीतिका की प्यारी बात पर भव्या की मां भी मुस्कुरा उठीं और नाश्ता करने को कहा लेकिन नीतिका ने पेट बिल्कुल भरा है कह कर टाल दिया और दोनों से मिल कर भव्या के साथ कॉलेज के लिए निकल गई।
कॉलेज का पहला दिन किसी बड़े त्योहार से कम नहीं होता है नए बच्चों के लिए, वही हाल वहां भी था। जहां लड़कियां रंग बिरंगे कपड़ों, पर्स में अपना एक से एक फैशन दिखा रही थीं वहीं लड़के भी किसी मामले में कम नहीं थे। जहां लड़कियां नजरें बचा -बचा कर स्मार्ट लड़कों को निहार रही थीं वहीं लड़के भी अपनी - अपनी सेटिंग बिठाने के फिराक में हर किसी पर नजरें जमा रहे थे।
ऐसे माहौल में थोड़ी बहुत नर्वस तो दोनों ही दोस्तें थीं लेकिन फिर भी जहां भव्या खुद को वहां के माहौल में ढाल लेने में थोड़ी हद तक सफल हो रही थी वहीं नीतिका इसके विपरीत खुद के अंदर की असहजता से परेशान थी। आज का पहला दो क्लास तो यूं ही एक दूसरे को और टीचर्स को जानने और समझने में ही निकल गया और आगे लगभग चालीस मिनट का ब्रेक था तो दोनों ही दोस्त कॉलेज के कैंटीन की ओर ना जा कर वहीं उसके थोड़े पहले एक शांति वाली जगह देख कर बैठ गईं।
भव्या (हंसती हुई)- बाप रे, नीकू ये तो गांव के मेले जैसा नहीं लग रहा, जो रंग खोजो वो मिलेगा.....
नीतिका (थोड़ी परेशान सी)- भावी, यार मेरे से सच में ये सब संभलेगा भी या नहीं। कहीं कॉमर्स ले कर मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी।
भव्या (घूरती हुई)- ले..... मैं यहां इतना मजेदार नजारा दिखा रहा हूं और एक तुम, कॉलेज के पहले दिन ही अपने पढ़ाई का रोना ले कर बैठी हो।
नीतिका (रुआंसी सी)- सच कहूं तो यहां कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा भावी, सब कुछ कितना अलग है ना.... (फिर कुछ सोच कर)...... शायद विवेक भैया सही ही कह रहे थे कि ये जगह हमारे लिए नहीं है।
भव्या (थोड़ा चिढ़ कर)- यार नीकू तू भी...... यहां हमें खुल कर जीने को आसमान मिल रहा है और तुझे अब भी अपने रूम में ही रहना है, निकलेंगे नहीं तो फिर जिएंगे कैसे खुल कर।
भव्या (थोड़ा समझाती हुई प्यार से)- अच्छा, अब ये बताओ कि जब जॉब करोगी तब क्या करोगी??
नीतिका (खुद को सामान्य करते हुए)- हां यार, ठीक कह रही है।
भव्या (मजाक में)- अच्छा यह सब छोड़ो, ये बताओ यहां अब तक इतने लड़कों में तुम्हें सबसे स्मार्ट कौन लगा??
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए।
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं।
नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
"हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले शक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
"Hello, I am दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा।
"घबराओ मत, कोई रैगिंग नहीं हो रही तुम्हारी, सब ठीक है। तुम्हें ऐसे अकेले परेशान बैठे देखा तो रुक गया।" मुस्कुराते हुए दर्श फिर से बोल पड़ा।
अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
नीतिका - हम्मम..... चलो।
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
भव्या - हुंह..... सीधा???
दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
" कितनी बार कहा है कि टाइम की कद्र करो, पता नहीं क्या करती रहती हो?? इतने साल हो गए लेकिन भागते दौड़ते पहुंचने की आदत इस लड़की की अब तक नहीं गई है।" कहते हुए भव्या के पिताजी अपनी चाय लिए वहीं बैठ गए जहां भव्या बगल में बैठी मुंह बनाए जबरदस्ती अपनी मां के गुस्से की वजह से पराठे के टुकड़े को पानी की मदद से सरका रही थी।
भव्या (चिढ़ कर)- plz पापा, अब हम कॉलेज में हैं, कॉलेज में नहीं कि बस घंटियों की आवाज पर बस दौड़ती रहें, अब तो थोड़े बहुत लेट होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
भव्या की मां (थोड़े गुस्से में) - हां, समय पर इस लड़की का कोई काम तब हो ना जब इसे किसी जिम्मेदारी का कोई अहसास हो?? यहां तो बस जो मन आया जैसे मन आया पड़े रहे।
"वाउ, क्या बात है लहसुन मिर्च वाली चटनी...... तब तो जरूर वो खस्ता वाले पराठे ही बन रहे होंगे, क्यों आंटी जी...??" कहती हुई नीतिका प्यार से आ कर बगल में बैठ गई और भव्या को जल्दी करने के इशारे करने लगी।
नीतिका की प्यारी बात पर भव्या की मां भी मुस्कुरा उठीं और नाश्ता करने को कहा लेकिन नीतिका ने पेट बिल्कुल भरा है कह कर टाल दिया और दोनों से मिल कर भव्या के साथ कॉलेज के लिए निकल गई।
कॉलेज का पहला दिन किसी बड़े त्योहार से कम नहीं होता है नए बच्चों के लिए, वही हाल वहां भी था। जहां लड़कियां रंग बिरंगे कपड़ों, पर्स में अपना एक से एक फैशन दिखा रही थीं वहीं लड़के भी किसी मामले में कम नहीं थे। जहां लड़कियां नजरें बचा -बचा कर स्मार्ट लड़कों को निहार रही थीं वहीं लड़के भी अपनी - अपनी सेटिंग बिठाने के फिराक में हर किसी पर नजरें जमा रहे थे।
ऐसे माहौल में थोड़ी बहुत नर्वस तो दोनों ही दोस्तें थीं लेकिन फिर भी जहां भव्या खुद को वहां के माहौल में ढाल लेने में थोड़ी हद तक सफल हो रही थी वहीं नीतिका इसके विपरीत खुद के अंदर की असहजता से परेशान थी। आज का पहला दो क्लास तो यूं ही एक दूसरे को और टीचर्स को जानने और समझने में ही निकल गया और आगे लगभग चालीस मिनट का ब्रेक था तो दोनों ही दोस्त कॉलेज के कैंटीन की ओर ना जा कर वहीं उसके थोड़े पहले एक शांति वाली जगह देख कर बैठ गईं।
भव्या (हंसती हुई)- बाप रे, नीकू ये तो गांव के मेले जैसा नहीं लग रहा, जो रंग खोजो वो मिलेगा.....
नीतिका (थोड़ी परेशान सी)- भावी, यार मेरे से सच में ये सब संभलेगा भी या नहीं। कहीं कॉमर्स ले कर मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी।
भव्या (घूरती हुई)- ले..... मैं यहां इतना मजेदार नजारा दिखा रहा हूं और एक तुम, कॉलेज के पहले दिन ही अपने पढ़ाई का रोना ले कर बैठी हो।
नीतिका (रुआंसी सी)- सच कहूं तो यहां कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा भावी, सब कुछ कितना अलग है ना.... (फिर कुछ सोच कर)...... शायद विवेक भैया सही ही कह रहे थे कि ये जगह हमारे लिए नहीं है।
भव्या (थोड़ा चिढ़ कर)- यार नीकू तू भी...... यहां हमें खुल कर जीने को आसमान मिल रहा है और तुझे अब भी अपने रूम में ही रहना है, निकलेंगे नहीं तो फिर जिएंगे कैसे खुल कर।
भव्या (थोड़ा समझाती हुई प्यार से)- अच्छा, अब ये बताओ कि जब जॉब करोगी तब क्या करोगी??
नीतिका (खुद को सामान्य करते हुए)- हां यार, ठीक कह रही है।
भव्या (मजाक में)- अच्छा यह सब छोड़ो, ये बताओ यहां अब तक इतने लड़कों में तुम्हें सबसे स्मार्ट कौन लगा??
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए।
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं।
नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
"हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले शक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
"Hello, I am दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा।
"घबराओ मत, कोई रैगिंग नहीं हो रही तुम्हारी, सब ठीक है। तुम्हें ऐसे अकेले परेशान बैठे देखा तो रुक गया।" मुस्कुराते हुए दर्श फिर से बोल पड़ा।
अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
नीतिका - हम्मम..... चलो।
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
भव्या - हुंह..... सीधा???
दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.