21-10-2022, 02:47 AM
पार्ट १८: बंटी संग परमानंद !
जब मेरी आँखें खुली तो देखा की मैं बंटी की बाँहों में सो रही थी. दिन के १२.३० या १.०० बजे का टाइम हो गया था. बंटी मुझे प्यार से निहार रहा था. उसकी आंखें चमक रही थी. मैंने मेरी नजरें शर्मा कर झुका दी और उसके छाती पर चेहरा रख कर छुपा लिया.
बंटी : उठ गयी मेरी जान.
मैं: हाँ, स्वप्निल कहा गया?
बंटी: वह हमारे लिए बहार से खाना लेने गया है . ( उस जमाने में आज की तरह स्विग्गी या होम डिलीवरी सिस्टम नहीं था.)
मैंने बंटी से लिपट कर पूछा - ऐसे क्या देख रहे हो ?
बंटी: तुझे देख रहा हूँ संध्या , तू मुझे पागल कर देती है.
मैंने देखा बंटी का काला लंड अब फिर से कड़क हो कर उफान भर रहा था. मैंने अपना हात उसके छाती से फेरकर नीचे की तरफ लेकर गयी और उसके लंड को सहलाने लगी. मैं उसके लंड के टोपे की मुलायम चमड़ी से खेलने लगी. कभी उसकी चमड़ी आगे खींचती, कभी पीछे. जब उसके लंड की चमड़ी पीछे को खींचती, उसके लंड का बड़ा गोलाकार सूपड़ा बहार आ जाता. मुझे ऐसे करने से बड़ा मजा आ रहा था. उसका काला लंड और सामने बड़ा सूपड़ा , कोई चॉक्लेट लोल्लिपोप की तरह लगता.
बंटी ने पूछा: हरीश कैसा है? अभी भी उससे मिलती हो ? प्यार करती हो?
मैं : हाँ वो अच्छा है..तू बता, तुझे तो गांव मैं बहुत सारी लड़किया मिल जाती होगी.
बंटी: हां मिलती है. पर किसी से दिल नहीं लगता. मुझे तो बस तुजसे प्यार हो गया है. पर तू किसी ओर से प्यार करती है.
मैं हक्काबक्का रह गयी. गांव के मर्द कितनी आसानी से दिल की बात कह देते है.
मैंने कहा: झूठा ..अगर ऐसे होता तो तुझे हरिया या स्वप्निल को मुझे चुदते देखकर बुरा लगता. तू सिर्फ सेक्स के लिए मुझे मिलता है. तुझे कोई प्यार नहीं है. बस सेक्स की वासना है.
बंटी: ने मेरा चेहरा पकड़ लिया और चूमने लगा. उसकी आँखों में दर्द था, प्यार था , पानी था. बंटी ने कहा : ऐसे नहीं है संध्या. शुरू में मुझे भी बुरा लगा था, पर जब देखा की तू खुश है, तेरी ख़ुशी देख कर मैं भी खुश हो जाता हूँ. तुझे अब तक समझा नहीं होगा,पर मैंने महसूस किया है - तू सब से ज्यादा सेक्स मेरे साथ एन्जॉय करती. क्यूंकि वो सिर्फ सेक्स नहीं पर प्यार है. मैं तुझे जबरदस्ती नहीं करूँगा. पर तुझे अपने-आप जब यह महसूस होगा तू भी मेरा कहना मान जायेगी.
मैं कुछ समज नहीं पा रही थी. मैं लगातार बंटी के लंड से खेल रही थी.जो अब मेरे हातों की स्पर्श से फनफना रहा था. मैं बंटी के लंड को छोड़कर बंटी से चिपक गयी, उसको कसकर आलिंगन दे दिया. बंटी अब मेरी पीठ पर से हात घुमाकर मेरी कमर के नीचे मेरे नितम्ब दबा रहा था. मैंने कहा - बंटी..मैं बहुत थक गयी हूँ. प्लीज अभी कुछ नहीं.
