04-10-2022, 10:48 AM
(This post was last modified: 09-10-2022, 02:57 AM by aamirhydkhan1. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
औलाद की चाह
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
तैयारी-
परिधान'
Update -29
योनि पूजा
पुस्तक में योनि पूजा के बारे में और भी बहुत सारा ज्ञान था तो मैंने कुछ पन्ने पलटे तो उसमे योनि पूजा के बारे में बहुत सारा ज्ञान था उसमे से कुछ हिस्सा जो मुझे काफी रोचक लगा
योनि पूजा
निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफ़ी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।
योनि तंत्र-सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक 'योनि' को आद्याशक्ति मानते हैं। लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।
योनी तंत्र के अनुसार शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है। क्योंकि हर स्त्री योनि का ही अंश है। दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ योनी पूजन द्वारा करनी चाहिए।
योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।
सभी स्त्रियाँ इस सम्मान की अधिकारिणी हैं। अतः तंत्र साधक हो या आम मनुष्य कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए [
मैं काफ़ी लंबे समय के लिए पुस्तक से चिपके हुए थी और विस्तृत यज्ञ प्रक्रियाओं में तल्लीन थी और उत्सुकता से पुराण से निकाले गए अंशो और छंदों को पढ़ रही थी निम्न अंश मुझे दिलचस्प लगे:
योनी की पूजा करके एक निश्चित रूप से नारी शक्ति की ही पूजा की जाती है। तंत्र और मंत्र की तैयारी योनी की पूजा के बिना सिद्धि नहीं देती है।
योगी को तीन बार फूलो के साथ योनी के सामने झुक कर प्रणाम करना चाहिए।
रजस्वला योनी के साथ ही युगल होना चाहिए (अर्थात जिसे मासिक धर्म होता हो ऐसी योनि के साथ ही युगल करना चाहिए)
अगर सौभाग्य से कोई ब्राह्मण लड़की का साथी है, तो उस व्यक्ति को उस ब्राह्मण कन्या या स्त्री के योनी तत्व की पूजा करनी चाहिए। अन्यथा, अन्य योनियों की पूजा करें। बिना योनी पूजा के, सभी फल रहित हैं।
इस महान रहस्य को वैसे तो मुझे इसे छुपाना चाहिए। मंत्र पीठ यन्त्र सभी की उत्पत्ति योनी में हुई है और इसी से वे शक्तिशाली हुए हैं । योनी की पूजा करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
यदि कोई व्यक्ति मासिक धर्म के फूलों के साथ पूजा करता है, तो उसके भाग्य पर भी उसका अधिकार होता है। इस तरह से अधिक से अधिक पूजा करने से वह मुक्त हो सकता है। इस प्रकार की मासिक धर्म के फूलो वाली योनी की पूजा करने का फल, दुख के सागर से मुक्ति देने वाला, जीवन और उन्नत जीवन शक्ति है। जिस योनी से मासिक धर्म का रक्त निकलता है वह पूजा के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
एक ऐसी योनी की पूजा न करें, जिसमें कभी मासिक धर्म नहीं हुआ है। अगर हर बार एक कुंवारी कन्या की योनि (जिसका कौमार्य भंग) नहीं हुआ है कि पूजा करना संभव न हो तो ऐसे योनि की अनुपस्थिति में किसी युवती या किसी सुंदर महिला की धोनी की, बहन की या महिला की योनि या पुतली की पूजा करें। प्रतिदिन योनी की पूजा करें, अन्यथा मंत्र का उच्चारण करें। योनी पूजा के बिना बेकार पूजा न करें।
एक योनी की पूजा करने की इच्छा रखने वाला साधक को स्तंभन होना चाहिए और योनी जो कि शक्ति है उसमे प्रवेश करना चाहिए। इन पर फूल आदि चढ़ाने चाहिए, यदि इसमें असमर्थ हैं, तो शराब के साथ पूजा करें।
एक को अपनी संगिनी की योनी में, उसकी अनुपस्थिति में ही किसी दूसरी युवती की योनि या फिर किसी कुंवारी की योनि और उसकी अनुपस्थिति में अपनी शिष्य की योनि पर श्रद्धा से टकटकी लगानी चाहिए। योनि के माध्यम से ही आनद और मुक्ति मिलती है। भोग के माध्यम से सुख प्राप्त होता है। इसलिए, हर प्रयास से, एक साधक को भोगी होना पड़ता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योनी के दोष, घृणा या शर्म से बचना चाहिए। योनी के किनारे पर अमृत चाटना चाहिए, जिससे किसी के शरीर या निवास स्थान में बुराई निश्चित रूप से नष्ट हो जाती है। इससे सब पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अभीष्ट फल प्राप्त होता है
योनि साधना के बिना, सभी साधना व्यर्थ है इसलिए, योनी पूजा करें। और गुरु के प्रति समर्पण के बिना कोई सिद्धि नहीं है।
इस ज्ञान में तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है।
मुझे पता ही नहीं चला पुस्तक पढ़ते हुए समय कैसे बीता,
