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Adultery शादी
#3
शादी : अरेंज vrs. लव







 
                नीतिका और भव्या: दोनों ही पक्की और बचपन की सहेलियां थीं, चूंकि दोनों के ही पिता अखिल जी (नीतिका के पापा) और प्रदीप जी (भव्या के पापा) एक ही सरकारी महकमे में लगभग एक ही पद पर भले ही अलग अलग विभागों में कार्यरत थे लेकिन आपस में काफी अच्छे दोस्त थे। यही वजह थी जो शायद इनकी माएं, विभाजी (नीतिका की मां और मोहिनी जी (भव्या की मां)  भी आपस में बहुत गहरी दोस्त तो नहीं, लेकिन एक दूसरे के प्रति काफी मेलजोल था। इनका घर भी आपस में बहुत ज्यादा दूर नहीं था, दोनों एक ही कॉलोनी के बस अलग अलग छोरों पर ही था।
 
             एक ओर जहां नीतिका स्वभाव से थोड़ा गंभीर शांत और शर्मीली सी थी वहीं दूसरी ओर भव्या थोड़ी शरारती, मूडी और बेबाक अंदाज वाली लड़की थी। देखने में दोनों ही सुंदर और प्यारी तो थीं ही लेकिन वहीं साथ -साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थीं तो इम्तिहान में इनके नंबर भी अच्छे ही आते थे। जिस काम को करने में नीतिका दस बार सोचती उसी काम को भव्या पहले धड़ाक से कर बैठती फिर सोचती। यही वजह भी थी कि जहां दोनों दिन में हजार बार लड़ती फिर अगले ही मिनट दोस्त बन जाती। 
 
                आस पास रहने की वजह और आपसी मेलजोल की वजह से लगभग सारे पर्व त्योहार भी साथ ही मनाते और यही वजह थी कि इनके ज्यादातर रिश्तेदारों से भी ये दोनों ही परिवार भली भांति परिचित थे। 
 
                नीतिका और भव्या दोनों ही एक मामले में और भी एक से थे, वो ये कि दोनों ही एक भाई और एक बहन थे। बस फर्क इतना था कि नीतिका अपने भाई शुभम से बड़ी लेकिन भव्या अपने भाई विवेक से छोटी थी। 
 
                 जहां कभी नीतिका को लगता कि काश वो छोटी होती अपने भाई शुभम से तो घरवाले उसे ज्यादा प्यार करते क्योंकि उसे लगता था कि हर बात पर उसे ही टोका और समझाया जाता है, शुभम को छोटे होने की वजह से कभी भी कोई कुछ कहता ही नहीं है वहीं भव्या सोचती कि काश वो बड़ी होती तो जितना रोब विवेक उसके ऊपर जमाता है, उतना ही वो उसपर जमाती। घर वाले भी हर बात पर वो बड़ा है, उससे सीखो, उसको देखो कह कर परेशान भी नहीं करते। इस बात पर भी दोनों सहेलियां घंटों बातें करती और अपना दुखड़ा सुना कर मन हल्का करतीं।
 
                 चूंकि दोनों ही सहेलियां अब तक अपना लगभग हर काम एक जैसा और एक साथ करती आईं थीं तो जाहिर था कि अब बारहवीं खत्म होने के बाद दोनों एक ही कॉलेज में और एक ही विभाग में अपना नाम भी लिखवाना चाहती थीं। दोनों के मां बाप भी इस बात से काफी खुश थे कि अगर दोनों एक दूसरे के साथ रहेंगी तो इनके घरवालों को भी इनकी थोड़ी कम चिंता होगी जो इस उम्र की हर लड़कियों के मां बाप को ना चाहते हुए भी रहती ही है।
 
                अब बात आई कॉलेज और विषय तय करने की तो बहुत मुश्किल से दोनों कॉमर्स पर आ कर मानी। जहां भव्या को कॉमर्स काफी पसंद था वहीं नीतिका के लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था लेकिन साथ रहेंगी ये सोच कर दोनों ही तैयार थीं। जब कॉलेज की बात आई तो उस वक्त उस एक साधारण से शहर में कुछ ही गिने चुने कॉलेज थे जो कॉमर्स की अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते थे लेकिन मुसीबत ये थी कि वे सारे ही कॉलेज co -education वाले थे यानी कि जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही थे। 
 