बंटी ने कहा .. हां रानी, मैं जानता हूँ, तुम कुछ मत करो , सिर्फ सोई रहो. मुझे आज तेरे शरीर का हर अंग , हर कोना , छूना है , चूमना है.
बंटी ने मुझे सर पर चूमना शुरू किया , धीरे से वह सर से निचे लगतार चुम रहा था, मेरी आँखें, नाक, गाल, कान, गला, ओंठ..सब. उसे कोई जल्दी नहीं थी. मैं चुपचाप आंखें बंद कर के उसको महसूस कर रही थी. मुझे बड़ा अच्छा लग रह था. ऐसे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था. बंटी ने दोनों हातों से मेरे मम्मे ऊपर उठाए और प्यार से उन्हें चूमने लगा, चूसने लगा. मेरी चुत गीली हो रही थी. वह बहुत देर तक मेरे दोनों बूब्स एक दूसरे से चिपका के मसलता रहा, चूमता रहा, चूसता रहा. फिर वह नीचे मेरी नाभि की तरफ चला गया. पहले उसने मेरी नाभि को उँगलियों से सहलाया और एक ऊँगली मेरी नाभि के अंदर डाल कर उसकी गहराई नापी. फिर दोनों ओंठों को मेरे नाभि के आजु बाजु रखकर चूसने लगा और बीच बीच मैं उसकी जीभ नाभि के अंदर डालने लगा. मुझे बहुत गुदगुदी हो रही थी..और मैं उत्तेजित भी हो रही थी. उसने मेरी कमर, पेट और जांघें सब अपनी जीभ से चाटनी शुरू कर दी. मैं अब करहा रही थी. मैं इंतजार कर रही थी की वह जल्दी से मेरी चुत को चाटना शुरू करे , पर मेरी चुत छोड़कर वह सब जगह , चुत के आजु बाजू, चाट रहा था. मैं अपनी कमर उठाने लगी. ताकि वह मेरी चुत पर ध्यान दे. पर वह मेरी चुत को बिलकुल भाव नहीं दे रहा था.
मैंने तड़पकर कहा - बंटी मेरी चुत चाटो.
बंटी: नहीं रानी, तू थक गयी है. मैंने वादा किया तुझे, कुछ नहीं करूँगा
मैं: बंटी प्लीज, अब रह नहीं जा रहा
पर बंटी ने एक नहीं सुनी , वह मेरी चुत के ऊपर, जांघों पर, और गांड के पास, चाटता रहा, उसकी गरम साँसे मेरी चुत पर महसूस हो रही थी. मैं तड़प रही थी. मैंने बंटी के बाल पकड़ लिए और मेरी चुत की तरफ धकेलने लगी. पर वह बिलकुल नहीं मान रहा था. अब उसने मेरी चुत के ऊपर, और आजु बाजु जांघों को हलके दातों से काटना शुरू कर दिया. उसके काटने से मैं तड़प जाती. मेरी चुत से लगातार पाणी बहा रहा था . तभी बंटी ने मेरी चुत के दाणे को अपने होठों में लेकर चूसने लगा हलके दातों से उसको चबा दिया. जैसे उसने चबाया..मैं..हाई........ू ... करके पानी छोड़ने लगी. मैंने बंटी का सर जोर से अपनी चुत पर रगड़ दिया . बंटी कोई अकाल पीड़ित प्यासे जानवर की तरह मेरे चुत का पाणी चाटने लगा . मेरी चुत का सारा पाणी चाट चाट कर पी गया.
फिर बंटी नीचे बिस्तर पर मेरे बाजु लेट गया और कहा : संध्या आओ ..मेरे ऊपर आकर मेरे लंड पर बैठ जाओ.
मैंने कहा : बंटी मेरे पाओ बहुत दर्द दे रहे, मैं बैठ नहीं पाऊँगी.
बंटी ने कहा : मुझ पर भरोसा रखो, तू बैठ तो सही.
