26-12-2018, 01:50 PM
मैं आँख मलते हुए उठी और कहा- “कुछ नहीं एक डरावना सपना था..." और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चली गई मेरी पैंटी पूरी गीली थी। मैं सोचने लगी की शुकर है एक सपना था, और फिर सपना याद करके हँसने लगी बिंदिया ऐसी नहीं हो सकती जैसा सपने में थी। मैं नहाने बाथरूम में चली गई।
मेरी जांघों के बीच चूत में सुरसुरी हो रही थी। मैंने अपने कपड़े उतारे और आईने में अपने आपको निहारने लगी। मेरी चूचियां बिल्कुल गोल-गोल और दूध की तरह सफेद थीं। मैंने नीचे देखा तो हैरत में पड़ गई। मेरी छोटी सी चूत फूलकर डबल रोटी की तरह मोटी गई थी। मैं अपनी टाँगें फैलाकर बड़े गौर से देखने लगी। मेरी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे। मैं उनपे हाथ फेरने लगी। मेरी चूत के अंदर गुदगुदी और मजे का अहसास हो रहा था। मैं मजे के सागर में गोते खा रही थी।
मैं अपनी जांघे फैलाकर चूत को गौर से देखने लगी। चूत के ऊपर एक छोटा सा दाना था, उसके ठीक नीचे एक सीधी लकीर खींची हुई थी। मैंने अपने हाथों से चूत की फांकों को अलग किया और अंदर देखने की कोशिश करने लगी। मुझे लाल और गुलाबी रंग के अलावा कुछ नजर नहीं आया। मैं अपने हाथ ऊपर करके चूत के दाने को रगड़ने लगी। वहाँ हाथ लगाते ही आनंद के मारे मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं अपने हाथ नीचे करके चूत की फांकों को मसलने लगी। मेरे मुँह से उत्तेजना के मारे सिसकियां निकलने लगी, और मैं एक दूसरी दुनियां में चली गई। मैंने तेज साँसें लेते हुए अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और झड़ने लगी। मेरे हाथ गीले हो गये और मैं वापस होश में आने लगी। मेरी चूचियां अब भी बड़ी तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी।
मैं जल्दी से नहाकर बाहर आ गई। मैं तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई। आँटी टेबल पर नाश्ता लगा चुकी थी। आज सनडे था, कालेज भी नहीं जाना था। खाना खाने के बाद आँटी बर्तन उठाने लगी, वो थोड़ा लंगड़ाकर चल रही थी।
मैंने आँटी से पूछा- “आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं?”
सोनाली- “बेटा बाथरूम में नहाते हुए पैर फिसल गया था...” आँटी ने जवाब दिया।
मैं अपने कमरे में चली गई और गुजरी हुई रात के बारे में सोचने लगी।
तभी आँटी के कमरे से फोन की घंटी बजने लगी। आँटी कमरे की तरफ बढ़ी। मैं चुपके से खिड़की के पास आ गई और गौर से आँटी की आवाज सुनने लगी।
आँटी ने फोन उठाकर इधर-उधर देखा और बोली- “तुम बहुत जालिम हो जय। मेरी गाण्ड अब भी दर्द कर रही है। आज रात मत आना...” कहकर आँटी फोन सुनने लगी, फिर कहा- “तुम मेरी बात नहीं मानोगे, अच्छा आ जाना मगर मेरी गाण्ड सूजी हुई है वहाँ पे कुछ मत करना...” कहकर आँटी ने फोन रख दिया।
शाम को बिंदिया ने कहा- “चलो बाजार से कुछ सामान लेकर आते हैं...”
रास्ते में मैंने पूछा- “क्या खरीदना है?”
बिंदिया शर्माकर बोली- “मुझे कुछ अंडरगार्मेंट्स खरीदने हैं.”
मार्केट में पहुँचते ही एक लड़का बिंदिया को इशारे करने लगा। बिंदिया भी मुश्कुराकर जवाब दे रही थी।
मैंने पूछा- क्या माजरा है?
मेरी जांघों के बीच चूत में सुरसुरी हो रही थी। मैंने अपने कपड़े उतारे और आईने में अपने आपको निहारने लगी। मेरी चूचियां बिल्कुल गोल-गोल और दूध की तरह सफेद थीं। मैंने नीचे देखा तो हैरत में पड़ गई। मेरी छोटी सी चूत फूलकर डबल रोटी की तरह मोटी गई थी। मैं अपनी टाँगें फैलाकर बड़े गौर से देखने लगी। मेरी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे। मैं उनपे हाथ फेरने लगी। मेरी चूत के अंदर गुदगुदी और मजे का अहसास हो रहा था। मैं मजे के सागर में गोते खा रही थी।
मैं अपनी जांघे फैलाकर चूत को गौर से देखने लगी। चूत के ऊपर एक छोटा सा दाना था, उसके ठीक नीचे एक सीधी लकीर खींची हुई थी। मैंने अपने हाथों से चूत की फांकों को अलग किया और अंदर देखने की कोशिश करने लगी। मुझे लाल और गुलाबी रंग के अलावा कुछ नजर नहीं आया। मैं अपने हाथ ऊपर करके चूत के दाने को रगड़ने लगी। वहाँ हाथ लगाते ही आनंद के मारे मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं अपने हाथ नीचे करके चूत की फांकों को मसलने लगी। मेरे मुँह से उत्तेजना के मारे सिसकियां निकलने लगी, और मैं एक दूसरी दुनियां में चली गई। मैंने तेज साँसें लेते हुए अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और झड़ने लगी। मेरे हाथ गीले हो गये और मैं वापस होश में आने लगी। मेरी चूचियां अब भी बड़ी तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी।
मैं जल्दी से नहाकर बाहर आ गई। मैं तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई। आँटी टेबल पर नाश्ता लगा चुकी थी। आज सनडे था, कालेज भी नहीं जाना था। खाना खाने के बाद आँटी बर्तन उठाने लगी, वो थोड़ा लंगड़ाकर चल रही थी।
मैंने आँटी से पूछा- “आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं?”
सोनाली- “बेटा बाथरूम में नहाते हुए पैर फिसल गया था...” आँटी ने जवाब दिया।
मैं अपने कमरे में चली गई और गुजरी हुई रात के बारे में सोचने लगी।
तभी आँटी के कमरे से फोन की घंटी बजने लगी। आँटी कमरे की तरफ बढ़ी। मैं चुपके से खिड़की के पास आ गई और गौर से आँटी की आवाज सुनने लगी।
आँटी ने फोन उठाकर इधर-उधर देखा और बोली- “तुम बहुत जालिम हो जय। मेरी गाण्ड अब भी दर्द कर रही है। आज रात मत आना...” कहकर आँटी फोन सुनने लगी, फिर कहा- “तुम मेरी बात नहीं मानोगे, अच्छा आ जाना मगर मेरी गाण्ड सूजी हुई है वहाँ पे कुछ मत करना...” कहकर आँटी ने फोन रख दिया।
शाम को बिंदिया ने कहा- “चलो बाजार से कुछ सामान लेकर आते हैं...”
रास्ते में मैंने पूछा- “क्या खरीदना है?”
बिंदिया शर्माकर बोली- “मुझे कुछ अंडरगार्मेंट्स खरीदने हैं.”
मार्केट में पहुँचते ही एक लड़का बिंदिया को इशारे करने लगा। बिंदिया भी मुश्कुराकर जवाब दे रही थी।
मैंने पूछा- क्या माजरा है?