             कॉलेज का co-education होने की वजह से नीतिका के घरवाले शुरू में थोड़ा हिचकिचाए लेकिन फिर बच्ची का अच्छा फ्यूचर सोच कर मान गए। दूसरी ओर भव्या के घर में तो मानो तूफान ही आने वाला था क्योंकि ये ना तो उसकी दादी चाहती थीं और ना ही उसका बड़ा भाई, विवेक। विवेक दिल का बुरा नहीं था लेकिन उसकी सोच भी बस आम भाइयों जैसी थी जिसकी वजह से वो अपनी बहन को उस दुनिया से दूर रखना चाहता था।
 
           भव्या के कहने की वजह से नीतिका ने विवेक को काफी समझाया और तैयार किया ताकि वो घर में बांकी सभी को भी मना पाए। नीतिका और विवेक का रिश्ता भी अक्सर मिलने जुलने की वजह से काफी अच्छा था, नीतिका भी चूंकि उसका कोई खुद का बड़ा भाई नहीं था तो वो भी उसे ही बहुत मानती और इज्जत करती थी। वहीं विवेक भी उसका अपनी  छोटी बहन भव्या की तरह ही खयाल भी रखता था। यही वजह भी थी कि नीतिका ने जब co-education वाले कॉलेज को लेकर मना नहीं किया तो वो उससे भी काफी नाराज़ था।
 
नीतिका - क्यों, इतना नाराज़ हो रहे हैं आप भैया, जबकि आप भी अच्छे से जानते हैं कि वो कॉलेज काफी अच्छा है।
 
विवेक (थोड़ा गुस्से में)- तुम लोगों को समझ नहीं आता, अभी तक तुम लोगों की दुनिया बस तुम्हारे कॉलेज से ले कर तुम्हारे चाट और गोलगप्पे की दुकान तक की ही है ना, इसीलिए.....
 
विवेक (फिर से नाराज हो कर)- अगर कभी कोई कुछ कहे तो समझना चाहिए, at least तुम दोनों अच्छे से जानती हो कि मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूं।
 
नीतिका (प्यार से)- भैया, आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन आप बस मेरी एक बात का दिल से जवाब दीजिए।
 
विवेक उसकी तरफ देख रहा था।
 
नीतिका (थोड़ा गंभीर हो कर)- भैया, क्या आप नहीं चाहते कि हम लोग अपने पैरों पर खड़े हों???
 
विवेक - तुम लोगों को क्या सच में ऐसा लगता है ???
 
नीतिका - नहीं भैया, अगर ऐसा लगता तो आज आपसे कोई बात कहने में मैं जरूर हिचकिचाती, लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, आप जानते हैं।
 
विवेक -तो.......
 
नीतिका - तो भैया, आप हमें इस माहौल, इन परेशानियों से कब तक बचाएंगे??? और अगर हम अभी से ही खुद ऐसे माहौल में खुद को नहीं ढालेंगे तो कल क्या ये सब और भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा हमारे लिए???
 
विवेक चुप हो गया।
 
नीतिका (फिर से)- भैया मैं जानती हूं, बड़े भाई होने के नाते आप हमें बहुत सी विषम परिस्थितियों से पहले ही बचाना चाहते हैं लेकिन हम पर भी भरोसा कीजिए कि ये स्थितियां हम अच्छे से समझ और संभाल सकती हैं।
 
                  नीतिका अपनी बात पूरी कर वहां से जाने लगी कि तभी विवेक की बात पर रुक गई।
 
विवेक (गंभीर तौर पर)- अगर तुम चाहती हो कि भव्या भी उसी कॉलेज में जाए तो तुम्हें अपने साथ साथ उसका भी पूरा खयाल रखने का प्रॉमिस देना होगा, ताकि मैं भी निश्चिंत हो सकूं। 
 
विवेक (फिर से)- मैं जानता हूं तुम्हारी नज़र में मैं पुराने जमाने के दादा और नाना जैसी बातें करता हुआ दिख रहा हूं, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
                   मैं तुम दोनों के ही स्वभाव को जानता हूं और शायद इसीलिए मैं ये बात भव्या से नहीं बल्कि तुमसे कर रहा हूं। खुल कर कहूं तो उसकी बेबाकी और उसके चंचल स्वाभाव se थोड़ा डरता हूं कि अनजाने ही में लेकिन कहीं कोई बेवकूफी ना कर बैठे।
 
                       नीतिका भी विवेक कि बातों का मतलब अच्छे से समझ रही थी तो उसने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा और हां बोलकर वहां से चली गई। बरामदे से निकली ही थी कि भव्या ने भैया माने या नहीं और बांकी और भी ढेरों सवालों की झड़ी लगा दी।
 
नीतिका (हंसती हुई) - बस...... बस, हो गया मेरी मां, कितना बोलेगी, थोड़ा तो रहम कर इस बिचारी जुबान पर.......
 