मैं उठ गयी , दोनों पेर बंटी के कमर के बाजू रख कर नीचे बैठने लगी , बंटी ने अपने लंड को पकड़ कर ठीक मेरी चुत के द्वार पर लगा दिया, और मैं धीरे धीरे उसके लंड को मेरे चुत में अंदर ले कर बैठने लगी.
मेरी चुत ऐसे ही बहुत गीली थी.. बंटी का पूरा ८ इंच का काला जहरीला नाग निगल गयी. बंटी का नाग मेरी चुत को अंदर से हर जगह छू रहा था.
बंटी ने कहा : अब तू मेरे ऊपर सो जा, और पाँव सीधे कर दे.
मैं नीच झुक कर बंटी के छाती पर अपने मम्मे दबाकर लेट गयी और बंटी की गर्दन पर अपना सर रख दिया... और धीरे से मेरे घुटने सीधे पीछे कर के , बंटी के ऊपर सो गयी. बंटी ने अपने घुटने ऊपर किये और अपने पाँव ऊपर उठा कर मेरी गांड और जांघों को अपने दोनों पैरों से कस कर उसके शरीर के ऊपर दबा दिया. उसने दोनों हातों से मेरी पीठ को अपने शरीर से दबा रखा था. ऐसे करने से बंटी का पूरा लंड मेरी चुत के अंदर गहराई तक चला गया था. मैंने मुँह ऊपर किया और हम दोनों एक दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे. बंटी की पैर की पकड़ और भी टाइट हो रही थी..और मेरी चुत से लगातार पाणी बह रहा था. ना कोई धक्के, बस ऐसे ही एक दूसरे का कस कर बाँहों मैं पकड़ कर हम चुम रहे थे. मैं उन्माद मैं आकार कांपने लगी और मैंने जोर से मेरी कमर को बंटी के लंड पर दबा दिया ..और ..उह ..आह.. बंटी...कर के उसके ओंठों को चूसकर झड़ने लगी. मेरी चुत ने पानी का बरसाव बहा दिया और बंटी का लंड और भी गिला हो गया और उसके टट्टे भी.
जब मैं शांत हुई तब बंटी फिर से मेरे गालों पर चूमने लगा और कहा - मैंने कहा था न संध्या मुझ पर भरोसा रखो..देखो तो..न मैंने धक्के मारे , ना तुमने, बस ऐसे ही मुझ पर लिपटी रहो.
मैं फिर से कस कर बंटी के नंगे जिस्म पर लिपट गयी. मेरा मुँह बंटी के कंधे पर था, बंटी ने मेरे कान को अपने होठों से चबा डाला और धीरे से मेरे कान के पास बातें करने लगा. उसकी मुँह और नाक से गरम सांसे मेरे कान पर महसूस हो रही थी . मुझे फिर से गरम कर रही थी.
बंटी ने पूछा : अच्छा संध्या बताओ तो मेरा लंड कहा है.
मैंने प्यार से जोश मैं कहा : मेरे अंदर , मेरी चुत मैं है.
बंटी ने कहा : नहीं मेरी जान, वह तेरी चुत नहीं है..वह तो मेरे लंड की राणी है, अब बता तेरे अंदर क्या है?
मैंने शर्मा कर बंटी की गर्दन को चुम लिया .. और कहा - मेरे अंदर , मेरी राणी का लंड राजा है.
बंटी: बता यह लंड किसके लिए है?
मैं: यह लंड सिर्फ मेरा है, मेरी राणी की लिए है
बंटी: अगर ऐसा है तो तूने तो अभी तक मेरे लंड को ठीक से प्यार भी नहीं किया .
मैंने कहा : तेरे कल जाने से पहले मैं इसको बहुत सारा प्यार कर लुंगी.
बंटी ने कहा .. सच मेरी जान बता तो कैसे प्यार करेगी मेरे लंड को ?