लगभग पौने नौ बजे जब मैं अपना मुँह धो रही थी तब मास्टर-जी और दीपू फिर से प्रकट हुए ।
कहानी जारी रहेगी
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
तैयारी-
परिधान'
Update -29
योनि पूजा
पुस्तक में योनि पूजा के बारे में और भी बहुत सारा ज्ञान था तो मैंने कुछ पन्ने पलटे तो उसमे योनि पूजा के बारे में बहुत सारा ज्ञान था उसमे से कुछ हिस्सा जो मुझे काफी रोचक लगा
योनि पूजा
निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफ़ी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।
योनि तंत्र-सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक 'योनि' को आद्याशक्ति मानते हैं। लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।
योनी तंत्र के अनुसार शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है। क्योंकि हर स्त्री योनि का ही अंश है। दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ योनी पूजन द्वारा करनी चाहिए।
योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।
सभी स्त्रियाँ इस सम्मान की अधिकारिणी हैं। अतः तंत्र साधक हो या आम मनुष्य कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए [
मैं काफ़ी लंबे समय के लिए पुस्तक से चिपके हुए थी और विस्तृत यज्ञ प्रक्रियाओं में तल्लीन थी और उत्सुकता से पुराण से निकाले गए अंशो और छंदों को पढ़ रही थी निम्न अंश मुझे दिलचस्प लगे:
योनी की पूजा करके एक निश्चित रूप से नारी शक्ति की ही पूजा की जाती है। तंत्र और मंत्र की तैयारी योनी की पूजा के बिना सिद्धि नहीं देती है।
योगी को तीन बार फूलो के साथ योनी के सामने झुक कर प्रणाम करना चाहिए।
रजस्वला योनी के साथ ही युगल होना चाहिए (अर्थात जिसे मासिक धर्म होता हो ऐसी योनि के साथ ही युगल करना चाहिए)
अगर सौभाग्य से कोई ब्राह्मण लड़की का साथी है, तो उस व्यक्ति को उस ब्राह्मण कन्या या स्त्री के योनी तत्व की पूजा करनी चाहिए। अन्यथा, अन्य योनियों की पूजा करें। बिना योनी पूजा के, सभी फल रहित हैं।
इस महान रहस्य को वैसे तो मुझे इसे छुपाना चाहिए। मंत्र पीठ यन्त्र सभी की उत्पत्ति योनी में हुई है और इसी से वे शक्तिशाली हुए हैं । योनी की पूजा करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
यदि कोई व्यक्ति मासिक धर्म के फूलों के साथ पूजा करता है, तो उसके भाग्य पर भी उसका अधिकार होता है। इस तरह से अधिक से अधिक पूजा करने से वह मुक्त हो सकता है। इस प्रकार की मासिक धर्म के फूलो वाली योनी की पूजा करने का फल, दुख के सागर से मुक्ति देने वाला, जीवन और उन्नत जीवन शक्ति है। जिस योनी से मासिक धर्म का रक्त निकलता है वह पूजा के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
एक ऐसी योनी की पूजा न करें, जिसमें कभी मासिक धर्म नहीं हुआ है। अगर हर बार एक कुंवारी कन्या की योनि (जिसका कौमार्य भंग) नहीं हुआ है कि पूजा करना संभव न हो तो ऐसे योनि की अनुपस्थिति में किसी युवती या किसी सुंदर महिला की धोनी की, बहन की या महिला की योनि या पुतली की पूजा करें। प्रतिदिन योनी की पूजा करें, अन्यथा मंत्र का उच्चारण करें। योनी पूजा के बिना बेकार पूजा न करें।
एक योनी की पूजा करने की इच्छा रखने वाला साधक को स्तंभन होना चाहिए और योनी जो कि शक्ति है उसमे प्रवेश करना चाहिए। इन पर फूल आदि चढ़ाने चाहिए, यदि इसमें असमर्थ हैं, तो शराब के साथ पूजा करें।
एक को अपनी संगिनी की योनी में, उसकी अनुपस्थिति में ही किसी दूसरी युवती की योनि या फिर किसी कुंवारी की योनि और उसकी अनुपस्थिति में अपनी शिष्य की योनि पर श्रद्धा से टकटकी लगानी चाहिए। योनि के माध्यम से ही आनद और मुक्ति मिलती है। भोग के माध्यम से सुख प्राप्त होता है। इसलिए, हर प्रयास से, एक साधक को भोगी होना पड़ता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योनी के दोष, घृणा या शर्म से बचना चाहिए। योनी के किनारे पर अमृत चाटना चाहिए, जिससे किसी के शरीर या निवास स्थान में बुराई निश्चित रूप से नष्ट हो जाती है। इससे सब पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अभीष्ट फल प्राप्त होता है
योनि साधना के बिना, सभी साधना व्यर्थ है इसलिए, योनी पूजा करें। और गुरु के प्रति समर्पण के बिना कोई सिद्धि नहीं है।
इस ज्ञान में तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है।
मुझे पता ही नहीं चला पुस्तक पढ़ते हुए समय कैसे बीता,
लगभग पौने नौ बजे जब मैं अपना मुँह धो रही थी तब मास्टर-जी और दीपू फिर से प्रकट हुए ।
कहानी जारी रहेगी