                भव्या झूठ -मूठ का मुंह बना कर नीतिका को घूरने लगी।
 
नीतिका (हंसती हुई) - चल नौटंकी सब समझती हूं तेरी हरकतें, चल अब कल कॉलेज जा कर फॉर्म भी भरना है जिसकी कितनी तैयारियां भी करनी हैं, बिल्कुल भी टाइम नहीं है, टाइम निकल गया तो भैया को इतने मेहनत से पटाने का कोई फायदा भी नहीं होगा, समझी।
 
            नीतिका कह कर मुड़ते हुए अपने घर जाने लगी, तभी  भव्या ने उसे प्यार जोर से पकड़ लिया।
 
भव्या - I luv u..... I know, u are the best....?
 
नीतिका (धीरे से कान में)- I know....??
 
            आज काफी वक्त बाद जहां भव्या को आखिर चैन मिला कि अब जा कर उसका एडमिशन उसके पसंद के कॉलेज में हो पाएगा, वहीं अब वो दूसरी सोच में गुम होने लगी, कि नया कॉलेज कैसा होगा, लोग कैसे होंगे... पहली बार co-education में कैसे मैनेज करेगी। वहीं दूसरी ओर ये सारे सवाल तो नीतिका के भी मन में चल रहे थे जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी।
 
            अगले ही दिन दोनों दोस्तें तैयार हो कर कॉलेज के लिए निकल गईं। कॉलेज पहुंचते ही चारों तरफ इतनी रौनक और भीड़ देख कर दोनों के ही कदम धीरे हो गए। फॉर्म काउंटर पर खड़ी लाइन देख कर ही उन दोनों ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि केवल एक फॉर्म लेने और जमा करने में ही कम से कम पूरा का पूरा दिन निकलना था। 
 
                 खैर कोई दूसरा उपाय ना देख दोनों वहीं लाइन में लग गईं। अभी तक थोड़े ही लोगों का काम हुआ था कि अचानक से एक लड़का तेजी से काउंटर की ओर आगे बढ़ा और वहां बैठे शक्श जो फॉर्म बांटने का काम कर रहा था, को गुस्से में कुछ कहा फिर वहीं उसके बगल में रखा "closed" का बैनर खड़ा कर दिया। इन दोनों सहेलियों को तो उस पल कुछ भी समझ नहीं आया लेकिन जब थोड़ा नॉर्मल हुईं तो पता चला कि उतने रौब से आने वाला और इतना कुछ करने वाला शक्श इस कॉलेज का यूनियन लीडर और थर्ड ईयर का स्टूडेंट आद्विक सिन्हा था।
 
              आद्विक सिन्हा, उसी शहर के एक सबसे मशहूर वकील का बेटा और उसी शहर के हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का पोता था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा, सबका दुलारा, ऊपर से सभी को मनमौजी, दिलफेंक दिखने वाला लड़का अंदर से उतना ही भावुक था जिसका अंदाजा उसके दादाजी को छोड़ और बहुत ही कम लोगों को था। हां, उसकी सारी अच्छी बुरी शैतानियों का गवाह और कोई हो ना हो लेकिन उसका अपना ममेरा भाई दर्श था, जो बचपन से ही एक दूसरे के काफी करीब थे। 
 
             जहां स्वभाव में आद्विक चंचल, गुस्सैल और लगभग हर बात में हड़बड़ी मचाने वाला था वहीं दर्श अपने दो भाई बहनों में बड़ा और काफी शांत और सौम्य स्वभाव का था। दोनों की किसी बात पर एक मत हो जाए ऐसा लगभग असंभव ही था लेकिन फिर भी दोनों ही भाइयों के रिश्ते और दोस्ती की गांठ इतनी मजबूत थी कि उन्हें बांकी किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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शादी - by neerathemall - 21-10-2022, 05:07 PM
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RE: शादी - by Jainsantosh - 21-10-2022, 05:29 PM
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RE: शादी - by Teeniv - 28-10-2022, 12:56 AM
RE: शादी - by neerathemall - 25-01-2023, 02:38 PM



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