मैं अब फिर से कांपने लगी थी. बंटी के लंड पर ऐसे सोते सोते मैं अब फिर से उन्मद में आ चुकी थी. मेरी चुत से लगातार बिना रुके पाणी बह रहा था. मेरी चुत अब फड़फड़ाने लगी थी. बंटी का लंड पूरा मेरी चुत मैं समां गया था. वह धक्का नहीं लगा रहा था , ना उसका लंड आगे पीछे कर रहा था. उसके लंड की नसे मेरी चुत मैं फूल रही थी झटके लगा रही थी.
मैंने कहा - मैं इसको बहुत सारी पप्पी दूंगी..इसको प्यार से चूसूंगी ..
बंटी - आह मेरी राणी.. ( उसने कस कर अपने पैरों से मेरी गांड उसके लंड पर दबा दी)
मैं फिर से जोर से कांप कर...उसके लंड पर झड़ गयी.
मेरी चुत तो जैसे बंटी के लंड से अंदर चिपक गयी थी. बिना धक्के, बिना कोई घर्षण - अपने आप ही पाणी बहा रही थी..बंटी का लंड अब और भी ज्यादा फूलकर मेरे चुत के अंदर जकड गया था. मैं थक गयी थी, पर बहुत आनंद आ रहा था. बंटी मुझे उसी पोजीशन मैं सुलाना चाहता था, अपने लंड को मेरी चुत के अंदर डाल के. पर मेरी चुत उसके लंड से बहुत उत्तेजित हो जाती, और अपने आप उसके लंड के प्यार में प्रेम का रस बहा देती. करीब ३० मिनट हम वैसे ही सोये रहे ,ओर इस दरम्यान मैं और एक बार झड़ गयी थी. मेरी चुत से लगातार पाणी बहरहा था. मैंने बंटी से कहा - बंटी बस करो अब, मैं मर जाउंगी. अपना पाणी मेरे चुत मैं डाल दो अब.
बंटी ने कहा - ठीक है , जैसे तुम चाहो और बंटी नीचे से जोर जोर से उसके लंड को मेरी चुत के अंदर धक्के मारने लगा. हम दोनों ज्यादा देर टिक नहीं पाए. बंटी का लंड मेरी चुत में और भी ज्यादा फुल गया , और एक बड़ा झटका दिया .. मुझे मेरी चुत के अंदर उसके वीर्य की गरम बूंदे महसूस हुई. फिर दूसरा झटका .. फिर तीसरा ...ऐसे १५-१६ झटके बंटी के लंड ने मेरी चुत के अंदर मारे ..और हर झटके के साथ मेरी चुत मैं उसका गरम गरम वीर्य अंदर तक चला गया. उसके गरम गरम गाढ़े वीर्य ने मेरी चुत अंदर तक भिगो डाली. मेरी प्यासी चुत को पाणी पिलाकर प्यास बुझा दी, शांत कर डाला . मैं बहुत देर तक वैसे ही बंटी से लिपट कर सोई रही. बहुत देर बाद बंटी का लंड धीरे से मेरी चुत से अपने आप बहार निकल गया.
बंटी ने मुझे साइड में लिटाकर फिर से बाँहों मैं ले लिया. मैं उसके छाती पर मुँह रख कर सो गयी. एक सकून था,आनंद था, भरोसा था, सुरक्षित महसूस कर रही थी. बंटी की बाँहों मैं सब भूल जाती, कोई चिंता नहीं होती, कोई संदेह नहीं, कोई शंका नहीं. महसूस होता तो सिर्फ एक अपनापन , एक आकर्षण, प्यार, खिंचाव, लगाव , उसकी महक, उसका मरदाना सुन्दर शरीर, इमोशनल केमिस्ट्री, सेक्सुअल केमिस्ट्री, सब बेखुबी से फिट हो रहे थे. हरीश या दूसरे मर्दों के साथ सेक्स तो एन्जॉय करती थी पर बाद में मन का जो खालीपन महसूस करती वह बंटी के साथ से चला जाता था.
मैं बहुत सम्भ्रम मैं पड़ गयी थी.